Tuesday, August 30, 2011

भगवान को समझने के लिए आप सिर्फ कल्पना का सहारा नही ले सकते:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 6th Aug, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.एक दिन मै मंदिर गई.वहाँ देखा कि एक सज्जन प्रभु की प्रतिमा के आगे बैठकर आँसू बहा रहे थे.कभी उनके आँसू बहते तो कभी होंठो पर मुस्कान तैर जाती.दूसरे लोग उन्हें देखकर हैरान होते.एक ने तो कह भी दिया कि अजी दिखावा है सब.तो दूसरे ने कहा कि माना ये भगवान की मूर्ति है पर पत्थर की ही तो बनी है.वो देख थोड़े ही पाती है.फिर ये अपने भाव किसे दिखा रहे हैं.ये कहने के साथ ही उन्होंने प्रसाद का डिब्बा पुरोहित जी को दिए और बोले कि भोग लगाकर दीजिए तो.

उनकी बात सोचकर मै सोचने लगी कि यदि पत्थर की एक मूर्ति देख नही पाती तो खा कैसे सकती है.या फिर ये लोग सिर्फ रस्मे निभा रहे हैं.मैंने उनसे पूछ ही लिया कि भाई साहब आपको क्या लगता है,प्रभु आपके प्रसाद को खाते हैं?तो वे तपाक से बोल उठे कि नही जी खाते थोड़े हैं.अगर खाने लग जाए तो कोई भी उन्हें भोग नही लगायेगा.मुझे पता चल गया कि जनाब पूजा-पाठ करते जरूर हैं पर भगवान में विश्वास नही करते.उन्हें पता ही नही कि जिस भगवान को वे पत्थर कहते हैं वो पत्थर भी प्रभु की ही शक्ति है.क्या वैज्ञानिक अपने लैब में क्या पत्थर बना सकता है?जो भगवान कण-कण में हैं वो पत्थर में क्यों नही?आपने पत्थर देखना चाहा  तो पत्थर मिला.भावुक भक्त को तो पत्थर में भगवान दिख गए और कृपा भी बरसा गए.उसका हृदय शुद्ध हो गया.

इसीलिए तो शास्त्र कहते हैं

न नामरुपे गुणजन्मकर्मभि-
र्निरूपितव्ये तव तस्य साक्षिणः |
मनोवचोभ्याममनुमेयवर्त्मनो 
देव क्रियायां प्रतियन्त्यथापि हि ||(श्रीमद्भागवत,10.2.36)

अर्थात्
हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


तो सुना आपने भगवान के बारे में कितनी सुंदर बात कही गई है.है न.यहाँ साफ़ तौर पर बताया गया है कि भगवान को समझने के लिए आप सिर्फ कल्पना का सहारा नही ले सकते.भगवान का नाम,भगवान का रूप,भगवान के गुण,भगवान के जन्म और भगवान के कर्म ये दिव्य हैं.इन्हें जड़ बुद्धि से आप नही समझ सकते.आप अपनी आँखों से भगवान का दिव्य रूप नही देख सकते क्योंकि आपकी आँखें जड़ वस्तुओं को देखने की आदी है.

तो जो लोग भगवान के बारे में सिर्फ कल्पना करते रहते हैं और कल्पना के आधार पर भगवान के बारे में निष्कर्ष निकालते रहते हैं ऐसे लोग कभी भी भगवान को तत्त्व रूप में नही जान सकते.भगवान को जानना है तो आपको सिर्फ और सिर्फ भक्ति का सहारा लेना पडेगा.जब कोई व्यक्ति भगवान की प्रेम भक्ति में संलग्न होता है,जब कोई व्यक्ति भगवान से प्रेम करने लगता है,जब कोई व्यक्ति प्रेम से भगवान की सेवा करने लगता है तो जानते हैं क्या होता है?तब भगवान स्वयं प्रकाशित हो जाते हैं.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


तो देखिये कितनी सुंदर बात प्रभु के बारे में.भगवान को यदि आप जानने चले पाने बल पर,अपने knowledge के बल पर,अपने रहन-सहन के बल पर,अपना जो background है उसके बल पर तो आप प्रभु को नही जान सकते.भगवान को जानने के लिए आपको भगवान के प्रति समर्पित होना होगा.पूर्णरूपेण समर्पित.अन्यथा आप सोचे कि भगवान का जो नाम है उसे लेकर के हम क्या सच में भवसागर पार कर पायेंगे.हो सकता है कि इसप्रकार के doubts आपके मन में आने लगे.

तो भगवान का नाम दिव्य है.ये श्लोक आपको बताता है.वो कोई भौतिक नाम नही है.ये नाम ऐसा है,जिसे आप लेते रहेंगे,लेते रहेंगे तो आप कभी थकेंगे नही.आपको नित्य नवीन रस की अनुभूति होगी.प्रभु का नाम ऐसा है जिसमे आपको शांति प्राप्त होगी.वो शांति कैसी?परा शांति प्राप्त होगी.याद है न आपको,आप परा प्रकृति हैं प्रभु की और परा प्रकृति को परा शांति की आवश्यकता होती है.परा शांति भगवान के नामों में छुपी है और भगवान का नाम ऐसा है जो भगवान से अभिन्न है.भगवान और भगवान का नाम एक है.ये आप जानते हैं.है न.

देखिये यदि आप किसी भौतिक वस्तु का नाम लेते हैं तो आप नोट करना कि थोड़ी ही देर में आपको थकावट महसूस होने लगेगी.आप बोर हो जायेंगे लेकिन भगवान का नाम यदि आप सारा दिन भी लेते रहे तो धीरे-धीरे नाम रस जागृत हो उठेगा.आपकी जिह्वा पर वो ऐसा लगेगा कि आप नाम के बगैर रह ही नही पायेंगे.यहाँ तक कि जब आप सोने जायेंगे तब भी आपके ह्रदय में भगवान का नाम गुंजारित हो रहा होगा,गूँज रहा होगा.आप आजमा के देख सकते हैं.

जब आप भगवान का नाम लेने लगेंगे तो आपके हृदय में जितने भी विकार हैं,जितने अशांति है,जितनी भी बेचैनी है वो दूर होने लगेगी.धीरे-धीरे नाम अपना असर दिखाने लगेगा और आपके दिल में भगवान के प्रति भक्ति पहले से ही है लेकिन वो सुप्तावस्था में है,सो रही है.किन्तु जैसे ही आप भगवान के नाम का स्मरण करेंगे,भगवान के नाम का कीर्तन करेंगे तो भगवान का नाम आपको वो भक्ति वापस दे देगा.वो भक्ति जागृत हो जायेगी.भगवान भी कहते हैं:
"नाहं तिष्ठामि वैकुंठे योगिनां  हृदयेषु वा |
तत्र तिष्ठामी नारद यत्र गायन्ति मद्भक्ताः ||"(पद्मपुराण)


"हे नारद ! न तो मै अपने निवास वैकुंठ में रहता हूँ,न योगियों के ह्रदय में रहता हूँ.मै तो उस स्थान में वास करता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरे पवित्र नाम का कीर्तन करते हैं और मेरे रूप,लीलाओं और गुणों की चर्चा चलाते हैं."

तो यदि आपको भगवान को बुलाना है अपने पास,यदि आप भगवान को देखना चाहते हैं तो आप भगवान के नाम का कीर्तन कीजिये,भगवान के नाम का जाप कीजिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

न नामरुपे गुणजन्मकर्मभि-
र्निरूपितव्ये तव तस्य साक्षिणः |
मनोवचोभ्याममनुमेयवर्त्मनो 
देव क्रियायां प्रतियन्त्यथापि हि ||(श्रीमद्भागवत,10.2.36)

अर्थात्

हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


तो भगवान का दिव्य नाम,ये सबके समझ में नही आता और इसीतरह से भगवान का दिव्य रूप सबको दिखता नही,सबके लिए प्रकाशित नही होता.भगवान कहते भी हैं:

नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।(श्रीमद्भगवद्गीता,7.25)
कि मै अपने आप को योगमाया से ढँक लेता हूँ,सबको नजर नही आता लेकिन यदि आप उन्हें देखना चाहे तो आप देख सकते हैं.क्यों?क्योंकि भगवान हैं और उन्हें देखा जा सकता है.पर उसकी condition है, शर्त्त है:
प्रेमांजनच्छुरितभक्तिविलोचनेन(ब्रह्म-संहिता)
जी हाँ,आपको अपनी आँखों में प्रेम का काजल लगाना होगा तो भगवान नजर आ जायेंगे.

लेकिन ये जो प्रेम है न वो भगवान से कर पाना बहुत सहज नही है.प्रेम आप अपने आसपास के लोगों से करते हैं,अपने बच्चों से करते हैं,अपनी पत्नी से करते हैं.लेकिन प्रेम भगवान से कर पाना ये जरा मुश्किल है,बहुत मुश्किल है.न ही हमें इसकी कोई training मिली होती है,न ही हमें इसकी कोई जरूरत महसूस होती है.पर यदि आप भौतिक जिंदगी से उब जाए,बोर हो जाए,कही से आपको ये पता चल जाए कि आपकी मनुष्य योनि का लक्ष्य ही प्रभु प्राप्ति है तो शायद आप उस दिशा में बढ़ जाए,शायद आपके ह्रदय में श्रद्धा जागृत हो जाए और धीरे-धीरे साधुसंग करके,भजन क्रिया प्रारंभ करके आप कभी-न-कभी प्रेम के स्तर को भी प्राप्त कर लेंगे.

जो लोग भगवान से प्रेम करते हैं वही भगवान को देख पाते हैं.एक जगह पर भक्त भगवान से कहता भी है कि
"हे भगवान!ये जो आपके चेहरे पर,आप पर ये रोशनी का पर्दा पड़ा है,ये रोशनी का पर्दा हटा लीजिए.मैआपको देख नही पा रहा.ये रोशनी मुझे आपको देखने नही दे रही.ये रोशनी का पर्दा हटा लीजिए."

शास्त्रों में ये जिक्र आया है.ठीक वैसे ही जैसे सूरज.मान लीजिए कोई सुबह जल्दी नही उठता.कोई ऐसा व्यक्ति है जो सुबह कभी भी जल्दी नही उठ पाता है और उसने हमेशा सुबह दस बजे का सूर्य देखा है.दिन में बारह बजे का सूर्य देखा है और अगर कोई उसे बताए कि सूरज में भी ठंढक होती है.तो उसे बड़ी हँसी आयेगी.वह कहेगा कि कैसी बातें कर रहे हो.मैंने तो सूरज को आग बरसाते देखा है.

लेकिन कोई कहे कि तुम सुबह-सुबह सूर्योदय देखो और तब वो देखेगा कि ये orange color का सुंदर-सा ball जैसा ये क्या है और इसे देख करके आँखें ठंढी-ठंढी हो रही हैं.अच्छा लग रहा है ह्रदय को,मन को.तो सूरज को भी आप नंगी आँखों से देख सकते हैं.लेकिन कब?जब वो उदित हो रहा है या अस्त हो रहा है.तो एक condition है,एक परिस्थिति है.इसके लिए आपको सुबह जल्दी उठना होगा या शाम को देर तक आसमान में टकटकी बाँधे देखना होगा.

इसीप्रकार से आप भगवान के रूप का दर्शन कर सकते हैं पर एक शर्त्त है.क्या? आपको भगवान के प्रति प्रेम से पेश आना होगा.आपके व्यवहार में भगवान के प्रति प्रेम-ही-प्रेम हो.आपकी क्रियाओं में भगवान के प्रति प्प्रेम-ही-प्रेम हो तो भगवान स्वयं को प्रकशित कर देंगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


तो देखिये भगवान के गुण,भगवान का जन्म और भगवान का कर्म लोगों को मोहित कर देता है.लोग सोचते हैं कि भगवान यदि पृथ्वी पर आ गए और वे नर रूप में आ गए,इंसान का रूप धर के आ गए तो वे इंसान हो गए.कई लोगों को हमने कहते भी सुना है कि भाई देखिये ये इंसान का रूप धर के आये हैं तो इन्हें सुख और दुःख सहना पड़ेगा.जबकि एक बात आप जान लीजिए कि भगवान यहाँ पर अगर आते हैं तो जो कुछ भी लीला वो करते हैं वह सिर्फ लीला होती है.कोई भी कर्म भगवान को बांध नही सकता.

हम और आप कर्म करते हैं क्योंकि हमने किसी खास गुण को अपने अंदर समाहित किया होता है--सतोगुण,रजोगुण,तमोगुण कुछ भी.लेकिन भगवान तो इन गुणों के निर्माता हैं.तो भगवान को ये गुण बिलकुल भी प्रभावित नही करते.सिर्फ कार्य करते दिखते  हैं लेकिन वे किसी कर्म से लिप्त नही होते.ये बात बारबार रट लीजिए,याद कर लीजिए तब आप भगवान को समझ पायेंगे.

तो भगवान के कर्म और जन्म ये दिव्य हैं.इसीलिए भगवान ने कहा है कि
"जो मेरा जन्म और कर्म की दिव्यता को समझ लेता है वो व्यक्ति कभी भी इस भौतिक जगत में दुबारा जन्म नही लेता."

तो भगवान के जन,कर्म ,गुण,दिव्य नाम को  समझना बहुत ही जरूरी है.तो यदि आप सोचे कि हम स्वयं शास्त्र पढ़ लेते हैं तो हमें समझ आ जाएगा.तो ये संभव नही है क्योंकि हमजिं गुणों में इससमय हैं-सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण.किसी भी गुण में हम होंगे तो शास्त्र की जो व्याख्या है अपने मनमाने ढंग से करेंगे.और कही से हम ये भी कहेंगे कि शास्त्र को भी तो किसी ने लिखा होगा.हम ये नही समझ पायेंगे कि जो भगवान कण-कण में हैं,जिस भगवान ने सूरज को ये आदेश दिया है कि यहाँ इतने समय उदित हो और इतने समय अस्त हो.ऐसे भगवान कितने-कितने दिव्य हैं.उनके बारे में हम अपनी मनमानी व्याख्या करेंगे तो ये अपराध होगा.

उनके बारे में अगर आपको तत्त्व से जानना है तो किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाना होगा जो भगवद तत्त्व में विशेषता हासिल किये हुए हो.जो भगवद् तत्त्वविद हो,जो गुरु हो,जो भगवान के प्रति समर्पित हो.

तो भगवान यहाँ पर बड़े सुन्दर तरीके से आपको ये बता रहे हैं कि आप उन्हें सिर्फ और सिर्फ भक्ति से जान सकते हैं.तो भक्ति बहुत सहज भी है और बहुत मुश्किल भी है.ऐसे लोग जिन्हें शास्त्र के वचनों पर यकीन है,विश्वास है कि जो शास्त्र कहते हैं -आप भक्ति कीजिये ,भगवान को प्राप्त कीजिये और भगवद्धाम जाईये,ऐसे लोग भक्ति कर सकते हैं.जिनमे संशय है वे कभी भी भक्ति की राह पर नही आ सकते और उनके लिए ही भगवान ने कहा है कि ऐसे लोग बारबार पतित हो जाते हैं,बारबार उन्हें मृत्यु पथ पर वापस लौटना पड़ता है.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


और सही बात है कि भगवान को अपनी कल्पनाओं से नही जान सकते,ये बात समझ ही चुके होंगे आप.देखिये भगवान को जानने के लिए जरूरी है कि हमारे अंदर कुछ गुण उत्पन्न हो.हमारे अंदर दैवीय गुण उत्पन्न हो.और तब हम भगवान को जान सकते हैं.तो इसी बात पर मुझे एक कथा याद आ गई:

एकबार एक professor वेदों के ऊपर lecture दे रहा था अपने students को. lectures के दौरान उन्होंने कहा कि सच्चा ज्ञानी व्यक्ति वो है जो कि बहुत कठिन समय में भी मुस्कराता रहे.ये बात बच्चों को समझ में नही आयी.उन्होंने कहा कि sir,ऐसा कैसे हो सकता है.बहुत कठिन समय आये तो कैसे मुस्कराया जा सकता है.ये बात सुनकर professor ने कहा कि हाँ,तुम सही कहते हो.मैस्वयं भी नही मुस्करा पाता ऐसे समय लेकिन मै एक ऐसे आदमी को जानता हूँ.हमारे ही इधर एक आदमी है जो बिल्कुल सच्चे संत की तरह रहता है.उसे संत कह सकते हो.

जानते हो ,वह एक अनाथ था.जब वो बड़ा हुआ तो एक दुर्घटना में उसकी दोनों टाँगे चली गई और इसीतरह से संघर्ष करते-करते,करते-करते वो  यहाँ तक पहुंचा.मतलब उसका जीवन दर्द की कहानी है लेकिन जब तुम उससे मिलोगे तो देखोगे कि वह हमेशा मुस्कराते रहता है.ये सुनकर सारे विद्यार्थियों ने कहा कि sir,हम तो ऐसे बहादुर आदमी से मिलना चाहते हैं.सबके सब उस व्यक्ति के घर गए और जब उन्होंने दरवाजा खटखटाया तो 73 साल का एकव्यक्ति व्हील चेयर पर बैठकर के दरवाजा खोलने आया और बहुत ही प्यार से मुस्कराते हुए उसने कहा कि कहिये मै आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ.बच्चों ने कहा कि sir,हम ये जानना चाहते हैं कि आप इतनी मुश्किलों में भी,इतने दर्द में भी,इतने pain में भी कैसे मुस्कराते रह सकते हैं.

उस आदमी ने कहा कि देखिये मुझे दर है ये बताते हुए कि आप एक गलत address पर आ गए हैं,गलत पते पर आ गए हैं.मुझे तो कभी कोई दुःख ही नही सहना पड़ा क्योंकि भगवान हमेशा ही मेरे प्रति दयावान रहे,दयालु रहे.उन्होंने अपनी दया के जरिये हमेशा-हमेशा मेरी रक्षा की.मै आपको कैसे सीखा सकता हूँ कि difficulties में कैसे मुस्कराया जा सकता है.कठिन समय में कैसे मुस्कराया जा सकता है.

ये उत्तर सुनकर के सारे के सारे students अवाक रह गए और सही बात है,भगवान भी तो यही बात कहते हैं कि
"हे कुन्तीपुत्र ! जो सुख और दुःख है वो अशाश्वत हैं,अस्थायी है और वे इसीतरह से आते-जाते हैं जैसे कि सर्दी और गर्मी.तो इन्हें सहना सीखिए" 

तो बहुत ही सुन्दर बात है.हमारे अंदर जब ऐसे गुण उत्पन्न होंगे हम तभी प्रभु को समझने का प्रयास कर पायेंगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और अब बारी है आपके sms को कार्यक्रम में शामिल करने की.
SMS: महाराष्ट्र से अजय कहते हैं कि हम हवा के बिना एक पल भी नही जी सकते फिर भी पानी को जीवन क्यों कहते हैं?
Reply: अजय जी ,आप बिल्कुल सही बात कहते हैं.हवा के बिना हम एक पल भी नही जी सकते.लेकिन पानी को जीवन इसलिए कहते हैं कि मीठा पानी कम मात्रा में आता है न.गर्मियों में आपके घर में जो पानी है वो बहुत मुश्किलों से आता है.आता है कभी नही भी आता है.आपको रतजगा करना पड़ता है.रात को जागना पडता है.इसीलिए कहा जाता है कि पानी की बूँद-बूँद कीमती है,पानी बचाए.

इसीलिए पानी को जीवन कहा जाता है क्योंकि पानी बड़ी मुश्किल से आपके घर तक आता है.लेकिन देखा जाए तो पानी भी जीवन है,हवा भी जीवन है,पृथ्वी भी जीवन है,अग्नि भी जीवन है.तो इस चीज को आप याद रखिये.

SMS: मल्कागंज,कबीरबस्ती से विनोद कुमार लिखते हैं कि  परा और अपरा प्रकृति का अर्थ समझाईये.
Reply: विनोद जी,परा प्रकृति तो आप स्वयं हैं न भगवान की.भगवान ने बताया है कि जितने भी जीव हैं वे मेरी परा प्रकृति हैं.

Wednesday, August 3, 2011

जो हमारे ह्रदय में बैठे हैं उस ईश्वर से हमें प्रेम करना सीखना है:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 31st July, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.कुछ दिन पहले मैंने  उड़ती-उड़ती खबर सुनी कि कुछ दिन बाद scientist ऐसी दवा बनायेंगे जिससे कोई मरेगा नही.सब सदा के लिए जीयेंगे,अमर हो जायेंगे.मई सोचने लगी कि मान लीजिए कि वो दवा खाकर हम जीते रहे और जीते-जीते बूढ़े होते चले गए और फिर बुढ़ापे में खाट पकड़ ली पर प्राण निकले ही नही.खूब तकलीफ झेल रहा हो शरीर.मन बारबार छटपटा रहा हो कि भगवान अब तो उठा लो.लेकिन अमरता की गोली खाकर प्राण निकले ही नही तब सोचिये क्या हालत होगी इंसान की.

और ऊपर से नए लोग तो पैदा होंगे ही पर मरे कोई नही.तो अंततः सब कम पड़ जायेंगे.आप भूख से तड़प रहे होंगे,प्यासे होंगे पर न खाना है,न पानी और न ही प्राण निकलेंगे.तो दुःख भरा जीवन शाश्वत अगर हो जाए तो तकलीफ लोगों को हो जायेगी.कितनी तकलीफ हो जायेगी.इसीलिए देखा जाए तो मृत्यु भी एक वरदान है.पर मृत्यु हल नही है,कोई solution नही है.

सोचिये क्यों इंसान चाहता है कि वो कभी मरे ही नही?क्योंकि वो कभी मरता नही.आत्मा सदा रहती है पर शरीर बदल जाते हैं.क्यों हमे दुःख झेलने पड़ते हैं जबकि हम दुखी होना नही चाहते?जवाब है कि दुखों को हम खुद चुनते हैं.भगवान हमें बताते हैं वो तरीका जिससे हम अमरता को हासिल कर सके बिना कष्ट के.सुख आनंद मिले वो भी बिना दुखों के.भगवान हमारा मार्गदर्शन करते हैं इन शब्दों के द्वारा:
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्‌॥
अर्थात्
"हे अर्जुन ! परमेश्वर प्रत्येक जीव के ह्रदय में स्थित है और भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र में सवार की भांति बैठे समस्त जीवों को अपनी माया से घुमा(भरमा) रहे हैं.हे भारत ! सब प्रकार से उसी की शरण में जाओ.उसकी कृपा से तुम परम शांति को तथा परम नित्यधाम को प्राप्त करोगे."

तो देखा कितना सुंदर श्लोक है.बहुत-ही प्यारा.भगवान बता रहे हैं कि ईश्वर प्रत्येक जीव के हृदय में स्थित है.आपने सुना भी है:
मोको कहाँ ढूंढें से बंदे,मै तो तेरे पास में.
सही बात है.भगवान हमारे पास हैं,हमारे ह्रदय में हैं.तो ये थोड़ी खुशी की बात है और डर की बात भी है.क्यों?क्योंकि खुशी की बात ये हैं कि  अरे वाह! भगवान ,ईश्वर हमारे पास है.कितनी खुशी की बात है कि हम अकेले नही हैं.हमारे साथ भगवान हैं.लेकिन डर की बात ये है कि अब मै कुछ बुरा नही सोच सकता.किसी के लिए गलत नही सोच सकता.स्वार्थी नही बन सकता.किसी का अहित नही कर सकता.क्यों?क्योंकि भगवान सब देख रहे हैं.देख रहे हैं.नोट हो रहा होगा.फल मिलेगा.

तो बहुत सतर्क होना है.जो हमारे ह्रदय में बैठे हैं उस ईश्वर से हमें प्रेम करना सीखना है.है कि नही.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

"हे अर्जुन ! परमेश्वर प्रत्येक जीव के ह्रदय में स्थित है और भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र में सवार की भांति बैठे समस्त जीवों को अपनी माया से घुमा(भरमा) रहे हैं.हे भारत ! सब प्रकार से उसी की शरण में जाओ.उसकी कृपा से तुम परम शांति को तथा परम नित्यधाम को प्राप्त करोगे."

तो बड़ी सुन्दर बात भगवान आपको बता रहे हैं.भगवान जो आपके हृदय में स्थित हैं वो जानते हैं कि आप क्या चाहते हैं?वो जानते हैं कि आप चाहते हैं कि माया का सुख लूट सके.इसीलिए भगवान आपको अपनी माया से घुमाते रहते हैं.जैसेकि मान लीजिए एक बहुत बड़ा झूला है और वो झूला कभी ऊपर जाता है,कभी नीचे आता है.तो उस झूले पर कोई किसी को पकड़ कर बिठा नही देता जबरदस्ती.उस झूले पर बैठने के लिए लोग खुद जाते हैं.और उस झूले पर बैठकर सोचते हैं कि हमे आनंद मिलेगा.है न.

इसीप्रकार ये जो संसार है,जो भगवान की भौतिक शक्तियों से निर्मित है.भगवान की माया शक्ति.तो इस संसार में हम अपनी मर्जी से आते हैं क्योंकि भगवान हमारे ह्रदय मे हैं.वो हमारी इच्छाओं को नोट करते हैं.तो भगवान कहते हैं कि मै सब जीव के हृदय में हूँ और आज आपको जो भी परिस्थिति मिली है वो आपको आपके कर्मों के द्वारा मिली है.आपने इसप्रकार के कर्म किये और उसका result आपको भोगना पड़ा है.

कौन दे रहा है ये फल?भगवान कहते हैं-मै क्योंकि मै आपके हृदय में बैठकर सब हिसाब-किताब रख रहा हूँ और आपको यथोचित फल भी प्रदान कर रहा हूँ.तो भगवान हमें यानी कि सारे जीवों को,जीव का अर्थ आप जानते ही हैं.सिर्फ मनुष्य ही नही.जीव का अर्थ है जो भी प्राणी आप अपने सामने देखते हैं ,सब ,भगवान की माया से यहाँ-वहाँ घूम रहे हैं.किन्तु तो भी उस माया से निकलने का एक रास्ता है.

भगवान कहते हैं कि अगर आप सभी प्रकार से भगवान की शरण लेंगे,उस परमेश्वर की शरण लेंगे जो आपके हृदय में स्थित है तो आपको परम शांति प्राप्त होगी.और आपको परम नित्यधाम भी प्राप्त होगा.शांति तो मिलेगी साथ ही नित्य धाम भी मिलेगा.दोनों चीजें एक साथ आपको प्राप्त हो जायेगी.आज आप अशांत हैं क्योंकि आपने ये नही देखा कि जो इस माया के पीछे है वो driver,जो इसे drive कर रहा है.भगवान जो कह रहे हैं कि मै सबको घुमा रहा हूँ. उसे आपने नही देखा,उसे ignore कर दिया जबकि भगवान कहते हैं कि अगर आप उन तक जायेंगे,उन्हें समर्पित होंगे तो ही आपको परम शांति प्राप्त होगी.

तत्प्रसादात्परां शान्तिं ,उन्ही के प्रसाद से,उन्ही की कृपा से.अपने आप अगर शांति को खोजने निकलेंगे,सुख-चैन को खोजने निकलेंगे तो वह आपको कभी प्राप्त नही होगा.जान लीजिए.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्‌॥
अर्थात्
"हे अर्जुन ! परमेश्वर प्रत्येक जीव के ह्रदय में स्थित है और भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र में सवार की भांति बैठे समस्त जीवों को अपनी माया से घुमा(भरमा) रहे हैं.हे भारत ! सब प्रकार से उसी की शरण में जाओ.उसकी कृपा से तुम परम शांति को तथा परम नित्यधाम को प्राप्त करोगे."

तो देखिये भगवान ने यहाँ एक तरह से ये स्पष्ट कर दिया है कि वो लोग जो घूम रहे हैं माया के यंत्र पर सवार हो करके.वो ऐसे लोग हैं जो भगवान की शरण में नही गए.वो ऐसे लोग हैं जो अपनी इच्छाओं की शरण में गए.वो ऐसे लोग हैं जो इच्छाओं रूपी मृग मरीचिका को शांत करने के लिए दौड़े जा रहे हैं,दौड़े जा रहे हैं और वे इस छलावे में,इस भूल में सदा-सर्वदा रहेंगे कि उन्हें इस माया के संसार में,इस माया रूपी जगत में सुख प्राप्त हो सकता है.

यहाँ सुख तो है लेकिन perverted रूप में है.असल सुख तो भगवद्धाम में है.परम नित्य धाम में है.भगवान के धाम में है और ये भी स्पष्ट भगवान ने इस श्लोक में कर दिया है.भगवान ने अपने सबसे प्रिय सखा,अपने सबसे प्रिय शिष्य को ये हिदायत दी है,आदेश दिया है कि वो भगवान की शरण में जाए.

आप भी भगवान के प्रिय बन सकते हैं यदि आप भगवान की शरण में आये.आप भी भगवान से प्रेम कर सकते हैं यदि आप भगवान की बातों को माने.यदि आप भगवान की सत्ता को ही नही,भगवान को अपने जीवन का अभीष्ट अंग बना ले.ये न सोचे कि पहले मुझे ये तय करने दो कि भगवान है कि नही है.देखिये इतनी गूढ़ बातें भला कौन बता सकता है.

मान लीजिए कि किसी ने एक breeze बनाया है तो breeze का निर्माता ही तो आपको बताएगा कि इस breeze में क्या खास बात है.इसमें क्या समस्याएं पैदा हो सकती है.इसके साथ आपको किस प्रकार से व्यवहार करना चाहिए.इसीप्रकार से इस जगत को भगवान ने बनाया है.ये जीव भगवान के अंश हैं और दो तरह के जीव हैं.ये बात भी इस श्लोक से उभरकर के सामने आयी है.वो लोग जो भगवान की शरण नही लेते और वो घुमे जा रहे हैं गोल-गोल और वो लोग जो भगवान की शरण लेते हैं.

जो लोग की शरण नही लेते वे बेचारे ऊपर-नीचे आते-जाते रहते हैं.कभी उच्च लोकों में जाते हैं,कभी निम्न लोकों में जाते हैं.कभी पृथ्वी पर बने रह जाते हैं.वो कभी भी छुटकारा प्राप्त नही कर पाते.लेकिन दूसरे लोग जो भगवान की शरण में जाते हैं ,सुखी रहते हैं क्योंकि उन्हें तत्काल परम शांति प्राप्त हो जाती है और बाद में प्राप्त होता है भगवान का परम नित्य धाम.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर  जिसमे भगवान कह रहे हैं:

"हे अर्जुन ! परमेश्वर प्रत्येक जीव के ह्रदय में स्थित है और भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र में सवार की भांति बैठे समस्त जीवों को अपनी माया से घुमा(भरमा) रहे हैं.हे भारत ! सब प्रकार से उसी की शरण में जाओ.उसकी कृपा से तुम परम शांति को तथा परम नित्यधाम को प्राप्त करोगे."

तो आप ये जानते होंगे कि प्रत्येक जीव भगवान की परा प्रकृति है और ये जो material चीजें,निर्जीव चीजें आप देख रहे हैं-भूमि,वायु,जल,अग्नि,आकाश, ये सब भगवान की अपरा प्रकृति है.है न.हम परा प्रकृति जब अपरा प्रकृति से सुख उठाने की कोशिश करते हैं,इसमें सुख ढूंढते हैं तो हमारे प्रयास विफल हो जाते हैं.जिन चीजों में आप सुख ढूंढते हैं वो याद रखियेगा इन्ही पाँचों में तब्दील हो जायेंगी.जल जल में मिल जाएगा.आकाश आकाश में मिल जाएगा.पृथ्वी पृथ्वी में मिल जायेगी.इसीतरह से पाँचों चीजें पाँचों में मिल जायेगी.कार्बन आपके हाथ में रह जाएगा.

और सोचिये शाश्वत आत्मा जो कभी नही मरती वो कार्बन में खुश होती है?वो मिट्टी से खुश होती है?तो मिट्टी से खुश होने की जो प्रवृति है हमारी वो भूल है क्योंकि यहाँ आपको खुशी मिलेगी नही.भगवान कहते हैं कि भाई आप परा प्रकृति है तो आपको परा शांति,परा सुख प्राप्त होना चाहिए.परन्तु वो तभी प्राप्त होगा जब आप परा शक्ति के मूल को पकड़ोगे.जहाँ से ये परा और अपरा दोनों आयी है.कहाँ से आयी है?परा शक्ति कहाँ से आयी है?परा शक्ति भगवान से आयी है.


हम भगवान के अंश हैं ये आप जान चुके हैं.जिसके अंश हैं यदि आप उसके तरफ नही मुडेंगे तो आप अपने जीवन को विफल कर देंगे.तो ऐसा नही होना चाहिए.हमें भगवान के तरफ मुडना चाहिए.भगवान से  प्रीत लगानी चाहिए.
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Tuesday, August 2, 2011

कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते हैं,भगवान को याद करके:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 30th July, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.आप किसी को कहिये कि भाई भक्ति कीजिये.प्रभु की भक्ति करने के लिए ही तो मनुष्य जीवन मिला है.तो आप जानते हैं कि लोग क्या कहते हैं.कह देते हैं की अरे भाई अभी तो बहुत काम है,बच्चों को पालना है,पोसना है,नौकरी करनी है.इतने busy हैं हम.time कहाँ है जो भक्ति करे.कुछ तो ये भी कह देते हैं कि भक्ति करना तो बेकार लोगों का काम है.हमारे पास तो बहुत काम है.कुछ लोग कहते हैं कि जब free हो जायेंगे तब भगवान के बारे में सोचेंगे.अभी तो बहुत व्यस्त हैं.

भगवान जानते हैं कि इंसान उन तक न आने के लिए बहुत बहाने बनाता है.इसीलिए तो भगवान कहते हैं :
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ ॥(भगवद्गीता,8.7)
अर्थात्
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो भगवान देखिये यहाँ कितना सुन्दर तरीका आपको बता रहे हैं.कैसे आप भक्ति में रहे.कैसे आप भगवान का ध्यान करे.कईबार लोग मुझसे पूछते हैं कि हम कभी मंदिर नही जाते,हम पूजा-पाठ नही करते तो इसका मतलब क्या हम पापी हैं?भगवान ने देखिये यहाँ नही कहा है कि आप मेरे दरवाजे पर आईये,मेरे दर पर आईये.भगवान ने कहा है कि जहाँ भी आप हैं,जो कुछ कर रहे हैं करते रहिये.किसी चीज को छोडने की जरूरत नही है.कुछ मत छोडिये लेकिन मेरा चिंतन अवश्य कीजिये.कैसे ,र्वेषु कालेषु,हर वक्त,हर समय,हर पल,हर क्षण मेरा स्मरण करते रहिये.

तो भगवान ने बहुत सुन्दर नुस्खा बताया है कि कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते हैं,भगवान को याद करके.है न.भगवान को याद करना बहुत सहज है.बहुत ही सहज है.लेकिन इसके लिए हमें ये याद रखना होगा कि भगवान से हमारा संबंध क्या है?अगर आपको कोई संबंध नजर नही आता तो आप कोई संबंध बना लीजिए.कोई संबंध जोड़ लीजिए.फिर उस संबंध को पोषित कीजिये.धीरे-धीरे,धीरे-धीरे आप उस संबंध के आदी हो जायेंगे और जब वो संबंध आप भगवान से अच्छी तरह से जोड़ लेंगे तब आपको आदत हो जायेगी भगवान के बारे में सोचने की.यही तरीका है जिससे आप हर समय,हर क्षण भक्ति कर सकते हैं और आपका समय भी जाया नही होगा.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो देखिये यहाँ अर्जुन को कहा गया है कि तुम्हे मेरा चिंतन करना चाहिए और युद्ध भी करना चाहिए.दोनों चीजें करनी चाहिए.कभी आपने सुना है कि दो चीजें,दो काम एक साथ हो.थोडा मुश्किल है न.दो काम एक साथ कैसे हो सकता है.लेकिन भगवान कहते हैं कि मन से मेरे बारे में सोचो और तन से अपने कर्त्तव्य को पूर्ण करो.अर्जुन योद्धा थे तो ये अर्जुन का कर्त्तव्य था कि वे युद्ध करे.तो भगवान ने कहा कि देखिये जब आप इतने हिंसक कार्य को कर रहे हैं तो बेशक ये हिंसक कार्य पाप है.लेकिन याद रखना कि ये मेरी आज्ञा से आप कर रहे हैं.मैंने आपको आज्ञा दी है कि आप जो अन्यायी लोग हैं उनका वध करे.

जैसे कि अगर सरकार किसी सैनिक को यह आज्ञा देती है कि वह front पर जाकर लड़ाई करे और वे जब अधिकाधिक शत्रुओं का वध करते हैं तो फिर सरकार उन्हें मेडल देती है.यह पाप नही है.इसीप्रकार जब भगवान की आज्ञा है की आप जाकर के आतातायी लोगों का वध करे.अधर्म का नाश करे और धर्म की स्थापना कीजिये तब ये पाप नही है.और वो भी किसतरह से कीजिये.मेरे लिए कीजिये.मुझे याद करते हुए कीजिये.

तो देखिये याद करने का काम आँखों का नही.याद करने का काम नाक का नही है.याद करने का काम कान का नही है.याद करने का काम सिर्फ और सिर्फ मन का है.शुद्ध मन का है.

तो मन युद्ध नही कर रहा.तन युद्ध कर रहा है.मन खाना नही बना रहा तन खाना बना रहा है.मन पढाई नही कर रहा तन पढाई कर रहा है.है न.तो भगवान ने यहाँ तरीका बताया है कि भाई जो कुछ कर्त्तव्य आपका है उस कर्त्तव्य को आप पूरा करिये.काम करने के लिए भगवान मना नही करते.अर्जुन ने एकबार कहा कि मै जाकर के संन्यास ले लेता हूँ.किसी गुफा में बैठकर के भगवान का नाम लूँगा.ये हिंसा मुझे नही करनी है.तो भगवान ने कहा कि नही,ये तो आपका कर्त्तव्य है क्योंकि आप योद्धा है,क्षत्रिय हैं.

तो इसीप्रकार से अगर एक student कहे ,एक विद्यार्थी कहे कि नही मुझे तो भगवान का नाम लेना है ,मुझे पढ़ाई नही करनी.तो आप इस श्लोक से सीख सकते हैं.भगवान कहते हैं कि नही,पढाई करनी है.अपने कर्त्तव्य को पूर्ण करना हैऔर उस पढाई को भी मुझे समर्पित कर दो.और जब तुम ऐसा करोगे तो उस कार्य से बंधोगे नही.पहली बात.और दूसरी बात कि तुम मेरा चिंतन करो.मेरे बारे में सोचो,मेरे ख्यालों में डूबो.तुम ऐसा करोगे तो तुम सारे कामों को करते हुए भी मुक्त रहोगे और मुझे प्राप्त कर पाओगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर :

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ ॥(भगवद्गीता,8.7)
अर्थात्
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो बहुत सुन्दर बात भगवान ने बतायी है.देखिये कितने ही लोगों के मन में ये संशय रहते हैं कि जो इंसान भक्ति करने के लिए आगे बढ़ता है वो फिर कुछ और नही कर सकता.या फिर जो बहुत कुछ करता है,बहुत सारे काम करता है वो भक्ति नही कर सकता.भगवान ने कहा है कि आप कितने ही कार्यों को करे,कोई समस्या नही है.पर आपके विचार मुझ तक आने चाहिए.आपके विचारों में मेरा वास होना चाहिए.मन से भगवान का चिंतन करना है.मन से.और बुद्धि से भगवान की शरण ग्रहण करनी है.
मन और बुद्धि को भगवान के चरणकमलों में स्थिर करना है.

मन कही जाने न पाए.जिस काम को आप कर रहे हैं मन उस में इतना न रम जाए कि वो काम ही आपके लिए सर्वोपरी हो जाए.भगवान बिल्कुल हाशिए पर आकर खड़े हो जाए.ऐसा मत करना.या आप जिस काम को कर रहे हैं .ऐसे मत करना कि उस काम से इतना प्रेम हो जाए,इतना प्रेम हो जाए कि आपको इस जीवन की अशाश्वतता नजर न आये.आपको ये नजर ही न आये कि ये काम भी एक दिन समाप्त होगा.जो कुछ मई जोड़ रहा हूँ वो भी समाप्त होगा.ये शरीर भी समाप्त होगा.तब क्या होगा?

तब चौरासी लाख योनियों में जाना पड़ेगा.धक्का मार दिया जाएगा हमें.और भगवान यहाँ chance दे रहे हैं.भगवान ने आपसे कुछ नही माँगा.भगवान ने नही कहा कि आप मुझे अपना धन दे दो.भगवान ने नही कहा कि आप अपना सुंदर तन दे दो.भगवान ने आपसे कुछ भी तो नही माँगा.मगर भगवान ने कहा कि जिस संदूक में आप बांध हो न,उस संदूक की चाभी भी आप ही के पास है.ये वही बात हो गई कि आदमी किसी बड़े से संदूक में झाँक रहा हो और फिर उसमे गिर जाए और वो संदूक अपने आप बंद हो जाए.ताला लग जाये.और चाभी उसी आदमी के पास है.

तो भगवान यहाँ बता रहे हैं कि जो यह मायाजाल रचा हुआ है न.इस मायाजाल को काटने के लिए मैंने आपको अस्त्र भी प्रदान कर दिए हैं.सुंदर दो अस्त्र आपको दिए हैं-मन और बुद्धि.भगवान कहते हैं कि इन अस्त्रों को इस्तेमाल करो और ये जो भवबंधन है उसे काटकर मेरे पास आ जाओ.मुझे प्राप्त कर लो.मै बाहर खड़ा हूँ.हाथ फैलाये.और चाभी तुम्हारे पास है.है न.

तो भगवान ये कहते हैं कि मन और बुद्धि भगवान को समर्पित कीजिये ताकि आप अंततः भगवान को प्राप्त कर पाए.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक परभगवान कहते हैं कि
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो भगवान ने सहज उपाय बताया है मगर ये उपाय बहुत-बहुत मुश्किल भी है.आसक्त लोगों के लिए बहुत मुश्किल है.भगवन ने कहा कि आपको अपना काम कर्त्तव्य समझकर करना चाहिए.लेकिन हम लोग क्या करते हैं?हम अपने कर्म में इतना,इतना डूब जाते हैं और उन कर्मों को हम अपनी खुशी के लिए करते हैं.अपनी तुष्टि के लिए करते हैं और जब हम ऐसा करते हैं तब हमारे मन और हमारी बुद्धि दोनों उस कर्म के अधीन हो जाती है.बार-बार हम उसी काम के बारे में सोचते हैं.बार-बार हम सोचते हैं कि कैसे compete करे,इससे हमें क्या लाभ होगा.उस लाभ को प्राप्त करके हम क्या करेंगे,क्या नही करेंगे.बहुत सारे plans हम बनाते हैं.

तो भगवान ने कहा है कि ये सब नही करना है.जो काम तुम कर रहे हो उसे मुझे अर्पित कर दो.मेरे लिए काम करो.अपने लिए मत सोचो.ये मत सोचो कि इस काम से मेरा क्या भला होगा.मेरा विकास कैसे होगा.मै कैसे आगे जाऊंगा.भगवान तो कहते हैं कि कुछ नही करना है.सिर्फ दुनिया भर के कामों को कर्त्तव्य के रूप में करना और उन कामों को मुझे अर्पित कर देना.इससे तुम मुक्त रहोगे.लेकिन जो अपनी  position  से आसक्त होता है या जो पैसों के प्रति आसक्त होता है,जो कार्यों के प्रति आसक्त होता है वो कभी भगवान को प्राप्त नही करना चाहता.कभी नही प्राप्त करना चाहता.सिर्फ सोचता है कि इसी जीवन में मै Best कर लूँ,इसी जीवन में इतना नामी बन जाऊं,इसी जीवन में मेरा इतना यश गान हो जाए.

सिर्फ मेरा,मेरा,मै,मेरा.यही सोचता रहता है और जो व्यक्ति इसप्रकार की सोच रखता है वो प्रभु को सपने में भी प्राप्त नही कर सकता.वो जो भी काम करेगा उसे अंततः निराशा ही हाथ लगेगी.वो जो कुछ करेगा उससे उसे दुःख ही प्राप्त होगा.चाहे वो इस दुःख को समझ पाए या न समझ पाए.कभी भी तुष्ट नही होगा.संतुष्टि उसे कभी प्राप्त नही होगी..

और भगवान इस श्लोक में आपको बहुत अच्छी तरह से बताते हैं कि आप सारे कार्य करना लेकिन मुझे प्राप्त करने का प्रयास जरूर करना.ये न हो कि अपने कार्यों में आप इतने मगन हो जाए कि मुझे प्राप्त करने के बारे में आप सोचे ही न.ये आपको बेकार बात लगे.आप सोचे कि बुढ़ापे में भगवान  को प्राप्त करने के बारे में सोचेंगे.ये गलत ख्याल है.इसीलिए तो भगवान ने कहा है कि बुढ़ापा क्यों?बचपन से आप अपना काम कीजिये.खेलना है खेलिए.लेकिन मन और बुद्धि यदि भगवान में लगे रहेंगे तो किसी भी काम से,किसी भी कर्म से आप बंधेंगे नही.

भगवान कहते हैं कि इसीतरह से एक-न-एक दिन तुम मुझे प्राप्त कर सकोगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो सही बात कही है भगवान ने.बहुत प्यारी बात बतायी है कि यदि हम भगवान में अपने मन को लगा ले किसी भी तरह से.मन हर बार यहाँ-वहाँ जायेगा लेकिन तो भी यदि हम मन को खींचकर प्रभु के चरणों में वापस लाये और बारम्बार इस चीज का अभ्यास करे तो एकदिन मन भगवान में लग जाएगा.आपके मन में जितने भी प्रश्न हैं उनके उत्तर स्वतः आपको मिल जायेंगे.और अगर आपके प्रश्नों के उत्तर आपको न मिले तो आप अपने गुरु के पास भी जा सकते हैं.महात्माओं के पास जा सकते हैं.इन्हें अध्यात्म का ज्ञान है.

ऐसे ही एक राजा जिनके मन में कुछ प्रश्न थे.जिनके उत्तर की उन्हें तलाश थी.वे एक महात्मा के पास पहुँचे.महात्मा ने कहा कि अभी मेरे पास समय नही है.मुझे  अपनी वाटिका बनानी है.राजा भी उनकी मदद करने में जुट गए.इतने में एक घायल आदमी भागता-भागता आया और गिरकर बेहोश ही गया.महात्माजी ने उसके घाव पर दवाई लगायी.राजा भी उसकी सेवा में लग गए.जब आदमी होश में आया तो राजा को देखकर चौंक उठा और राजा से क्षमा मांगने लगा.अब राजा ने उसका कारण पूछा तो उसने बताया कि वो राजा को मारने के इरादे से निकला था लेकिन सैनिकों ने उसके मंसूबों को भांप लिया और उसपर हमला कर दिया.वह किसीतरह जान बचाकर भागता हुआ इधर पहुँचा है.महात्माजी के कहने पर राजा ने उसे क्षमा कर दिया.

तब राजा ने महात्मा से प्रश्न किया कि मेरे तीन प्रश्न हैं.सबसे पहला कि उत्तम समय कौन-सा है,सबसे बढ़िया काम कौन-सा है और सबसे अच्छा व्यक्ति कौन है?महात्मा बोले कि हे राजन! इन तीनों प्रश्नों का उत्तर तो तुमने पा लिया है.सबसे उत्तम समय है वर्तमान.आज तुमने वर्तमान समय का सदुपयोग करते हुए मेरा हाथ बँटाया और वापस जाने को टाला जिससे तुम बच गए.वो व्यक्ति बाहर तुम्हारी जान ले सकता था.और जो सामने आ जाए वही सबसे बढ़िया काम है.आज तुम्हारे सामने बगीचे का काम आया और तुम उसमे लग गए.वर्तमान को सँवार कर उसका सदुपयोग किया.इसी कर्म ने तुम्हे दुर्घटना से बचाया.और सबसे बढ़िया व्यक्ति वह है जो प्रत्यक्ष हो.उस आदमी के लिए अपने दिल में सद्भाव लाकर तुमने उसकी सेवा की.इससे उसका ह्रदय परिवर्तित हो गया और तुम्हारे प्रति उसका वैर भाव धुल गया.

इसप्रकार तुम्हारे सामने आया व्यक्ति,शास्त्रानुकूल कार्य और वर्तमान समय उत्तम है.

तो कितनी सुन्दर बात महात्माजी ने राजा को बतायी.आप जो कहते हैं कि हम बुढ़ापे में भक्ति कर लेंगे तो पता नही कि बुढ़ापा आएगा कि नही आयेगा.वर्तमान समय ही सबसे उत्तम है.वर्तमान समय को हाथ से जाने न दीजिए.इसी में भक्ति कीजिये और भगवान रूपी रत्न को प्राप्त कीजिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और अब बारी है आपके SMS को कार्यक्रम में शामिल करने की.
SMS: मयूर विहार से ममता कहती हैं-A great thinker was asked,what is the meaning of life.He replied -life itself has no meaning.Life is an opportunity to create a meaning.
Reply: अर्थात्
किसी बहुत बड़े दार्शनिक से पूछा गया की जीवन का अर्थ क्या है तो उसने कहा की जीवन का अपने आप में कोई अर्थ नही है.जीवन एक ऐसा अवसर है जिसमे आप एक अर्थ पैदा कर सकते हैं.

बहुत सुन्दर बात कही है आपने.सच में जीवन एक सुअवसर है.
लब्ध्वा सुदुर्लभमिदं बहु सम्भवान्ते 
मानुष्यमर्थदमनित्यमपीह धीरः|(श्रीमद्भागवत,11.9.29)
बताया गया है कि बहुत ही मुश्किल से ये सुदुर्लभ अवसर आपको प्राप्त होता है मनुष्य रूपी जीवन का जिसमे आप अपनी समस्त समस्याओं से सदा-सर्वदा के लिए छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं.बारम्बार जन्म  लेना,बारम्बार मरना,ये सारी जो सब समस्याएं हैं,जीवन के कारण जो समस्याएं हैं सबसे सदा के लिए मुक्ति हो सकती है.यदि आप इसी जीवन में भगवद्भक्ति प्राप्त कर ले तो.

तो वाकई जीवन एक सुनहरा अवसर है.
SMS: सूरजपुर बागपत से अनिल पूछते हैं कि ये बताईये भगवान कहाँ हैं?
Reply: अनिल जी भगवान कहाँ नही हैं?पहले आप मुझे ये तो बता दीजिए.भगवान कहाँ नही हैं?लेकिन भगवान कहते हैं:

मै अपने अव्यक्त रूप से हर जगह व्याप्त हूँ.वैसे ही जैसे सूरज आसमान में व्याप्त है और अपनी किरणों के द्वारा हर जगह पर व्याप्त है.इसीतरह से भगवान अपने लोक में व्याप्त हैं और जिसतरह सूरज अपनी किरण के रूप में हर जगह व्याप्त है,भगवान अपनी शक्ति के रूप  में हर जगह,कण-कण में व्याप्त हैं.कण-कण में,आप में हैं,मुझ में हैं,हर प्राणी में हैं.

तो भगवान हर जगह हैं.लेकिन हर जगह से भगवान को निकाल लेना,हर जगह में भगवान को देख पाना इसके लिए आपको प्रशिक्षण लेना पड़ेगा.आपको Training लेनी पड़ेगी.जब आप किसी व्यक्ति से जो कि तत्वविद हो,तत्व ज्ञानी हो,जो भगवद तत्व को जानता हो,उससे ये प्रशिक्षण लेंगे कि भगवान को कैसे देखा जाए तो मै आपको बताती हूँ कि आप भगवान को समझ पायेंगे और आपको भगवान जगह नजर आयेंगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम इस समय ले रहे हैं आपके SMS.
SMS: बागपत से दिलीप आर्य लिखते हैं कि ईश्वर पर भरोसा करना सीखना है तो परिंदों से सीखो.जब शाम को घर वापस जाते हैं तो उनके चोंच में कल के लिए कोई दाना नही होता.
Reply: दिलीप जी कितनी सुन्दर बात आपने लिखी है.पक्षी सचमुच इंसान से कितने अलग होते हैं.है न.पक्षियों के लिए यदि आप एक बोरा चावल डाल दे तो वे अपनी चोंच में भरकर उतना ही ले जायेंगे जितना उन्हें जरूरत है.वो कही पर जमा नही करते,जमाखोरी नही करते.वे  ये नही सोचते  कि हम अपना पेट भर लेंगे बरसो और बाकी लोग जाएँ नरक में.हमें क्या लेना-देना.

जबकि इंसान.इंसान तो सोचता है कि एक बोरी चावल क्यों?कही से भी और,और,और अनाज जमा किया जाए.

तो आपने बहुत सुन्दर बात लिखी है.पंछी जब शाम को घर लौटते हैं तो उनकी चोंच में कल के लिए कोई दाना नही होता.लेकिन हम कल के बारे में ही सोचते रहते हैं.आज को बिसरा देते हैं.वर्तमान जो कि सबसे उत्तम समय है.आपने सुना भी.उसे हम बिसरा देते हैं.भूल जाते हैं.उसके बारे में कुछ नही सोचते.बहुत दुःख की बात है.

आपने वाकई बहुत सुंदर बात लिखी है दिलीप जी.
SMS: सुमन सरोजनीनगर से पूछती हैं कि मन को भगवान में कैसे लगाऊं कि भगवान मन की जरूरत बन जाए.
Reply: सुमन जी बहुत सुन्दर प्रश्न है आपका कि मन को भगवान में किस तरह लगाऊं.और आज की चर्चा में बात भी यही रही कि भगवान कहते हैं:
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ 
अगर आप मुझे अपना मन और बुद्धि दे देंगे तो आप असंशय रूप से,बिना किसी शक के मुझे प्राप्त कर सकेंगे.

तो भगवान को आप तभी प्राप्त कर सकते हैं जब आप मन को भगवान में लगाये.लेकिन मन जब तक जगत में लगा रहेगा.जब तक आप इस जगत में सुख ढूंढते रहेंगे तब तक आपका मन भगवान में लगने वाला नही है.ये याद रख लीजिए.जिसदिन आप इस दुनिया के सुखों से बोर हो जायेंगे,उब जायेंगे और आपको इस दुनिया से मिलनेवाले सुख में कोई नवीनता नजर नही आयेगी.जब आपका मन नवीन रस के लिए मचल उठेगा.जब आपका मन ये जानना चाहेगा कि कैसे इस दुनिया के जंजाल से मै छुटकारा पाऊं?क्या करूँ मैं?जब आपको यहाँ का कोई सुख सुखी नही कर पायेगा तभी आपका मन भगवान के चरणों में जाएगा.

तो आप देखिये कि वो समय कब आता है आपके जीवन में.लेकिन फिर भी आप इतना तो कर ही सकते हैं कि आप भगवान का नाम लेते रहिये.भगवान का नाम लेते रहने से आपका मन शुद्ध हो जाएगा और आपका मन भगवान में लगेगा.
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Friday, May 27, 2011

भगवान सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता हैं :Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 26th March, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.अक्सर लोग भगवान को विभिन्न नामों से पुकारते हैं.कोई उन्हें पिता कहता है तो कोई स्वामी,कोई परमेश्वर तो कोई ईश्वर,कोई भगवान तो कोई परम महान.हर इंसान भगवान की ओर निहारता है.हर इंसान.अपनी मान्यता के अनुसार उन्हें किसी-न-किसी संबोधन से पुकारता है,बुलाता है.शास्त्र भी कहते हैं कि भगवान ही परम पिता हैं.पितामह भी वही हैं और माता भी असल में वही हैं.

हमारा आज का श्लोक भी भगवान के अनेक roles पर अनेक संबोधनों के साथ प्रकाश डाल रहा है.श्लोक ध्यान से सुनिए.श्लोक है:
पिता गुरुस्त्वं जगतामधीशो 
दुरत्ययः काल उपात्तदण्डः | 
हिताय चेच्छातनुभिः समीहसे 
मानं विधुन्वन् जगदीशमानिनाम् || (श्रीमद्भागवत,10.27.6)

अर्थात् 
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो देखिये यहाँ भगवान को कहा गया है कि वे सम्पूर्ण जगत के पिता हैं.जी हाँ,जो create करता है,जो सृजन करता है,जो बनाता है,जो रचना करता है वही तो पिता कहलाता है और शास्त्र कहते हैं कि भगवान ने ही सम्पूर्ण जगत को बनाया है.भगवान ने ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को बनाया है.भगवान ने ही सूरज,चाँद,सितारों को बनाया है.इसलिए भगवान सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के पिता हैं क्योंकि वही बीजप्रदः पिता हैं.भगवान कहते भी हैं:
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः । 
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ॥(भगवद्गीता,14.4)
भगवान स्वयं कहते हैं कि सभी योनियों को हे कुन्तीपुत्र मैंने ही बनाया है.सभी योनियों का बीज मैंने ही प्रदान किया है और बीज जो प्रदान करता है पिता उसे ही कहते हैं.

इसीलिए जो पिता होता है उसका अपने creation पर,अपनी रचना पर पूरा अधिकार होता है और उसका कर्त्तव्य भी होता है कि उसकी रचना,उसके बच्चे सही मार्ग पर चले.मार्ग से कही भटक न जाए.ये जिम्मेदारी पिता की होती है.तो पिता अनेक बार बहुत-ही,बहुत-ही विनम्र तरीके से पेश आता है अपने बच्चों के साथ और कई बार बहुत सख्त भी हो जाता है.

तो भगवान हमारे पिता हैं और कईबार वे बहुत ही प्यार से हमारे साथ पेश आते हैं किन्तु काल के रूप में वे अक्सर सख्त भी हो जाते हैं.तो हम भगवान की इन्ही विविध प्रकार की भूमिकाओं पर चर्चा करेंगे.आप नबे रहिये हमारे साथ.सुनते रहिये कार्यक्रम समर्पण.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
पिता गुरुस्त्वं जगतामधीशो 
दुरत्ययः काल उपात्तदण्डः | 
हिताय चेच्छातनुभिः समीहसे 
मानं विधुन्वन् जगदीशमानिनाम् || (श्रीमद्भागवत,10.27.6)

अर्थात् 
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो भगवान सम्पूर्ण जगत के पिता हैं.ये बात आप जानते हैं.हम कहते भी हैं:
तुम्ही हो माता,पिता तुम्ही हो.
और भगवान स्वयं भी कहते हैं :
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।(भगवद्गीता,9.17)
मै पिता भी हूँ,माँ भी हूँ और पितामह भी मै ही हूँ.तो संबंध तो स्थापित हो गया कि हमारे असली पिता भगवान हैं क्योंकि आत्मा भगवान का अंश है.भगवान कहते हैं:
ममैवांशो जीवलोके भगवद्गीता,15.7)
तो आत्मा असल में भगवान का अंश है.तो जिसका अंश है वही तो पिता हो सकता है.बेशक हम शरीर विभिन्न प्रकार के धारण करते हैं.इस योनि में हमारे पिता कोई और हैं.अगली योनि में कोई और होंगे.पिछली योनि में,पिछले जन्म में कोई और थे.लेकिन जो असल नाता है वो एकमात्र भगवान के साथ है.

और जैसे कि पिता अपने बच्चे के भले के लिए कई बार सख्त हो जाता है.जैसे मान लीजिए पिता ने अपने बच्चे को थोड़े पैसे दिए क्योंकि बच्चे ने कहा-पापा!पापा!थोड़े पैसे दे दो हमें स्कूल में ये पैसे मंगवाए गए हैं.कुछ extra course करना पड़ रहा है.पिता ने दे दिए और बच्चे ने झूठ बोल करके पैसों का गलत इस्तेमाल कर लिया.कही वो सिनेमा देखने चला गया.कही कुछ करने लगा और अचानक पिता को ये बात पता चली.पिता ने अपने बच्चे को दो थप्पड़ मार दिए और कहा कि आज रात का ये खाना नही खायेगा.इसे खाना मत देना या आज ये अपनी मम्मी के पास नही सोयेगा.ईसे बाहर के कमरे में सुला दो.यही इसकी सजा है.

तो देखने में लगेगा कि पिता कितने सख्त हो गए.लेकिन पिता ने बच्चे को control करने के लिए,उसके भले के लिए ही ये सजा दी.इसीतरह से कईबार हमें भी कुछ सजाएं मिलती है.कईबार हमारे भी आँसू निकल आते हैं.कई बार हम पर भी विपत्तियां पड़ती है.हम पर भी दुःख के पहाड़ टूट पड़ते हैं.लेकिन इन दुखों को इसीप्रकार से लेना चाहिए कि भगवान ने हमारे पाप कम करने के लिए,हमारा शोधन करने के लिए,हमे शुद्ध करने के लिए ही ये परिस्थियां हमें कृपा स्वरुप दी है.

जब आप ऐसा समझेंगे तो आप आगे बढ़ने लगेंगे.आपको अपने पिता से,भगवान से कोई शिकायत नही रहेगी.आप भी उन्हें प्रेम करने लगेंगे.याद रखिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक जिसका अर्थ है: 
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो यहाँ जो दूसरी बात कही गई है वो कहा है कि भगवान आप गुरु हैं.आध्यात्मिक गुरु हैं.भगवान आध्यात्मिक हैं.भगवान की ये जो माया है ये भौतिक है और भगवान आध्यात्मिक हैं और भगवान जानते हैं कि भाई ये जो मेरे अंश हैं वे भी आध्यात्मिक हैं.मेरे बच्चे भी आध्यात्मिक हैं.पर  माया से ढक दिए गए हैं.इन्होने इच्छा की थी कि मै इस माया को भोगूँ इसलिए इन्हें ढकना पड़ा ताकि इन्हें ये अभिमान बना रहे कि मै देह हूँ.देह समझेंगे अपने आप को तभी तो देह संबंधी रिश्तों को निभा पायेंगे.उनमे आनंद ढूँढ पायेंगे.

हालाँकि उनमे आनंद इतना होता नही है.हर चीज एक दुःख को जन्म देती है.लेकिन फिर भी भगवान जानते हैं कि आप भी आध्यात्मिक हैं तो भगवान गाहे-बगाहे ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देते हैं आपके लिए कि आपको इस जगत से दुःख मिले और आप एक उब महसूस करे.आप उब जाए और आप ढूँढे असल आनंद को.तब भगवान जो आपके ह्रदय में चैत्य गुरु के रूप में विद्यमान हैं.भगवान आपके ह्रदय में रहते हैं.वो जानते हैं कि मुझे अपने इस बच्चे को आध्यात्मिक दुनिया की तरफ मोडना है.

तो भगवान आपको किसी भक्त से मिला देते हैं या आपके अंदर एक ऐसी इच्छा को जगा देते हैं जो आध्यात्मिक इच्छा कही जा सकती है कि भाई ये सारी चीजें मैंने देख ली.इतने दुःख देख लिए.इस दुनिया पर कैसे विश्वास करूँ.इस दुनिया में कोई किसी का नही होता.आप इतने दुखी हो जाते हैं कि आपको भगवान को याद करना ही पडता है.जब आप भगवान को याद करते हैं और जब आपको पता चलता है कि भगवान से ही आपका असल नाता है तो आप पूर्णरूपेण भगवान के हो जाते हैं.दोनों हाथ उठा लेते हैं और कहते हैं कि भगवान मै सिर्फ-और-सिर्फ आपका हूँ.तब भगवान आध्यात्मिक गुरु की भूमिका निभाते हैं.आपके लिए ऐसे मार्ग को प्रशस्त कर देते हैं जिसपर चल करके आप अंततः इस भौतिक जगत से छूट सकते हैं.

तो ये सब अपने आप नही होता.जब भगवान की अहैतुकी कृपा होती है आप पर गुरु के रूप में तो ये होता है.तब आप पर विपदाएँ पड़ती हैं और आप उन विपदाओं से घबराकर भगवान की शरण ले लेते हैं और भगवान की यदि आप शरण ले लेते हैं तो सच में आप उदारमना कहलाये जायेंगे.आपका सौभाग्य तब जागृत हो जाएगा.याद रखिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
पिता गुरुस्त्वं जगतामधीशो 
दुरत्ययः काल उपात्तदण्डः | 
हिताय चेच्छातनुभिः समीहसे 
मानं विधुन्वन् जगदीशमानिनाम् || (श्रीमद्भागवत,10.27.6)

अर्थात् 
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो भगवान परम नियंता हैं.हम अपने आप को controller मानते हैं.नियंता मानते हैं.जो कमजोर होता है हम उनपर शासन चलाते हैं.boss अपने subordinate पर शासन चलाता है.पति अपनी पत्नी पर या पत्नी अपने पति पर.माँ-बाप अपने बच्चों पर.इसतरह से जो भी कमजोर होता है हम उसपर शासन चलाते हैं.है कि नही.

लेकिन याद रखिये कि आप बेशक अपने आप को ईश्वर समझ ले लेकिन परमेश्वर सिर्फ एक ही है और वो परम नियंता है.उनकी इच्छा के आगे आपकी इच्छा नही चलेगी.आप चाहे बड़े-बड़े महल बना ले.बड़ी-बड़ी सभ्यताओं का विकास कर ले लेकिन भगवान की जब इच्छा होगी तो वे सभ्यताएं पानी में समा जायेगी.वे सभ्यताएं भूकम्प के चपेट में आ जायेगी.आप कुछ भी कर ले लेकिन काल के आगे आपकी एक न चलेगी.आप सिर्फ अवाक होकर देखते रह जायेंगे कि जो चीज मैंने तिनका-तिनका करके बटोरी थी.इतना श्रम किया था.वो आज मेरे साथ नही है.

और फिर भगवान की परम इच्छा के आगे आपको घुटने टेकने ही पड़ेगे.आपको ये स्वीकार करना ही पड़ेगा कि कोई है जिसके हाथ में हमारी डोर है.कोई है जिसके हाथ में इस जगत की डोर है.कोई है जिसके हाथ में यहाँ के राजा-महाराजाओं की भी डोर है और वो परम नियंता,परम भगवान परमेश्वर हैं.है न.

तो भगवान दुर्लंघ्य काल है जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देते हैं.जैसे कि यदि एक जज किसी को कोई दंड देता है तो वो इसलिए देता है कि भाई इसके पाप कुछ कम हो सके.ये व्यक्ति सुधर सके.थोडा ये पश्चाताप  करे और फिर से एक अच्छा नागरिक बन जाए.इसीप्रकार से भगवान भी लोगों को दंड देते हैं,ये सोच करके कि इस दंड से ये आदमी सुधर जायेगा.ये आदमी पवित्र हो जायेगा.तो इसीलिए भगवान दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ  के लिए दंड देते हैं ताकि पापी अपने पाप से मुक्त हो सके.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो यहाँ पर एक शब्द आया है हिताय.भगवान जो कुछ करते हैं वो सारे जगत के लाभ के लिए करते हैं और जब ये सब होता है तो हम कईबार समझ नही पाते लेकिन बाद में भगवान की कृपा होती है तो समझ आता है.लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो समझना चाहते नही.जो भगवान को मानना चाहते नही.जिनके करनी और कथनी में फर्क होता है.ऐसी ही एक कथा मुझे याद आती है:

जोधपुर के नरेश थे जशवंत जी.वे बड़े ही न्यायी थे,प्रजा-वत्सल थे.उनके जीवन की नीति थी कि सबके सुख में अपना सुख मानना और प्रतिक्षण वे दूसरों का भला करने के लिए जागरूक रहते थे.एकबार उन्होंने सोचा कि मेरा ये एकलौता नौजवान कुंवर आज्ञाकारी है या नही.जरा इसकी परीक्षा लेनी चाहिए.तो उन्होंने कुंवर को बुलाया और कहा कि कुंवर मै जैसा कहूँगा क्या तुम वैसा करोगे.पुत्र ने हाथ जोड़कर बहुत ही विनम्र भाव से कहा कि पिताजी मै कभी भी आपकी आज्ञा का उल्लंघन नही करूँगा.कृपया आप आज्ञा देकर तो देखिये.

तो राजा ने कहा कि बेटा,मेरी हार्दिक इच्छा है कि जिसदिन मेरी मृत्यु हो जाए उस दिन जो कपड़े और आभूषण मेरे तन पर हो उनको उतरना मत और न उनकी अदला-बदली करना.जैसा का तैसा ही मुझे चिता पर जला देना.कोई तुम्हे कितना ही समझाए किन्तु तुम किसी की सुनना मत.कुंवर ने कहा कि पिताजी,ईस आदेश का मै पूर्णतया ध्यान रखूँगा.

राजा ने कुंवर का परिक्षण लेने का निर्णय किया.उन्हें यौगिक क्रियाओं का अच्छा अभ्यास था और वे साँस को रोकने क्रिया में माहिर थे.कुछ महीनों बाद एक दिन राजा ने बहुत ही बहुमूल्य कपड़े और आभूषण पहनकर कुंवर को बुलाया.जैसे ही कुंवर ने प्रवेश किया तो वे बोले कि कुंवर आज मेरे शरीर में काफी बेचैनी है.साँस रुक-रुककर आ रही है.पेट में भी काफी दर्द है.सिर पीड़ा से फटा जा रहा है.अचानक किस पाप का फल मुझे मिल रहा है जो भयंकर रोग ने मेरे शरीर पर आक्रमण कर दिया है.

ये कहते-कहते महाराज जसवंत सिंह ने साँस को रोक लिया और आँखें स्थित करते-करते जमीन पर लुढक गए.शरीर एकदम प्राणविहीन जैसा हो गया.मुँह से झाग भी निकल गया.बस अब तो कुंवर को विश्वास हो गया कि पिताजी मर गए हैं.राजमंत्री उसी समय वहाँ पर उपस्थित हुए.कुंवर ने मंत्री से कहा कि मंत्रीवर कुछ दिन पहले मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि जिसदिन मेरा देहावसान होगा उस दिन शरीर पर रखे हुए बहुमूल्य कपड़ो और आभूषणों को उतारना मत.मुझे उन्ही के साथ जला देना.

फिर मंत्रीवर मै सोच रहा हूँ कि जो होना था सो हो गया.अब तो आयु की डोरी टूट गई.उसे तो पुनः जोड़ा जा सकता नही.अब पिताजी नही रहे तो उनकी काया मिट्टी हो गई.यदि बहुमूल्य वस्त्र-आभूषण नही निकालेंगे तो ये सब व्यर्थ में काया के साथ ही जल जायेंगे.इसलिए मेरी इच्छा है कि ये सब वस्त्र-आभूषण उतारकर उन्हें कम कीमत वाले वस्त्र-आभूषण पहना दिए जाए जिससे राज्य का अधिक नुकसान न हो.यूँ ही वस्त्र और आभूषण मुझे बहुत पसंद हैं.यदि निकाल देंगे तो मै पहन लूँगा और जब ये काम आप कर ले उसके बाद ही सारी प्रजा को आप इनकी मृत्यु का समाचार देना.

ये सारी बातें राजा सुन रहे थे और सोच रहे थे कि इस संसार में मानव का स्वार्थ बहुत गहरा है.तभी तो महापुरुष कहते है कि स्वार्थ का ये संसार.सोचिये संसार इतना स्वार्थी है कि बेटा भी आपका अपना नही रहता.आपके अपने थे,हैं और रहेंगे सिर्फ भगवान.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो यहाँ एक और जानकारी आपको बड़ी ही खास दी गई है और वो ये कि भगवान जब पृथ्वी पर आते हैं.प्रकट होते हैं तो वे स्वेच्छा से आते हैं.अपनी इच्छा से आते हैं.कईबार लोग कहते हैं कि अरे भगवान ने जन्म लिया.वो भगवान कैसे गए.उनके जन्म में और आपके जन्म में ये फर्क है कि आप अपनी इच्छा से नही आते.आपको भेजा जाता है.आपके गुण और कर्म के द्वारा आपको जन्म लेना पड़ता है.कोई भी आपके माँ-बाप हो सकते हैं.आप अपने माँ-बाप को चुन नही सकते.

पर भगवान बहुत ही प्यारे हैं.भगवान अपने प्यारे-प्यारे भक्तों को अपने माँ-बाप होने का दर्जा देते हैं और जब भगवान अवतार लेते हैं तो बड़े ही ध्यान से सुनिए -भगवान उस समय धर्म की रक्षा करने के लिए अवतार लेते हैं.दुष्टों का संहार करते हैं और साधुओं की,भक्तों की रक्षा करते हैं.भक्तों को आनंद देते हैं और उनके आनंद के लिए वे विभिन्न प्रकार की लीलाएं करते हैं.

यहाँ बताया गया है कि जब भगवान दुष्टों का संहार भी करते हैं तो वो भी उनके लाभ के लिए होता है.ऐसे लोगों के लाभ के लिए जो अपने आप को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.भगवान हैं इस जगत के असली स्वामी लेकिन यदि कोई दुष्ट अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठे तो बताईये फिर आगे वो कैसे प्रगति कर पायेगा.वो तो वही रूका रह जायेगा.उसकी चेतना जगत में रह जायेगी और उसे बारम्बार जगत में आना-जाना पड़ेगा.इसीलिए भगवान दया करके उसके सामने ऐसे हालात पैदा कर देते हैं.ऐसे हालात पैदा कर देते हैं कि उसका सारा मनोबल टूट जाता है और वो समझ जाता है कि इस जगत का स्वामी मै नही हूँ.

ऐसे लोगों का भगवान मिथ्या गर्व दूर करते हैं.भगवान जब अवतार लेकर आते हैं और जब ऐसे दुष्टों का संहार भी करते हैं तो भी वे उन दुष्टों की भलाई के लिए ये काम करते हैं.इतना पाप  बढ़ चुका है कि अब कुछ हो नही सकता तो भगवान कृपावश ऐसे व्यक्ति को मृत्यु प्रदान करते हैं और मृत्यु के साथ ही उसका उद्धार भी कर देते हैं.उसे आध्यात्मिक लोक पहुँचा देते हैं.पर ये बात उस समय समझ नही आती लेकिन एक भक्त समझ जाता है कि भगवान ने देखों न कितनी कृपा कर दी है.

यही तो फर्क है एक भक्त में और एक अभक्त में.भक्त समझ जाता है और अभक्त समझ ही नही पाता कि भगवान बहुत दयालु हैं.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और अब बारी है आपके SMS की.
SMS: ये SMS भेजा है अंजली ने.कहती है कि बिना भक्ति के जीवन ऐसा हो जाता है जैसे समंदर के अंदर भी प्यासा बिन पानी के रह जाता है.
Reply: बिल्कुल सही बात है अंजली जी.मगर जो समंदर है उसकी quality ये है कि उसमे बहुत नमक होता है और आप मीठे पानी के आदी हैं.सिर्फ भक्ति में ही मिठास होती है और आप भक्ति की मिठास को ढूँढ रहे हैं लेकिन यहाँ-वहाँ चीनी खा रहे हैं और आपको लगता है कि यही मीठापन है.

भाई भक्ति कीजिये और तब जो मिठास आपको अनुभव होगी वस्तुतः वही आनंद है.

SMS: ये अगला प्रश्न आया है राकेश कुमार का.ये पूछते हैं कि क्या स्वर्ग-नर्क यही पृथ्वी पर है या कही अलग है?
Reply: शास्त्र बताते हैं राकेशजी कि स्वर्ग ऊपर है.पृथ्वी से भी ऊपर है और जो नर्क है वो पृथ्वी से नीचे जो पाताल लोक हैं उसकी तरफ,उसके पास में है.मुख्य नर्क चौबीस-पच्चीस कहे जाते हैं लेकिन छोटे -मोटे नर्क सकड़ों-हजारों है.

लेकिन हाँ आप जब अपने कर्म के अनुसार जब पृथ्वी पर दुःख भोगते हैं तो उन दुखों को नर्क जैसे दुःख कहे जाते हैं और जब सुख भोगते हैं तो कहते हैं कि हाँ भाई,यही स्वर्ग है.

हमें कर्म ऐसे करने चाहिए कि हम स्वर्ग और नर्क से ऊपर जा सके.यानि आध्यात्मिक लोक में जा सके.स्वर्ग में जायेंगे तो भी लौटना पड़ेगा और नर्क में जायेंगे तो भी वापस आना पडेगा.हमेशा आप वहाँ के वासी बनके नहीं रह सकते.इसलिए कर्म आपके ऐसे होने चाहिए कि आप भगवद्धाम जा पाए.
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