Friday, February 18, 2011

भगवान को समर्पित कैसे हुआ जाए::Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 19th Feb, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषाअध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः ।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसञ्ज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्‌ ॥(भगवद्गीता,15.5)
अर्थात्
जो लोग झूठी प्रतिष्ठा,मोह से मुक्त हैं.जो झूठे संग से मुक्त हैं.जो शाश्वत को समझते हैं.जो भौतिक लोभ पर विजय पा चुके हैं.जो सुख-दुःख जैसे द्वंद से परे हैं,जो अविचलित हैं, वे ही जानते हैं कि परम भगवान को कैसे समर्पित हुआ जाये ताकि हमें उनका शाश्वत धाम मिल सके.

तो देखिये बहुत सुन्दर जानकारी भगवान आपको यहाँ देते हैं.हम सब चाहते हैं कि इस भौतिक जिंदगी में हम सदा बने न रहे.कोई भी इस भौतिक संसार में हमेशा आना नही चाहता.खास तौर से वो लोग जो विद्वान हैं.जो अध्यात्म में बढे-चढ़े हैं.जिन्हें मालूम है कि हम आत्मा हैं,हम शरीर नही हैं.

ऐसे लोग हमेशा,हमेशा ये चाहेंगे कि उन्हें एक ऐसा जीवन मिले जो शाश्वत हो.जो जन्म,मृत्यु,जरा,व्याधि से ग्रस्त न हो.जहाँ बार-बार जन्म का दर्द न सहना पड़े.जहाँ बार-बार मृत्यु की पीड़ा न सहनी पड़े.जहाँ बार-बार व्याधियों की,बीमारियों की पीड़ा नही सहनी पड़े.जहाँ अनिश्चितताएँ न हो.जहाँ हम rat race से दूर हो सके.जहाँ शांति हो.

हर कोई ऐसा जीवन चाहता है और जब ये जानकारी भगवान देते हैं कि हाँ ऐसा जीवन है.इसे आप प्राप्त कर सकते हैं बशर्त्ते आप परम भगवान को समर्पित हो जाए तब.तो भगवान को समर्पित कैसे हुआ जाता है.आज का ये श्लोक इन्ही बातों पर प्रकाश डालेगा.आप रहिये हमारे साथ और सुनते रहिये कार्यक्रम समर्पण.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषाअध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः ।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसञ्ज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्‌ ॥(भगवद्गीता,15.5)
अर्थात्
जो लोग झूठी प्रतिष्ठा,मोह से मुक्त हैं.जो झूठे संग से मुक्त हैं.जो शाश्वत को समझते हैं.जो भौतिक लोभ पर विजय पा चुके हैं.जो सुख-दुःख जैसे द्वंद से परे हैं,जो अविचलित हैं, वे ही जानते हैं कि परम भगवान को कैसे समर्पित हुआ जाये ताकि हमें उनका शाश्वत धाम मिल सके.


 तो देखिये हम में जो सबसे बड़ी कमी है वो है झूठी प्रतिष्ठा की.हर व्यक्ति काम करता है ताकि उसे एक प्रतिष्ठित जीवन जीने का मौका मिल सके.हर कोई प्रतिष्ठा पाने की भरपूर कोशिश करता है.यश पाने की भरपूर कोशिश करता है.है न.हर कोई.ये जो हमारा nature है अहंकार का,pride जिसे कहते हैं घमंड.ये जो घमंड है ये हमें रोकता है कि हम अपने आप को देख सके.हम अपने आप को देख नही पाते.घमंड एक पर्दा बन जाता है और ये प्रतिष्ठा झूठी होती है.ये आप जानते हैं.

किसी को झूठी प्रतिष्ठा चाहिए कि वो एक बहुत बड़ा वकील है.वकील हो गए.आगे प्रतिष्ठा चाहिए कि आपका नाम देश में ही नही विदेशों में भी है.आप किसी बहुत बड़ी association के president भी हैं.लोग आपसे discuss करने आते हैं.ऐसी-ऐसी प्रतिष्ठा और इसे पूरा करने के लियी आदमी मनुष्य जीवन को बर्बाद करता चला जाता है.

पढ़ाई की शुरुआत से ले करके कैरियर के अंत तक उसकी ये भरपूर कोशिश होती है कि मै The Best Lawyer बन जाऊं.ये मैंने आपको एक example दिया Lawyer का.लेकिन आप अपनी-अपनी fields में देखिये जहाँ भी सबसे बड़ा point है,highest point प्रतिष्ठा का,आप उस point को प्राप्त करना चाहते हैं.है न सही बात.

तो जो लोग झूठी प्रतिष्ठा में लिप्त हैं वो भगवान को भला कहाँ खोज सकते हैं.कहाँ पा सकते हैं.भगवान के बारे में कहाँ सोचा जा सकता है.कहाँ उनके अंदर ये feelings आयेंगी,ये अहसास जन्म लेगा कि हाँ ये प्रतिष्ठा जिसके पीछे मै भाग रहा हूँ maximum मेरे साथ सत्तर-अस्सी साल रहेगी और उसके बाद जब मेरी मृत्यु हो जायेगी तो मै हूँ नही, मै था बन जाऊँगा.जब मै था बन जाऊँगा,अतीत बन जाऊँगा तो भला कौन पूछेगा मुझे.फिर मेरी जगह कोई और ले लेगा.कोई और आ जायेगा.कोई और The Best बन जाएगा.तो मैंने क्या पाया.मैंने सिर्फ झूठी प्रतिष्ठा पायी.ये जो झूठ था.

झूठ इसलिए क्योंकि ये असत है सत् नही है.ये हमारे साथ नही जाता.याद रखिये.
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