Friday, February 25, 2011

कौन है जिसकी अध्यक्षता में प्रकृति काम करती है:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 26th Feb, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप? कई बार हम newspaper या पंचांग में पढते हैं कि सूरज कल सुबह इतने बजे निकलेगा और अगले दिन जब सूरज ठीक समय पर निकल आता है तो हम अखबार वालों की या फिर मौसम विभाग की प्रशंसा करते हैं कि अरे वाह ! कितनी accurate भविष्यवाणी करते हैं ये सब.लेकिन शायद ही कोई ये सोचता हो कि भई कौन है जो सूरज को duty देता है कि भई आपको इतने बजे ही उदित होना है और इतने बजे ही अस्त होना है.कौन है जो ये सुनिश्चित करता है कि सारी ऋतुएँ,सारे seasons अपने-अपने समय पर आये.

आखिर जनवरी में लू क्यों नही चलती और जून में यहाँ बर्फ क्यों नही पडती.कौन है जो मिट्टी में इतनी variety,इतने रस डाल देता है कि जैसा भी बीज लगाओ वैसा ही पौधा पाओ.रसीले आम भी इसी मिट्टी से पाओ और खट्टी इमली भी इसी मिट्टी से पाओ.

इसतरह के प्रश्न यदि कभी आपके दिमाग में आये हो तो आपके सवालों के जबाव में है हमारा आज का बहुत ही
सुन्दर श्लोक.कृपया श्लोक ध्यान से सुनिए:

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥(भगवद्गीता,9.10)
अर्थात् 

ये भौतिक प्रकृति जो मेरी अनेक शक्तियों में से एक है,ये मेरी ही अध्यक्षता में कार्य कर रही है और इस तरह से हे कुन्तीपुत्र ये सभी चर और अचर जीवों को उत्पन्न कर रही है.इस तरह इस जगत की बार-बार रचना होती है और बार-बार विनाश यानि कि प्रलय होता है.

तो देखिये भगवान ने यहाँ पर अच्छी तरह से साफ़-साफ़ तौर पर बता दिया है कि जिस प्रकृति की आप वाहवाही करते हैं.जिस प्रकृति को देख करके आश्चर्यचकित होते हैं.जिस प्रकृति पर आप नाज करते हैं.जिस प्रकृति को कई बार आप बचाने का प्रयास भी करते हैं.वो प्रकृति वस्तुतः भगवान की अध्यक्षता में कार्य करती है.यानि भगवान ही इस प्रकृति या mother nature के मालिक हैं.

हम कई बार कहते हैं न कि प्रकृति माता है.mother nature.हम कहते हैं न कि भई प्रकृति से ही हमें सब कुछ मिला है.तो एक बात याद रखिये कि माँ अकेले बच्चा पैदा नही कर सकती.पिता की जरूरत होती है.हम सब एक पिता से आये हैं.है न.हमारी माँ है किन्तु पिता भी हैं.
बीजप्रदः पिता.
बीज प्रदान करना पिता का कार्य होता है.तो माँ के पास पिता का आना स्वाभाविक है तभी बच्चे का जन्म होता है और यहाँ भगवान बताते हैं कि माँ जो प्रकृति है वो हमारी माता है.लेकिन उनके साथ हमारे पिता हैं भगवान.जिन्होंने प्रकृति के माध्यम से सब कुछ सृजित किया.पैदा किया.
अहं बीजप्रदः पिता.
भगवान ये घोषणा करते हैं.याद रखिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥(भगवद्गीता,9.10)
अर्थात् 

ये भौतिक प्रकृति जो मेरी अनेक शक्तियों में से एक है,ये मेरी ही अध्यक्षता में कार्य कर रही है और इस तरह से हे कुन्तीपुत्र ये सभी चर और अचर जीवों को उत्पन्न कर रही है.इस तरह इस जगत की बार-बार रचना होती है और बार-बार विनाश यानि कि प्रलय होता है.


तो भगवान बहुत ही सुन्दर जानकारी दे रहे हैं.पहली जानकारी जो आपको प्राप्त होती है इस श्लोक में से वो ये कि ये भौतिक प्रकृति मेरी अनेक शक्तियों में से एक है.यानि कि ये जो nature,ये जो प्रकृति है जो आपको दिखती है.जिसमे इतनी विविधताएं हैं.यहाँ सुबह होती है तो रात भी होती है.सूरज निकलता भी है तो अस्त हो जाता है.जब सुबह होती है तो कितनी विविधताएं आपको दिखती है.पर जब शाम हो जाती है,रात हो जाती है तो ये विविधताएं आपको देख नही पाती हैं.है न.

तो एक ही सिक्के के दो पहलू.लेकिन ये भौतिक प्रकृति भी भगवान की अनेकानेक शक्तियों में से एक है.अनेकानेक शक्तियाँ.भगवान की शक्तियाँ अपरिमित,असीमित,अचिन्त्य हैं.आपके चिंतन की सीमा रेखा से बाहर है.तो भगवान हम जैसे मनुष्यों को ये जानकारी दे रहे हैं क्योंकि हम नही समझ पाते.हमलोग इस बात पर भी विवाद छेड़ देते हैं कि क्या कोई भगवान है कि नही.बड़े-बड़े वैज्ञानिक,बहुत बड़े-बड़े दार्शनिक भी ये कह कर रह जाते हैं कि भई भगवान को तो हम नही जानते लेकिन हाँ प्रकृति जरूर है.nature जरूर है और nature अपना काम करके रहती है.हमे nature को बचाना है.हमें nature के खिलाफ नही जाना है.कितनी तरह की बातें सब करते हैं.

लेकिन भगवान कहते हैं कि आप ये देखिये कि ये nature अपने से काम नही कर रही है.जैसे कि आपका शरीर.आप अपने शरीर को देखिये.आपका शरीर अपने से काम नही कर रहा है.आपके शरीर में खून बहता है.आपके शरीर में विशेष तापमान रहता है.आपका जो शरीर है उसमे जो आँख है वो देखती है.आपके होंठ हिलते हैं.ये सब कुछ होता है.लेकिन कोई कहे कि देखा ये शरीर करता है.शरीर चल रहा है.शरीर बोल रहा है,हँस रहा है,गा रहा है.कितनी मस्ती कर रहा है.

अगर कोई ये कहे तो वो अज्ञानी है क्योंकि वो शरीर के अंदर बैठी हुई आत्मा को नही देख पा रहा.उस बच्चे की तरह जो कहता है कि पापा!पापा! वो airplane उड़ रहा है.पापा कहते हैं कि नही बेटे  airplane नही उड़ रहा है.उस हवाईजहाज में जो pilot है वो उस airplane ,हवाईजहाज को उड़ा रहा है.इसीप्रकार से जो प्रकृति को देखता है.प्रकृति की विविधताओं को देखता है.प्राकृतिक विविधताओं को देखकर जब वो हैरतंगेज तरीके से कहता है कि वाह क्या बात है.तो वो व्यक्ति यदि भगवान को नही पहचान पाए,यदि ये न कह पाए कि ये भगवान के कारण हो रहा है तो फिर उसकी जानकारी अपूर्ण है,पूरी नही है.याद रखिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥(भगवद्गीता,9.10)
अर्थात् 

ये भौतिक प्रकृति जो मेरी अनेक शक्तियों में से एक है,ये मेरी ही अध्यक्षता में कार्य कर रही है और इस तरह से हे कुन्तीपुत्र ये सभी चर और अचर जीवों को उत्पन्न कर रही है.इस तरह इस जगत की बार-बार रचना होती है और बार-बार विनाश यानि कि प्रलय होता है.
तो देखिये छोटा-सा example मै आपको देती हूँ कि यदि कोई व्यक्ति ये सोचे कि एक स्त्री,एक गर्भवती स्त्री जो दिख रही है और उसने इस बच्चे को पैदा किया थोड़े दिनों बाद.और वो बार-बार कहे कि उस स्त्री ने दो बच्चे पैदा किये.तीन बच्चे पैदा किये और स्त्री को पूरा credit दे.तो ये कह लीजिए अधूरा ज्ञान है.लेकिन जो व्यक्ति कहे कि ये बच्चे सिर्फ माँ से पैदा नही हुए हैं.इनका पिता भी है.जो ये जान ले कि इनका पिता भी है सिर्फ माँ से बच्चे पैदा नही हो सकते तो ये पूरा ज्ञान है.

इसीप्रकार से भगवान कहते भी हैं शास्त्र में :
पिताहमस्य जगतो (भगवद्गीता,9.17)
मै समस्त जगत का पिता हूँ.है न.भगवान कहते हैं.भगवान declare करते हैं.तो भगवान जब प्रकृति पर दृष्टिपात करते हैं.सिर्फ अपनी दृष्टि से प्रकृति को देखते हैं तो विभिन्न कर्मों के अनुसार समस्त जीव आत्माएं विभिन्न योनियों में प्रकृति में आरोपित हो जाती हैं.अपने-अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों को,विभिन्न जीव आत्माएं धारण करती हैं और पैदा होती हैं.लेकिन ये सब होता तभी है जब भगवान अपनी चितवन से,अपनी नजरों से प्रकृति को देखते हैं.

तो इस श्लोक में आपको बताया गया है कि भौतिक प्रकृति जो भी कार्य करती हुई दिखती है उसके पीछे की वजह भगवान हैं.भगवान से अलग हो करके प्रकृति कोई कार्य नही कर सकती क्योंकि प्रकृति जड़ है.लेकिन इसमे जो life force है,जो जीवन्तता है,जो creativity की शक्ति है,जो सृजन और विनाश करने की शक्ति है वो भगवान से इस प्रकृति में आती है.

ये बात अगर आप याद रखेंगे.अगर ये बात समझ पायेंगे तो आप देख पायेंगे कि किस तरह से भगवान कार्य करते हैं और प्रकृति किस तरह से कार्य करती है.जैसे कि आपके शरीर के अंदर आत्मा है तभी इस शरीर में खून बहता है.है न.सृष्टि होती है,ये शरीर बच्चे पैदा करता है.सृष्टि करता है.इसीप्रकार से इस ब्रह्माण्ड में भगवान हैं तभी नदियाँ बहती हैं.भगवान व्याप्त हैं तभी नदियाँ बहती हैं और चर-अचर जीव उत्पन्न होते हैं.भगवान एक समग्र,एक विश्व चेतना के रूप में सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं.भगवान सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं.इसीलिये ये सारा ब्रह्माण्ड ऐसा कार्य करता है.

बिना भगवान के  न सूरज उग सकता है,न रात हो सकती है,न नदियाँ बह सकती हैं.वैसे ही जैसे कि हमारे शरीर में आत्मा की उपस्थिति में खून बहता है,सृष्टि होती है.सारा mechanism काम करता है.इसीप्रकार प्रकार दुनिया भगवान की उपस्थिति में कार्य करती है.तभी फूल उगते हैं,तभी सब्जियां उगती है.जो ये सब जान लेता है वो पूर्ण ज्ञानी कहलाता है और वो भगवान की भक्ति में अग्रसर हो जाता है.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.जिसका अर्थ है:
ये भौतिक प्रकृति जो मेरी अनेक शक्तियों में से एक है,ये मेरी ही अध्यक्षता में कार्य कर रही है और इस तरह से हे कुन्तीपुत्र ये सभी चर और अचर जीवों को उत्पन्न कर रही है.इस तरह इस जगत की बार-बार रचना होती है और बार-बार विनाश यानि कि प्रलय होता है.
कितनी बड़ी बात है.ये भौतिक प्रकृति सभी प्रकार के जीवों को उत्पन्न कर रही है.चर और अचर जीवों को.कुछ जीव जो चल पाते हैं और कुछ ऐसे भी जीव हैं जो चल नही पाते.जैसे कि पेड़-पौधे.चल नही पाते हैं.लेकिन फिर भी वो जीव हैं क्योंकि उनके अंदर आत्मा है.मैने आपको बताया भी था कि कैसे पहचानेंगे हम कि किसी चीज के अंदर आत्मा है.पहली चीज उसके अंदर चेतना होगी और दूसरी चीज कि वो चीज बढ़ेगी.वो वस्तु बढ़ेगी.तो पौधे भी बढ़ते हैं.उनके अंदर चेतना होती है.

तो चर और अचर जीवों को प्रकृति उत्पन्न करती है भगवान की अध्यक्षता में,भगवान की सहायता से.तो ये जरूरी नही है कि आप कहे कि अगर भौतिक प्रकृति में भगवान रहते हैं तो मुझे दिखते क्यों नही.देखिये ये ऐसा ही है जैसे कि मान लीजिए एक बहुत बड़ा उद्योगपति है.बहुत बड़ा उद्योगपति.उसको देश और अनेकानेक विदेशों में भी उसके अनेकानेक factories हैं.उसके नाम पर अनेकानेक factories हैं.तो हर factory में वो स्वयं मौजूद हो ये तो जरूरी नही.हो सकता है कि ऐसा व्यक्ति कभी भी किसी भी factory में न जाता हो.लेकिन बावजूद इसके उस factory में उत्पादन क्या होगा.किस प्रकार से लोग आयेंगे,काम करेंगे ये सारे नियम वही बनाता है.सब जानते हैं,काम करनेवाले जानते हैं कि ये factory किसकी है.मुनाफा किसको जाता है.हमारी salary कहाँ से आती है.सब जानते हैं.

इसीप्रकार से जो विद्वान लोग हैं वो जानते हैं कि भगवान ही हमें सबकुछ देते हैं.अन्न देते हैं,आश्रय देते हैं,हमारे साक्षी हैं और इस प्रकृति में हमें आरोपित भी भगवान ही करते हैं हमारे गुण और कर्म के अनुसार.तो ये बात जानने की है.भगवान कहते भी हैं:
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥(भगवद्गीता,18.61)
कि मै माया के यंत्र पर सभी लोगों को चढा कर उन्हें घुमाता रहता हूँ और ये माया ही प्रकृति कहलाती है.या कह लीजिए कि प्रकृति ही माया कहलाती है.भगवान कहते भी हैं:

कि भई मेरी माया से पार पाना बहुत ही मुश्किल है.तकरीबन असंभव है लेकिन यदि हम भगवान की शरण ले ले तो हम माया को भी समझ पायेंगे और माया से पार भी हो जायेंगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥(भगवद्गीता,9.10)
अर्थात् 

ये भौतिक प्रकृति जो मेरी अनेक शक्तियों में से एक है,ये मेरी ही अध्यक्षता में कार्य कर रही है और इस तरह से हे कुन्तीपुत्र ये सभी चर और अचर जीवों को उत्पन्न कर रही है.इस तरह इस जगत की बार-बार रचना होती है और बार-बार विनाश यानि कि प्रलय होता है.
सही बात है भगवान की ही अध्यक्षता में भौतिक प्रकृति कार्य कर रही है.ये बात आप भी समझे.भगवान के बगैर भौतिक प्रकृति जड़ है,निर्जीव है.वैसे ही जैसे आत्मा के बगैर ये शरीर निर्जीव है.तो देखिये भगवान इस भौतिक प्रकृति के जरिये अपनी कृपा बरसाते रहते हैं और इसी बात पर मुझे एक कहानी याद आती है.आपको सुनाती हूँ.कथा है बहुत सुन्दर-सी:
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था.लाशों के ढ़ेरों के बीच हाथी के घंटे के नीचे सुरक्षित पक्षी के दो बच्चों को देखकर महर्षि शौनक से उनके शिष्यों ने पूछा कि गुरुवर बड़े-बड़े योद्धा नष्ट हो गए.तो ऐसे घोर संग्राम के बाद भी पक्षी के ये बच्चे जीवित हैं.महर्षि शौनक ने उन्हें ध्यान से देखा और फिर कहा कि हाँ,पक्षी के अंडे जमीन पर पड़े थे और गजराज का घंटा ऊपर से आ गया.बचाने वाले अंतर्यामी परमेश्वर की इच्छा से ही ऐसा हुआ है.उन्ही अण्डों से ये बच्चे निकले हैं.इन्हें आश्रम में ले चलो और इन्हें दाना-पानी दो.

शिष्यों ने जिज्ञासा जतायी कि गुरुवर! परमात्मा ने इन्हें ऐसे घोर जंग में भी सुरक्षित रखा है तो वही आगे भी इनकी रक्षा करेगा.हम क्यों इन्हें लेकर चले.ऋषि बोले कि जहाँ ये बात हमारे नजरों में आ गई.भगवान का काम वही पूरा हो गया.भगवान ने ही हमें यहाँ भेजा है ताकि इनके आगे की परवरिश हो सके.शिष्यों को दैव कृपा और मनुष्यों के कर्म का भेद समझ में आ गया.वे पक्षी के बच्चों को वहाँ से उठाकर आश्रम में ले आये और उनके लिए दाना-पानी का भी इंतजाम किया.

तो सुना आपने.ये हम जानते हैं कि भगवान जर्रे-जर्रे में हैं,कण-कण में हैं लेकिन आप ये मत सोचिये कि क्योंकि भगवान कण-कण में हैं तो अब मै कुछ नही करूँगा.भगवान तो हमारे लिए सबकुछ कर ही देंगे.आखिर पिता का फर्ज है कि वो अपने बच्चे के लिए सबकुछ करे.हम कुछ क्यों करे.

जी नही.भगवान ने हमें ये कर्म योनि दी है.भगवान की इच्छा है जैसे एक पिता की इच्छा होती है न कि उसके बच्चे सबल बने.अपने पैरों पर खड़े हो.इसीप्रकार से परमपिता परमेश्वर की ये इच्छा है कि उनके ये बच्चे यानि कि हम अपने पैरों पर खड़े हो.हम समझे कि हम यहाँ पर इस जगत में क्यों आये हैं और हमें यहाँ से कहाँ जाना चाहिए.क्या हमारा अंतिम ठिकाना होना चाहिए.क्या यहाँ बार-बार जन्म लेना उचित है.बार-बार मरण का मुख देखना उचित है.ये सारे सवाल हमें मथने चाहिए.

अगर ये सवाल हमें प्रभावित नही करते तो समझ लीजिए हमारा जीवन व्यर्थ चला जायेगा.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
ये भौतिक प्रकृति जो मेरी अनेक शक्तियों में से एक है,ये मेरी ही अध्यक्षता में कार्य कर ही है और इस तरह से हे कुन्तीपुत्र ये सभी चर और अचर जीवों को उत्पन्न कर रही है.इस तरह इस जगत की बार-बार रचना होती है और बार-बार विनाश यानि कि प्रलय होता है.
तो यहाँ पर अंतिम पंक्ति में भगवान ने बताया कि ये जगत बार-बार सृजित होता है और बार-बार नष्ट होता है.सदा-सर्वदा ये जगत नही रहता है.कितनी बड़ी बात आपको बतायी और आप कहते हैं कि ये जगत मेरा हो जाए या मै इस जगत में सदा-सर्वदा रहूँ.आप ऐसा सोचते हैं.कोई भी नही सोचता कि कल को मै इस जहाँ से उठ के चला जाउंगा.कोई नही सोचता.जानते सब है लेकिन अपने विषय में मानना कोई नही चाहता.हैरानी की बात है मगर यही सत्य है.

लेकिन भगवान यहाँ आपको information दे रहे हैं कि ये जगत बार-बार सृजित होता है और बार-बार नष्ट भी हो जाता है.यानि कि बार-बार सृजन होता है तो बार-बार प्रलय आती है.और आप देखते हैं कि प्रलय के लिए कई बार एक शब्द का इस्तेमाल भी किया जाता है -क़यामत,क़यामत के दिनों में,क़यामत आयेगी.तो प्रलय एक ऐसा शब्द है,एक ऐसी धारणा है जिसे सभी स्वीकार करते हैं.सभी स्वीकार करते हैं कि प्रलय आयेगी ही आयेगी.
भूत्वा भूत्वा प्रलीयते 
बार-बार हम जन्म लेते हैं और बार-बार हमारे इस देह की मृत्यु होती है.आना-जाना लगा रहता है इस temporary जगत में.जब ये जगत सृजित होता है तो हम भी यहाँ आ जाते हैं.अपने गुण और कर्म के अनुसार के एक विशेष योनि में आ जाते है और फिर जब प्रलय आती है ,ये जगत खत्म हो जाता है तो भगवान हमारे आश्रयदाता बन जाते हैं.हम उनके शरीर में निवास करते हैं.उसके बाद फिर से जब भगवान material nature के ऊपर दृष्टिपात करते हैं तो हम दुबारा से जन्म लेते हैं.

तो ये सिलसिला चलता रहता है.ये सब भगवान के निर्देशन में होता है.उनकी अध्यक्षता में होता है.जो इसबात को समझ लेता है फिर उसे कुछ और समझने की जरूरत नही है.तब वो जानता है कि मुझे यहाँ-वहाँ भटक कर क्या मिलेगा.क्यों न मै अभी से ही अपना जीवन भगवान के नाम कर दूँ.ताकि भगवान मुझे इस अस्थायी जगत में आने से बचाए.

है न सही बात.अच्छी बात है और यकीन मानिए यही समझदारी की बात है.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और अब बारी है आपके sms की.
SMS:शिलौंग से सोनम पूछती हैं कि प्रेमधारा जी ये बताईये कि लोग न चाहते हुए भी पाप क्यों करते हैं?
Reply:सोनम जी बहुत आसान-सी बात है.भगवान बताते हैं :
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥(भगवद्गीता,3.37)
कि रजोगुण के प्रभाव में आकर के लोग अनेकानेक कामनाएँ करते हैं और जब कामनाएं पूरी नही होती तो क्रोध आता है.बस इन दोनों के चक्कर में लोग पाप कर बैठते हैं.इसीलिए रजोगुण को सतोगुण में बदलना ही बुद्धिमानी है.
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