Saturday, July 24, 2010

Spiritual Program Morning Meow On 25th July'10 By Premdhara Parvati Rathor(104.8 FM)


104.8 FM पर मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप.अच्छा एक बात बताईये जब आप सड़क पर चलते हैं.अपनी गली-मुहल्लों की सडकों पर तो आप कहाँ देखते हैं.सामने या नीचे?कभी सामने तो कभी नीचे देखते हैं.क्यों?क्योंकि सामने से कहीं कोई गाड़ी न आ जाए और नीचे इसलिए क्योंकि सड़कों पर ढ़ेरों गन्दगी होती है.लोग कुत्ते पालते हैं और वो कुत्ते यहाँ-वहाँ मल त्याग देते हैं.उससे बचना है या फिर सड़क पर आपको ढ़ेरों थूक गिरा हुआ मिल जाएगा.लोग यहाँ-वहाँ थूकते रहते हैं.गले की खंखार वगैरह सब नीचे सडकों पर पडी रहती हैं और आप बच-बचकर निकलते हैं कि कही आपका पैर उसपर पर न जाए.

और अगर गलती से आपका पैर ऐसी गन्दगी में पर जाता है तो लगता है कि ऐसी चप्पल को घर में घुसने से पहले कहीं दो लें.

तो भाई कहने का मतलब ये कि जिसतरह आप रास्ते की गन्दगी से बच-बचके निकलते हो,उसीतरह समाज में फ़ैली हुई गन्दगी से बचने की कोशिश क्यों नही करते.कोई गंदा दृश्य,कोई अश्लील दृश्य आपको दिखता है तो बजाये मुँह फेरने के लोग दीदे फाड़कर उसे देखने लगते हैं.समस्या ये हैं कि हम तन को तो गंदा होने से बचाने का पूरा प्रयास करते हैं पर मन को गन्दगी के ढेर में हम स्वयं धकेल देते हैं.

याद रखिये गंदा मन जन्म देता है गंदी इच्छाओं को और यही गंदी इच्छाएं आपके कर्म को खराब कर देती है.खराब कर्म आपको नर्क में धकेल देते हैं.तो भाई तन को धोने के साथ-साथ मन को भी धोने की व्यवस्था कीजिये.हरिनाम को अपनाईये.प्रभु के नाम का रटन कीजिये इससे मन धुल जाएगा और आपका जीवन सफल हो जाएगा.
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आईये कार्यक्रम में पहला श्लोक लेते हैं.बड़ा-ही सुन्दर श्लोक है.ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
"हे भगवन ! इच्छाओं के अनंत आदेशों की कोई सीमा नही है.हालाकि मैंने इनकी इतनी सेवा कि पर फिर भी इन्हें मुझ पर दया नही आयी.इनकी सेवा करते हुए न तो मुझे शर्म आयी न मुझमे इन्हें छोडने की इच्छा ही उत्पन्न हुई.पर हे यदुपति ! हे प्रभु !अब मुझे अक्ल आ गयी है.अब मै इन्हें त्याग रहा हूँ.दिव्य बुद्धि के कारण अब मै अपनी इच्छाओं की नाजायज मांगों को पूरा करने से इनकार करता हूँ और अब मैंने आपके अभय चरणारविन्दों की शरण ली है.कृपया आप मुझे अपनी सेवा में लगाए और मेरी रक्षा करे."

तो देखिये सारी बात शुरू होती है इस बात को पहचानने से कि हमारी इच्छाएं हमें भटका देती हैं.तो यहाँ जो भक्त हैं,जो भक्ति की राह पर अग्रसर होना चाहते हैं और जिन्होंने यह बात समझ ली कि इच्छाओं को पूरा करते-करते मेरी उम्र बीत गयी.मगर ये इच्छाएं इन्हें मुझ पर दया नही आयी.ये जो मेरी इन्द्रियां हैं जो मुझको बार-बार आदेश देती हैं कि चल मुझे आज ये फिल्म दिखा.आँख आदेश देती है चल वहाँ पर मेला लगा है.मेला घूमने चले.सर्कस लगा है.सर्कस घूमने चले.आँख आदेश देती है और हम आँख के उस आदेश को पूरा करते हैं.उस इच्छा के आदेश को पूरा करते हैं.इच्छा हुई ,आदेश हुआ कि जाओ इच्छा पूरी करू और आप भागने लगते हैं.हम भागने लगते हैं.

देखिये अनेकानेक इच्छाएं दिल में उठती है और सब इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं.ऐसा नही कि किसी एक इच्छा को ,दूसरी इच्छा को हम छोड़ देते हैं.हम सोचते हैं कि ठीक है इसे थोड़ी देर में करेंगे पूरी लेकिन प्रयास अवश्य होगा.लोग यहाँ तक कहते है कि भाई कोशिश नही करोगे तो कैसे हासिल होगी कोई चीज.

क्या करोगे कुछ भी चीज हासिल करके.आखिर इस मर्त्य संसार में,मृत्युलोक में कौन-सी चीज है जो स्थायी है.जिसे आप हासिल कर लोगे और वो हमेशा रहेगी.अगर आप पैसा जोड़-जोड़ करके लोन पर,कर्जे पर एक गाड़ी भी खरीद लेते हो तो आप ये बताओ कि काया गाड़ी हमेशा रहती है आपके साथ.नही रहती है.कभी accident में चकनाचूर हो जाती है या फिर depreciate होते-होते,साल-दर-साल  गुजरे-गुजरते उसकी कीमत खत्म हो जाती है.कुछ तो रहता नही है.

लेकिन तो भी इच्छाएं इतनी अनंत हैं कि उनके अनंत आदेश हैं.उनकी कोई सीमा नही है.तो भक्त राज कहते हैं कि मैंने इनकी इतनी सेवा कि मगर इन्हें फिर भी मुझ पर दया नही आयी.कभी-कभी भी इच्छाओं को ऐसा नही लगा कि अरे!ये आदमी बूढा हो गया.इसका शरीर जवाब दे रहा है.तो इसे थोडा हम rest करने देते हैं.आराम करने देते हैं.हम जो इच्छाएं हैं,हम इसके ह्रदय में इतना उमडेंगे नही,घुमरेंगे नही.अब ये आराम करेगा.हमें पूरा करने के लिए इसे कितना यत्न करना पडता है और जब ये हमें अपनी कमजोर शरीर की वजह से पूरा नही कर पाता है तो इसे कितना दुःख हो जाता है.

तो इच्छाओं का दिल नही पिघला हमें लाचार देख करके .इच्छाएं फिर भी उमडती रही और हम घिसकते-घिसकते भी उन इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करते रहे.है न.पूरा अपना दम-ख़म लगा दिया कि नहीं भाई इच्छा है तो पूरी होगी.नही पूरी हुई.नही पूरा किया तो पुरुषार्थ.किसे कहते हैं पुरुषार्थ.यही है कि हम अपनी इच्छाओं को पूरा करे.हम यही सोचते हैं.

तो यहाँ बड़ी सुन्दर बात कही गयी है कि
इच्छाओं की सेवा करते हुए न तो मुझे शर्म आयी और न ही उन्हें छोडने की इच्छा उत्पन्न हुई.

आप और हम.हम सब अपनी इच्छाओं के मारे हुए हैं.हमें किसी और ने नही मारा.हम जो परतंत्र हुए  हैं यहाँ आकर के.यहाँ हमारी Independence खो गयी है.हम गुलाम हो गए हैं.तो हमें किसी ने गुलामी दी नही है.हमारी अपनी इच्छाओं की वजह से हम गुलाम है.आपकी इच्छाएं आपको यहाँ-वहाँ दौडाती है और आप कहते हैं कि आप स्वतंत्र हैं.

अरे नही हम तो गोदास है.अपनी इन्द्रियों के दास हैं.

हमारी इन्द्रियां इच्छा करती हैं और हम कहते हैं कि हाँ पूरी होगी.जरूर होगी.जो आज्ञा.है कि नही.
जानते हैं कि डायबिटीज है .डॉक्टर बोल रहा है कि ice cream नही खाओ.गला खराब है.डॉक्टर बोल रहा है कि ice cream नही खाओ और आप कहते हैं कि नही भाई!खायेंगे ice cream.क्यों?क्योंकि इच्छा उत्पन्न हुई है और एक ही तो जीवन है अगर इसे खा-पीकर नही गुजारेंगे तो कैसे काम चलेगा?ऐसी हमारी सोच होती है.

और ये सोच मै आपको बताती हूँ कि यही सारे कष्टों का कारण है.इसी के कारण,ऐसी सोच के कारण,इन इच्छाओं के कारण हम देह धारण करते हैं.हमें शरीर धारण करना पडता है.हमें एक new body acquire करनी पडती है.

तो सोचिये ये शरीर ही तो समस्त क्लेशों की जड़ है.है कि नही.
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तो हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

"हे भगवन ! इच्छाओं के अनंत आदेशों की कोई सीमा नही है.हालाकि मैंने इनकी इतनी सेवा कि पर फिर भी इन्हें मुझ पर दया नही आयी.इनकी सेवा करते हुए न तो मुझे शर्म आयी न मुझमे इन्हें छोडने की इच्छा ही उत्पन्न हुई.पर हे यदुपति ! हे प्रभु !अब मुझे अक्ल आ गयी है.अब मै इन्हें त्याग रहा हूँ.दिव्य बुद्धि के कारण अब मै अपनी इच्छाओं की नाजायज मांगों को पूरा करने से इनकार करता हूँ और अब मैंने आपके अभय चरणारविन्दों की शरण ली है.कृपया आप मुझे अपनी सेवा में लगाए और मेरी रक्षा करे."


हम इतनी अच्छी और बुरी इच्छाएं हमारे ह्रदय में उठती है.अगर हम उनके झंझावात में फंस जाएँ तो सोचिये क्या हालत हो जाती है आत्मा की.आत्मा जिसका एकमात्र काम है.एकमात्र कर्त्तव्य है भगवान की सेवा में लगना.भगवान से प्यार करना.उनसे जुडना.आत्मा अपने इस एकमात्र कर्त्तव्य को भूल जाती है इच्छाओं के झंझावात,इच्छाओं के दुष्चक्र में फँसकर.सोचिये.

तो यहाँ पर भक्त कहता है कि देखिये जब मैं इन्हें पूरा कर रहा था न,इनकी सेवा कर रहा था न तो मुझे शर्म भी नही आयी.शर्म आनी चाहिए.यानि हमें शर्म आनी चाहिए.क्यों?क्योंकि हम आत्मा हैं.आत्मा.हम अपनी इच्छाओं पर काबू लगा सकते हैं.हम आत्मा हैं.हम मनुष्य योनि में हैं.हम अपनी इच्छाओं पर काबू कर सकते हैं.जानवर अपनी इच्छाओं को काबू में नही ला सकता है.हम अपने पर संयम रख सकते हैं.नियंत्रण रख सकते हैं.जानवर नही कर सकता है.

एक कुत्ता-कुतिया अगर सड़क पर यौन-संबंध बनाते हैं और एक आदमी और औरत भरी मेट्रो में,भरी बस में,बाहर इसप्रकार की अश्लील हरकत करते हैं तो आप ये बताईये कि उनमे और कुत्तों में क्या फर्क रहा.आप ये बताईये.क्यों?क्योंकि जो animal है.जो पशु है वो अपनी इच्छाओं को control नही कर सकता है.उसमे उतनी बुद्धि नही दी भगवान ने.पर हममे Intelligence दी है ये समझने की कि क्या ठीक है और क्या गलत है.है कि नही.क्या सही है और क्या गलत है,ये हम समझ सकते हैं.

तो हमें अपनी इच्छओं की सेवा करते हुए शर्म नही आयी.ये एक भक्त कबूल कर रहा है.और न ही उन्हें छोडने की इच्छा उत्पन्न हुई.हमें पता है कि शराब पीने से हमारा जो लीवर है वो बैठ जाएगा.हमारा system बैठ जाएगा.लेकिन तो भी लोग पीते हैं.पीते हैं.पीते है.कभी भी इच्छा उत्पन्न नही होती कि छोड़ दे.लेकिन भक्त ये भी कहता है कि हे प्रभु अब मुझे अक्ल आ गयी है.कैसे अक्ल आ गयी है?क्योंकि भगवान कहते हैं:

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥


कि जो लोग प्रेम से सतत् में भजन करते हैं,कीर्त्तन करते हैं,मेरा नाम लेते हैं मै उन्हें ऐसी बुद्धि प्रदान करता हूँ कि वो मेरे पास आ सकते हैं.भगवान परम शुद्ध हैं और जब तक हम शुद्ध नही होंगे भगवान तक पहुँच नही सकते.भगवान को समझ नही सकते.तो ये अक्ल भगवान देते हैं.अक्ल आ गयी है अब मै इन्हें त्याग रहा हूँ.

आपने इच्छा व्यक्त की.कही से एक छोटी-सी इच्छा उत्पन्न हुई कि हे प्रभु!मै कब आपकी शरण में आऊंगा?कैसे होगा?और भगवान तुरंत कार्यवाही करते हैं कि हाँ ये जीव छूटना चाहता है अपनी इच्छाओं के दुष्चक्र से.भगवान हाथ बढ़ा देते हैं.भगवान हाथ बढ़ा देते हैं औए आपको उन हाथों को थामना है.बस इतना ही तो करना है.

तो भगवान कहते हैं कि जो लोग मेरा भजन करते है प्यार से मैं उन्हें ऐसी बुद्धि देता हूँ कि वो मेरे पास आ सकते हैं और भगवान के चरण अरविन्द जो हैं वो अभय हैं.अभय प्रदान करनेवाले हैं.आपको डर नही लगता.किसीप्रकार का डर नही लगता.वरना आदमी जो है अपने आप को भगवान समझता है तो बहुत डरता रहता है.
मुझे इसपर एक कथा याद आती है कि भगवान को misunderstand लोग कैसे करते हैं.एक बार एक आदमी था और उस आदमी की समस्या ये थी कि वो बहुत यात्रा करता था.एक दिन वो पानी के जहाज में बैठ करके यात्रा कर रहा था और उसका जहाज accident हो गया.उस दुर्घटना में उसका जहाज टूट-फूट गया तो वो एक ऐसे द्वीप पर चला गया,ले जाया गया पानी द्वारा जहाँ कोई नही रहता था.वो वहाँ रोने लगा कि हे भगवान मुझे बचाओ!बचाओ!खूब रोया,खूब रोया लेकिन कोई उसे बचाने नही आया.

धीरे-धीरे उसने वहाँ एक झोपड़ी बनायी उन लकडियों से जो की जहाज की थी.जो भी उसके पास था,थोड़ा बिस्किट वगैरह वहाँ रखा और वहाँ रहने लगा.समझौता कर लिया उसने परिस्थिति से.एक दिन जब वो खाना-वाना ढूंढकर वापस आया तो देखा कि उसकी झोपड़ी में आग लगी है.धुआं उठ रहा है.

तो उसने भगवान को खूब कोसा कि तुमने ये क्या कर दिया.तुम्हे बिल्कुल दया नही आयी और कहते-कहते रोते-रोते वो सो गया.अगले दिन उसने देखा कि एक जहाज वहाँ आ गया और वहाँ से एक यात्री उतरा.captain उतरा और उसने कहा कि आओ मै तुम्हे बचाने आया हूँ.तो उस आदमी ने कहा कि मगर आपको कैसे पता चला कि मै यहाँ हूँ.तो captain ने कहा कि अरे वो जो धुआं था न.वो आसमान तक पहुँच रहा था.उसे देखकर लगा कि कोई हमें सहायता के लिए पुकार रहा है.

तो देखिये भगवान हर तरह से आपकी मदद करते हैं.परिस्थितियां अगर विपरीत हो तो ये मत सोचियेगा कि भगवान आपकी मदद नही करते.हमेशा वो आपकी मदद करते हैं.
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हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.भगवान से पहले एक भक्त ने अरदाज की कि मेरी इच्छाओं ने मुझे बहुत सताया है.और मुझे अक्ल आ गयी है.अब मै इन्हें त्याग रहा हूँ.अब आपने दिव्य बुद्धि दे दी है तो अब मै अपनी इच्छाओं को पूरा करने से इनकार करता हूँ.जो नाजायज इच्छाएं हैं.सिर्फ आपकी सेवा आप मुझे लगाओ और मेरी रक्षा करो.ये कहा था एक भक्त ने और भगवान ने पुष्टि की है इसी बात की कि हाँ

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥


भगवान कहते हैं कि जो लोग प्रेम से सतत मेरा भजन करते हैं उन्हें मै ऐसी बुद्धि प्रदान करता हूँ कि वो मेरे पास आ सकते हैं.ऐसी विमल बुद्धि जो दुनिया में नही लगेगी.जो दुनिया की तरफ नही भागेगी.जब दुनिया जा रही होगी एक किसी बड़े शो को देखने.बहुत बड़े-बड़े games हो रहे होंगे.लोग जा रहे होंगे लाइन लगा रहे होंगे.जाने क्या-क्या हो रहा होगा.फूटबाल मैच हो रहा होगा.लोग टेलीविजन की आगे रात-रात भर जाग रहे होंगे.तो एक भक्त बड़े आराम से इन सब उत्पातों से दूर भगवान की सेवा में संलग्न होगा.

क्योंकि उसे पता है कि ये matches आयेंगे जायेंगे.कई विवाद को जन देंगे.कोई आज हीरो बनेगा.कल वो जीरो हो जाएगा.लेकिन अपने भगवान तो सदा हीरो थे,हैं और रहेंगे.हम तो शाश्वत हीरो को प्रणाम करते हैं.temporary heroes को कोई सलाम नही करते.क्यों?

क्योंकि ये स्वतंत्र कहाँ हैं.ये तो आज हैं और कल नही रहेंगे.तो हमें तो  permanence चाहिए और वो स्थायित्व हमें मिलता  है भगवान के श्री चरणों में.तो भगवान ने कहा कि

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥


बड़ी सुन्दर बात कि मै भक्तों के ह्रदय में रह करके उनके अज्ञान के अंधकार को ज्ञान का दीपक जला करके नष्ट कर देता हूँ.इसतरह उन पर विशेष कृपा करता हूँ.यानि भक्तों पर विशेष कृपा होते है अभक्तों पर नही.अभक्तों पर normal कृपा होती है.खाना मिल गया,पानी मिल गया,सोने की जगह मिल गयी,माँ-बाप मिल गए,नौकरी मिल गयी.ये normal कृपा है.जो special mercy है भगवान की.जो विशेष कृपा है वो विशेष कृपा ये है कि भगवान जीवात्मा को अपनी सेवा में लगाएं.अगर ये हो गया तो समझ लोजिये कि आपकी जिंदगी वाकई सफल हो गयी.अगर ये नही हुआ और सब कुछ हो गया.आप बड़े-बड़े engineer गए.ऐसी-ऐसी संस्थाओं में आपका admission हो गया जहाँ लोग तरसते हैं तो भी आप जीरो ही रह गए.हीरो नही बन सके.

जबकि भक्त.भक्त जो है वो बहुत ऊपर उठ जाता है.भगवान उसे ज्ञान दे देते हैं.एक बड़ा सुन्दर श्लोक भी है.भगवान कहते हैं कि जो व्यक्ति मेरी कथाओं को सुनता है.मेरा भजन करता है.उसके ह्रदय में बैठ करके मै सारी गंदगी,material desires की जो गंदगी है.material enjoyment.भोग करने की जो हमारे अंदर लिप्सा है,लालसा है,जो कामना है,उसको मै दो देता हूँ.मै clean कर देता हूँ.

तो ये भगवान करते हैं.आप क्या सोचते हैं आप करते हैं.अगर आप सोचते हैं कि मै जो है लड़ना नही चाहता. मगर मै लड़ता हूँ.कल से लड़ाई छोड़ दूंगा.तो क्या आप छोड़ पायेंगे.नही.पाशविक वृत्तियाँ अपना असर देखायेंगी ही.जो हमने कर्म किये उसके results हमको भोगने पड़ेंगे ही.संस्कार सामने आयेंगे ही.

लेकिन यदि भगवान की शरण ली तो भगवान हमें इन सब से ऊपर उठा लेंगे.हमें प्रेम करते हैं भगवान और इसीलिए जो भगवान की शरण में आ जाता है,भगवान उसे क्षमा कर देते हैं.उसे पापों से मुक्त कर देते हैं.उसे पाना प्रेम प्रदान करते हैं.ज्ञान का दीपक जल जाता है.ह्रदय में वो टिमटिमाने लगता है.ज्ञान की ऐसे लौ भडकती है कि वो कभी भी ठंढी नही पड़ती.ऐसे लौ ज्ञान की हमारे ह्रदय में जलने लगती है.प्रज्ज्वलित हो उठती  है.कैसे ?भगवान की अनुकंपा से.भगवान कह रहे हैं न
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।
अनुकंपा करता हूँ मै.special mercy on devotees.भक्तों पर विशेष कृपा.होती है.आप देखिये.जो लोग भगवान का सतत नाम लेते हैं आप देखेंगे कि उनके ह्रदय में बदलाव आता है.उनका मन फिर ये दुनियादारी में नही लगता.दुनिया,दुनियादारी उन्हें समझ नही आती फिर.दुनिया के किस्से.दुनिया भर की बातें.दुनिया भर के news.दुनिया भर के आकर्षण.ये चैनल,वो चैनल.ये सीरियल,वो सीरियल.

अरे नही,irritate हो जाते हैं वो.ये सब हमारे सामने मत लाओ.बेकार चीजें हैं.हम नही देख सकते.हमारे प्रेम में बाधा उत्पन्न करती हैं ये चीजें.हमें शांति चाहिए क्योंकि भक्ति एकांतिक होती है कई बार.एकनिष्ठ भक्ति एकांतिक होती है.आपको अकेलापन चाहिए होता है.अकेले में आप उनसे जुडना चाहते हैं.उनसे बातें करना चाहते हैं.उनके लिए रोना चाहते हैं.उनसे चिपकना चाहते हैं.है कि नही.

तो खैर ये सारी चीजें हैं महसूस करने की.जब आप भक्ति करते है. भगवान का नाम लेते रहते हैं तो ये सारे परिवर्त्तन अपने आप उत्पन्न होते हैं.अपने आप नही भगवान पैदा करते हैं.भगवान की वजह से,उनकी special mercy की वजह से होता है.
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कार्यक्रम में आप सबका बहुत-बहुत स्वागत है.तो आपने सुना कितना प्यारा भजन था -
ऊपर गगन विशाल.

शुरू-शुरू में जब इंसान भक्ति की तरफ मुडता है तो शुरुआत में उसे आश्चर्य होता है ककी ये आसमान है.आसमान में इतने ग्रह हैं.इतने तारें हैं और वैज्ञानिक बताते हैं कि ये तारे जो हैं वो बहुत बड़े-बड़े हैं.सूर्य के आकार से भी बड़े हैं.तो ये सब लटके हुए कैसे हैं.हमारे सिर पर गिर कैसे नही जाते.वैसे ही जैसे बड़े-बड़े तरबूज वगैरह बेल पर लटकते हैं और छोटे-छोटे फल पेड़ पर लटकते हैं.

इस सबके पीछे दिमाग किसका चलता है.कौन है जो  इतना सोचता है हम सब की भलाई के लिए.कौन है जो रेगिस्तान में इतना रस पैदा कर देता है.तरबूज में मीठा-मीठा रस होता है.पानी-ही-पानी,पानी-ही-पानी.कौन है जो इतना सोचता है.कोई सोचता है तब तो ये होता है.automatically,by chance कैसे हो सकता है.by chance नही है ये.तो वो जो भी है उसे ढूँढना ही हमारे जीवन की मंजिल है.
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कार्यक्रम में आपका बहुत-बहुत स्वागत है.अब समय है आपके messages को शामिल करने का.तो आईये पहला  message शामिल करते हैं

































SMS :वणी को जो साहिबाबाद से लिखते हैं कि Don't be a parrot be a eagle.A parrot speaks but can't fly high.But an eagle is silent has a will power to touch the sky.

























अर्थात
तोता मत बनिए एक चील बनिए.जो तोता है वो बोल सकता है मगर ऊँचा उड़ नही सकता.पर चील जो है वो silent रहती है और उसके अंदर इतनी will power होती है.इतनी शक्ति होती है.मन की शक्ति होती है कि वो आसमान को छू सकती है.









































Reply By माँ प्रेमधारा:वणी जी आपने बहुत अच्छी बात कही.लेकिन आसमान को छूना क्या?मै तो आपको आसमान के पार ले जाना चाहती हूँ.चाँद के पार.आसमान के पार.आध्यात्मिक लोक में ले जाना चाहती हूँ.आध्यत्मिक लोक तक न तो parrot जा सकता है न eagle.दोनों में से कोई नही जा सकता है.वहाँ सिर्फ और सिर्फ शुद्ध भक्त जाते हैं.जो भगवान की भक्ति में रत रहते हैं,भगवान उन्हें अपने साथ ले जाते हैं.

तो हमारी जो निगाह है वो सिर्फ आसमान पर नही होनी चाहिए.आसमान के पार जो लोक है आध्यात्मिक लोक .वैकुंठ लोक.जिनके बारे में आमतौर पर लोगों को कोई जानकारी नही.मगर अगर आपको पता नही तो इसका मतलब ये नही कि वो है नही.वो है.अस्तित्व है उनका.हर मजहब में उनका जिक्र है.तो वहाँ उन लोकों में जाने की  तैयारी करनी चाहिए और वो मनुष्य योनि में ही हो सकता है.अगर हम पशु-पक्षी बन जाए तब ये संभव नही.













































SMS :शोभा रोहिणी से पूछती है कि अपने बच्चे का career बनाना क्या इच्छा है?क्या ये हमारा कर्म नही?
















































Reply By माँ प्रेमधारा:शोभा जी अपने बच्चे का career बनाना आपका फर्ज है.duty है आपकी.कर्त्तव्य है.लेकिन वो आपका मुख्य कर्त्तव्य नही.वो आपका गौण कर्त्तव्य है.secondary.बाद में आता है.मुख्य कर्त्तव्य है स्वयं को पहचान कर के भगवान की भक्ति करना.नही तो ये स्वर्णिम मौक़ा निकल न जाए.अगर आप बच्चे का career बनाते रह गए.उसे डॉक्टर,इंजिनियर बना भी दिया तो इस दुनिया में करोडो डॉक्टर,इंजिनियर हैं.आपने उस भीड़ में एक और व्यक्ति जोड़ दिया न.ठीक है.अच्छा कमाएगा.फर्ज है.करिये.no problem.


लेकिन सबसे बड़ी बात है कि हमें भक्ति करनी है.बच्चा कुछ भी बने मगर वो भक्ति भी करे.भगवान से भी जुड़े.तब हम अपने कर्त्तव्य को भलीभांति अंजाम देते हैं.
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SMS :
दिल्ली से जाने कौन पूछते हैं कि



































भगवान कृष्ण इतने महान हैं कि हम उन्हें क्या भोग लगा सकते हैं?भला एक अमीर आदमी को गरीब आदमी का सूखा साग भला कहाँ अच्छा लगता है?












































Reply By माँ प्रेमधारा:हूँ.सही बात है लेकिन भगवान जो हैं वो आपके भगवान ही नही हैं, आपके पिता भी हैं.भगवान कहते हैं कि

पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।
आपसे संबंध है उनका.अगर माँ-बाप अगर एक गरीब बच्चे के घर में जायेंगे.बच्चा अलग रहता है.अपने आप कमाता है.गरीब है और माँ-बाप को बुलाता है.माँ-बाप उसके पास जाते हैं.माँ-बाप को वो सूखी रोटियाँ और दाल ही पेश कर पाता है.

तो आप क्या समझते हैं कि माँ-बाप कहेंगे कि हम तो छप्पन प्रकार के भोजन खाते हैं.तुमने ये क्या दे दिया हमें.ऐसा कहेंगे क्या या प्यार से खायेंगे कि मेरे बेटे की कमाई से है.मेरे बेटे ने ईमानदारी से इसे कमाया और हमें खिला रहा है.हमारे लिए सोचता है.कितना प्यारा बच्चा है हमारा.

सोचिये एक बच्चा जिसे आप पैसे देते हो दस रुपये.वो दस रुपये से पाँच रुपये की चॉकलेट लाता है और पाँच रुपये से आपके लिए कोई सामान ले आता है.एक पेन ले आता है.आपको कहता है कि देखो पापा आप ऑफिस में इतना काम करते हैं.आपका पेन बार-बार खत्म हो जाता है.मैंने पाँच रुपये का ये पेन लिया.है पेन पाँच रुपये का.पाँच हजार,करोड़ रुपये का नही है लेकिन माँ-बाप के खुशी की कोई सीमा ही नही रहेगी कि बच्चा कितना आज्ञाकारी और प्यारा है.हमारे बारे में सोचने लगा है.समझ रहे हैं.

तो भगवान अमीर-गरीब नही देखते.भगवान सिर्फ इंसान की नियत देखते हैं.याद रखना.













































SMS :आगे एक और प्रश्न है शरद जी का दिल्ली से.पूछते हैं कि 

इच्छा और जरूरत में क्या फर्क है?हम कैसे फर्क करे?इसी में तो सारी मानव जाति फंसी है.













































Reply By माँ प्रेमधारा:सही बात है.इच्छाएं अनंत होती हैं और जरूरत थोड़ी होती है इंसान की.थोड़ी.कपडे की जरूरत है.कपड़ा cotton का भी हो सकता है.कपडा silk  का भी हो सकता है.कपड़ा Cotton का ऐसा भी हो सकता है कि ढाई सौ रुपये की एक साड़ी है.ढाई सौ रुपये की एक साड़ी में तन ढक सकता है.जरूरी नही है कि बीस हजार रुपये की साड़ी आप पहने.


तो बीस हजार की साड़ी खरीदना ये एक इच्छा है जिसको आपने पूरा किया लेकिन एक साड़ी आपने खरीदी कि तन ही ढकना है सिर्फ मुझे.कोई ज्यादा वो हाई-फाई बन करके नही चलना है.हाँ तो वो जरूरत है.है न.तो ये है इच्छा और जरूरत का फाटक.पेट भरना है.दाल-रोटी से आप पेट भर सकते हो.जरूरी नही है कि आप जा करके रेस्टोरेंट में यहाँ-वहाँ का गंदा खाना खाओ.पता नही कैसे बनता.किसप्रकार के हाथ से बनता है.कैसे तेल से बनता है.किचेन कैसा है.लेकिन आप जाते हो,खाते हो.वो इच्छा है.इच्छा पूरी करना,जरूरत नही है.याद रखना.
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SMS :अर्जुन शेख सराय से कहते हैं कि




मै प्रभु की सेवा में रहूँ.क्या ये भी एक इच्छा है?

























































































Reply By माँ प्रेमधारा:यही तो एक विमल,एक pure इच्छा है.अर्जुन जी प्रभु की सेवा में ही रहो.यही इच्छा करनी चाहिए.ये इच्छा थोड़ी  न है.इच्छा कहते हैं अपने self gratification को.जो इच्छा अपने sense को gratify करने के लिए हो.उसके gratification के लिए हो.इन्द्रतृप्ति के लिए हो वो इच्छा पाप हो जाती है क्योंकि वो इच्छा हमें भगवान से बहुत दूर ले जाती है.ऐसी इच्छा से बचना चाहिए.


लेकिन भगवान की सेवा में रहने की इच्छा ये तो बड़ी प्यारी इच्छा है भाई.बहुत-ही प्यारी इच्छा है.आप जरूर इच्छा कीजिये ऐसी.












































SMS :सीमा दिल्ली से,मीरा पांडवनगर से लिखती हैं कि 




आपको सुनते हुए एक अरसा हो गया.अब आपको हम टी.वी.पर देखना चाहते हैं.इतने लोग टी.वी. पर आते हैं पर आप नही आती.आप भी किसी धार्मिक चैनल पर आईये न ताकि देश-विदेश के लोगों को प्रभु का सच्चा सन्देश मिल सके.









































Reply By माँ प्रेमधारा:देखिये ऐसा है कि सब कुछ तो संभव नही.टी.वी. पर ऐसा नही है कि हमने जाने का प्रयास नही किया.किया लेकिन जितने भी धार्मिक चैनल हैं वहाँ पर जाने के लिए,वहाँ पर बीस मिनट के कार्यक्रम के लिए भी आपको महीने के चार-चार लाख,पाँच-पाँच लाख रुपये देने पड़ते हैं.तीन लाख,चार लाख.तो ये तो मेरे लिए संभव नही है.इतने पैसे मेरे पास नही है कि मै जो है खर्च कर सकूं.

अगर कभी कोई व्यक्ति जो कि भगवान के संदेश को वाकई दूर-दूर तक पहुंचाना चाहता है.अगर ऐसा कोई व्यक्ति हमें मिलता है जो हमें sponsor कर सके तो हम क्यों नही आयेंगे.हम जरूर आयेंगे.लेकिन होता क्या है कि हम हर चीज sponsor कर सकते हैं.क्रिकेट मैच,फूटबाल मैच,कहीं कोई अश्लील नाच हो रहा हो,मनोरंजन की कितनी चीजें हम sponsor करते हैं.भीड़ लगी रहती है.

लेकिन जब आप ऐसी बातों के लिए किसी को ढूँढने जाओ कि भाई आप इस कार्यक्रम को sponsor कर दीजिए थोड़ा ही.किसी के लिए.किसी बहुत बड़ी company के लिए ये बहुत बड़ा amount नही है लेकिन तो भी वो बहुत सोचेंगे.

तो खैर देखिये भगवान की इच्छा.भगवान क्या चाहते हैं.ईश्वर चाहेंगे तो जरूर मै आपको दिखाई भी दूंगी.









































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SMS :अगला message है संगीता का अलीगढ़ से.कहती हैं कि आपने बहुत अच्छी आदत डाल दी है.अब मै भगवान से कुछ मांगती नही.Thank You.












































Reply By माँ प्रेमधारा:Thank you.Very much कि आप भगवान से कुछ नही मांगती.कुछ तो आराम मिला भगवान को.हमने अपने मांगों से भगवान को परेशान कर रखा है.मांग-मांग के.इतने व्रत,उपासना करते हैं.कभी एक टांग पर खड़े हो जाते हैं.कभी ठंढे पानी में घुस जाते हैं.कभी धूप में तपने लगते हैं.जाने क्या-क्या करने लगते हैं ताकि अपनी मांगों को पूरा कर सके.पूरा करवा सके.भगवान को जबरदस्ती,जबरदस्ती अपना नौकर बना सके कि हमारी मांग को पूरा करो नही तो हम तुम्हे भगवान मानने से इनकार कर देंगे.हाँ धमकियाँ देते हैं हम लोग.




शुक्रिया.ऐसे धमकियाँ देनेवाले में से कम-से-कम एक नाम तो कम हुआ.













































SMS :राकेश रोहिणी से कहते हैं कि Chanting is the matter of spiritual life and death.So you can not say that today i am inattentive but tomorrow i will be attentive.Be attentive today.

यानि कि भगवान का नाम लेना,भगवान के नाम का जप जो है वो आध्यात्मिक जिंदगी और मौत का सवाल है.तो आप ये नही कह सकते कि आज मेरा ध्यान नही लग रहा है कल जरूर ध्यान लगेगा.आज ही ध्यान से भगवान का नाम लीजिए.













































Reply By माँ प्रेमधारा:बहुत सुन्दर बात है.बहुत प्यारी बात है.














































SMS :ममता दिल्ली से कहती हैं कि क्या week days के कार्यक्रम में भजन कम और आपका प्रवचन ज्यादा नही हो सकता?













































Reply By माँ प्रेमधारा:ममता जी कार्यक्रम आ ही रहा है अभी इसी के लिए शुक्रिया अदा कीजिये. इसी के लिए शुक्रिया कहिये क्योंकि वक्त का कुछ नही पता.हो सकता है कि ये कार्यक्रम भी आपको न सुनाई दे आनेवाले समय में.हो सकता है कि आज का जो मेरा शो हो वो last हो.अंतिम शो हो.क्या पता.वक्त का कोई भरोसा नही है.जो मिल रहा है उसमे भगवान का शुक्रिया कीजिये.ज्यादा की ख्वाहिश करना कई बार विपरीत पड़ जाता है.उल्टा हो जाता है.




आज के कलयुग में अगर ऐसा कार्यक्रम भी हमारे चैनल वाले allow कर रहे हैं.वो आपको सुना रहे हैं तो उनका शुक्रिया अदा कीजिये.जरूरी नही है कि ये कार्यक्रम इसी format में आपको कल को सुनायी दे.हो सकता है कि format बहुत बदल जाए.हो सकता है कि जो कार्यक्रम दे रहा है वही परिवर्त्तित हो जाए.कोई और रेडियो जॉकी आपको कार्यक्रम सुनाये.कुछ भी हो सकता है.हो सकता है कि आज के कार्यक्रम के बाद मै आपसे कभी न मिलूँ.कुछ भी तो हो सकता है.

तो हमें अपनी ख्वाहिशों को बढ़ाना नही चाहिए.बस भगवान से जुडने की कला सीखनी चाहिए.है कि नही.













































SMS :अगला message है अनु का दिल्ली से.कहती हैं कि 

मै चौदह साल की हूँ.मै भगवान को अपना friend समझती हूँ.क्या ये ठीक है?












































Reply By माँ प्रेमधारा:हाँ,हाँ .आप साख्य भाव में हैं भगवान से.साख्य भाव यानि कि भगवान को अपना friend मानना.अरे भगवान ही खुद कहते हैं 




सुहृदं सर्वभूतानां

मै सबका Best Friend हूँ.शुभचिंतक हूँ.सबसे अच्छा दोस्त हूँ.तो भगवान से आप जो रिश्ता गांठिये वो हर रिश्ते में आपके सामने पेश आयेंगे.दोस्त मानोगे दोस्त बन जायेंगे.वैरी मानोगी,दुश्मन मानोगी,दुश्मन बन जायेंगे.भगवान के अंदर कोई खोट नही आएगा.भगवान ये नही सोचेंगे कि ये मेरा दुश्मन है.आपने जिस रूप में उन्हें देखने की इच्छा जाहिर की,भगवान उसी रूप में आपके सामने आ जाते है.
बहुत sweet हैं वो.

अनु जी आप चौदह साल की हैं और कार्यक्रम सुनाती हैं.बहुत-बहुत धन्यवाद.अपने friends को भी बोलो न कि वो भी ये कार्यक्रम सुने.
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SMS :अगला प्रश्न है U.P.से जाने कौन है.वो पूछते हैं कि शास्त्र कहते हैं कि जड़ में पानी डालो वो पत्ते-पत्ते में फ़ैल जाएगा.यानि भगवान की भक्ति करो तो सबकी भक्ति हो जायेगी.इन भगवान का नाम तो बतायिये.





























Reply By माँ प्रेमधारा:ऐसा है कि मै तो जो है हमारे सनातन धर्म के शास्त्रों के बारे में जानती हूँ.सनातन धर्म के शास्त्र कहते हैं कि जो भगवान हैं उनका नाम है श्रीकृष्ण.
"ईश्वरः परमः कृष्णः सचिदानंदविग्रहः |
अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वकारणकारणं ||"
भगवान कृष्ण भी भगवद्गीता में यही बात कहते हैं
सर्वलोक महेश्वरं
मै सभी लोकों का महेश्वर हूँ.महा ईश्वर हूँ.

न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥

भगवान कहते हैं भगवद्गीता में कि मुझे कोई नही जानता.न सुरगण,न देवी-देवता,न महर्षि क्योंकि मैंने इन्हें बनाया है.ये मुझे क्या जानेंगे.हाँ.मैंने create किया है.मै creator हूँ.
मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
भगवान कहते हैं.कृष्ण कहते हैं कि सब कुछ मुझी से उपजा है.
तो कृष्ण का मतलब होता है सर्वाकर्षक.जो सबसे ज्यादा आकर्षक है और भगवान सबसे ज्यादा आकर्षक हैं ही.
और आपने अगला प्रश्न इसी से जुड़ा हुआ किया है कि इन्हें कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

तो कलयुग में इन्हें प्राप्त करने का तरीका बहुत आसान है.हमारे शास्त्र कहते हैं कि
इति षोडषकं नाम्नं कलि कल्मष नाशनं |
नातः परतरोपायः सर्व वेदेषु दृश्यते |
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे |
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे |

ये महामंत्र है जिसका अगर हम रटन करते हैं.रटते रहते हैं इस नाम को.हमेशा उसकी माला करते हैं.कम-से-कम एक दिन में इसे 1728 बार इस नाम को लेना चाहिए,पूरे महामंत्र को.सोलह माला करनी चाहिए.तो आप आसानी से भगवान का प्रेम प्राप्त कर सकते हैं.प्रेम मिल जायेगा तो भगवान के मिलने में देर ही कहाँ है.






























SMS :आरती दिल्ली से कहती हैं कि
Winning horse does not know you but it runs.It runs because rider beats and pains.If life is race.God is your rider.If you are in pain then think God wants you to win.
यानि ये कहती हैं कि जीतने वाला जो घोड़ा है उसे नही पता कि आप कौन हैं लेकिन वो भागता रहता है.भागता रहता है क्योंकि उसको उसके ऊपर जो चढा हुआ है घुरसवार वो मारता है.उसे दर्द देता है.तो वो जीत जाता है.इसी तरह ये जीवन एक रेस है.भगवान आप पर चढ़े हुए हैं और अगर आपको दर्द मिलता है तो समझिए कि भगवान चाहते हैं कि आप विजयी रहे.





























Reply By माँ प्रेमधारा:अच्छी सोच है.लेकिन भगवान कभी दर्द नही देते.भगवान आनंद हैं.उनका काम है सिर्फ आनंद देना.लेना आपको आता नही.ये आपकी problem है.
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SMS :अगला message है श्वेता का आई.एन.ए. से कहती हैं कि हमें पता है कि हम आत्मा हैं तो हम अपने शरीर का ख्याल क्यों रखे?

























Reply By माँ प्रेमधारा:बहुत सही बात.देखिये आत्मा हैं आप लेकिन जो जानवर के शरीर में ,पशु के शरीर में वो भी आत्मा है.बिल्कुल आप जैसी.मेरे जैसी.लेकिन आज उन्हें पशु का शरीर प्राप्त है.पशु के शरीर में वो भगवान की भक्ति नही कर सकते.लेकिन इंसान के शरीर में ही आप भगवान की भक्ति कर सकते हैं.अगर आप अपने शरीर का ख्याल नही रखोगे.उसे स्वस्थ नही रखोगे तो भक्ति करोगे कैसे.यहाँ-वहाँ दर्द रहेगा.यहाँ-वहाँ बेचैनी रहेगी.तकलीफ रहेगी.रोग रहेंगे तो रोग में मन लगेगा.उसके निवारण के तरफ मन भागेगा कि भक्ति की तरफ मन भागेगा.भगवान की तरफ थोड़े न भागेगा.

इसीलिये अच्छा ये है कि इस शरीर का care करो.भगवान भी कहते हैं
निर्देहम आद्यं सुलभं
जो आपको सारी-की-सारी बातें आपको पता चली हैं.वो नर देह से ही तो पता चली है.जानवरों को भी यही बात अगर सुनाओगे तो आप ये जान लीजिए कि जानवर नही समझ पाएंगे इस बात को.आप समझ पाती हैं.इस पर कार्य कर सकती है.ये प्रश्न आपके दिमाग में आया कि हम आत्मा हैं लेकिन जानवर को आप बताएंगी कि आप आत्मा है.आप आत्मा है.आप आत्मा है.तो क्या वो समझ पायेगा.नही.नही समझ पायेगा.

तो यहाँ पर बहुत बड़ी बात बतायी गयी है कि आप आत्मा हैं लेकिन तो भी आपको शरीर का ख्याल रखना है क्योंकि भगवान ने कहा है कि
जो नर देह है वो boat के समान है.एक नाव के समान है जो आपको भवसागर पार करा सकती है.

तो भाई नाव का ख्याल नही रखोगे तो बीच में ही डूब जाओगे.है कि नही.






















SMS :प्रद्दुम्न गुडगाँव से पूछते है कि हम धरती पर क्यों आये हैं?





















Reply By माँ प्रेमधारा:प्रद्धुम्न जी ये धरती,ये जगह जहाँ आप हैं ये जेल है और इस जेल में आप इसलिए आये हैं क्योंकि आपने भगवान के laws के खिलाफ,उनकी नियम के खिलाफ कार्य किया है.उनके नियम को मानाने से इनकार किया.भगवान को भगवान मानने से इनकार किया.

तो धरती पर आप rectification के लिए,सुधारगृह में आये हैं.जेल क्या होता है.वो punishment देता है.सजा देता है और कई बार उस जेल के किसी कैदी को शाबाशी भी मिलती है.तो हम  इसीप्रकार से जेल में हैं और हमें punishment मिल रहा है ताकि हम अपने आप को rectify करे.सुधार सके और जब हम बिल्कुल शुद्ध हो जाए तो वापस हम भगवद्धाम जा सके.जहाँ हमें होना चाहिए.

ये जिस समय आप समझ लोगे कि ये जगह घर बनने लायक नही है बड़े-बड़े apartments.अपने dream home खरीदने लायक नही है.ये तो जेल है.तो आपका कल्याण हो जाएगा.
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SMS :विनीत गुडगाँव से पूछते हैं कि भगवद्धाम जाने का मतलब चेतन से जड़ हो जाना है क्या?

















Reply By माँ प्रेमधारा:विनीत जी.आनंदकंद हैं भगवान.उनका धाम परम आनंदमय है.बताईये जड़ कैसे आनंद उठा सकता है.जी निर्जीव अहि वो आनंद उठा सकता है क्या?चेतन ही तो आनंद उठता है.आप अभी चेतन हो कहाँ.आपने जड़ चीजों की संगति की है तो आप अपने को जड़ ही समझते भी हो.अपने आप को शरीर समझते हो.आपने चेतन को यहाँ जड़ कर दिया है.
भगवद्धाम जाने का अर्थ है कि चरतां चेतन हो जाता है.सुचेतन हो जाता है.और भी दिव्य हो जाता है.और जब वो super चेतन,super soul की सेवा करता है.भगवान की सेवा करता है तो सोचिये वो कितने आनंद का भोग करता है.क्या जड़ आनंद का भोग कर सकता है?सोचिये.not possible.


















SMS :अगला message है गोपाल का.National security guard हैं ये.बोलते हैं कि मै army में हूँ.भगवान की भक्ति अपने busy schedule में कैसे करूँ?

















Reply By माँ प्रेमधारा:गोपाल जी आप army में हैं बहुत अच्छी बात है.हमारा पेशा कुछ भी हो सकता है.हम डॉक्टर हो सकते हैं.हम आर्मी में हो सकते हैं.हम जो है जूता गाँठ रहे हो सकते हैं.हम जो है बस में कंडक्टर हो सकते हैं.मेट्रो में एक ड्राईवर हो सकते हैं.हम कुछ भी हो सकते हैं.

लेकिन कुछ भी पेशा क्यों न हो.कहीं भी आप क्यों न रहे.Position किसी भी क्यों न हो.आप आराम से भक्ति कर सकते हैं.अपने तार भगवान से जोडने ही तो है.

और मैंने आपको बताया कि अगर आप भगवान के नाम का रटन करते हैं.कीर्त्तन करते हैं तो आप भगवान से जुड जाते हैं.तो ऐसा तो है ही नही कि जब आप आर्मी में हैं तो आपका मुँह काम न करता हो.आप कईयों से बातें करते हैं.तो अपना मन-ही-मन या मुँह खोल के भगवान का नाम लेते रहिये.उसे सुनिए.जब भी दो पल मिले भगवान के नाम में डूब  जाईये.भक्ति हो जाती है.नाम ही में भक्ति है.कलियुग में नाम ही आधार है.तो उस नाम का आश्रय लीजिए.


SMS :
मधु लक्ष्मीनगर से पूछते हैं कि आप शास्त्र की बात करती हैं.कौन सा शास्त्र पढूं?


Reply By माँ प्रेमधारा:
देखिये मै तो सनातन धर्म के शास्त्रों के बारे में ही जानती हूँ.लेकिन जो भी जिस-जिस मजहब के लोग हैं वो अपने मुख्य शास्त्रों को पढ़ ही सकते हैं.और आप भगवद्गीता पढ़िए.बहुत सुन्दर ग्रंथ है ये.इस ग्रंथ में आपको सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे.भगवान ने इतनी खूबसूरती से सब कुछ बताया है.सब कुछ.सारा कुछ.जो आपके अंदर प्रश्न है.जो जिज्ञासा है.पढ़िए बड़े प्रेम से.

लेकिन एक ही चीज है आपको भक्त बनना पड़ेगा तो ये शास्त्र आपको समझ आएगा.बिना भक्त बने,भगवान का भक्त बने बगैर आपको ये शास्त्र समझ नही आ सकता है.लेकिन पढाई अगर करनी है तो इसी की करिये.तो बात बनेगी.


SMS :
पिंकी दिल्ली कैंट से कहती हैं कि आपका ये program सुन के मेरी आठ साल की बेटी भक्ति में मुझसे आगे निकल गयी.



Reply By माँ प्रेमधारा:
Congratulations !ये तो बहुत अच्छी बात है.बच्चा अगर भक्ति में माँ-बाप से आगे निकल जाए तो बड़ी सुन्दर बात है.क्योंकि आमतौर पर लोग सोचते हैं कि भक्ति जो है बुढ़ापे का विषय है.बुड्ढे जब हो जाए तब भक्ति कीजिये.जी नही.बुढापे में आदतें पक जाती हैं.बुढ़ापे तक आपने अगर गलत कुछ किया है तो आप गलत ही करते रहोगे.आप कहोगे कि नही यही सही है क्योंकि हमें पता है कि यही सही है.हम क्यों सुने?

तो आदतें पक जाती हैं.एक जिद्दिपना आ जाता है बुढ़ापे में.अपने आप को आदमी बहुत अक्लावान समझता है.उसे लगता है कि कम उम्र के व्यक्ति से हम अक्ल क्यों ले.तो भक्ति की जो उम्र है वो बचपन से ही शुरू हो जाती है.पाँच वर्ष के अवस्था से और जिन बच्चों को भगवान ने वैष्णव के घर में जन्म दिया होता है.भक्तों के घर में जन्म दिया होता है आप गौर करना उनकी जो भक्ति है वो तो जिस समय उनका सिर थोड़ा सीधा होता है न उसी समय से वो भगवान के फोटो को निहारते रहते हैं.

तो उनकी लीला वही जाने.अच्छी बात है कि आपकी बेटी भक्ति कर रही है.


SMS :
अगला प्रश्न आया है विश्वजीत का New Delhi से.दुःख जीवन में बिना किसी efforts के आते हैं अपने आप.क्या यही हाल सुख का भी है.क्या सही बात है?



Reply By माँ प्रेमधारा:
बिल्कुल.प्रहलाद महाराज ने कहा है कि
जो इन्द्रियों के बोध के कारण,इन्द्रियों की विषय-वस्तु के कारण सुख आती हैं.इन्द्रियां अपने विषयों में रत रहती हैं तो उसे सुख लगता है और जब उस सुख में बाधा पहुँचती है किसी-न-किसी हालत से तो वो दुःख है.है न.Automatically सुख आता है और automatically दुःख आता है.दुःख आप invite नही करते हैं.आमंत्रित नही करते हैं.बीमारी आप आमंत्रित नही करते हैं.बीमारी आ जाती है.


इसीप्रकार से जो सुख है वो अपने आप आता है.तो इसके पीछे मगजमारी क्यों की जाए?बुद्धि को क्यों लगाया जाय?अगर बुद्धि को लगाना ही है तो भगवान की प्राप्ति में,उनके प्रेम की प्राप्ति में लगाओ.भगवान में मन लगे इसके लिए अपनी पूरी बुद्धि लगा दो.जी-जान से जुड जाओ.

मै आपको बस यही कहूंगी हाथ जोड़कर कि मै आपके साथ रहूँ या न रहूँ.मै अगले हफ्ते से आपके साथ रहूँ या न रहूँ.या कभी भी आपके पास हूँ न हूँ तो भी आप अपनी भक्ति के इस अभियान को बंद मत करना.अपनी भक्ति को बहुत ही प्यार से करना.बहुत ही सुन्दर तरीके से.आपको शुभकामनाएं हैं.
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