Sunday, February 27, 2011

क्यों है हम सब अशांत,क्या है वो विधि जो हमें शांति दे सकती है:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 27th Feb, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.एक दिन बस में मैंने एक आदमी को गाते हुए सुना
दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना,
जहाँ नही चैना वहाँ नही रहना.
यानि कि जहाँ चैन नही,शांति नही वहाँ रहने को मन नही करता.आज के  दौड़ में आपके पास बहुत पैसा हो सकता है.खूब नाम भी हो सकता है और दुनिया भर का साजोसामान भी हो सकता है.पर आज के  दौड़ में जो लोगों के पास नही है वो है चैन,शांति,सुख.जब आदमी गरीब होता है तो सोचता है कि खूब अमीर हो जाऊंगा तो जरूर शांत  हो जाऊंगा.यदि by chance उसकी लॉटरी लग जाए तो वो सोचता है कि रुपये कैसे खर्च करूँ और कैसे बचाऊं.और फिर इसे मै कैसे बढ़ाऊ.इसी उधेरबुन में वो अशांत होता जाता है.दुखी हो जाता है.

बड़े-बड़े देशों में अशांति रहती है.शांति कायम करने के प्रयास किये जाते रहते हैं.शांति सम्मलेन होते हैं.शांति पुरस्कार भी दिए जाते हैं.बावजूद इसके घर से लेकर बाहर और बाहर से लेकर पूरी दुनिया में अशांति का साम्राज्य छाया हुआ है.

आखिर क्यों है हम सब अशांत.क्या है वो विधि जो हमें शांति दे सकती है.इसी की चर्चा है आज के श्लोक में.कृपया ध्यान से सुनिए:

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्‌ ॥(भगवद्गीता,2.66)
अर्थात्

भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.

तो भगवान बड़ी ही सुन्दर बात आपको बता रहे हैं.भगवान कहते हैं कि देखिये यदि कोई व्यक्ति भगवान से जुड़ा हुआ नही है.यदि कोई व्यक्ति सिर्फ अपनी आकांक्षाओं से जुड़ा है,अपनी आशाओं से जुड़ा है,अपनी इच्छाओं से जुड़ा है और अपनी इच्छाओं के बीच,अपनी आशाओं के बीच वो कभी भगवान को भी नही आने देता.वो नही सोचता है कि अरे पहला कदम मै बढाऊंगा.बाकी भगवान कर लेंगे.नही वो कहता है कि मुझे ही सब कुछ करना है और ये पूरा जगत मुझे जीतना है.

भगवान से जिसकी बुद्धि नही जुडी रहती है.जो बस अपनी इंद्रतृप्ति के लिए सुबह से लेकर रात तक काम करते रहता है.ऐसे व्यक्ति के पास कभी भी दैवीय बुद्धि नही होती.divine intelligence नही होती.उसके पास जो intelligence होती है.जो बुद्धि होती है,वो material बुद्धि होती है.इस भौतिक धरातल पर उसकी बुद्धि काम करती है.इसीलिए वो अशांत रहता है.वो शांत नही हो पाता है.

तो भगवान यहाँ आपको बहुत सुन्दर तरीका बताते हैं कि यदि आप मुझसे जुड जाए यानि ईश्वर से जुड जाए तो आपकी सारी problems दूर हो जायेंगी और आपके पास शांति स्वमेव आ जायेगी.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्‌ ॥(भगवद्गीता,2.66)
अर्थात्

भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.


है न.यानि कि जिसकी बुद्धि सकाम उद्यम से जुडी रहती है.जो सकाम कर्मी होता है.जो अपने हर काम के पीछे कोई फल चाहता है.ऐसा व्यक्ति सकाम कर्मी होता है.ऐसे व्यक्ति की बुद्धि सकाम होती है.ऐसे व्यक्ति की बुद्धि निष्काम नही हो सकती.निष्काम बुद्धि होना,निष्काम कर्म होना ये बहुत ही दुर्लभ है.जो व्यक्ति भगवान से जुड़ा नही है,वो इस चीज को प्राप्त नही कर सकता.

तो यहाँ भगवान बता रहे हैं कि यदि आपकी बुद्धि दैवीय नही है,आपके पास मन स्थिर नही है तो आप अशांत होगे.यानि कि शांति मन में आती है.शांति का जो receptionist है जो शांति को receive करता है वो receiver है मन.शांति मन में आती है.उसके बाद बुद्धि में आती है और उसके बाद सम्पूर्ण आत्मा में फ़ैल जाती है.लेकिन मन ही अगर अस्थिर है तो कैसे काम चलेगा.सोचिये आपका अस्थिर मन कैसे आपको स्थिरता देगा.Possible नही है.

जैसे कि मान लीजिए परसो आपका examination है और आप बैठे हुए हैं कि भई मुझे पढ़ना है.आप पढ़ने के लिए बैठे हैं और अचानक आपका मन कहता है कि चलो भई क्रिकेट खेलने चला जाए.शाम हो गई है.यार-दोस्त बाहर जम गए हैं.मुझे भी चलना चाहिए और आप अगर अपने मन की बात सुन लेते हैं तो जरूर क्रिकेट खेलकर आते हैं.इसके बाद आपके parents,आपके अभिभावक आप पर चिल्लाते हैं,गुस्सा करते हैं.आपके नंबर भी कम आते हैं और आप अशांत हो जाते हैं.आप डर जाते हैं कि exam में जाने क्या-क्या आएगा.मैंने तो कुछ भी prepare नही किया.कोई तैयारी नही है मेरी.आप अशांत हो जाते हैं.

तो अस्थिर मन अशांति का कारण होता है.चुकी मन अस्थिर होता है इसलिए उसके पीछे जो बुद्धि कार्य कर रही है वो भी दैवीय बुद्धि नही है.वो भौतिक में ,भौतिक पदार्थों में लिप्त है.यानि कि आप सोचते हैं कि आपको सुख एक टेलीविजन दे सकता है.लेकिन इसी टेलीविजन को आप बारहों घंटे देखते हैं तो आपकी आँखें भी खराब हो जाती है और आप देखते हैं कि आप चिडचिडे हो जाते हैं.आपको कुछ अच्छा नही लगता है.

तो अगर आप अपनी जिंदगी में गौर से देखे तो आप देखेंगे कि जहाँ से आप सुख प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं वस्तुतः वो मृग मरीचिका है.वो सुख है ही नही.आप लग रहा है कि शायद वो सुख है.तो शायद आप सुख परिभाषा अभी ठीक से जानते नही हैं.इसे जानने का प्रयास कीजिये.

हम मिलते हैं आपके साथ थोड़ी -ही देर में.सुनते रहिये समर्पण.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.बहुत--ही सुन्दर श्लोक है:
भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.

कितनी सही बात भगवान कहते हैं.सोचिये एक ऐसे घर के बारे में जहाँ दिन-रात कलह होती हो.पत्नी पति से लड़ती हो.पति पत्नी से लड़ता हो.बच्चे आपस में लड़ते हो.तो सोचिये कि ऐसे घर में कौन जाना चाहेगा.कौन रहना चाहेगा.सोचिये कि एक आदमी दिनभर काम करता हो.सुबह से लेकर के रात तक काम करता हो.फिर सोचे कि जल्दी से मै घर जाऊं और घर जाके आराम करूँ.मेरी पत्नी मीठी-मीठी बातें करे.बच्चे मेरे पास आये.मेरे पास प्यार से बैठे.मुझसे प्यार से बात करे.

और अचानक उसे लगता है कि नही,नही पत्नी आजकल प्यार से बात नही करती,बच्चे भी बहुत demanding हो गए हैं.बात-बात पर ताने सुना देते हैं कि अंकल जी तो ये लाते हैं आप क्या लाते हैं.अंकल के पास तो ये है आपके पास क्या है.आपने हमें क्या दिया या पत्नी भी बात-बात पर आपसे लड़ाई करती है.तो क्या आप उस घर में जाना चाहेंगे.नही.क्योंकि वो घर अशांत है.अशांति की जड़ है और जहाँ अशांति है वहाँ दुःख है.वहाँ सुख कैसे हो सकता है.

तो भगवान यही कहते हैं कि जब व्यक्ति भगवान से जुड़ा नही रहता है तो वो अपनी कामनाओं से जुड़ा रहता है.अपनी कामनाओं को पूरा करने के चक्कर में वो घूमता रहता है.और देखिये ये जो शब्द है न अपनी कामना बहुत विस्तृत है.सिर्फ अपनी ही नही अपनी पत्नी की,अपने बच्चों की.हम उनकी कामनाओं को भी अपनी कामना समझ के उन्हें पूरा करने के चक्कर में दिन-रात लगे रहते हैं.दिन-रात.जब हम उनकी कामनाओं को पूर्ण नही कर पाते हैं तो हमें अनेकानेक इल्जाम सहने पड़ते हैं और हमारा मन व्यथित हो जाता है.

जाहिर सी बात है कि जब आपने भगवान के लिए नही सोचा.आपने सोचा मैंने ये सब कमाया अपने बच्चों के लिए,अपनी पत्नी के लिए,अपने पति के लिए,अपने अपनों के लिए और भगवान?अरे भगवान तो दाता हैं.भगवान तो देने का नाम है.भगवान तो हमें देंगे.और देंगे किसलिए ताकि हम और इंद्रतृप्ति कर सके.अगर वो हमें हमारे sense  gratification के लिए और नही देंगे तो भगवान ही किस काम के.ऐसी हमारी सोच रहती है.

क्योंकि हम भगवान से जुड नही पाते हैं इसीलिए हम सदा-सर्वदा अशांत रहते हैं.पर मै आपको बता दूँ कि बड़े-बड़े लोगों को ये बात पता नही,गूढ़ रहस्य पता नही कि भई जिसने हमें इस संसार में भेजा है,कम-से-कम उसका शुक्रिया तो कहे.जिसने हमें इतना कुछ दिया है भोगने के लिए कम-से-कम हम उसे शुक्रिया तो कहे.कम-से-कम हम उसे ये तो कहे कि प्रभु ये सब आपके कारण है.लेकिन हम ये सोचते भी नही.

और होता क्या है?हम इतने दुखी हो जाते हैं,इतने दुखी हो जाते हैं कि हम बीमार हो जाते हैं और कहलाये जाते हैं कि हम depression के शिकार हैं.है न सही बात.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.

तो देखिये यहाँ सारी अशांति की जड़ चाहे वो व्यक्ति विशेष की बात हो,घर विशेष की बात हो,मोहल्ला विशेष की बात हो,राज्य विशेष की बात हो या फिर देश विशेष की बात हो या विश्व स्तर की बात हो यहाँ बताया गया है कि यदि व्यक्तियों की बुद्धि भगवान से अयुक्त है.भगवान से युक्त नही है तो हमेशा अशांत रहेगी.भगवान कहते हैं :
बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्‌ ॥(भगवद्गीता,2.41)
कि जिस व्यक्ति की बुद्धि व्यवसायित्मिका नही है.जो इस बात को नही समझ पाया कि भगवान ही समस्त कारणों के अंतिम कारण हैं और हमें उन्ही की शरणागत होना है.जो इस बात को स्वीकार नही कर पाया ,ऐसे व्यक्ति की बुद्धि अनेकानेक शाखाओं में विभक्त रहती है.और सोचिये यदि बुद्धि अनेकानेक शाखाओं में विभक्त रहेगी तो आप कैसे अपना काम कर पायेंगे.कैसे.possible नही है.

आपकी बुद्धि इसतरह से होनी चाहिए जैसे अर्जुन को चिड़िया की सिर्फ आँख ही दिखाई दी और उसे कुछ नजर नही आया.इसीप्रकार से जब हमें सिर्फ हमारे जीवन का उद्देश्य ही नजर आएगा.वो भी स्पष्ट रूप से कि हाँ भगवद प्राप्ति,भगवान से मिलन,भगवान के प्रति प्रेम का विकास,यही हमारे जीवन का सर्वोपरी उद्देश्य है.जब हमें ये बात समझ आ जायेगी तब समझ लीजियेगा कि हमारी बुद्धि व्यवसायित्मिका हो जायेगी.दैवीय हो जायेगी.भगवान कहते भी हैं:
अज्ञश्चश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥(भगवद्गीता,4.40)

भगवान कहते हैं कि जिसकी भगवान में श्रद्धा नही  है और जो भगवान पर doubt करता है.संदेह करता है भगवद विषय पर.भगवद चर्चा पर जिसे संदेह है.जो भगवान के बंदों पर संदेह करते हैं.भगवान कहते हैं कि ऐसे लोगों का विनाश हो जाता है और ऐसे लोगों को न इस संसार में सुख प्राप्त हो सकता है,न दूसरे संसार में सुख प्राप्त हो सकता है.ऐसे व्यक्ति सदा-सर्वदा के लिए विनष्ट हो जाते हैं.

तो सोचिये.भगवान पर श्रद्धा होना,ये बहुत जरूरी है और मै आपको बताऊँ कि भक्ति की शुरुआत श्रद्धा से ही होती है.ये श्रद्धा की भगवान हैं,हमें सुनते हैं और हमारा भला चाहते हैं.वही हमारे परमपिता हैं.ये श्रद्धा होना बहुत जरूरी है.तो कैसे होगी ये श्रद्धा?साधुसंग से.जब आप भक्तों का संग करेंगे और भक्तों के संग में बैठकर हरिकथा सुनेंगे,भगवान की चर्चा सुनेंगे तो ये बुद्धि आपकी विमल होगी,व्यवसायित्मिका होगी,one pointed होगी,अपने  उद्देश्य की तरफ आप शीघ्रता से बढते चले जायेंगे.

और जब ऐसा होगा तब आपको शांति भी मिलेगी और सुख भी.याद रखिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्‌ ॥(भगवद्गीता,2.66)
अर्थात्

भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.
नही रह सकता,सुखी नही रह सकता.यदि व्यक्ति अपनी इंद्रतृप्ति के बारे में सोचता रहे और बार -बार सोचता रहे लेकिन अपनी इंद्रतृप्ति से वो संतुष्ट न हो पाए.बार-बार सोचे कि अरे ये भी रह गया.अभी तो मुझे ये करना था.मुझे वो पाना था.पा न सका.ये करूँगा,वो करूँगा.सोचा था पर कर न सका.ऐसा व्यक्ति असंतुष्ट हो जाता है.है न.तब वो अशांत हो जाता है.और इसीपर मुझे एक छोटी-सी कहानी याद आयी.आप ध्यान से सुनिए:

एक बार किसी संपन्न राज्य के राजा के पास एक साधु आये.राजा ने पूछा कि महात्मन आपकी क्या सेवा करूँ?साधु बोले कि महाराज ये एक छोटा-सा बर्त्तन है.कृपया इसे भरवा दीजिए.राजा बोला कि महात्मा जी इस छोटे-से बर्तन को अभी-अभी मै अमूल्य हीरे-जवाहरात और सोने-चांदी से भरवा देता हूँ ताकि बाकी जीवन आपको धन की जरूरत ही न पड़े.

राजा का आदेश पाते ही कोषाध्यक्ष ने उस पात्र को भरना शुरू कर दिया लेकिन वो पात्र भर ही नही पा रहा था.देखते-देखते सारा खजाना खाली हो गया.राजा ने पूछा -महात्मा जी ये बर्त्तन किस धातु का बना है.मेरा तो सारा खजाना खाली हो गया लेकिन ये भरा ही नही.साधु बोले-महाराज ये मनुष्य की खोपड़ी की हड्डी से बना है.इस कपाल की लिप्सा कभी भी पूरी नही होती.ये सुनते ही राजा चौंक पड़े और उन्होंने ने विनम्रतापूर्वक कहा कि आपकी बात सुनकर तो मेरी उत्सुकता बढ़ गई है.कृपया विस्तार से बताएँ.

तब साधु महाराज ने समझाया-राजन तृष्णा एक ऐसा गहरा घड़ा है जिसे सम्पूर्ण पृथ्वी के हीरों आदि से भी नही भरा जा सकता.ये तृष्णा मनुष्य को बन्दर की तरह नचाती है,कुत्ते की तरह दर-दर भटकाती है,उल्ले के समान सूरज के प्रकाश में भी अंधा बना देती है और मछली की तरह लोभ में फँसा कर जीवन को संकट में डाल देती है.तृष्णा के अनेक रूप हैं लेकिन मै उन रूपों का वर्णन नही कर सकता क्योंकि ये मेरी सीमा के बाहर है.

तो सुना आपने जो व्यक्ति अपने दिमाग का इस्तेमाल सिर्फ अपने सुख को बटोरने में करता है,शारीरिक सुख को बटोरने में करता है,जो भगवान से अलहदा रहता है,उनसे जुड़ता नही है वो सदा-सर्वदा तृष्णायुक्त जीवन व्यतीत करता है.उसके जीवन में,जीवन के अंतिम समय तक कोई-न-कोई चाह,कोई-न-कोई इच्छा रह जाती है और उस इच्छा के चलते उसे दुबारा से जीवन धारण करना पड़ता है .शरीर धारण करना पड़ता है और ये एक अफ़सोस की बात है.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधाराहम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर :
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्‌ ॥(भगवद्गीता,2.66)
अर्थात्

भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.

तो भगवान बड़ी ही सुन्दर बात आपको बता रहे हैं.भगवान कहते हैं कि देखिये यदि कोई व्यक्ति भगवान से जुड़ा हुआ नही है.यदि कोई व्यक्ति सिर्फ अपनी आकांक्षाओं से जुड़ा है,अपनी आशाओं से जुड़ा है,अपनी इच्छाओं से जुड़ा है और अपनी इच्छाओं के बीच,अपनी आशाओं के बीच वो कभी भगवान को भी नही आने देता.वो नही सोचता है कि अरे पहला कदम मै बढाऊंगा.बाकी भगवान कर लेंगे.नही वो कहता है कि मुझे ही सब कुछ करना है और ये पूरा जगत मुझे जीतना है.

भगवान से जिसकी बुद्धि नही जुडी रहती है.जो बस अपनी इंद्रतृप्ति के लिए सुबह से लेकर रात तक काम करते रहता है.ऐसे व्यक्ति के पास कभी भी दैवीय बुद्धि नही होती.divine intelligence नही होती.उसके पास जो intelligence होती है.जो बुद्धि होती है,वो material बुद्धि होती है.इस भौतिक धरातल पर उसकी बुद्धि काम करती है.इसीलिए वो अशांत रहता है.वो शांत नही हो पाता है.

तो भगवान यहाँ आपको बहुत सुन्दर तरीका बताते हैं कि यदि आप मुझसे जुड जाए यानि ईश्वर से जुड जाए तो आपकी सारी problems दूर हो जायेंगी और आपके पास शांति स्वमेव आ जायेगी.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्‌ ॥(भगवद्गीता,2.66)
अर्थात्

भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.


है न.यानि कि जिसकी बुद्धि सकाम उद्यम से जुडी रहती है.जो सकाम कर्मी होता है.जो अपने हर काम के पीछे कोई फल चाहता है.ऐसा व्यक्ति सकाम कर्मी होता है.ऐसे व्यक्ति की बुद्धि सकाम होती है.ऐसे व्यक्ति की बुद्धि निष्काम नही हो सकती.निष्काम बुद्धि होना,निष्काम कर्म होना ये बहुत ही दुर्लभ है.जो व्यक्ति भगवान से जुड़ा नही है,वो इस चीज को प्राप्त नही कर सकता.

तो यहाँ भगवान बता रहे हैं कि यदि आपकी बुद्धि दैवीय नही है,आपके पास मन स्थिर नही है तो आप अशांत होगे.यानि कि शांति मन में आती है.शांति का जो receptionist है जो शांति को receive करता है वो receiver है मन.शांति मन में आती है.उसके बाद बुद्धि में आती है और उसके बाद सम्पूर्ण आत्मा में फ़ैल जाती है.लेकिन मन ही अगर अस्थिर है तो कैसे काम चलेगा.सोचिये आपका अस्थिर मन कैसे आपको स्थिरता देगा.Possible नही है.

जैसे कि मान लीजिए परसो आपका examination है और आप बैठे हुए हैं कि भई मुझे पढ़ना है.आप पढ़ने के लिए बैठे हैं और अचानक आपका मन कहता है कि चलो भई क्रिकेट खेलने चला जाए.शाम हो गई है.यार-दोस्त बाहर जम गए हैं.मुझे भी चलना चाहिए और आप अगर अपने मन की बात सुन लेते हैं तो जरूर क्रिकेट खेलकर आते हैं.इसके बाद आपके parents,आपके अभिभावक आप पर चिल्लाते हैं,गुस्सा करते हैं.आपके नंबर भी कम आते हैं और आप अशांत हो जाते हैं.आप डर जाते हैं कि exam में जाने क्या-क्या आएगा.मैंने तो कुछ भी prepare नही किया.कोई तैयारी नही है मेरी.आप अशांत हो जाते हैं.

तो अस्थिर मन अशांति का कारण होता है.चुकी मन अस्थिर होता है इसलिए उसके पीछे जो बुद्धि कार्य कर रही है वो भी दैवीय बुद्धि नही है.वो भौतिक में ,भौतिक पदार्थों में लिप्त है.यानि कि आप सोचते हैं कि आपको सुख एक टेलीविजन दे सकता है.लेकिन इसी टेलीविजन को आप बारहों घंटे देखते हैं तो आपकी आँखें भी खराब हो जाती है और आप देखते हैं कि आप चिडचिडे हो जाते हैं.आपको कुछ अच्छा नही लगता है.

तो अगर आप अपनी जिंदगी में गौर से देखे तो आप देखेंगे कि जहाँ से आप सुख प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं वस्तुतः वो मृग मरीचिका है.वो सुख है ही नही.आप लग रहा है कि शायद वो सुख है.तो शायद आप सुख परिभाषा अभी ठीक से जानते नही हैं.इसे जानने का प्रयास कीजिये.

हम मिलते हैं आपके साथ थोड़ी -ही देर में.सुनते रहिये समर्पण.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.बहुत--ही सुन्दर श्लोक है:
भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.

कितनी सही बात भगवान कहते हैं.सोचिये एक ऐसे घर के बारे में जहाँ दिन-रात कलह होती हो.पत्नी पति से लड़ती हो.पति पत्नी से लड़ता हो.बच्चे आपस में लड़ते हो.तो सोचिये कि ऐसे घर में कौन जाना चाहेगा.कौन रहना चाहेगा.सोचिये कि एक आदमी दिनभर काम करता हो.सुबह से लेकर के रात तक काम करता हो.फिर सोचे कि जल्दी से मै घर जाऊं और घर जाके आराम करूँ.मेरी पत्नी मीठी-मीठी बातें करे.बच्चे मेरे पास आये.मेरे पास प्यार से बैठे.मुझसे प्यार से बात करे.

और अचानक उसे लगता है कि नही,नही पत्नी आजकल प्यार से बात नही करती,बच्चे भी बहुत demanding हो गए हैं.बात-बात पर ताने सुना देते हैं कि अंकल जी तो ये लाते हैं आप क्या लाते हैं.अंकल के पास तो ये है आपके पास क्या है.आपने हमें क्या दिया या पत्नी भी बात-बात पर आपसे लड़ाई करती है.तो क्या आप उस घर में जाना चाहेंगे.नही.क्योंकि वो घर अशांत है.अशांति की जड़ है और जहाँ अशांति है वहाँ दुःख है.वहाँ सुख कैसे हो सकता है.

तो भगवान यही कहते हैं कि जब व्यक्ति भगवान से जुड़ा नही रहता है तो वो अपनी कामनाओं से जुड़ा रहता है.अपनी कामनाओं को पूरा करने के चक्कर में वो घूमता रहता है.और देखिये ये जो शब्द है न अपनी कामना बहुत विस्तृत है.सिर्फ अपनी ही नही अपनी पत्नी की,अपने बच्चों की.हम उनकी कामनाओं को भी अपनी कामना समझ के उन्हें पूरा करने के चक्कर में दिन-रात लगे रहते हैं.दिन-रात.जब हम उनकी कामनाओं को पूर्ण नही कर पाते हैं तो हमें अनेकानेक इल्जाम सहने पड़ते हैं और हमारा मन व्यथित हो जाता है.

जाहिर सी बात है कि जब आपने भगवान के लिए नही सोचा.आपने सोचा मैंने ये सब कमाया अपने बच्चों के लिए,अपनी पत्नी के लिए,अपने पति के लिए,अपने अपनों के लिए और भगवान?अरे भगवान तो दाता हैं.भगवान तो देने का नाम है.भगवान तो हमें देंगे.और देंगे किसलिए ताकि हम और इंद्रतृप्ति कर सके.अगर वो हमें हमारे sense  gratification के लिए और नही देंगे तो भगवान ही किस काम के.ऐसी हमारी सोच रहती है.

क्योंकि हम भगवान से जुड नही पाते हैं इसीलिए हम सदा-सर्वदा अशांत रहते हैं.पर मै आपको बता दूँ कि बड़े-बड़े लोगों को ये बात पता नही,गूढ़ रहस्य पता नही कि भई जिसने हमें इस संसार में भेजा है,कम-से-कम उसका शुक्रिया तो कहे.जिसने हमें इतना कुछ दिया है भोगने के लिए कम-से-कम हम उसे शुक्रिया तो कहे.कम-से-कम हम उसे ये तो कहे कि प्रभु ये सब आपके कारण है.लेकिन हम ये सोचते भी नही.

और होता क्या है?हम इतने दुखी हो जाते हैं,इतने दुखी हो जाते हैं कि हम बीमार हो जाते हैं और कहलाये जाते हैं कि हम depression के शिकार हैं.है न सही बात.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.

तो देखिये यहाँ सारी अशांति की जड़ चाहे वो व्यक्ति विशेष की बात हो,घर विशेष की बात हो,मोहल्ला विशेष की बात हो,राज्य विशेष की बात हो या फिर देश विशेष की बात हो या विश्व स्तर की बात हो यहाँ बताया गया है कि यदि व्यक्तियों की बुद्धि भगवान से अयुक्त है.भगवान से युक्त नही है तो हमेशा अशांत रहेगी.भगवान कहते हैं :
बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्‌ ॥(भगवद्गीता,2.41)
कि जिस व्यक्ति की बुद्धि व्यवसायित्मिका नही है.जो इस बात को नही समझ पाया कि भगवान ही समस्त कारणों के अंतिम कारण हैं और हमें उन्ही की शरणागत होना है.जो इस बात को स्वीकार नही कर पाया ,ऐसे व्यक्ति की बुद्धि अनेकानेक शाखाओं में विभक्त रहती है.और सोचिये यदि बुद्धि अनेकानेक शाखाओं में विभक्त रहेगी तो आप कैसे अपना काम कर पायेंगे.कैसे.possible नही है.

आपकी बुद्धि इसतरह से होनी चाहिए जैसे अर्जुन को चिड़िया की सिर्फ आँख ही दिखाई दी और उसे कुछ नजर नही आया.इसीप्रकार से जब हमें सिर्फ हमारे जीवन का उद्देश्य ही नजर आएगा.वो भी स्पष्ट रूप से कि हाँ भगवद प्राप्ति,भगवान से मिलन,भगवान के प्रति प्रेम का विकास,यही हमारे जीवन का सर्वोपरी उद्देश्य है.जब हमें ये बात समझ आ जायेगी तब समझ लीजियेगा कि हमारी बुद्धि व्यवसायित्मिका हो जायेगी.दैवीय हो जायेगी.भगवान कहते भी हैं:
अज्ञश्चश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥(भगवद्गीता,4.40)
भगवान कहते हैं कि जिसकी भगवान में श्रद्धा नही  है और जो भगवान पर doubt करता है.संदेह करता है भगवद विषय पर.भगवद चर्चा पर जिसे संदेह है.जो भगवान के बंदों पर संदेह करते हैं.भगवान कहते हैं कि ऐसे लोगों का विनाश हो जाता है और ऐसे लोगों को न इस संसार में सुख प्राप्त हो सकता है,न दूसरे संसार में सुख प्राप्त हो सकता है.ऐसे व्यक्ति सदा-सर्वदा के लिए विनष्ट हो जाते हैं.

तो सोचिये.भगवान पर श्रद्धा होना,ये बहुत जरूरी है और मै आपको बताऊँ कि भक्ति की शुरुआत श्रद्धा से ही होती है.ये श्रद्धा की भगवान हैं,हमें सुनते हैं और हमारा भला चाहते हैं.वही हमारे परमपिता हैं.ये श्रद्धा होना बहुत जरूरी है.तो कैसे होगी ये श्रद्धा?साधुसंग से.जब आप भक्तों का संग करेंगे और भक्तों के संग में बैठकर हरिकथा सुनेंगे,भगवान की चर्चा सुनेंगे तो ये बुद्धि आपकी विमल होगी,व्यवसायित्मिका होगी,one pointed होगी,अपने  उद्देश्य की तरफ आप शीघ्रता से बढते चले जायेंगे.

और जब ऐसा होगा तब आपको शांति भी मिलेगी और सुख भी.याद रखिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.आज का श्लोक है :
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना । 
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्‌ ॥(भगवद्गीता,2.66)
अर्थात्

भगवान कहते है कि जो व्यक्ति ईश्वर से जुड़ा हुआ नही है उसकी न तो बुद्धि दैवीय होती है,न ही उसके पास स्थिर मन होता है जिसके बिना शांति की कोई संभावना नही है और शांति के बिना भला कोई कैसे सुखी रह सकता है.
तो देखिये भगवान यहाँ बहुत-ही सुन्दर बात आपको बता रहे हैं.देखिये यदि आप भगवान से जुड जाते हैं तब आपका सुख आपका नही रहता.भगवान का हो जाता है.आपका दुःख भी तो आपका नही रहता.है न.यानि आप भगवान स्व जुड गए तो आप कहते हैं कि भगवान ये सुख जो मुझे मिल रहा है वो वास्तव में आपने दिया और ये जो दुःख मुझ तक आया वास्तव में आपने इतनी कृपा की कि मुझे तो बहुत दुःख मिलने थे.मेरे तो बड़े ही विकर्म थे,बड़े ही पाप थे लेकिन आपने इतनी कृपा कर दी कि प्रभु ये दुःख कितना कम होकर के मेरे पास आया.मेरे कर्म काटने के लिए आपने इतनी कृपा कर दी कि दुःख दुःख ही नही रहा.है न.शायद मै आग से जल जाता लेकिन देखिये मुझे आग बस छू भर गई.है न.आप ऐसा सोचने लगते हैं.

लेकिन जिसकी बुद्धि भगवान से नही जुडी है वो कहेगा कि अरे कितना दुखी हूँ मै.भगवान क्या सो गए थे.क्या उन्होंने देखा नही कि मै कितना दुखी हूँ.भगवान ने मेरी मदद क्यों नही की.भगवान हमारी मदद क्यों नही करते.अगर भगवान हैं तो वो मदद करे.तो ऐसा व्यक्ति महा अज्ञानी होता है जो ये सोचता है कि भगवान यदि हैं तो मेरी मदद करे.

अजी भगवान तो हैं.आपकी मदद कर भी रहे हैं.आप नही समझ पा रहे हैं तो ये आपकी problem है क्योंकि भगवान कहते हैं:
ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥(भगवद्गीता,4.39)
यदि आपको परा का ज्ञान हो जाए.भगवान की परा प्रकृति.भगवान की परा प्रकृति जो जीवात्मा है,उसका ज्ञान हो जाये,परमात्मा का ज्ञान हो जाए और spiritual places यानि भगवान के लोकों का ज्ञान हो जाए,आपके जीवन का जो अभीष्ट है उसका ज्ञान हो जाए तो आपको तुरंत ही शांति प्राप्त हो जायेगी.

लेकिन आप परा का ज्ञान नही लेते.आप अपरा का ज्ञान लेते हैं.Material energy जो भगवान की है,जो माया है उसका ज्ञान लेकर के खुश हो जाते हैं.इसलिए फँस जाते हैं.तो इससे अगर हम ऊपर उठते हैं और भगवान के चरणों की शरण ग्रहण करते हैं तो हमारी बुद्धि विमल होती है और तब हमारे अंदर स्वयं ही ज्ञान का प्रादुर्भाव होता है.ज्ञान उत्पन्न होता है जिससे हम ये देख पाते हैं कि सच में मै कर्त्ता नही हूँ.ये तो प्रकृति है जी कार्य कर रही है और मै इसके लहरों में कभी ऊपर आता हूँ तो कभी नीचे जाता हूँ.

यदि ये देखने की शक्ति हमारे अंदर आ जाए तो हम पूर्ण ज्ञानी हो सकते हैं.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और अब बारी है आपके sms की.
SMS: राँची से दर्शन कहते हैं:
If an egg is broken by outside force life ends.If broken by inside force life begins.Great things always begins through inside.trust yourself.
Reply: यानि जब अंडे को बाहर से तोडा जाता है तो जिंदगी खत्म हो जाती है लेकिन जब अंडा खुद ही अंदर से टूटता है तो जिंदगी शुरू होती है और इसीलिए बड़ी-बड़ी चीजें तभी होती हैं जब आप अंदर से उसकी शुरुआत करे.इसलिए खुद पर भरोसा रखिये.
जी हाँ दर्शन जी आपने बिल्कुल सही कहा कि खुद पर भरोसा रखना चाहिए.लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है कि आप भगवान के शरणागत हो क्योंकि जब आप भगवान की शरण में रहेंगे तो आपको न तो अच्छे की आकांक्षा रहेगी और न तो आपको किसी बुरे चीज का डर रहेगा.क्योंकि कहते हैं न:
अकुतो भयं
यानि जब हम भगवान की शरण में आ जाते हैं तो फिर डर किस बात का.तब तो भगवान ही हमारा सारा कार्यभार सँभालते हैं.

SMS :धर्मशाला से अजय पूछते हैं कि नरक के द्वार का नाम बताईये?
Reply : अजय जी शास्त्र में एक श्लोक है :

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌॥(भगवद्गीता,16.21)


अर्थात् 
नरक के तीन द्वार हैं:काम,क्रोध और लोभ.

यानि अंतहीन कामनाएँ,अनेकानेक कामनाएँ और जब कामनाएँ पूरी नही होती तो आपको क्रोध आ जाता है.जब आपकी कामनाएँ पूरी होने लगती हैं तो और,और,और प्राप्त हो,इसका लोभ आ जाता है और आप कभी भी भगवान की तरफ मुड नही पाते.सदा-सर्वदा इन इन्द्रियों के मायाजाल में पीस जाते हैं.इन इन्द्रियों की demands को पूरी करने में रह जाते हैं.भगवान की इस माया के चक्कर में रह जाते हैं.लेकिन भगवान तक नही पहुँच पाते.जो कि इस माया के अध्यक्ष हैं और यही जीवन का सबसे बड़ा loss हो जाता है.

ये याद रखिये.
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