Friday, February 11, 2011

आप शरीर नही हैं,इस शरीर में जो व्याप्त है आप वो हैं:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 12th Feb, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा.कैसे हैं आप.अक्सर जिंदगी में ऐसे हालात उत्पन्न हो जाते हैं जिन पर हमारा वश नही चलता.हम करना तो बहुत कुछ चाहते हैं पर कुछ कर नही पाते.बस उस स्थिति को झेलना ही हमारी नियती होती है.मसलन कई बार आपने देखा होगा कि आपका कोई परिचित,आपका कोई अपना जो वर्षों से आपके साथ था अचानक साथ छोड़कर चल बसता है और आप कुछ नही कर पाते.है न.कुछ भी तो नही कर पाते.कुछ तो बस यही कह देते हैं -जैसी ईश्वर की मर्जी.कोई कहता है -उसकी मर्जी के आगे भला किसका वश चलता है.सीना तानकर चलनेवाला आदमी.जी हाँ.उसे भी अंततः घुटने टेकने ही पड़ते हैं.उन लम्हों में कोई-कोई सोच बैठता है कि किसे सच मानूं.उसे जो मेरे साथ वर्षों से था या इसे जो अब रहा नही.जो अब रहा नही क्या वो था कभी नही.वो झूठ था या फिर ये झूठ है.वो सुन्दर शरीर मिथ्या था क्या.अगर हाँ तो सच क्या है.इसी कश्मकश में पड़े इंसान को शाश्वत सत्य के दर्शन कराता है हमारा आज का ये श्लोक.बड़े ही ध्यान से सुनिए.

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌ ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥(भगवद्गीता,2.17)
अर्थात् 

वो जो समस्त शरीर में व्याप्त है.उसे ही तुम अविनाशी जानो.कोई भी उस अविनाशी आत्मा को नुकसान नही पहुँचा सकता.

तो देखिये कितनी बड़ी जानकारी देता है आपको ये श्लोक.कितनी बड़ी बात.हम हमेशा सोचते हैं कि मै Mr. X या Miss. Y हूँ.जैसे आप मेरे बारे में ही सोच सकते हैं.मै कहूँगी कि मै प्रेमधारा हूँ और आपसे मै आपका नाम पूछूँगी  तो आप भी अपना नाम ही बताएँगे.ये पूछूँगी कि आप कौन हैं तो भी अपना नाम ही बताएँगे.तो देखिये शुरुआत बहुत गलत हो जाती है.हम अपनी पहचान बहुत गलत स्तर पर करते हैं.हम नही जानते कि हम कौन है.है न.कितनी अजीब -सी बात है और ये श्लोक आपको बताता है कि अगर आप देह के स्तर पर अपने बारे में सोचते हैं तो इस सोच को बदलना होगा.
आप शरीर नही हैं.इस शरीर में जो व्याप्त है आप वो हैं.
क्या व्याप्त है इस शरीर में?क्या है जो अविनाशी है?कौन हूँ मै?कहाँ से आया हूँ?ऐसे कई प्रश्न आपके मन में अब तक उठ जाने चाहिए.अगर ऐसे ही प्रश्न आपके दिमाग में उठ रहे हैं तो ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर हम देंगे आगे.सुनते रहिये आप समर्पण.
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समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌ ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥(भगवद्गीता,2.17)
अर्थात् 

वो जो समस्त शरीर में व्याप्त है.उसे ही तुम अविनाशी जानो.कोई भी उस अविनाशी आत्मा को नुकसान नही पहुँचा सकता.
तो देखिये ये श्लोक आपको बताता है साफ़-साफ कि हमारे इस शरीर में कुछ और चीज है जो अविनाशी है.अगर आप देखे गौर से तो हमारे शरीर में क्या नही है.हमारे शरीर में खून बहता है.खून पूरे शरीर में व्याप्त है.मांस पूरे शरीर में व्याप्त है.हड्डियां पूरे शरीर में व्याप्त है.लेकिन भगवान कहते हैं कि जो पूरे शरीर में व्याप्त है उसे तुम अविनाशी जानो.लेकिन आप देखते हैं कि आपका खून वो भी विनाशी है.हड्डियां भी विनाशी है.मांस भी विनाशी है.सबका विनाश हो जाता है.मिट्टी जो है मिट्टी में मिल जाती है.जल तत्त्व जल में मिल जाता है.आकाश तत्त्व आकाश में मिल जाता है और अग्नि तत्त्व अग्नि को समर्पित हो जाता है.तो क्या है इस शरीर में जो अविनाशी है?किस तरफ भगवान इशारा कर रहे हैं?

आपने एक शब्द सुना होगा-आत्मा.जी हाँ.भगवान इशारा कर रहे हैं आत्मा की तरफ.आत्मा जिसे आप अपनी आँखों से देख नही सकते चाहे आप कितने-कितने ही बड़े माइक्रोस्कोप लगा ले,कुछ भी क्यों नही लगा ले.विज्ञान अपने किसी भी स्तर पर क्यों न जा पहुँचे लेकिन आत्मा को आँखों से देखा नही जा सकता.आत्मा बहुत बारिक होती है.बहुत ही ज्यादा बारिक.अणु-परमाणु से भी छोटी होती है.

भगवान ये बोलते हैं कि हमारे जो बाल हैं एक बाल.अगर उसका tip लिया जाए और उस tip के दस हजार टुकड़े कर दिए जाएँ तो दस हजारवां भाग आत्मा का size है.उसका परिमाण है.तो इतनी छोटी आत्मा वो हम हैं.आत्मा का size इतना छोटा है कि हमें लगता नही है कि हम वो हो सकते हैं.हमें लगता है कि हम बहुत बड़े हैं क्योंकि शरीर बहुत बड़ा है.लेकिन सोचिये कि इतनी छोटी आत्मा पूरे शरीर में व्याप्त है.क्या potency है आत्मा की ! क्यों है इतनी बड़ी potency?इतनी शक्ति कैसे है?

क्योंकि हम भगवान के अंश हैं.हम आध्यात्मिक हैं.हम जड़ नही हैं.हम जो हैं जड़ पदार्थों के बने हुए नही हैं.हम आध्यात्मिक हैं.आध्यात्मिक शक्ति से लबरेज हैं.इसीलिए आत्मा शक्तिशाली है और आप उसकी उपस्थिति को अपने शरीर में व्याप्त चेतना से जान सकते हैं.ये जान लीजिए..
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आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर.

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌ ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥(भगवद्गीता,2.17)
अर्थात् 

वो जो समस्त शरीर में व्याप्त है.उसे ही तुम अविनाशी जानो.कोई भी उस अविनाशी आत्मा को नुकसान नही पहुँचा सकता.

तो भगवान आत्मा के बारे में बहुत-ही सुन्दर जानकारी आप तक पहुँचा रहे हैं कि आत्मा अविनाशी है.आत्मा यानि आप.आप अविनाशी है.आप अपने आप को ये मत समझिए कि आप जब ये शरीर खत्म हो जाएगा तो खत्म हो जायेंगे.शरीर के खत्म होने पर भी आपका नाश नही हो सकता.
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥(भगवद्गीता,2.20)
भगवान बहुत सुन्दर जानकारी आप तक बारम्बार पहुँचाते हैं शास्त्रों के माध्यम से और हमें इसे समझना चाहिए.जो इस शरीर में व्याप्त है वो अविनाशी है.आत्मा है.पर आप कैसे महसूस करेंगे कि किस शरीर के अंदर आत्मा है और किस शरीर के अंदर आत्मा नही है?क्या फर्क है दोनों के बीच?जड़ और जो जीवित है उसके बीच में क्या फर्क है?आत्मा की उपस्थिति इस बात से जानी जा सकती है कि वो शरीर चेतन है कि नही है.चेतना के रूप में आत्मा की उपस्थिति जानी जा सकती है.

मसलन आपको मै एक example देती हूँ कि मान लीजिए कि एक अँधेरे से कमरे में आप एक दीया जला दे.कैसे पता चलेगा कि दीया जल रहा है.जब उसकी रोशनी  पूरे कमरे में व्याप्त होगी.छोटा-सा दीया पर कितना बड़ी भी कमरा हो उसकी रोशनी वहाँ तक जा रही होगी.इसीप्रकार से जब सुबह होती है तो सूरज हमसे कितने कोशों दूर है miles and miles ,millions of miles दूर है सूरज लेकिन जैसे ही पौ फटती है,सुबह होती है,सूरज अभी ठीक से निकला भी नही होता है आप जान लेते हैं कि सुबह हो गई.कैसे जान लेते हैं आप?थोड़ी-सी रोशनी  आप तक आती है और आपको पता चल जाता है कि सुबह हो गई.

इसीप्रकार से जब आत्मा किसी शरीर में उपस्थित होती है तो वो शरीर बढ़ता है,वो शरीर सक्रिय होता है,उस शरीर में जान आ जाती है,उस शरीर में कार्य करने की शक्ति आ जाती है और इसी से पता चलता है कि हाँ ये शरीर सजीव है.जिस शरीर सजीव नही है उसमे आत्मा नही होती.शरीर काम नही करता.जैसे कि मान लीजिए आपने किसी को देखा है चलते-फिरते और फिर किसी समय आप उसे मुर्दा देखते हैं.तो क्या चीज है जो चली गई?अरे सब कुछ तो वैसा ही पड़ा है.शरीर वैसा ही है.फिर क्या चीज है जो नही रहा?हाँ.एक बच्चा भी कह देता है कि ये मर गया है.कोई भी बोल सकता है कि ये गुजर गया है.कौन है जो गुजर गया.सवाल पूछिए.जवाब मिलेगा आपको -आत्मा.
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आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है.

वो जो समस्त शरीर में व्याप्त है.उसे ही तुम अविनाशी जानो.कोई भी उस अविनाशी आत्मा को नुकसान नही पहुँचा सकता.

तो आत्मा अविनाशी है.आत्मा के बारे में कहा भी गया है:

न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥(भगवद्गीता,2.20)


यानि कि आत्मा का कभी जन्म नही होता और इसका कभी मरण नही होता.आत्मा न जन्म लेती है न मरती है.


है न.ये तो शरीर है भई जो जन्म लेता है.आप जब किसी की पैदाइश पर ताली बजाते हैं,जब खुश होते हैं तब आप क्या सोचते हैं कि उस आत्मा ने शरीर पहली बार धारण किया होगा.चौरासी लाख योनियों के अंतहीन सफर के बाद भगवान की कृपा से एक मनुष्य शरीर प्राप्त होता है आत्मा को.तो खुश इसलिए होना चाहिए कि चलिए मनुष्य शरीर मिल गया है आत्मा को और मनुष्य शरीर प्राप्त करके अब ये आत्मा अपने जीवन को धन्य बना सकती है.ये भगवान के पास पहुँच सकती है.भगवान की राह पकड़ सकती है.

लेकिन हम सोचते हैं कि नही बच्चे ने जन्म लिया है और सोचते हैं कि पहली बार हुआ है.ऐसा नही.हमारे शास्त्र हमें बताते हैं ,भगवान हमें बताते हैं कि ये तो कभी जन्म नही लेती.ये तो नित्य है.अनित्य तो ये शरीर है.शरीर जन्म लेता है और क्योंकि शरीर जन्म लेता है इसीलिए मरता भी केवल शरीर ही है.

और आप देखिये.गौर करके देखिये कि एक जो मृत शरीर है,dead body है आप उसमे खून डाले.आप सोचे कि चलिए खून का दान करते हैं तो शायद जिन्दा हो जाए तो वो जिन्दा नही होगा.आप सोचे कि इसकी किडनी खराब है किडनी ही डाल देते हैं.नही आत्मा चली गई तो किडनी डाल के भी कोई फायदा नही.ऑपरेशन कर देते हैं.कर दीजिए लेकिन कोई फायदा नही.ये तो अब एक मिट्टी की गुडिया बन गई है.मिट्टी की गुडिया को काटो,कुछ भी करो तो कोई फायदा नही.मिट्टी की गुडिया चल नही सकती.

इसीप्रकार से जिस शरीर के अंदर से आत्मा निकल गई है वो शरीर अब चलायमान नही हो सकता.वो क्रिया नही कर सकता.कोई काम नही कर सकता.वो बेकार है.वो मिट्टी हो गया है.

आप एक चीज और समझ लीजियेगा आप heart को replace कर सकते हैं.आप kidney को replace कर सकते हैं,आप खून को replace कर सकते हैं.नया खून डाल सकते हैं,नया दिल डाल सकते हैं.सब कुछ नया डाल सकते हैं.पर याद रखना :
Soul can not be replaced.
आप आत्मा को बदल नही सकते.नई आत्मा नही डाल सकते.वो तो प्रभु की अहैतुकी कृपा ही है कि आत्मा एक शरीर धारण करती है और भगवान की ही कृपा है कि आत्मा अपने पुराने शरीर को छोड़कर एक और नया शरीर धारण कर लेती है.ये एक विज्ञान है इसे समझने का प्रयास करो.
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समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं  बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌ ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥(भगवद्गीता,2.17)
अर्थात् 

वो जो समस्त शरीर में व्याप्त है.उसे ही तुम अविनाशी जानो.कोई भी उस अविनाशी आत्मा को नुकसान नही पहुँचा सकता.

तो देखिये आपने अभी समझा कि आप आत्मा हैं और आप अविनाशी हैं.न आपका जन्म हो सकता है न मृत्यु हो सकती है.सिर्फ शरीर जन्म लेते हैं और शरीर मर-मर जाते हैं.आपने सुना होगा न:
आशा मरी न तृष्णा मरी,मर-मर गए शरीर.
लेकिन हमें पता नही चल पाता  है कि इस शरीर में हम कैसे रहते हैं और हमारे साथ कौन रहता है.भगवान हमारे साथ रहते हैं इस शरीर में.भगवान कहते भी हैं कि जो ईश्वर है वो हरेक प्राणी के ह्रदय में मौजूद है और हमें पता नही चलता.इसीबात से संबंधित एक कथा है मै आपको सुनाती हूँ:
एक आदमी था वो कही जा रहा था.रास्ते में उसे एक बहुत बड़ा तालाब दिखा.तालाब में उसे एक हार पड़ा हुआ दिखा.बहुत कीमती हार था.उस आदमी ने कहा-अरे वाह इतना कीमती हार है.मै तो इसे निकाल के ही रहूँगा और ये सोचते हुए उस आदमी ने तालाब में jump लगा दी.

Jump लगाने से पहले उसने तालाब में हाथ डाल के देखा कि शायद हाथ में हार आ जाए.लेकिन हाथ में हार आया नही और वो आदमी बहुत सकपका गया कि क्या बात है.उसके बाद उसने उस तालाब में छलांग लगा दी.गंदा-सा तालाब था.कीचड़-कीचड़ था लेकिन फिर भी उस पानी  में हार दिखाई दे रहा था.अब वो आदमी उस तालाब के पानी में नीचे तक गया.तट तक गया.यहाँ-वहाँ खोजा.खूब खोजा पर उसके हाथ में मिट्टी आयी.हार मिला नही.वो आदमी बाहर निकल आया.

बड़ा परेशान था तभी वहाँ से एक बहुत बड़े विद्वान साहब गुजरे और उन्होंने कहा-क्या बात है भई साहब आप इतने परेशान क्यों नजर आ रहे हैं.तो इन्होने उन विद्वान जी को बोला -क्या करे.देखिये न वहाँ हार दिखाई दे रहा है.मैंने बहुत कोशिश कर ली मगर मेरे हाथ में आ ही नही रहा.तो वो विद्वान थे,संत थे.सबकुछ जानते थे,समझते थे.बोले-अरे भैया तुम गलत जगह देख रहे हो.अगर तुम्हे देखना ही है तो जरा देखो.ऊपर देखो.अपने ऊपर.उस आदमी ने सोचा कि क्या बात है.ऊपर भला हार कहाँ से आएगा.हार तो नीचे दिखाई दे रहा है.तो संत ने इशारा किया कि देखो वहाँ,उस पेड़ की टहनी से टंगा हुआ है.आपको तो हार की परछाई दिख रही है बस.और जैसे ही उस आदमी ने उस हार की तरफ देखा तो देखा हाँ!हार तो टंगा है.पेड़ पर ही टंगा  है और उसने लपक कर उसे ले लिया.

बस यही स्थिति हमारी है.हार है.भगवान हमारे दिल में हैं.आत्मा हमारे शरीर में है.लेकिन हम अपने आप को नही पहचान करके,अपने आप की तरफ न देख करके सिर्फ शरीर की तरफ देख रहे हैं.यही हमारी गलती है.समझे.
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समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌ ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥(भगवद्गीता,2.17)
अर्थात् 

वो जो समस्त शरीर में व्याप्त है.उसे ही तुम अविनाशी जानो.कोई भी उस अविनाशी आत्मा को नुकसान नही पहुँचा सकता.


तो आपको पता चला कि आप आत्मा हैं.आप शरीर नही हैं.आप देह नही हैं.आप देही हैं.आप इस शरीर में रहते हैं ठीक वैसे ही जैसे कोई व्यक्ति किसी मकान में रहता है.वो मकान नही है पर वो मकान में रहता है.है न.इसीप्रकार से आप शरीर नही हैं आप शरीर में रहते हैं.अक्सर आप कहते भी हैं कि देखो न मेरी आँख में क्या हो गया.आप कहते हैं कि देखो मेरा हाथ देखो.मेरा पाँव देखो.मेरा-मेरा करते रहते हैं लेकिन कभी ये नही जान पाते कि मेरा-मेरा तो किया लेकिन मै हूँ कौन.

आप कहते हैं न कि ये देखो मेरा हाथ देखो.लेकिन हम हाथ नही हैं.ये कही-न-कही से अंदर ये भाव रहता है.तभी हम ये कहते हैं कि मेरा हाथ देखो.हम ये नही कहते हैं कि मै हाथ हूँ.अगर किसी ने हमारे हाथ पर मार दिया तो हम कहते हैं -अरे अरे मेरा हाथ तोड़ दिया.मेरा हाथ तोड़ दिया यानि कि हाथ मै नही हूँ.मै कोई अलग हूँ और ये हाथ मुझे दिया गया है.ऐसे ही जैसे कि मुझे मकान मिला है रहने के लिए.चाहे मै किराए पर रहूँ या फिर मैंने बनाया हो.कुछ भी हो.

तो वैसे ही मेरे कर्म के अनुसार,प्रकृति के गुण के अनुसार जो आत्मा ने अख्तियार किया है,अपनाया है जिस गुण को और अपने कर्मो को जिसप्रकार से किया है उन कर्मों के अनुसार उनको एक विशेष किस्म का शरीर मिला है.

और इतने सारे शरीरों में से जब आपको मनुष्य शरीर मिल जाता है तो ये जान लीजिए कि आप बहुत-बहुत सौभाग्यशाली हैं.क्यों?क्योंकि मनुष्य शरीर बहुत अर्थदम् है,बहुत अर्थपूर्ण है,मनुष्य शरीर में ही आप भगवद प्राप्ति कर सकते हैं.मनुष्य शरीर में ही आप ब्रह्म जिज्ञासा कर सकते हैं.एक मनुष्य शरीर ही आपको भवसागर से पार करा सकता है.आप कभी सोच सकते हैं कि कुत्ते-बिल्ली क्या भगवान का नाम ले पायेंगे.नही.लेकिन आप तो ले सकते हैं न.

तो आत्मा जब मनुष्य शरीर में आ जाती है तो समझ लीजिए उसके सौभाग्य का उदय हो जाता है.तो मै आपको मुबारकबाद  देती हूँ कि आप बहुत सौभाग्यशाली हैं कि आपको मनुष्य शरीर मिला है.आप अपने जीवन को धन्य कीजिये और भगवान का ध्यान कीजिये.भगवान की प्राप्ति की तरफ बढिए.
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आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और अब बारी है आपके प्रश्नों को कार्यक्रम में शामिल करने की.आपने sms के जरिये कई सारे प्रश्न हमसे पूछे हैं और कई सारी बातें भी लिखी हैं.
sms:सुशील जी दिल्ली से कहते हैं कि 
No one can destroy iron but its own rust can.similarly no one can destroy us but our own mindset can.Our thoughts can change our lives.
Reply: सुशील जी कर रहे हैं कि लोहे को कोई भी नही मिटा सकता,कोई नुकसान नही पहुँचा सकता पर उस पर जो जंग लग  जाता है उससे लोहा खत्म हो जाता है.इसीप्रकार से हमारा कोई नुकसान नही कर सकता पर हमारी बुद्धि,हमारे विचार हमें खत्म कर सकते हैं.

सही बात है अगर हम positive thinking रखेंगे,हम साकारात्मक सोच रखेंगे तो कुछ भी गलत नही होगा और सबसे बड़ी सोच ये है कि आप भगवान के साथ जुड जाए.आप भगवान की सेवा के बारे में सोचे.आप भगवान की भक्ति करने लगे.मै आपको बताती हूँ कि कभी भी,कभी भी कोई negative सोच आपको पीड़ित नही कर पायेगी क्योंकि तब आप जान जायेंगे कि जो होता है अच्छा ही होता है.ईश्वर की मर्जी से होता है और उससे कुछ भला ही होगा.
sms:कपिल गाजियाबाद से पूछते हैं कि मै भक्ति में आगे बढ़ता-बढता रुक क्यों जाता हूँ?
Reply:कपिल मुझे लगता है कि आप भक्तों का संग नही करते.आप अकेले बैठ के भक्ति करते रहते हैं और मै आपको बता दूं कि अकेले में जब आप भक्ति करेंगे तो आपकी इन्द्रियाँ आपको दूसरी तरफ खींचने की कोशिश करेंगी.माया आप पर कब्ज़ा करने की कोशिश करेगी.
लेकिन जब आप भक्तों का संग करने लगते हैं और भक्तों का संग करके भगवान के बारे में श्रवण-कीर्त्तन करने लगते हैं तो माया आप पर प्रहार नही कर पाती है,भक्तों का संग आपको बचा लेता है.आप भगवान से और,और,और अधिक जुड जाते हैं और आपकी भक्ति पुष्ट होती जाती है.बहुत पुष्ट हो जाती है,मजबूत हो जाती है.
sms:श्वेता पूछती हैं कि 
how can we do our daily work without thinking about result?
Reply:यानि हम फल के बारे में चिंतन किये वगैर अपना काम कैसे कर सकते हैं?श्वेता जी जब आप अपने काम को भगवान पर न्योछावर कर देंगी.भगवान से जोड़ देंगी तो आप फल की चिंता नही करेंगी.यानि कि तब आप सिर्फ और सिर्फ भगवान के लिए वो काम करेंगी और वो भी निष्काम भाव से.
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