Sunday, February 6, 2011

आपके पास कामना हो या न हो,भगवान की भक्ति करना सदा-सर्वदा अच्छा ही रहता है:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

   Spiritual Program SAMARPAN On 5th Feb, 2011(102.6 FM)
समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा.नमस्कार कैसे हैं आप.आप तो जानते हैं कि इंसान के जीवन में अनंत इच्छाएं होती है.है न.इन इच्छाओं के पाश में बंधी जिंदगी बेशक स्वतंत्रता का दावा करती नजर आती है पर वास्तव में होती वो गुलाम ही है.इच्छाएं पूरी हो गई तो अच्छा है.अगर नही तो आशा का दामन हाथ में आ जाता है.आशा करने लगते हैं कि एक दिन जरूर इच्छा पूरी होगी और इच्छाओं का जंगल जीवात्मा को अपनी गिरफ्त में  जकड़ लेता है.इच्छा करते-करते जब इंसान इस दुनिया से चला जाता है तो भी इच्छाओं के कारण उसे दुबारा इस दुनिया में आना पडता है.

दिलचस्प बात तो ये है कि कुछ तो खुद अपनी इच्छाओं को पूरी करने की कोशिश करते हैं और कुछ अन्य लोग भगवान का सहारा लेते हैं.जी हाँ.अपनी इच्छापूर्ति के लिए भगवान के द्वार जा पहुंचते हैं और हमारा श्लोक ऐसे लोगों को बहुत intelligent यानि कि बुद्धिमान व्यक्ति बताता है.श्लोक सुनिए:


अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः |
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परं ||(श्रीमद्भागवत,2.3.10)


अर्थात
चाहे किसी के पास कोई कामना न हो या फिर किसी के पास अनंत कामनाएं हो या फिर कोई मोक्ष की कामना से ही ग्रस्त है.सबलोग यदि अपनी कामनाओं की पूर्त्ति के लिए भगवान की शरण लेते हैं तो वो बुद्धिमान व्यक्ति है.

सोचिये कितनी सुन्दर बात कही है इस श्लोक के द्वारा.बहुत सुन्दर बात.अगर किसी के पास कोई कामना नही है और वो भगवान की भक्ति करता है तो यकीन मानिए वो बहुत fortunate है.बहुत-बहुत सौभाग्यशाली है क्योंकि अकाम होना बहुत मुश्किल है.हम तो सर्वकाममय हैं.हमारे पास तो अनंत कामनाएं हैं और अपनी कामनाओं की पूर्त्ति के लिए हम बारम्बार हाथ-पैर मारते रहते हैं और सोचते हैं कि कुछ तो करे.कुछ तो हो जाए कि हमारी इच्छाएं पूरी हो जाये और जब हमसे कुछ भी नही बन पड़ता है तो हम प्रभु के द्वार जा पहुंचते हैं प्रभु को मानने.हम प्रभु को मनाते हैं और कहते हैं कि आप हम पर कृपा कीजिये ताकि हमारी कामनाएं पूरी हो जाए लेकिन फिर भी भगवान देखिये कितने कितने रहमदिल हैं कि मेरे द्वार पे आये हो तो आप बहुत  उदारधीः हो.आप बुद्धिमान हो और आप महात्मा हो.

तो सोचिये चाहे आपके पास कामना हो या न हो,भगवान की भक्ति करना सदा-सर्वदा अच्छा ही रहता है.इसबात को अगर आप याद रख्नेगे तो आपका परम कल्याण होगा.

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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर.


अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः |
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परं ||(श्रीमद्भागवत,2.3.10)

अर्थात
चाहे भौतिक कामनाओं की पूर्त्ति की इच्छा हो या मोक्ष की इच्छा,हर इच्छा की पूर्त्ति के लिए बुद्धिमान  लोग ईश्वर की आराधना करते हैं.


अब सोचिये ईश्वर की अराधना करना इतना जरूरी क्यों समझा गया है.क्यों ये श्लोक ईश्वर की आराधना पर बल देता है.क्या बात है?
क्योंकि अगर शुद्ध भक्ति का सवाल है तो देखिये कोई इच्छा नही होनी चाहिए हमारे पास.हम प्रेम करते हैं तो उसमे कुछ expect नही करते.अगर कुछ expect करते है तो ये Business है.प्रेम में आशा करना,ये व्यापार ही तो है और क्या.प्रेम तो त्यागमयी होता है.पर देखिये यहाँ फिर भी ये कहा गया है कि यदि आपके अनंत भौतिक इच्छाएं हैं और आप उनकी पूर्त्ति करना चाहते है तो आप ईश्वर के द्वार जाईये.जानते है क्यों?

क्योंकि जब आप भगवान के पास जायेंगे,भगवान के द्वार तक पहुंचेंगे,उनकी पास अपनी फरियाद रखेंगे और उनके लिए स्तुति करेंगे तो आपका मन पवित्र होने लगेगा.आपको भक्तों का संग प्राप्त होने लगेगा और भक्तों के संग में जब आप रहने लगेंगे फिर तो आपके अंदर शुद्ध भक्ति के बीज पड़ने लगेंगे और शुद्ध भक्ति का अर्थ यही होता है कि आपके अंदर से सारी कामनाएं समाप्त हो जाए.मोक्ष तक की कामना न रहे.

देखिये आदमी अगर संसार की कमना नही करता तो वो वैराग्य की कामना करने लगता है.संसार नही चाहिए वैराग्य चाहिए.क्यों चाहिए वैराग्य?ताकि हमें मोक्ष मिल सके.है न.और मोक्ष की कामना करना गलत बात नही है.मोक्ष की कामना एक सुन्दर कामना है.जिसे ये पता चल जाए कि ये संसार दुखालायम है,अशाश्वतम है,इस संसार से निकल जाना ही बुद्धिमानी का काम है और इसके लिए भगवान के लिए प्रेम की प्राप्ति अत्यंत आवश्यक है.जिसे ये पता चल जाए वो बहुत ज्ञानी हो जाता है.

भगवान जानते है और समझते है कि यदि आप एकबार उनके पास आयेंगे और पानी अनंत कामनाओं की पूर्त्ति के ही चक्कर पे आयेंगे तो भगवान स्वयं आपको कामनारहित कर देंगे.जी हाँ.
विधुनोति सुहृत सतां 

जो व्यक्ति मेरे द्वार पे आता है मै उसको समस्त भौतिक कामनाओं से निर्मूल कर देता हूँ यानि उनकी सारी भौतिक कामनाएं हटा देता हूँ,खत्म कर देता हूँ और ये भगवान की बहुत बड़ी अनुकंपा है.ये समझ लीजियेगा.
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समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही प्यारे श्लोक पर.

अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः |
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परं ||(श्रीमद्भागवत,2.3.10)

अर्थात
चाहे भौतिक कामनाओं की पूर्त्ति की इच्छा हो या मोक्ष की इच्छा,हर इच्छा की पूर्त्ति के लिए बुद्धिमान  लोग ईश्वर की आराधना करते हैं.


यानि कि अपने बलबूते पर इच्छाओं की पूर्त्ति करने का प्रयास नही करते हैं.भगवान को बीच में लाते हैं.जी हाँ.आप अपने हर कार्य के बीच में भगवान को लायेंगे तो आपका हर कार्य सफल होगा.हर कार्य सफल होगा,इसका मतलब ये है कि भगवान स्वयं आपको बुद्धियोग प्रदान कर देंगे.भगवान आपकी बुद्धि को ऐसा विमल बना देंगे कि आप ऐसी कोई भी demand उनके सामने नही रख्नेगे जो आपकी जिंदगी के लिए खराब है.आपके हित में नही है.भगवान एक जगह कहते भी है :

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥(भगवद्गीता,7.16)


भगवान कहते हैं कि चार प्रकार के लोग मेरी भक्ति करते हैं.एक होते हैं दुखी,दूसरे होते हैं जिन्हें धन की कमी है जो धन चाहते हैं,एक होते हैं ज्ञानी और एक होते हैं जिज्ञासु यानि curiosity जिनके अंदर बहुत ज्यादा है कि हम भक्ति करके देखे तो क्या होता है.


तो भगवान कहते हैं कि ये चारों प्रकार के लोग जो हैं वो उदारमना हैं,वो महात्मा हैं.क्यों?क्योंकि ये मेरी शरण में आते हैं.किसी भी बहाने से आते हैं मगर मेरी शरण में आते हैं.मुझे याद करते हैं.

तो बहुत सुन्दर बात भगवान ने बतायी है कि आप भगवान को यदि याद करते हैं तो आप उनकी नजरों में आ जाते हैं.आप उनके प्यारे हो जाते हैं.है न.भगवान आपको बुद्धियोग प्रदान करते हैं और अगर आप ये सोचे कि भई भक्ति में क्या रखा है,क्या नही रखा है,क्या स्वाद है भक्ति का आप हमें बताईये.क्या आप भगवान को दिखा सकते हैं तो बहुत मुश्किल है इसका जबाव देना.मै तो आपको बस एक कहानी के बारे में ही बता सकती हूँ जिसे सुनकर के आप ये समझ पायेंगे कि बहकी का रस क्या है.

एक बार एक राजा था.राजा ने एक संत से पूछा कि आप हमें ये बताईये कि लोग क्यों कहते हैं कि भक्ति करो.आखिर भक्ति में क्या है तो संत ने कहा कि मै तुम्हे बता सकता हूँ कि भक्ति में क्या है.पर तुम मुझे ये बताओ कि आम का स्वाद क्या है.राजा ने कहा कि आम का स्वाद मीठा है.तो संत ने कहा हाँ,हाँ चीनी भी तो मीठी होती है तो क्या वो आम है.राजा ने कहा -नही.तो फिर बताओ न आम का स्वाद क्या है.अब राजा को कुछ भी समझ नही आया कि क्या जबाव  दे तो फिर संत ने कहा कि ठीक है मै तुम्हे जबाव देता हूँ.जाओ आम मंगाओ.आम लाया गया.राजा ने वो आम लिया और संत को दिया.संत ने कहा कि ये आप हमें मत दीजिए.इसे आप छीलिये और खाईये.राजा ने आम को छीला और उसे खाया.खाकर कहा कि हाँ अब समझ आया कि आम का स्वाद कैसा है.

संत ने कहा-हाँ यही तो मै चाहता था.तुम इसे खाओ तभी समझ आएगा कि आम का स्वाद क्या है.आम का स्वाद कैसा है तुम इसे शब्दों में बयां नही कर सकते.इसीप्रकार से भक्ति में काया रस है.भगवान में क्या रस है,भगवान की भक्ति कैसे आपको विमल बना सकती है,ये शब्दों में बयां नही कर सकते.इसके लिए हमें भक्ति करनी होगी.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा.अब हम चर्चा करते है एक अन्य श्लोक पर.ब्बहुत ही सुन्दर श्लोक है.ध्यान से सुनिए.

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥(भगवद्गीता,10.10)

अर्थात्
जो लोग प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरंतर लगे रहते हैं उन्हें मै ज्ञान प्रदान करता हूँ जिसके द्वारा वो मुझ तक आ सकते हैं.

तो देखिये भगवान बहुत सुन्दर बात आपको यहाँ बताते हैं.ये एक information है.एक सूचना है आपके लिए.भगवान कहते हैं कि जो लोग प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरंतर लगे रहते हैं और पहले श्लोक में आपने सुना भी.पहले श्लोक में भगवान ने बहुत सुन्दर तरीके से आपको बताया भी कि यदि आप किसी कामना से ग्रस्त हैं या मोक्ष की कामना ही क्यों न हो या कोई कामना न भी हो तो भी आपको अपनी हर कामनासहित आपको भगवान के द्वार जाना चाहिए.क्यों?

इसका उत्तर अब भगवान इस श्लोक में दे रहे हैं.भगवान कहते हैं कि देखिये आते,आते,आते आपको हमसे प्रेम हो जायेगा.बार-बार जब आप भगवान को याद करेंगे,भगवान के पास जायेंगे तो आपको भगवान से प्रेम होकर रहेगा.आप भगवान को देखेंगे या भगवान के सामने बैठकर उनका glorification करेंगे. उनकी स्तुति गायेंगे तो आपको भगवान से प्यार हो ही जायेगा और जब ऐसा होगा तो क्या होगा? तो आप उनकी सेवा उनकी सेवा करने लग जायेंगे.

याद रखियेगा कि हर इंसान कि फितरत है,हर इंसान का स्वभाव होता है कि वो सेवक होता है.चाहे वो भगवान की सेवा कर ले या फिर माया की सेवा कर ले.किसी की भी सेवा कर ले.सेवा उसे करनी ही होती है.बिना सेवा के कोई भी व्यक्ति रह नही सकता.

तो भगवान कहते हैं कि मै आपको ज्ञान प्रदान करता हूँ.कब? जब आप मेरे पास आते हैं तब.तो ज्ञान प्राप्त करते     है भगवान से.भगवान जब आपको ज्ञान देते हैं तब आपको समझ में आता है कि अरे ! माया कि नही मुझे तो भगवान की सेवा करने के लिए ये हीरा जन्म मिला है.एक opportunity मिली है,एक मौका मिला है.इस मौके को मै हाथ से जाने नही दे सकता.आप उस मौके का इस्तेमाल भगवान की सेवा में करने लगते हैं और जब आप ऐसा करते हैं तब द्वार खुल जाते हैं.रास्ते खुल जाते हैं जिसके द्वारा,जिस पर चल करके आप सीधा भगवान से contact कर सकते हैं.भगवान तक पहुँच सकते हैं.

क्यों जरूरी है भगवान तक पहुँचना?क्यों जरूरी है भगवान को अपने बीच में लाना? बहुत जरूरी है अगर आप अपने तनावों से मुक्ति चाहते हैं.आप अपने मै से मुक्ति चाहते हैं,यदि आप सुखमय जीवन व्यतीत करना चाहते है,यदि आप शांति की तलाश में हैं,यदि आपको सुन्दर जीवन चाहिए इस जीवन के बाद.यदि आपको शाश्वत जीवन की आकांक्षा है तो आपको भगवान की तरफ चलना ही होगा ये याद रखिये.
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समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे है एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.

तेषां   भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥(भगवद्गीता,10.10)

अर्थात्
जो लोग प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरंतर लगे रहते हैं उन्हें मै ज्ञान प्रदान करता हूँ जिसके द्वारा वो मुझ तक आ सकते हैं.

तो देखिये यहाँ कुछ शब्दों पर यदि आप ध्यान देंगे तो आपको इस श्लोक के मायने खुद-बी-खुद समझ आ जायेंगे.सततयुक्तानां सतत यानि निरंतर.युक्तानाम यानि भगवान से युक्त हो करके और भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌  भजन करना है,भगवान का कीर्त्तन करना है,भगवान को याद करना है.जब आप ईश्वर को याद करेंगे तो ईश्वर को याद आप इसलिए मत कीजिये,इसप्रकार से मत कीजिये कि मों उनको याद करने कि जो कार्यवाई
है वो बहुत बोझ है आप पर.यदि आप बोझ की तरह करेंगे तो बात बनेगी नही. भगवान ने शर्त्त रखी है प्रीतिपूर्वकम्‌  .प्यार से याद करो.प्यार से.

आप देखिये.किसी रिश्ते के बारे मे भी सोचिये.जो कोई भी रिश्ता जो आपको बहुत अजीज है,बहुत प्रिय है.आप उसके बारे में सोचिये.अगर आप किसी से formality के तौर पे संबंध निभाएंगे तो क्या वो संबंध दूर तक जा सकेगा जब तक कि उसके बीच में प्यार न हो.लेकिन अगर आपको किसी से बहुत प्यार होगा और आप कह भी नही पायेंगे लेकिन आपकी आँखें,आपके जितने भी काम है, वो सारे-के-सारे वो इशारा कर देंगे कि आप बहुत प्रेम करते हैं और तब वो संबंध दूर तक जाएगा.हमेशा के लिए आपका साथ निभाएगा.

ऐसे ही भगवान के साथ हमारा संबंध है.याद रखिये यदि आप भगवान को समझना चाहते हैं तो पहले अपने-आप को समझने का प्रयास कीजिये.जब अपने-आप को समझ लेंगे.जब आप समझ लेंगे कि मै आत्मा हूँ.आप समझ लेंगे कि मै कभी भी जन्म और मृत्यु के बीच में नही आता.शरीर में आता हूँ.शरीर का जन्म होता है ,शरीर की ही मृत्यु होती है.मेरी मृत्यु नही होती और न ही मेरा जन्म होता है.तब आप समझ जायेंगे कि मै जब आत्मा हूँ.मेरा जन नही है,मेरी मृत्यु नही है तो भगवान का जन्म और भगवान की मृत्यु कैसे हो सकती है.नही हो सकती.भगवान शाश्वत है क्योंकि आप तो शाश्वत है न भगवान के अंश होने के नाते.

लेकिन शाश्वत अंश अपने अंशी से बिछड़ गया है इसीलिए दुखी है,इसीलिए depressed है ,इसीलिए disturbed है.तो क्या करे?

वापस जाना होगा.भगवान की तरफ मुडना होगा.हम संसार की तरफ मुड़े बैठे हैं तो भगवान कको भूले बैठे हैं और माया हमें बार-बार याद दिलाती है.बार-बार कष्ट देती है.बार-बार दुःख देती है.बार-बार आईना दिखाती है कि ये जगह आपकी नही है.आप अपनी सुन्दर जगह को छोड़ करके आये है.वापस जाने का प्रयत्न कीजिये.भगवान कहते हैं कि जो इसतरह से मेरी तरफ मुड़ता है उसे मै बुद्धियोग देता हूँ.जी हाँ.वो अपनी बुद्धि का इस्तेमाल मेरी सेवा में करता है.सोचिये कितना सुन्दर gift है भगवान का आपके लिए.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं एक श्लोक पर.बहुत ही प्यारा श्लोक है:

तेषां   भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥(भगवद्गीता,10.10)

अर्थात्
जो लोग प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरंतर लगे रहते हैं उन्हें मै ज्ञान प्रदान करता हूँ जिसके द्वारा वो मुझ तक आ सकते हैं.


अब सवाल ये उठता है कि क्यों जरूरी है भगवान तक जाना?क्यों ? क्या मिलेगा हमें भगवान तक जाने से.अरे अपने घर में भी तो सुखी हैं.है न.आप यही सोच रहे हैं न.टेलीविजन देखते हैं,अच्छा खाते है,malls में जाते हैं,रेस्टोरेंट में जाते हैं,जाकर के अच्छी-अच्छी चीजें order करते हैं और उन चीजों का हम सेवन करते हैं.है न.तो फिर क्या जरूरत है भगवान के पास जाने की.क्यों जाये हम भगवान के पास.लेकिन एक बात याद रख लीजिए कि शायद आप भूल जाते हैं कि ये जन्म और मृत्यु दुःख है.कई बार अपने निज जनों का,अपने प्रिय जनों की मौत देखते हैं.बीमारियाँ देखते हैं,आपको बीमारियाँ होती है,आपके अपनों को बीमारियाँ होती हैं,आप सोचिये-क्या ये दुःख नही? कितनी बडी पीड़ा है.महीनों अस्पताल में लटके रहना.सोचिये.कौन नही चाहेगा ऐसी नारकीय जिंदगी से छुटकारा पाना.

और भगवान कहते हैं कि तुम कुछ नही करो सिर्फ मुझे प्राप्त करो.मै तुम्हे छुटकारा दिला दूँगा.तुमने जितने भी पाप किये हैं मै तुम्हे उनसे मुक्त कर दूंगा.

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥(भगवद्गीता,18.66)


भगवान ने तो ये आपको वचन दिया है कि आपको कुछ नही करना है.सिर्फ मेरी शरण भर लेनी है.शरण ले लेंगे तो मै आपको मुक्त कर दूंगा.आपको इस जेल से मुक्ति मिल जायेगी और क्या चाहिए.सोचिये.

क्योंकि हम कीचड़ में गिरे हुए हैं, यही पैदा हुए हैं तो हमें ये कीचड़ अच्छा लगता है.हमें जानकारी भी नही है कि इसके अलावा भी एक बहुत सुन्दर जिंदगी हो सकती है और ऐसी जिंदगी को हम myth मानते हैं.हम सोचते हैं कि ऐसा संभव नही है क्योंकि हम fail हो गए है,हम असफल हो गए हैं ऐसी जिंदगी को create करने में.हमने प्लास्टिक बनाया,हमने कंप्यूटर बनाया.हमने क्या-क्या नही बनाया.पर आज वही प्लास्टिक,वही सब कुछ हमें लील रहा है.हमें खत्म कर रहा है.सोचिये.कितने दुःख की बात है.हमारे अपने creations,हमारे अपने आविष्कार हमें खा रहे है और हम कहते हैं कि हम सुखी हैं.हमने जितने ही आविष्कार कर रहे हैं उतनी ही global warming हो रही है.उतना ही आपका वातावरण तप्त हो रहा है और हम कहते हैं कि हमने बहुत सुन्दर दुनिया कि रचना कर डाली.

आप किसी के भी घर में जाईये.ज्यादातर समान आपको कांच के या फिर प्लास्टिक के मिलेंगे.सुन्दर डिजाइन के,बहुत ही प्यारे डिजाइन के लेकिन वो भी युग था जब सुन्दर-सुन्दर सामान मिला करते थे सोने-चांदी के.लेकिन आज वो मयस्सर नही.पर आप कहते हैं कि ये सभ्यता मुझे प्यारी है.सोचिये.होश में आईये.ऐसा संभव नही है कि आप यहाँ सुखी रह सके.इसीलिए भगवान आपको कहते हैं कि मुझ तक आओ.और भगवान कहते हैं कि यदि आप प्रेम करोगे मुझसे तो मै आपको ऐसा बुद्धियोग दूंगा कि आप उस बुद्धि को मेरी सेवा में लगा के मुझे प्राप कर पाए.है न सुन्दर बात.
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कार्यक्रम में आपका फिर से स्वागत है.अब बारी है आपके प्रश्नों को लेने की.
प्रश्न:R.K.Puram से सुहाना पूछती है कि संसार तीन गुणों से बना है-सतोगुण,रजोगुण और तमोगुण.तो ऐसे में इन तीन गुणों से ऊपर कैसे उठा जा सकता है?
जबाव :सुहाना आपने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा.कई बार लगता भी यही है कि हम इन तीन गुणों में एकदम फंसे हुए हैं.नीचे तक धंसे हुए हैं.देखिये जो सतोगुण है वो भी बंधन का कारण है.भगवान कहते हैं कि
सुखसङ्‍गेन बध्नाति ज्ञानसङ्‍गेन चानघ ॥(भगवद्गीता,14.6)
सुख और ज्ञान के साथ ये आपको बाँध देता है और आप सुख के आदी हो जाते हैं.ज्ञान के आदी हो जाते हैं और ज्ञान का अहंकार आपमें प्रवेश कर जाता है.आप भक्ति की तरफ कदम नही उठा पाते हैं.यानि कि सतोगुण भी बहुत अधिक मदद नही कर सकता है आपकी इस भव बंधन को छुड़ाने में,काटने में.आपको निगुण होना होगा यानि कि आपको शुद्ध सत्व में स्थापित होना होगा.भगवान कहते भी है :

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्येतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥(भगवद्गीता,14.26)



जो  व्यक्ति अव्यभिचार यानि कि शुद्ध भक्ति मेरी करता है.व्यभिचार यानि कि मिश्रित.अव्यभिचार यानि कि शुद्ध भक्ति करता है मेरी वह व्यक्ति संसार के,प्रकृति के इन तीनों गुणों को लांघ जाता है.

तीनो गुणों को लांघ जाता है तो कहाँ स्थित हो जाता है.भई अगर आप लाँघ के बाद कही तो स्थित होने.लटके तो नही रह सकते.भगवान कहते हैं कि वो ब्रह्मभूत अवस्था को हासिल कर लेता है.
ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।(भगवद्गीता,18.54)
न तो उसे शोक होता है  और न किसी चीज की आकांक्षा होती है.न कुछ पाने की इच्छा होती है और न कुछ खोने से डर लगता है.क्यों?क्योंकि तब उसे पता चल जाता है कि भगवान ही तो सब कारणों के अंतिम कारण हैं.भगवान के कारण ही तो ये सब कुछ मौजूद है.तब वो प्रसन्न हो जाता है,भगवान को प्राप्त कर लेता है.
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