Tuesday, December 14, 2010

Tuesday, November 30, 2010

Deer Park Satsang On Sunday,28th Nov, 2010 (2-4 pm) By Premdhara Parvati Rathor

श्रीमदभगवद्गीता बहुत-ही सुन्दर तरीके से भगवान ने बोली है.श्रीकृष्ण ने और जब श्रीकृष्ण ने श्रीमदभगवद्गीता का उपदेश अर्जुन को दिया तो उनका उद्देश्य सिर्फ अर्जुन को ही तारना नही था.उनका उद्देश्य था उनके माध्यम से कलयुगी जीवों का तक ये दिव्य संदेश पहुँचाना.कलयुगी जीव हमलोग जो कि वेद भाषा से अनभिज्ञ हैं.वद नही पढ़ सकते.पढेंगे तो समझ नही आएगा.टेढा-मेढा लिखा है.अलंकारिक भाषा है.तो भगवान का ये बहुत बड़ा उद्देश्य था.अर्जुन जो भगवान के परम भक्त थे.अर्जुन के माध्यम से उन्होंने दिखाया.दिखाया कि वो मोहित हो गए.वस्तुतः वो कभी मोहित हो ही नही सकते.अर्जुन कभी मोहित नही हो सकते.चिर सखा हैं भगवान के.चिर पार्षद.लेकिन तो भी मोह देखाते हैं और उस मोह के जरिये भगवान बहुत दिव्य संदेश आप तक,हम तक पहुँचाते हैं.

तो आज श्रीमदभगवद्गीता का पांचवा अध्याय और श्लोक संख्या 26.इस पर हम आज चर्चा करेंगे.बहुत-ही सुन्दर श्लोक है.
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्‌ ।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्‌ ॥(भगवद्गीता,5.26)
बहुत-ही सुन्दर मायने हैं.अर्थ है इस श्लोक का.

"जो क्रोध तथा समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हैं,जो स्वरूपसिद्द,आत्मसंयमी हैं और संसिद्धि के लिए निरंतर प्रयास करते हैं उनकी मुक्ति निकट भविष्य में सुनिश्चित है."

है न.दूर नही है.उनकी मुक्ति निकट भविष्य में सुनिश्चित है.जब हम भविष्य की बातें करते हैं तो याद रखना भविष्य जो है बहुत ही दूर की बात हो जाती है.हम ये नही सोचते हैं कल के बारे में.हम सोचते हैं कि आज से दस साल बाद ये हो.बीस साल बाद हमारा ये हो जाए,वो हो जाए.उसके लिए अभी से प्रयास करना होगा.ये करना होगा,वो करना होगा.

लेकिन भगवान आपको बता रहे हैं कि आपको जो अनमोल खजाना मिलेगा वो निकट भविष्य में ही मिल जाएगा.लेकिन conditions हैं.शर्त्त है.यहाँ भगवान बता रहे हैं कि हम कैसे शुद्ध होंगे तो हमें ये अनमोल खजाना मिलेगा.भगवान कहते हैं
कामक्रोधवियुक्तानां 
जो क्रोध और समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हो.आपको ये तो पता ही होगा?क्या?कि क्रोध कैसे होता है.क्रोध होता है जब हमारी कामनाएं पूर्ण नही होती है.

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥(भगवद्गीता, 2.62)
तो इसतरह से क्रोध उत्पन्न होता है.कामनाओं से.भगवान कहते हैं कि जो समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित है.अगर आपके पास भौतिक इच्छाएं रहेंगी ही नही तो इसका मतलब है कि क्रोध भी नही रहेगा.भगवान ने दो बातें कही-समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित है और क्रोध से भी रहित है.समझ आ गई बात.लेकिन अगर आप समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हो गए तो क्रोध से automatically रहित हो जाओगे.

लेकिन बाबजूद इसके कई बार ऐसा होता है कि लोग दिखाते हैं कि हमें कोई भौतिक इच्छा नही है लेकिन अंदर से मन भौतिक इच्छाओं का चिंतन करता है.उन विषयों का चिंतन करता है जिसमे हमारी इन्द्रियाँ रत रहा करती थी.आज हमने so called संन्यास ले लिया.आज हमने वो सन छोड़ दिया.लेकिन क्योंकि इन्द्रियों को अभी तक वो स्वाद याद है.भूला नही है.
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते ।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥(भगवद्गीता,2.67)
ये इन्द्रियाँ इतनी विचरणशील हैं ,इतनी बलवान हैं कि आपको पकड करके वापस वहाँ लाकर के पटकेंगी.इसीलिए भगवान ने यहाँ बोला है कि क्रोध से भी रहित होना होगा.भौतिक इच्छाओं से रहित होगे तो automatically क्रोध से रहित होगे.लेकिन फिर भी भौतिक इच्छाओं का चिंतन भी आपने कर लिया.कही से चिंतन.हम ये किया करते थे.

आज मैंने शराब पीनी छोड़ दी है लेकिन पता है जब हम पिया करते थे तो साथ में ये रखते थे,वो रखते थे.पाँच ये item,छः वो item.आपने अगर चिंतन भी कर लिया तो वो भी एक पाप है.यानि कि उस भौतिक इच्छा की चिंगारी हमारे अंदर कहीं दबी हुई है,no. 1.No2 इच्छा तो अभी भी है.चाहे आज आप वो नही करते पर कही-न-कही से वो चीज आपको आकर्षित करती है.आप ये नही कहते कि थू मै तुम्हारा नाम नही लूंगा.तुम्हे देखूंगा नही.तुम्हारे बारे में सोचूंगा नही.आप ऐसा कोई संकल्प नही करते. आप सिर्फ भौतिक इच्छाओं को छोड़ भर देते हैं.लेकिन भौतिक इच्छाएं आपको छोडती हैं भला.नही वो आपको पकडे रहती है और आप दुबारा कई बार मुड के देखते हो अपने इस संन्यास के सफर में.

संन्यास ये नही कि आपने कोई वस्त्र धारण कर लिए गेडुये.संन्यास मतलब अंदर का संन्यास.अंदर से आप विमुक्त हो.जैसे राजा जनक थे और राजा भरत कह लीजिए.जब भगवान श्रीरामचन्द्र चले गए वन में तो राजा भरत के सिर पर राजगद्दी का बोझ आ पड़ा क्योंकि भाई की आज्ञा थी.वो नही चाहते थे अपने लिए.मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान ने मर्यादा सिखाई तो उनके भाइयों में मर्यादा न हो,ये तो possible ही नही था.वो अपने लिए नही चाहते थे.लेकिन तो भी राजा भरत ने अपने राज-कार्यों का निर्वाह किया.वो आते थे और आ करके बेशक वहाँ पर खडाऊं रखी रहती थी भगवान की.भगवान की खडाऊं लाये थे न.उसको सिंहासन पर रखे थे लेकिन बगल में बैठ के वो बकायदा राजकाज चलाते थे.है न.सब को दण्डित भी करते थे.इनाम भी देते थे.जिसको जो मिलना था.सब कुछ करते थे.महल में भी रहते थे औत फिर उसके बाद महल से कुटिया में भी रहने लगे कि नही,नही यहाँ नही वहाँ सोउंगा.

तो ये क्या है?युक्त वैराग्य है.आप अपना काम कर रहे हैं.सब चीज कर रहे हैं.पर उसमे डूबेंगे नही.

तो भगवान ने कहा कि क्रोध को छोडना होगा और छोडनी होगी कामनाएं.क्रोध को मगर छोडना बहुत जरूरी है कामनाओं को छोडने के साथ-साथ.जब क्रोध आएगा तो क्या करोगे?आपके पास तो बहुत अच्छा उपाय है.कहोगे
"हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे |
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||"
भगवान का दिव्य नाम.जब भी आप ये नाम लेंगे क्रोध काफूर की तरह उड़ जाएगा.पास नही फटक सकता.हो ही नही सकता कि आपको क्रोध आये और आपने नाम लिया तो भी किसी पे क्रोध आएगा.आप सचेत हो जायेंगे.क्रोध नही आएगा.

तो भगवान कहते हैं कि दो item ये हटा दे-  भौतिक इच्छा और क्रोध.आगे क्या है जो स्वरुपसिद्ध हो.बहुत important बात है ये स्वरुपसिद्ध होना.ये छोटा-सा शब्द दिखता है स्वरुपसिद्ध लेकिन इसके पीछे,यहाँ तक पहुँचने में अथक प्रयास है.अथक प्रयास.

देखिये जब starting में इंसान भक्ति में आता है तो वो भगवान को अपनी तरह एक पुरुष के रूप में नही समझ पाता.वो यह कल्पना नही कर पाता कि भगवान भी एक व्यक्ति होंगे.अगर किसी को कहा जाता है कि भगवान जैसे तुम हो,जैसे मै हूँ वैसे ही एक व्यक्ति हैं तो वो मान नही पाते.भगवान भी हँसते हैं,बोलते हैं.उन्हें भी पसंद है,नापसंद है.सब कुछ है भगवान में.सारी-की-सारी क्रिया-प्रतिक्रिया भगवान में है.क्योंकि हम इतने तुच्छ हैं इसलिए हम सोचते हैं कि हमारे जैसे कैसे हो गए भगवान.आपकी तरह नही हैं पर एक व्यक्ति हैं.आपकी जड़ इन्द्रियाँ हैं और पंचभूत तत्त्वों से बना आपका शरीर है.है न.
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।(भगवद्गीता,7.4)
ये सब कुछ आपके अंदर है लेकिन भगवान इससे ऊपर हैं.ये भगवान के पास नही है.भगवान की सारी इन्द्रियाँ दिव्य हैं.भगवान के शरीर में,इन्द्रियों में और आत्मा में कोई फर्क नही है.सब एक हैं.
सत् चित् आनंद सचिदानंद.

भगवान आपकी तरह एक व्यक्ति हैं.कोई ये कहे तो हमें बड़ा अजीब लगेगा.तो हम क्या करते हैं.जब हम starting में भक्ति में जुडते हैं तो हम सोचते हैं कि भगवान एक शक्ति हैं.क्या यही सोचते हैं न?कई लोगों से मैंने बात की.जब मै बात करती हूँ तो वो कहते हैं कि मै ये तो नही जानता कि भगवान का नाम क्या है.but i believe भगवान हैं.एक शक्ति है कोई जो सब चला रही है.मैंने कहा कि शक्ति है तो फिर शक्तिमान भी होगा.शक्ति है तो शक्ति का स्रोत भी तो होगा न कोई.शक्ति ही तो नही चला रही.ये कैसे हो सकता है कि आपके पास शक्ति भी है और आपके पास आकार भी है और भगवान शक्ति हैं पर उनके पास आकार नही है.निराकार हैं.क्या हमारे भगवान इतने बेचारे हो गए.वो सबको आकार दे रहे हैं और वो बेचारे निराकार हो जायेंगे.not possible.सुन्दर,दिव्य आकार हैं उनका.हम उनसे परिचित नही हो पाते.हमारे शास्त्र बताते हैं पर हम परिचित होना नही चाहते क्योंकि हम सोचते हैं कि अगर अपनी तरह का सोच लिया तो जो हमारे अंदर कमजोरियां हैं वो भगवान में भी नजर आयेंगी.इसीलिए उनको कहते हैं कि नही नही वो एक light हैं.हम जायेंगे.जाकर के उनकी पूजा कर लेंगे.वो तो सर्वव्यापी हैं.वो सर्वव्यापी हैं पर कैसे?किस तरह?अपनी शक्तियों के द्वारा.

जैसे कि सूर्य आपको दिखता है लेकिन यहाँ भी मौजूद है धूप की रश्मियों द्वारा,किरणों द्वारा.लेकिन अगर आप कहेंगे कि ये सूरज नही है.तो ये सच है लेकिन ये सूरज की ही शक्ति है.ये जो किरणे हैं वो सूरज से ही निकली हैं.सूरज नही होगा तो ये भी नही होंगी.है बात कि नही सच.बताईये.सूरज नही तो किरणे नही.अब आप कहो कि नही ऐसा कैसे हो सकता है.कोई उत्तरी ध्रुव में रहनेवाला व्यक्ति कहे कि मेरे यहाँ तो सूरज उगता ही नही.सूरज नही है.आपको दिखता है.आप कह रहे हैं कि है,है,है.मै देख रहा हूँ.उसने कहा कि कहाँ है?कहाँ है.मै तो देख ही नही रहा हूँ.सूरज है पर एक को दिखता है और दूसरे को नही दिखता.आप समझ रहे हैं.

तो जो पीछे हैं.उस पर्वत के पीछे हैं जिसने सूरज को ढंका हुआ है,उसे सूरज नही दिखता है.जो आगे हैं उसे दिखता है.पर्वत क्या है?माया.माया के दीवार के पीछे बैठे हैं.दीवार के साये में बैठे हैं तो फिर साया ही दिखेगा.सूरज नही दिखेगा.भगवान नही दिखेंगे.

तो भगवान खुद सूरज हैं.आप समझने की कोशिश कीजिये इस दृष्टान्त से. जैसे कि आप कहेंगे कि माताजी छः बजे अँधेरा हो जाएगा यानि सूरज चले जायेंगे.अँधेरा हो जाएगा सूरज चले जायेंगे.अब आप मुझे बताओ अँधेरा हो जाएगा इसलिए सूरज चले जायेंगे या सूरज चले जायेंगे इसलिए अँधेरा हो जाएगा.सूरज चला जाएगा इसलिए अँधेरा हो जाएगा न.इसीप्रकार से जहाँ भगवान होते हैं वहाँ माया नही होती.माया है अंधकार.जहाँ भगवान होते हैं वहाँ माया नही होती.जहाँ सूरज है वहाँ अंधकार नही होता.बड़े गौर से समझना.जहाँ कृष्ण हैं वहाँ माया नही होगी क्योंकि माया है अंधकार.जहाँ कृष्ण है वहाँ सूरज है इसलिए अंधकार का सवाल ही नही उठता.

इसीलिए कहा जाता है कि माया कृष्ण को छू नही पाती.वैसे ही जैसे कि अंधकार सूरज को छू नही पाता.सूरज निकल गया अंधकार हो गया.अँधेरे में बैठे हो और इंतजार कर रहे हो.अब आप कितनी टॉर्च जला लो,flood light जला लो ऐसा साफ़ नजर नही आ सकता कि आप दूर-दूर तक एक-एक item साफ़ देख लो जैसे सूरज की रोशनी में नजर आता है.ये भगवान का बल्ब है.आप समझ रहे हो.इसीप्रकार आप सोचे कि मै माया से लड़ाई कर लूंगा.मै माया को परास्त कर दूंगा.मै अपनी भौतिक इच्छाएं छोड़ दूंगा.इच्छाओं की तो बात है छोड़ देते हैं.ये ही तो नही खाना है छोड़ देते हैं लेकिन मै आपको बताती हूँ कि छोडते जाओ पर दो साल के अंदर फिर से शुरू हो जायेंगी.क्यों शुरू हो जाएगा?क्योंकि आपकी इन्द्रियाँ demanding हैं.demanding हैं.उन्होंने आपके गले में फंदा डाला हुआ है.

लेकिन अगर आप अपनी इन्द्रियों को कहोगे कि नही कोई बात नही तुम देखे बिना नही रहोगे.तुम्हे देखना है तो मै तुम्हे बहुत सुन्दर जगह देती हूँ देखने को.भगवान को देखो.कृष्ण को.उनकी प्रतिमा को देखो.उनके सुन्दर स्वरुप को देखो.शास्त्रों को देखो.पढ़ो.नाक को बोलो कि भगवान को अर्पित जो तुलसी है उसे सूँघो.


Monday, November 22, 2010

Deer Park Satsang On Sunday,21st Nov, 2010 (2-4 pm) By Premdhara Parvati Rathor


बड़ा सुन्दर श्लोक है जिसपर आज हम चर्चा करेंगे.भगवद्गीता, अध्याय तीन,श्लोक 37 :

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥


आपको तो पता है कि अर्जुन जब महाभारत युद्ध के लिए आगे आये तो बहुत घबराए हुए थे.जब उन्होंने अपने बंधु-बांधवों को देखा तो बहुत घबरा गए.तो अर्जुन खड़े हैं और उन्होंने कृष्ण से कहा कि मै युद्ध नही करूँगा.फिर भगवान ने बहुत सारा उपदेश दिया और बहुत सारी बातें बतायी.और उन बातों के दौरान भगवान ने ये बताया था कि अगर आप अपने नियत कर्मों को दोषपूर्ण ढंग से भी करते हो तो भी वो दूसरों के कर्मों को करने की अपेक्षा अधिक श्रेयस्कर है और दूसरों के जो नियत कर्म है अगर आप उसे करते हैं तो उसमे पाप है.

पाप से ही अर्जुन ने पूछा कि भगवान जितने भी लोग हैं वो विद्वान दिखते हैं.सबों को बुद्धि दी होती है भगवान ने तो फिर लोग पाप करते क्यों हैं.ये जानते हुए भी कि पाप करने से आपको उसकी सजा मिलेगी.चोरी करने से आप पकडे जायेंगे तो सजा मिलेगी और एक-न-एक दिन पकडे जायेंगे.प्रवृत्ति रहेगी तो एक-न-एक दिन तो आप धर ही लिए जाओगे.ये सब जानते हुए भी लोग पाप क्यों करते हैं.

तो भगवान ने बताया.बड़ा-ही सुन्दर श्लोक है.

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥


हे अर्जुन इसका कारण रजोगुण के संपर्क से उत्पन्न काम है,जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है.

तो क्या सबसे बड़ा शत्रु है? काम.काम है सबसे बड़ा शत्रु.काम की वजह से ही क्रोध होता है.काम होगा नही तो क्रोध भी होगा नही.तो क्रोध का मूल काम है.लोग कहते हैं कि हमें इतना क्रोध क्यों आता है.तो भगवान कहते हैं कि

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥


काम से क्रोध का जन्म होता है.पहले भी भगवान ने बताया और यहाँ भी बताया.ये काम जो है बड़ा ही भयंकर है.तो भगवान कहते हैं कि काम उत्पन्न ही रजोगुण से होता है.अगर कोई आदमी ये कहे कि नही ये प्रकृति के गुण है वो मुझे नही असर कर पायेंगे.मै निर्गुण हो जाऊंगा.नही ये possible नही है.आप ये कह रहे हो कि मै पानी में चौबीस घंटे रहूँगा और मै गीला नही होऊंगा.अगर आप कहोगे कि मै प्रकृति के गुण से छुआ नही जाऊंगा,रजोगुण,सतोगुण,तमोगुण तो ये possible नही है.गुण तो आप पर attack करेंगे ही.यहाँ आने का मतलब ही है -गुण में आना.है न.

और आज की तारीख में अगर आप देखे तो रजोगुण ही ज्यादा दिखेगा.mode of passion में लोग जिए जा रहे हैं.सकाम कर्म.रजोगुण क्या होता है?सकाम कर्म.ऐसा कर्म जिसका आप फल चाहते हैं.है न.और फल भी ऐसा कि प्रतिकूल.अनुकूल फल चाहते हैं.मेरे अनुकूल हो.मुझे suit करना चाहिए तो वो मेरे लायक काम है.तो जब हम फलकांक्षी हो जाते है और तब हम कर्म करते हैं तो हम रजोगुणी कहलाये जाते हैं.उसमे हम बहुत उद्यम करते हैं,बहुत मेहनत करते हैं extra.extra कमाने के लिए.extra luxury of life विलासपूर्ण जीवन जीने के लिए,बहुत मेहनत करते हैं.

हम तो करते ही है और हमारे अब बच्चे पैदा होते हैं तो हम सोच लेते हैं कि इसको क्या बनाना है.उसके लिए कोई लाइन सोच लेते हैं कि उससे ये मेहनत कराना है.उसे शुरू से ही कराना है.बड़ा-ही भयंकर scenario है कि सभी रजोगुणी हैं.रजोगुणी हैं सभी तो सभी कामी हैं.प्रतिफल क्या है काम,कामनाएं और कामनाओं का कोई अंत नही होता.कामनाएं कभी सीमित नही होती.

समुद्र का शायद कोई अंत है पर कामनाओं का कोई अंत नही.

जब कामनाएँ पूरी नही होती,जब आपकी इच्छाएं अपूर्ण रह जाती है तो आपको तो पता नही चलता.आप बोल देते हो कि चलो मैंने compromise कर लिया.मगर कही से अंदर in the back of mind वो दर्द सालता रहता है.और वो जो दर्द है आपको वो भी आभास नही होता कि आपको दर्द साल रहा है.बस कभी-कभी विचार उस तरफ जा रहा है और अचानक ही बच्चा कुछ गिरा दे तो अपने एक लगाया उसे खींच के.क्यों?क्योंकि आप अपनी कामनाओं के अपूर्ण होने से चिंतित है मगर आप कह रहे हैं कि नही कोई फर्क नही पड़ता.लेकिन पड़ रहा है.फर्क पड़ रहा है क्योंकि आपने रजोगुण ही अपने आप में develop किया है.विकसित किया है.तो पड़ेगा फर्क.और वही पर आप बच्चों पर या किसी पर गुस्सा निकाल दोगे.क्यों?क्योंकि रजोगुण आपने अपने अंदर पूरी तरह से भरा हुआ है.

वो भगवान ने नही भरा.कही आप ये कहे कि भगवान ने तीनों गुण बनाए तो उसमे हमारा क्या दोष है.भगवान तो कहते हैं कि
निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन । (भगवद्गीता ,2.45)
तीन गुणों से ऊपर उठो अर्जुन.

वो तो अर्जुन के माध्यम से आपको भी कह रहे हैं कि तीनों गुणों से ऊपर उठो.मेरी भक्ति करो और तीनों गुणों से ऊपर उठ जाओ.पर हम उसे अंगीकार ही नही करते.स्वीकार ही नही करते.कृष्ण को स्वीकार नही करते और सब कुछ स्वीकार करते हैं.कृष्ण को भी स्वीकार करते हैं तो मामला गडबड है.तब गुण तो आयेंगे ही.

तो भगवान कहते हैं कि जब काम पूर्ण नही होता तो क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध से आप देख लीजिए-दुनिया में जितनी लड़ाइयां हुई हैं घर से लेकर के नगर,नगर से ले करके देश तक,देश से ले करके विश्व तक,उसके मूल में क्या है ?आप बताओ क्या है?काम,लोभ,क्रोध है.और क्या है?भगवान कहते हैं:

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌॥ (भगवद्गीता,16.21)


काम,क्रोध,लोभ.ये क्या हैं?नरक के द्वार हैं जो आत्मा का विनाश कर देते हैं.
ये तीनों ही भयंकर हैं पर उनमे सबसे भयंकर है काम.अगर हम काम के वशीभूत नही होते तो क्रोध भी नही होता,लोभ भी नही होता.लोभ कहाँ से होता है?कामनाएं हैं.उसे स्वीकार करने के लिए,किसी भी तरह उसे अपने अधीन करने के लिए ,हमारी कामनाएं पूरी हो इससे लोभ जागृत होता है.है कि नही.और नही पूरी हो तो क्रोध जागृत होता है.तीनो ही तरह से फंसे हुए हैं हम.

भगवान कहते हैं कि यही संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है.

अगर कामना न हो तो कोई चोरी क्यों करे.सोचिये.अगर कोई खेती करता है और भगवान का भजन करता है तो इतना तो कमा ही लेता है कि अपना घर-बार चला सके.लेकिन फिल्मे गाँव में भी पहुँच गयी हैं.तो फिल्मों में दिखता है.फिल्मो में क्या दिखता है?अगर गाँव का भी कोई दृश्य दिखा रहा है तो बड़ा ही affluent family दिखा रहा है.कई बड़े-बड़े कमरे हैं,बड़ा-सा दालान है,पीछे बागान है,आगे बागान है.इतना ऐश्वर्य और वैभव दिखा रहा है कि वो बेचारा गावं के corner में बैठा है वो भी देख रहा है और सोच रहा है कि ऐसा मेरा क्यों नही हो सकता.आप समझ रहे हैं.भाई ये भी तो किसान है और मै भी किसान हूँ.

फिर काम जन्मा.काम जन्मा तो उसने सोचा कि भाई यहाँ तो बात बनेगी नही.तुम लोग यही रहो.तुम खेती करना और मै जाता हूँ मजदूरी करने.दिल्ली.पंजाब,हरियाणा कही भी.वहाँ जा के कमाऊंगा और यहाँ भेजूंगा तो बड़ा-बड़ा हमारा खेत होता चला जाएगा.और हमारी भी एक दिन सारी कामनाएं पूरी होंगी.

तो परिवार का बिछोह  हो गया.फिर उसके बाद घटना क्या होती है?घटना,ललिता पार्क जैसी घटनाएं हो जाती हैं जिसमे इतने मजदूर मर जाते हैं बेचारे.तो यही हालत है.आये थे पूरा करने काम को.ये नही कि वहाँ नही था.यहाँ ही है ये नही है.लेकिन कामनाएं अधिक थी और कामनाओं को पूर्ण करने का जो जज्बात था वो बड़ा तगरा था तो यहाँ आकर फंसे और फिर वापस कभी न जा पाए.ऐसा भी हो जाता है कई बार.

तो भगवान यही कह रहे हैं कि यही काम जो है सर्वभक्षी शत्रु है.तो देखिये भगवान ने आपको बता दिया. diagnosis हो गया,पता चला गया शत्रु है.अब मान लो अगर आपको पता चल जाए कि आपका शत्रु सामने है और वो आपको कभी भी नुक्सान कर सकता है.कभी भी.तो नीति ये कहती है कि उस शत्रु का दमन कर देना चाहिए ताकि वो आपका नुक्सान न कर पाए और दमन कैसे भी हो सकता है.प्रेम से भी उसे आप दोस्त बना सकते हैं.या अगर आप रजोगुणी,तमोगुणी हैं तो उसे मरवा भी सकते हैं.है कि नही.यदि आप भगवान के भक्त हैं तो आप कहते हैं कि इसे भक्त ही बना दो फिर शत्रु रहेगा कहाँ.मेरा दोस्त बन जाएगा.है कि नही.भक्तों का संग प्राप्त हो जायेगा.

तो  शत्रु का दमन करने के लिए ये जरूरी है कि पहले ये पता चले शत्रु है कहाँ.काम को समाप्त करने के लिए ये जरूरी है कि पहले ये पता चले काम रहता कहाँ है.कहाँ हैं हमारी कामनाएं?कहाँ रहती है?कहाँ वास करती हैं?तो भगवान इसके बारे में बताते हैं कि
आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा ।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥
बहुत सुन्दर बात कहते हैं भगवान.अभी शत्रु के बारे में कि शत्रु है कहाँ.भगवान कहते हैं कि जो जीवात्मा है वो है तो क्या?ज्ञानमय.क्या है?ज्ञानमय है.लेकिन उसका जो ज्ञान है वो काम की विभिन्न मात्राओं द्वारा ढक दिया जाता है.अब जरूरी नही है कि हर व्यक्ति में एक ही प्रकार की कामनाएं हो.हो सकता है कि जो गरीब आदमी है जिसके पास एक साइकिल है वो कहेगा कि एक स्कूटर से काम चल जाएगा.हो सकता है कामना इतनी-सी हो.दूसरा जिसके पास गाड़ी है वो कहेगा ये गाड़ी अब बेकार हो गई है.अपने को मर्सिडीज ही चाहिए.बहुत बड़ी कामना हो गई.समझ रहे हैं.तो कामनाओं की विभिन्न स्तर,विभिन्न मात्राएं और वो कामनाओं की विभिन्न मात्राएं हमारे ज्ञान को क्या कर लेती हैं?आवृत्त,आच्छादित,cover कर देती है.

आप ज्ञानी हो पर आपका ज्ञान किसी काम का नही रहता क्योंकि कामना उस पर कब्ज़ा जमा लेती है.तो भगवान कहते हैं कि ये क्या होता है.नित्य होता है.ये नही कि आज कामना ने आपकी चेतना पर कब्ज़ा जमाया, अभी सो जाओगे और सुबह उठोगे तो ऐसा नही होगा.सोये रहोगे तो भी वो वही जमी रहेगी.और गाड़ी हो जायेगी,और गाड़ी हो जायेगी.आप पागल हो जाओगे उस कामना को पूर्ण करने के लिए.है न.कैसे करूँ,कैसे करूँ.

जीवन जो इतना अनमोल है.इतना अनमोल मनुष्य जीवन वो यही सोचने में बीत जाए कि अपने इस काम को कैसे पूरी करूँ.फिर दूसरी शुरू हो जाये,इसे कैसे पूरी करूँ,फिर तीसरी शुरू हो जाए.तो ये एक बाहर बड़ी कंजूसी है क्योंकि मनुष्य जीवन कामनाओं को पूरा करने के लिए नही मिला.मनुष्य जीवन मिला है भजन करने के लिए.भजन ही करने को मनुष्य जीवन मिला है.और ये यही एक बात सब लोग नही जानते.ये बड़े दुःख की बात है.बड़े-बड़े colleges,बड़े-बड़ी सभागार,बड़े-बड़े governmental जो institute हैं को भी नही जनता.कही नही जानता.

भगवान का भजन ही एकमात्र तात्पर्य है एक मनुष्य जीवन का ये नही पता.

लेकिन अगर हम अपना सम्पूर्ण जीवन कामों को पूर्ण करने में लगा देंगे तो क्या होगा?क्या होगा?एक-न-एक दिन समाप्ति हो जायेगी.

इंसान चला जाएगा मगर क्या कहते हैं:
आशा रही,तृष्णा रही,मर-मर गए शरीर 

शरीर मरते चले जाते हैं पर आशा का जो बंधन है वो नही छूटता.तृष्णा .पहले तो तृष्णा जन्म लेती है फिर आशा कि ये एक-न-एक दिन पूरी करके रहेगे.तो भगवान कहते हैं कि

अग्नि के समान ये जलता रहता है काम.

जलता है.ये इसका गुण है.और ये कभी तुष्ट नही होता.ये दूसरा अवगुण है.आपने सोच लिया कि चलो कोई नही एक मकान की तो बात है.दुकान की तो बात है फिर मै बहुत खुश रहूँगा.तो भगवान हँसते हैं.कहते हैं कि  न तुम खुश नही रह सकते.पहले तो ये दुखालायम है.यहाँ खुशी है ही नही.अब तू मकान कर ले या कर ले दुकान.कुछ difference होगा.ये नही कि नही होगा.पर उसके बाद छः महीने से पहले ही सब बराबर हो जाएगा.शायद उससे बहुत पहले ही कामना  एक और सिर उठा देगी.दुकान में ये नही है.शटर उस तरह का नही पड़ा.ताला ऐसा लगाना था.अभी अगर मेरे पास वो भी होता CC TV.वो होता तो कितना अच्छा होता.you know kind of.बढ़ती जायेंगी,बढती जायेंगी.उस दुकान के ही अंदर में बड़ी कामनाएं ,छोटी-छोटी कामनाएं जन्म ले लेंगी.आप उन्ही को पूरा करने में लग जाओगे.

और फिर आपसे कहेंगे कि भजन कर लो तो आप कहेंगे कि time नही है.दुकान कौन करेगा.है न.तो ये बड़ा दिक्कत है.जबकि मै आपको बताती हूँ कि भजन ऐसी चीज नही है जिसके लिए आपको सब कुछ छोड़ देना पड़े.भजन तो बड़ी आसानी से होता है पर उसके लिए अभ्यास करना होता है.जैसे कि मै आपको एक example देती हूँ:

एक व्यक्ति थे.वो इतने भजन में पक्के थे,इतने भजन में पक्के थे.वो कुछ नही करते थे न पूजा,न पाठ.वो सिर्फ माला लेते थे और हरे कृष्ण महामंत्र भजते रहते थे.और इतना ध्यान से भजते थे.इतना बोलते थे,इतना बोलते थे कि जब वो माला रख देते थे तो भी उनका मुँह चलता था.जब वो सो जाते थे तब भी उनके बोल चलते रहते थे.अगर वहाँ तक पहुँच जाओगे कि आप सो रहे हो तो भी आप aware हो कि हाँ मेरे मुँह पर नाम चल रहा है.तो तो फिर चिंता करने कि बात ही नही है.फिर मौत कैसे भी आ जाए.नाम तो चल रहा है न.बात समझ में आ गयी.यही है.ये है अपना test.वहाँ तक पहुँचाना है कि एक क्षण भी खाली नही हो कृष्ण नाम से.इसका मतलब ये थोड़े-ही है कि वो सेठ जी काम नही करते थे.करते थे.

तो भगवान कहते हैं कि ये आग के समान जलता है .आपने कभी में पेट्रोल डाला है.घी डाला है.कभी यज्ञ किये होंगे अपने घर छोटे-छोटे.तो पंडित जी क्या करते हैं.जब आग जलता है तो उसमे बहुत सारा घी डाल देते हैं कि और अच्छे से आग जले.और भडके.तो जितनी कामनाओं की पूर्त्ति होती है,इसका मतलब वो आग में घी के समान है.और कामनाएं बढ़ जाती है.और बढ़ जाते हैं.अगर कोई पूरी न हो तो.मुझे एक बच्चे की बात याद आती है.

एक बच्चा था.उसको सजने-संवरने का बहुत शौक था.बच्ची को.बहुत सजती थी.संवारती थे.एक बार उसको एक skin disease हो गया. skin disease हो गया तो वो कुरूप होती चली गयी.उसको ऐसा लगा कि मै कुरूप हूँ पर थी नही.उसे लगा कि मै शायद कुरूप हूँ.तो उसने बोला कि कई बार मेरा मन विरक्त हो जाता है कि क्या body को सजाना.आप समझ रहे हो.क्या Body को सजाना.तो प्रतिकूल परिस्थिति हुई तो उसका मन विरक्त हो गया.आप समझ रहे हैं कामनाएं.उसे लगा कि सब बेकार है.

लेकिन मै ये कहूँगी कि ये तो बहुत अच्छा हुआ.ये तो अभी से संभल गयी नही तो तुम भी सोचते कि गोरा कने वाले क्रीम लगाए.और पूरा जीवन जो है अपने माँ-बाप का या अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन्ही चीजों में आप बर्बाद कर देते.है न.

तो कामनाएं जो हैं वो बड़ा ही भयंकर रूप दिखाती है और भगवान ने यही बात यहाँ पर बतायी है कि अग्नि की तरह ये जलती रहती है और कभी भी संतुष्ट नही होती.और आगे बताते हैं भगवान कि कामनाएं रहती कहाँ हैं.ये बहुत important है.ये बड़े ही ध्यान से सुनो.कामनाएं रहती किधर हैं.यानि कि जब तक आपको ये नही पता चलेगा कि आपके शत्रु रहते किधर हैं आप उन्हें मारोगे कैसे और काम आपका सबसे बड़ा शत्रु है कृष्ण कह चुके हैं.

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥(भगवद्गीता,3.47)


कहाँ रहते हैं.तो कृष्ण कहते हैं

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते ।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्‌ ॥(भगवद्गीता,3.40)


इन्द्रियाँ,मन और बुद्धि इस काम के निवासस्थान हैं.

यानि एक चीज clear हो गयी कि आत्मा में काम नही रहता.आत्मा जो भगवान का सचिदानंद अंश है वो काम का नही हो सकता.यानि आत्मा ऊपर है.
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥

आत्मा इन्द्रियाँ,मन,बुद्धि इन सबसे बहुत ऊपर है.बहुत ऊपर उसका स्थान है.तो ये अच्छी बात हो गई कि जो असली controller है वो इससे आवृत्त नही होता.लेकिन देखिये आगे क्या गडबड होती है.इन्द्रियाँ ,काम यहाँ है.इन्द्रियों में .गौर करिये.इन्द्रियाँ क्या करती हैं अपने-अपने विषय के पीछे-पीछे भागती रहती हैं.अब आप गौर करोगे.मै सोचती हूँ इस बारे में.हमारी कितनी ज्ञान इन्द्रियाँ हैं.पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ हैं. और उनमे से चार ज्ञान इन्द्रियाँ किधर हैं.सिर्फ इतने से भाग में .ये सिर इसमे ज्ञान इन्द्रियाँ भरी पडी हैं.just imagine .सोचो.दो आँखें,नाक,कान,जिह्वा ,जिह्वा जो कि आपको स्वाद का पता बताती है ये ज्ञान इंद्रि हैं.आँख से आप रूप का रस प्राप्त करते हो,नाक से आप गंध का रस प्राप्त करते हो,कान से शब्द जा रहे हैं.ज्ञान प्राप्त हो रहा है.त्वचा जो कि पूरी Body में है लेकिनकही आप देखना जब आपको कोमल-कोमल बच्चा दिखता है तो आप उसके गाल सहलाते हो.समझ गए मतलब वो पंचों ज्ञान इन्द्रियाँ यहाँ पर है.ठीक है न.

head is so important.और कहते भी है.हालाकि विषय दूसरा हो जाएगा फिर भी बताती हूँ.head is so important कि इसको कहा गया है कि भगवान के जो सिर का स्थान होता है उसे कहते हैं ब्राह्मण.ये तो पता है न.सिर ब्राह्मण क्योंकि इसमे सबसे बड़ी बात क्या है?thinking capacity.ये सोच सकता है.ये फैसले लेता है.ये सही-गलत का निर्णय लेता है.पेट तो सही गलत का निर्णय नही लेगा.क्या पेट सोच सकता है?क्या हाथ सोच सकता है?क्या पैर सोच सकता है?नही सोच सकता न.सोचने का काम है सिर का. 

तो आप देखेंगे हर society में चाहे ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र नाम से न हो पर thinkers हर society में होते हैं.हर समाज में होते हैं बुद्धिजीवी .हर जगह.अमेरिका में भी आप देखेंगे कि एक बड़ा जमात जो है किसका है.thinkers का,बुद्धिजीवियों  का.जो सोचते हैं.निर्णय लेते हैं.बड़े-बड़े politician भी जो निर्णय ले रहे होते हैं तो वो thinkers हैं.

उसके बाद हर society में व्यापारी हैं. businessman.हम उन्हें कहते हैं वैश्य.वो क्या हैं बनिया हैं.वैश्य जाती है.हम ऐसे बोल देते हैं क्रूर language में.वही जरा आप हाई-फाई उसमे चले जाईये वो कहेंगे मै businessman हूँ.आप समझ रहे हैं ये वैश्य हैं.भगवान कहते हैं न 
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।(भगवद्गीता,4.13)

ये जो चारों वर्ण हैं वो मैंने बनाया है.तो आप कहाँ से बच सकते हो.अमेरिका में भी ये चारों वर्ण हैं.है कि नही.

फिर उसके बाद है हाथ.भगवान के जो हाथ हैं वो किस चीज के परिचायक हैं.क्षत्रिय के.हर जगह देखिये आप military होती है कि नही होती.क्या अमेरिका ये तो नही कह देता कि हम क्षत्रिय नही है इसलिए हम military नही रखेंगे.बड़े-बड़े देश.छोटे से लेकर बड़े तक सब जगह अपनी फ़ौज होती है.है कि नही.

और उसके बाद शूद्र यानि कि जो हाथों का काम करता है.लुहार वगैरह हो गए.हाथ से जो भी काम करते हैं.और हर society मे होते हैं . हर समाज में आपको मिलेंगे.ठीक है न.बुटीक होंगे बड़े-बड़े लेकिन वो हाथ से काम करते हैं.

तो ये चार चीजें भगवान ने बनाई.वही मै आपको बता रही थी कि ये सिर जो है सबसे important है.अब इसका मतलब ये नही है कि पैर important नही है.अगर आपको यहाँ से उठकर वहाँ जाना है तो पैर ही से जाईयेगा.सिर से नही चलिएगा.जाईयेगा क्या?सिर से तो नही जा सकते न.पैर से ही जाईयेगा लेकिन अगर गर्दन कट गई तो पैर कुछ नही कर सकता.पैर नही है तो आप जी सकते हो पर अगर सिर नही है तो क्या आप जी सकते हो?पेट भी खराब है तो जी सकते हो.अगर दिमाग खराब है तो कुछ काम ही नही होगा.मनुष्य जीवन का जो उद्देश्य है वो तो भूल ही जाओ.basic काम ही नही कर सकते.अपना ही देखभाल नही कर सकते.तो ये बहुत important है कि भगवान ने पाँचों ज्ञान इन्द्रियाँ यहाँ बना दी है सिर में.है कि नही.ज्ञान इन्द्रियाँ मुख्य है.बाकी तो कर्म इन्द्रियाँ हैं.ये दो हाथ हो गए,दो पैर हो गए,गुदा,उपस्थ और ये जुबान हो गई जिससे खाते हैं.ये कर्म इन्द्रियाँ है.

तो भगवान कहते हैं भैया इन्द्रियों में ये काम रहता है.इन्द्रियाँ क्यों भागती है अपने विषयों के तरफ?काम के कारण.आँखों को सुन्दर-सुन्दर दृश्य चाहिए.कान को सुन्दर-सुन्दर शब्द सुनना है.समझ रहे हैं.कानों को और भी अच्छा-अच्छा सुनना है.नाक को और भी अच्छा सूंघना है.जुबान को और भी अच्छा taste चाहिए.

दूसरी बात फिर बोले क्या?मन.इन्द्रियों के पीछे भाग रहा है मन.ये हमारी आज की हालत है.इन्द्रियाँ जहाँ भाग रही हैं वही मन भाग रहा है.मन के पीछे इन्द्रियाँ नही भाग रही हैं.होना ये चाहिए.इन्द्रियाँ जहाँ भागना चाहती हैं मन भी वही भाग रहा है.इसलिए आत्मा को भी भगाए ले जा रहा है,बुद्धि को भी भगाए ले जा रहा है.बुद्धि भी दासी हो गई.यानि कि Boss किसी company का boss अपने सबसे नीचे काम करने वाले का गुलाम हो गया तो उस company का क्या  होगा.वो तो डूब जायेगी.है कि नही.तो boss सबको अपने काबू में रखे तब बात है न लेकिन company डूबेगी जब boss सबसे नीचे काम करनेवाले का गुलाम हो जाएगा.आत्मा जब इन्द्रियों की गुलाम हो जायेगी तो आप गए.आप डूब गए.

आज ये खाने का मन कर रहा है आप बोलोगे कि कोई जरूरत नही है खाने की.आज चाय पीने का मन कर रहा है तो चाय तो मन है हम नही पीयेंगे.आत्मा बोलेगी नही मै तो कृष्ण का अंश हूँ अगर चाय छोड़ करके कृष्ण मिल जाते हैं.मै इस मार्ग पर बढ़-चढ निकलता हूँ.मुझे दीक्षा मिल जाते है,मुझे गुरु मिल जाते हैं तो ये तो बहुत छोटी-सी कुर्बानी है.

चाय,प्याज,लहसन,मांस ये छोड़ना कौन-सी बड़ी कुर्बानी है.बताइए.जहाँ आपको इस बात कि गारंटी है कि at the end of your life,अपने देह को त्यागने के बाद आपको भगवद्धाम प्राप्त होगा.गुरु,कृष्ण प्राप्त होंगे.बोलते हैं न :

ब्रह्माण्ड भ्रमिते कौन भगवाने जीव 
गुरु कृष्ण प्रसादे पाए भक्तिलता बीज.

कि भाई ब्रह्माण्ड में जीव करोडो-करोडो वर्षों से भटक रहा है.क्यों भटक रहा है?क्योंकि उसे गुरु नही मिले.उसे कृष्ण प्रसाद नही मिला.था सब कुछ पर जब उसने बुलाया तो आपने back कर दिया.पीठ दिखा दी.अनसुना कर दिया.ignore मार दिया latest language में.जब ignore मार दिया तो भगवान ने कहा जा.भटक चौरासी लाख योनियों में.ऊपर-नीचे,ऊपर-नीचे.वही हमारे साथ हुआ इसलिए हम यहाँ पर हैं और सारे दुःख झेल रहे हैं.और वही वाली बात है कि यहाँ बैठकर लगता है कि वो सुखी है.वहाँ बैठकर लगता है कि वो सुखी है.पर आप उधर-उधर जाओ तो लगेगा वही दुखी है.सबसे ज्यादा दुखी है.आपका दुःख बहुत कम है.ठीक है.कोई गाना भी है:

लोगों का गम देखा तो अपना गम भूल गया 

ऐसा कुछ.

भगवान ने कहा है इन्द्रियाँ,मन और बुद्धि.अब आईये बुद्धि पर.बुद्धि का काम क्या है?निर्णय लेना.सही-गलत का फैसला.लेकिन बुद्धि अगर भटक जाए.सही-गलत का फैसला न कर पाए.इन्द्रियों ने उस पर अधिकार जमा रखा है.फिर बुद्धि तो बेकार है.आप तो कुछ decide कर ही नही पा रहे हैं.भाई आपकी जुबान आपको ले जा रही है मदिरालय,शराबखाना .मन भी साथ हो लिया और बुद्धि भी कहती है चलो.बीबी बोलती है सुनिए न महीने का अंत है.मेरे हाथ में पैसे नही है.मकान मालिक को किराया देना है.उस आदमी को बुद्धि है फिर भी जा रहा है.क्यों?इन्द्रियाँ ले जा रही हैं.जुबान के पीछे-पीछे जा रहा है.जुबान लटकाते हुए जा रहा है बेचारा.इन्द्रियों के पीछे मन गया.बुद्धि गई.आत्मा भी चली गई.घोर सत्यानाश हो गया.आत्मविनाश हो गया.

अब दूसरी बात.भगवान बोले कि ये जो हैं काम के निवासस्थान हैं.सबसे ज्यादा काम आपका रहता है इन्द्रियों में,फिर मन में,फिर बुद्धि में.इनके द्वारा ये काम जीवात्मा के वास्तविक ज्ञान को ढंककर उसे मोहित बना देता है.नचा देता है.नचा.भगवान बोलते हैं न.मुझे बड़ी हँसी आती है कृष्णा जब बोलते हैं.बोलते हैं.
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥(भगवद्गीता,18.61)
आपने कभी वो देखा है गोल-सा झूला.देखा है.उसे क्या कहते हैं.giant wheel .उसमे लोगों को देखा होगा बैठे हुए.उसके बीच में एक आदमी होता है.वो क्या करता है.वो बीच में होता है.वो आदमी नही घूम रहा होता है.क्या घूम रहा है.wheel घूम रहा है.उसमे जो सवार है वो घूम रहा है.बीच में वो तेज कर देगा और सारे बच्चे चिल्लाने लगेंगे अरे कम करो,कम करो.समझ रहे हैं आप.कोई आँख बंद करके बैठ है.कोई कुछ करके.मुझे वही याद आ जाता है जब कृष्ण कहते हैं कि
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।


भगवान सभी लोगों के ह्रदय में बैठे हुए हैं.
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥
माया का जो यन्त्र है उसपर मैंने सब को बिठा दिया है क्योंकि आपने माँगा था कि मुझे बैठना है.बच्चे को कोई जबरदस्ती नही बिठाया झूले पर.बच्चे ने बोला कि मुझे जाना है,जाना है,जाना है.तो बाप ने बोला कि चल झूल ले,बैठ जा.तो भगवान ने बिठा दिया माया के यंत्र में.
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥
यानि मै घुमा रहा हूँ.बीच में जो आदमी है वो कृष्णा हैं और सबके ह्रदय में बैठे हैं.देख रहे हैं कि कौन चिल्ला रहा है,किसको दुःख हो रहा है और कौन है जो झूले से उतरना चाहता है क्योंकि झूले से उतरने कि इच्छा होगी तभी तो उतारेंगे.कोई मजा ले रहा है,कोई चिल्ला रहा है.जो चिल्ला रहा है कि बहुत दुखालायम है,अशाश्वत है,प्रभु यहाँ बहुत दुःख है,प्रभु मै आपके नाम की माला करता हूँ,आप मुझे ले जाओ.

भगवान कहते हैं ठीक है.
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्‌ ॥(भगवद्गीता,12.7)

भगवान कहते है.देखो,गौर से सुनो.उसमे भी तुम्हे मेरे ही बारे में सोचना होगा.giant wheel में आप उस आदमी के बारे में सोच रहे हो,उसे कह रहे हो कि भैया झूला रोको.अगर आप किसी और आदमी से कह रहे हो,Mr X,Mr Y से तो झूला नही न रूकेगा.आप वो आदमी जो है बीच में.जो चला रहा है.उसे बोलोगे कि भैया झूला रोको तो उसे दया आयेगी,बार-बार आप करोगे request,hands up.
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे 
हरे रम हरे राम राम राम हरे हरे.

फिर भैया ने रोक दिया झूला कि उतर जाओ तुम.इसीतरह जब आप hands up करते हैं और हरे कृष्ण महामंत्र जाप करते हैं.भगवान उसी को सुनते हैं न.उसी को सुन पाते हैं कलयुग में.उसी को सुन के action लेंगे.तो जब आप महामंत्र जपते हैं तो भगवान जो हैं वो झूला रोकते हैं आपके लिए और उतार देते हैं कि भैया चलो मेरे पास आ जाओ.नीचे आ जाओ.जमीन पर आ जाओ.जहाँ तुम्हे डर न लगे.तो क्यों आना चाहता है बच्चा?क्योंकि यहाँ डर नही लगेगा.यहाँ सबको जनता हूँ.ये परिवेश जानता हूँ.यहाँ चक्कर नही आएगा.इसीलिए बच्चा जमीन पर आना चाहता है.

तो भगवान ये बोले कि इन्द्रियाँ,मन और बुद्धि में काम निवास करता है.मुझे आप बताओ अगर आपको इन तीनो में से किसी को control करना है तो किसे control करना चाहिए.देखिये बड़े गौर से सुनिए बहुत बड़े आचार्य का कथन है उसको दुहराती हूँ.उन्होंने भगवान की समस्त वाणी,श्रीमद भागवतम वगैरह के आधार पर ये निर्णय लिया है कि इन तीनों में से आप मन को control कर सकते हैं क्या?अर्जुन control कर पाया?अर्जुन ने क्या कहा.
चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्‌ ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्‌ ॥(भगवद्गीता,6.34)
जब अर्जुन जिन्होंने शंकर जी को हरा दिया.समझ रहे हैं युद्ध में.बड़े-बड़े देवी-देवता उनसे हार मान गए.मन को क्यों नही control किया.अरे इन्द्र जी के यहाँ गए थे तो उर्वशी आयी थी उनके पास.बड़े-बड़े विश्वामित्र वगैरह उनकी तपस्या डगमगा जाती है.वहाँ पर अर्जुन जो गृहस्थ था,इस रस से वाकिफ था.वो बोलता है कि माता आप कैसी हैं.वो कहती हैं कि माता! हम अप्सराएं हैं,माता किसी की नही होती.नही आप हमारे पिता इन्द्र के कक्ष में रहती है,आप माता हैं मेरे लिए.आप समझ रहे हैं.वो अपने मन पर कितने अच्छे से काबू रखे हुए थे.वो अर्जुन कहते हैं कि मन पर control नही हो सकता.आज के कलयुगी जीवों की तो बात ही नही कर रही हूँ मै.

मै तो अर्जुन की बात कर रही हूँ.अर्जुन ऐसे जो कि सोते थे न तो उनके हर इन्द्रिय में से भगवान कृष्ण का नाम निकलता था.इसलिए वो कृष्ण के सबसे प्रिय पार्षद हैं.सोते हैं तो भी भगवान का नाम मुख से निकलता रहता है.समझ रहे हैं आप.इतने बड़े भक्त हैं अर्जुन.कोई छोटे व्यक्ति नही हैं.बहुत बड़े भक्त हैं .वो कहते हैं कि मेरे से तो मन ही नही control होता.तो भगवान कहते हैं :
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥(भगवद्गीता,6.35)
अभ्यास करो.वैराग्य लाओ.लेकिन आपको immediately अगर control करना है तो इन्द्रियाँ control करनी होंगी.अगर आप इन्द्रियों को control करते रहोगे,करते रहोगे तो धीरे-धीरे मन control हो जाएगा.आपकी इन्द्रियाँ चाह रही चलो आज चाट-पकौड़ी खाते हैं.ठीक है.सामने दुकान भी है गोलगप्पे की.आप जा भी रहे हो.मन कह रहा है.इन्द्रियाँ भाग रही है उधर.आप आत्मा हो सबसे बड़े.आपने कहा नही खाना.मुझे नही खाना है.चलो सीधा.मन ने भी कहा ठीक.दूसरी बार भी जायेगा.तीसरी बार देखेगा तो कहेगा कोई फायदा नही है.ये आदमी कुछ सुनता नही है.चलो आगे चलो.समझ रहे हैं.और पांचवी बार तक कहेगा सब बेकार है चाट-पकौड़े.आप बात समझ रहे हो.

तो starting में एकदम हमें इन्द्रियाँ control करनी होंगी.जब इन्द्रियाँ एकदम control हो जायेंगी तो क्या control होगा.मन control होगा.और मजे की बात बताऊँ.आप सोचोगे कि इन्द्रियों को मै एकदम से control कर लूं तो वो भी possible नही है.भगवान बड़ा सुन्दर इसका तरीका बताते हैं:
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥(भगवद्गीता,2.59)
भगवान कहते हैं कि ऐसा संन्यास लेने से कोई फायदा नही कि आपने गेडुआ वस्त्र धारण कर लिया पर मन आपका मचल रहा है हर चीज के लिए.समझे.वो है पोंगापंथी.नरक में स्थान मिलेगा,नरक.

 वो व्यक्ति ज्यादा अच्छा है जो घर पे रह के बच्चों की तिमानदारी कर रहा है,घर चला रहा है पर मन कृष्ण में लगा रखा है.वो व्यक्ति बेहतर है.ये कृष्ण का judgement है.जंगल में जाके बैठने की जरूरत नही है. आप जो भी कीजिये detach होकर कीजिये.attachment सिर्फ कृष्णा से.यानि कि अपनी सारी जो इन्द्रियाँ हैं वो कहाँ लगा दीजिए परम रस में लगा दीजिए,कृष्ण में.

अब सुन्दर कोई व्यक्ति आ रहा है और आप आँख को कहोगे कि मत देखो तो ऐसा हो नही सकता.लेकिन आप देखो और कहो कि भगवान आपने कितनी सुंदरता भरी है.ये तो तुम्ही कर सकते हो.तुम क्या कलाकार हो.समझ गए.एक आदमी कह रहा है -wow कितनी सुन्दर है ये.दूसरा कह रहा है कि भगवान तुम कितने महान हो.तुम्हारे हाथ कितने ख़ूबसूरत हैं.इतने सुन्दर शरीर को आपने बनाया.

जैसे कि एक कुम्हार है जिसके पास आप घड़ा लेने जाते हैं तो एक को देखकर आप कह पड़ते हैं कि wow कितना सुन्दर घड़ा है.फिर आप कुम्हार को कहेंगे कितना सुन्दर तुमने बनाया.क्या किया,कैसे किया.एक अजीब ही piece है.दुर्लभ है.तो आप उसकी तारीफ़ जरूर करेंगे.और दूसरा आदमी कहेगा कि घड़ा बहुत सुन्दर है.मै लेकर के जा रहा हूँ.समझ रहे हैं.अपने भोग के लिए.एक जो है थोड़ा भगवदभावनाभावित type का आदमी है,मानवीय है वो कहेगा कि कितनी मेहनत की है तुमने.

समझ रहे हैं.दोनों ने ही देखा.पर एक ने जोड़ दिया.जोड़ दिया.तो आँख करेगी वही काम लेकिन जोड़ के.ये जोडने की कला आपको सीखनी है.इसीप्रकार से कुछ पी रहे हैं,कुछ खा रहे हैं तो ऐसे ही खा लेंगे अपने लिए तो पाप है.

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्‌ ॥(भगवद्गीता,3.13)


जो व्यक्ति अपने लिए खाना पकाता है वो पापी है.

ये तो पता ही होगा न.नया information तो नही दे रही हूँ मै.ढाई-तीन साल से यही information दिया है बार-बार.अपने लिए खाना आप पकोगे,अपने मजे के लिए तो आप पापी हो.अगर यज्ञशिष्टा भगवान का छोड़ा हुआ खाना यानि कि भगवान को भोग लगा के,उनका प्रसाद आप लेंगे तो आपके सारे पाप नष्ट हो जायेंगे.ये जानकारी.बताओ भगवद्गीता में दे रखा है तृतीय अध्याय में.

लेकिन या हमें पता नही होता या पता होता है तो हम उसे seriously नही लेते या हम शास्त्रों में से अपने लिए छाँट-छाँट कर चीजें निकाल लेते हैं.ये भी problem है हमारी.जो अपने को suit करे.अरे ये तो बहुत कठिन है,ये भी कठिन है,ये भी कठिन है.हाँ ये वाला ठीक है.फिर मामला गडबड हो गया इसलिए कृष्णा कि बात को As It Is लेना सीखो.इसलिए आपको मै कहूँगी कि जोडने कि कला आप तभी जान सकते हैं ,भगवान से तभी जुड सकते हैं जब आप भगवान का नाम लेना शुरू कर देंगे.

कथा:
एक व्यक्ति थे लाला बाबू.बहुत पैसा था उनके पास.अथाह था उनके पास क्योंकि वो बहुत बड़े जमींदार के बेटे थे.जमींदार भी ऐसे कि एक पूरे राज्य की जमीन उनके पास थी.

Thursday, September 30, 2010

भगवान हमें कछुए का उदाहरण दे सीखा रहे हैं इन्द्रियों को संयमित करना : Explanation by Premdhara Parvati Rathor on 104.8 FM(28th Sept 2010)


104.8 FM पर प्रस्तुत है कार्यक्रम अराधना.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप.तो आज के कार्यक्रम में हम चर्चा करेंगे एक बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर जिसमे भगवान ने बहुत ही सुन्दर बात कही है.एक बहुत ही सुन्दर जानवर का example उन्होंने दिया है और दिखाया है कि देखो हम जानवरों से कितना कुछ सीख सकते हैं.कितना कुछ.

इस संसार में ऐसे अनेकानेक उदाहरण हैं ,ऐसी अनेकानेक वस्तुएं हैं,जानवर हैं,जीव हैं जिससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.भगवान ने एक कछुए का उदाहरण दिया है जो कि अपने अंगों को संकुचित करके अपने अंगों के भीतर कर देता है.इन्द्रियों की तुलना की गई है उसके अंगों के साथ.तो बहुत ही सुन्दर बात भगवान ने कही है.आईये हम चर्चा करते हैं श्लोक पर जिसमे भगवान ने ये बात कही है और इसके example के द्वारा भगवान ने बहुत बड़ी सीख दी है.तो सीख क्या है इसे जानने का प्रयास करते हैं.श्लोक है:

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥(भगवद्गीता 2.58)
अर्थात
जिसप्रकार कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इंद्रविषयों से खींच लेता है वो मूल चेतना में दृढतापूर्वक स्थिर होता है.


तो भगवान ने बहुत सुन्दर बात यहाँ कही है.बहुत सुन्दर शिक्षा यहाँ दी है.देखिये भगवान हमेशा जब भी कुछ बोलते हैं तो वो आपको ज्ञान से आप्लावित करने के लिए बोलते हैं.वो आपको शिक्षित करने के लिए बोलते हैं.आप अपनी universities की degrees पर आप कभी अभिमान न करना यदि आपको इतना नही पता कि हम अपनी इन्द्रियों को काबू कैसे करते हैं.एक जानवर से भगवान ने हमें सिखाया है.एक जानवर का दृष्टांत भगवान ने हमें दिया है कछुए का कि जिसतरह से कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इन्द्रियविषयों से खींच लेता है.

यानि कि ये बात बतायी गयी है कि इन्द्रियाँ अपने इन्द्रियविषयों की तरफ जरूर भागेंगी.ये इन्द्रियों की प्रकृति है लेकिन बुद्धिमान वो है जो अपनी इन्द्रियों को इन्द्रियविषयों से खींच ले.अगर वापस खींच लेगा तो वो स्थितप्रज्ञ है नही तो आप समझ सकते हैं.

तो आप सुनते रहिये आराधना मेरे साथ.
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मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥(भगवद्गीता 2.58)
अर्थात
जिसप्रकार कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इंद्रविषयों से खींच लेता है वो मूल चेतना में दृढतापूर्वक स्थिर होता है.


तो भगवान यहाँ स्थितप्रज्ञ की परिभाषा आपको एकबार फिर से बता रहे हैं कि जो भक्त होता है या योगी होता है वो अपनी इन्द्रियों को बेलगाम छोडता नही है.बेकाबू नही होने देता है.कभी भी उनकी इन्द्रियाँ उनके काबू से बाहर नही होती हैं.भक्त की परिभाषा ही यही होती है कि वो अपनी इन्द्रियों को निर्मल कर देता है.कैसे?भगवान नाम के जाप से या फिर भगवान की याद से या फिर किसी भी प्रकार से भगवान से जोड़  करके.उसकी इन्द्रियाँ निर्मल हो जाती हैं.विमल हो जाती हैं.

तो यहाँ भगवान यही बात कहते हैं कि आप कछुए को देखिये.कई बार आप गए होंगे समुद्र तट पर.कई बार आपने समुद्र की लहरों का मजा लिया होगा और वहाँ कछुए भी देखे होंगे.पर जब ही आपने कछुए देखे आप उनके पीछे भागते होंगे मस्ती करने के लिए लेकिन शायद ही कोई व्यक्ति हो जो ये सोचता हो कि अरे ! कछुआ अपने अंगों को कैसे अंदर समेत लेता है.तो यानि कि हमें भी अपनी इन्द्रियों को अपने काबू में करना चाहिए.हाँ.भगवान ने यही तो बताया है.शास्त्र भी.तो बहुत कम लोग इस बारे में सोचते होंगे.

तो देखिये कहीं से भी आप शिक्षा ले सकते हैं.कहीं से भी और भगवान एक छोटे से जानवर से आपको शिक्षा दिला रहे हैं.बात रहे हैं कि देखिये ये छोटा-सा जानवर जिसतरह से अपने अंगों को संकुचित कर लेता है बिल्कुल  ठीक उसी तरह से जब इन्द्रियों को ललचाने वाले विषय सामने देखे आप अपनी इन्द्रियों को समेत लीजिए.

मसलन आपको लगा मुझे फिल्म देखने जाना है.पर याद रखिये फिल्म देखने जाना बुरी बात नही है लेकिन फिर भी बहुत बुरी बात है.क्यों?क्योंकि इससे आपकी चेतना कलुषित होगी.इससे आपकी चेतना दूषित होगी.तब आप अपने मन को समझायिये कि अरे नही इससे हमारी चेतना दूषित होगी.इससे अच्छा वो साढ़े तीन घंटे हम भगवान का नाम ही क्यों न ले.सोचिये है न बड़ी अच्छी बात.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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आराधना में मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं एक श्लोक पर.बहुत ही सुन्दर श्लोक है ये.

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥(भगवद्गीता 2.58)
अर्थात
जिसप्रकार कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इंद्रविषयों से खींच लेता है वो मूल चेतना में दृढतापूर्वक स्थिर होता है.


आप ये याद रखना कि जो इन्द्रियाँ हैं आपकी वो कुछ नही विषैले सर्प हैं.विषैले साप हैं.जहरीले सांप है. poisonous snacks हैं.कैसे?ये इतनी विषैली हैं,इतनी विषैली हैं कि जब आप इन्द्रियों की बात मानते हैं तो ये आपकी चेतना को विष से भर देती है.विष से और कभी भी ये इन्द्रियाँ आपको than you नही बोलती कि हाँ आपने हमारी demands को पूरी की.कभी भी नही बोलती.हमेशा बोलती है कि ओह! तुमने हमारे लिए किया ही क्या है.हमेशा.

आदमी बुढा हो जाता है.कई बार वो बिस्तर से भी लग जाता है बीमार हो करके लेकिन तब भी इन्द्रतृप्ति  की इच्छा उसकी बलवती रहती है.डॉक्टर कहता है कि नही आप इन्हें ये नही खिलाना लेकिन तब भी उसकी ख्वाहिश रहती है कि अगर मुझे वो मिल जाता ,मरने से पहले मै वो खा लेता तो शायद मुझे बहुत अच्छा लगता.

तो ये इन्द्रियाँ इतनी,इतनी बलवान होती हैं.जो भक्त है,जो भगवान का भक्त है वो एक दक्ष संपेरा होता है.सँपेरे के समान उसे बहुत ही alert होना होता है.कैसे?क्योंकि एक संपेरा एक सांप को वश में कर सकता है और जो भक्त है वो अपनी चलायमान इन्द्रियों को वश में कर लेता है बड़े आराम से.और भगवान ने बताया है कि इन्द्रियों को जब आप इन्द्रियविषयों से खींच ले.

अब इन्द्रियों के इन्द्रियविषयों क्या हैं?आँख का जो इन्द्रियविषय है वो है रूप.आँख रूप देखती है.नाक का है गंध.नाक गंध लेती है.कान के हैं शब्द.त्वचा का है स्पर्श और जिह्वा का है स्वाद.ये हमारे इन्द्रियविषय हैं.ये पाँच जो ज्ञान इन्द्रियाँ हैं उनके पाँच इन्द्रियविषय हैं.और जब आप इन्द्रियविषय से हट जाएँ यानि आपको लगे कि अरे वाह मुझे बहुत चटपटा खाना है लेकिन तब आप सोचे कि अरे चटपटा खाने से क्या होगा.रजोगुण कि प्राप्ति ही तो होगी और आप सोचे कि नही simple खाना खाना है.सात्विक आहार तो समझ लीजिए कि आप एक अच्छे  पथ पर अग्रसर हो गए.याद रखिये.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥(भगवद्गीता 2.58)
अर्थात
जिसप्रकार कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इंद्रविषयों से खींच लेता है वो मूल चेतना में दृढतापूर्वक स्थिर होता है.


तो भगवान ने आपको बहुत सुन्दर शिक्षा दी है और इस शिक्षा से लाभ उठाईये.अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखना सीखिए.ये नही कि अभी आपको आँख बोल रही है कि बाएं चलो मुझे वो देखना है और आपको मुँह बोलता है कि नही दाहिने चलो चाटवाला खड़ा है.मुझे चाट खानी है और आपको कान बोलता है कि नही नही मुझको तो वो गाने सुनने हैं,वहाँ चलो.तब आप सोचिये आप बेचारे आपकी हालत क्या हो जायेगी क्योंकि आप तो अकेले हैं न.आप आत्मा हैं न.अगर आप अपनी दस इन्द्रियों की दस बातें मानेंगे एकसाथ वो भी तो क्या हालत हो जायेगी .

आपकी इसीलिए भगवान जानते हैं.भगवान भाई आपके परमपिता हैं.आपको बनाया हैं उन्होंने.तो भगवान अनते हैं कि आत्मा कहाँ जाकर के मजबूर हो जाती है.जब वो अपने देह में रम जाती है.अपने आप को देह मानने लगती है तब उसका पतन प्रारंभ होता है.जब आप अपने आप को शरीर मानोगे तभी तो आप अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए 24 hrs लगे रहोगे.चौबीसों घंटे.तब क्या होगा?तटब तो समझ लोजिये कि आपकी human life का loss हो जाएगा.नुकसान हो जाएगा.

तो इसीलिए भगवान ने आपको ये शिक्षा दी है कि आप अपनी इन्द्रियों को उनके इन्द्रियविषयों में रमने मत देना.ज्यादा मत रमने देना.इसका अर्थ ये नही है कि आपको भूख लगी है तो आप खाना छोड़ दे.इसका अर्थ ये नही है कि आप कुछ भी सुनना छोड़ दे.जी नही.अगर कुछ बेकार चीज आपके सामने आ जाती है तो उसे ignore कर दीजिए.यानि कि उसे अनदेखा कर दीजिए.

लेकिन हाँ अगर भगवान का अर्पित प्रसाद आपके सामने आता है तो उसे जरूर खाईये.यदि भगवान के गुणगान आपके कान में पड़ते हैं तो उसे जरूर सुनिए.याद रखिये यही सब करने के लिए आपको मनुष्य जीवन मिला है.यदि भगवान का रूप आपके सामने आता है तो आप उसे जरूर देखिये और भगवान के भक्तों का स्पर्श कीजिये.भगवान के भक्तों से जरूर गले मिलिए क्योंकि मनुष्य जीवन तभी सार्थक होगा जब आप भगवान और उनके भक्तों की क़द्र करेंगे.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर और अब लेते हैं आपका sms.
SMS:
ये सवाल हमसे पूछा है राघव ने सिलमपुर से.ये कहते हैं कि 
जो लोग भगवान में विश्वास नही करते हैं उन्हें आप क्या कहेंगी?किसप्रकार से वो भगवान में विश्वास करें.क्या वो कुछ पढ़े ताकि उनकी जिंदगी में भी कुछ अच्छा हो?

राघव देखिये आप जो कहते हैं न कि जो लोग भगवान में विश्वास नही करते हैं.ये बहुत दुःख की बात है क्योंकि भगवान हैं और वो अपने होने का प्रमाण कई कई बार प्रस्तुत करते हैं.जब आप साँस लेते हैं तो आप सोचते हैं कि ये साँस मै ले रहा हूँ.लेकिन आप जाकर के ICU में देखिये ,hospital में ICU में देखिये.आप देखेंगे कि इतनी सारी नलियाँ उनके अंदर लगाईं गई हैं ऑक्सीजन जाए .कार्बनडाईक्साइड्स retain न हो .उनके शरीर में रह न जाये.कितनी सारी चीजें लगाईं जाती है और उन्हें ventilator पर रख दिया जाता है.

तो सोचिये साँस लेना ये भी कौन आपको मुहैया करा रहा है.कौन शक्ति दे रहा है कि आप साँस भी ले पपा रहे हैं.हाँ.वो भगवान ही तो हैं.

बहरहाल  यदि कोई व्यक्ति  भगवान में विश्वास नही करता है तो भाई हम तो यही कहेंगे कि मनुष्य जीवन आपको मिला आपको मिला है.प्रयास कीजिये कि आपका मनुष्य जीवन सुधर जाए.प्रभु में विश्वास करने का प्रयास कीजिये और इसके लिए जरूरी है भक्तों का संग.यदि आप भक्तों का संग करेंगे और कुसंग को त्याग देंगे तो आप अवश्य ही ,अवश्य ही भगवान को प्राप्त कर पायेंगे.

इसी के साथ इजाजत दीजिए प्रेमधारा पार्वती राठौर को.नमस्कार.

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Monday, September 27, 2010

कौन है भगवान की नजर में विद्वान : Explanation by Premdhara Parvati Rathor on 104.8 FM(27th Sept 2010)

104.8 FM पर प्रस्तुत है कार्यक्रम अराधना.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप?तो भाई आज के कार्यक्रम में हम चर्चा करेंगे भगवान के द्वारा कहे गए एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.प्रभु ने एक बहुत सुन्दर बात कही है और वो भी तब जब भगवान का भक्त अर्जुन बहुत-ही शोकाकुल थे.बहुत ही शोक से ग्रस्त थे.उन्हें समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे ,क्या न करे.तो भगवान ने कहा कि देखो तुम कहते तो बहुत विद्वतापूर्ण बात हो.तुम्हे लगता है कि तुम विद्वान हो.लेकिन क्या सच में तुम विद्वान हो.

भगवान ने विद्वान कौन है इसकी परिभाषा बतायी है.भगवान ने बताया है कि जो सुख और दुःख  में धीर बना रहता है.जो न तो जीवित के लिए शोक करता है और न ही मृत के लिए.वही विद्वान है.जो हमेशा शोकाकुल रहता है यानि वो व्यक्ति  अभी भी कही-न-कही से attachment का शिकार है.attachment यानि आसक्ति.आसक्ति का शिकार है और देखिये सारा खेल आसक्ति और विरक्ति का है.

यदि हमारा मन इस भौतिक जगत में लग गया तो हम बहुत-बहुत आसक्त कहलायेंगे.और यदि हम आसक्त हो गए  तो फिर हमें लौटकर दुबारा यही जन्म लेना पडेगा.मै आपको बता दूं अगर आप यहाँ दुबारा जन्म लेते हैं तो इसका अर्थ ये है कि आपने आत्महत्या कर ली.आत्महत्या यानि आत्मा की हत्या.

तो आज का श्लोक बहुत-ही सुन्दर श्लोक है जिस पर हम पूरे कार्यक्रम में चर्चा करेंगे.श्लोक ध्यान से सुनिए:

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥(भगवद्गीता 2.11)


श्री भगवान ने कहा- तुम पांडित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नही हैं. विद्वान होते हैं वो न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं.

तो देखिये कितनी सुन्दर बात भगवान ने बतायी है.अर्जुन को बहुत ही शोक था.वो बार-बार यही कहते थे भगवान  से कि भगवान हम युद्ध तो कर रहे हैं पर इस युद्ध में हम मारेंगे किसे.हम मरेंगे अपनो को.यानि अपने अपनो को.ये सारे हमारे अपने हैं.ये मेरे बाबा हैं जिन्होंने मुझे उँगली पकड़कर चलना सीखाया.वो मेरे गुरु हैं जिन्होंने मुझे समस्त शास्त्रों की विद्या दी.समस्त शस्त्रों की विद्या दी.मै इन पर हाथ उठाऊंगा.इन पर हथियार उठाउंगा.

तो अपनी बात के समर्थन में अर्जुन ने अनेकानेक तर्क दिए थे.अनेकानेक बात कही थी जिससे ऐसा जाहिर होता था कि मानो अर्जुन को बहुत कुछ पता है.वो जानते हैं कि सही क्या है और गलत क्या है.तो भगवान ने उनकी मनोधारणाओं को तोड़ दिया अपने इस श्लोक के साथ.तो आईये आज हम चर्चा करेंगे इसी श्लोक पर.आप सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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हम चर्चा कर रहे है बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥(भगवद्गीता 2.11)

श्री भगवान ने कहा- तुम पांडित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नही हैं. विद्वान होते हैं वो न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं.


तो देखिये इसमे विद्वान की एक परिभाषा दी है भगवान ने.हमलोग सोचते हैं कि अगर हमारे पास ढेर सारी डिग्रियाँ होंगी या हमारे पास कोई ऊँचा प्रतिष्ठामय पद होगा या हमारे पास बहुत पैसे होंगे या हम कुछ भी बोलते रहेंगे,बोलते रहेंगे और लोगों को impress करते रहेंगे तो हम विद्वान कहलायेंगे.तो वो विद्वान नही है.ये विद्वतापूर्ण कार्य नही है.विद्वतापूर्ण कार्य भगवान ने बताया है कि जो विद्वान होते हैं.जो पंडित होते हैं.पंडित यानि विद्वान.जिन्हें पता है कि जीवन का मूल्य क्या है.जिन्हें पता है कि मनुष्य जीवन का असल मोल क्या है.ऐसे लोग न ही जीवित के लिए शोक करते हैं और न ही मृत के लिए.

वो ये नही कहते कि हाय! ये क्यों पैदा हो गया.इसे नही पैदा होना चाहिए था.या वो ये नही कहते कि हाय ! वो मर  क्यों गया.क्योंकि वो अच्छी तरह से जानते हैं कि ये जो शरीर है वो जड़ है और इस शरीर के अंदर रहनेवाला जो तत्त्व है ,जिसकी वजह से ये शरीर चलायमान है वो तत्त्व,आत्मा है.वही हमारी असली पहचान है.वही हम है.

और आप देखिये कि भगवान ने इसी बात की तरफ भगवान ने इस श्लोक में इशारा किया है.कईबार हम लोग सोचते हैं कि हम बहुत विद्वतापूर्ण बात कर रहे हैं तो वास्तव में वो बहुत मूर्खतापूर्ण बातें होती है क्योंकि विद्वान वो होता है जो कभी भी जीवित और मृत के लिए शोक से बाहर होता है.शोक नही करता कभी भी.दुखी नही होता.धीर-गंभीर होता है.

तो भाई धीर-गंभीर होने का जो राज है वो क्या है.कैसे होंगे आप धीर-गंभीर.वो आप तभी होंगे जब आप भगवान की सेवा में लगेंगे.जब आप भगवान से प्रेम करेंगे.जब आप भगवान के लिए जीयेंगे और जब आप भगवान से अपने आप को जोड़ लेंगे.तब आपके अंदर आयेगी धीरता भी,गंभीरता भी.

और आप सुनते रहिये अराधना प्रेमधारा पार्वती राठौर के साथ.
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बहुत सुन्दर श्लोक है आपके लिए.

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥(भगवद्गीता 2.11)

श्री भगवान ने कहा- तुम पांडित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नही हैं. विद्वान होते हैं वो न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं.

तो देखिये भगवान ने बहुत सुन्दर बात यहाँ आपको बतायी है.बहुत सुन्दर जानकारी आपको दी है.ये आपको बताया है कि अगर आप सच में विद्वान कहलाना चाहते हैं तो आपको ये खुशी और गम इससे ऊपर उठना पडेगा.इसी बात पर मुझे एक बहुत सुन्दर कथा याद आती है.

"एक बार एक राजा था.राजा के पास कोई संतान नही थी.राजा था चित्रकेतु.और फिर एक ऋषि उनसे मिलने आये.ऋषि का नाम था अंगिरा.अंगिरा ऋषि ने उन्हें वरदान दिया कि ठीक है तुम्हे पुत्र होगा लेकिन उस पुत्र का नाम तुम रखना हर्षशोक.हर्षशोक पैदा हुआ.हर्षशोक जब पैदा हुआ तो पूरा देश खुशियाँ मनाने लगा.राजा की अनेकानेक रानियाँ थी.वो सब जलभुन गई.सबको बहुत दुःख हुआ कि हमसे तो औलाद पैदा हुई और यहाँ ये बच्चा पैदा हुआ है.अब राजा हमें देखता भी नही.सिर्फ हर्षशोक के पास रहता है.उसकी माँ के पास रहता है.

तो फिर उन सारी रानियों ने plan बनाया.उन सारी रानियों ने उस बच्चे को खत्म कर दिया.उस बच्चे को जहर पिला दिया और वो बच्चा मर गया.हर्षशोक मर गया.हर्षशोक जो हर्ष का विषय बना था अपने माँ-बाप के लिए वो विषाद का विषय बन गया.शोक का विषय बन गया.

फिर चित्रकेतु जब दुःख में डूब गए तो उनके पास मिलने के  लिए एक महाऋषि आये नारद जी.नारद जी परम विद्वान.उन्होंने चित्रकेतु को समझाया और फिर कहा कि ठीक है थोड़ी देर के लिए मै आपके इस बच्चे को जीवित कर देता हूँ.आप इन्ही से पूछिए कि ये किसका बच्चा है.बच्चे को जीवित किया गया तो हर्षशोक ने आँखें खोलते ही कहा -आप कौन हैं?चित्रकेतु को बड़ा अजीब लगा.वो अपने को विद्वान समझते थी.उन्होंने कहा अरे तुम मुझे नही पहचानते बेटा.मै तुम्हारा पिता हूँ और ये तुम्हारे माँ है.हम तुम्हारे लिए शोकाकुल हैं.

हर्षशोक ने कहा - आप माँ-बाप हैं.कौन से जन्म के माँ-बाप हैं.इस जन के.पिछले जन्म के.कब के माँ-बाप हैं.ये सुनते ही चित्रकेतु को बिल्कुल ये बात समझ आ गई.एक आत्मा का एक आत्मा से संबंध होता भी है तो सिर्फ इसलिए कि वो परमात्मा का अंश है.वरना शरीर का संबंध शरीर के साथ है और शरीर मर्त्य है.याद रखिये.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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अराधना में आपके साथ हूँ  मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही प्यारे श्लोक पर.आपने श्लोक सुना और श्लोक का अर्थ मै एकबार फिर से आपको बता दूं.

श्री भगवान ने कहा- तुम पांडित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नही हैं. विद्वान होते हैं वो न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं.

तो देखिये ये जो श्लोक भगवान ने कहा है.ये बात जो बताई है वो तब बताई जब अर्जुन ने भगवान को गुरु मान लिए.इससे पहले अर्जुन भगवान को अपना सखा मानते थे और फिर जब वो उनसे बात करते थे तो इस तरह से बात करते थे कि अर्जुन भी भगवान को सलाह देते थे.लेकिन जब वो किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए.जब उन्हें समझ नही आया कि मै क्या करूँ.मै आ तो गया हूँ युद्ध में लेकिन समझ नही आता कि अपने सामनेवालों पर हथियार उठों या छोड़ दूं.राज्यप्राप्ति की जो इच्छा थी वो धूमिल हो रही थी.

तो उन्होंने भगवान की शरण ले ली और यही हम सबको करना चाहिए.हमें अपने बल पर कुछ प्राप्त करने का प्रयास नही करना चाहिए.क्या प्राप्त करेंगे आप.ये जड़ जगत है.पदार्थ यहाँ है सबकुछ.वो सब मर्त्य है यानि सबकी समाप्ति होना अवश्यम्भावी है.तो क्या प्राप्त करना चाहते है आप.जो भी आप प्राप करना चाहते हैं वो कभी-न-कभी तो समाप्त होगा न.

और यही बात अर्जुन को समझ आ गई थी.इसीलिए उन्होंने भगवान कको गुरु बना लिया था.तब भगवान ने उन्हें समझाया कि देखो तुम ज्ञान प्राप्त करो यानि तुम ये बता रहे हो कि तुम ज्ञानी हो पर ज्ञान का अर्थ वो बहुत अलग है.ज्ञान का अर्थ है पदार्थ को जानना.आत्मा को जानना और ये भी जानना कि पदार्थ और आत्मा ,इनकी उत्पत्ति हुई कहाँ से है.कौन इनका नियामक है.कौन इनका controller है.ये जानना बहुत जरूरी है.

तो भगवान चाहते हैं कि उनके जो शिष्य हैं.उनके जो भक्त हैं वो असली ज्ञानी बने.और जो ज्ञानी होता है वो जानता है कि पदार्थ में रमना,पदार्थ की आसक्ति बुरी है.क्यों?क्योंकि आप कितने भी पदार्थ एकत्र कर ले आप कभी खुश नही रह सकते.आपको संपूर्णता हासिल नही होगी.आपको संपूर्णता हासिल तभी होगी.आपको चैन हासिल तभी होगा ,आपको खुशी हासिल तभी होगी जब आप समझ जाएँ कि पदार्थ से कुछ होनेवाला नही है.आत्मा की खुशी चाहिए तो आपको इनदोनो के नियामक को जानना होगा.प्रभु को जानना होगा.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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104.8 FM पर मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब समय है आपका एक प्रश्न लेंने का.
ये प्रश्न हमसे पूछा है संदीप राठौर ने दिलशाद गार्डन से.ये पूछते हैं कि 
जीवन में स्थिर कैसे हुआ जाए?स्थिरता का क्या लक्षण है?

तो देखिये संदीप.आपने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है और इस प्रश्न का उत्तर भगवान ने बहुत ही खुबसूरती से दिया है.भगवान कहते हैं 
प्रजहाति यदा कामान्‌ सर्वान्पार्थ मनोगतान्‌ ।
आत्मयेवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥(भगवद्गीता 2.55)

कि जब मनुष्य मनोधर्म से उत्पन्न होनवाली इन्द्रतृप्ति की समस्त कामनाओं का परित्याग कर देता है  और जब इसतरह से विशुद्ध हुआ उसका मन आत्मा में संतोष प्राप्त करता है तो वो विशुद्ध दिव्य चेतना को प्राप्त कहा जाता है.स्थितप्रज्ञ कहा जाता है.

यानि जन मनुष्य मनोधर्म से उत्पन्न होनेवाली.देखिये जो आपकी इन्द्रतृप्ति की लालसा है.जो आप सोचते हैं.जो आपका मन इधर-उधर भागता है .मै ये कर लूं,वो कर लूं.इसे प्राप्त कर लूं,उसे प्राप्त कर लूं.मेरा accumulation अच्छा हो जाए.मेरा bank balance अच्छा हो जाए.मेरी एक बहुत अच्छी पत्नी हो और मेरा बहुत अच्छा settle life  हो.ये सारा कुछ.ये सारी इच्छाएं उत्पन्न कहाँ होती हैं?ये उत्पन्न होती हैं मन में.

और जो व्यक्ति मन में उत्पन्न इच्छाओं को पूरा करने के लिए भागता रहता है.दौडता रहता है.उसे ही अपना धर्म मान लेता है.वो व्यक्ति हमेशा अस्थिर रहता है.हमेशा unstable रहता है.उसमे stability कहाँ से आ सकती है.तो भगवान कहते हैं कि पहले तो आप मन से उत्पन्न होनेवाली इन्द्रतृप्ति की समस्त कामनाएं हैं उसका परित्याग कर दो.है न.सोचो मत.जब आप अपनी शरण लोगे तो सोचोगे ही लेकिन जब आप भगवान की शरण ले लेंगे तब आप कभी नही सोचेंगे इन कामनाओं के बारे में.

तो भगवान कहते हैं कि जैसे ही आप इन कामनाओं का परित्याग कर देंगे और आपका मन अपनाप में संतोष प्राप्त करता है.आत्मा भगवान का अंश है.यदि आप भगवान में संतोष प्राप्त करने लगते हैं.भगवान के बारे में आप सोचने लगते हैं.भगवान से सम्बंधित कार्य करने लगते हैं तो आपका मन जो है संतुष्ट होने लगेगा और याद रखना आप स्थिरप्रज्ञ हो जायेंगे.आपके जीवन में stability आ जायेगी.

मेरे ख्याल से आपको इस जबाब से कोई न कोई help मिलेगी.

इसी के साथ अब इजाजत दीजिए अब प्रेमधारा पार्वती राठौर को.नमस्कार.


Saturday, July 24, 2010

Spiritual Program Morning Meow On 25th July'10 By Premdhara Parvati Rathor(104.8 FM)


104.8 FM पर मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप.अच्छा एक बात बताईये जब आप सड़क पर चलते हैं.अपनी गली-मुहल्लों की सडकों पर तो आप कहाँ देखते हैं.सामने या नीचे?कभी सामने तो कभी नीचे देखते हैं.क्यों?क्योंकि सामने से कहीं कोई गाड़ी न आ जाए और नीचे इसलिए क्योंकि सड़कों पर ढ़ेरों गन्दगी होती है.लोग कुत्ते पालते हैं और वो कुत्ते यहाँ-वहाँ मल त्याग देते हैं.उससे बचना है या फिर सड़क पर आपको ढ़ेरों थूक गिरा हुआ मिल जाएगा.लोग यहाँ-वहाँ थूकते रहते हैं.गले की खंखार वगैरह सब नीचे सडकों पर पडी रहती हैं और आप बच-बचकर निकलते हैं कि कही आपका पैर उसपर पर न जाए.

और अगर गलती से आपका पैर ऐसी गन्दगी में पर जाता है तो लगता है कि ऐसी चप्पल को घर में घुसने से पहले कहीं दो लें.

तो भाई कहने का मतलब ये कि जिसतरह आप रास्ते की गन्दगी से बच-बचके निकलते हो,उसीतरह समाज में फ़ैली हुई गन्दगी से बचने की कोशिश क्यों नही करते.कोई गंदा दृश्य,कोई अश्लील दृश्य आपको दिखता है तो बजाये मुँह फेरने के लोग दीदे फाड़कर उसे देखने लगते हैं.समस्या ये हैं कि हम तन को तो गंदा होने से बचाने का पूरा प्रयास करते हैं पर मन को गन्दगी के ढेर में हम स्वयं धकेल देते हैं.

याद रखिये गंदा मन जन्म देता है गंदी इच्छाओं को और यही गंदी इच्छाएं आपके कर्म को खराब कर देती है.खराब कर्म आपको नर्क में धकेल देते हैं.तो भाई तन को धोने के साथ-साथ मन को भी धोने की व्यवस्था कीजिये.हरिनाम को अपनाईये.प्रभु के नाम का रटन कीजिये इससे मन धुल जाएगा और आपका जीवन सफल हो जाएगा.
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आईये कार्यक्रम में पहला श्लोक लेते हैं.बड़ा-ही सुन्दर श्लोक है.ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
"हे भगवन ! इच्छाओं के अनंत आदेशों की कोई सीमा नही है.हालाकि मैंने इनकी इतनी सेवा कि पर फिर भी इन्हें मुझ पर दया नही आयी.इनकी सेवा करते हुए न तो मुझे शर्म आयी न मुझमे इन्हें छोडने की इच्छा ही उत्पन्न हुई.पर हे यदुपति ! हे प्रभु !अब मुझे अक्ल आ गयी है.अब मै इन्हें त्याग रहा हूँ.दिव्य बुद्धि के कारण अब मै अपनी इच्छाओं की नाजायज मांगों को पूरा करने से इनकार करता हूँ और अब मैंने आपके अभय चरणारविन्दों की शरण ली है.कृपया आप मुझे अपनी सेवा में लगाए और मेरी रक्षा करे."

तो देखिये सारी बात शुरू होती है इस बात को पहचानने से कि हमारी इच्छाएं हमें भटका देती हैं.तो यहाँ जो भक्त हैं,जो भक्ति की राह पर अग्रसर होना चाहते हैं और जिन्होंने यह बात समझ ली कि इच्छाओं को पूरा करते-करते मेरी उम्र बीत गयी.मगर ये इच्छाएं इन्हें मुझ पर दया नही आयी.ये जो मेरी इन्द्रियां हैं जो मुझको बार-बार आदेश देती हैं कि चल मुझे आज ये फिल्म दिखा.आँख आदेश देती है चल वहाँ पर मेला लगा है.मेला घूमने चले.सर्कस लगा है.सर्कस घूमने चले.आँख आदेश देती है और हम आँख के उस आदेश को पूरा करते हैं.उस इच्छा के आदेश को पूरा करते हैं.इच्छा हुई ,आदेश हुआ कि जाओ इच्छा पूरी करू और आप भागने लगते हैं.हम भागने लगते हैं.

देखिये अनेकानेक इच्छाएं दिल में उठती है और सब इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं.ऐसा नही कि किसी एक इच्छा को ,दूसरी इच्छा को हम छोड़ देते हैं.हम सोचते हैं कि ठीक है इसे थोड़ी देर में करेंगे पूरी लेकिन प्रयास अवश्य होगा.लोग यहाँ तक कहते है कि भाई कोशिश नही करोगे तो कैसे हासिल होगी कोई चीज.

क्या करोगे कुछ भी चीज हासिल करके.आखिर इस मर्त्य संसार में,मृत्युलोक में कौन-सी चीज है जो स्थायी है.जिसे आप हासिल कर लोगे और वो हमेशा रहेगी.अगर आप पैसा जोड़-जोड़ करके लोन पर,कर्जे पर एक गाड़ी भी खरीद लेते हो तो आप ये बताओ कि काया गाड़ी हमेशा रहती है आपके साथ.नही रहती है.कभी accident में चकनाचूर हो जाती है या फिर depreciate होते-होते,साल-दर-साल  गुजरे-गुजरते उसकी कीमत खत्म हो जाती है.कुछ तो रहता नही है.

लेकिन तो भी इच्छाएं इतनी अनंत हैं कि उनके अनंत आदेश हैं.उनकी कोई सीमा नही है.तो भक्त राज कहते हैं कि मैंने इनकी इतनी सेवा कि मगर इन्हें फिर भी मुझ पर दया नही आयी.कभी-कभी भी इच्छाओं को ऐसा नही लगा कि अरे!ये आदमी बूढा हो गया.इसका शरीर जवाब दे रहा है.तो इसे थोडा हम rest करने देते हैं.आराम करने देते हैं.हम जो इच्छाएं हैं,हम इसके ह्रदय में इतना उमडेंगे नही,घुमरेंगे नही.अब ये आराम करेगा.हमें पूरा करने के लिए इसे कितना यत्न करना पडता है और जब ये हमें अपनी कमजोर शरीर की वजह से पूरा नही कर पाता है तो इसे कितना दुःख हो जाता है.

तो इच्छाओं का दिल नही पिघला हमें लाचार देख करके .इच्छाएं फिर भी उमडती रही और हम घिसकते-घिसकते भी उन इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करते रहे.है न.पूरा अपना दम-ख़म लगा दिया कि नहीं भाई इच्छा है तो पूरी होगी.नही पूरी हुई.नही पूरा किया तो पुरुषार्थ.किसे कहते हैं पुरुषार्थ.यही है कि हम अपनी इच्छाओं को पूरा करे.हम यही सोचते हैं.

तो यहाँ बड़ी सुन्दर बात कही गयी है कि
इच्छाओं की सेवा करते हुए न तो मुझे शर्म आयी और न ही उन्हें छोडने की इच्छा उत्पन्न हुई.

आप और हम.हम सब अपनी इच्छाओं के मारे हुए हैं.हमें किसी और ने नही मारा.हम जो परतंत्र हुए  हैं यहाँ आकर के.यहाँ हमारी Independence खो गयी है.हम गुलाम हो गए हैं.तो हमें किसी ने गुलामी दी नही है.हमारी अपनी इच्छाओं की वजह से हम गुलाम है.आपकी इच्छाएं आपको यहाँ-वहाँ दौडाती है और आप कहते हैं कि आप स्वतंत्र हैं.

अरे नही हम तो गोदास है.अपनी इन्द्रियों के दास हैं.

हमारी इन्द्रियां इच्छा करती हैं और हम कहते हैं कि हाँ पूरी होगी.जरूर होगी.जो आज्ञा.है कि नही.
जानते हैं कि डायबिटीज है .डॉक्टर बोल रहा है कि ice cream नही खाओ.गला खराब है.डॉक्टर बोल रहा है कि ice cream नही खाओ और आप कहते हैं कि नही भाई!खायेंगे ice cream.क्यों?क्योंकि इच्छा उत्पन्न हुई है और एक ही तो जीवन है अगर इसे खा-पीकर नही गुजारेंगे तो कैसे काम चलेगा?ऐसी हमारी सोच होती है.

और ये सोच मै आपको बताती हूँ कि यही सारे कष्टों का कारण है.इसी के कारण,ऐसी सोच के कारण,इन इच्छाओं के कारण हम देह धारण करते हैं.हमें शरीर धारण करना पडता है.हमें एक new body acquire करनी पडती है.

तो सोचिये ये शरीर ही तो समस्त क्लेशों की जड़ है.है कि नही.
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तो हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

"हे भगवन ! इच्छाओं के अनंत आदेशों की कोई सीमा नही है.हालाकि मैंने इनकी इतनी सेवा कि पर फिर भी इन्हें मुझ पर दया नही आयी.इनकी सेवा करते हुए न तो मुझे शर्म आयी न मुझमे इन्हें छोडने की इच्छा ही उत्पन्न हुई.पर हे यदुपति ! हे प्रभु !अब मुझे अक्ल आ गयी है.अब मै इन्हें त्याग रहा हूँ.दिव्य बुद्धि के कारण अब मै अपनी इच्छाओं की नाजायज मांगों को पूरा करने से इनकार करता हूँ और अब मैंने आपके अभय चरणारविन्दों की शरण ली है.कृपया आप मुझे अपनी सेवा में लगाए और मेरी रक्षा करे."


हम इतनी अच्छी और बुरी इच्छाएं हमारे ह्रदय में उठती है.अगर हम उनके झंझावात में फंस जाएँ तो सोचिये क्या हालत हो जाती है आत्मा की.आत्मा जिसका एकमात्र काम है.एकमात्र कर्त्तव्य है भगवान की सेवा में लगना.भगवान से प्यार करना.उनसे जुडना.आत्मा अपने इस एकमात्र कर्त्तव्य को भूल जाती है इच्छाओं के झंझावात,इच्छाओं के दुष्चक्र में फँसकर.सोचिये.

तो यहाँ पर भक्त कहता है कि देखिये जब मैं इन्हें पूरा कर रहा था न,इनकी सेवा कर रहा था न तो मुझे शर्म भी नही आयी.शर्म आनी चाहिए.यानि हमें शर्म आनी चाहिए.क्यों?क्योंकि हम आत्मा हैं.आत्मा.हम अपनी इच्छाओं पर काबू लगा सकते हैं.हम आत्मा हैं.हम मनुष्य योनि में हैं.हम अपनी इच्छाओं पर काबू कर सकते हैं.जानवर अपनी इच्छाओं को काबू में नही ला सकता है.हम अपने पर संयम रख सकते हैं.नियंत्रण रख सकते हैं.जानवर नही कर सकता है.

एक कुत्ता-कुतिया अगर सड़क पर यौन-संबंध बनाते हैं और एक आदमी और औरत भरी मेट्रो में,भरी बस में,बाहर इसप्रकार की अश्लील हरकत करते हैं तो आप ये बताईये कि उनमे और कुत्तों में क्या फर्क रहा.आप ये बताईये.क्यों?क्योंकि जो animal है.जो पशु है वो अपनी इच्छाओं को control नही कर सकता है.उसमे उतनी बुद्धि नही दी भगवान ने.पर हममे Intelligence दी है ये समझने की कि क्या ठीक है और क्या गलत है.है कि नही.क्या सही है और क्या गलत है,ये हम समझ सकते हैं.

तो हमें अपनी इच्छओं की सेवा करते हुए शर्म नही आयी.ये एक भक्त कबूल कर रहा है.और न ही उन्हें छोडने की इच्छा उत्पन्न हुई.हमें पता है कि शराब पीने से हमारा जो लीवर है वो बैठ जाएगा.हमारा system बैठ जाएगा.लेकिन तो भी लोग पीते हैं.पीते हैं.पीते है.कभी भी इच्छा उत्पन्न नही होती कि छोड़ दे.लेकिन भक्त ये भी कहता है कि हे प्रभु अब मुझे अक्ल आ गयी है.कैसे अक्ल आ गयी है?क्योंकि भगवान कहते हैं:

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥


कि जो लोग प्रेम से सतत् में भजन करते हैं,कीर्त्तन करते हैं,मेरा नाम लेते हैं मै उन्हें ऐसी बुद्धि प्रदान करता हूँ कि वो मेरे पास आ सकते हैं.भगवान परम शुद्ध हैं और जब तक हम शुद्ध नही होंगे भगवान तक पहुँच नही सकते.भगवान को समझ नही सकते.तो ये अक्ल भगवान देते हैं.अक्ल आ गयी है अब मै इन्हें त्याग रहा हूँ.

आपने इच्छा व्यक्त की.कही से एक छोटी-सी इच्छा उत्पन्न हुई कि हे प्रभु!मै कब आपकी शरण में आऊंगा?कैसे होगा?और भगवान तुरंत कार्यवाही करते हैं कि हाँ ये जीव छूटना चाहता है अपनी इच्छाओं के दुष्चक्र से.भगवान हाथ बढ़ा देते हैं.भगवान हाथ बढ़ा देते हैं औए आपको उन हाथों को थामना है.बस इतना ही तो करना है.

तो भगवान कहते हैं कि जो लोग मेरा भजन करते है प्यार से मैं उन्हें ऐसी बुद्धि देता हूँ कि वो मेरे पास आ सकते हैं और भगवान के चरण अरविन्द जो हैं वो अभय हैं.अभय प्रदान करनेवाले हैं.आपको डर नही लगता.किसीप्रकार का डर नही लगता.वरना आदमी जो है अपने आप को भगवान समझता है तो बहुत डरता रहता है.
मुझे इसपर एक कथा याद आती है कि भगवान को misunderstand लोग कैसे करते हैं.एक बार एक आदमी था और उस आदमी की समस्या ये थी कि वो बहुत यात्रा करता था.एक दिन वो पानी के जहाज में बैठ करके यात्रा कर रहा था और उसका जहाज accident हो गया.उस दुर्घटना में उसका जहाज टूट-फूट गया तो वो एक ऐसे द्वीप पर चला गया,ले जाया गया पानी द्वारा जहाँ कोई नही रहता था.वो वहाँ रोने लगा कि हे भगवान मुझे बचाओ!बचाओ!खूब रोया,खूब रोया लेकिन कोई उसे बचाने नही आया.

धीरे-धीरे उसने वहाँ एक झोपड़ी बनायी उन लकडियों से जो की जहाज की थी.जो भी उसके पास था,थोड़ा बिस्किट वगैरह वहाँ रखा और वहाँ रहने लगा.समझौता कर लिया उसने परिस्थिति से.एक दिन जब वो खाना-वाना ढूंढकर वापस आया तो देखा कि उसकी झोपड़ी में आग लगी है.धुआं उठ रहा है.

तो उसने भगवान को खूब कोसा कि तुमने ये क्या कर दिया.तुम्हे बिल्कुल दया नही आयी और कहते-कहते रोते-रोते वो सो गया.अगले दिन उसने देखा कि एक जहाज वहाँ आ गया और वहाँ से एक यात्री उतरा.captain उतरा और उसने कहा कि आओ मै तुम्हे बचाने आया हूँ.तो उस आदमी ने कहा कि मगर आपको कैसे पता चला कि मै यहाँ हूँ.तो captain ने कहा कि अरे वो जो धुआं था न.वो आसमान तक पहुँच रहा था.उसे देखकर लगा कि कोई हमें सहायता के लिए पुकार रहा है.

तो देखिये भगवान हर तरह से आपकी मदद करते हैं.परिस्थितियां अगर विपरीत हो तो ये मत सोचियेगा कि भगवान आपकी मदद नही करते.हमेशा वो आपकी मदद करते हैं.
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हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.भगवान से पहले एक भक्त ने अरदाज की कि मेरी इच्छाओं ने मुझे बहुत सताया है.और मुझे अक्ल आ गयी है.अब मै इन्हें त्याग रहा हूँ.अब आपने दिव्य बुद्धि दे दी है तो अब मै अपनी इच्छाओं को पूरा करने से इनकार करता हूँ.जो नाजायज इच्छाएं हैं.सिर्फ आपकी सेवा आप मुझे लगाओ और मेरी रक्षा करो.ये कहा था एक भक्त ने और भगवान ने पुष्टि की है इसी बात की कि हाँ

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥


भगवान कहते हैं कि जो लोग प्रेम से सतत मेरा भजन करते हैं उन्हें मै ऐसी बुद्धि प्रदान करता हूँ कि वो मेरे पास आ सकते हैं.ऐसी विमल बुद्धि जो दुनिया में नही लगेगी.जो दुनिया की तरफ नही भागेगी.जब दुनिया जा रही होगी एक किसी बड़े शो को देखने.बहुत बड़े-बड़े games हो रहे होंगे.लोग जा रहे होंगे लाइन लगा रहे होंगे.जाने क्या-क्या हो रहा होगा.फूटबाल मैच हो रहा होगा.लोग टेलीविजन की आगे रात-रात भर जाग रहे होंगे.तो एक भक्त बड़े आराम से इन सब उत्पातों से दूर भगवान की सेवा में संलग्न होगा.

क्योंकि उसे पता है कि ये matches आयेंगे जायेंगे.कई विवाद को जन देंगे.कोई आज हीरो बनेगा.कल वो जीरो हो जाएगा.लेकिन अपने भगवान तो सदा हीरो थे,हैं और रहेंगे.हम तो शाश्वत हीरो को प्रणाम करते हैं.temporary heroes को कोई सलाम नही करते.क्यों?

क्योंकि ये स्वतंत्र कहाँ हैं.ये तो आज हैं और कल नही रहेंगे.तो हमें तो  permanence चाहिए और वो स्थायित्व हमें मिलता  है भगवान के श्री चरणों में.तो भगवान ने कहा कि

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥


बड़ी सुन्दर बात कि मै भक्तों के ह्रदय में रह करके उनके अज्ञान के अंधकार को ज्ञान का दीपक जला करके नष्ट कर देता हूँ.इसतरह उन पर विशेष कृपा करता हूँ.यानि भक्तों पर विशेष कृपा होते है अभक्तों पर नही.अभक्तों पर normal कृपा होती है.खाना मिल गया,पानी मिल गया,सोने की जगह मिल गयी,माँ-बाप मिल गए,नौकरी मिल गयी.ये normal कृपा है.जो special mercy है भगवान की.जो विशेष कृपा है वो विशेष कृपा ये है कि भगवान जीवात्मा को अपनी सेवा में लगाएं.अगर ये हो गया तो समझ लोजिये कि आपकी जिंदगी वाकई सफल हो गयी.अगर ये नही हुआ और सब कुछ हो गया.आप बड़े-बड़े engineer गए.ऐसी-ऐसी संस्थाओं में आपका admission हो गया जहाँ लोग तरसते हैं तो भी आप जीरो ही रह गए.हीरो नही बन सके.

जबकि भक्त.भक्त जो है वो बहुत ऊपर उठ जाता है.भगवान उसे ज्ञान दे देते हैं.एक बड़ा सुन्दर श्लोक भी है.भगवान कहते हैं कि जो व्यक्ति मेरी कथाओं को सुनता है.मेरा भजन करता है.उसके ह्रदय में बैठ करके मै सारी गंदगी,material desires की जो गंदगी है.material enjoyment.भोग करने की जो हमारे अंदर लिप्सा है,लालसा है,जो कामना है,उसको मै दो देता हूँ.मै clean कर देता हूँ.

तो ये भगवान करते हैं.आप क्या सोचते हैं आप करते हैं.अगर आप सोचते हैं कि मै जो है लड़ना नही चाहता. मगर मै लड़ता हूँ.कल से लड़ाई छोड़ दूंगा.तो क्या आप छोड़ पायेंगे.नही.पाशविक वृत्तियाँ अपना असर देखायेंगी ही.जो हमने कर्म किये उसके results हमको भोगने पड़ेंगे ही.संस्कार सामने आयेंगे ही.

लेकिन यदि भगवान की शरण ली तो भगवान हमें इन सब से ऊपर उठा लेंगे.हमें प्रेम करते हैं भगवान और इसीलिए जो भगवान की शरण में आ जाता है,भगवान उसे क्षमा कर देते हैं.उसे पापों से मुक्त कर देते हैं.उसे पाना प्रेम प्रदान करते हैं.ज्ञान का दीपक जल जाता है.ह्रदय में वो टिमटिमाने लगता है.ज्ञान की ऐसे लौ भडकती है कि वो कभी भी ठंढी नही पड़ती.ऐसे लौ ज्ञान की हमारे ह्रदय में जलने लगती है.प्रज्ज्वलित हो उठती  है.कैसे ?भगवान की अनुकंपा से.भगवान कह रहे हैं न
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।
अनुकंपा करता हूँ मै.special mercy on devotees.भक्तों पर विशेष कृपा.होती है.आप देखिये.जो लोग भगवान का सतत नाम लेते हैं आप देखेंगे कि उनके ह्रदय में बदलाव आता है.उनका मन फिर ये दुनियादारी में नही लगता.दुनिया,दुनियादारी उन्हें समझ नही आती फिर.दुनिया के किस्से.दुनिया भर की बातें.दुनिया भर के news.दुनिया भर के आकर्षण.ये चैनल,वो चैनल.ये सीरियल,वो सीरियल.

अरे नही,irritate हो जाते हैं वो.ये सब हमारे सामने मत लाओ.बेकार चीजें हैं.हम नही देख सकते.हमारे प्रेम में बाधा उत्पन्न करती हैं ये चीजें.हमें शांति चाहिए क्योंकि भक्ति एकांतिक होती है कई बार.एकनिष्ठ भक्ति एकांतिक होती है.आपको अकेलापन चाहिए होता है.अकेले में आप उनसे जुडना चाहते हैं.उनसे बातें करना चाहते हैं.उनके लिए रोना चाहते हैं.उनसे चिपकना चाहते हैं.है कि नही.

तो खैर ये सारी चीजें हैं महसूस करने की.जब आप भक्ति करते है. भगवान का नाम लेते रहते हैं तो ये सारे परिवर्त्तन अपने आप उत्पन्न होते हैं.अपने आप नही भगवान पैदा करते हैं.भगवान की वजह से,उनकी special mercy की वजह से होता है.
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कार्यक्रम में आप सबका बहुत-बहुत स्वागत है.तो आपने सुना कितना प्यारा भजन था -
ऊपर गगन विशाल.

शुरू-शुरू में जब इंसान भक्ति की तरफ मुडता है तो शुरुआत में उसे आश्चर्य होता है ककी ये आसमान है.आसमान में इतने ग्रह हैं.इतने तारें हैं और वैज्ञानिक बताते हैं कि ये तारे जो हैं वो बहुत बड़े-बड़े हैं.सूर्य के आकार से भी बड़े हैं.तो ये सब लटके हुए कैसे हैं.हमारे सिर पर गिर कैसे नही जाते.वैसे ही जैसे बड़े-बड़े तरबूज वगैरह बेल पर लटकते हैं और छोटे-छोटे फल पेड़ पर लटकते हैं.

इस सबके पीछे दिमाग किसका चलता है.कौन है जो  इतना सोचता है हम सब की भलाई के लिए.कौन है जो रेगिस्तान में इतना रस पैदा कर देता है.तरबूज में मीठा-मीठा रस होता है.पानी-ही-पानी,पानी-ही-पानी.कौन है जो इतना सोचता है.कोई सोचता है तब तो ये होता है.automatically,by chance कैसे हो सकता है.by chance नही है ये.तो वो जो भी है उसे ढूँढना ही हमारे जीवन की मंजिल है.
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कार्यक्रम में आपका बहुत-बहुत स्वागत है.अब समय है आपके messages को शामिल करने का.तो आईये पहला  message शामिल करते हैं

































SMS :वणी को जो साहिबाबाद से लिखते हैं कि Don't be a parrot be a eagle.A parrot speaks but can't fly high.But an eagle is silent has a will power to touch the sky.

























अर्थात
तोता मत बनिए एक चील बनिए.जो तोता है वो बोल सकता है मगर ऊँचा उड़ नही सकता.पर चील जो है वो silent रहती है और उसके अंदर इतनी will power होती है.इतनी शक्ति होती है.मन की शक्ति होती है कि वो आसमान को छू सकती है.









































Reply By माँ प्रेमधारा:वणी जी आपने बहुत अच्छी बात कही.लेकिन आसमान को छूना क्या?मै तो आपको आसमान के पार ले जाना चाहती हूँ.चाँद के पार.आसमान के पार.आध्यात्मिक लोक में ले जाना चाहती हूँ.आध्यत्मिक लोक तक न तो parrot जा सकता है न eagle.दोनों में से कोई नही जा सकता है.वहाँ सिर्फ और सिर्फ शुद्ध भक्त जाते हैं.जो भगवान की भक्ति में रत रहते हैं,भगवान उन्हें अपने साथ ले जाते हैं.

तो हमारी जो निगाह है वो सिर्फ आसमान पर नही होनी चाहिए.आसमान के पार जो लोक है आध्यात्मिक लोक .वैकुंठ लोक.जिनके बारे में आमतौर पर लोगों को कोई जानकारी नही.मगर अगर आपको पता नही तो इसका मतलब ये नही कि वो है नही.वो है.अस्तित्व है उनका.हर मजहब में उनका जिक्र है.तो वहाँ उन लोकों में जाने की  तैयारी करनी चाहिए और वो मनुष्य योनि में ही हो सकता है.अगर हम पशु-पक्षी बन जाए तब ये संभव नही.













































SMS :शोभा रोहिणी से पूछती है कि अपने बच्चे का career बनाना क्या इच्छा है?क्या ये हमारा कर्म नही?
















































Reply By माँ प्रेमधारा:शोभा जी अपने बच्चे का career बनाना आपका फर्ज है.duty है आपकी.कर्त्तव्य है.लेकिन वो आपका मुख्य कर्त्तव्य नही.वो आपका गौण कर्त्तव्य है.secondary.बाद में आता है.मुख्य कर्त्तव्य है स्वयं को पहचान कर के भगवान की भक्ति करना.नही तो ये स्वर्णिम मौक़ा निकल न जाए.अगर आप बच्चे का career बनाते रह गए.उसे डॉक्टर,इंजिनियर बना भी दिया तो इस दुनिया में करोडो डॉक्टर,इंजिनियर हैं.आपने उस भीड़ में एक और व्यक्ति जोड़ दिया न.ठीक है.अच्छा कमाएगा.फर्ज है.करिये.no problem.


लेकिन सबसे बड़ी बात है कि हमें भक्ति करनी है.बच्चा कुछ भी बने मगर वो भक्ति भी करे.भगवान से भी जुड़े.तब हम अपने कर्त्तव्य को भलीभांति अंजाम देते हैं.
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SMS :
दिल्ली से जाने कौन पूछते हैं कि



































भगवान कृष्ण इतने महान हैं कि हम उन्हें क्या भोग लगा सकते हैं?भला एक अमीर आदमी को गरीब आदमी का सूखा साग भला कहाँ अच्छा लगता है?












































Reply By माँ प्रेमधारा:हूँ.सही बात है लेकिन भगवान जो हैं वो आपके भगवान ही नही हैं, आपके पिता भी हैं.भगवान कहते हैं कि

पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।
आपसे संबंध है उनका.अगर माँ-बाप अगर एक गरीब बच्चे के घर में जायेंगे.बच्चा अलग रहता है.अपने आप कमाता है.गरीब है और माँ-बाप को बुलाता है.माँ-बाप उसके पास जाते हैं.माँ-बाप को वो सूखी रोटियाँ और दाल ही पेश कर पाता है.

तो आप क्या समझते हैं कि माँ-बाप कहेंगे कि हम तो छप्पन प्रकार के भोजन खाते हैं.तुमने ये क्या दे दिया हमें.ऐसा कहेंगे क्या या प्यार से खायेंगे कि मेरे बेटे की कमाई से है.मेरे बेटे ने ईमानदारी से इसे कमाया और हमें खिला रहा है.हमारे लिए सोचता है.कितना प्यारा बच्चा है हमारा.

सोचिये एक बच्चा जिसे आप पैसे देते हो दस रुपये.वो दस रुपये से पाँच रुपये की चॉकलेट लाता है और पाँच रुपये से आपके लिए कोई सामान ले आता है.एक पेन ले आता है.आपको कहता है कि देखो पापा आप ऑफिस में इतना काम करते हैं.आपका पेन बार-बार खत्म हो जाता है.मैंने पाँच रुपये का ये पेन लिया.है पेन पाँच रुपये का.पाँच हजार,करोड़ रुपये का नही है लेकिन माँ-बाप के खुशी की कोई सीमा ही नही रहेगी कि बच्चा कितना आज्ञाकारी और प्यारा है.हमारे बारे में सोचने लगा है.समझ रहे हैं.

तो भगवान अमीर-गरीब नही देखते.भगवान सिर्फ इंसान की नियत देखते हैं.याद रखना.













































SMS :आगे एक और प्रश्न है शरद जी का दिल्ली से.पूछते हैं कि 

इच्छा और जरूरत में क्या फर्क है?हम कैसे फर्क करे?इसी में तो सारी मानव जाति फंसी है.













































Reply By माँ प्रेमधारा:सही बात है.इच्छाएं अनंत होती हैं और जरूरत थोड़ी होती है इंसान की.थोड़ी.कपडे की जरूरत है.कपड़ा cotton का भी हो सकता है.कपडा silk  का भी हो सकता है.कपड़ा Cotton का ऐसा भी हो सकता है कि ढाई सौ रुपये की एक साड़ी है.ढाई सौ रुपये की एक साड़ी में तन ढक सकता है.जरूरी नही है कि बीस हजार रुपये की साड़ी आप पहने.


तो बीस हजार की साड़ी खरीदना ये एक इच्छा है जिसको आपने पूरा किया लेकिन एक साड़ी आपने खरीदी कि तन ही ढकना है सिर्फ मुझे.कोई ज्यादा वो हाई-फाई बन करके नही चलना है.हाँ तो वो जरूरत है.है न.तो ये है इच्छा और जरूरत का फाटक.पेट भरना है.दाल-रोटी से आप पेट भर सकते हो.जरूरी नही है कि आप जा करके रेस्टोरेंट में यहाँ-वहाँ का गंदा खाना खाओ.पता नही कैसे बनता.किसप्रकार के हाथ से बनता है.कैसे तेल से बनता है.किचेन कैसा है.लेकिन आप जाते हो,खाते हो.वो इच्छा है.इच्छा पूरी करना,जरूरत नही है.याद रखना.
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SMS :अर्जुन शेख सराय से कहते हैं कि




मै प्रभु की सेवा में रहूँ.क्या ये भी एक इच्छा है?

























































































Reply By माँ प्रेमधारा:यही तो एक विमल,एक pure इच्छा है.अर्जुन जी प्रभु की सेवा में ही रहो.यही इच्छा करनी चाहिए.ये इच्छा थोड़ी  न है.इच्छा कहते हैं अपने self gratification को.जो इच्छा अपने sense को gratify करने के लिए हो.उसके gratification के लिए हो.इन्द्रतृप्ति के लिए हो वो इच्छा पाप हो जाती है क्योंकि वो इच्छा हमें भगवान से बहुत दूर ले जाती है.ऐसी इच्छा से बचना चाहिए.


लेकिन भगवान की सेवा में रहने की इच्छा ये तो बड़ी प्यारी इच्छा है भाई.बहुत-ही प्यारी इच्छा है.आप जरूर इच्छा कीजिये ऐसी.












































SMS :सीमा दिल्ली से,मीरा पांडवनगर से लिखती हैं कि 




आपको सुनते हुए एक अरसा हो गया.अब आपको हम टी.वी.पर देखना चाहते हैं.इतने लोग टी.वी. पर आते हैं पर आप नही आती.आप भी किसी धार्मिक चैनल पर आईये न ताकि देश-विदेश के लोगों को प्रभु का सच्चा सन्देश मिल सके.









































Reply By माँ प्रेमधारा:देखिये ऐसा है कि सब कुछ तो संभव नही.टी.वी. पर ऐसा नही है कि हमने जाने का प्रयास नही किया.किया लेकिन जितने भी धार्मिक चैनल हैं वहाँ पर जाने के लिए,वहाँ पर बीस मिनट के कार्यक्रम के लिए भी आपको महीने के चार-चार लाख,पाँच-पाँच लाख रुपये देने पड़ते हैं.तीन लाख,चार लाख.तो ये तो मेरे लिए संभव नही है.इतने पैसे मेरे पास नही है कि मै जो है खर्च कर सकूं.

अगर कभी कोई व्यक्ति जो कि भगवान के संदेश को वाकई दूर-दूर तक पहुंचाना चाहता है.अगर ऐसा कोई व्यक्ति हमें मिलता है जो हमें sponsor कर सके तो हम क्यों नही आयेंगे.हम जरूर आयेंगे.लेकिन होता क्या है कि हम हर चीज sponsor कर सकते हैं.क्रिकेट मैच,फूटबाल मैच,कहीं कोई अश्लील नाच हो रहा हो,मनोरंजन की कितनी चीजें हम sponsor करते हैं.भीड़ लगी रहती है.

लेकिन जब आप ऐसी बातों के लिए किसी को ढूँढने जाओ कि भाई आप इस कार्यक्रम को sponsor कर दीजिए थोड़ा ही.किसी के लिए.किसी बहुत बड़ी company के लिए ये बहुत बड़ा amount नही है लेकिन तो भी वो बहुत सोचेंगे.

तो खैर देखिये भगवान की इच्छा.भगवान क्या चाहते हैं.ईश्वर चाहेंगे तो जरूर मै आपको दिखाई भी दूंगी.









































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SMS :अगला message है संगीता का अलीगढ़ से.कहती हैं कि आपने बहुत अच्छी आदत डाल दी है.अब मै भगवान से कुछ मांगती नही.Thank You.












































Reply By माँ प्रेमधारा:Thank you.Very much कि आप भगवान से कुछ नही मांगती.कुछ तो आराम मिला भगवान को.हमने अपने मांगों से भगवान को परेशान कर रखा है.मांग-मांग के.इतने व्रत,उपासना करते हैं.कभी एक टांग पर खड़े हो जाते हैं.कभी ठंढे पानी में घुस जाते हैं.कभी धूप में तपने लगते हैं.जाने क्या-क्या करने लगते हैं ताकि अपनी मांगों को पूरा कर सके.पूरा करवा सके.भगवान को जबरदस्ती,जबरदस्ती अपना नौकर बना सके कि हमारी मांग को पूरा करो नही तो हम तुम्हे भगवान मानने से इनकार कर देंगे.हाँ धमकियाँ देते हैं हम लोग.




शुक्रिया.ऐसे धमकियाँ देनेवाले में से कम-से-कम एक नाम तो कम हुआ.













































SMS :राकेश रोहिणी से कहते हैं कि Chanting is the matter of spiritual life and death.So you can not say that today i am inattentive but tomorrow i will be attentive.Be attentive today.

यानि कि भगवान का नाम लेना,भगवान के नाम का जप जो है वो आध्यात्मिक जिंदगी और मौत का सवाल है.तो आप ये नही कह सकते कि आज मेरा ध्यान नही लग रहा है कल जरूर ध्यान लगेगा.आज ही ध्यान से भगवान का नाम लीजिए.













































Reply By माँ प्रेमधारा:बहुत सुन्दर बात है.बहुत प्यारी बात है.














































SMS :ममता दिल्ली से कहती हैं कि क्या week days के कार्यक्रम में भजन कम और आपका प्रवचन ज्यादा नही हो सकता?













































Reply By माँ प्रेमधारा:ममता जी कार्यक्रम आ ही रहा है अभी इसी के लिए शुक्रिया अदा कीजिये. इसी के लिए शुक्रिया कहिये क्योंकि वक्त का कुछ नही पता.हो सकता है कि ये कार्यक्रम भी आपको न सुनाई दे आनेवाले समय में.हो सकता है कि आज का जो मेरा शो हो वो last हो.अंतिम शो हो.क्या पता.वक्त का कोई भरोसा नही है.जो मिल रहा है उसमे भगवान का शुक्रिया कीजिये.ज्यादा की ख्वाहिश करना कई बार विपरीत पड़ जाता है.उल्टा हो जाता है.




आज के कलयुग में अगर ऐसा कार्यक्रम भी हमारे चैनल वाले allow कर रहे हैं.वो आपको सुना रहे हैं तो उनका शुक्रिया अदा कीजिये.जरूरी नही है कि ये कार्यक्रम इसी format में आपको कल को सुनायी दे.हो सकता है कि format बहुत बदल जाए.हो सकता है कि जो कार्यक्रम दे रहा है वही परिवर्त्तित हो जाए.कोई और रेडियो जॉकी आपको कार्यक्रम सुनाये.कुछ भी हो सकता है.हो सकता है कि आज के कार्यक्रम के बाद मै आपसे कभी न मिलूँ.कुछ भी तो हो सकता है.

तो हमें अपनी ख्वाहिशों को बढ़ाना नही चाहिए.बस भगवान से जुडने की कला सीखनी चाहिए.है कि नही.













































SMS :अगला message है अनु का दिल्ली से.कहती हैं कि 

मै चौदह साल की हूँ.मै भगवान को अपना friend समझती हूँ.क्या ये ठीक है?












































Reply By माँ प्रेमधारा:हाँ,हाँ .आप साख्य भाव में हैं भगवान से.साख्य भाव यानि कि भगवान को अपना friend मानना.अरे भगवान ही खुद कहते हैं 




सुहृदं सर्वभूतानां

मै सबका Best Friend हूँ.शुभचिंतक हूँ.सबसे अच्छा दोस्त हूँ.तो भगवान से आप जो रिश्ता गांठिये वो हर रिश्ते में आपके सामने पेश आयेंगे.दोस्त मानोगे दोस्त बन जायेंगे.वैरी मानोगी,दुश्मन मानोगी,दुश्मन बन जायेंगे.भगवान के अंदर कोई खोट नही आएगा.भगवान ये नही सोचेंगे कि ये मेरा दुश्मन है.आपने जिस रूप में उन्हें देखने की इच्छा जाहिर की,भगवान उसी रूप में आपके सामने आ जाते है.
बहुत sweet हैं वो.

अनु जी आप चौदह साल की हैं और कार्यक्रम सुनाती हैं.बहुत-बहुत धन्यवाद.अपने friends को भी बोलो न कि वो भी ये कार्यक्रम सुने.
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SMS :अगला प्रश्न है U.P.से जाने कौन है.वो पूछते हैं कि शास्त्र कहते हैं कि जड़ में पानी डालो वो पत्ते-पत्ते में फ़ैल जाएगा.यानि भगवान की भक्ति करो तो सबकी भक्ति हो जायेगी.इन भगवान का नाम तो बतायिये.





























Reply By माँ प्रेमधारा:ऐसा है कि मै तो जो है हमारे सनातन धर्म के शास्त्रों के बारे में जानती हूँ.सनातन धर्म के शास्त्र कहते हैं कि जो भगवान हैं उनका नाम है श्रीकृष्ण.
"ईश्वरः परमः कृष्णः सचिदानंदविग्रहः |
अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वकारणकारणं ||"
भगवान कृष्ण भी भगवद्गीता में यही बात कहते हैं
सर्वलोक महेश्वरं
मै सभी लोकों का महेश्वर हूँ.महा ईश्वर हूँ.

न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥

भगवान कहते हैं भगवद्गीता में कि मुझे कोई नही जानता.न सुरगण,न देवी-देवता,न महर्षि क्योंकि मैंने इन्हें बनाया है.ये मुझे क्या जानेंगे.हाँ.मैंने create किया है.मै creator हूँ.
मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
भगवान कहते हैं.कृष्ण कहते हैं कि सब कुछ मुझी से उपजा है.
तो कृष्ण का मतलब होता है सर्वाकर्षक.जो सबसे ज्यादा आकर्षक है और भगवान सबसे ज्यादा आकर्षक हैं ही.
और आपने अगला प्रश्न इसी से जुड़ा हुआ किया है कि इन्हें कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

तो कलयुग में इन्हें प्राप्त करने का तरीका बहुत आसान है.हमारे शास्त्र कहते हैं कि
इति षोडषकं नाम्नं कलि कल्मष नाशनं |
नातः परतरोपायः सर्व वेदेषु दृश्यते |
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे |
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे |

ये महामंत्र है जिसका अगर हम रटन करते हैं.रटते रहते हैं इस नाम को.हमेशा उसकी माला करते हैं.कम-से-कम एक दिन में इसे 1728 बार इस नाम को लेना चाहिए,पूरे महामंत्र को.सोलह माला करनी चाहिए.तो आप आसानी से भगवान का प्रेम प्राप्त कर सकते हैं.प्रेम मिल जायेगा तो भगवान के मिलने में देर ही कहाँ है.






























SMS :आरती दिल्ली से कहती हैं कि
Winning horse does not know you but it runs.It runs because rider beats and pains.If life is race.God is your rider.If you are in pain then think God wants you to win.
यानि ये कहती हैं कि जीतने वाला जो घोड़ा है उसे नही पता कि आप कौन हैं लेकिन वो भागता रहता है.भागता रहता है क्योंकि उसको उसके ऊपर जो चढा हुआ है घुरसवार वो मारता है.उसे दर्द देता है.तो वो जीत जाता है.इसी तरह ये जीवन एक रेस है.भगवान आप पर चढ़े हुए हैं और अगर आपको दर्द मिलता है तो समझिए कि भगवान चाहते हैं कि आप विजयी रहे.





























Reply By माँ प्रेमधारा:अच्छी सोच है.लेकिन भगवान कभी दर्द नही देते.भगवान आनंद हैं.उनका काम है सिर्फ आनंद देना.लेना आपको आता नही.ये आपकी problem है.
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SMS :अगला message है श्वेता का आई.एन.ए. से कहती हैं कि हमें पता है कि हम आत्मा हैं तो हम अपने शरीर का ख्याल क्यों रखे?

























Reply By माँ प्रेमधारा:बहुत सही बात.देखिये आत्मा हैं आप लेकिन जो जानवर के शरीर में ,पशु के शरीर में वो भी आत्मा है.बिल्कुल आप जैसी.मेरे जैसी.लेकिन आज उन्हें पशु का शरीर प्राप्त है.पशु के शरीर में वो भगवान की भक्ति नही कर सकते.लेकिन इंसान के शरीर में ही आप भगवान की भक्ति कर सकते हैं.अगर आप अपने शरीर का ख्याल नही रखोगे.उसे स्वस्थ नही रखोगे तो भक्ति करोगे कैसे.यहाँ-वहाँ दर्द रहेगा.यहाँ-वहाँ बेचैनी रहेगी.तकलीफ रहेगी.रोग रहेंगे तो रोग में मन लगेगा.उसके निवारण के तरफ मन भागेगा कि भक्ति की तरफ मन भागेगा.भगवान की तरफ थोड़े न भागेगा.

इसीलिये अच्छा ये है कि इस शरीर का care करो.भगवान भी कहते हैं
निर्देहम आद्यं सुलभं
जो आपको सारी-की-सारी बातें आपको पता चली हैं.वो नर देह से ही तो पता चली है.जानवरों को भी यही बात अगर सुनाओगे तो आप ये जान लीजिए कि जानवर नही समझ पाएंगे इस बात को.आप समझ पाती हैं.इस पर कार्य कर सकती है.ये प्रश्न आपके दिमाग में आया कि हम आत्मा हैं लेकिन जानवर को आप बताएंगी कि आप आत्मा है.आप आत्मा है.आप आत्मा है.तो क्या वो समझ पायेगा.नही.नही समझ पायेगा.

तो यहाँ पर बहुत बड़ी बात बतायी गयी है कि आप आत्मा हैं लेकिन तो भी आपको शरीर का ख्याल रखना है क्योंकि भगवान ने कहा है कि
जो नर देह है वो boat के समान है.एक नाव के समान है जो आपको भवसागर पार करा सकती है.

तो भाई नाव का ख्याल नही रखोगे तो बीच में ही डूब जाओगे.है कि नही.






















SMS :प्रद्दुम्न गुडगाँव से पूछते है कि हम धरती पर क्यों आये हैं?





















Reply By माँ प्रेमधारा:प्रद्धुम्न जी ये धरती,ये जगह जहाँ आप हैं ये जेल है और इस जेल में आप इसलिए आये हैं क्योंकि आपने भगवान के laws के खिलाफ,उनकी नियम के खिलाफ कार्य किया है.उनके नियम को मानाने से इनकार किया.भगवान को भगवान मानने से इनकार किया.

तो धरती पर आप rectification के लिए,सुधारगृह में आये हैं.जेल क्या होता है.वो punishment देता है.सजा देता है और कई बार उस जेल के किसी कैदी को शाबाशी भी मिलती है.तो हम  इसीप्रकार से जेल में हैं और हमें punishment मिल रहा है ताकि हम अपने आप को rectify करे.सुधार सके और जब हम बिल्कुल शुद्ध हो जाए तो वापस हम भगवद्धाम जा सके.जहाँ हमें होना चाहिए.

ये जिस समय आप समझ लोगे कि ये जगह घर बनने लायक नही है बड़े-बड़े apartments.अपने dream home खरीदने लायक नही है.ये तो जेल है.तो आपका कल्याण हो जाएगा.
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SMS :विनीत गुडगाँव से पूछते हैं कि भगवद्धाम जाने का मतलब चेतन से जड़ हो जाना है क्या?

















Reply By माँ प्रेमधारा:विनीत जी.आनंदकंद हैं भगवान.उनका धाम परम आनंदमय है.बताईये जड़ कैसे आनंद उठा सकता है.जी निर्जीव अहि वो आनंद उठा सकता है क्या?चेतन ही तो आनंद उठता है.आप अभी चेतन हो कहाँ.आपने जड़ चीजों की संगति की है तो आप अपने को जड़ ही समझते भी हो.अपने आप को शरीर समझते हो.आपने चेतन को यहाँ जड़ कर दिया है.
भगवद्धाम जाने का अर्थ है कि चरतां चेतन हो जाता है.सुचेतन हो जाता है.और भी दिव्य हो जाता है.और जब वो super चेतन,super soul की सेवा करता है.भगवान की सेवा करता है तो सोचिये वो कितने आनंद का भोग करता है.क्या जड़ आनंद का भोग कर सकता है?सोचिये.not possible.


















SMS :अगला message है गोपाल का.National security guard हैं ये.बोलते हैं कि मै army में हूँ.भगवान की भक्ति अपने busy schedule में कैसे करूँ?

















Reply By माँ प्रेमधारा:गोपाल जी आप army में हैं बहुत अच्छी बात है.हमारा पेशा कुछ भी हो सकता है.हम डॉक्टर हो सकते हैं.हम आर्मी में हो सकते हैं.हम जो है जूता गाँठ रहे हो सकते हैं.हम जो है बस में कंडक्टर हो सकते हैं.मेट्रो में एक ड्राईवर हो सकते हैं.हम कुछ भी हो सकते हैं.

लेकिन कुछ भी पेशा क्यों न हो.कहीं भी आप क्यों न रहे.Position किसी भी क्यों न हो.आप आराम से भक्ति कर सकते हैं.अपने तार भगवान से जोडने ही तो है.

और मैंने आपको बताया कि अगर आप भगवान के नाम का रटन करते हैं.कीर्त्तन करते हैं तो आप भगवान से जुड जाते हैं.तो ऐसा तो है ही नही कि जब आप आर्मी में हैं तो आपका मुँह काम न करता हो.आप कईयों से बातें करते हैं.तो अपना मन-ही-मन या मुँह खोल के भगवान का नाम लेते रहिये.उसे सुनिए.जब भी दो पल मिले भगवान के नाम में डूब  जाईये.भक्ति हो जाती है.नाम ही में भक्ति है.कलियुग में नाम ही आधार है.तो उस नाम का आश्रय लीजिए.


SMS :
मधु लक्ष्मीनगर से पूछते हैं कि आप शास्त्र की बात करती हैं.कौन सा शास्त्र पढूं?


Reply By माँ प्रेमधारा:
देखिये मै तो सनातन धर्म के शास्त्रों के बारे में ही जानती हूँ.लेकिन जो भी जिस-जिस मजहब के लोग हैं वो अपने मुख्य शास्त्रों को पढ़ ही सकते हैं.और आप भगवद्गीता पढ़िए.बहुत सुन्दर ग्रंथ है ये.इस ग्रंथ में आपको सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे.भगवान ने इतनी खूबसूरती से सब कुछ बताया है.सब कुछ.सारा कुछ.जो आपके अंदर प्रश्न है.जो जिज्ञासा है.पढ़िए बड़े प्रेम से.

लेकिन एक ही चीज है आपको भक्त बनना पड़ेगा तो ये शास्त्र आपको समझ आएगा.बिना भक्त बने,भगवान का भक्त बने बगैर आपको ये शास्त्र समझ नही आ सकता है.लेकिन पढाई अगर करनी है तो इसी की करिये.तो बात बनेगी.


SMS :
पिंकी दिल्ली कैंट से कहती हैं कि आपका ये program सुन के मेरी आठ साल की बेटी भक्ति में मुझसे आगे निकल गयी.



Reply By माँ प्रेमधारा:
Congratulations !ये तो बहुत अच्छी बात है.बच्चा अगर भक्ति में माँ-बाप से आगे निकल जाए तो बड़ी सुन्दर बात है.क्योंकि आमतौर पर लोग सोचते हैं कि भक्ति जो है बुढ़ापे का विषय है.बुड्ढे जब हो जाए तब भक्ति कीजिये.जी नही.बुढापे में आदतें पक जाती हैं.बुढ़ापे तक आपने अगर गलत कुछ किया है तो आप गलत ही करते रहोगे.आप कहोगे कि नही यही सही है क्योंकि हमें पता है कि यही सही है.हम क्यों सुने?

तो आदतें पक जाती हैं.एक जिद्दिपना आ जाता है बुढ़ापे में.अपने आप को आदमी बहुत अक्लावान समझता है.उसे लगता है कि कम उम्र के व्यक्ति से हम अक्ल क्यों ले.तो भक्ति की जो उम्र है वो बचपन से ही शुरू हो जाती है.पाँच वर्ष के अवस्था से और जिन बच्चों को भगवान ने वैष्णव के घर में जन्म दिया होता है.भक्तों के घर में जन्म दिया होता है आप गौर करना उनकी जो भक्ति है वो तो जिस समय उनका सिर थोड़ा सीधा होता है न उसी समय से वो भगवान के फोटो को निहारते रहते हैं.

तो उनकी लीला वही जाने.अच्छी बात है कि आपकी बेटी भक्ति कर रही है.


SMS :
अगला प्रश्न आया है विश्वजीत का New Delhi से.दुःख जीवन में बिना किसी efforts के आते हैं अपने आप.क्या यही हाल सुख का भी है.क्या सही बात है?



Reply By माँ प्रेमधारा:
बिल्कुल.प्रहलाद महाराज ने कहा है कि
जो इन्द्रियों के बोध के कारण,इन्द्रियों की विषय-वस्तु के कारण सुख आती हैं.इन्द्रियां अपने विषयों में रत रहती हैं तो उसे सुख लगता है और जब उस सुख में बाधा पहुँचती है किसी-न-किसी हालत से तो वो दुःख है.है न.Automatically सुख आता है और automatically दुःख आता है.दुःख आप invite नही करते हैं.आमंत्रित नही करते हैं.बीमारी आप आमंत्रित नही करते हैं.बीमारी आ जाती है.


इसीप्रकार से जो सुख है वो अपने आप आता है.तो इसके पीछे मगजमारी क्यों की जाए?बुद्धि को क्यों लगाया जाय?अगर बुद्धि को लगाना ही है तो भगवान की प्राप्ति में,उनके प्रेम की प्राप्ति में लगाओ.भगवान में मन लगे इसके लिए अपनी पूरी बुद्धि लगा दो.जी-जान से जुड जाओ.

मै आपको बस यही कहूंगी हाथ जोड़कर कि मै आपके साथ रहूँ या न रहूँ.मै अगले हफ्ते से आपके साथ रहूँ या न रहूँ.या कभी भी आपके पास हूँ न हूँ तो भी आप अपनी भक्ति के इस अभियान को बंद मत करना.अपनी भक्ति को बहुत ही प्यार से करना.बहुत ही सुन्दर तरीके से.आपको शुभकामनाएं हैं.
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