Friday, January 24, 2014

आध्यात्मिक समस्याओं के शास्त्रोचित समाधान by Maa Premdhara(102.6 FM) on 4th Jan,2014

Spiritual Program ARPAN On 4th Jan, 2014(102.6 FM)
प्रस्तुत है कार्यक्रम अर्पण में आप सबका स्वागत है.मै हूँ आपके साथ पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप?आप सबको नया साल बाहुत-बहुत मुबारक हो.नए साल में आप जमकर भक्ति करे और भगवान की तरफ अग्रसर हो खूब मजबूती से.इस प्रयास में अगर आपको दिक्कत हो,कोई कठिनाई हो या कोई जिज्ञासा हो तो कृपया आप हमसे प्रश्न करे.हम आपके प्रश्न का समाधान करने का प्रयास करेंगे.तो आईये सुनते हैं कार्यक्रम का पहला प्रश्न:
प्रश्न: मेरा प्रश्न है कि ईश्वर की सेवा कैसे कर सकते हैं?
समाधान: देखिये ईश्वर की सेवा कैसे कर सकते हैं,ये तो बहुत अच्छा प्रश्न है.लेकिन ईश्वर की सेवा की इच्छा उत्पन्न होना ये सबसे important हैं.सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है .ईश्वर की सेवा करने की इच्छा ही तो नही उत्पन्न होती.हम ईश्वर को बहुत बड़ा ऐश्वर्यशाली समझ लेते हैं जो कि वो हैं भी.हम सोचते हैं कि हमारे खिलाने से हमारा दाता कहाँ संतुष्ट होगा.वो तो हमारा दाता है.हम भला उए कहाँ से संतुष्ट कर सकते हैं.

तो ऐसे-ऐसे ख्याल हमारे मन में आ जाते हैं और सेवा भाव बहुत दूर छिटक के चला जाता है.तो मै बहुत प्रसन्न हूँ कि आप ये  पूछ रही हैं कि ईश्वर की सेवा कैसे की जा सकती है.देखिये शुरुआत करिए हरिनाम से.भगवान का नाम लेती रहिये.आपकी जिह्वा जब भगवान के नाम में रत हो जायेगी तो भगवान् आपके अन्दर ऐसे संस्कार डाल देंगे.ऐसी प्रेरणा डाल देंगे जिससे आप उनकी और ज्यादा सेवा कर पायेंगे.

तो शुरुआत कीजिये हरिनाम से.भगवान के नाम से.बाकी सब अपने आप हो जाएगा.

प्रश्न: भगवान का दिन में चिंतन किया जाए औ रात में भगवान की भक्ति की जाए.इससे भगवान खुश होंगे क्या?रात की भक्ति एकान्तिक भक्ति भी है.इसे न कोई सुननेवाला न कहनेवाला.शांति से भक्ति की जाए.या फिर माताजी अआप बताईये कि भक्ति दिन में की जाये या रात में की जाए?
समाधान: देखिये ये जो समय है दिन और रात.ये हमारे लिए है.हम जैसे बद्ध जीवात्माओं के लिये है.भगवान के लिए तो क्या दिन और क्या रात.सब सामान है.मुख्य बाट है भगवान के प्रति अपने ह्रदय में भाव जागृत करना.अगर तुम्हारे मन में ऐसे सुन्दर-सुन्दर भाव भगववान के लिए उठाते हैं तो वही सबसे अच्छी बात है.
अगर वो दिन में उठते हैं तो उन्ही भावों को आप दृढ करिए,प्रबल करिए और आर आपको लगता है कि रात को बहुत अच्छे भाव उठते हैं भगवान के लिए तो उनमे डूब जाईये.है न.

तो ये मत सोचिये कि सुबह करूं,शाम करूं.रात करूँ दिन करूँ.अगर आपके घर की परिस्थिति ऐसी है कि आपके पति पसंद नही करते,आपी सास पसंद नही करती,कोई और पसंद नही करता आपके भक्तिमय कार्य को.तो प्रयास कीजिये कि उअसे छुपाकर किया जाए.क्या जरूरी है ऐलान करना.बिल्कुल जरूरी नही है.

प्रेम को तो यूं भी दिल में रखा जाता है.है न.
प्रश्न: गुरु बना के हो सकती है भक्ति या बिना बनाये भी हो सकती है?
समाधान: बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है आपने.गुरु बनाके भक्ति हो सकती है या बगैर गुरु के हो सकती है.देखिये ये गुरु शब्द की जगह अगर हम कहे मार्गदर्शक तो ज्यादा उचित रहेगा.ये गुरु शब्द बड़ा अजीब-सा शब्द हो गया है आजकल के जमाने में क्योंकि हर कोई बैठा हुआ है गुरु बनने को तैयार.हर कोई बुला रहा है-आओ,आओ मुझसे दीक्षा लो,मै तुमको पार उतार दूंगा.है न.ऐसे में कई बार इंसान फँस जाता है.समझ नही आता कि जिस जगह वह गया वह सही जगह है या नही.\\और वो बहुत बेचारा दुविधा में पड़ जाता है.

अगर मै ये कहूँ कि आपके जीवन में एक मार्गदर्शक हो जो स्वयं भक्ति करता हो और भक्ति का रसास्वादन उसे प्राप्त होता हो,वो इतना सक्षम हो कि आपको भी रसास्वादन करा पाए.आपको पग-पग पर दिशा निर्देश दे पाए कि इसतरह से चलो और ऐसे भक्ति करो.ऐसे मार्गदर्शक के आनुगत्य में भक्ति करना ज्यादा श्रेयस्कर है.यही कहूंगी.ऐसा मार्गदर्शक आपको मिल जाए,यही आप भगवान से प्रार्थना करिए.

प्रश्न: अवतार और भगवान में क्या अंतर होता है?
समाधान: अच्छा question है आपका अरविन्द कि अवतार और भगवान इ क्या अंतर होता है.भगवान जब किसी विशेष प्रयोजन के लिए और उस प्रयोजन के सन्दर्भ में एक निश्चित शक्ति से युक्त हो करके आते है.भगवान स्वयं आते हैं.भगवान स्वयं आने का अर्थ है कि जो भगवान का अंश है जो कि उस विशेष प्रयोजन के लिए आ रहा है तो वो भी तो स्वयं भगवान ही हो गया न.अंश है तो क्या.भगवान की पूरी शक्ति उनके अन्दर है.वो शक्ति प्रकटित नही करते हैं क्योंकि प्रयोजन बस उतना भर है कि उतनी ही शक्ति से काम चल जाएगा.

जैसे चन्द्रमा एक ही है न लेकिन विभिन्न दिनों में जब आप उस चन्द्रमा को देखते हो तो कभी छोटा,कभी और छोटा,बिलकुल पतला-सा नजर आता है .तो आप ये नही कह सकते कि पूर्णिमा का चाँद अलग है और ये पतला-सा चाँद अलग है.ये तो चाँद ही नही है.ये तो बेकार है.ऐसा नही कह सकते.

इसीप्रकार से भगवान विभिन्न प्रयोजनों के हिसाब से अपने अंश को भेजते हैं और वो प्रयोजन पूरा हो जाता है तो भगवान के अंश अपने धाम में चले जाते हैं.तो यही अवतार होता है.ऊपर से नीचे आना उस प्रयोजन कुछ भी हो सकता है.असुरों का संहार,भक्तों पर कृपा.कुछ भी हो सकता है प्रयोजन.

प्रश्न: जब हम भगवान का अंश हैं तो भगवान से दूर क्यों है और इतने कष्टों का सामना क्यों करना पड़ता है?
समाधान: बहुत अच्छा प्रश्न आपने पूछा.भगवान भी तो कहते हैं न भगवद्गीता में :

ममैवांशो जीव-लोके जीव-भूतः सनातनः ।

मनः षष्ठानीऽऽन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥

बहुत सुन्दर बात भगवान ने कही है.कि भैया सारे जीव जो है न मेरे अंश हैं.लेकिन अपनी इन्द्रियों के विषयों में अपने मन को इस कदर डुबो दिया है कि वे इस भयंकर जगत में संघर्ष कर रहे हैं.हैं मेरे अंश पर मेरे पास आना नही चाहते.

आज अगर हम किसी को कहे कि सारे काम छोड़छाड़ दो और भगवान का तहे दिल से भजन करो और भजन के अलावा कुछ भी नही करो.सिर्फ भजन करो,भजन करो,भजन करो तो कितने ही लोग,कितने ही लोग इस बात का विरोध करेंगे.तर्क कुतर्क करेंगे.अरे भाई भगवान क्या तुम्हारे खाना खिला देंगे हमें. ये कर देंगे वो कर देंगे.अनेक प्रश्न करेंगे.लेकिन विश्वास किसी को नही होगा.अगर जब तक किया नही ,करके देखा नही तो फिर अविश्वास का सवाल कहाँ उठता है.सिर्फ मन से ये सोचना कि ये हो नही सकता ,गलत है.है न.

तो हम भगवान का अंश होते हुए भी जब भगवान् के पास ही नही जाना चाहते तो भगवान भी क्या करे.हमें कैसे अपने पास लायेंगे. हम भगवान के अंश हैं पर विभिन्नांश हैं.जैसेकि सूरज ऊपर है लेकिन सूरज की किरण तो नीचे आती है न.सूरज की किरण सूरज नही है लेकिन सूरज की किरण सूरज की वजह से है.जो हमारे ऊपर पर रही है.धुप सूरज की वजह से है.

इसीप्रकार से हम भगवान् की वजह से हैं.हमारा जो वजूद है उनकी वजह से है.पर जैसे सूर्य की किरण उसके अन्दर नही है.वो बाहर है.इसीप्रकार से हम भगवान के अन्दर की शक्ति नही हैं बाहर हैं.विभिन्नांश कहा गया है हमे.separated energy हैं हम भगवान की.

लेकिन फिर भी भगवान हमे तसल्ली देते हैं कि आप मेरे पास आ सकते हो.पूरी संभावना है.आप प्रयास करो मुझे पाने का.मुझमे मन को लगाओ.जब मेरे से आपका मन पूरी तरह तादात्म्य स्थापित कर लेगा तो आप मुझे प्राप्त कर लोगे.बहुत सुन्दर विधि है.प्राप्त करने का प्रयास करिये तो ये जितने भी आपके कष्ट है न वे कष्ट जैसे होंगे ही नही.वस्तुतः कष्ट रहेगा ही नही.

प्रश्न: भक्ति के साथ माता-पिता की भी सेवा करनी चाहिए.मै ऐसा करने में असमर्थ हूँ.जिसकी वजह से मै बहुत परेशान हूँ.मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान: देखिये भक्ति करना बहुत अच्छी बात है.भक्ति करने के लिए ही इंसान का शरीर मिला है और आप इंसान के शरीर के अन्दर हो.उस इंसान के शरीर को बढाने में ,बड़ा करने में माँ-बाप की एक बड़ी भूमिका रही है भाई.उन्होंने पैदा किया शरीर को और शरीर का पालन-पोषण किया.और आज आप इतने बड़े हो गए.

आज आप अगर ये कहे कि भक्ति तो कर सकता हूँ पर माँ-बाप की सेवा नही कर सकता.ये possible नही है मेरे लिए तो ये गलत है.क्या चीज है जो आपको माँ-बाप के सेवा करने से रोक रही है.ममा-बाप ने तो कभी नही सोचा कि मै बच्चे को पैदा तो कर सकता हूँ पर इसे अनाथालय फेंक आऊ.मै इसका पालन-पोषण नही कर सकता.झंझट है झंझट.कौन इसके साथ रातों को जगे.कौन इसके साथ कष्ट सहे.ऐसा नही सोचा न.आपका हर कष्ट उन्होंने झेला और आपके साथ रहे.

आज जब अपने पैरों पर खड़े हो गए हो आप और हो सकता है कि आपका परिवार भी हो तो अब अपनी जड़ को भूल गये.ऐसा मत करिए.आने सांसारिक कर्तव्यों की उपेक्षा करने से आप भगवान के प्यारे हो जायेंगे ऐसा कभी सोच भी मत लेना.

अपने सांसारिक कर्तव्यों को पूर्ण करिए निर्लिप्त भाव से और लिप्तता सिर्फ भगवान में रखिये.यही एकमात्र सही तरीका है.

प्रश्न: कहा जाता है कि गीता जी के जैसा कोई ग्रन्थ नही.क्या ये बात सत्य है?
समाधान: देखिये सत्य है कि असत्य है मै कैसे बताऊँ.अगर आप गीताजी का अध्ययन करेंगे,पढेंगे तो पता चलेगा न.मेरे कहने से क्यों मान लेते हैं कि सत्य है कि असत्य है.गीताजी आपके पास मौजूद हैं.आप लीजिये उन्हें और हिन्दी आपको आती होगी,अंग्रेजी भी आती होगी.क्कोई भी भाषा में available है.अप्प लीजिये और उनका पठन-पाठन कीजिये

हाथ कंगन को आरसी क्या
पढ़े-लिखे को फारसी क्या.

वही वाली बात है.आप जब पढेंगे तो स्वयं ही जान जायेंगे.मुझसे पूछेंगे तो मै तो कहूंगी कि भगवद्गीता जैसा ग्रन्थ शायद ही कोई हो.

प्रश्न: तत्व भक्ति क्या है और कैसे की जाती है?
समाधान: बहुत अच्छा प्रश्न है आपका कि तत्व भक्ति क्या है और कैसे की जाती है.देखिये दुनिया में आप जो कुछ भी करते हैं वो सब कुछ असत है अगर उसका सम्बन्ध भगवान से न हो.भगवान ही एकमात्र तत्व हैं पूरे संसार में और हमारी आत्मा का सम्बन्ध भी उसी एक तत्व से है,भगवान् से है.

भगवान को प्रसन्न करने का नाम ही तत्व भक्ति है.

और कैसे करी जाती है.शुरुआत कीजिये भगवान् का नाम लेने से.भगवान का नाम लेते जाईये और भगवान का नाम लेने से जब आपका चित्त शुद्ध होने  लगेगा तो फिर आगे की सेवाएं आपको स्वयं पता चल जायेंगी और आप आगे स्वयं बढ़ते चले जायेंगे.

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Monday, January 20, 2014

प्रबुद्ध व्यक्ति कैसे अपने जीवन को जीता है:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा.नमस्कार.कैसे हैं आपआप सबको नया साल बहुत-बहुत मुबारक हो.भगवान करेइस नए साल में भक्ति से संबंधित आपकी सारी आकांक्षाएं,सारी उम्मीदें पूरी हो.आप भक्ति के क्षेत्र में और उन्नति कर पाएं,और आगे जाएँ.

तो हम सब पिछले कुछ दिनों से नया साल मना रहे हैं और बहुत सारे functions हुए,बहुत सारी festivities हई,बहुत उल्लास रहा नया साल मनाने में.अपने-अपने ढंग से सबने नया साल मनाया.लेकिन कई बार मै ये सोचती हूँ श्रोताओं कि भाई हम आत्मा के रूप में शाश्वत हैं.कभी भी नए नही होंगे.नयापन आत्मा में आता नही.हमेशा से आत्मा थी,है और रहेगी.ये काल,ये समय शाश्वत है.काल हमेशा से था,है और रहेगा.और माया भी तो शाश्वत है.माया कब समाप्त होती है?माया रहती है हमेशा.किसी व्यक्ति कि माया उसकी भक्ति से समाप्त होती है.पर इससे जो माया का अस्तित्व है वो तो समाप्त नही होता.कही किसी और को घेरती है जाकर माया.तो अब ये सारी चीजें जब शाश्वत हैं तो ऐसे में हम नया क्या ढूंढ रहे हैं.हमें पता ही नही चल रहा कि हमें नवीनता कहाँ मिलेगी.इसलिए हम शाश्वत काल को अनेक दिनों में,मासों में,सप्ताहों में बाँट-बाँटकर प्रसन्न हो रहे हैं कि चलो एक हप्ता बीत गया,एक महीना बीत गया,बारह महीने बीत गए.स्वयं हमने मापदंड तैयार किये और स्वयं ही प्रसन्न हो गए.

क्या करे?क्योंकि हमें पता नही न कि नवीनता आखिर कहाँ है?जो लोग काफी समय से program सुन रहे हैं,उन्हें आभास है,उन्हें पता है कि नवीनता सिर्फ और सिर्फ भगवान में है.भगवान आदि पुरुष हैं,शाश्वत हैं,प्राचीनतम हैं लेकिन नूतनता,नवीनता से भरे हुए हैं.है न.लेकिन ये हमें समझ नही आता क्योंकि हम अपने आप में निमग्न रहते हैं.शरीर की क्रियाओं में लिपटे रहते हैं.इए ही तो हमारा श्लोक आपको बता रहा है कि अगर आप अपने शरीर की क्रियाओं को मात्र द्रष्टा बनकर देखे और आप उसमे लिपटे नही तो आप प्रबुद्ध व्यक्ति कहलायेंगे और नए साल में ऐसी प्रबुद्धता हमको हासिल हो तो क्या बात है .

आईये सुनते हैं ये श्लोक जो आपको बता रहा है कि प्रबुद्ध व्यक्ति कैसे अपने जीवन को जीता है,शारीरिक क्रियाओं में नही फंसता.तो श्लोक है:
एवं विरक्तः शयन आसनाटनमज्जने ।
दर्शनस्पर्शनघ्राणभोजनश्रवणादिषु ।
न तथा बध्यते विद्वांस्तत्र तत्रादयन्गुणान् ।।

अर्थात्

प्रबुद्ध व्यक्ति विरक्त रहकर शरीर को लेटने,बैठने,चलने,नहाने,देखने,छूने,सूंघने,खाने,सुनने इत्यादि में लगाता है.लें वो कभी भी ऐसे कार्यों में फंसता नही.निस्संदेह वह समस्त शारीरिक कार्यों का साक्षी बनकर अपनी इन्द्रियों को उनके विषयों में लगाता है और वह मूर्ख व्यक्ति की भांति उसमे फंसता नही.

तो बहुत ही सुन्दर श्लोक है.देखिये इसमे एक बहुत ही सुन्दर अंतर को बताया गया है.शरीर सबको मिला है.शरीर की क्रियाएं सबको करनी होती है.शरीर अपनी क्रियाएं करता है.आँख खुलती है बंद होती है.आँखों से हम देखते हैं.ऐसा व्यक्ति जो दुनिया में फंसा हो,जो दुनियावी सुख ढूँढता है और उसके पीछे मदमस्त है,प्रमत्त है उस व्यक्ति की आँखें भी कार्य करती हैं.वो भी देखता है लेकिन समस्या होती है कि जिस चीज को वो देखता है उन चीजों में वो लिप्त हो जाता है.उन चीजों से रसास्वादन लेता है.उन  चीजों में रस खोजता है.अपने देखने के जरिये वो देखने का रस खोजता है.

लेकिन जो प्रबुद्ध व्यक्ति है वो भी देखता है लेकिन उदासीनवत देखता है.देखा उसने भी.ये नही कि उसने आँखें बंद कर ली.सारे दृश्य उसकी नज़रों से भी गुजरे लेकिन वो उसमे लिप्त नही हुआ.वो उसे मात्र दृष्टा के रूप में देखता रहा.क्यों?क्योंकि उसका मन विरक्त है उन विषयों से जिनमे इन्द्रियां लगी हैं.इन्द्रियां तो अपने विषयों में लगेंगी ही.अब हमारे पास जीभ है,पेट है.पेट में भूख लगेगी तो जीभ खाने का रस तो लेगी न.खाने का रस लेगी और फिर खाना पेट में जाएगा तो फिर तृप्ति होगी.

वो एक व्यक्ति जो दुनिया के समस्त सुखों में डूबा हुआ है वो जब खायेगा तो चटकारे ले लेकर खायेगा,स्वाद ले लेकर खायेगा,स्वाद को ढूँढता-ढूँढता रह जाएगा,मारा-मारा फिरेगा स्वाद के लिए.ये स्वाद बहुत अच्छा है वो स्वाद बहुत अच्छा है,ये बहुत बढ़िया बना है,ये बहुत ख़राब बना है .

और प्रबुद्ध व्यक्ति जो भगवद ज्ञान में आगे है,जो जानता है कि भगवान का ज्ञान क्या है और भगवान का ज्ञान ही सर्वोच्च है .ऐसा व्यक्ति जब खायेगा तो कैसे खायेगा.उसे भी अच्छी चीज अच्छी लगेगी,बुरी चीज बुरी लग सकती है लेकिन वो उनमे लिप्त नही होगा.कोई चीज बहुत नमकीन हो गई तो भी वो खा जाएगा.कोई चीज बहुत कड़वी हो गयी तो वो खायेगा,उसकी जुबान सी-सी  करेगी,वो पानी भी पियेगा लेकिन ये नही कहेगा कि अरे! ये कितना बुरा खाना था.अरे! ये कितना अच्छा खाना था.रसास्वादन,ये वो भूल जाएगा.

हालाकि दोनों ही खाने की एक ही क्रिया कर रहे हैं.तो एक है आसक्त सुख में,आस्वादन में,रस में,विषयों में और दूसरा है विषयों से विरक्त.हालाकि विषय को स्पर्श कर रही हैं उसकी इन्द्रियां भी.

बहुत ही सुन्दर श्लोक है ये जिसे हम आपको सुना रहे हैं.इसी पर चर्चा करेंगे हम.सुनते रहिये समर्पण.

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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे थे बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
एवं विरक्तः शयन आसनाटनमज्जने ।
दर्शनस्पर्शनघ्राणभोजनश्रवणादिषु ।
न तथा बध्यते विद्वांस्तत्र तत्रादयन्गुणान् ।।

अर्थात्

प्रबुद्ध व्यक्ति विरक्त रहकर शरीर को लेटने,बैठने,चलने,नहाने,देखने,छूने,सूंघने,खाने,सुनने इत्यादि में लगाता है.लें वो कभी भी ऐसे कार्यों में फंसता नही.निस्संदेह वह समस्त शारीरिक कार्यों का साक्षी बनकर अपनी इन्द्रियों को उनके विषयों में लगाता है और वह मूर्ख व्यक्ति की भांति उसमे फंसता नही.

कितनी सुन्दर बात है.बहुत ही प्यारी चीज.है न.देखिये अगर हमारा शरीर लेट रहा है,बैठ रहा है.हम चल रहे हैं,हम नहा रहे हैं और उसमे अगर हम फंसे हैं.लेटे हैं.लेटने की जो position है वो ऐसी होनी चाहिए,यहाँ सुन्दर-सुन्दर mattresses होनी चाहिए,हम बैठे तो इतना सुन्दर सीट होनी चाहिए.या हम नहा रहे हैं तो चलो थोड़ा-सा इसमे हम इत्र डाल लेते हैं.नहाने से पहले थोड़ा ये लगा लेते हैं ,नहाने के बाद वो लगा लेते हैं.इससे skin ऐसी हो जायेगी,त्वचा ऐसी हो जायेगी.

ये है आसक्ति.नहाने का कार्य उस भगवदज्ञानयुक्त व्यक्ति ने भी किया.लेकिन आसक्त नही हुआ कि पहले ये लगा ले फिर ये लगा ले शरीर महकता रहेगा,गमकता रहेगा.कुछ नही.नहाना है तो नहाना है.बस.

या फिर सूंघने.कोई सोचता है कि ये खाने की खुशबू कैसी है?देखो अच्छी है न.tempting smell.और कोई सोचता है चलिए खाना बन गया,खा लीजिये.बोग लगाया,भगवान का प्रसाद आया,उसे पाया और बस.उसके अन्दर पाने ह्रदय को नही लगाता.ये नही लगाता कि चावल कैसे हैं?अच्छे हैं कि नही?quality कैसी है?बड़ी अच्छी quality के चावल खाए मैंने आज.बहुत अच्छा आटा,उसका हमने रोटी खाया.और इतना सुन्दर अचार वो बनाकर लायी थी.भाई तुम भी क्यों नही सीख लेती बनाना.इस तरीके से विषयों में फंसता नही.खाया उसने भी पर फंसता नही.

तो यहाँ बताया कि ये जो भगवान के भक्त होते हैं जब इनका शरीर कार्य करता है तो वो शारीरिक क्रियाओं के मात्र साक्षी होते हैं जैसे भगवान.भगवान हमारे ह्रदय में ही रहते हैं.और देखते हैं कि आत्मा विभिन्न क्रियाएँ कर रही है.विभिन्न भोगो को भोग रही है.वे साक्षी के रूप में बस देखते हैं.आत्मा जो क्रिया कर रही है उसमे लिप्त नही होते.

इसीप्रकार से हम शरीर से अलग हैं.हम शरीर नही हैं.हम शरीर हो भी नही सकते क्योंकि हम चेतन हैं और शरीर जड़ है.हमारी वजह से शरीर में चेतना आती है.और शरीर विभिन्न क्रियाओं में संलग्न हो सकता है हमारी चेतना की वजह से जो हमारी वजह से शरीर में व्याप्त होती है.शरीर क्या कर रहा है.ये सिर्फ देखा जाता है.दृष्टा भाव से,साक्षी भाव से.


जैसे कि मान लीजिये,एक example देती हूँ कि किसी ने बकरी पाली.बकरी जो है चारा चर रही है.घास चर रही है और जिसने पाली वह देख रहा है कि बकरी घास चर रही है लेकिन बकरी को उस घास में कितना आनंद आ रहा है,हरी-हरी घास में.वो खा रही है.कितना आनंद आ रहा है,कितना रस आ रहा है. वो व्यक्ति इस चीज से concerned नही है.इस चीज से कोई मतलब नही है.कि बकरी उस चीज को खाते हुए कितना आनंदित हो रही है.कोई मतलब नही है.बस इतने समय तक बकरी ने खाना है.अच्छा खा लिया.चलो भाई वापस.ठीक है.वो लिप्त नही हुआ उसके खाने की क्रिया में.उसने उसे खाने की सुविधा मुहैया करायी.बस इतना ही.

ऐसे ही जो भगवान के प्यारे भक्त हैं वो शरीर की क्रियाओं पर इतना ध्यान नही देते.वो शरीर को उसकी क्रिया करने देते हैं ताकि शरीर fit रहे और भगवान के भजन में काम आ सके.वास्तव में देखा जाए तो हमारा शरीर मिला ही भगवान के भजन के लिए है.इसका और कोई उद्देश्य नही है.कोई भी उद्देश्य नही है और हम अनेकानेक उद्देश्य गढ़ लेते हैं.अपना मन उन उद्देश्यों में झोंक देते हैं.अपने शरीर को उसमे झोंक देते हैं.अपनी आत्मा को उसमे गर्क कर देते हैं.ऐसे झूठे ख्वाब देखते हैं.अशाश्वत चीजों में अपनेआप को खपा डालते हैं.

और सोचिये ये कितनी बड़ी wastage है.कितनी बड़ी.ये जो व्यर्थता है.ये जो हमने अपने आप ओ जाया किया ,खर्च कर दिया इसकी भरपाई क्या हो सकेगी कभी.कभी भी नही.गया हुआ समय कभी भी वापस नही आता.इसलिए आईये नए साल में ये संकल्प ले कि हम एक लम्हे को भी जाया नही होने देंगे.सदा-सर्वदा भगवान से युक्त रहेंगे और भगवद प्राप्ति में अग्रसर होंगे.

इसी के साथ अब आज्ञा दीजिये प्रेमधारा को.नमस्कार.
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