Sunday, April 25, 2010

On 25th April'10 By Maa Premdhara

मैं हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.अच्छा ये बताईये आप ने कभी फूलों को देखा है.कभी किसी फूलवाले की दूकान पर या कभी किसी बगीचे में कभी तो फूल देखे ही होंगे आप.इतने सारे रंग फूलों में भगवान भर दिए.सोचिये अगर एक ही रंग के फूल होते तो.एक ही खुशबू होती उनकी तो.तो भला क्या आनंद आता.

ऐसे ही आपने पंछियों को देखा होगा.मोर को देखा है आपने.मोर के पंख कितने सुन्दर होते हैं.कितने सारे चमकीले रंगों से भरपूर.है न.और फिर देखिये न और भी कितने सारे पंछी हैं.नीले,पीले,लाल,काले,सफ़ेद ढेरों रंग बिखरे हैं आपके आस-पास.सोचिये पंछी अगर काला ही होता तो.तो भाई कौन भरतपुर में पंछी देखने जाता.कोई खासियत रह ही नही जाती.

तो सोचिये उस विधाता के कर्म को.उन्होंने विचित्रता और विविधता यानि कि variety बनायी आपके लिए.ताकि यदि आप संसार में ही फंसे रहना चाहते हैं तो भी यहाँ आप बोर न हों.यानि एक किस्म का ही निर्माण नहीं हुआ है.अनेक किस्में हर चीज की प्रभु ने बनायी.ऐसे ही हमारे सुख-दुःख हैं.

सुख की कितनी variety  बनी है.आपको अपनी जुबान से सुख मिलता है.आपको अपने कानों से सुख मिलता है.आपकी आँखें आपको सुख देती हैं.आपकी त्वचा आपको स्पर्श का सुख देती हैं.है न.तो सुख के अनेकानेक प्रकार.इसीप्रकार दुःख की अनेक किस्मे बनी है.आपकी यही इन्द्रिया आपको दुःख भी देती है.आपका जन्म भी दुःख का कारण बन जाता है.बीमारियाँ,मौत,प्राकृतिक आपदाएं जाने कितने ही कष्ट हैं.तो कष्टों में भी variety है.

लेकिन समझदार इंसान वो है जो इन विचित्रताओं के निर्माता को जानने का प्रयास करता है.तो ये दुखों से सबक लेने की जो कोशिश करता है वो समझदार है.जो जानने की इच्छा करता है कि इतने सारे सुख-दुःख निरंतर झेलने के बाद क्या ऐसा नही हो सकता कि ये सब हो ही न.क्या ऐसी कोई जगह है जहाँ मात्र आनंद है.कोई कुंठा नही है.कोई भागादौड़ी नही है.ये याद रखिये मानव जीवन इसी प्रश्न को करने के लिए मिला है.

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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो आईये अब कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं पहले श्लोक से.बहुत सुन्दर श्लोक सिर्फ आपके लिए.ध्यान से सुनिए..श्लोक का अर्थ:
श्री भगवान को प्रसन्न कर पाना अत्यंत कठिन है.किन्तु मैंने तो समस्त ब्रह्माण्ड के परमात्मा को प्रसन्न करके भी अपने लिए बेकार की वस्तुएं माँगी है.मेरे कार्य ऐसे ही हैं जैसे मृत व्यक्ति का उपचार.ज़रा देखो तो मै कितना अभागा हूँ कि जन्म-मृत्यु की श्रृंखला को काटने में समर्थ परमेश्वर से साक्षात्कार कर लेने पर भी मैंने उन्ही-उन्ही दशाओं के लिए प्रार्थना की है

तो ये एक भक्त का आर्तनाद है.ये ध्रुव महाराज कहते हैं.जब वो पांच वर्ष के थे तो उन्होंने छः महीने तपस्या की भगवान की प्राप्ति के लिए.और छः महीने की तपस्या के बाद भगवान ने उन्हें दर्शन दिए.और जब दर्शन दिए उसके बाद हालाकि उन्होंने कुछ मांगा नही.माँगने गए थे पूरा राज्य कि मुझे मेरे पिता का राज्य प्राप्त हो.मेरे सौतेले भाई को प्राप्त न हो.मांगने तो ये गए थे लेकिन भगवान को देखते ही उन्होंने कहा:

कृतार्थोअस्मि वरं न याचे.
तो भी भगवान ने उनको उनका राज्य भी दिया और भगवान ने उनके लिए ध्रुव लोक की स्थापना कर दी.तो वो सब प्राप्त करने के बाद उनके ह्रदय में ये क्षोभ उठा रहा है.ये दुःख उठ रहा है कि भगवान को प्रसन्न कर पाना अत्यंत कठिन है.बात सही है.भगवान ने देखिये आदेश दिया है





यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः ।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर ॥


भगवान ने कहा है कि आप सिर्फ प्रभु के लिये अपने कर्मो को कीजिये.नही तो अगर आप इस जगत के लोगों के लिए या अपने इन्द्रतृप्ति के लिए कर्म करेंगे तो उससे बांध जायेंगे.

लोकोऽयं कर्मबंधनः ।
इस जगत में जो कर्म आप करते हैं वो आपको बाँध देंगे.जानते हैं बंधन का मतलब क्या है.अगर आपको जेल में बंद किया गया है तो अब सजा सुनायी जायेगी.तो अभी आप बंद हो गए हैं.अभी सजा आयेगी आपके लिए.फिर आपको suffering मिलेंगी.आप पीड़ित होंगे.पीडाएं मिलेंगी.किस्म-किस्म की पीडाएं.

तो इसीलिए यहाँ ये बताया गया है कि भगवान को प्रसन्न कर पाना अत्यंत कठिन है.अत्यंत कठिन है.क्यों?क्यों कठिन है.भाई ये तो कहा जाता है कि भगवान तो परम करुणामय हैं.परम दयालु हैं.जब भगवान इतने दयालु हैं तो वो आसानी से प्रसन्न क्यों नही होते.इसलिए नही होती क्योंकि आप उन्हें प्रसन्न करना नही चाहते.

अरे वो तो बहुत आसानी से प्रसन्न होते हैं.लेकिन हर व्यक्ति.तक़रीबन हर व्यक्ति उसकी जो बुद्धि है वो घर की चारदीवारियों में लगी रहती है.अपने आस पड़ोस में लगी रहती है.अपने समाज,अपने देश इन चीजों में लगी रहती है.तो वो भगवान के स्तर तक सोच नही पाता है.वो दुनियावी स्तर तक ही जीता है.मेरी नौकरी,मेरी तनख्वाह,मेरे बच्चे,मेरा समाज और समाज की सेवा.बस.

जैसे-जैसे व्यक्ति का जो कह लीजये छोटा-सा स्वार्थ पूरा हो जाता है तो थोड़ा बड़ा.बड़ा स्वार्थ उसकी जगह ले लेता है.यानि कि अगर उसका अपना पेट भर जाता है तो वो सोचता है कि मेरी पत्नी,बच्चे का भी पेट भर जाए.वो थोड़ा बड़ा हो गया.अब मेरे रिश्तेदारों का भी पेट भरे.सब लोग सुखी रहे.ठीक है.वो भी थोड़ा हो गया.अब ऐसा करते हैं समाज के लिए भी कुछ करते हैं तो वो भी हो गया.अब समाज से देश के लिए.देश से अंतराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाना है.

तो इस तरह से व्यक्ति का जो दायरा है वो बढता चला जाता है.self satisfaction का.और भगवान नामक विषय-वस्तु उसकी दुनिया में कभी नही आते.कभी नही आते.तो इसीलिए कहा गया है कि भगवान को प्रसन्न कर पाना अत्यंत कठिन है क्योंकि कोई उस राह पर चलता ही नही है.वो राह तकरीबन तकरीबन खाली रहती है.और जो दुनिया में अनेकानेक राहें है आपको गोल-गोल घुमाएंगे.अनेकानेक योनियों में घुमाएंगे.तो उन राहों को हम बार-बार पकडते हैं.तो ये हमारी problem है.

इसीलिए यहाँ कहा गया है कि भगवान को प्रसन्न कर पाना अत्यंत कठिन है.बहुत कठिन है.लेकिन बहुत आसान भी है.यदि आप सच में ये कृतसंकल्प धारण कर ले कि मै भगवान का प्यारा बनूंगा और भगवान को ही ध्याउंगा.उन्हें ही प्रेम करूँगा.तो बहुत आसान है.कुछ मुश्किल नही है.कुछ भी मुश्किल नही है.

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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
श्री भगवान को प्रसन्न कर पाना अत्यंत कठिन है.किन्तु मैंने तो समस्त ब्रह्माण्ड के परमात्मा को प्रसन्न करके भी अपने लिए बेकार की वस्तुएं माँगी है.मेरे कार्य ऐसे ही हैं जैसे मृत व्यक्ति का उपचार.ज़रा देखो तो मै कितना अभागा हूँ कि जन्म-मृत्यु की श्रृंखला को काटने में समर्थ परमेश्वर से साक्षात्कार कर लेने पर भी मैंने उन्ही-उन्ही दशाओं के लिए प्रार्थना की है

कितनी बड़ी बात है.देखिये कितना बड़ा पश्चाताप है.ये हमारा पश्चाताप है.ये आपका पश्चाताप होना चाहिए कि भगवान को प्रसन्न कर पाना कठिन है.लेकिन तो भी समस्त ब्रह्माण्ड के परमात्मा को प्रसन्न करके भी मैंने अपने लिए बेकार की  वस्तुएं ही माँगी.मेरे कार्य ऐसे हैं जैसे मृत व्यक्ति का उपचार.मरे हुए आदमी का अगर आप उपचार करेंगे.उसे दवाइयां देंगे तो उससे क्या फ़ायदा है.क्या फ़ायदा है?

तो इस भौतिक जगत में आप सुख-सुविधा का सामान जुटाने का प्रयास करेंगे और उसके लिए प्रभु को निमित्त बनाएंगे.उसके लिए आप जायेंगे भगवान के पास तो क्या फ़ायदा है.ये तो यही हो गई न dead body का उपचार.उसका इलाज करना.हालाकि भगवान कहते है कि
अकामः सर्वकामः मोक्षकामः उदारधिहि.

कहते हैं कि चलो जो कामनाओं के सहित भी मेरे पास आता है वो भी उदारधिहि है.बहुत उदार मना है.अच्छी चेतना वाला है.उसकी सुकृतियाँ अच्छी हैं.वो पुण्यात्मा है.कि मेरे पास आया.लेकिन तो भी.तो भी देखिये कि एक शुद्ध भक्त.जब उसके अंदर भक्ति आ जाती है.भक्ति का संचार हो जाता है तो वो ये महसूस करता है कि हाय जब भी मै भगवान के दरबार गया.जब भी मैंने भगवान को याद किया.जब भी मैंने प्रभु से उनकी कृपा की याचना की तो मैंने माँगा क्या?उन्ही भौतिक दशाओं को मांग लिया जिनसे मै और बंध जाउंगा.

हाँ परमात्मा,परमेश्वर,भगवान जिस नाम से पुकाओ उन्हें वो आपके समस्त भौतिक दशाओं को काट सकते हैं.वही तो एक हैं मुकुंद जो आपको मोक्ष प्रदान कर सकते हैं.जो कि आपके भवबंधन को आसानी से काट सकते हैं.एक वही तो हैं जो हाथ बढ़ाएंगे तो आप भवसागर से पार उतर सकते हैं.नही तो कभी नही उतर सकते.उन्ही की कृपा से होगा.अन्यथा नही होगा.चाहे कितना जोड़ लगा लीजिए.

आप एक अच्छे तैराक हो सकते हैं मगर तैर करके आप समद्र पार नही कर सकते हैं.महीनों लग जाते हैं एक देश से दूसरे देश पहुँचने के लिए.महीनों.तो बहुत अच्छी तैराकी आपकी काम नही आयेगी.तो इस भवसागर में आप चाहे कितने अधिक highly educated क्यों न हो.खूब अमीर क्यों न हो.कुछ भी आपके पास क्यों न हो.बहुत सुन्दर क्यों न हो आप.तो भी कोई फायदा नही है.

क्यों?क्योंकि ऐसे ही बहते जाओगे भवसागर में.ऐसे ही कभी सुख की लहरें ऊपर उछालेंगी तो कभी दुःख की लहरें आपको ऊपर उछालेंगी.ऐसे ही उछलते रहेंगे. उछलेंगे नीचे आयेंगे उछलेंगे.ये हालत हमेशा सदा-सर्वदा जारी रहेगी.unless and until जब तक कि आप प्रभु के चरणों की शरण ग्रहण नही करते तब तक ये चीज जारी रहेगी.आपका आवागमन जारी रहेगा.आपको ये मालूम होना चाहिए कि ये human life आपको मालूम करने के लिए ही मिली है.पता करने के लिए ही मिली है.
What is there after death?
  मौत के बाद क्या होता है?क्या होती है है मौत?भगवान बड़ी सुन्दर जानकारी दे रहे हैं शास्त्रों में





देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥


भगवान कहते हैं कि जैसे बचपन का शरीर खत्म हो जाता है और आपके पास युवा शरीर आ जाता है.वैसे ही युवा शरीर खत्म हो जाता है और बुढापा का शरीर,वृद्धावस्था का शरीर आपको मिल जाता है.इसीप्रकार से ये शरीर समाप्त हो जाता है जब वो जर्जर हो जाता है.एक अन्य शरीर आपको मिल जाता है.

देहान्तर इस शब्द का भगवान ने बारम्बार प्रयोग किया है.देहान्तर कि जब देहान्तर हो जाता है.
र्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥
तो जो धीर व्यक्ति होता है मोहित नही होता ऐसे बदलाव से क्योंकि वो तब भी मोहित नही हुआ था जब बचपन जवानी में तब्दील हुआ था.तो फिर अभी क्या problem है.तो जो ये सब जान लेता है.इन बारीकियों को जान लेता है.अरे मै तो अभी भी exist करता हूँ जबकि इस शरीर में हूँ.और जब मै बूढा होता हूँ तब भी मै exist करता हूँ.तो यानि बाद में भी exist करूँगा.बाद में भी मेरा अस्तित्व बना रहेगा.ये जानना बहुत जरूरी है.ये याद रखिये.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो देखिये हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुंदर श्लोक पर.ध्रुव महाराज कह रहे हैं कि भगवान को प्रसन्न करना बहुत ही कठिन है लेकिन मैंने कर लिया था और तब भी मैंने अपने लिए बेकार की वस्तुएं माँगी थी.मेरे कार्य ऐसे ही हैं जैसे मृत व्यक्ति का उपचार.ज़रा देखो तो मै कितना अभागा हूँ.जन्म-मृत्यु की श्रृंखला को काट पाने में समर्थ परमेश्वर से साक्षात्कार कर लेने पर भी मैंने उन्ही-उन्ही दशाओं के लिए प्रार्थना की.

भगवान दर्शन दे रहे हैं.भगवान आपके ह्रदय में बैठे हैं.दर्शन क्या देंगे.ह्रदय में बैठे हैं.आपके बिल्कुल पास.आपके पहुँच के बिल्कुल अंदर.within your reach.तो भी आप यहाँ-वहाँ उन्हें ढूँढते हैं.आप अनेकानेक वाद-विवाद में फंसते हैं.इतने तर्क-वितर्क करते हैं.

तो जो इनका हाल है वो हमारा हाल है.हमें साक्षात्कार होता है.हम जानते हैं कि भगवान हमें सुन रहे हैं.देख रहे हैं.हर पल अवगत हैं हमारी हर सोच से.तो भी हम भगवान से कभी ये याचना नही करते कि हे प्रभु हमें अपने चरण कमलों की शुद्ध भक्ति दीजिए.ये मांगना चाहिए.प्रार्थना ये है.ये प्रार्थना नही है कि हे भगवान मेरे पास चावल का एक ही बोरा है चार बोरे हो जाये.मेरी एक ही दुकान है पांच दुकानें हो जाएँ.

ये सब बेकार की मांग है.क्या करोगे.क्या करोगे.गुजारा तो भगवान कर ही देते हैं.जो भगवान की शरणागत होता है उसका गुजारा easily हो जाता है.आराम से हो जाता है.उसे किसी चीज की कमी नही होती.लेकिन समस्या ये है कि श्रद्धा नही होती.संशय होते हैं.सब पर यकीन कर लेते हैं हम.चोर-उचक्कों तक पर हम यकीन कर लेते हैं.पर भगवान उस category से भी नीचे आ जाते हैं हमारी नजर में.ये हमारी समस्या है.

तो यही ध्रुव महाराज कह रहे हैं कि मेरे काम तो ऐसे हैं जैसे मृत व्यक्ति का उपचार.तो सोचिये हमलोग यही तो काम करते हैं.मृत व्यक्ति का उपचार.जिन्दे का उपचार किया जा सकता है.जो ज़िंदा व्यक्ति है उसका उपचार करोगे वो ठीक हो सकता है.मरे हुए का उपचार करेंगे तो उसके ठीक होने की क्या संभावना है.वो तो खत्म हो गया है.वो तो कभी ठीक नही होगा.

तो ये भौतिक दशाएं जो हमें प्राप्त हुई हैं.ये भौतिक रिश्तेदार जो हमें प्राप्त हुए हैं.ये आर्थिक सम्पन्नता-विपन्नता जो कुछ हमें प्राप्त हुआ है.ये सदा-सर्वदा  थोड़े ही रहनेवाला है हमारे साथ.ये तो यही छोड़कर जाना होगा.सब कुछ.अपनी इन दशाओं को भी.जिन दशाओं को आपने पूरी उम्र लगकर सुधारा है.कभी एक तल्ले का मकान था आज पांच तल्ले का मकान आपने बना लिया है.वो भी छोड़कर जाना होगा.एक बड़ी अट्टालिका आपने खरीद ली है.big hi-rise building.वो भी छोड़कर जाना होगा.कुछ भी साथ नही जायेगा.

And it is a fact.सत्य है ये.सत्य.परम सत्य है ये.लेकिन इस सत्य से भी बड़े सत्य हैं भगवान.

मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥






मुझसे बड़ा कोई सत्य नही है धनञ्जय ये जान लो.भगवान कहते हैं.तो जब उनसे बड़ा कोई सत्य नही है तो भाई उस सत्य को प्रणाम क्यों नही करते.उस सत्य से ये क्यों नही कहते कि हा प्रभु आप आप मुझे अपने चरणों का प्रेम प्रदान कीजिये.मै आपसे प्रेम करूँ.तभी तो इस जीवन और मृत्यु की श्रृंखला का अंत होगा.

ऐसे थोड़े ही होगा कि दाहिने हाथ में आपके फोन है और अपने मोबाईल पे आप बातें किये जा रहे हैं,business set करते जा रहे हैं और उसके बाद आप बैठकर के कहते हैं कि चलो कोई बात नही अभी मैंने एक मिनट भगवान का नाम ले लिया.बहुत हो गया और सारा दिन हमें business,business,business.

कर्म ही तो पूजा है.ये सारी बातें मन को समझाने के लिए है.कर्म ही तो पूजा है.जी नही
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः ।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर ॥






भगवान के लिए किया गया कर्म पूजा है.अपने self satisfaction और अपने sense gratification के लिए किये गए कर्म पूजा नही है.इन्द्रतृप्ति है.जो आपको सदा-सर्वदा के लिए बाँध देगी ऐसे कि जैसे खूंटे से बैल को बाँध दिया जाता है.हमेशा के लिए हम यहाँ बंधे रह जायेंगे.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.एक और श्लोक आपके लिए.श्लोक का अर्थ:
अपनी पूर्ण मूर्खता और पुण्य कर्मों की न्यूनता के कारण ही भगवन के चाहते हुए भी मैंने ये नाम,यश और सम्पन्नता चाही.मेरी स्थिति तो उस निर्धन पुरुष-सी है जिस बेचारे ने महान सम्राट के प्रसन्न होने पर.मुंहमांगी वस्तु माँगने के लिए कहे जाने पर चावल के कुछ कणे ही मांगे.

ये सब हमारी स्थिति के बारे में बखान हो रहा है.बिल्कुल सही बात है.कि देखिये भगवान सामने आ भी जाए.कहते हैं न कि हमें भगवान नजर नही आते.आपलोग शर्त रख देते हो कि भगवान नजर आयेंगे तब हम believe करेंगे कि वो हैं.शर्त रख देते हो.लेकिन अगर नजर आयेंगे तो करेंगे क्या?ये समझ लीजिए.क्या करियेगा?तो भगवान का आना व्यर्थ हो गया.अगर मान लीजिए आपके सामने भी आ जाते हैं.न तो आप पहचान पायेंगे क्योंकि आँखें नही है,वैसी training नही है.किसी स्कूल,किसी कालेज,कहीं,समाज के किसी विभाग में वो training आपको नही मुहैया कराई गए है जहाँ आप भगवान को पहचान ले.

और मान लीजिए.मान लीजिए कि भगवान ने स्वयं कह दिया कि मै भगवान हूँ.तो भी क्या करियेगा.तो भी आप कहियेगा अच्छा -अच्छा आप भगवान हैं.अच्छा मेरा बेटा न पिछले दो साल से बीमार है इसे ठीक कर दीजिए.ये बोलेंगे आप.या मेरे पास एक गाड़ी नही है.कब से गाड़ी खरीदने की planning कर रहा था लेकिन इतने पैसे कम पड़ जाते थे.कुछ ऐसा कीजिये कि पैसे मेरे पूरे हो जाए.

आप भगवान को पानी मांगों को पूरा करने का जरिया बना लेते हैं.अभी भी बनाते हैं और तभी भी बना लेंगे अगर भगवान नजर आये.तो यहाँ यही बात कही जा रही है कि ऐसे लोग पूर्ण मूर्ख होते हैं.और इसलिए वो ऐसी बातें करते हैं क्योंकि उनके पुण्य कर्म न्यून होते हैं.minimum होते हैं.बहुत कम होते हैं पुण्य कर्म.वैसे भी बताया गया है कि
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्‌ ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥





जिनके पाप जो हैं वो खत्म हो जाते हैं और पुण्य जो है उदित हो जाते हैं वही भगवान को दृढता के साथ भज सकते हैं.भजन कर सकते हैं.बाकी लोगों के समझ में भी नही आएगा ये concept.ये भगवान का भजन क्या होता है.भगवान क्या होते हैं.लोग सोचेंगे ऐसी ही बातें हो रही है.

और वो इसलिए होता है क्योंकि हम अपनी मौत को भूल क्जाते हैं.मै आपको सच बताती हूँ.यही fact हैं.हम भूल जाते हैं कि एक दिन हमें सच में ये जगत छोडना है.अभी भी आपको यकीन नही आ रहा होगा.ऐसा होता है.देखिये.

कल के newspaper में ही आपने पढ़ा होगा कि दो लोग अपनी गाड़ी में बैठकर के गए थे किसी काम के लिए और गाड़ी में बैठे-बैठे वो ज़िंदा जल गए.क्या उनको पता था कि उनकी ऐसी भयावह मौत होगी.नही.वो तो अपने काम के लिए जा रहे थे.हाँ.लेकिन वो कभी पहुँच न पाए.कितने दुःख की बात है सोचिये.center locking system खराब हो गया.A.C. में circuit हुआ.short circuit.और फिर ये सब हो गया.तो मृत्यु को सदा याद रखना चाहिए.इसपर मुझे एक कथा याद आती है कि

एक आदमी था.cook था रसोईया और वो तरह-तरह के मांस के item पकाता था.और मांस ही खाता था.उसके मालिक को भी यही पसंद था.तो बहुत उल्टे-सीधे काम करते थे वो लोग.मृत्यु को भूल गए थे और अनेकानेक जानवरों को मार कर खाते रहते थे.अपने पेट को कब्रिस्तान बना रखा था उन्होंने.एक दिन वो बाजार में ऐसे ही मांस खरीदने गया तो उसने वहाँ एक आदमी को देखा.वो इतना डरावना आदमी था.उसकी ओर लाल-लाल आँखों से घूर रहा था.

वो दौड़ते हुए,भागते हुए वापस आया.उसने अपने मालिक को कहा मालिक वहाँ पर एक भयानक आदमी है.मै वहाँ दुबारा नही जाउंगा और मुझे न यहाँ से निकालना है.मुझे लगता है कि वो आदमी मेरा पीछा कर रहा है.तो उसके मालिक ने कहा ठीक है.तुम ये लो घोड़ा ले जाओ.ये खाना-वाना रख लो इसमे.चाहो तो अपने बीबी-बच्चों को भी ले जाओ.तुम जाओ.और वो दूसरे शहर भागकर के पहुँच गया.

इधर मालिक ने सोचा मै भी जाकर देखता हूँ कि किस आदमी के बारे में चर्चा कर रहा था मेरा रसोईया.वो उस market में गए और उन्होंने वहाँ देखा कि वो आदमी वहाँ खडा था.वो डरावना आदमी.तो उसने कहा कि ये बताईये प्रभु जी आप हैं कौन.आप यहाँ पर क्या कर रहे हैं.आपको देखकर वाकई बहुत डर लग रहा है.तो उन्होंने कहा जी मै यमराज हूँ और मै ये सोच रहा हूँ कि इस आदमी की मौत तो फलां-फलां शहर में होनी थी.इसको तो वहाँ होना चाहिए था.ये यहाँ क्या कर रहा है.इसको इतने बजे तक वहाँ होना चाहिए था.

तो वो व्यक्ति देखिये भाग्य से वही चला गया जहाँ उसकी मौत होनी थी.तो अपनी मृत्यु को कभी नही भूलना चाहिए.हमेशा याद रखिये कि आप सदा-सर्वदा के लिए नही रहेंगे.अगर आप बच्चे हैं तो ये मत सोचिये कि बड़े होंगे.जवान होंगे.बूढ़े होंगे.not necessary.पर ये भी नही है कि अभी मर जायेगे.


nothing is certain.इसलिए प्रभु को सदा-सर्वदा हर सांस पर याद रखना.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे थे एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका भाव है:
अपनी पूर्ण मूर्खता और पुण्य कर्मों की न्यूनता के कारण ही भगवन के चाहते हुए भी मैंने ये नाम,यश और सम्पन्नता चाही.

यही तो हमारा भवरोग है.हम सम्पन्नता चाहते हैं.हम सोचते हैं कि हम यहाँ पर बहुत ही समृद्ध जिंदगी को जीए.हमारे पास bank balance की कमी न हो.नोटों की कमी न हो.हमारे एक इशारे पर ये हो जाए वो हो जाए.बहुत ही बीमार मानसिकता है ये.बीमार मानसिकता.उस कार की महत्ता तब है जब आप उस पर चढ़कर के भगवद दर्शन के लिए जाए.उन धामों की यात्रा करें जहाँ पर भगवान से सम्बंधित कथाओं का पान आप कर सके.ऐसे संत से आप मिलने जाएँ.तब तो उस कार की महत्ता है वरना वो बेकार है.अगर आप उस पर चढ़कर डिस्को थेक जा रहे हैं तो और अपने बंधन को कस रहे हैं आप.

और इन्तेजाम कर रहे हैं कि मै यहाँ पर ही बना रहूँ.हमेशा के लिए मै यही रहूँ.चाहे कुत्ते-बिल्ली के रूप में रहूँ.चाहे कीट-पतंग के रूप में रहूँ.चाहे किसी पेड़ की योनी में रहूँ.पर यही रहूँ.ये इन्तेजाम हो रहा है वास्तव में.

यहाँ पर देखिये बताया गया है कि हमारी स्थिति तो उस निर्धन पुरुष जैसी है कि अगर एक महान सम्राट प्रसन्न हो जाता है.एक किसी देश का राजा आपसे प्रसन्न हो जाता है और कहता है कि मै आपसे बहुत ही खुश हूँ.सोचिये अपने बारे में कि राजा आपसे बोल रहा है कि मै बहुत खुश हूँ मुझसे कुछ मांगों और आप कहते है कि मुझे चावल के कुछह कणे दे दीजिए.थोड़े से दो मुट्ठी भर चावल दे दीजिए मैने चार दिन से खाना नही खाया है.

अरे आप चाहते तो राजा के साथ रहने का अधिकार मांग सकते थे आप.आप कह सकते थे कि मै आपका best friend बनना चाहता हूँ.मुझे अपना friend बना लीजिए.मुझे यहाँ अपने दरबार में नियुक्त कर दीजिए.मै आपकी सेवा में रहूंगा.हाँ मै आपका सभासद बन जाउंगा.किसी चीज की कमी होती तब आपको.कुछ भी कमी नही होती.मगर सेवा भाव नही है.अपनी सेवा का भाव है.अपनी सेवा का भाव है इसीलिए आप उनसे,भगवान से अपना आत्मसम्मान माँगते हैं.अपना यश माँगते हैं.

कभी ये नही कहते कि भगवान कुछ ऐसा करो कि मेरी वजह से आपका यश वर्धन हो.आपका यश बढे.आपका गुणगान हो.सब लोग आपका गुणगान करें.भक्त की ये आरजू होती है.ये तमन्ना होती है.ये ख्वाहिश होती है लेकिन ऐसी desires का होना भी तो पुण्यों से ही उदय होता है.पुण्यों से ही तो ऐसी desires उदित होती हैं.

तो सोचिये ये हमारी और आपकी स्थिति है कि हम भगवान को प्रसन्न करके क्या मांगते हैं उनसे.उनकी प्रसन्नता के लिए क्या नही करने का प्रयास करते हैं.पता नही कितने सारे items ले जाते हैं.कितने यज्ञ करते हैं.कितना कुछ करने का प्रयास करते हैं.पंडितों को बुलाते हैं और अपने घर में क्या-क्या arrangements करवाते हैं.बड़े-बड़े आयोजन करवाते हैं.बड़े-बड़े भंडारों का आयोजन करवाते हैं.क्यों?

कि हम समृद्ध हो.हमारा नाम हो.कभी नही कहते कि प्रभु आपका नाम हो.आपके लिए.आपको सब कुछ समर्पित.ये सब कुछ मुझे दिया आपने तो आप ही का न.आप ही के लिए इस्तेमाल होगा मेरे लिए नही.आपका प्रसाद मै प्राप्त करूँगा.जो प्रसाद मुझे मिलेगा.

कृपया ऐसे भाव रखिये और सुन्दर जीवन को जीने का प्रयास करिये.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब समय है आपके messages को लेने का.
SMS:प्रज्ञा दिल्ली से पूछती हैं कि
यदि एक भक्त दूसरे भक्त की सेवा करे और दूसरा भक्त उसे एहसान के रूप में ले तो उसे कैसे समझाएं?







Reply By माँ प्रेमधारा:



प्रज्ञा देखिये भक्त के बीच में प्रीति आदान-प्रदान से होती है.यानि कि यदि आप उन्हें कुछ दे और वो भी आपको कुछ दे तो आप कभी मना मत कीजिये.ले लीजिए.कभी ये मत कहिये कि नही नही ये तो इतना गरीब है.इससे कुछ स्वीकारना नही चाहिए.बिल्कुल ले लीजिए क्योंकि जब भक्तों के बीच में आदान-प्रदान होता है और जब वो एक-दूसरे से भगवान की कथा कहते हैं या अपने रहस्यों को कहते हैं तो उससे उनके बीच में प्रीतिवर्धन होता है.ठीक है.

तो उनसे भी कुछ ले लिया कीजिये.कभी हकपूर्वक ही ले लिया कीजिये तो उन्हें लगेगा कि आप कुछ अहसान नही कर रहे हैं.ठीक है.

SMS:कमल राजेंद्रनगर से पूछते हैं कि भक्ति के प्रसार से सूत्र क्या हैं?







Reply By माँ प्रेमधारा:



कमल एक बहुत सुन्दर श्लोक है
यद् यद् आचरित श्रेष्ठ तत् तत् एव तरोजनः
स यद् प्रमाणं कुरुते लोकस्य तद अनुवर्तते .

कि जैसे-जैसे कोई व्यक्ति आचरण करता है.कोई श्रेष्ठ व्यक्ति आचरण करता है.वैसे-वैसे बाकी लोग उसे follow करते हैं.उसका अनुसरण करते हैं.भक्ति के प्रसार का यही सूत्र है कि आप भक्ति को अपने आचरण में लाये.आप अच्छे भक्त बन जाए तो आपको देखकर के आपके परिवार वाले.आपके आस-पास वाले बहुत प्रभित होंगे और धीरे-धीरे वो भी भक्ति करेंगे.

दूसरी बात कि ये जो कार्यक्रम आ रहा है इस कार्यक्रम में क्या बातें होती है.भक्ति के ही बारे में बात होती है.भगवान की चर्चा होती है.भगवान से सम्बंधित आप भजन सुनते हैं.तो कार्यक्रम का बहुत अधिक प्रसार कीजिये,प्रचार कीजिये.उससे क्या होगा कि लोग अधिक जुडेंगे.उनके जिंदगी भी तब्दील हो जायेगी.उनकी जिंदगी में भी क्रांतिकारी परिवर्त्तन आयेंगे.

तो ये बहुत सुन्दर तरीका है और अलावा इसके आप जो है जब भी कोई शास्त्र पढ़े,शास्त्र का मतलब आपको समझ आता है.भगवान का नाम है लोगों के सामने आप उन्हें बताए,उन्हें ले.बताए जो आपने यहाँ से सीखा है.जो आप अपने गुरु से सीखते हैं.उसके बारे में चर्चा करें लोगों से.तो इसतरह से भक्ति का प्रसार किया जा सकता है.

SMS:दिल्ली से जाने कौन पूछते हैं कि अगर भगवान से एकबार प्रेम हो जाए तो उसके बाद उस आत्मा का क्या होता है?







Reply By माँ प्रेमधारा:



प्रेमी से मिलने चली जाती है आत्मा.जिससे वो प्रेम करती है उसके घर.भगवद्धाम.प्रेम ही एकमात्र qualification है वहाँ जाने का.अगर आप ईश्वर से प्रेम करते हैं तभी आप kingdom of God यानि कि उनके राज्य को प्राप्त कर सकते हैं.वहाँ जा सकते हैं.आप वहाँ से ही आये हैं लेकिन दुबारा वहाँ जाने के लिए उनसे बहुत ज्यादा प्रेम करना होगा.बहुत ज्यादा.

तो प्रेम कीजिये और सदा-सर्वदा प्रसन्न रहिये.

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SMS:ऐश दिल्ली से पूछती है
ये सबसे छोटा ब्रह्माण्ड है और यहाँ प्रकृति के तीन गुण चौरासी लाख योनियों को जन्म देते हैं.बाकी बड़े ब्रह्मांडों में क्या ये योनियाँ बढ़ जाती हैं?




Reply By माँ प्रेमधारा:

ऐश बिल्कुल भी ये योनियाँ बढती नही हैं.चौरासी लाख जो योनियाँ हैं वो यही रहती हैं.इनमे जो है हमलोग कभी ऊपर जाते हैं.कभी नीचे जाते हैं.कभी हमें देवताओं का भी शरीर प्राप्त हो जाता है.है न.ये भी जो हमारी हैं चार लाख प्रकार की मनुष्य योनियाँ उनमे आता है.

तो इसप्रकार से आप देखिये main चीज ये है.ये मत जानने का प्रयास कीजिये कि कितनी योनियाँ हैं.या क्या ये योनियाँ बढ़ जाती हैं.ये सब.इसे कहते हैं ज्ञानकांड.कहते हैं न कि
ज्ञानकाण्ड,कर्मकांड केवल विषेर भांड
 और भगवान भी कहते हैं कि

भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः।
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्‌॥

तत्त्व रूप से जानना भगवान को बहुत जरूरी है.तो आप ये प्रयास कीजिये कि मै कैसे प्रभु को जानू.कैसे उनके जन्म और कर्म की दिव्यता को समझूं ताकि उन्हें मै प्राप्त कर सकूं.उनके प्रेम में मै दीवानी हो जाऊं.ये हालत हो जाए मेरी.इतनी व्याकुल हो जाऊं मै.

युगायितं निमेषेण   चक्षुषा  प्रावृषायितम 
शून्यायितं जगत सर्वं गोविन्द-विरहेण  में. 

ये हालत होनी चाहिए कि उनके जुदाई में एक पल भी आपको कई-कई युग के समान लगे.ये हालत हो जानी चाहिए.लेकिन जब हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि ये क्या है,वो क्या है.ये सब कहाँ से आया.ये किसने बनाया.वो किसने बनाया.पप्रश्नों में उलझी रहेगी बुद्धि फिर.है न.प्रश्नों के उससे बाहर निकलिए और भगवान को surrendered हो जाईये.ठीक है.

SMS:सुनीता कापसेरा से पूछती है कि
आध्यात्मिक लाभ क्या है?



Reply By माँ प्रेमधारा:

सबसे बड़ा आध्यात्मिक लाभ तो यही है कि आप जन्म और मृत्यु से छुटकारा पा जाये.भगवान के बारे में श्रवन करे.कीर्त्तन करे और जन्म और मृत्यु को पार कर जाएँ.ये सबसे बड़ा आध्यात्मिक लाभ है.और इससे बड़े लाभ की क्या expectation ,आशा है आपकी.

SMS:भारत शर्मा पूछते हैं मयूर विहार से कि
I love all Gods. Is there any problem in this?




Reply By माँ प्रेमधारा:

भारत शर्मा जी there is no problem in this. but let me tell you God is one.आपने कहा है कि मै सभी भगवानों से प्यार करता हूँ.क्या इसमे कोई समस्या है.भगवान सभी नही होते हैं.सभी चीजें भगवान नही होती हैं.भगवान अनेकानेक नही होते हैं.भगवान एक हैं.

एक हैं और इसका देखिये सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि सूरज एक है.चाँद एक है और हमारी धमनियों में बहता हुआ रक्त वो भी एक ही है.हमारी जो शक्लें हैं दो आँखें,एक नाक,एक मुँह वो सारी बनावट वो सब कुछ एक ही है.सब कुछ.हमारा परिवेश,हमारा सुख,हमारा दुःख एक है तो भगवान एक ही है.ये सबसे बड़ा proof है.


SMS:राधा गांधीनगर से पूछती है कि
निंदा करने में बहुत मज़ा आता है.बहुत संतुष्टि मिलती है.इससे बचने का उपाय बताए.




Reply By माँ प्रेमधारा:

राधा जी जब हम भगवान का नाम लेते हैं न सच्चे मन से तो निंदा करने की कोई ख्वाहिश मन में नही उठती है.क्यों?क्योंकि निंदा रस तो महा तुच्छ रस है.

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥


ऐसा रस आपको प्राप्त हो जाए कि आप उसके आगे कुछ भी महसूस न कर पाए.तो ऐसा रस जो है प्रभु के नामों में है.उनकी कथाओं के पान में है.इस रस को जब तुम सच्चे मन से अपनाओगी तो निंदा करना भूल जाओगी.उल्टा कहोगी
निंदक नीयरे राखिये.
यानि कि निंदक को अपने पास रखोगी.निंदा करोगी नही लेकिन जो तुम्हारी निंदा करेगा उसे बड़े ध्यान से सुनोगी कि हाँ इसने मेरी ये निंदा की यानि अभी ये अनर्थ शेष है मेरे अंदर.इसकी निवृत्ति आवश्यक है.उसकी निवृत्ति के लिए प्रार्थना करोगी.

ठीक है न.तो निंदा करनी नही है.अपनी निंदा सुननी है.ये गुण पैदा करना है.

SMS:अमित दिल्ली से पूछते हैं कि
जिन नज़रों से हम भगवान के बारे में सोचते हैं क्या उसी भाव से हमें भी भगवान देखते 
है?



Reply By माँ प्रेमधारा:

बिल्कुल देखते हैं भाई अमित जी.

ये यथा माँ प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्‌ ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥


भगवान कहते हैं कि जो जिस भाव से मेरी शरनागत होता है मै भी उसी भाव से उसका भजन करता हूँ.आप तो भाव से शरणागत हुए लेकिन भगवान तो आपके भावों के बारे में भजन करने लग गए.सोचिये.कितनी दयालु हैं प्रभु.

तो इसीलिए कहते हैं कि इंसानों से अगर आप भाव का आदान-प्रदान की उम्मीद करेंगे तो उसमे कही-न-कहीं lust involve होगा.काम होगा लेकिन प्रभु तो सिर्फ और सिर्फ प्रेम देते हैं और प्रेम लेते हैं.

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SMS:दिल्ली से जाने कौन हैं पर इन्होने बड़ी सुन्दर बात कही है.भगवान का नाम जाप करने के चार नियम हैं.
१.सुबह जल्दी उठकर जाप करें.
२.पूरी एकाग्रता के साथ जाप करें.
३.उच्चारण में स्पष्टता हो.
४.ध्यान से उसे सुने भी.



Reply By माँ प्रेमधारा:

सही बात है.बिल्कुल.अगर आप इन चारों को अपनाएंगे तो आपका जो chanting है वो बहुत सुधर जाएगा.

SMS:सुशिल पश्चिम विहार से
तेरे दर्शन को जी चाहता है.
तुझमे खो जाने को जी चाहता है.
सब रंग देखे जिंदगी के
श्याम रंग में रंग जाने को जी चाहता है.




Reply By माँ प्रेमधारा:

सुन्दर है आपकी ये बात.ऐसा ही जी चाहना चाहिए.जी को यही बात.यही ख्वाहिश करनी चाहिए कि भगवान मै आपकी सेवा में मगन हो जाऊं.आप ही के सोच,आप ही के ख्यालों में खो जाऊं.सुन्दर बात है.

SMS:मधु मेरठ से कहती है कि
क्रोध में चुप रहकर देखा.लोगों ने कमजोरी समझा.क्या करूँ?




Reply By माँ प्रेमधारा:

मधु इस विषय में इतना सोचती क्यों हो.तुम ये सोचो न कि तुम्हारे जीवन का मकसद क्या है.इस भवबंधन को काट फेंकना या यहाँ दुबारा जन्म लेना.अगर हम अपने ह्रदय में वैमनष्य रखेंगे किसी के भी प्रति तो वही व्यक्ति हमारे ह्रदय पे राज करेगा.भगवान जो हैं वो बहुत ही गौण हो जायेंगे.ठीक है न.

तो ऐसा मत करो.क्रोध के विषय में सोचना भी छोड़ दो.लोगों के विषय में सोचना भी छोड़ दो.अगर किसी ने आपको कमजोर समझा तो क्या फर्क पडता है.मोटा समझा तो क्या फर्क पडता है.काला समझा तो क्या फर्क पडता है.

अरे हमको तो इस भवसागर के पार जाना है.हमें तो अपने बंधनों को काट के फेंकना है.और वो प्रभु के नाम में ही होगा.किसी अन्य व्यक्ति के बारे में सोचने से नही होगा.कि उसने मुझे ये समझा.उसने मुझे वो समझा.उसने मुझे गाली दे दी.उसने मुझे मारा.ये सब छोड़ दीजिए सोचना.ठीक है न.क्षमा सबसे बड़ा गुण है.उसे धारण कीजिये.

अगर कोई आपको कुछ भी समझता है how does it matter. It doesn’t matter. It should not matter at all.आपको सिर्फ और सिर्फ प्रभु की भक्ति करनी है ताकि आप वापस जाएँ.यहाँ पर ये बात नही है कि हाँ तो मै बदला लूं.क्या लूं?ये बदले की भावना बिल्कुल नही होनी चाहिए हमारे अंदर.

SMS : बलदेव मल्होत्रा East Delhi से पूछते हैं
How to get rid of worldly affairs relatives, service, properties etc? Is solitude or snyaas is the only way out?




Reply By माँ प्रेमधारा:

इसका अर्थ है कि इस भौतिक जगत के मामलों से कैसे छुटकारा पाया जाए?रिश्तेदार,नौकरी,संपत्ति इन सबसे.क्या सन्यास ही एकमात्र तरीका है?
बलदेव जी बहुत सही बात आपने पूछी.मै आपके ह्रदय में आयी कशमकश से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हो गयी इस प्रश्न को जानने के बाद.

देखिये भगवान क्या कहते हैं.भगवान कहते हैं कि

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥

वैराग्य की जरूरत है.अभ्यास की जरूरत है.यानि कि वैराग्य कैसा.वैराग्य का अर्थ ये है कि आप भगवान से जुड़े रहे.आपका मन भगवान में लगे और बाकी सब को कर्त्तव्यबोध के रूप में आप लें.बहुत बड़ी बात है देखिये.जो भी चीज आपके पास है उसे भगवान की सेवा में लगा दें.

अगर आपके पास संपत्ति है तो आप ये क्यों समझते हैं कि मै संपत्ति छोड़ दूं.अरे संपत्ति को भगवान की सेवा में इस्तेमाल कर दें न.प्रभु की सेवा में लगा दें.
जो व्यक्ति उनका प्रचार-प्रसार कर रहा है.संपत्ति को ऐसे लगा दीजिए कि वो व्यक्ति भगवान का प्रचार-प्रसार कर रहा है तो चलो हम उसको propel करेंगे,push करेंगे.अपने सामर्थ्य से.जो कुछ भी है आपके पास उसके द्वारा.

आपके रिश्तेदार.उनसे तंग आने की क्या जरुरत है.उन्हें भी हरिनाम दीजिए.भगवान का नाम.अनके साथ कहिये कि आओ भाई बैठो हमलोग सत्संग करते हैं.तो जो लोग सच में interested होंगे वो आपका साथ करेंगे और जो लोग नही interested होंगे वो छोड़ देंगे.ऐसे लोगों को पास बुलाने से फ़ायदा भी क्या है.छोड़ देंगे आपको,avoid करेंगे आपको तो जाने दीजिए क्या फर्क पडता है.

संन्यास उपाय नही है.मन अगर आपका आसक्ति में लगा रहेगा.विषयों का चिंतन करेगा तो संन्यास लेने से कोई फायदा नही है.एक बड़ा सुन्दर श्लोक है न कि
जो प्रापंचिक बुद्धि है वो हर ऐसी वस्तु को त्याग देती है जो भगवान के लिए इस्तेमाल की जा सकती है.जो मोक्ष के इच्छुक हैं वो लोग ऐसा त्याग करते हैं.

ये तो फल्गु वैराग्य है.ये वैराग्य थोड़े ही है.फल्गु नदी जिसमे पानी नही होता है वैसा वैराग्य है.तो हर चीज भगवान की सेवा में लगाईये.That is the only way out.
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SMS: Army से अनिल.ये कहते हैं कि भगवान की कृपा है कि मै Program सुन पाता हूँ.प्रभु का कोटि-कोटि धन्यवाद.



Reply By माँ प्रेमधारा:

अनिल जी मै समझ सकती हूँ आपकी या तो transferable job होगी या फिर timing कुछ अलग होंगी लेकिन तो भी आप कार्यक्रम सुन पाते हैं वास्तव में भगवान की कृपा है.

SMS:संजू लोनी से पूछते हैं कि
लोगों की बातें मानकर गुरु को त्याग दिया इसकी सजा क्या मिलेगी?

गुरु भगवान के प्रतिनिधि होते हैं संजू जी.ऐसे गुरु को त्याग थोड़े ही सकते हैं.अगर गुरु भगवान के विरुद्ध आपको सन्देश दे रहे हैं.कहते हैं कि कोई भगवान वगैरह नही होता.या वो कहते हैं खूब इन्द्रियतृप्ति करो.खूब शराब पियो.नारी संग करो और अपने-आप सब ठीक हो जाएगा.तो ऐसा गुरु त्याज्य है शास्त्रों के मुताबिक़.

लेकिन अगर आपको वो भगवान के बारे में बताते हैं.प्रभु चर्चा करते हैं.जब भी आप मिलते हैं तो आपसे भगवान के ही बारे में बातें होती हैं.आपसे कभी भी अन्य कोई बात वो नही करते हैं तो ऐसे गुरु को त्यागना बहुत बड़ा अपराध है.और गुरु प्रामाणिक होना चाहिए.सम्प्रदाय विशेष से संबद्ध होना चाहिए.गुरु जो है वो भगवान के नशे में रहे सदा-सर्वदा.उनका साक्षात्कार हो चुका हो प्रभु से.ऐसे व्यक्ति आपको प्रभु दे सकते हैं.

तो उनको त्यागना तो बहुत बड़ा गुनाह है.बहुत बड़ा गुनाह है अपने गुरु पर शक करना.प्रभु से आप याचना कीजिये और गुरु महाराज से जाकर क्षमा मांगिये तो बात बन सकती है.

SMS:कुलदीप सिंह जी फरीदाबाद से पूछते हैं कि
जब इंसान को नर्क में उसके पापों की सजा मिल जाती है तो फिर मृत्युलोक में उसे दुबारा सजा क्यों मिलती है?




Reply By माँ प्रेमधारा:

कुलदीप जी इंसान को नर्क में अपने पापों की सजा मिल जाती है लेकिन नर्क में उसे ऐसे कर्मों को करने का छूट नही होता जिससे वो भगवान को पहचान सके.जब वो इसलोक में आता है और इसलोक में भी उसे अपने पापों की सजा मिलती है.यानि कि इसलोक में भी उसे इसप्रकार का गर्हित जन्म मिलता है.ऐसे परिवार में जन्म मिलता है जहाँ रोटियों के ही लाले पड़े हो क्योंकि उसके कर्म इतने बुरे थे कि वो उस नर्क में जलने के बाद भी समाप्त नही हुए.उसे देह मिलेगी मगर ऐसी ही देह मिलेगी.

हाँ ये नियम है.जब ऐसी देह मिल जाती है और उसके बाद भी वो भगवान का नाम नही लेता क्योंकि नाम तो वो नर्क में कहाँ लेगा.वो तो यही लेगा न.हमारी ये कर्मयोनि है मनुष्य योनि.

तो यदि वो ऐसे कर्म करना शुरू कर दे क्योंकि ये आपको chance दिया जा रहा है इस जगत में कि आप इस chance का सदुपयोग करे.भगवान का नाम ले और वापस जाएँ.लेकिन यदि आप उस chance को  miss कर देते हैं some how तो ये बहुत बड़ी समस्या है आपके लिए.

इस जगत में आकर के यदि आपको दुःख मिलते हैं तो उससे घबराना नही है.उसका स्वागत करना है.दुखों के बाद ही तो हमें भगवान समझ आते हैं.इसीलिए तो एक बहुत बड़े भक्त ने कहा है कि
हे प्रभु इतनी विपदाएं देना मुझे कि मै आपको हर बार याद करता रहूँ क्योंकि आपके दर्शन का मतलब है कि फिर से दुबारा दर्शन नही करना.किसका?भवसागर का.इस मृत्युसंसार का.

SMS:विनोद लिखते हैं दिल्ली से कि
प्यासे हैं हम पर पता नही किसी प्यास लगी हमें,
पीते हैं different drink पर पानी की प्यास का पता नही.
पता जिसे चल जाए वही पीता है फिर उस धारा को,
पीते होंगे मुख से लेकिन कानों से वही पीता है
निरंतर बहती इस प्रेमधारा को.




Reply By माँ प्रेमधारा:

विनोद जी अच्छा प्रयास था.

SMS:रवि टैगोर गार्डन से
अखंड श्रद्धा क्या है?




Reply By माँ प्रेमधारा:

रवि अखंड श्रद्धा का अर्थ है वो श्रद्धा जिसे खंडित न किया जा सके.जिसे तोड़ा न जा सके.जो एकदम चट्टान की तरह मजबूत हो गयी हो.किसी भी वार से आप विचिलित न हो.

ऐसी श्रद्धा ही होनी चाहिए भगवान में जो कभी भी टूटे न.है न.टूटे न.ऐसी प्रीत होनी चाहिए भगवान से जो कभी भी टूटे न.तो इसप्रकार की श्रद्धा अगर आपके पास है तो आप वाकई बहुत ही fortunate हैं.बहुत ही भाग्यशाली हैं.

SMS:दिल्ली से जाने कौन हैं पूछते हैं कि
आजकल लोग पैसे के पीछे ही भागते हैं.ये जानते हुए भी कि पैसा ही तो अशांति का कारण है.क्या हम इतने तुच्छ बुद्धिवाले हैं?




Reply By माँ प्रेमधारा:

अगर हम पैसे के पीछे भागते है तो जाहिर है कि हम तुच्छ बुद्धिवाले हैं.भागना चाहिए भगवान के पीछे लेकिन हमारे priorities जो हैं वो ठीक-ठाक नही हैं.इसीलिए जो हम असत का संग करते हैं और असत को सत्य मान करके अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं.जब तक हमें गुरु की शरण नही मिल जाती तब ये सिलसिला जारी रहता है.
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SMS:अशोक दिल्ली से पूछते हैं
What is difference between lust and love?




Reply By माँ प्रेमधारा:

यानि काम और प्रेम के बीच  क्या अंतर है?
काम जो है.भगवान ने काम को कहा हुआ है कि ये नारकीय है.काम का अर्थ है अपनी इन्द्रियों का तर्पण.और प्रेम का अर्थ है कि जिससे आप प्रेम करते हैं उसकी इन्द्रियों का तर्पण.यानि कि उसकी इन्द्रियों को satisfy करना.प्रेम में आप देते हैं लेते कुछ नही है हैं.लेना कुछ नही चाहते हैं.देना होता है प्रेम की नियती.और काम यानि कि lust में आप अपने लिए चाहते हैं.कुछ चाहते है.तो वो जो कुछ है वो lust का रूप ले लेती है और दुनिया में generally lust होता है.generally क्या 100% lust है.काम है लेकिन प्रेम नही है.

प्रेम जो है भगवान से ही होता है जहाँ कि जब आप प्रेम में डूबते है तो देते रहना चाहते हैं और उस देने में जो मजा है वो लेने में कहाँ.

SMS:धीरज शर्मा फरीदाबाद से पूछते हैं कि एक सच्चे गुरु की क्या पहचान है?




Reply By माँ प्रेमधारा:

धीरज शर्मा कई बार हम कार्यक्रम में बता चुके हैं.अभी भी हमने जिक्र किया था कि जो भागवान से एकदम addicted हो वो गुरु ही सच्चा गुरु है.सोचिये addiction that matters.गुरु के प्रति आपका भाव तभी जागृत होगा जब आप देखेंगे कि वो भगवान से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं.और बहुत सुन्दर श्लोक भी था :
वाचो वेगं मनसः क्रोधवेगं
जिह्वावेगमुदारोपस्थवेगं |
एतान वेगान यो विषहेत धीरः
सर्वामपीमां पृथिवीं स शिष्यात ||

जो अपनी वाणी का control रखे.जप अपनी जीभ पर control रखे,खाने पर और मन पर control रखे,क्रोध पर control रखे.अपने उदर पर अपने पेट पर control रखे और अपने जनेन्द्रिय पर जिसका पूरा control हो वो गुरु बनाने योग्य है ऐसा व्यक्ति.ये गुरु की पहचान है.

SMS:मोहन लक्ष्मीनगर से पूछते हैं कि
भगवान से प्रेम का क्या मतलब है?प्रकृति से प्रेम?




Reply By माँ प्रेमधारा:

अजी प्रकृति तो उनकी छोटी-सी creation है.प्रकृति से आप प्रेम कारनेग.प्रकृति को सराहेंगे तो भगवान से प्रेम हो जाएगा धीरे-धीरे.लेकिन ये process बहुत लंबा है.बहुत लंबी प्रक्रिया है.direct प्रभु से प्रेम कीजिये और जब प्रभु से प्रेम करेंगे तो उनकी creation से automatically प्रेम हो जाएगा.इसतरह आप समस्त जीवों से प्रेम कर पायेंगे.ठीक है न.तो सिर्फ प्रकृति से ही प्रेम भगवान से प्रेम नही है.

SMS:सुमन भोगल से कहती है deaf  लोग जो लोग सुन नही पाते है,बधिर लोग वो लोग भक्ति कैसे कर सकते हैं?वो तो सुन नही सकते हैं.




Reply By माँ प्रेमधारा:

देखिये भगवान कहते हैं बड़ी सुन्दर बात
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः । 
भगवान कहते हैं कि जो मन मुझमे पूर्णतया आसक्त हो और मुझ पर वो आश्रित हो और मुझसे योगयुक्त हो.वो मुझ तक पहुँच सकता है.हैं न

मय्यासक्तमनाः 
यहाँ मन की बात हो रही है.अगर आपके पास श्रवण इन्द्रिय नही है तो क्या है.कोई बात नही.इससे कोई फर्क नही पडता.अगर आपके पास श्रवण नही है.आँख नही है.मुँह नही है.हाथ नही है.पैर नही है.तो भी आपके पास मन तो है.भगवान तो कहते हैं कि मै तो मन का attachment  देखता हूँ.मन को attach कीजये भगवान से.rest He will take care of.बाकी वो देख लेंगे.