Sunday, March 28, 2010

On 27th March '10 By Maa Premdhara








नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.ठीक हैं न.सुबह-सुबह एक ट्रक मेरे बगल से गुजरा,लिखा था                                                     
                              अपनी औकात मत भूलो.
ये बात तो एक ही हैं लेकिन इसके अनेकानेक अर्थ है.देखिये एक अर्थ तो ये हुआ कि ट्रक ड्राइवर साहब गाडी चलाते-चलाते मालदार हो गए होंगे.पर फिर भी उन्हें अपने संघर्ष के दिन याद आते रहते होंगे.बार-बार जमीन पर वो आ जाते होंगे और सबको बताते होंगे कि आप जो कुछ भी हो जाओ,अपनी औकात मत भूलो कि कहाँ थे आप.

इस वाक्य का एक अर्थ ये भी निकलता है कि आप जो भी हैं इस समय इसे मत भूलिए यानि जहाँ हैं वही ठीक है.बड़े-बड़े सपने मत देखिये.जितनी लम्बी चादर हो पैर भी उतना ही पसारना चाहिए.ऐसा बुजुर्गों ने कहा है,विद्वानों ने कहा है.अपनी पहुँच के परे की वस्तु को लेने का प्रयास निराशा को जन्म दे सकता है.हैं न.

खैर ये तो भौतिक मतलब हो गए.अपनी औकात मत भूलो का एक बड़ा ही सुन्दर आध्यात्मिक अर्थ निकलता है.ये वाक्य बताता है कि आप सब साधारण जीव नही है.आप सब भगवान् के अंश हैं.आपकी बड़ी ही ऊँची हस्ती है.आपका सम्बन्ध direct भगवान से हैं.

सोचिये कितनी बड़ी बात है किआप भगवान् के अंश हैं.आप उस अजीम सम्बन्ध को भूल गए और इस मृत्युलोक में parmanent  सम्बन्ध तलाश रहे हैं.हम सब भूल गए हैं अपनी असली स्थिति को इसलिए आज हम पर दुखों के पहाड़ टूटते हैं.इस दुनिया का कोई रिश्ता जब हमें ठुकराता है तो दिल टूट-टूट जाता है और हम दुखी हो जाते हैं.

पर मजे कि बात ये  हैं कि हमारा एकमात्र शाश्वत सम्बन्ध हमारे अपने प्यारे प्रभु से हैं.वो कब से इंतज़ार कर रहे हैं कि कब मेरी  ये संतान अपने असली औकात को पहचानेगी.और कब मेरी शरण में आयेगी.और हम हैं कि उस पुकार को सुन नही पाते.अपनी ही तड़प को पहचान नही पाते हैं और यही-के-यही रह जाते हैं.यही  कही खो जाते हैं.जाने कब तक के लिए.
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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.अब एक बहुत ही सुन्दर श्लोक सिर्फ और सिर्फ आपकी लिए.ध्यान से सुनिए,ध्यान से इसे समझिये और इसे अपने जीवन पर लागू करने का प्रयास कीजिये.श्लोक का अर्थ :

"अपने मन और इन्द्रियों को वश में करने में अक्षम मूर्ख देहधारी जीव अपनी इच्छाओं के विरुद्ध प्रकृति के गुणों के अनुसार कर्म करने के लिए बाध्य होता है.वो उस रेशम के कीड़े के सामान है जो अपनी लार का प्रयोग बाहरी कोष बनाने के लिए करता है और फिर उसी में बांध  जाता है जिससे निकल पाने की कोई संभावना नही रहती.जीव अपने ही सकाम कर्मों के जाल में अपने को बंदी कर लेता है.तब वह अपने को छुडाने का कोई उपाय नही  ढूँढ पाता.इसतरह वो सदा मोहग्रस्त रहकर बारबार मरता है."

देखिये कितना सुन्दर श्लोक है.श्लोक पढ़कर ही मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए.मतलब हमारी मूर्खता को बड़ी ही स्पष्टता से ये श्लोक इंगित कर रहा है.उसकी ओर संकेत कर रहा है दिखा रहा है.क्या?अपनी इन्द्रियों और मन को वश में करने में अक्षम देहधारी जीव.

पहली बात यहाँ देखिये देहधारी जीव के बारे में बात हो रही है.यानि कहीं से ये श्लोक आपको नही बता रहा है कि आपका शरीर  ही आप हो.देहधारी यानि कि जिसने देह को धारण किया है.जैसेकि कार के अन्दर कोई बैठा है,कार चला रहा है जिसने कार को धारण किया है.जो घर के अन्दर रहता है,घर में रहता है वो घर का निवासी.घर अलग है निवासी अलग है.देह अलग है और उसमे रहनेवाली आत्मा यानि हम अलग है.हमारी अलग सत्ता है.है न.

और हमारी सत्ता कैसे है?हम कभी न जन्म लेते हैं न मरते हैं,न हमारा वध हो सकता है.ठीक है न.इसबात को पहले समझने का प्रयास कीजिये कि हम क्या हैं?हम आध्यात्मिक स्फुलिंग,भगवान् के आध्यात्मिक कण.उनके आध्यात्मिक अंश और कर क्या रहे हैं?हम जड़ में interested हो रहे हैं.

यानि कि कोई चेतन है और जड़ में interested हो जाए ,चेतन में न रहे interested तो उसे क्या कहेंगे आप?मूर्ख कहेंगे.सोचिये आप कहे कि मुझे तो अपने तकिये से बहुत प्यार है.मै तो तकिये के बगैर रह नही सकता,ये तकिया मेरा सब कुछ है.इसको मै यहाँ ले जाता हूँ ,वहां ले जाता हूँ.पीछे रखता हूँ ,सर पे रखता हूँ.तो लोग हंसी उड़ायेंगे आपकी.इसीप्रकार से विद्वान लोग ऐसे लोगों की हंसी उड़ाते हैं जो अपनी जड़ इन्द्रियों में interested रहते हैं.खुश रहते हैं.उन्ही को संतुष्ट करने का प्रयास करते रहते हैं.

हमारी इन्द्रियां जड़ हैं.क्या है ये?जब इस शरीर से आत्मा चली जाती है तो हाथ किस काम का रह जाता है भाई.हाथ तो कुछ  नही कर पाता.जिन हाथों की ताकत पर अआप्को गर्व था वो हाथ तो ऐसे ही धरा-का-धरा रह जाता है.और जिन आँखों की ताकत पे आपको यकीन था वो निस्तेज हो जाती है.उनमे से तेज निकल जाता है.वो देख नही पाती है.सोच  नही पाता आपका दिमाग कुछ भी.हमारी सारी-की-सारी intelligence धरी-की-धरी रह जाती है.
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तो यहाँ बताया गया है कि मूर्ख देहधारी जीव अपनी इन्द्रियों और मन को वश में नही कर पाता है.ये उसकी बहुत बड़ी अक्षमता है.उसकी जो हार है यही है.मै आपको बताती हूँ.हार ये नही है कि आप किसी competitive exam में फैल हो गए.हार ये नही है कि आपको नब्बे प्रतिशत  अंक न आकर साठ प्रतिशत अंक आये.ये हार नही है.हार ये है कि आप जीवात्मा हो लेकिन देह में फंसे हुए हो.और देह को ही सब कुछ मान करके,उसी को अपने आप को समर्पित कर दिया.ये आपकी सबसे बड़ी हार है क्योंकि आपको अपनी असली पहचान ही नही है.ये आपकी हार है.

यहाँ बताया गया है कि अक्षम यानि जो सक्षम नही है अपनी इन्द्रियों और मन को वश में करने में.जबकि आप कर सकते हैं क्योंकि आप आत्मा हैं.आप सर्वोपरी हैं,सबसे ऊपर हैं.है न.

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥

यानि आत्मा इन सबसे ऊपर है लेकिन तो भी उनके अधीन रहती है.ये कष्ट की बात है.

पहले तो यही समझना होगा आपको कि आप देहधारी हो,देह को धारण किया है.मुझसे ये मत पूछो आत्मा कहाँ रहती है.आप ये सोचो आप यहाँ है,क्यों हैं?गलत जगह हैं,भगवान् के साथ होना चाहिए.तो कैसे जायेंगे इसपर हम चर्चा करेंगे आपसे.
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हम बहुत ही सुन्दर श्लोक पर चर्चा कर रहे थे.

"अपने मन और इन्द्रियों को वश में करने में अक्षम मूर्ख देहधारी जीव अपनी इच्छाओं के विरुद्ध प्रकृति के गुणों के अनुसार कर्म करने के लिए बाध्य होता है.वो उस रेशम के कीड़े के सामान है जो अपनी लार का प्रयोग बाहरी कोष बनाने के लिए करता है और फिर उसी में बांध  जाता है जिससे निकल पाने की कोई संभावना नही रहती.जीव अपने ही सकाम कर्मों के जाल में अपने को बंदी कर लेता है.तब वह अपने को छुडाने का कोई उपाय नही  ढूँढ पाता.इसतरह वो सदा मोहग्रस्त रहकर बारबार मरता है."

देखिये बहुत सुन्दर श्लोक है ये और इसने बता दिया है.इस श्लोक ने एकप्रकार से आपको आईना दिखाया है.क्या?क्या आईना दिखाया है कि चाहे आपकी इच्छा हो न हो आपको कर्म करते रहना पड़ता है.कई बार आपकी इच्छा नही होती एक particular कर्म को करने की,एक ख़ास काम को करने की लेकिन आप देखते हैं कि आप वो किये जा रहे हैं.कई बार आप बनना कुछ चाहते हैं और बन कुछ जाते हैं.तो भी आप अक्सर अपने से छोटों को कहते हैं देखो मै ये बन गया,मैंने ये किया.

लेकिन ये श्लोक आपको बताता है कि आप नही करते.आपसे प्रकृति के गुण कराते हैं.है न:



प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ॥


तो क्योंकि हम विमूढ़ हैं अहंकार से,मिथ्या अहंकार से इसीलिये हम सोचते हैं कि हम करता है.हम doers हैं.असली करनेवाले हम हैं जबकि प्रकृति के जिस गुण को हमने अपनाया है वो गुण हमसे काम करवाता है.हम सब-के-सब सकाम कर्म में लगे हैं.

सकाम कर्म का मतलब है वो कर्म जिसमे आप आकांक्षा करते हैं फल की.फल की आकांक्षाओं के साथ,आशाओं के साथ किये गए कर्म सकाम कर्म कहलाते हैं.और कैसे फल?जो आपकी इन्द्रियों की तुष्टि कर सके.

एक ऐसा भी कर्म होता है जो भक्त करते हैं.भक्त अगर कोई कर्म करते हैं तो वो भगवान् की प्रसन्नता के लिए करते हैं.उस प्रभु की प्रसन्नता के लिए करते हैं.

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र 

भगवान् की प्रसन्नता के लिए करते हैं लेकिन वो कर्म अकर्म हो जाते हैं.यानि वो सकाम नही रहता निष्काम हो जाता है.निष्काम कर्म वो कर्म जो हम भगवान् की प्रसन्नता के लिए करते हैं.वो हमें नही बंधाते.उन कर्मों के वजह से हमारे जन्म और मृत्यु के बंधन कटते चले जाते हैं. लेकिन हमें ये अक्ल नही आती है कितने ही दिनों तक,कितने ही वर्षों तक कि हमें अपने समस्त कर्म प्रभु को अर्पित करना है.है कि नही.नही आती हैं न ये अक्ल हमें.बताने पर भी नही आती हैं.समझाने पर भी नही समझ पाते हैं.

तो हम कैसे हैं?हम उस रेशम के कीड़े के सामान हैं जो अपनी लार का प्रयोग बाहरी कोष बनाने के लिए करता है.आपने रेशम का कीड़ा देखा होगा.है न.तो आपने देखा होगा कि वो एक कोकोन में फंसा रहता है और उसका जो बाहरी कोष बना रहता है उसके अपने लार की creation रहती है.कोई बाहर से आ करके उसको उस कोष में फंसा नही देता है.है कि नही.वो अपने आप ,अपने लार से अपने चारों तरफ धागा बुनता है.बुनता चला जाता है,बुनता चला जाता है और उसमे अंततः फंस जाता है.निकलना चाहता है,स्सोचता है कहाँ फंस गया मै,बाहर निकलना चाहता हूँ मै पर बहुत देर हो चुकी होती है.निकल नही पाता है.है न.निकल नही पाता है.मर जाता है उसी में तड़प-तड़प के.

तो यही हमारी और आपकी स्थिति है.हमदोनो की यही स्थिति है.क्या?कि हमने अपनी इच्छाओ के कारण विभिन्न शरीरों का निर्माण किया है.विभिन्न शरीरों में जाना पड़ता है अपनी इच्छाओ के कारण क्योंकि हम अपने मन को control में नही कर सके.अगर मन भौतिक वस्तुओं में लगा रहेगा,संसार में लगा रहेगा तो सांसारिक वस्तुओ की कामना ही इस मन में उपजेगी.और याद रखना अंत में जिस प्रकार के भाव आपके होंगे वैसा ही शरीर आपको अगले जन्म में मिलेगा.

अंत में अगर आपके भाव संसार की तरफ उन्मुख होंगे तो भगवान् बहुत दरियादिल हैं,बहुत दरियादिल हैं वो परवरदिगार.वो क्या करेंगे?वो आपको उसीप्रकार के शरीर में भेज देंगे जिसकी इच्छा,जिसकी तमन्ना आपने मरते समय की.

तो बहुत cautious रहना पडेगा,बहुत सावधान रहना पडेगा कि हम क्या चाहे?हमारी इच्छा कैसी होनी चाहिए?अपनी इच्छाओ को आप रोक नही सकते.ये याद रखना इच्छाएं रूक नही सकती.इच्छाओ का आवागमन रहेगा.आयेंगी जायेंगी. आयेंगी जायेंगी.या तो आप इन्हें ignore कर दो,उन्हें देखो ही मत,अनदेखा कर दो.ये भी possible नही होता.तो क्या करूँ?तो अपनी इच्छाओं को purify कर दो,purification of desire यानि अपनी इच्छाओं को शुद्ध कर दो.कैसे होंगी शुद्ध इच्छाएं .जब आप 


जब आप अपनी इन्द्रियों से,अपने मन से प्रभु की सेवा में जुट जायेंगे तो जो भी इच्छाएं उत्पन्न होंगी,वो इच्छाएं क्या होंगी?विमल होंगी.शुद्ध हो जायेंगी.बहुत बड़ी बात है ये.

तो यहाँ आपको साफ-साफ बताया गया है कि जीव अपने ही सकाम कर्मों के जाल में अपने को बंदी कर लेता है और तब अपने को छुडाने का उपाय नही ढूँढ पाता.मज़े की बात तो ये है कि मर्ज़ का पता चलेगा तब तो आप दवाई करोगे.हममे से अधिकतर लोगों को तो अंत समय तक ये ही नही पता चलता कि हमारा मर्ज़ क्या है?हमें बीमारी क्या है?हम कैसे भवरोग से ग्रस्त हैं?कैसे भवरोग हमारा पीछा कर रहा है?हम जकड़े हुए हैं.

कैसे?हम चाहे किसी भी जंजीर में हो,सोने की जंजीर में हो या फिर लोहे की जंजीर में हो,चांदी की में हो मगर हमारे हाथ बंधे हुए हैं.चाहे कैसे भी हो.किसी भी चिड़िया को आप सोने के पिंजरे में रख दो तो क्या वो खुश रहेगी?नही रहेगी.किसी चिड़िया को आप कैद कर के उसे बड़े अच्छे-अच्छे मोटे-मोटे रजाई-गद्दे दे दो तो क्या वो उसमे सोयेगी?नही सोयेगी.यही हालत हम सब की है.हम सब के अन्दर जो चिड़िया है आप हो,इस देह के अन्दर जो आप हो आत्मारूपी चिड़िया उसकी यही हालत है.आप उसे सोने-चांदी दे रहे हो वो कहती है प्रभु का नाम दो.

आप उसे दुनियावी सुख देने का प्रयास कर रहे हो. चलो बहुत बड़ी गाडी,चलो बहुत बड़ा LCD टी.वी.,चलो बहुत बड़ा मकान ये सब  देते हो और मज़े की बात ये कि आप उनमे प्रसन्नता भी तलाशते हो,प्रसन्नता मिल भी जाती है थोड़े समय के लिए.मगर थोड़े दिनों बाद वही चीजें आपके दुःख का कारण हो जाती है.बड़े ही मन से आपने लोन उठाके लम्बी गाडी खरीदी और फिर किसी ने jealousy में भरके उसमे एक लम्बा scratch मार दिया और तब आपका ह्रदय टूट जाता है.टूट जाता है पर आप विरक्त नही हो पाते हो.तब क्रोधित हो जाते हो कि ढूढूँ मै उस culprit को किसने किया.दस लोगों से पूछने लगते हो भाई किसने मेरी गाडी पर scratch मारे तुमने देखा है क्या?बता दे मै तुमको पैसा दूंगा.

तो ये हमारे हालत है.हम ऐसे सकाम कर्मो में फंसते हैं  और सकाम इच्छाओं में फंस जाते हैं कि चाहकर भी नही निकल पाते.इसीलिये बताया गया है कि मोहग्रस्त रहकर हमें बारम्बार मरना पड़ता है.याद रखना कोई मरना नही चाहता.क्योंकि मृत्यु को हमने इतनी बार झेला है कि हमें मृत्यु से डर लगता है.आप जब आग में हाथ डालोगे तो आपको डर लगता है.छोटा बच्चा आग में हाथ डालेगा उसे डर नही लगता.क्योकि उसे जलने का कोई experience नही है.आपको experience है तो डरते हैं.

मृत्यु से हमें डर लगता है क्योंकि हमें बारम्बार इसका अनुभव होता है.बारम्बार के इस जन्म-मृत्यु को रोका जा सकता है.इसका उपाय है जब आप गोविन्द,जब आप भगवान् की शरण लेते हैं तब आप जन्म और मृत्यु के फांस को काट सकते हैं.
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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब मै आपको बताना चाहूंगी.कई बार मै  भी सोचती हूँ कि जब हम भक्ति करते हैं.जब हम भगवान की तरफ जाते हैं .जो बहुत fortunate हैं वो लोग प्रभु की तरफ मुड़ते हैं.
भगवान् कहते हैं.

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन 
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥

  भगवान् कहते हैं कि चार प्रकार के लोग मेरी तरफ मुड़ते हैं.दुखी लोग,जिन्हें धन की तलाश है,जिज्ञासु है,जो ज्ञानी हैं.चार प्रकार के लोग मेरी शरणागत होते हैं.और उनमे से ज्ञानी भगवान् को बहुत प्यारा होता है.वो जानता है कि भगवान् ही सर्वकारण कारणम हैं मतलब ulimate cause of all the causes हैं .जो व्यक्ति इस बात को जानता है ,जो उस खुदा की रहमत को पहचानता है,वो व्यक्ति बहुत fortunate बहुत सौभाग्यशाली होता है.

और जब आप भक्तों का संग करते हैं तो भक्ति आपकी ब्बहुत अच्छी,बहुत ही सुन्दर होती चली जाती है.आप और भी दृढ़ता से भक्ति में जमे रह पाते हैं.इसबात पर मुझे संग की बात पर एक कहानी याद आ रही है.

रोम में एक चित्रकार था.वो चित्र बनाता था.उसने सोचा मै एक चित्र बनाऊं सबसे सुन्दर लड़के का.इस दुनिया का सबसे सुन्दर लड़का.बहुत उसने खोजा,बहुत खोजा और उसे सौभग्य से अपने ही देश में एक बहुत सुन्दर लड़के का दीदार हुआ.उसने उसे देखा और कहा मै तुम्हारा चित्र बनाना चाहता हूँ.लड़के ने कहा ठीक है.लड़का तकरीबन बारह-तेरह साल का था.उसका चित्र बनाया गया.बहुत ही सुन्दर चित्र था.इतना सुन्दर चित्र था कि जो भी उस चित्र को देखता वो बस देखता रह जाता

और उस चित्र की बदौलत,उस चित्र की नीलामी हुई वो इतना मालामाल हो गया,इतना मालामाल हो गया चित्रकार कि कहने की क्या बात है.बहुत ही धनी हो गया.

एकबार उसने तकरीबन बीस-पच्चीस साल बाद सोचा क्यों न  मै अब एक ऐसा चित्र बनाऊ जो सबसे ugly ,साबसे कुरूप व्यक्ति का चित्र हो,सबसे बदसूरत व्यक्ति का चित्र हो.अब बदसूरत व्यक्ति कहाँ से मिले.ढूँढने लगा.फूटपाथ पर गया.फूत्पथों पर देखा नही मिला.तो किसी ने उसे बताया कि सबसे बदसूरत व्यक्ति रोम के ही जेल में है.एक जेल में बंद है.उसने कहा अच्छा!चलो देखकर आता हूँ.

वो अपने ब्रश वगैरह ले करके,colors ले करके और जा करके उस व्यक्ति से मुलाक़ात की.बहुत ही ugly था वो ,बहुत ही बदसूरत.तो उसने कहा भाई मै आपका चित्र बनाना चाहता हूँ.मैंने आज से बीस-पच्चीस साल पहले एक बहुत ही सुन्दर लड़के का चित्र बनाया था.दस-बारह साल का वो लड़का था.क्योंकि मैंने सुन्दरता को अपने कैनवास पर कैद किया था, अब मै बदसूरती को भी कैनवास पर कैद करना चाहता हूँ.

तो वो बदसूरत आदमी चुपचाप एकटक देखने लगा चित्रकार की तरफ.उसने कहा क्या आप मुझे वो चित्र दिखा सकते हो.तो चित्रकार ने कहा कौन-सा चित्र?वही जो आपने बीस-पच्चीस साल पहले बारह साल के लड़के का बनाया था.हाँ वो चित्र तो मेरे पास नही है पर उसकी एक कापी मैंने राखी हुई है.वो तुम्हे दिखा सकता हूँ.चित्रकार घर गया और ले करके आया वो चित्र और दिखाया उस व्यक्ति को.तो वो आदमी उस चित्र को देखकर रोने लगा,फूट-फूटकर रोने लगा.चित्रकार बड़ा हतप्रभ रह गया.चित्रकार ने कहा क्या बात है?कुछ चीज है ऐसी जो तुम्हे नापसंद आयी.क्या बात है ऐसी कि तुम्हारे आंसू निकल पड़े?

तो कुरूप आदमी,बदसूरत आदमी बोला कि ये जो बारह साल का लड़का है वो मै ही हूँ.चित्रकार दांग रह गया.क्या?ये तुम हो?सबसे सुन्दर व्यक्ति तुम थे?हाँ मगर मै अपनी उस सुन्दरता को,मै अपने अच्छे संस्कार को कायम नही रख सका.मै गलत संगत में पद गया.और मैंने इतने पाप किये,इतने पाप किये कि आज आप देख रहे हैं मेरी हालत.मै कहाँ आकर के बैठा हूँ और किसप्रकार मेरी शक्ल हो गयी है.किसप्रकार से मेरा पूरा शरीर हो गया है कि आज मै महा बदसूरत व्यक्ति हो गया हूँ.

तो ये है संग का फर्क.जब आप भक्तों का संग करते हैं तो आपकी आत्मा निखरती रहती है.सुन्दर होती चली जाती है.अपने असल स्वरुप में आ जाती है.है न.असल स्वरुप उसे प्राप्त हो जाता है.

देखिये जीव का असली स्वरुप यही है कि वो प्रभु का नित्य दास है.इसके अलावा और हमारा कोई असली स्वरुप नही है.तो असली सुन्दरता हमारी,हमारी सुन्दरता यही है कि हम भगवान् के हो जाए सदा-सर्वदा के लिए,भगवान् को अपना ले और भगवान् की सेवा में ही फक्र महसूस करे.
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कार्यक्रम में आप सभी के साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब हम चर्चा करेंगे एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर .श्लोक का अर्थ:

"यदि रोगी व्यक्ति वैध द्वारा बताया गया शुद्ध,अदूषित अन्न खाता है तो वो धीरे-धीरे अच्छा हो जाता है.तब रोग की छूत उसे छू तक नही पाती.इसीतरह यदि कोई ज्ञान के विधि-विधानों का पालन करता है तो वह भौतिक कल्मष से मोक्ष की ओर प्रगति करता है."

तो बहुत सुन्दर श्लोक है ये.जहाँ आपको बहुत सुन्दर जानकारी दी गयी है.बहुत प्यारी जानकारी दी गयी है आपको.बहुत सुन्दर example  यहाँ पर दिया गया है.आपको बताया जा रहा है  कि जब एक रोगी,बीमार व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता है.किसी नीम-हकीम के पास आप कभी गए होंगे,किसी वैद्द के पास तो आप देखते हैं कि सबसे पहले वो आपको ये बताता है नब्ज़ देख के कि आपका रोग ये है और दूसरी बात आपको बताता है कि आपको ये नही खाना है.परहेज करना है.ये परहेज करना है.

आप कहेंगे अरे ये तो मुझे बहुत अच्छा लगता है.ये तो मेरी कमजोरी है.लेकिन डॉक्टर कहता है कमजोरी तो है लेकिन आपको ठीक होना है तो इसे आपको नही खाना है.ये आपके लिए जहर है.तो आप छोड़ देते हैं.यदि आप छोड़ देते है तो आप ठीक होने लगते हैं.आपने देखा होगा कि जब आप कुपथ्य नही खाते हैं.जो डॉक्टर ने मना किया है आप नही खाते हैं तो आप देखते हैं कि  धीरे-धीरे आपको शारीरिक बल मिल रहा है और आप ठीक हो रहे हैं.धीरे-धीरे आप रोग से बाहर आ जाते हैं.और रोग की छोट आपको छू भी नही पाती है.क्यों?क्योंकि आपने doctor के prescription को follow किया है.उसकी दी हुई दवा खायी है और उससे परहेज किया है जिसे की doctor ने बताया है.

अब यहाँ पर यही बात कही गयी है.तो यदि कोई ज्ञान के विधि-विधानों का पालन करता है.जब आप भगवान् को हासिल करने का प्रयास करते हैं तो उसमे कुछ विधि-विधान होते हैं.जब आप भक्ति करने का प्रयास करते हैं तो उसमे कुछ यम-नियम होते हैं जिनका आपको पालन करना होता है.ये नही की आप पाप करते जाएँ,करते जाएँ और उधर से भगवान् का नाम लेते रहे.वो कहते हैं न

"मुँह में राम बगल में छूरी"

वो नही होना चाहिए.नियत साफ होनी चाहिए.तो भगवान् का नाम हालाकि इतना,इतना potency है भगवान् के नाम में,इतना बल है कि आपकी नियत को साफ वो वैसे ही कर देगा लेकिन जैसा कि वो श्लोक है 



अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्‌ ।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥



अगर आप ऐसे temporary फल के पीछे भागेंगे,temporary फल चाहेंगे,अपनी पूजा से ,अपनी उपासनाओं से,विभिन्न कर्मकांडों से तो  ये बुद्धिमानी की चीज नही है.आप बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य नही कर रहे हैं.है न.आप नादानी में कार्य कर रहे हैं.आप अबोध हैं.आपको ज्ञान नही  है कि क्या आपको चाहिए.आपको इसचीज का ज्ञान नही है कि क्या चाहिए आपको.तो जब हम ज्ञान के विधि-विधानों का पालन करते हैं तो धीरे-धीरे हम भौतिक कल्मष से मुक्त होते जाते हैं.

यानि धीरे-धीरे हममे विरक्ति आती जाती है,और दस साल पहले ,पांच साल पहले अगर कोई भौतिक चीज हमें एकदम से पकड़ लेती थी,आकर्षित कर लेती थी.उसे पाने के लिए हम छटपटाने लगते थे.हम देखते है कि धीरे-धीरे उस चीज से हमें विरक्ति हो गयी.विरक्ति भाव में हम आ गए.और विरक्ति जब आती है तो ही मुक्ति आती है.हाँ मुक्ति की बारी आती है,मोक्ष की बारी आती है.

तो ज्ञान का पद कर्म के पद से बहुत श्रेठ है.कर्म जब आप करते हैं तो कई बार आपके कर्म विकर्म बन जाते हैं और आप नरक जा सकते हैं.लेकिन ज्ञान जब आपको प्राप्त होता है तो आप नरक गमन से बच जाते हैं.पर ज्ञान प्राप्त करके आप ये सोच ले कि अब मै तो मुक्त हो गया,अब तो भगवान् बन गया तो ये याद रखना ये अज्ञान की दूसरी अवस्था है.एक और stage है अज्ञान की.इसलिए अज्ञान सिर्फ यही नही है कि आप भौतिक वस्तुओं में जुड़े रहे,अज्ञान ये भी है,आप ये सोचे कि जब मै मर जाउंगा तब आत्मा परमात्मा में मिल जायेगी और आत्मा परमात्मा में मिलके भगवान् बन जायेगी,परमात्मा बन जायेगी.

तो ये बहुत बड़ा अज्ञान है और पतन का कारण है.इसलिए हमें हमेशा ये याद रखना होगा कि हम भगवान् से जुड़े,प्रभु से direct जुड़े.कैसे जुड़े?सेवा के द्वारा.सेवा करनी होगी,उन्हें प्रेम करना होगा.जिसकी आप सेवा करते हैं उसी से आप प्रेम करने लगते हैं धीरे-धीरे.होता है न.सेवा करते जाईये,करते जाईये.कुत्ते की भी सेवा करते है तो कुत्ते से भी प्रेम करने लगते है.तो सेवा कीजिये प्रभु की और उनसे प्रेम कीजिये और देखिये मुक्ति आपके द्वार पे स्वयं दस्तक देने लगेगी.

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SMS  विनोद पूछते हैं परमात्मा ने मानव शरीर क्यों धारण किया?
Reply By माँ प्रेमधारा:
विनोद जी बहुत ही interesting question है आपका.परमात्मा ने मानव शरीर क्यों धारण किया?ये हमें दिखता है,हमें लगता है कि परमात्मा ने मानव शरीर धारण किया लेकिन मज़े की बात ये है कि उन्हें भौतिक प्रकृति कभी छू भी नही पाती है.हमारा शरीर जड़ पदार्थों का बना है.है न.जड़ है.जड़ चीजों का बना है.

भगवान् का शरीर सत चित आनंद का बना रहता है.देखते वो मानव रूप में हैं भी,नराकृति है उनकी किन्तु तत्त्व वो नही है.है न.सत चित आनंद .यानि कि हमारे शरीर में और आत्मा में फर्क है लेकिन भगवान् की आत्मा और भगवान् के शरीर में फर्क नही होता.वो दोनों एक ही होतेहैं.ठीक है.ये बात आपको समझनी होगी.और दूसरी बात आपको ये जरूर कह सकते हैं,भगवान् कहते भी है बड़ी सुन्दर बात

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्‌।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्‌ ॥


भगवान् कहते हैं कि जो लोग ये सोचते हैं कि मै मनुष्य रूप में आ गया और मनुष्य हो गया वो लोग महामूर्ख हैं.क्यों?क्योंकि वो मेरे परम भाव से अनजान रहते हैं.वो नही जान पाते कि क्या हूँ मै?
मम भूतमहेश्वरम्‌ ॥
 मै सभी लोगों का,सभी प्राणियों का,सभी जीवों का,हर जड़ और चेतन का,स्थावर और जंगम का.मै क्या हूँ?मै महेश्वर महा इश्वर,महा controller हूँ ये नही जान पाते हैं.

तो कभी भी कोंफुसे मत होईये.प्रभु आते हैं हमारे बीच में ताकि वो भक्तों को आस्वादन दे सके अपने सामीप्य का,.भक्तों से रस का आदान-प्रदान हो इसलिए आते हैं और दुष्टों का विनाश तो वो एक भृकुटी हिलाकर ही कर सकते हैं,इच्छामात्र से कर सकते हैं.उसके लिए उन्हें आने की जरुरत नही होती.


SMS  अनिल नारायणा से कहते हैं कि जब तक मनुष्य भगवान् का सहारा नही लेगा तब तक कोई भी सहारा टिकेगा नही और वो दुःख पाता रहेगा.

Reply By माँ प्रेमधारा:
अनिल जी आप बिल्कुल सही कहते हैं प्रभु का सहारा लेना,प्रभु का सहारा लेना क्या!प्रभु को जब आप समर्पित हो जाते हो,surrendered हो जाते हो तो भगवान् स्वयं आपकी भय-बाधा को हर लेते हैं.इसीलिए उन्हें हरी कहा गया है क्योंकि वो आपके दुखों को हर लेते हैं,चुरा लेते हैं.चोर हैं भगवान् आपके दुखों को भी चुरा लेते हैं.तो प्रभु बहुत ही great हैं.आपने बिल्कुल उनकी greatness की तरफ इशारा किया है और बहुत अच्छे तरीके से बताया है कि अगर आपको भगवान् को प्राप्त करना है तो आपको उनका सहारा लेना पडेगा.उनकी तरफ मुड़ना पडेगा.
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SMSपारूल दिल्ली से पूछती हैं इस दुनिया में सुख और दुःख बराबर क्यों नही है?दुखी और दुखी हो रहे हैं आखिर क्यों?
Reply By माँ प्रेमधारा: 
देखिये पारूल जी सुख की परिभाषा क्या है आपके लिया मुझे नही पता.सुख क्या आप इसे कहती हैं कि आपके पास भौतिक साजोसामान हो बहुत सारा वो सुख है या फिर सुखों की अन्य कोई परिभाषा है आपके लिए क्योंकि देखिये मै आपको बताती हूँ प्रभु क्या कहते हैं.भगवान् कहते हैं कि

जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्‌ 

मतलब की इस संसार में सुख है ही नही.दुखालायम अशाश्वतं.भगवान् कहते हैं कि दुखों का घर है.यानि कि जो The Most Perfect Person ने जो बात बतायी है वो आपको convey कर रही हूँ.बता रही हूँ कि ये प्रभु की उक्ति खाई.बता गए हैं कि यहाँ सुख है ही नही तब आप क्यों सोचती है कि दुखी और दुखी हो रहे हैं,सुखी और सुखी हो रहे हैं.

आपको लगता है कि जो बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूम रहे है वो सुखी हैं. हो सकता है कि उन्हें कितने प्रकार के रोग हो,हो सकता है कि उनकी संतानें उनके साथ विद्रोह करती हो,हो सकता है कि उनके पीछे कितने ही दुश्मन लगे हो.

आपको और प्रकार का दुःख है कि आपके पास वो सारी चीजें नही हैं जो किसी और के पास है.दुःख तो इस जगत में है ही.दुखी तो आप हमेशा रहेंगे ही.इसमे क्या सोचना है.सुखी आप हो नही सकते हैं.लेकिन हाँ.सुख की एक किरण जरुर आ सकतीहै आपके पास.जब आप भगवान् से जुड़ जाते हैं तो आप सुखी हो सकते हैं.दुःख आपको छुएगा नही.हर स्थिति में आप


भगवान् सब पर सामान दृष्टि रखते हैं.आप समस्त स्थिति के प्रति.परिस्थिति के प्रति सामान दृष्टि रखने लगेंगे.तो पारूल जी घबराईये मत.हर कोई दुखी है आप ही नही.सब दुखी है सब.जिसने जन्म लिया है वो मरेगा.मरने के भय से दुखी है,बीमारियों से दुखी है,बुढापे से दुखी है.दुःख ही दुःख है.कहाँ सुख है .आपको लगता है कि सुखी है,आपको लगेगा कि दूसरे छोड़ पर जो घास है वो ज्यादा हरी है और मेरी छोड़ पर मेरी तरफ जो घास है वो हरी नही है

और जब आप उस तरफ जायेंगे तो आप देखेंगे कि आप ही के घास की तरह वो घास भी है.

SMS:
देवकीभगत  गाजियाबाद से 
जो तुम चाहो मुझको छोड़ सकल की आस.
मुझ ही जैसे होकर रहो सब कुछ तेरे पास .

Reply By माँ प्रेमधारा: 
देखा.देवकीभगत जी ने बिल्कुल सही बात कही है कि अगर आपको प्रभु चाहिए तो दुनिया की कामना मत कीजिये. है न.दोनों हाथ में लड्डू लेने की कोशिश मत कीजिये.ये बात याद रखिये.कही आप सोचे कि इस हाथ में दुनिया आ जाये और इस हाथ में भगवान् आ जाएँ तो ये नही हो सकता.

जब हम भगवान् की तरफ मुड़ते हैं.तब हमारे अन्दर इतनी उत्कंठा होनी चाहिए ,इतनी व्याकुलता होनी चाहिए कि प्रभु आप और सिर्फ आप .सिर्फ आपको ही मांगते हैं आपसे.ये तरिका है.तो यही बात कही गयी है कि 
जो तुम चाहो मुझको छोड़ सकल की आस.
आस-पास की सबकी आस छोड़ दो सिर्फ मुझी से आस लगाकर रहो.मुझ ही जैसे होकर रहो क्योंकि भगवान् कहते है कि मुझे किसी कर्म की स्पृहा नही होती,कर्मफल की आशा नही होती.वैसे ही बनकर रहिये.तो क्या "सब कुछ तेरे पास ." सबकुछ आपके पास होगा.आप हर स्थिति में संतुष्ट रहेंगे और संतोष परम धन है.

SMS :शिवराम पलवल हरियाणा से पूछते है 
शादी करना क्या क्या काम सुख की पूर्ति करना है कि ये जरूरी है?इससे पतन तो नही होता?

Reply By माँ प्रेमधारा: 
शिवराम जी देखिये ये शरीर की एक आवश्यकता है जिस काम सुख की आप चर्चा कर रहे हैं .शरीर की आवश्यकता है लेकिन याद रखना कि पशु समाज में शादी नही होती.शादी इंसान के समाज में होती है.इंसानी समाज में होती हैहै न.यानि कि आपको एक बंधन ,एक सुखद बंधन दिया जाता है कि एक स्त्री है आपकी और उस स्त्री से ही जुड़कर रहना है.यानि पशु की तरह इधर-उधर नही जाना है.अपनी स्त्री के प्रति ही वफादार रहना है.इसीलिये गृहस्थी को एक आश्रम का नाम दिया गया है.बहुत उन्चान ओहदा मिला है गृहस्थ को,गृहस्थी को लेकिन गृहमेधी को नही.

जिसकी मेधा,जिसकी बुद्धी गृहस्थी में लगी रहती है उसकी नही.यानि पत्नी के साथ मिलकर वो संतान उत्पत्ति अवश्य करे लेकिन साथ में भगवान् की उपासना ,उनकी भक्ति अवश्य करे.दोनों पति-पत्नी मिलकर के जब भगवान् को गृहस्थ आश्रम का,अपनी गृहस्थी का केंद्रबिंदु बना लेंगे तो उनकी जिन्दगी सुखद हो जायेगी वरना हमेशा वो दुखी रहेंगे क्योंकि एक-दूसरे से बहुए expectation होंगी और करने को कुछ होगा नही.एक -दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहेंगे और उसमे वक्त सारा चला जाएगा.

तो तब पतन हो जाएगा इसलिए पतन से बचना है तो भगवान् को अपनी जिन्दगी की धुरी बना लो,केंद्रबिंदु बना लो.

SMS :तनु ठाकुर U .P . से पूछती है कि मै एक दस साल की छोटी बच्ची हूँ.Please बताएं छोटे बच्चे भक्ति कैसे करें?

Reply By माँ प्रेमधारा: 
भगवान् का नाम लेना तो बहुत आसन है तनु.छोटे बच्चे भी भगवान् का नाम ले सकते हैं.आप सोचिये कि आप जब कार्टून देखते हैं तो कितने ही characters का नाम लेते रहते है.कितने ही favorite actor actresses का नाम लेते रहते हैं.उनकी माला जपते रहते हो.है न.इसीप्रकार से आप भगवान् का नाम लेते रहो,आप भगवान को अपना best friend मान लो तो आपकी भक्ति हो जायेगी.

भगवान् के आगे नाचो.क्या problem है.नाचना हर कोई चाहता है मगर बारात में नाचो इससे अच्छा आप भगवान् के आगे नाचो.वो भक्ति है.भगवान् जो हैं एकदम,एकदम प्रसन्न हो जाते हैं जब भक्त को इतना मस्त देखते हैं.अपनी भक्ति में चूर देखते हैं.तो प्रभु को प्रसन्न करना सबके बस  की बात है.ऐसा कुछ नही है कि आप दस साल के हो या कोई पांच साल का है तो भक्ति नही कर सकता है.

प्रभु तो भाव के भूखे होते है.है न.उन्हें और क्या चाहिए.कुछ भी नही.सिर्फ भाव.एकमात्र भाव से आप उनको प्रसन्न कर सकते हो और भाव हरेक के पास होता है बस एकत्रित करना होता है.
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SMS :अब एक बहुत सुन्दर message पंखुड़ी का दिल्ली से कहती है
सुख की खोज में भागते-भागते 
जब जिन्दगी गुजर गयी 
तब पता चला हम जिधर दौड़ रहे थे 
वो दिशा ही उल्टी थी.

Reply By माँ प्रेमधारा: 
पंखुड़ी जी शुक्र मनाईये कि पता तो चल गया.पता ही कहाँ चल पाता है.बुढापे तक लोगों को माया ने घेरा रहता है वो माया से बाहर नही निकलना चाहते है अगर छोटी-सी उम्र में ही पता चल जाए कि हमारी दिशा भागने की गलत है,हमें भागना दूसरी दिशा में चाहिए जुस्त ओप्पोसिते वे यानि अध्यात्म की तरफ,भगवान् की तरफ तो समझ लीजिये कि आपके वारे-न्यारे हो गए.

इस जन्म में नही तो अगले जन्म में,अगले जन्म में नही तो अगले जन्म में भगवान् मिल जरूर जायेंगे क्योंकि आपका रास्ता अब सही है.एक-न-एक दिन मिल जाओगे.

SMS :विद्योतमा दिल्ली से 
कैसे पता चलता है कि हम भक्ति कर रहे है या कुछ और?

Reply By माँ प्रेमधारा: 
विद्योतमा जब भगवान् के बारे में सोचती रहे आप,भगवान् के अलावा और कोई ख्याल ही न रहे.जब भी आप फुर्सत में हो आपका ध्यान सीधा प्रभु के चरण कमलों की तरफ जाए.प्रभु की लीलाओं की तरफ जाए तो समझ लीजिये आप भक्ति में आगे बढ़ रहे हैं.
और अगर आपको भक्ति करने के लिए जोड़ लगाना पड़ता है,बहुत सोचना पड़ता है,बहुत बैठना पड़ता है प्रयास करके तो समझ लीजिये कही कुछ और हो रहा है क्योंकि भक्ति ऐसी चीज है जो शुरुआत में जैसे बड़ा सुन्दर श्लोक है न



यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम्‌।
तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम्‌॥



जो शुरुआत में विष जैसी लगती है कडवी.जैसे कि पीलिया का जो रोगी होता उसे अगर आप कोई मीठी चीज दे दो तो वो उसे कडवी लगती है.है न.लेकिन हमें पता है उसका स्वाद तो मीठा है पर इसे कड़वा लग रहा है.

इसीतरह भगवान् का नाम जो भवरोग से ग्रस्त व्यक्ति है,पूरी तरह से डूबा हुआ है भवरोग में,उस व्यक्ति को भगवान् का नाम कड़वा लगता है,unappealing लगता है,unattractive लगता है.है न.आकर्षक नही लगता है.वो व्यक्ति कहता है क्या बकवास कर रहे हैं ये लोग.इनकी तो बात समझ ही नही आती.सर के ऊपर से गुजर जाती है.क्यों?क्योंकि वो इतना सौभाग्यशाली नही है कि उसे इतनी सुन्दर बातें समझ आये.है न.
तो भक्ति आप कर रहे हैं तभी पता चल जाएगा जितनी मात्रा में भक्ति होगी उतनी ही मात्रा में संसार से विरक्ति होने लगेगी.

SMS :नीलम नोयडा से कहती हैं
रंग बरसेगा,नूर बरसेगा
प्रभु की महफ़िल में आकर तो देखो.
एक दिन कृपा का बादल 
जरूर बरसेगा.

Reply By माँ प्रेमधारा: 
नीलम रंग भी बरसता है भगवान् की भक्ति में और नूर भी बरसता है.है न.और प्रभु की महफ़िल में आकर के देखने से ऑफ़ कुरसे कृपा का बादल बरसता है लेकिन जो लोग भगवान् की महफ़िल में नही आते हैं,भगवान् की भक्ति में नही लगे होते हैं कृपा तो उस पर भी भगवान् बहुत करते हैं

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्‌ ॥

भगवान् कहते हैं कि मै सबके प्रति समान भाव रखता हूँ.जो मेरी भक्ति करते है वो तो बहुत प्रिय हैं मुझे.लेकिन सबके प्रति समान भाव रखता हूँ,सबके प्रति.जैसे कि एक जज है उसके सामने अगर कोई आ जाता है चाहे वो अपराधी हो या ऐसा कोई व्यक्ति जिसने अपराध नही किया है सबके प्रति समान भाव से judgment देता है .है न.निर्णय देता है.किसी को बहुत सारा उपहार दे देता है indemnity ,compensation वगैरह दे देता है लाखों रुपये का और किसी को फांसी की सज़ा भी हो जाती है.

तो जज किसी से प्रेम करता है इसलिए compensation नही देता है लेकिन जब वही जज अपने घर जाता है अपने बच्चे से कितना प्यार करता है.है न.

इसीप्रकार से भगवान् की स्थिति है.सबके लिए बराबर लेकिन जो उनके भक्त हैं उनके लिए वो विशेष कृपालु होते हैं.तो भगवान् की भक्ति से जुड़ना चाहिए.भगवान् से जुड़ना चाहिए.भक्ति जो है उसी प्रक्रिया का नाम है.प्रभु से जुड़ने की प्रक्रिया का नाम है.

SMS :सुनील कुमार जियासराय से पूछते हैं 
pure भक्ति कैसे करे?

Reply By माँ प्रेमधारा: 
सुनील कुमार जब हम भगवान् की भक्ति करते हैं और भगवान् से बहुत कुछ मांगने लगते हैं तो समझ लीजिये की ये impure भक्ति है.यानि ये सकाम भक्ति है जो कि गलत नही है क्योंकि भगवान् ने कहा है

अकामः सर्वकामो वो मोक्षकामः उदारधीः |
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम ||

चाहे आपके पास कामना हो.चाहे आपके पास कोई कामना न हो,चाहे आप मोक्ष के कामी हो लेकिन किसी भी तरह से आप भगवान् की शरण में आईये.आप पूरी तरह से भक्ति से,उनसे जुड़ जाईये.

लेकिन pure भक्ति ऐसी होती है जिसमे आप भगवान् से कुछ नही मांगते.उन्हें प्यार करना आपकी फितरत हो जाती है
यानि आपके स्वभाव का एक अंग बन जाता है.आप उनके बगैर रह नही सकते हो.बस इसे कहते हैं pure भक्ति.ये तब आती है जब आप भक्तों का संग करते हो.भगवान् की कथाओं का पान करते हो.भगवान् का नाम लेते रहते हो चौबीसों घंटे.तब आपमें pure भक्ति जागृत होती है.its already there .

यानि कि सुप्तावस्था में है.सोयी हुई है आपकी भक्ति.तो इसे क्या करोगे?जगाना होगा?कैसे जगाओगे ?प्रभु के नाम से.प्रभु का नाम लेते रहिये.प्रभु का संग करिए.भक्ति स्वमेव जागृत हो जायेगी.किसी भी मजहब में हैं आप कोई फर्क नही पड़ता है.मंजिल एक ही है और तरीका भी एक ही है.प्रेम.just love .आपको प्रेम करना है उस भगवान् से और भगवान् स्वयं आपको मिल जायेंगे.
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SMS :अब एक बहुत सुन्दर message पंखुड़ी का दिल्ली से कहती है
सुख की खोज में भागते-भागते 
जब जिन्दगी गुजर गयी 
तब पता चला हम जिधर दौड़ रहे थे 
वो दिशा ही उल्टी थी.

Reply By माँ प्रेमधारा: 
पंखुड़ी जी शुक्र मनाईये कि पता तो चल गया.पता ही कहाँ चल पाता है.बुढापे तक लोगों को माया ने घेरा रहता है वो माया से बाहर नही निकलना चाहते है अगर छोटी-सी उम्र में ही पता चल जाए कि हमारी दिशा भागने की गलत है,हमें भागना दूसरी दिशा में चाहिए जुस्त ओप्पोसिते वे यानि अध्यात्म की तरफ,भगवान् की तरफ तो समझ लीजिये कि आपके वारे-न्यारे हो गए.

इस जन्म में नही तो अगले जन्म में,अगले जन्म में नही तो अगले जन्म में भगवान् मिल जरूर जायेंगे क्योंकि आपका रास्ता अब सही है.एक-न-एक दिन मिल जाओगे.

SMS :विद्योतमा दिल्ली से 
कैसे पता चलता है कि हम भक्ति कर रहे है या कुछ और?

Reply By माँ प्रेमधारा: 
विद्योतमा जब भगवान् के बारे में सोचती रहे आप,भगवान् के अलावा और कोई ख्याल ही न रहे.जब भी आप फुर्सत में हो आपका ध्यान सीधा प्रभु के चरण कमलों की तरफ जाए.प्रभु की लीलाओं की तरफ जाए तो समझ लीजिये आप भक्ति में आगे बढ़ रहे हैं.
और अगर आपको भक्ति करने के लिए जोड़ लगाना पड़ता है,बहुत सोचना पड़ता है,बहुत बैठना पड़ता है प्रयास करके तो समझ लीजिये कही कुछ और हो रहा है क्योंकि भक्ति ऐसी चीज है जो शुरुआत में जैसे बड़ा सुन्दर श्लोक है न



यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम्‌।
तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम्‌॥



जो शुरुआत में विष जैसी लगती है कडवी.जैसे कि पीलिया का जो रोगी होता उसे अगर आप कोई मीठी चीज दे दो तो वो उसे कडवी लगती है.है न.लेकिन हमें पता है उसका स्वाद तो मीठा है पर इसे कड़वा लग रहा है.

इसीतरह भगवान् का नाम जो भवरोग से ग्रस्त व्यक्ति है,पूरी तरह से डूबा हुआ है भवरोग में,उस व्यक्ति को भगवान् का नाम कड़वा लगता है,unappealing लगता है,unattractive लगता है.है न.आकर्षक नही लगता है.वो व्यक्ति कहता है क्या बकवास कर रहे हैं ये लोग.इनकी तो बात समझ ही नही आती.सर के ऊपर से गुजर जाती है.क्यों?क्योंकि वो इतना सौभाग्यशाली नही है कि उसे इतनी सुन्दर बातें समझ आये.है न.
तो भक्ति आप कर रहे हैं तभी पता चल जाएगा जितनी मात्रा में भक्ति होगी उतनी ही मात्रा में संसार से विरक्ति होने लगेगी.

SMS :नीलम नोयडा से कहती हैं
रंग बरसेगा,नूर बरसेगा
प्रभु की महफ़िल में आकर तो देखो.
एक दिन कृपा का बादल 
जरूर बरसेगा.

Reply By माँ प्रेमधारा: 
नीलम रंग भी बरसता है भगवान् की भक्ति में और नूर भी बरसता है.है न.और प्रभु की महफ़िल में आकर के देखने से ऑफ़ कुरसे कृपा का बादल बरसता है लेकिन जो लोग भगवान् की महफ़िल में नही आते हैं,भगवान् की भक्ति में नही लगे होते हैं कृपा तो उस पर भी भगवान् बहुत करते हैं

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्‌ ॥

भगवान् कहते हैं कि मै सबके प्रति समान भाव रखता हूँ.जो मेरी भक्ति करते है वो तो बहुत प्रिय हैं मुझे.लेकिन सबके प्रति समान भाव रखता हूँ,सबके प्रति.जैसे कि एक जज है उसके सामने अगर कोई आ जाता है चाहे वो अपराधी हो या ऐसा कोई व्यक्ति जिसने अपराध नही किया है सबके प्रति समान भाव से judgment देता है .है न.निर्णय देता है.किसी को बहुत सारा उपहार दे देता है indemnity ,compensation वगैरह दे देता है लाखों रुपये का और किसी को फांसी की सज़ा भी हो जाती है.

तो जज किसी से प्रेम करता है इसलिए compensation नही देता है लेकिन जब वही जज अपने घर जाता है अपने बच्चे से कितना प्यार करता है.है न.

इसीप्रकार से भगवान् की स्थिति है.सबके लिए बराबर लेकिन जो उनके भक्त हैं उनके लिए वो विशेष कृपालु होते हैं.तो भगवान् की भक्ति से जुड़ना चाहिए.भगवान् से जुड़ना चाहिए.भक्ति जो है उसी प्रक्रिया का नाम है.प्रभु से जुड़ने की प्रक्रिया का नाम है.

SMS :सुनील कुमार जियासराय से पूछते हैं 
pure भक्ति कैसे करे?

Reply By माँ प्रेमधारा: 
सुनील कुमार जब हम भगवान् की भक्ति करते हैं और भगवान् से बहुत कुछ मांगने लगते हैं तो समझ लीजिये की ये impure भक्ति है.यानि ये सकाम भक्ति है जो कि गलत नही है क्योंकि भगवान् ने कहा है

अकामः सर्वकामो वो मोक्षकामः उदारधीः |
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम ||

चाहे आपके पास कामना हो.चाहे आपके पास कोई कामना न हो,चाहे आप मोक्ष के कामी हो लेकिन किसी भी तरह से आप भगवान् की शरण में आईये.आप पूरी तरह से भक्ति से,उनसे जुड़ जाईये.

लेकिन pure भक्ति ऐसी होती है जिसमे आप भगवान् से कुछ नही मांगते.उन्हें प्यार करना आपकी फितरत हो जाती है
यानि आपके स्वभाव का एक अंग बन जाता है.आप उनके बगैर रह नही सकते हो.बस इसे कहते हैं pure भक्ति.ये तब आती है जब आप भक्तों का संग करते हो.भगवान् की कथाओं का पान करते हो.भगवान् का नाम लेते रहते हो चौबीसों घंटे.तब आपमें pure भक्ति जागृत होती है.its already there .

यानि कि सुप्तावस्था में है.सोयी हुई है आपकी भक्ति.तो इसे क्या करोगे?जगाना होगा?कैसे जगाओगे ?प्रभु के नाम से.प्रभु का नाम लेते रहिये.प्रभु का संग करिए.भक्ति स्वमेव जागृत हो जायेगी.किसी भी मजहब में हैं आप कोई फर्क नही पड़ता है.मंजिल एक ही है और तरीका भी एक ही है.प्रेम.just love .आपको प्रेम करना है उस भगवान् से और भगवान् स्वयं आपको मिल जायेंगे.
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SMS:सीमा मेहता South-Ex से कहती है
prosperity is not attained by earning money but by building good character and clean thinking .

Reply By माँ प्रेमधारा: 
यानि कि सम्वृद्धि पैसा कमाने का नाम नही है,सम्वृद्धि बनायी जाती है उच्च चरित्र से और सोचने के साफ नज़रिए से.बहुत सुन्दर बात आपने बेशक की है लेकिन इसमे मै एक बात add करना चाहती हूँ.जोड़ना चाहती हूँ.ये सही बात है.पैसा कमाने से ही सम्वृद्धि नही आती अच्छे विचारों से आती है और अच्छे character से आती है लेकिन अगर आप artificially आप अच्छे विचार पैदा करने का प्रयत्न करेंगे तो आपका जो efforts है ,आपके जो प्रयास हैं वो विफल हो जायेंगे.

क्यों?क्योंकि बहुत जन्मों से हमने दुष्कर्म किये,बड़े गंदे संस्कार हमारे ह्रदय में पड़े हुए हैं.हाँ तो हम सिर्फ बातों में ही बड़ी-बड़ी बातें कर लेंगे.बातों-बातों में ही हम नारे दे देंगे बड़े-बड़े.ये होना चाहिए,वो होना चाहिए.होगा कुछ नही.बातों में ही हम कहेंगे कि हमें शांति ,अमन कायम करना चाहिए,अहिंसक होना चाहिए लेकिन फिर भी हिंसक होते जाते हैं हम.देखते हैं न आप.कितना कुछ होता है समाज में.

तो ये artificially थोपा नही जा सकता जो आपने कहा good character should be there .of course it should be लेकिन automatically होता है.कैसे?जब आप प्रभु से जुड़ते हैं तो क्या होता है 

"चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्नी निर्वापणं 
श्रेयं कैरवचंद्रिकावितरणम् विद्यावधूजीवनं 
आनंदाम्बुधिवर्धनम प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादम "

बड़ी सुन्दर बात है कि जब आप भगवान् से जुड़ते हैं तो क्या होता है?आप उनका नाम लेते है तो आपके चित्त का दर्पण साफ होता है,आपके ऊपर शीतल चांदनी की वर्षा होती है,अमृत की वर्षा होती है और आपको ऐसा आनंद मिलता है कि वो आनंद की चंद बिंदु,चंद मोती नही  होते,आनंद का समुद्र मिलता है.समुद्र का level कभी up नही होता लेकिन इस समुद्र का level up होता जाता है यानि
आनंदाम्बुधिवर्धनम
बार-बार आनंद के इस समुद्र में उफान आता है,ये बढ़ता चला जाता है.भगवान् से जुड़ने के बाद आनंद तो समझ लीजिये असीमित मिलता है.तो ये खोखले शब्द नज़र आते हैं.जब आप भगवान् से नही जुड़ते हो तब अगर आप कहो कि हाँ building good character .कोई deliberately good character हो नही सकता है,कहीं से हमारे अन्दर जो कमियां हैं आयेंगी ही.है न.ऊपर आयेंगी ही,सर उठाएंगी ही.और clean thinking कैसे होगी.

आज जब कलह का युग है
मन्दाः सुमंदमतयो   मन्दभाग्या ह्यूपद्रुता
जब यहाँ सब लड़ रहे हैं आपस में,मर रहे हैं.Newspaper आप पढ़ते हो.Newspaper जब आप पढ़ते हो तो कहते हो  क्या अखबार आया है.रक्त से भींगा,खून से भींगा अखबार हमारे चौखटों को लांघता है.सोचिये तो कहाँ से clean thinking होगी.
clean thinking तभी होगी जब आप में आ जाओगे.तब वो रस इतना सुन्दर होता है कि उसके आगे ये सब बेकार लगते हैं.आप हटा दोगे ये सब.खुद अच्छा character बन जाएगा,अच्छी thinking हो जायेगी.ठीक है.

SMS :संतोष पूछते हैं
भक्ति भी क्या भग्य से मिलती हैं ?
Reply By माँ प्रेमधारा: 
संतोष जी एक बहुत ही सुन्दर-सा श्लोक याद आ रहा है मुझे
"एइरुपे  ब्रह्माण्ड भ्रमिते कौन भाग्यवान जीव|
गुरु-कृष्ण प्रसादे पाए भक्तिलता बीज||"
यानि कि इस संसास में,इस ब्रह्माण्ड में आते रहते हैं,जाते रहते हैं.अनंत-अनंत ऐसा क्रम चल रहा है लेकिन अगर आप पर गुरु की कृपा हो जाए,किसी परम भक्त की कृपा हो जाए और परम भक्त की कृपा हो जाए और परम भक्त की कृपा तभी होगी जब भगवान् की कृपा होगी,भगवान् चाहेंगे.जब इनदोनों की कृपा हो जाती है तो आपको भक्ति लता का बीज मिल जाता है.जिसे आपको सींचित करना पड़ता है,सींचना पड़ता है जैसे निरंतर भगवान् का नाम ले करके,उनके बारे में सुन करके,भक्तों का association करके.जब आप इस बीज को सींचते हैं तो धीरे-धीरे ये बीज एक लता का रूप ले लेता है और प्रभु के चरणों तक पहुँच जाता है.
तो भक्ति भाग्य से मिलती भी है और नही भी.आपके प्रारब्ध में भक्ति है  लेकिन यदि आपने इस तरफ कर्म करने से इनकार कर दिया.आपने इसे बेकार समझ लिया तो फिर क्या फायदा.
एक आम आदमी को भी भक्ति मिल जाती है अगर उस पर भगवान् की कृपा हो जाए तो.तो प्रभु की कृपा की याचना करनी चाहिए.जब भी आप उनके द्वार या जहाँ भी बैठे हो,आप प्रभु से उनकी कृपा की याचना करो.कहो कि हे प्रभु मुझे भक्ति का दान दीजिये.

SMS :दिनेश कुमार विकासपुरी से पूछते है
आसक्ति से कैसे बचा जा सकता है?
Reply By माँ प्रेमधारा: 
भगवान् से जब दोस्ती कर लोगे,प्रभु के हो जाओगे तो आसक्ति से स्वयं बाहर निकल  आओगे.अपने आप.कोई extra effort करने की जरुरत नही है.आप सोचोगे कि चलो मै अपने बच्चे को प्यार करना बंद कर दूं या अपने माँ-बाप को बिल्कुल ना पूंछू.ये तो पाप हो जाएगा.माँ-बाप को प्यार करना है,बच्चों को प्यार करना है,समाज को प्यार करना है.

मनुष्य,मनुष्य को प्यार करे,मनुष्य अन्य प्राणियों को भी प्यार करे.बकरे को,कुत्ते को,गाय बिल्ली सबको लेकिन आसक्त न हो.ये जानता रहे कि ये प्रभु के दिए हुए हैं,प्रभु के बन्दे हैं.हाँ ये मेरे नही हैं.मेरे अपने नही हैं.मेरा अपना तो एक सम्बन्ध बस उन्ही से है.
ये जिससमय आप जान लोगे,समझ लोगे तो प्रॉब्लम नही रहेगी.

SMS :अलवर राजस्थान से राजेन्द्र जी कहते है कि आपके कार्यक्रम से हमारे सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है.कार्यक्रम यूं ही चलता रहे यही शुभकामना है.
Reply By माँ प्रेमधारा: 
शुक्रिया राजेन्द्र जी.

SMS :जाने कौन हैं दिल्ली से कहते हैं
सारे काम छोड़कर भक्ति में डूब जाने को मन करता है.
Reply By माँ प्रेमधारा: 
देखिये भक्ति की बड़ी गलत परिभाषा कर दी आपने.आपने तो ये जता दिया कि भक्ति के लिए सबकुछ छोड़ना पड़ता है.जी नही.भक्ति के लिए सिर्फ प्रभु को जोड़ना पड़ता है.जो कुछ आप कर रहे हैं,जहाँ हैं जिस स्थिति में हैं उस स्थिति में बरकरार रहते हुए सिर्फ प्रभु को जोड़ना है जोड़ना.है न.योग.योग करना है
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।
बस ये काम करना है,प्रभु का आश्रय लेना है.खुद को भगवान् समझाने की भूल नही करनी है तो आप भक्ति करने लगेंगे सारे काम करते हुए.क्या problem है.काम मत छोडिये,कोई काम मत छोडिये.पढ़ रहे हो तो पढाई करो,अच्छे नंबर लाओ,अच्छी university में जाओ,अच्छा career बनाओ ताकि आप भगवान् की और अच्छी सेवा कर सको.

तो यही युक्तं वैराग्य कहलाता है.तो ऐसा हमें करने का प्रयास करना चाहिए.न कि ये कहना कि भक्ति में डूब जाने के लिए सबकुछ छोड़ दूं.वो तो फिर कायरता है.कायरता नही देखानी है.भक्ति को बहाना मत बनाओ ,भगवान् को बहाना मत बनाओ.
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SMS:बहुत ही अजीब-सा मेसेज आया है जाने कौन है U .P . से लिखते हैं 
life brings कभी खुशी कभी गम
when it ends न तुम जानो न हम 
lets do भक्ति
who knows कल हो न हो
but when you need a true friend in life
पार्वती है न.
Reply By माँ प्रेमधारा: 
देखिये अजीब बात लिखी है आपने.ये बात तो सही है कि
life brings कभी खुशी कभी गम
जिन्दगी में खुशी और गम लगे ही रहते हैं.और कब जिन्दगी ख़त्म हो जायेगी न तुम जानो न हम.very correct और भक्ति करिए क्योंकि क्या पता कल हो न हो.
लेकिन जो आपने last लाइन लिखी है कि

but when you need a true friend in life
पार्वती है न.
 जी नही incorrect .गलत है ये.यहाँ मै आपको correct करना चाहूंगी कि मै आपकी true  friend नही हूँ.मै आपकी spiritual friend हूँ जो रेडियो में मिलती है.है न.और रेडियो में आपसे बातें करती है.जब तक कार्यक्रम है तब तक वो मौजूद है आपके लिए यहाँ पर.और मै रेडियो जौकी हूँ true friend नही हूँ.मै किसी की भी true friend नही हूँ.

true friend एक ही है.वो है भगवान्.स्वयं भगवान्.क्यों?क्योंकि वो कहते हैं 

"सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥"

अगर आपको वाकई शांति चाहिए.ये जानना चाहते है कि आपका सबसे अच्छा दोस्त कौन है जो कभी आपका साथ नही छोड़ेगा.देखिये कभी भी नही छोड़ेगा.आप चाहे कोई भी योनि क्यों न बदल ले.किसी भी योनि में चले जाएँ आपके हृदयस्थल में सदैव वास करेगा आपके साथ.आपके साथ रहेगा वो भगवान् स्वयं तो 
he is your true  friend  
मै आपकी true  friend नही हूँ .Please अपने आप को भ्रम की अवस्था से बाहर निकाल लीजिये .ठीक है.तब आप स्थिर रहेंगे
"ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥"
भगवान् कहते हैं कि जब आप जान लेंगे कि मै आपका true  friend हूँ तब आपको शांति प्राप्त हो जाती है.तो ये शांति आप तलाश कीजिये.
SMS :दीपक दिल्ली से पूछते हैं 
हर बार मेरा पतन काम के कारण होता है और मै इसे छोड़ भी नही पाता.ज्ञान और अज्ञान क्या है?
Reply By माँ प्रेमधारा: 
देखिये अज्ञान यही है जो आप करते हैं.कामनाओं के वशीभूत हो जाते हैं.काम सुख के वशीभूत हो जाते हैं.ये अज्ञान है.और ज्ञान है भगवान् से जुड़ना.ये g यान है.प्रभु से क्यों जुड़े?मै कौन हूँ?भगवान् से मेरा क्या सम्बन्ध है?क्या गरज पडी है मुझे कि मै भगवान् से जुडु?क्या ऐसे मै सुखी नही रह सकता जो मै कर रहा हूँ?

आप fortunate  हैं कि आप ये एक लाइन समझते हैं कि  मेरी ये weakness है कि मै काम से अभिशप्त हूँ और मरा पतन हो जाता है बार-बार.ये चीज आप समझते हैं.पहले तो बात समझना.उसके बाद प्रयास करना कि आप ऐसे लोगों का संग करे जो भक्ति में जुड़े हुए हैं.
पहले-पहले हो सकता है कि ये सब आपको उबाऊ लगे.boring लगे.धीरे-धीरे रस आयेगा.क्यों?क्योंकि



विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥


याद रखना कि जब आपको बेहतर रस मिल जाता है तभी आप तुच्छ रस को भूल पायेंगे.तो आपको बेत्टर अल्तेर्नातिवे मिलेगा तब आप ये गंदे विकल्प को भूल पायेंगे.
जैसे कि अगर एक छोटे-से बच्चे ने चाकू पकड़ लिया.आपको पता है कि वो चाकू उसको नुकसान कर देगा,वो अपने को काट लेगा.उसे पता भी नही है कि चाकू में धार है,कट जाएगा.है न.तो आप उससे वो चाकू लेने के लिए क्या करोगे.छिनोगे तो पता है कि वो इतनी तेज grip ले लेगा,इतनी तेज अपनी पकड़ बना लेगा चाकू पे कि चोट लगेगी ही लगेगी.हाँ तो आप क्या करोगे?

आप उसे एक सुन्दर-सा खिलौना लाके दोगे.ले लो,ले लो, ये ले लो.बच्चा जो है वो चाकू छोड़ देगा.खिलौने के पास भागने लगेगा.है न.खिलौने को अपनी पकड़ में ले लेगा और उसे चाकू का ध्यान भी नही रहेगा कि उसने कभी चाकू पकड़ा था.

इसीप्रकार से जब आप भक्ति में लगोगे.बेहतर रस प्राप्त होगा,भगवान् प्राप्त होंगे.भगवान् से जुड़ने का जो आनंद है एक आम आदमी नही समझ सकता.परे है,उसकी बुद्धी के परे है,अनुभूतियों के परे है ,अहसास के पड़े है.

तो जब आप उस आनंद की तरफ खीचने लगोगे.वो आनंद आपको प्राप्त होने लगेगा तो ये बहुत ही छोटी-सी चीज है जिसके लिए आप परेशान हो रहे हो.ये सब समाप्त हो जाएगा.ज्यादा परेशान होने की आपको जरुरत नही पड़ेगी.

तो मेरी आपको यही सलाह है कि आप वही कीजिये भगवान् से जुड़िये.

SMS :पूनम U.P .से कहती हैं
तूने तो पाया है एक अंश भर अभी
अभी तो भगवान् पाना बाकी है.
न ले अभी सुकून की सांस छूके चरण कमलों को 
अभी तो प्रभु से पूरा मिलन बाकी है.

Reply By माँ प्रेमधारा: 
और मै तो ये कहूंगी भगवान् से पूरा मिलन तो शायद कभी होना नही चाहिए शुद्ध भक्तों को क्योंकि जो उनसे मिलने की तड़प में मज़ा है वो उनसे मिलने के बाद शायद न रहे.क्या पता?हो सकता है दुगुना भी हो जाए लेकिन जो उनसे मिलने की तड़प में,आरजू में,जो छटपटाहट में मज़ा है उसकी बात ही अलग है.