Tuesday, November 30, 2010

Deer Park Satsang On Sunday,28th Nov, 2010 (2-4 pm) By Premdhara Parvati Rathor

श्रीमदभगवद्गीता बहुत-ही सुन्दर तरीके से भगवान ने बोली है.श्रीकृष्ण ने और जब श्रीकृष्ण ने श्रीमदभगवद्गीता का उपदेश अर्जुन को दिया तो उनका उद्देश्य सिर्फ अर्जुन को ही तारना नही था.उनका उद्देश्य था उनके माध्यम से कलयुगी जीवों का तक ये दिव्य संदेश पहुँचाना.कलयुगी जीव हमलोग जो कि वेद भाषा से अनभिज्ञ हैं.वद नही पढ़ सकते.पढेंगे तो समझ नही आएगा.टेढा-मेढा लिखा है.अलंकारिक भाषा है.तो भगवान का ये बहुत बड़ा उद्देश्य था.अर्जुन जो भगवान के परम भक्त थे.अर्जुन के माध्यम से उन्होंने दिखाया.दिखाया कि वो मोहित हो गए.वस्तुतः वो कभी मोहित हो ही नही सकते.अर्जुन कभी मोहित नही हो सकते.चिर सखा हैं भगवान के.चिर पार्षद.लेकिन तो भी मोह देखाते हैं और उस मोह के जरिये भगवान बहुत दिव्य संदेश आप तक,हम तक पहुँचाते हैं.

तो आज श्रीमदभगवद्गीता का पांचवा अध्याय और श्लोक संख्या 26.इस पर हम आज चर्चा करेंगे.बहुत-ही सुन्दर श्लोक है.
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्‌ ।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्‌ ॥(भगवद्गीता,5.26)
बहुत-ही सुन्दर मायने हैं.अर्थ है इस श्लोक का.

"जो क्रोध तथा समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हैं,जो स्वरूपसिद्द,आत्मसंयमी हैं और संसिद्धि के लिए निरंतर प्रयास करते हैं उनकी मुक्ति निकट भविष्य में सुनिश्चित है."

है न.दूर नही है.उनकी मुक्ति निकट भविष्य में सुनिश्चित है.जब हम भविष्य की बातें करते हैं तो याद रखना भविष्य जो है बहुत ही दूर की बात हो जाती है.हम ये नही सोचते हैं कल के बारे में.हम सोचते हैं कि आज से दस साल बाद ये हो.बीस साल बाद हमारा ये हो जाए,वो हो जाए.उसके लिए अभी से प्रयास करना होगा.ये करना होगा,वो करना होगा.

लेकिन भगवान आपको बता रहे हैं कि आपको जो अनमोल खजाना मिलेगा वो निकट भविष्य में ही मिल जाएगा.लेकिन conditions हैं.शर्त्त है.यहाँ भगवान बता रहे हैं कि हम कैसे शुद्ध होंगे तो हमें ये अनमोल खजाना मिलेगा.भगवान कहते हैं
कामक्रोधवियुक्तानां 
जो क्रोध और समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हो.आपको ये तो पता ही होगा?क्या?कि क्रोध कैसे होता है.क्रोध होता है जब हमारी कामनाएं पूर्ण नही होती है.

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥(भगवद्गीता, 2.62)
तो इसतरह से क्रोध उत्पन्न होता है.कामनाओं से.भगवान कहते हैं कि जो समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित है.अगर आपके पास भौतिक इच्छाएं रहेंगी ही नही तो इसका मतलब है कि क्रोध भी नही रहेगा.भगवान ने दो बातें कही-समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित है और क्रोध से भी रहित है.समझ आ गई बात.लेकिन अगर आप समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हो गए तो क्रोध से automatically रहित हो जाओगे.

लेकिन बाबजूद इसके कई बार ऐसा होता है कि लोग दिखाते हैं कि हमें कोई भौतिक इच्छा नही है लेकिन अंदर से मन भौतिक इच्छाओं का चिंतन करता है.उन विषयों का चिंतन करता है जिसमे हमारी इन्द्रियाँ रत रहा करती थी.आज हमने so called संन्यास ले लिया.आज हमने वो सन छोड़ दिया.लेकिन क्योंकि इन्द्रियों को अभी तक वो स्वाद याद है.भूला नही है.
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते ।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥(भगवद्गीता,2.67)
ये इन्द्रियाँ इतनी विचरणशील हैं ,इतनी बलवान हैं कि आपको पकड करके वापस वहाँ लाकर के पटकेंगी.इसीलिए भगवान ने यहाँ बोला है कि क्रोध से भी रहित होना होगा.भौतिक इच्छाओं से रहित होगे तो automatically क्रोध से रहित होगे.लेकिन फिर भी भौतिक इच्छाओं का चिंतन भी आपने कर लिया.कही से चिंतन.हम ये किया करते थे.

आज मैंने शराब पीनी छोड़ दी है लेकिन पता है जब हम पिया करते थे तो साथ में ये रखते थे,वो रखते थे.पाँच ये item,छः वो item.आपने अगर चिंतन भी कर लिया तो वो भी एक पाप है.यानि कि उस भौतिक इच्छा की चिंगारी हमारे अंदर कहीं दबी हुई है,no. 1.No2 इच्छा तो अभी भी है.चाहे आज आप वो नही करते पर कही-न-कही से वो चीज आपको आकर्षित करती है.आप ये नही कहते कि थू मै तुम्हारा नाम नही लूंगा.तुम्हे देखूंगा नही.तुम्हारे बारे में सोचूंगा नही.आप ऐसा कोई संकल्प नही करते. आप सिर्फ भौतिक इच्छाओं को छोड़ भर देते हैं.लेकिन भौतिक इच्छाएं आपको छोडती हैं भला.नही वो आपको पकडे रहती है और आप दुबारा कई बार मुड के देखते हो अपने इस संन्यास के सफर में.

संन्यास ये नही कि आपने कोई वस्त्र धारण कर लिए गेडुये.संन्यास मतलब अंदर का संन्यास.अंदर से आप विमुक्त हो.जैसे राजा जनक थे और राजा भरत कह लीजिए.जब भगवान श्रीरामचन्द्र चले गए वन में तो राजा भरत के सिर पर राजगद्दी का बोझ आ पड़ा क्योंकि भाई की आज्ञा थी.वो नही चाहते थे अपने लिए.मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान ने मर्यादा सिखाई तो उनके भाइयों में मर्यादा न हो,ये तो possible ही नही था.वो अपने लिए नही चाहते थे.लेकिन तो भी राजा भरत ने अपने राज-कार्यों का निर्वाह किया.वो आते थे और आ करके बेशक वहाँ पर खडाऊं रखी रहती थी भगवान की.भगवान की खडाऊं लाये थे न.उसको सिंहासन पर रखे थे लेकिन बगल में बैठ के वो बकायदा राजकाज चलाते थे.है न.सब को दण्डित भी करते थे.इनाम भी देते थे.जिसको जो मिलना था.सब कुछ करते थे.महल में भी रहते थे औत फिर उसके बाद महल से कुटिया में भी रहने लगे कि नही,नही यहाँ नही वहाँ सोउंगा.

तो ये क्या है?युक्त वैराग्य है.आप अपना काम कर रहे हैं.सब चीज कर रहे हैं.पर उसमे डूबेंगे नही.

तो भगवान ने कहा कि क्रोध को छोडना होगा और छोडनी होगी कामनाएं.क्रोध को मगर छोडना बहुत जरूरी है कामनाओं को छोडने के साथ-साथ.जब क्रोध आएगा तो क्या करोगे?आपके पास तो बहुत अच्छा उपाय है.कहोगे
"हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे |
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||"
भगवान का दिव्य नाम.जब भी आप ये नाम लेंगे क्रोध काफूर की तरह उड़ जाएगा.पास नही फटक सकता.हो ही नही सकता कि आपको क्रोध आये और आपने नाम लिया तो भी किसी पे क्रोध आएगा.आप सचेत हो जायेंगे.क्रोध नही आएगा.

तो भगवान कहते हैं कि दो item ये हटा दे-  भौतिक इच्छा और क्रोध.आगे क्या है जो स्वरुपसिद्ध हो.बहुत important बात है ये स्वरुपसिद्ध होना.ये छोटा-सा शब्द दिखता है स्वरुपसिद्ध लेकिन इसके पीछे,यहाँ तक पहुँचने में अथक प्रयास है.अथक प्रयास.

देखिये जब starting में इंसान भक्ति में आता है तो वो भगवान को अपनी तरह एक पुरुष के रूप में नही समझ पाता.वो यह कल्पना नही कर पाता कि भगवान भी एक व्यक्ति होंगे.अगर किसी को कहा जाता है कि भगवान जैसे तुम हो,जैसे मै हूँ वैसे ही एक व्यक्ति हैं तो वो मान नही पाते.भगवान भी हँसते हैं,बोलते हैं.उन्हें भी पसंद है,नापसंद है.सब कुछ है भगवान में.सारी-की-सारी क्रिया-प्रतिक्रिया भगवान में है.क्योंकि हम इतने तुच्छ हैं इसलिए हम सोचते हैं कि हमारे जैसे कैसे हो गए भगवान.आपकी तरह नही हैं पर एक व्यक्ति हैं.आपकी जड़ इन्द्रियाँ हैं और पंचभूत तत्त्वों से बना आपका शरीर है.है न.
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।(भगवद्गीता,7.4)
ये सब कुछ आपके अंदर है लेकिन भगवान इससे ऊपर हैं.ये भगवान के पास नही है.भगवान की सारी इन्द्रियाँ दिव्य हैं.भगवान के शरीर में,इन्द्रियों में और आत्मा में कोई फर्क नही है.सब एक हैं.
सत् चित् आनंद सचिदानंद.

भगवान आपकी तरह एक व्यक्ति हैं.कोई ये कहे तो हमें बड़ा अजीब लगेगा.तो हम क्या करते हैं.जब हम starting में भक्ति में जुडते हैं तो हम सोचते हैं कि भगवान एक शक्ति हैं.क्या यही सोचते हैं न?कई लोगों से मैंने बात की.जब मै बात करती हूँ तो वो कहते हैं कि मै ये तो नही जानता कि भगवान का नाम क्या है.but i believe भगवान हैं.एक शक्ति है कोई जो सब चला रही है.मैंने कहा कि शक्ति है तो फिर शक्तिमान भी होगा.शक्ति है तो शक्ति का स्रोत भी तो होगा न कोई.शक्ति ही तो नही चला रही.ये कैसे हो सकता है कि आपके पास शक्ति भी है और आपके पास आकार भी है और भगवान शक्ति हैं पर उनके पास आकार नही है.निराकार हैं.क्या हमारे भगवान इतने बेचारे हो गए.वो सबको आकार दे रहे हैं और वो बेचारे निराकार हो जायेंगे.not possible.सुन्दर,दिव्य आकार हैं उनका.हम उनसे परिचित नही हो पाते.हमारे शास्त्र बताते हैं पर हम परिचित होना नही चाहते क्योंकि हम सोचते हैं कि अगर अपनी तरह का सोच लिया तो जो हमारे अंदर कमजोरियां हैं वो भगवान में भी नजर आयेंगी.इसीलिए उनको कहते हैं कि नही नही वो एक light हैं.हम जायेंगे.जाकर के उनकी पूजा कर लेंगे.वो तो सर्वव्यापी हैं.वो सर्वव्यापी हैं पर कैसे?किस तरह?अपनी शक्तियों के द्वारा.

जैसे कि सूर्य आपको दिखता है लेकिन यहाँ भी मौजूद है धूप की रश्मियों द्वारा,किरणों द्वारा.लेकिन अगर आप कहेंगे कि ये सूरज नही है.तो ये सच है लेकिन ये सूरज की ही शक्ति है.ये जो किरणे हैं वो सूरज से ही निकली हैं.सूरज नही होगा तो ये भी नही होंगी.है बात कि नही सच.बताईये.सूरज नही तो किरणे नही.अब आप कहो कि नही ऐसा कैसे हो सकता है.कोई उत्तरी ध्रुव में रहनेवाला व्यक्ति कहे कि मेरे यहाँ तो सूरज उगता ही नही.सूरज नही है.आपको दिखता है.आप कह रहे हैं कि है,है,है.मै देख रहा हूँ.उसने कहा कि कहाँ है?कहाँ है.मै तो देख ही नही रहा हूँ.सूरज है पर एक को दिखता है और दूसरे को नही दिखता.आप समझ रहे हैं.

तो जो पीछे हैं.उस पर्वत के पीछे हैं जिसने सूरज को ढंका हुआ है,उसे सूरज नही दिखता है.जो आगे हैं उसे दिखता है.पर्वत क्या है?माया.माया के दीवार के पीछे बैठे हैं.दीवार के साये में बैठे हैं तो फिर साया ही दिखेगा.सूरज नही दिखेगा.भगवान नही दिखेंगे.

तो भगवान खुद सूरज हैं.आप समझने की कोशिश कीजिये इस दृष्टान्त से. जैसे कि आप कहेंगे कि माताजी छः बजे अँधेरा हो जाएगा यानि सूरज चले जायेंगे.अँधेरा हो जाएगा सूरज चले जायेंगे.अब आप मुझे बताओ अँधेरा हो जाएगा इसलिए सूरज चले जायेंगे या सूरज चले जायेंगे इसलिए अँधेरा हो जाएगा.सूरज चला जाएगा इसलिए अँधेरा हो जाएगा न.इसीप्रकार से जहाँ भगवान होते हैं वहाँ माया नही होती.माया है अंधकार.जहाँ भगवान होते हैं वहाँ माया नही होती.जहाँ सूरज है वहाँ अंधकार नही होता.बड़े गौर से समझना.जहाँ कृष्ण हैं वहाँ माया नही होगी क्योंकि माया है अंधकार.जहाँ कृष्ण है वहाँ सूरज है इसलिए अंधकार का सवाल ही नही उठता.

इसीलिए कहा जाता है कि माया कृष्ण को छू नही पाती.वैसे ही जैसे कि अंधकार सूरज को छू नही पाता.सूरज निकल गया अंधकार हो गया.अँधेरे में बैठे हो और इंतजार कर रहे हो.अब आप कितनी टॉर्च जला लो,flood light जला लो ऐसा साफ़ नजर नही आ सकता कि आप दूर-दूर तक एक-एक item साफ़ देख लो जैसे सूरज की रोशनी में नजर आता है.ये भगवान का बल्ब है.आप समझ रहे हो.इसीप्रकार आप सोचे कि मै माया से लड़ाई कर लूंगा.मै माया को परास्त कर दूंगा.मै अपनी भौतिक इच्छाएं छोड़ दूंगा.इच्छाओं की तो बात है छोड़ देते हैं.ये ही तो नही खाना है छोड़ देते हैं लेकिन मै आपको बताती हूँ कि छोडते जाओ पर दो साल के अंदर फिर से शुरू हो जायेंगी.क्यों शुरू हो जाएगा?क्योंकि आपकी इन्द्रियाँ demanding हैं.demanding हैं.उन्होंने आपके गले में फंदा डाला हुआ है.

लेकिन अगर आप अपनी इन्द्रियों को कहोगे कि नही कोई बात नही तुम देखे बिना नही रहोगे.तुम्हे देखना है तो मै तुम्हे बहुत सुन्दर जगह देती हूँ देखने को.भगवान को देखो.कृष्ण को.उनकी प्रतिमा को देखो.उनके सुन्दर स्वरुप को देखो.शास्त्रों को देखो.पढ़ो.नाक को बोलो कि भगवान को अर्पित जो तुलसी है उसे सूँघो.


Monday, November 22, 2010

Deer Park Satsang On Sunday,21st Nov, 2010 (2-4 pm) By Premdhara Parvati Rathor


बड़ा सुन्दर श्लोक है जिसपर आज हम चर्चा करेंगे.भगवद्गीता, अध्याय तीन,श्लोक 37 :

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥


आपको तो पता है कि अर्जुन जब महाभारत युद्ध के लिए आगे आये तो बहुत घबराए हुए थे.जब उन्होंने अपने बंधु-बांधवों को देखा तो बहुत घबरा गए.तो अर्जुन खड़े हैं और उन्होंने कृष्ण से कहा कि मै युद्ध नही करूँगा.फिर भगवान ने बहुत सारा उपदेश दिया और बहुत सारी बातें बतायी.और उन बातों के दौरान भगवान ने ये बताया था कि अगर आप अपने नियत कर्मों को दोषपूर्ण ढंग से भी करते हो तो भी वो दूसरों के कर्मों को करने की अपेक्षा अधिक श्रेयस्कर है और दूसरों के जो नियत कर्म है अगर आप उसे करते हैं तो उसमे पाप है.

पाप से ही अर्जुन ने पूछा कि भगवान जितने भी लोग हैं वो विद्वान दिखते हैं.सबों को बुद्धि दी होती है भगवान ने तो फिर लोग पाप करते क्यों हैं.ये जानते हुए भी कि पाप करने से आपको उसकी सजा मिलेगी.चोरी करने से आप पकडे जायेंगे तो सजा मिलेगी और एक-न-एक दिन पकडे जायेंगे.प्रवृत्ति रहेगी तो एक-न-एक दिन तो आप धर ही लिए जाओगे.ये सब जानते हुए भी लोग पाप क्यों करते हैं.

तो भगवान ने बताया.बड़ा-ही सुन्दर श्लोक है.

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥


हे अर्जुन इसका कारण रजोगुण के संपर्क से उत्पन्न काम है,जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है.

तो क्या सबसे बड़ा शत्रु है? काम.काम है सबसे बड़ा शत्रु.काम की वजह से ही क्रोध होता है.काम होगा नही तो क्रोध भी होगा नही.तो क्रोध का मूल काम है.लोग कहते हैं कि हमें इतना क्रोध क्यों आता है.तो भगवान कहते हैं कि

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥


काम से क्रोध का जन्म होता है.पहले भी भगवान ने बताया और यहाँ भी बताया.ये काम जो है बड़ा ही भयंकर है.तो भगवान कहते हैं कि काम उत्पन्न ही रजोगुण से होता है.अगर कोई आदमी ये कहे कि नही ये प्रकृति के गुण है वो मुझे नही असर कर पायेंगे.मै निर्गुण हो जाऊंगा.नही ये possible नही है.आप ये कह रहे हो कि मै पानी में चौबीस घंटे रहूँगा और मै गीला नही होऊंगा.अगर आप कहोगे कि मै प्रकृति के गुण से छुआ नही जाऊंगा,रजोगुण,सतोगुण,तमोगुण तो ये possible नही है.गुण तो आप पर attack करेंगे ही.यहाँ आने का मतलब ही है -गुण में आना.है न.

और आज की तारीख में अगर आप देखे तो रजोगुण ही ज्यादा दिखेगा.mode of passion में लोग जिए जा रहे हैं.सकाम कर्म.रजोगुण क्या होता है?सकाम कर्म.ऐसा कर्म जिसका आप फल चाहते हैं.है न.और फल भी ऐसा कि प्रतिकूल.अनुकूल फल चाहते हैं.मेरे अनुकूल हो.मुझे suit करना चाहिए तो वो मेरे लायक काम है.तो जब हम फलकांक्षी हो जाते है और तब हम कर्म करते हैं तो हम रजोगुणी कहलाये जाते हैं.उसमे हम बहुत उद्यम करते हैं,बहुत मेहनत करते हैं extra.extra कमाने के लिए.extra luxury of life विलासपूर्ण जीवन जीने के लिए,बहुत मेहनत करते हैं.

हम तो करते ही है और हमारे अब बच्चे पैदा होते हैं तो हम सोच लेते हैं कि इसको क्या बनाना है.उसके लिए कोई लाइन सोच लेते हैं कि उससे ये मेहनत कराना है.उसे शुरू से ही कराना है.बड़ा-ही भयंकर scenario है कि सभी रजोगुणी हैं.रजोगुणी हैं सभी तो सभी कामी हैं.प्रतिफल क्या है काम,कामनाएं और कामनाओं का कोई अंत नही होता.कामनाएं कभी सीमित नही होती.

समुद्र का शायद कोई अंत है पर कामनाओं का कोई अंत नही.

जब कामनाएँ पूरी नही होती,जब आपकी इच्छाएं अपूर्ण रह जाती है तो आपको तो पता नही चलता.आप बोल देते हो कि चलो मैंने compromise कर लिया.मगर कही से अंदर in the back of mind वो दर्द सालता रहता है.और वो जो दर्द है आपको वो भी आभास नही होता कि आपको दर्द साल रहा है.बस कभी-कभी विचार उस तरफ जा रहा है और अचानक ही बच्चा कुछ गिरा दे तो अपने एक लगाया उसे खींच के.क्यों?क्योंकि आप अपनी कामनाओं के अपूर्ण होने से चिंतित है मगर आप कह रहे हैं कि नही कोई फर्क नही पड़ता.लेकिन पड़ रहा है.फर्क पड़ रहा है क्योंकि आपने रजोगुण ही अपने आप में develop किया है.विकसित किया है.तो पड़ेगा फर्क.और वही पर आप बच्चों पर या किसी पर गुस्सा निकाल दोगे.क्यों?क्योंकि रजोगुण आपने अपने अंदर पूरी तरह से भरा हुआ है.

वो भगवान ने नही भरा.कही आप ये कहे कि भगवान ने तीनों गुण बनाए तो उसमे हमारा क्या दोष है.भगवान तो कहते हैं कि
निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन । (भगवद्गीता ,2.45)
तीन गुणों से ऊपर उठो अर्जुन.

वो तो अर्जुन के माध्यम से आपको भी कह रहे हैं कि तीनों गुणों से ऊपर उठो.मेरी भक्ति करो और तीनों गुणों से ऊपर उठ जाओ.पर हम उसे अंगीकार ही नही करते.स्वीकार ही नही करते.कृष्ण को स्वीकार नही करते और सब कुछ स्वीकार करते हैं.कृष्ण को भी स्वीकार करते हैं तो मामला गडबड है.तब गुण तो आयेंगे ही.

तो भगवान कहते हैं कि जब काम पूर्ण नही होता तो क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध से आप देख लीजिए-दुनिया में जितनी लड़ाइयां हुई हैं घर से लेकर के नगर,नगर से ले करके देश तक,देश से ले करके विश्व तक,उसके मूल में क्या है ?आप बताओ क्या है?काम,लोभ,क्रोध है.और क्या है?भगवान कहते हैं:

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌॥ (भगवद्गीता,16.21)


काम,क्रोध,लोभ.ये क्या हैं?नरक के द्वार हैं जो आत्मा का विनाश कर देते हैं.
ये तीनों ही भयंकर हैं पर उनमे सबसे भयंकर है काम.अगर हम काम के वशीभूत नही होते तो क्रोध भी नही होता,लोभ भी नही होता.लोभ कहाँ से होता है?कामनाएं हैं.उसे स्वीकार करने के लिए,किसी भी तरह उसे अपने अधीन करने के लिए ,हमारी कामनाएं पूरी हो इससे लोभ जागृत होता है.है कि नही.और नही पूरी हो तो क्रोध जागृत होता है.तीनो ही तरह से फंसे हुए हैं हम.

भगवान कहते हैं कि यही संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है.

अगर कामना न हो तो कोई चोरी क्यों करे.सोचिये.अगर कोई खेती करता है और भगवान का भजन करता है तो इतना तो कमा ही लेता है कि अपना घर-बार चला सके.लेकिन फिल्मे गाँव में भी पहुँच गयी हैं.तो फिल्मों में दिखता है.फिल्मो में क्या दिखता है?अगर गाँव का भी कोई दृश्य दिखा रहा है तो बड़ा ही affluent family दिखा रहा है.कई बड़े-बड़े कमरे हैं,बड़ा-सा दालान है,पीछे बागान है,आगे बागान है.इतना ऐश्वर्य और वैभव दिखा रहा है कि वो बेचारा गावं के corner में बैठा है वो भी देख रहा है और सोच रहा है कि ऐसा मेरा क्यों नही हो सकता.आप समझ रहे हैं.भाई ये भी तो किसान है और मै भी किसान हूँ.

फिर काम जन्मा.काम जन्मा तो उसने सोचा कि भाई यहाँ तो बात बनेगी नही.तुम लोग यही रहो.तुम खेती करना और मै जाता हूँ मजदूरी करने.दिल्ली.पंजाब,हरियाणा कही भी.वहाँ जा के कमाऊंगा और यहाँ भेजूंगा तो बड़ा-बड़ा हमारा खेत होता चला जाएगा.और हमारी भी एक दिन सारी कामनाएं पूरी होंगी.

तो परिवार का बिछोह  हो गया.फिर उसके बाद घटना क्या होती है?घटना,ललिता पार्क जैसी घटनाएं हो जाती हैं जिसमे इतने मजदूर मर जाते हैं बेचारे.तो यही हालत है.आये थे पूरा करने काम को.ये नही कि वहाँ नही था.यहाँ ही है ये नही है.लेकिन कामनाएं अधिक थी और कामनाओं को पूर्ण करने का जो जज्बात था वो बड़ा तगरा था तो यहाँ आकर फंसे और फिर वापस कभी न जा पाए.ऐसा भी हो जाता है कई बार.

तो भगवान यही कह रहे हैं कि यही काम जो है सर्वभक्षी शत्रु है.तो देखिये भगवान ने आपको बता दिया. diagnosis हो गया,पता चला गया शत्रु है.अब मान लो अगर आपको पता चल जाए कि आपका शत्रु सामने है और वो आपको कभी भी नुक्सान कर सकता है.कभी भी.तो नीति ये कहती है कि उस शत्रु का दमन कर देना चाहिए ताकि वो आपका नुक्सान न कर पाए और दमन कैसे भी हो सकता है.प्रेम से भी उसे आप दोस्त बना सकते हैं.या अगर आप रजोगुणी,तमोगुणी हैं तो उसे मरवा भी सकते हैं.है कि नही.यदि आप भगवान के भक्त हैं तो आप कहते हैं कि इसे भक्त ही बना दो फिर शत्रु रहेगा कहाँ.मेरा दोस्त बन जाएगा.है कि नही.भक्तों का संग प्राप्त हो जायेगा.

तो  शत्रु का दमन करने के लिए ये जरूरी है कि पहले ये पता चले शत्रु है कहाँ.काम को समाप्त करने के लिए ये जरूरी है कि पहले ये पता चले काम रहता कहाँ है.कहाँ हैं हमारी कामनाएं?कहाँ रहती है?कहाँ वास करती हैं?तो भगवान इसके बारे में बताते हैं कि
आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा ।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥
बहुत सुन्दर बात कहते हैं भगवान.अभी शत्रु के बारे में कि शत्रु है कहाँ.भगवान कहते हैं कि जो जीवात्मा है वो है तो क्या?ज्ञानमय.क्या है?ज्ञानमय है.लेकिन उसका जो ज्ञान है वो काम की विभिन्न मात्राओं द्वारा ढक दिया जाता है.अब जरूरी नही है कि हर व्यक्ति में एक ही प्रकार की कामनाएं हो.हो सकता है कि जो गरीब आदमी है जिसके पास एक साइकिल है वो कहेगा कि एक स्कूटर से काम चल जाएगा.हो सकता है कामना इतनी-सी हो.दूसरा जिसके पास गाड़ी है वो कहेगा ये गाड़ी अब बेकार हो गई है.अपने को मर्सिडीज ही चाहिए.बहुत बड़ी कामना हो गई.समझ रहे हैं.तो कामनाओं की विभिन्न स्तर,विभिन्न मात्राएं और वो कामनाओं की विभिन्न मात्राएं हमारे ज्ञान को क्या कर लेती हैं?आवृत्त,आच्छादित,cover कर देती है.

आप ज्ञानी हो पर आपका ज्ञान किसी काम का नही रहता क्योंकि कामना उस पर कब्ज़ा जमा लेती है.तो भगवान कहते हैं कि ये क्या होता है.नित्य होता है.ये नही कि आज कामना ने आपकी चेतना पर कब्ज़ा जमाया, अभी सो जाओगे और सुबह उठोगे तो ऐसा नही होगा.सोये रहोगे तो भी वो वही जमी रहेगी.और गाड़ी हो जायेगी,और गाड़ी हो जायेगी.आप पागल हो जाओगे उस कामना को पूर्ण करने के लिए.है न.कैसे करूँ,कैसे करूँ.

जीवन जो इतना अनमोल है.इतना अनमोल मनुष्य जीवन वो यही सोचने में बीत जाए कि अपने इस काम को कैसे पूरी करूँ.फिर दूसरी शुरू हो जाये,इसे कैसे पूरी करूँ,फिर तीसरी शुरू हो जाए.तो ये एक बाहर बड़ी कंजूसी है क्योंकि मनुष्य जीवन कामनाओं को पूरा करने के लिए नही मिला.मनुष्य जीवन मिला है भजन करने के लिए.भजन ही करने को मनुष्य जीवन मिला है.और ये यही एक बात सब लोग नही जानते.ये बड़े दुःख की बात है.बड़े-बड़े colleges,बड़े-बड़ी सभागार,बड़े-बड़े governmental जो institute हैं को भी नही जनता.कही नही जानता.

भगवान का भजन ही एकमात्र तात्पर्य है एक मनुष्य जीवन का ये नही पता.

लेकिन अगर हम अपना सम्पूर्ण जीवन कामों को पूर्ण करने में लगा देंगे तो क्या होगा?क्या होगा?एक-न-एक दिन समाप्ति हो जायेगी.

इंसान चला जाएगा मगर क्या कहते हैं:
आशा रही,तृष्णा रही,मर-मर गए शरीर 

शरीर मरते चले जाते हैं पर आशा का जो बंधन है वो नही छूटता.तृष्णा .पहले तो तृष्णा जन्म लेती है फिर आशा कि ये एक-न-एक दिन पूरी करके रहेगे.तो भगवान कहते हैं कि

अग्नि के समान ये जलता रहता है काम.

जलता है.ये इसका गुण है.और ये कभी तुष्ट नही होता.ये दूसरा अवगुण है.आपने सोच लिया कि चलो कोई नही एक मकान की तो बात है.दुकान की तो बात है फिर मै बहुत खुश रहूँगा.तो भगवान हँसते हैं.कहते हैं कि  न तुम खुश नही रह सकते.पहले तो ये दुखालायम है.यहाँ खुशी है ही नही.अब तू मकान कर ले या कर ले दुकान.कुछ difference होगा.ये नही कि नही होगा.पर उसके बाद छः महीने से पहले ही सब बराबर हो जाएगा.शायद उससे बहुत पहले ही कामना  एक और सिर उठा देगी.दुकान में ये नही है.शटर उस तरह का नही पड़ा.ताला ऐसा लगाना था.अभी अगर मेरे पास वो भी होता CC TV.वो होता तो कितना अच्छा होता.you know kind of.बढ़ती जायेंगी,बढती जायेंगी.उस दुकान के ही अंदर में बड़ी कामनाएं ,छोटी-छोटी कामनाएं जन्म ले लेंगी.आप उन्ही को पूरा करने में लग जाओगे.

और फिर आपसे कहेंगे कि भजन कर लो तो आप कहेंगे कि time नही है.दुकान कौन करेगा.है न.तो ये बड़ा दिक्कत है.जबकि मै आपको बताती हूँ कि भजन ऐसी चीज नही है जिसके लिए आपको सब कुछ छोड़ देना पड़े.भजन तो बड़ी आसानी से होता है पर उसके लिए अभ्यास करना होता है.जैसे कि मै आपको एक example देती हूँ:

एक व्यक्ति थे.वो इतने भजन में पक्के थे,इतने भजन में पक्के थे.वो कुछ नही करते थे न पूजा,न पाठ.वो सिर्फ माला लेते थे और हरे कृष्ण महामंत्र भजते रहते थे.और इतना ध्यान से भजते थे.इतना बोलते थे,इतना बोलते थे कि जब वो माला रख देते थे तो भी उनका मुँह चलता था.जब वो सो जाते थे तब भी उनके बोल चलते रहते थे.अगर वहाँ तक पहुँच जाओगे कि आप सो रहे हो तो भी आप aware हो कि हाँ मेरे मुँह पर नाम चल रहा है.तो तो फिर चिंता करने कि बात ही नही है.फिर मौत कैसे भी आ जाए.नाम तो चल रहा है न.बात समझ में आ गयी.यही है.ये है अपना test.वहाँ तक पहुँचाना है कि एक क्षण भी खाली नही हो कृष्ण नाम से.इसका मतलब ये थोड़े-ही है कि वो सेठ जी काम नही करते थे.करते थे.

तो भगवान कहते हैं कि ये आग के समान जलता है .आपने कभी में पेट्रोल डाला है.घी डाला है.कभी यज्ञ किये होंगे अपने घर छोटे-छोटे.तो पंडित जी क्या करते हैं.जब आग जलता है तो उसमे बहुत सारा घी डाल देते हैं कि और अच्छे से आग जले.और भडके.तो जितनी कामनाओं की पूर्त्ति होती है,इसका मतलब वो आग में घी के समान है.और कामनाएं बढ़ जाती है.और बढ़ जाते हैं.अगर कोई पूरी न हो तो.मुझे एक बच्चे की बात याद आती है.

एक बच्चा था.उसको सजने-संवरने का बहुत शौक था.बच्ची को.बहुत सजती थी.संवारती थे.एक बार उसको एक skin disease हो गया. skin disease हो गया तो वो कुरूप होती चली गयी.उसको ऐसा लगा कि मै कुरूप हूँ पर थी नही.उसे लगा कि मै शायद कुरूप हूँ.तो उसने बोला कि कई बार मेरा मन विरक्त हो जाता है कि क्या body को सजाना.आप समझ रहे हो.क्या Body को सजाना.तो प्रतिकूल परिस्थिति हुई तो उसका मन विरक्त हो गया.आप समझ रहे हैं कामनाएं.उसे लगा कि सब बेकार है.

लेकिन मै ये कहूँगी कि ये तो बहुत अच्छा हुआ.ये तो अभी से संभल गयी नही तो तुम भी सोचते कि गोरा कने वाले क्रीम लगाए.और पूरा जीवन जो है अपने माँ-बाप का या अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन्ही चीजों में आप बर्बाद कर देते.है न.

तो कामनाएं जो हैं वो बड़ा ही भयंकर रूप दिखाती है और भगवान ने यही बात यहाँ पर बतायी है कि अग्नि की तरह ये जलती रहती है और कभी भी संतुष्ट नही होती.और आगे बताते हैं भगवान कि कामनाएं रहती कहाँ हैं.ये बहुत important है.ये बड़े ही ध्यान से सुनो.कामनाएं रहती किधर हैं.यानि कि जब तक आपको ये नही पता चलेगा कि आपके शत्रु रहते किधर हैं आप उन्हें मारोगे कैसे और काम आपका सबसे बड़ा शत्रु है कृष्ण कह चुके हैं.

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥(भगवद्गीता,3.47)


कहाँ रहते हैं.तो कृष्ण कहते हैं

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते ।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्‌ ॥(भगवद्गीता,3.40)


इन्द्रियाँ,मन और बुद्धि इस काम के निवासस्थान हैं.

यानि एक चीज clear हो गयी कि आत्मा में काम नही रहता.आत्मा जो भगवान का सचिदानंद अंश है वो काम का नही हो सकता.यानि आत्मा ऊपर है.
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥

आत्मा इन्द्रियाँ,मन,बुद्धि इन सबसे बहुत ऊपर है.बहुत ऊपर उसका स्थान है.तो ये अच्छी बात हो गई कि जो असली controller है वो इससे आवृत्त नही होता.लेकिन देखिये आगे क्या गडबड होती है.इन्द्रियाँ ,काम यहाँ है.इन्द्रियों में .गौर करिये.इन्द्रियाँ क्या करती हैं अपने-अपने विषय के पीछे-पीछे भागती रहती हैं.अब आप गौर करोगे.मै सोचती हूँ इस बारे में.हमारी कितनी ज्ञान इन्द्रियाँ हैं.पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ हैं. और उनमे से चार ज्ञान इन्द्रियाँ किधर हैं.सिर्फ इतने से भाग में .ये सिर इसमे ज्ञान इन्द्रियाँ भरी पडी हैं.just imagine .सोचो.दो आँखें,नाक,कान,जिह्वा ,जिह्वा जो कि आपको स्वाद का पता बताती है ये ज्ञान इंद्रि हैं.आँख से आप रूप का रस प्राप्त करते हो,नाक से आप गंध का रस प्राप्त करते हो,कान से शब्द जा रहे हैं.ज्ञान प्राप्त हो रहा है.त्वचा जो कि पूरी Body में है लेकिनकही आप देखना जब आपको कोमल-कोमल बच्चा दिखता है तो आप उसके गाल सहलाते हो.समझ गए मतलब वो पंचों ज्ञान इन्द्रियाँ यहाँ पर है.ठीक है न.

head is so important.और कहते भी है.हालाकि विषय दूसरा हो जाएगा फिर भी बताती हूँ.head is so important कि इसको कहा गया है कि भगवान के जो सिर का स्थान होता है उसे कहते हैं ब्राह्मण.ये तो पता है न.सिर ब्राह्मण क्योंकि इसमे सबसे बड़ी बात क्या है?thinking capacity.ये सोच सकता है.ये फैसले लेता है.ये सही-गलत का निर्णय लेता है.पेट तो सही गलत का निर्णय नही लेगा.क्या पेट सोच सकता है?क्या हाथ सोच सकता है?क्या पैर सोच सकता है?नही सोच सकता न.सोचने का काम है सिर का. 

तो आप देखेंगे हर society में चाहे ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र नाम से न हो पर thinkers हर society में होते हैं.हर समाज में होते हैं बुद्धिजीवी .हर जगह.अमेरिका में भी आप देखेंगे कि एक बड़ा जमात जो है किसका है.thinkers का,बुद्धिजीवियों  का.जो सोचते हैं.निर्णय लेते हैं.बड़े-बड़े politician भी जो निर्णय ले रहे होते हैं तो वो thinkers हैं.

उसके बाद हर society में व्यापारी हैं. businessman.हम उन्हें कहते हैं वैश्य.वो क्या हैं बनिया हैं.वैश्य जाती है.हम ऐसे बोल देते हैं क्रूर language में.वही जरा आप हाई-फाई उसमे चले जाईये वो कहेंगे मै businessman हूँ.आप समझ रहे हैं ये वैश्य हैं.भगवान कहते हैं न 
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।(भगवद्गीता,4.13)

ये जो चारों वर्ण हैं वो मैंने बनाया है.तो आप कहाँ से बच सकते हो.अमेरिका में भी ये चारों वर्ण हैं.है कि नही.

फिर उसके बाद है हाथ.भगवान के जो हाथ हैं वो किस चीज के परिचायक हैं.क्षत्रिय के.हर जगह देखिये आप military होती है कि नही होती.क्या अमेरिका ये तो नही कह देता कि हम क्षत्रिय नही है इसलिए हम military नही रखेंगे.बड़े-बड़े देश.छोटे से लेकर बड़े तक सब जगह अपनी फ़ौज होती है.है कि नही.

और उसके बाद शूद्र यानि कि जो हाथों का काम करता है.लुहार वगैरह हो गए.हाथ से जो भी काम करते हैं.और हर society मे होते हैं . हर समाज में आपको मिलेंगे.ठीक है न.बुटीक होंगे बड़े-बड़े लेकिन वो हाथ से काम करते हैं.

तो ये चार चीजें भगवान ने बनाई.वही मै आपको बता रही थी कि ये सिर जो है सबसे important है.अब इसका मतलब ये नही है कि पैर important नही है.अगर आपको यहाँ से उठकर वहाँ जाना है तो पैर ही से जाईयेगा.सिर से नही चलिएगा.जाईयेगा क्या?सिर से तो नही जा सकते न.पैर से ही जाईयेगा लेकिन अगर गर्दन कट गई तो पैर कुछ नही कर सकता.पैर नही है तो आप जी सकते हो पर अगर सिर नही है तो क्या आप जी सकते हो?पेट भी खराब है तो जी सकते हो.अगर दिमाग खराब है तो कुछ काम ही नही होगा.मनुष्य जीवन का जो उद्देश्य है वो तो भूल ही जाओ.basic काम ही नही कर सकते.अपना ही देखभाल नही कर सकते.तो ये बहुत important है कि भगवान ने पाँचों ज्ञान इन्द्रियाँ यहाँ बना दी है सिर में.है कि नही.ज्ञान इन्द्रियाँ मुख्य है.बाकी तो कर्म इन्द्रियाँ हैं.ये दो हाथ हो गए,दो पैर हो गए,गुदा,उपस्थ और ये जुबान हो गई जिससे खाते हैं.ये कर्म इन्द्रियाँ है.

तो भगवान कहते हैं भैया इन्द्रियों में ये काम रहता है.इन्द्रियाँ क्यों भागती है अपने विषयों के तरफ?काम के कारण.आँखों को सुन्दर-सुन्दर दृश्य चाहिए.कान को सुन्दर-सुन्दर शब्द सुनना है.समझ रहे हैं.कानों को और भी अच्छा-अच्छा सुनना है.नाक को और भी अच्छा सूंघना है.जुबान को और भी अच्छा taste चाहिए.

दूसरी बात फिर बोले क्या?मन.इन्द्रियों के पीछे भाग रहा है मन.ये हमारी आज की हालत है.इन्द्रियाँ जहाँ भाग रही हैं वही मन भाग रहा है.मन के पीछे इन्द्रियाँ नही भाग रही हैं.होना ये चाहिए.इन्द्रियाँ जहाँ भागना चाहती हैं मन भी वही भाग रहा है.इसलिए आत्मा को भी भगाए ले जा रहा है,बुद्धि को भी भगाए ले जा रहा है.बुद्धि भी दासी हो गई.यानि कि Boss किसी company का boss अपने सबसे नीचे काम करने वाले का गुलाम हो गया तो उस company का क्या  होगा.वो तो डूब जायेगी.है कि नही.तो boss सबको अपने काबू में रखे तब बात है न लेकिन company डूबेगी जब boss सबसे नीचे काम करनेवाले का गुलाम हो जाएगा.आत्मा जब इन्द्रियों की गुलाम हो जायेगी तो आप गए.आप डूब गए.

आज ये खाने का मन कर रहा है आप बोलोगे कि कोई जरूरत नही है खाने की.आज चाय पीने का मन कर रहा है तो चाय तो मन है हम नही पीयेंगे.आत्मा बोलेगी नही मै तो कृष्ण का अंश हूँ अगर चाय छोड़ करके कृष्ण मिल जाते हैं.मै इस मार्ग पर बढ़-चढ निकलता हूँ.मुझे दीक्षा मिल जाते है,मुझे गुरु मिल जाते हैं तो ये तो बहुत छोटी-सी कुर्बानी है.

चाय,प्याज,लहसन,मांस ये छोड़ना कौन-सी बड़ी कुर्बानी है.बताइए.जहाँ आपको इस बात कि गारंटी है कि at the end of your life,अपने देह को त्यागने के बाद आपको भगवद्धाम प्राप्त होगा.गुरु,कृष्ण प्राप्त होंगे.बोलते हैं न :

ब्रह्माण्ड भ्रमिते कौन भगवाने जीव 
गुरु कृष्ण प्रसादे पाए भक्तिलता बीज.

कि भाई ब्रह्माण्ड में जीव करोडो-करोडो वर्षों से भटक रहा है.क्यों भटक रहा है?क्योंकि उसे गुरु नही मिले.उसे कृष्ण प्रसाद नही मिला.था सब कुछ पर जब उसने बुलाया तो आपने back कर दिया.पीठ दिखा दी.अनसुना कर दिया.ignore मार दिया latest language में.जब ignore मार दिया तो भगवान ने कहा जा.भटक चौरासी लाख योनियों में.ऊपर-नीचे,ऊपर-नीचे.वही हमारे साथ हुआ इसलिए हम यहाँ पर हैं और सारे दुःख झेल रहे हैं.और वही वाली बात है कि यहाँ बैठकर लगता है कि वो सुखी है.वहाँ बैठकर लगता है कि वो सुखी है.पर आप उधर-उधर जाओ तो लगेगा वही दुखी है.सबसे ज्यादा दुखी है.आपका दुःख बहुत कम है.ठीक है.कोई गाना भी है:

लोगों का गम देखा तो अपना गम भूल गया 

ऐसा कुछ.

भगवान ने कहा है इन्द्रियाँ,मन और बुद्धि.अब आईये बुद्धि पर.बुद्धि का काम क्या है?निर्णय लेना.सही-गलत का फैसला.लेकिन बुद्धि अगर भटक जाए.सही-गलत का फैसला न कर पाए.इन्द्रियों ने उस पर अधिकार जमा रखा है.फिर बुद्धि तो बेकार है.आप तो कुछ decide कर ही नही पा रहे हैं.भाई आपकी जुबान आपको ले जा रही है मदिरालय,शराबखाना .मन भी साथ हो लिया और बुद्धि भी कहती है चलो.बीबी बोलती है सुनिए न महीने का अंत है.मेरे हाथ में पैसे नही है.मकान मालिक को किराया देना है.उस आदमी को बुद्धि है फिर भी जा रहा है.क्यों?इन्द्रियाँ ले जा रही हैं.जुबान के पीछे-पीछे जा रहा है.जुबान लटकाते हुए जा रहा है बेचारा.इन्द्रियों के पीछे मन गया.बुद्धि गई.आत्मा भी चली गई.घोर सत्यानाश हो गया.आत्मविनाश हो गया.

अब दूसरी बात.भगवान बोले कि ये जो हैं काम के निवासस्थान हैं.सबसे ज्यादा काम आपका रहता है इन्द्रियों में,फिर मन में,फिर बुद्धि में.इनके द्वारा ये काम जीवात्मा के वास्तविक ज्ञान को ढंककर उसे मोहित बना देता है.नचा देता है.नचा.भगवान बोलते हैं न.मुझे बड़ी हँसी आती है कृष्णा जब बोलते हैं.बोलते हैं.
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥(भगवद्गीता,18.61)
आपने कभी वो देखा है गोल-सा झूला.देखा है.उसे क्या कहते हैं.giant wheel .उसमे लोगों को देखा होगा बैठे हुए.उसके बीच में एक आदमी होता है.वो क्या करता है.वो बीच में होता है.वो आदमी नही घूम रहा होता है.क्या घूम रहा है.wheel घूम रहा है.उसमे जो सवार है वो घूम रहा है.बीच में वो तेज कर देगा और सारे बच्चे चिल्लाने लगेंगे अरे कम करो,कम करो.समझ रहे हैं आप.कोई आँख बंद करके बैठ है.कोई कुछ करके.मुझे वही याद आ जाता है जब कृष्ण कहते हैं कि
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।


भगवान सभी लोगों के ह्रदय में बैठे हुए हैं.
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥
माया का जो यन्त्र है उसपर मैंने सब को बिठा दिया है क्योंकि आपने माँगा था कि मुझे बैठना है.बच्चे को कोई जबरदस्ती नही बिठाया झूले पर.बच्चे ने बोला कि मुझे जाना है,जाना है,जाना है.तो बाप ने बोला कि चल झूल ले,बैठ जा.तो भगवान ने बिठा दिया माया के यंत्र में.
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥
यानि मै घुमा रहा हूँ.बीच में जो आदमी है वो कृष्णा हैं और सबके ह्रदय में बैठे हैं.देख रहे हैं कि कौन चिल्ला रहा है,किसको दुःख हो रहा है और कौन है जो झूले से उतरना चाहता है क्योंकि झूले से उतरने कि इच्छा होगी तभी तो उतारेंगे.कोई मजा ले रहा है,कोई चिल्ला रहा है.जो चिल्ला रहा है कि बहुत दुखालायम है,अशाश्वत है,प्रभु यहाँ बहुत दुःख है,प्रभु मै आपके नाम की माला करता हूँ,आप मुझे ले जाओ.

भगवान कहते हैं ठीक है.
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्‌ ॥(भगवद्गीता,12.7)

भगवान कहते है.देखो,गौर से सुनो.उसमे भी तुम्हे मेरे ही बारे में सोचना होगा.giant wheel में आप उस आदमी के बारे में सोच रहे हो,उसे कह रहे हो कि भैया झूला रोको.अगर आप किसी और आदमी से कह रहे हो,Mr X,Mr Y से तो झूला नही न रूकेगा.आप वो आदमी जो है बीच में.जो चला रहा है.उसे बोलोगे कि भैया झूला रोको तो उसे दया आयेगी,बार-बार आप करोगे request,hands up.
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे 
हरे रम हरे राम राम राम हरे हरे.

फिर भैया ने रोक दिया झूला कि उतर जाओ तुम.इसीतरह जब आप hands up करते हैं और हरे कृष्ण महामंत्र जाप करते हैं.भगवान उसी को सुनते हैं न.उसी को सुन पाते हैं कलयुग में.उसी को सुन के action लेंगे.तो जब आप महामंत्र जपते हैं तो भगवान जो हैं वो झूला रोकते हैं आपके लिए और उतार देते हैं कि भैया चलो मेरे पास आ जाओ.नीचे आ जाओ.जमीन पर आ जाओ.जहाँ तुम्हे डर न लगे.तो क्यों आना चाहता है बच्चा?क्योंकि यहाँ डर नही लगेगा.यहाँ सबको जनता हूँ.ये परिवेश जानता हूँ.यहाँ चक्कर नही आएगा.इसीलिए बच्चा जमीन पर आना चाहता है.

तो भगवान ये बोले कि इन्द्रियाँ,मन और बुद्धि में काम निवास करता है.मुझे आप बताओ अगर आपको इन तीनो में से किसी को control करना है तो किसे control करना चाहिए.देखिये बड़े गौर से सुनिए बहुत बड़े आचार्य का कथन है उसको दुहराती हूँ.उन्होंने भगवान की समस्त वाणी,श्रीमद भागवतम वगैरह के आधार पर ये निर्णय लिया है कि इन तीनों में से आप मन को control कर सकते हैं क्या?अर्जुन control कर पाया?अर्जुन ने क्या कहा.
चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्‌ ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्‌ ॥(भगवद्गीता,6.34)
जब अर्जुन जिन्होंने शंकर जी को हरा दिया.समझ रहे हैं युद्ध में.बड़े-बड़े देवी-देवता उनसे हार मान गए.मन को क्यों नही control किया.अरे इन्द्र जी के यहाँ गए थे तो उर्वशी आयी थी उनके पास.बड़े-बड़े विश्वामित्र वगैरह उनकी तपस्या डगमगा जाती है.वहाँ पर अर्जुन जो गृहस्थ था,इस रस से वाकिफ था.वो बोलता है कि माता आप कैसी हैं.वो कहती हैं कि माता! हम अप्सराएं हैं,माता किसी की नही होती.नही आप हमारे पिता इन्द्र के कक्ष में रहती है,आप माता हैं मेरे लिए.आप समझ रहे हैं.वो अपने मन पर कितने अच्छे से काबू रखे हुए थे.वो अर्जुन कहते हैं कि मन पर control नही हो सकता.आज के कलयुगी जीवों की तो बात ही नही कर रही हूँ मै.

मै तो अर्जुन की बात कर रही हूँ.अर्जुन ऐसे जो कि सोते थे न तो उनके हर इन्द्रिय में से भगवान कृष्ण का नाम निकलता था.इसलिए वो कृष्ण के सबसे प्रिय पार्षद हैं.सोते हैं तो भी भगवान का नाम मुख से निकलता रहता है.समझ रहे हैं आप.इतने बड़े भक्त हैं अर्जुन.कोई छोटे व्यक्ति नही हैं.बहुत बड़े भक्त हैं .वो कहते हैं कि मेरे से तो मन ही नही control होता.तो भगवान कहते हैं :
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥(भगवद्गीता,6.35)
अभ्यास करो.वैराग्य लाओ.लेकिन आपको immediately अगर control करना है तो इन्द्रियाँ control करनी होंगी.अगर आप इन्द्रियों को control करते रहोगे,करते रहोगे तो धीरे-धीरे मन control हो जाएगा.आपकी इन्द्रियाँ चाह रही चलो आज चाट-पकौड़ी खाते हैं.ठीक है.सामने दुकान भी है गोलगप्पे की.आप जा भी रहे हो.मन कह रहा है.इन्द्रियाँ भाग रही है उधर.आप आत्मा हो सबसे बड़े.आपने कहा नही खाना.मुझे नही खाना है.चलो सीधा.मन ने भी कहा ठीक.दूसरी बार भी जायेगा.तीसरी बार देखेगा तो कहेगा कोई फायदा नही है.ये आदमी कुछ सुनता नही है.चलो आगे चलो.समझ रहे हैं.और पांचवी बार तक कहेगा सब बेकार है चाट-पकौड़े.आप बात समझ रहे हो.

तो starting में एकदम हमें इन्द्रियाँ control करनी होंगी.जब इन्द्रियाँ एकदम control हो जायेंगी तो क्या control होगा.मन control होगा.और मजे की बात बताऊँ.आप सोचोगे कि इन्द्रियों को मै एकदम से control कर लूं तो वो भी possible नही है.भगवान बड़ा सुन्दर इसका तरीका बताते हैं:
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥(भगवद्गीता,2.59)
भगवान कहते हैं कि ऐसा संन्यास लेने से कोई फायदा नही कि आपने गेडुआ वस्त्र धारण कर लिया पर मन आपका मचल रहा है हर चीज के लिए.समझे.वो है पोंगापंथी.नरक में स्थान मिलेगा,नरक.

 वो व्यक्ति ज्यादा अच्छा है जो घर पे रह के बच्चों की तिमानदारी कर रहा है,घर चला रहा है पर मन कृष्ण में लगा रखा है.वो व्यक्ति बेहतर है.ये कृष्ण का judgement है.जंगल में जाके बैठने की जरूरत नही है. आप जो भी कीजिये detach होकर कीजिये.attachment सिर्फ कृष्णा से.यानि कि अपनी सारी जो इन्द्रियाँ हैं वो कहाँ लगा दीजिए परम रस में लगा दीजिए,कृष्ण में.

अब सुन्दर कोई व्यक्ति आ रहा है और आप आँख को कहोगे कि मत देखो तो ऐसा हो नही सकता.लेकिन आप देखो और कहो कि भगवान आपने कितनी सुंदरता भरी है.ये तो तुम्ही कर सकते हो.तुम क्या कलाकार हो.समझ गए.एक आदमी कह रहा है -wow कितनी सुन्दर है ये.दूसरा कह रहा है कि भगवान तुम कितने महान हो.तुम्हारे हाथ कितने ख़ूबसूरत हैं.इतने सुन्दर शरीर को आपने बनाया.

जैसे कि एक कुम्हार है जिसके पास आप घड़ा लेने जाते हैं तो एक को देखकर आप कह पड़ते हैं कि wow कितना सुन्दर घड़ा है.फिर आप कुम्हार को कहेंगे कितना सुन्दर तुमने बनाया.क्या किया,कैसे किया.एक अजीब ही piece है.दुर्लभ है.तो आप उसकी तारीफ़ जरूर करेंगे.और दूसरा आदमी कहेगा कि घड़ा बहुत सुन्दर है.मै लेकर के जा रहा हूँ.समझ रहे हैं.अपने भोग के लिए.एक जो है थोड़ा भगवदभावनाभावित type का आदमी है,मानवीय है वो कहेगा कि कितनी मेहनत की है तुमने.

समझ रहे हैं.दोनों ने ही देखा.पर एक ने जोड़ दिया.जोड़ दिया.तो आँख करेगी वही काम लेकिन जोड़ के.ये जोडने की कला आपको सीखनी है.इसीप्रकार से कुछ पी रहे हैं,कुछ खा रहे हैं तो ऐसे ही खा लेंगे अपने लिए तो पाप है.

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्‌ ॥(भगवद्गीता,3.13)


जो व्यक्ति अपने लिए खाना पकाता है वो पापी है.

ये तो पता ही होगा न.नया information तो नही दे रही हूँ मै.ढाई-तीन साल से यही information दिया है बार-बार.अपने लिए खाना आप पकोगे,अपने मजे के लिए तो आप पापी हो.अगर यज्ञशिष्टा भगवान का छोड़ा हुआ खाना यानि कि भगवान को भोग लगा के,उनका प्रसाद आप लेंगे तो आपके सारे पाप नष्ट हो जायेंगे.ये जानकारी.बताओ भगवद्गीता में दे रखा है तृतीय अध्याय में.

लेकिन या हमें पता नही होता या पता होता है तो हम उसे seriously नही लेते या हम शास्त्रों में से अपने लिए छाँट-छाँट कर चीजें निकाल लेते हैं.ये भी problem है हमारी.जो अपने को suit करे.अरे ये तो बहुत कठिन है,ये भी कठिन है,ये भी कठिन है.हाँ ये वाला ठीक है.फिर मामला गडबड हो गया इसलिए कृष्णा कि बात को As It Is लेना सीखो.इसलिए आपको मै कहूँगी कि जोडने कि कला आप तभी जान सकते हैं ,भगवान से तभी जुड सकते हैं जब आप भगवान का नाम लेना शुरू कर देंगे.

कथा:
एक व्यक्ति थे लाला बाबू.बहुत पैसा था उनके पास.अथाह था उनके पास क्योंकि वो बहुत बड़े जमींदार के बेटे थे.जमींदार भी ऐसे कि एक पूरे राज्य की जमीन उनके पास थी.