Tuesday, February 22, 2011

क्यों हैं हमारी इन्द्रियाँ इतनी बलशाली,कैसे करे इन पर नियंत्रण :Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 19th Feb, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप?कभी-कभी आपने नोट किया होगा कि आप market जाते हैं और खास बजट के साथ जाते हैं कि भई इतने की ही shopping करेंगे.पर जब आप वहाँ पहुँचते हैं तो इतने चीजों पे दिल आ जाता है कि  cash खत्म हो जाने के बाद आप credit card निकाल कर इस्तेमाल करने लग जाते हैं.और जब घर आकर सामान को देखते हैं तो बाद में लगता है कि अरे कुछ चीजें तो शायद कभी काम न आये.जाने क्यों खरीद लिया.कभी-कभी ये भी देखा होगा कि डॉक्टर जिस चीज को खाने को मना करता है मन उसी चीज को खाने को करता है.ये जानते हुए भी कि ये चीज नुकसान देगी तो भी आप एक-दो कौर खा ही लेते हैं.है न.होता है न ऐसा.आप कुछ चीजें नही करना चाहे लेकिन फिर भी कर ही लेते हैं.

आखिर हम इतने समझदार लोग अजीब सा काम कैसे कर बैठते हैं.ये कौन है जो हमें इधर-उधर दौडता है.तो जवाब है - ये हैं आप की इन्द्रियाँ जो आप पर अपना कब्ज़ा किये रहती है.इन्द्रियों की शक्ति के बारे में भगवान कहते हैं

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥(भगवद्गीता,2.60)
अर्थात्

हे अर्जुन ! इन्द्रियाँ इतनी बलवान है कि वह उस बुद्धिमान व्यक्ति के मन को भी हर लेती है जो इन्द्रियों को  काबू में करने का प्रयास कर रहा है.

तो इन्द्रियों की शक्ति.जब आप अपने आप को शीशे में देखते है तो आप महसूस नही कर पाते कि आपके चेहरे पर इतनी सारी  इन्द्रियाँ हैं वो आपको नचाती रहती हैं.आपको गुलाम बनाके रखती है.आपको पता ही नही चल पाता होगा.है न.जब आप अपनी आँखों को देखते हैं तो आप अपनी आँखों को सुन्दर बनाने के तरीके खोजते हैं.कैसे ये आँखें और भी चमकदार लगे.लेकिन आप समझ नही पाते कि आपकी ये आँखें आपको इस जगत में बारम्बार ले आती है.आपको पता नही चलता कि ये आँखें कैसे आपको घसीट के बारम्बार इस बेकार जगत में,बेकार इसलिए क्योंकि ये temporary है और दुखों से भरपूर है.
दुखालायम अशाश्वतम
ऐसा ये जगत है और यहाँ आप अपनी इन्द्रियों के demands के कारण आते हैं.क्योंकि आप पूरी उम्र अपनी इन्द्रियों की कई सारी demands को,कई सारी मांग को पूरा करते रहते हैं इसलिए आपकी इन्द्रियाँ आपको खींच करके बलात forcefully इस संसार में ले आकर पटक देती है.आपको पता ही नही चलता और आप सारी उम्र इन्द्रियों के पीछे भागते रह जाते हैं.है न.तो आईये आज कार्यक्रम में हम इन्द्रियों के बल के बारे में चर्चा करेंगे कि कैसे इन्द्रियाँ हमें अपना गुलाम बनके रखती हैं.
सुनते रहिये समर्पण.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं एक सुन्दर श्लोक पर:
यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥(भगवद्गीता,2.60)
अर्थात्
हे अर्जुन ! इन्द्रियाँ इतनी बलवान है कि वह उस बुद्धिमान व्यक्ति के मन को भी हर लेती है जो इन्द्रियों को  काबू में करने का प्रयास कर रहा है.

बड़ी सुन्दर बात.सोचिये कि कितनी बड़ी बात है कि हमें पता ही नही चलता कि हम मालिक नही गुलाम हैं और वो भी अपने इस जड़ शरीर के.हमारा ये शरीर जो कि विभिन्न इन्द्रियों से बना हुआ है.जिसमे विभिन्न इन्द्रियाँ हैं.दस इन्द्रियाँ हैं.पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं.पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं.इन इन्द्रियों के वश में हमारा मन रहता है.हमारा मन इन इन्द्रियों के पीछे दौडता है.मन के पीछे बुद्धि दौड़टी है और बुद्धि के पीछे हम दौड़ते चले जाते हैं.

तो यहाँ बताया है कि चलिए ये तो एक आम आदमी की बात है जो इन्द्रियों के पीछे दौडता चला जाता है.लेकिन  ऐसा व्यक्ति जो कि विपश्चितः है.विपश्चितः का अर्थ है :full of discriminating knowledge यानि कि ऐसा व्यक्ति जिसे ये पता है कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है.मसलन कि जो ये जानता है कि चोरी करना पाप है.है न.लेकिन फिर भी वो चोरी करता है.क्यों?मसलन कि एक आदमी ये जानता है कि मुझे ब्लडप्रेशर है .ब्लडप्रेशर के कारण मुझे ज्यादा नामक नही खाना चाहिए.लेकिन फिर भी वो कहता है कि अरे खाना दिया है,थोडा-सा नमक तो लाके दो.हाँ.क्यों?वो तो जानता है.अच्छा,बुरा सब जानता है.हो सकता है कि उसकी उम्र 50 से ज्यादा हो.कई बार वो बच्चों को सीख देता है कि अरे ऐसा मत करो.ऐसा करोगे तो ये हो जायेगा.अरे अरे ये ऊँचाई पर मत चढो.गिर जाओगे.है न.वो जानता है परिणाम भी और वो जानता है ये परिणाम किस कार्य को करने से आया.दुष्परिणाम और सत्परिणाम सब जानता है.लेकिन फिर भी वो जिद कर बैठता है कि नही मुझे ये खाना है.नही मुझे ये चाहिए.क्यों?

इसका उत्तर तो भगवान यहाँ दे रहे हैं कि हे अर्जुन इन्द्रियाँ बहुत बलवान हैं.ये उस व्यक्ति,व्यक्ति भी ऐसा जो बुद्धिमान है ,उसके मन को भी हर लेती है जो इन्द्रियों को काबू में करने का प्रयास कर रहा है.इतने बुद्धिमान व्यक्ति भी इन्द्रियों की demands के चक्कर में आ ही जाते हैं.होता है है.पर ऐसा क्यों होता है.क्यों हमारी इन्द्रियाँ इतनी बलशाली हैं.किसने इन्हें इतना बलशाली बनाया.

आपने स्वयं अपनी इन्द्रियों को बलशाली बनाया.आपने स्वयं क्योंकि आप आत्मा हैं.आप इस शरीर में रहते हैं और आपकी शक्ति के कारण ही इन्द्रियाँ बलवान बनती हैं.आप जिसके कारण इन्द्रियाँ इतनी बलवान बनती है,आप भूल जाते हैं कि अरे ये तो जड़ है.मेरे बल से ये बलशाली है.तो मुझे ही कुछ करना चाहिए.मै इन्हें control में ला सकता हूँ.पर ऐसा करने के लिए आपको बहुत practice करने की जरूरत है.तो हम ये कैसे कर सकते हैं?क्या हम ये कर सकते हैं?इन सब पर चर्चा करेंगे कार्यक्रम समर्पण में.आप बने रहिये हमारे साथ.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥(भगवद्गीता,2.60)
अर्थात्
हे अर्जुन ! इन्द्रियाँ इतनी बलवान है कि वह उस बुद्धिमान व्यक्ति के मन को भी हर लेती है जो इन्द्रियों को  काबू में करने का प्रयास कर रहा है.


यहाँ दो शब्दों पर ध्यान दीजिए.इन्द्रियाणि प्रमाथीनि जो कि आपको बहुत बुरी तरीके से विचलित कर दे. हरन्ति मतलब जो हर लेती है.प्रसभं मतलब by force यानि बलपूर्वक मनः.मन को हर लेती है.तो इन्द्रियाँ आपके मन को हर लेती है.आप कई बार कहते हैं न कि ओह ओह मै तो पढाई कर रहा हूँ पर मन ही नही लग रहा.क्यों?क्योंकि मै सोच रहा हूँ कि भई किचेन में क्या पक रहा होगा.कब मुझे मिलेगा.या मै सोच रहा हूँ कि टेलीविजन पर रात को नौ बजे ये फिल्म आनी है.मुझे वो देखना है.आप समझ रहे हैं.आप बैठे यहाँ हैं लेकिन सोच रहे हैं चार घंटे आगे की.

क्योंकि आपका मन इन्द्रियों ने हर लिया है.हो सकता है आपके पास बड़ी-बड़ी degrees हो लेकिन बावजूद इसके कई बार आप देखते हैं कि आप अपनी इन्द्रियों के हाथों हार जाते हैं.आपकी आँखें कहती हैं कि नही मुझे ये शो देखना ही है.तो आप जाते हैं.आप जानते हैं कि अरे ये time waste हो रहा है.exam है नही जाना है.लेकिन बावजूद इसके आप सोचते हैं कि कोई नही cover कर लेंगे और आप देख लेते है.तीन घंटे बर्बाद कर लेते है और शो देखते हैं.है न.तो आप अपनी आँखों के गुलाम बन गए.

देखिये बड़ा सुन्दर example है जैसे कि मछली होती है.मछली तो आपने देखी होगी.मछली जब पानी में होती है तो उसे एक मछुआरा कैसे पकड़ता है.जानते हैं?उसे पकडने वाली एक rod होती है.उसके अंतिम सिरे पर कुछ खाना-वाना लगा देता है.कुछ अनाज और मछलियाँ झट से उस अनाज को खाने के लिए ऊपर आती हैं और जैसे ही उस पर अपने दाँत गाडाती है वो फँस जाती हैं.तो मछली अपनी जीभ के कारण फँसती है.

और इसीतरह से जो हिरण होता है वो अपने कान के कारण फँसता है.जंगल में जो शिकारी होते हैं वो उसे बहुत सुन्दर संगीत सुनाते हैं.संगीत जब सुन्दर होता है तो उसकी धुन पर हिरण जो हैं वो एकदम मदमस्त हो जाते हैं.उन्हें पता ही नही चलता कि वो शिकारी की जाल में आ रहे हैं.बस वो वहाँ तक पहुंचते हैं और शिकारी उन्हें पकड़ लेता है.तो हिरण बेचारे अपने कान की वजह से फँस जाते हैं.

और जो ये पतंगे हैं.पतंगे आपने देखे होंगे.ये अपनी आँखों की वजह से मारे जाते है क्योंकि जब ये एक light को देखते हैं तो उसकी तरफ बढ़ चलते हैं.और फिर मोमबत्ती की रोशनी में,दीये की रोशनी में जल मरते हैं.

तो देखिये ये सब तो अपनी एक-एक विशिष्ट इन्द्रिय की वजह से मारे जाते हैं पर हमारे अंदर तो दस इन्द्रियाँ हैं.दस इन्द्रियों की demands कितनी ज्यादा होती है.तो सोचिये इंसान का कितना बुरा हाल होता होगा.कैसे वो अपने जीवन लक्ष्य तक पहुँच सकता है.नही पहुँच सकता.उसे अपनी इन्द्रियों को वश में करना ही होगा.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक जिसका अर्थ है:

हे अर्जुन ! इन्द्रियाँ इतनी बलवान है कि वह उस बुद्धिमान व्यक्ति के मन को भी हर लेती है जो इन्द्रियों को  काबू में करने का प्रयास कर रहा है.

तो इन्द्रियों के बल के बारे  में भगवान चर्चा करते हैं कि भई आप ये मत सोचिये कि आप दूध पीकर के इतने बलवान हो गए कि आप किसी को भी पटकनी दे सकते हैं.मार सकते हैं.हरा सकते है.आप अपनी इन्द्रियों के गुलाम हैं.ये निर्जीव इन्द्रियाँ जिन्हें बल भी आपके कारण मिला है.ये तो आपको पटक देती हैं.आपको आपके जीवन लक्ष्य से भटका देती हैं और आपको पता भी नही चलता.है न मजे की बात.

जैसे कि खुजली.जब कही खुजली उठती है तो आप उसे खुजलाते हैं.जब आप उस जगह को खुजलाते हैं तो पहले-पहले बड़ा आनंद आता है.अच्छा लगता है.लेकिन आप उसे खुजलाते जाते हैं तो थोड़ी देर में वहाँ घाव बन जाता है.अगली दफा आप वहाँ खुजला नही पाते.है न.इसीप्रकार से होती है इन्द्रियों की बेशुमार demands.इन demands को पूरा करने में पहले-पहले मजा आता है और बाद में यही भवरोग का कारण बन जाता है.क्योंकि जब आप इन्द्रियों की demands को पूरी नही कर पाते हैं तो अंत समय में आपको अफ़सोस रह जाता है और इसी अफ़सोस के कारण,इस इच्छा के कारण आप इस भवबंधन को काटना नही चाहते.आप अपनी इन्द्रियों की demands को पूरी नही कर पाए.आप जीभ की मांग को पूरी नही कर पाए,आप अपनी कान की मांग को पूरी नही कर पाए.

ये सारा जो अफ़सोस है ये मजबूर करता है भगवान को कि वो आपको दुबारा से इस भवसागर में लेकर के आये.आपको इक और मौका दे कि आप अपनी इन्द्रियों की मांगों को पूरा कर सके.तो वस्तुतः आप ही कारण है कि आप इस भौतिक संसार में क्यों हैं?वरना आपको इस भौतिक संसार में होना नही था.जैसा कि एक श्लोक है :

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्‌ ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्‌ ॥(भगवद्गीता,6.34)
यानि कि हे भगवान ये इन्द्रियाँ तो बहुत चंचल है.ये तो बहुत ही चंचल है.ये इतनी बलशाली हैं कि मै इन्हें control में नही कर पाता.मै हवा को जरूर मुट्ठी में बाँध सकता हूँ.अगर कोई कहे कि बही मैंने हवा को मुट्ठी में बाँध लिया तो विश्वास कर लूँगा लेकिन यदि कोई कहे कि मैंने सारी इन्द्रियों को control कर लिया है.अब इन्द्रियों से मै बिल्कुल नही डरता.अब इन्द्रियों की demands बिल्कुल पूरी नही करता.इन्द्रियों को अपने इशारे पर नचाता हूँ तो ये मै विश्वास नही कर सकता हूँ.जैसे कि वायु को control करना बहुत मुश्किल है.उसीप्रकार से इन्द्रियों को अपने वश में करना बहुत मुश्किल है.


तो क्या सच में हम इन्द्रियों के गुलाम बन के रह जाए.क्या यही हमारी नियती है.या इसके छूटने का कोई विकल्प है हमारे पास.तो बने रहिये हमारे साथ.हम चर्चा करेंगे इसी कार्यक्रम में.समर्पण में.सुनते रहिये समर्पण.
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