Sunday, May 23, 2010

On 22nd May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार आपके साथ हूँ  मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.आजकल बच्चों की छुट्टियाँ पड़ चुकी हैं.तो आपका routine तो disturb हो ही गया होगा.देर तक सोते हुए बच्चे कब उठकर नाश्ता करेंगे ये चिंता अब सताती है आपको.Time पर नहाएंगे या नही,नही पता.जब आप किचेन में busy होंगे तो बच्चे भी जिद करेंगे कि हमें भी चाकू दो हम भी सब्जी काटेंगे.थक-हारकर आप सिखाते हैं कि चलो बेटे ऐसे सब्जी काटना.है न.बड़े उत्साह के साथ बच्चे  चाकू लेकर सब्जी काटना शुरू करते हैं और आप मन-ही-मन डरते हैं कि कही ये अपना हाथ न काट बैठे.कभी-कभी कोफ़्त भी तो होती है कि पाँच मिनट का काम है और ये आधा घंटा लगाएंगे.

खैर बड़ी बात है कि उत्साह है.अगर यूं हे रहा तो अभ्यास होता चला जाएगा और एक दिन वो भी पाँच मिनट में काम को कर देंगे.आखिर शुरुआत में हम भी तो ऐसे ही थे न.पर हमने अभ्यास किया और आज बिना किसी डर के हम चाकू से फल और सब्जियां काटते है वो भी बड़ी ही तेजी से.है न.

तो अभ्यास यानि कि practice बहुत जरूरी है.अभ्यास कीजिये तो काम बनेगा.यही हाल है भक्ति का भी.शुरुआत में अजीब-सा लगता है लेकिन जैसा कि भगवान कहते हैं
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥ 
यानि अभ्यास करो. तो आप अभ्यास पर जोड़ दीजिए पर याद रखिये अभ्यास तो हो ही जाएगा आपको बस अपने विश्वास की,अपने उत्साह की रक्षा करनी है.भगवान में विश्वास कायम रखिये और उनसे मिलने के लिया सदा उत्साहित रहिये.बस इतना ही.बाकी काम हो जाएगा और एक न एक दिन आपको परमगति प्राप्त हो ही जायेगी.
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कार्यक्रम में आपका बहुत-बहुत स्वागत है.आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो आईये कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक से.हमारे शास्त्र क्या कहते हैं पता होना चाहिए न.श्लोक का अर्थ;
जिसने एकमात्र भगवान वासुदेव की शरण ले रखी है वो उन सकाम कर्मों से मुक्त हो जाता है जो भौतिक काम वासना पर आधारित है.वस्तुतः जिसने भगवान के चरणकमलों की शरण ले रखी है वू भौतिक इन्द्रतृप्ति को भोगने की इच्छा से भी मुक्त कर दिया जाता है.उसके मन में यौन जीवन,सामाजिक प्रतिष्ठा और धन का भोग करने की इच्छाएं उत्पन्न ही नही हो सकती इसप्रकार वो भागवत उत्तम अर्थात सर्वोच्च पद को प्राप्त कर भगवान का शुद्ध भक्त माना जाता है.

देखिये कितना सुन्दर श्लोक और कितना सुन्दर इसका अर्थ.कितनी प्यारी बात कि जिसने एकमात्र भगवान की शरण ले रखी है.बहुत बड़ी बात है.तो वो उन सकाम कर्मों से मुक्त हो जाता है जो भौतिक काम वासना पर आधारित है.यानि कि हमारे ऊपर बंधन है.हमारे और आपके ऊपर बंधन है और हम दिखता नही है.क्यों?क्योंकि बंधन सूक्ष्म है.बहुत बारीक है. अगर मोती-मोती रस्सियाँ हो तो शायद हमें दिख भी जाए लेकिन मोती रस्सियाँ नही हैं ये.ये तो सूक्ष्म बंधन है हमारे कर्मों का.सकाम कर्मों का.जहाँ हम कामनाएं करते हैं.

यानि कि हम अपनी कामनाओं से बंधे हैं.बहुत बड़ी बात है.हम अपने कामनाओं से बंधे हैं.हमें किसी ने बंधा नही है.हमारी अपनी इच्छाएं जो उत्पन्न होती हैं तो वो हमें बाँध देती हैं और हमें पता नही चलता.ये तो अब तक आप जान गए होंगे हमें इस जगत से हमारी इच्छाओं से बाँधा हुआ है.हम कहते हैं कि हम मुक्त हैं.हम तो आजाद हैं.मै आजाद हूँ.बड़े ही गर्व से हम घोषणा करते हैं.है कि नही.बहुत ही गर्व से कहते हैं-मै आजाद हूँ, आजाद हूँ, आजाद हूँ लेकिन आजाद नही हैं.

क्योंकि आप देखिये बुढापा,बीमारियाँ,जन्म,मृत्यु ये चार बंधन तो है ही आप पर और मुझ पर भी.मुझ पर भी.हम सब इन चारों चीजों से बंधे हुए हैं.कैसे आएगा आराम.

तो यहाँ बताया गया है कि आएगा आराम यदि आप भगवान की शरण ले ले तो अन्यथा आराम की संभावना नही है.बहुत बड़ी बात है.यदि आप भगवान की शरण ले ले तो आप मुक्त कर दिए जायेंगे.इसका मतलब क्या हुआ.यानि कि हमें किसी ने बाँधा हुआ है.है न.किसी ने हमें बाँधा हुआ है.किसने बाँधा हुआ है.कभी सोचा है आपने.भौतिक गुण.तीनों गुण-सतोगुण,रजोगुण,तमोगुण इनकी रस्सियों ने हमें बाँधा है.प्रकृति ने हमें बाँधा है.

हालांकि प्रकृति जड़ है.प्रकृति अचेतन है लेकिन तो भी इतनी शक्तिशाली है क्योंकि भगवान की माया है.भगवान की प्रकृति है.भगवान असीम शक्तिशाली हैं तो ये भगवान की शक्ति का एक तुच्छ प्राकट्य जो है ये प्रकृति है और इसने हमें बाँध लिया.सोचिये.जड़ होते हुए भी हम इसके बंधन में बंध गए.क्यों?क्योंकि हमने इच्छा की कि हम बंध जाए.हमारी समस्या हमारी इच्छाएं हैं.

यहाँ बताया गया है कि जिसने भगवान के चरणकमलों की शरण ले रखी है वो भौतिक इन्द्रतृप्ति को भोगने की इच्छा से भी मुक्त कर दिया जाता है.आप अगर अपने दिल को खंघालेंगे,दिल तो टटोलेंगे,अपने  दिल से पूछेंगे कि क्या इच्छा है तुम्हारी ऐ दिल तो दिल आपको बताएगा कि अनंत इच्छाएं हैं.क्या तुम मेरी इच्छाओं को पूरा कर सकोगे.तब आप भी कहेंगे कि बिल्कुल.इसीलिए तो मैंने जन्म लिया है ताकि मै तुम्हारी इच्छाओं को पूरा कर सकूं.ताकि मै भोग सकूं और ये भोग ही हमारा भवरोग है ये हम नही जानते.हैं न सही बात.
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आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे है बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:
जिसने एकमात्र भगवान वासुदेव की शरण ले रखी है वो उन सकाम कर्मों से मुक्त हो जाता है जो भौतिक काम वासना पर आधारित है.वस्तुतः जिसने भगवान के चरणकमलों की शरण ले रखी है वू भौतिक इन्द्रतृप्ति को भोगने की इच्छा से भी मुक्त कर दिया जाता है.उसके मन में यौन जीवन,सामाजिक प्रतिष्ठा और धन का भोग करने की इच्छाएं उत्पन्न ही नही हो सकती इसप्रकार वो भागवत उत्तम अर्थात सर्वोच्च पद को प्राप्त कर भगवान का शुद्ध भक्त माना जाता है.

तो शरण किसकी लेनी है.यहाँ आपको सलाह दी गयी है एकमात्र भगवान की.तो वो सकाम कर्मों से मुक्त हो जाता है जो किस पर आधारित है?भौतिक कामवासना पर.हमारी problem क्या है?हमारी समस्या ये है कि हमारे अंदर अनंत इच्छाएं हैं  और  हम इन इच्छाओं के पाश में बंधकर भी ये कहते हैं कि हम मुक्त हैं तो सोचिये कि कितना बड़ा व्यंग्य करते हैं अपने आप पर.हम हैं तो बंधे हुए अपनी इच्छाओं के गुलाम.अपनी इन्द्रियों के गुलाम,अपने परिवार की इच्छाओं के गुलाम.इच्छाएं-ही-इच्छाएं हम पर लड़ी हुई हैं लेकिन हम कहते हैं कि हम मुक्त हैं.बताईये.ये विडंबना है कि नही.इसी बात पर मुझे एक छोटी-सी कहानी याद आती है.

एक बार एक बहुत बड़ा freedom fighter था,स्वतंत्रता सेनानी था.वो एक बार पहाडियों में घूम रहा था.वहाँ पर वो रात को रूका तो अचानक उसने एक बहुत  ही खुबसूरत तोता देखा एक सोने के पिंजरे में.तोता चिल्ला रहा था आजादी,आजादी,आजादी.जब तोता चिल्लाता था आजादी तो उसकी आवाज वहाँ की घाटियों में गूँज निकलती थी.तो उस आदमी ने सोचा कि मैंने तो ऐसे कई सारे तोते देखे हैं और मुझे लग भी रहा था कि इन्हें कभी-भी पिंजरों में क्यों रखा जाए.इन्हें आजाद कर देना चाहिए.लेकिन पहली बार ऐसा तोता देखा है जो कि सुबह से लेकर रात तक,यहाँ तक कि सोते हुए भी बोलता है-आजादी,आजादी,आजादी.बहुत बड़ी बात है ये.सोते हुए भी बोल रहा है आजादी.

तो उसे लगा कि हाँ  ये तोता कितना प्यारा है जो आजादी चाहता है और मै कितना खराब हूँ कि यहाँ हूँ ,freedom fighter रहा हूँ  और इसे आजाद न करा पाऊं.तो उसने क्या किया.रात को चोरी-चोरी उस आदमी के घर में घुसा जहाँ वो तोता था.उसने चुपचाप से दरवाजा खोल दिया उसके पिंजरे का और कहा बाहर निकालो,बाहर निकालो.तोता पिंजरे की छड़ी होती है न उसको बहुत-ही कस के पकड़ चुका था.नही निकल रहा था.असने कहा कि अरे निकालो.क्या तुम आजादी भूल गए.हाँ.दरवाजा खुला हुआ है और तुम्हारा मालिक सो रहा है.कुछ पता नही चलेगा.निकालो.तो वो फिर नही निकला तो ये भी बड़े ढीठ थे हमारे जो freedom fighter साहब जो थे.उन्होंने क्या किया कि तोते को जबरदस्ती की मगर तोता चोंच से उसपर वार करने लगा.उसने कहा कि कोई बात नही.चोंच से वार कर रहा है कोई बात नही लेकिन कम-से-कम ये आजाद तो हो जाएगा.उसको निकाल के बाहर कर दिया.

फिर बड़े आराम से वो सो गया ये सोचकर कि देखो मैंने तो तोते को बाहर निकाल दिया.रात बीती.सुबह हुई और फिर उसने वही आवाज सूनी-आजादी,आजादी,आजादी.freedom,freedom,freedom.उसने कहाँ अरे ये क्या हुआ.शायद तोता किसी चट्टान पर बैठा होगा या किसी पेड़ पर बैठा होगा और आजादी,आजादी चिल्ला रहा होगा लेकिन जब वो पिंजरे के पास गया तो उसने क्या देखा.दरवाजा खुला हुआ था और वो तोता उसे पिंजरे के अंदर बैठा हुआ था.

तो ये हालत हमारी और आपकी है.हम कहते जरूर हैं कि हम मुक्त हैं.आजाद हैं.हमें आजादी चाहिए.हम परमगति प्राप्त करना चाहते हैं.भगवद्धाम को जाना चाहते हैं लेकिन हमने अपने पिंजरे को कस के पकड़ा हुआ है.कोई हमें निकालने का भी प्रयास करता है तो हम उस पर उंगलियां उठा देते हैं.दस बातें सुना देते हैं.उस पर शक करने लगते हैं.ये हमारी problem है.

तो यहाँ बताया गया है कि देखो तुम्हे आजादी की चिंता नही करनी है.तुम सिर्फ ये जान लो कि तुम्हारे जीवन का सर्वोकृष्ट उद्येश्य क्या है.अगर तुम उसे जान लोगे तो तुम्हे कोई अन्य चीज जानने के लिए रह नही जायेगी.बहुत बड़ी बात है ये यानि कि आपके जीवन के एकमात्र उद्येश्य हैं भगवान.जब आप उन्हें पकड़ लेंगे.उन्हें प्रेम करने लगेंगे.उनके हो जायेंगे तो सब कुछ आपको प्राप्त हो जायेगा.मिल जाएगा.
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मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.आईये एक और श्लोक पर चर्चा करते हैं.बहुत ही सुन्दर श्लोक है सिर्फ आपके लिए ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
जो लोग भगवान की भक्ति करते हैं.पूजा करते हैं उनके हृदयों को भौतिक कष्ट रूपी आग भला किस तरह जलाते रह सकती है.भगवान के चरण कमलों ने अनेक वीरता पूर्ण कार्य किये हैं और उनके पाँव के नाखून मूल्यवान मणियों के समान हैं.इन नाखूनों से निकलने वाला तेज चन्द्रमा की शीतल चांदनी के समान है क्योंकि वो शुद्ध भक्त के ह्रदय के भीतर के कष्ट को उसी तरह दूर कर सकता है जिस तरह चन्द्रमा की शीतल चांदनी सूर्य के प्रखर ताप से छुटकारा दिलाती है.

कितना सुन्दर श्लोक भगवान की महिमा को दिखाता हुआ.आप तक पहुंचाता हुआ इतना सुन्दर,इतना प्यारा श्लोक.हमारे हृदयों को अनेकानेक कष्ट सताते हैं.ह्रदय जलता है.दिल जलता है.आपने सुना होगा कि ये जो कहावत है वो मेरे दिल को जलाता है.उसे देखकर मुझे जलन होती है.दिल जलता है.हमारे अंदर पाँच तत्त्वों में अग्नि भी है लेकिन ये अग्नि जब ह्रदय को जलाते है तो बहुत ही भयंकर परिणाम होता है.

ह्रदय क्यों जलता है?क्योंकि हमारे अंदर इतनी इच्छाएं हैं कि वो शांत नही होती हैं,पूरी नही होती हैं तो ह्रदय जलता है.कई बार हम देखते हैं कि अरे दूसरा आदमी हमसे ज्यादा तरक्की कर गया.ये मजाल.क्या कृपा है उसपर.तो ह्रदय जलता है कि हम पर क्यों नही है.हम क्यों नही कर पाए.
और इतना जल जाते हैं हम लोग.इतना तड़प जाते हैं कि उस व्यक्ति का नुकसान करने की सोचने लगते हैं.किसी तरह इसका down fall हो.इसका खात्मा हो तो कुछ कहना है.ये हालात हो जाती है हमारी.इतनी गन्दगी रहेगी तो भौतिक कष्ट तो हमें जलाएंगे ही न.तडपायेंगे ही न.

मुक्ति कहाँ है भला.मुक्ति है जब आप मुक्ति का प्रयास करेंगे.जब आप भगवान की शरण लेंगे तो मुक्ति के बारे में आप सोच सकते हैं.अलावा इसके आप अगर मुक्ति के बारे में सोचेंगे भी  सोच-सोचकर भला क्या हासिल होगा?प्रयास तो करना पडेगा न.शरणागत होना पडेगा भगवान के तो मिलेगी आपको मुक्ति.
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हम चर्चा कर रहे थे बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:
जो लोग भगवान की भक्ति करते हैं.पूजा करते हैं उनके हृदयों को भौतिक कष्ट रूपी आग भला किस तरह जलाते रह सकती है.भगवान के चरण कमलों ने अनेक वीरता पूर्ण कार्य किये हैं और उनके पाँव के नाखून मूल्यवान मणियों के समान हैं.इन नाखूनों से निकलने वाला तेज चन्द्रमा की शीतल चांदनी के समान है क्योंकि वो शुद्ध भक्त के ह्रदय के भीतर के कष्ट को उसी तरह दूर कर सकता है जिस तरह चन्द्रमा की शीतल चांदनी सूर्य के प्रखर ताप से छुटकारा दिलाती है.


आजकल गर्मियां हैं.है न.और जब आप कही बाहर निकलते हैं तो सुबह-सुबह आठ-नौ बजे भी बाहर निकलना बड़ा भारी पडता है.सूर्य का प्रखर ताप इतना जलाने लगता है हमें.है न.लगता है कि छतरी लेके जाएँ.काला चश्मा पहन के जाएँ.A.C.वाली गाड़ी में जाएँ और वही पर उतारे जहाँ हमें जाना है.तो गर्मी से डर लगता है.इतनी प्रखर गर्मी में लग्गता है कि कुछ ठंढा-ठंढा हमें मिलता रहे और जब शाम होती है.चन्द्रमा आसमांम में उदित होता है तो आपको बहुत अच्छा लगता है.क्यों?क्योंकि चन्द्रमा की शीतल चांदनी आपको बहुत अच्छी लगती है.लगता है कि हाँ दिनभर की थकान मिट गयी.अच्छा लग रहा है आँखों को,शरीर को.

इसीप्रकार से शुद्ध भक्त के ह्रदय में यूं तो कोई कष्ट होता नही क्योंकि वो भगवान के चरणकमलों पर अपना ध्यान ऐसे केंद्रित करता है कि उसका ध्यान कही और,कही भी जाता ही नही.भगवान के चरणकमल इतने प्यारे हैं.ह्रदय को ठंढक देनेवाले है.ऐसे चरणकमल जिसने वीरतापूर्ण कार्य किये.ऐसे चरणकमल जिसके ठोकर से गंगा निकल आयी और इस पृथ्वी पर आकर के उन्होंने पृथ्वी को पवित्र किया.तो इतने सुन्दर,इतने प्यारे,इतने मनभावन भगवान के चरणकमल हैं कि जब भक्त उनका स्मरण करता है.उनके परायण हो जाता है.उनको अपने ह्रदय से लगा लेता है तो उसके ह्रदय के सारे ताप,ह्रदय की सारी जलन समाप्त हो जाते है.खत्म हो जाती है.वो समझ जाता है कि हाँ ये सब मै खुद नही कर सकता था.ये भगवान ही कर सकते थे और उन्होंने ही किया.

यहाँ बताया गया है कि जो लोग भगवान की भक्ति करते हैं उनके हृदयों को भौतिक कष्ट रूपी आग भला किसतरह जला सकते हैं.देखिये हमें कई प्रकार के दुःख प्राप्त होते हैं.जन,मृत्यु,ज़रा,व्याधि तो हैं ही लेकिन अधिभौतिक,अधिदैविक और आध्यात्मिक दुःख भी बहुत सारे हैं.आध्यात्मिक दुःख तो और भी हमें दुखी करता है.वो दुःख जो हमारे मन से उपजे.बैठे-बैठे ही किसी के बारे में सोच लिया.नफ़रत बातें करनी शुरू कर दी.उसके बारे में गलत सोचना शुरू कर दिया या किसी को गलत बोलना शुरू कर दिया.क्यों?जहाँ क्यों निकला मुँह से.इसलिए क्योंकि ह्रदय में जहर भरा हुआ है.

तो ह्रदय के जहर को शांत कैसे किया जाए.कैसे निकाला जाए.कैसे उस ह्रदय में भक्ति की अमृतधारा कलकल प्रवाहित होने लगे.कैसे.ये कार्य भगवान करते हैं.हमारे और आपके वश की नही है.हमें बस एक ही काम करना है.शरनागत होना है.surrendered होना है.सपर्पित होना है प्रभु को और उसके बाद हमें नही सोचना कि हमारे कष्टों का क्या होगा.ये सोच हमारी नही है.ये सोच उनकी है जिनकी शरण हमने ले ली.शरण लेके भी अगर अपने बारे में हमें सोचना पड़ा तो बताईये शरण लेने का क्या फ़ायदा?

हाँ.यानि कि हमें विश्वास नही है उनपर.भगवान पर हमें विश्वास नही हुआ है.हम अब भी अपने हित के बारे में सोचते हैं.बताईये.कैसे मूर्ख हैं हम लोग.भगवान की शरण लेने का मतलब ये है कि चिंतारहित हो जाना.चिंताओं को परे उठाकर फेंक देना क्योंकि चिंताएं अब आपकी ,आपकी रही कहाँ.वो आपके हो गए.भगवान आपके हो गए तो बस आपकी चिंताएं भी उन्ही की हो गयी न.
योगक्षेमं वहाम्यहम्‌ 
बोलते जो है तो करते भी है.सिर्फ बोलते ही नही करते भी हैं.याद रखिये.

On 16th May'10 By Premdhara Parvati Rathor

मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कभी-कभी एक बात सोचती हूँ मै कि क्यों ऐसा होता है.अक्सर हम जो चाहते हैं वो नही होता है और जो होता है उसके साथ हमें कई तरह के समझौते करने पड़ते हैं.Fate has to be accepted.भाग्य को स्वीकार करना ही पड़ता है.

अब देखिये न आपने सुना ही होगा कि एक बरात एक बस जा रही थी.बस जब जा रही थी तो अचानक ऊपर से बिजली का एक मोटा तार टूटकर गिरा और सारे बस में करेंट फ़ैल गया.अट्ठाईस से ज्यादा लोग बैठे-बैठे ही मर गए.सोचिये कुछ ही सेकेण्ड पहले वो कितने खुश रहे होंगे.सोचिये इस बारे में.कितनी बाते कर रहे होंगे.दुल्हे-दुल्हन की चर्चा चल रही होगी.संसार भर की विभिन्न बातें हो रही होंगी.कोई देश की राजनीति पर बोल रहा होगा.कोई क्रिकेट को ही मुद्दा बना रहा होगा.इसतरह सबकी बुद्धि सब जगह लगी होगी.अचानक काल ऊपर से आया और दुनिया भर की बातों पर पूर्णविराम लग गया.


कोई तब सोच सकता था कि जश्न मनाने जा रहे लोग अचानक मातम मनाने लगेंगे.अचानक सब काल के गाल में समा जाएगा.पर ऐसा हुआ और ऐसा हम में से किसी के साथ हो सकता है.किसी के भी साथ.हमें नही पता कि हम कैसे मरेंगे.जाना हम सबको है पर हमें ये नही पता कि तरीका क्या होगा.ये मत सोचियेगा कि हम छूट जायेंगे.

तो अंतकाल में सब भगवान को याद नही कर पाए तो चौरासी लाख योनियों का कडा सफर तय करना पड़ेगा जो बहुत बड़ा risk है,बहुत बड़ा खतरा है.इसीलिए शास्त्र कहते हैं कि आप भगवान का नाम जो है वो ले और इतना अभ्यास कर ले,इतना अभ्यास कर ले कि जब कभी आप गिरे तो उन्ही का नाम ले.खुश हो तो उन्ही का नाम ले.इसतरह अंत समय में प्रभु याद आ जायेंगे और आप सदा के लिए मुक्त हो जायेंगे.

Monday, May 17, 2010

On 15th May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कुछ समय पहले की बात है मेरी बेटी एक मिट्टी के शेर के साथ खेलती थी.सोचिये शेर वो भी मिट्टी का.तो वो उस खिलौने शेर से ढेरों बातें करती थी.उसे पास लेकर सोती.जब खाने बैठती तो उसे भी साथ में बैठाती.स्कूल से आती तो शेर को ढूँढती पर एक दिन उसका वो मिट्टी का शेर उसी से टूट गया.मिट्टी मिट्टी में मिल गयी.ये देख के उसने जो रोना शुरू किया कि क्या बताऊँ.रोते-रोते,रोते-रोते बुरा हाल हो गया.लाख समझाया पर उसे समझ में ही नही आया.उसने खाना-पीना छोड़ दिया.बहुत समझाया कि दूसरा शेर ले आयेंगे पर उसे तो वही शेर चाहिए था.

खैर बहलाने-फुसलाने से कुछ देर में वो ठीक हो गयी पर मै सोच में पड़ गयी कि जब वो खिलौना टूटा था तो वो इतना क्यों रोयी.हमें तो रोना आया नही.हमें उसके दुःख में दुःख जरूर हुआ पर उस खिलौने के टूटने का कोई दुःख नही हुआ.क्यों?क्योंकि मेरी उस मिट्टी के खिलौने में कोई आसक्ति नही थी.कोई लगाव नही था.कोई मोह नही था.जबकि उसकी उस खिलौने में लगन थी.

तो छोटी-सी एक घटना फिर से सीखा गयी कि सुख और दुःख मोह के कारण होते हैं.हमें उसके दुःख में दुःख हुआ.क्यों?क्योंकि हमारा मोह वो बच्ची है.मोह का जो केंद्र है वो बच्ची है.मोह उससे था इसलिए वो दुखी हुई तो दुःख हुआ.लेकिन शेर टूटा तो कोई भी दुःख हमें हुआ नही.तो सोचिये.दुबारा से ये सीख मिली कि सुख और दुःख मोह के कारण होते हैं और जो मोह  के बंधन को काट देता है वो कभी भी दुखी नही होता.और मोह क्या है?मोह है इन्द्रियों का विषय.जब आप सोते है तो इन्द्रियां भी सोती है.तब आपको मोह नही होता है सोते समय.जब आप जागते हैं तो इन्द्रियों का विषयों से मिलन होता है और आप मोहित हो जाते हैं.तब आप सुखी और दुखी महसूस करते हैं खुद को.

तो जब आप अपनी इन्द्रियों को उनके विषय से मोड़ लेंगे तब आप इस अवस्था से ऊपर उठ जायेंगे.इस अवस्था से ऊपर उठाना भी एक कला है और इसी कला को सीखने के लिए ये मानव जीवन मिला है.
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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कार्क्रम का पहला श्लोक.बहुत सुन्दर श्लोक है.ध्यान से सुनिए.बहुत ही प्यारा श्लोक है.थोड़ा लंबा है लेकिन इसका एक-एक शब्द बहुत कुछ बोलता है.श्लोक का अर्थ:
"जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.उन्हें चाहिए कि क्रोधरहित होकर इन्हें शिक्षा देते रहे भले ही वे उनकी आज्ञा का पालन करने में कभी-कभी असमर्थ क्यों न हो.कर्ममूढ़ों को चाहिए कि सकाम कर्म से बचते हुए वो सभी प्रकार की भक्ति में लगे.यदि शिष्य,पुत्र और नागरिक को जो दिव्य-दृष्टि से रहित हो, कर्म के बंधन में डाला जाए तो भला वो कैसे लाभान्वित होगा.ये अंधे मनुष्य को गड्ढे में धकेलने जैसा है."


तो देखिये बहुत ही सुन्दर बात इस श्लोक में कही गयी है.बहुत ही सुन्दर instruction कि जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो.सबको अभिलाषा होती है क्या?सबको नही होती है क्योंकि कई लोगों का तो भगवान में ही विश्वास नही है तो भगवान के धाम में क्या विश्वास होगा.लोगों को कोई information ही नही है,कोई जानकारी ही नही है कि इन भौतिक लोकों के अलावा आध्यात्मिक लोक भी exist करते है.हैं.बकायदा मौजूद हैं.लोगों को ये जानकारी भी नही है कि हम भगवान के अंश हैं.कर्त्तव्य के रूप में भी हमें भगवान को ही पूजना चाहिए.भगवान की ही सेवा करनी चाहिए.


देखिये इस जगत में सुख है,दुःख है.सुख की प्रतीति होती है.सुख है नही.लगता है कि सुख है.तो इस जगत की जो विषय वस्तु जो है वो आनंद नही है.आनंद आध्यात्मिक लोक में प्राप्त होता है या इस लोक में भी जब आप भगवान से जुडते है तो आनंद प्राप्त होता है.इस एक आनंद की खोज में हम शुरू से लेकर अंत तक लगे रहते हैं.अंत तक.एक आनंद की खोज में.ऐसा सुख जो कभी खत्म न हो,उसकी खोज में.ऐसा सुख जिसे पाने के बाद कुछ और पाने की अभिलाषा शेष न रहे.ऐसी चीज.है कोई ऐसी चीज आपकी नजर में.


ऐसा क्या पकवान आपने बनाया कि जिसे खाने के बाद लगा कि अब कुछ और नही खाना.बस इससे खा लिया अब तमाम उम्र नही खायेंगे.ऐसा तो होता नही.बार-बार भूख लगती है.बार-बार पकाते है.बार-बार खाते हैं.या आपने सोचा कि ये फिल्म देख ली अब तो इसके बाद कोई फिल्म देखनी ही नही.इसमे आनंद ही आ गया.ऐसा तो होता नही.फिर कोई फिल्म आयेगी आप कहेंगे चलो देखने चलते हैं.सुना है बहुत अच्छी है.क्यों?क्योंकि आनंद पूरा मिला नही.क्योंकि आनंद है नही.time pass.time pass किया आपने.time pass को हम आनंद का नाम दे देते हैं.time pass करने के तरीकों में हम आनंद खोजते हैं.तो ये हमारी मूढता नही है तो और क्या है.मूर्खता ही तो है.


आनंद भगवान के पास है.भगवान ही आनंद है.ठीक है.लेकिन जो लोग भगवान में विश्वास नही करते उन्हें ये दिव्य स्वाद प्राप्त भी नही हो सकता.अब बिना मधु को चाटे आपको कैसे पता चलेगा कि मधु बहुत मीठा होता है.नही.नही पता चलेगा न.चाटना पडेगा.खाना पडेगा.experience करना पडेगा.तो दिव्य आनंद experience की वस्तु है.


तो भगवान यहाँ बताते हैं कि भाई 
जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.


ये एक जो पंक्ति है न.ये एक पंक्ति अगर आप समझ लेंगे न तो आप कभी किसी दुःख में दुखी होंगे नही और किसी सुख में आप उछालेंगे नही कि मै बहुत सुखी हो गया क्योंकि सुख और दुःख तो इस भाव सागर की लहरें हैं जो आपको कभी ऊपर उछलती है तो कभी निचे पटक देती हैं.तो क्या चीज है ये इसके विषय में हम चर्चा करते रहेंगे आपके साथ.आप बने रहिये हमारे साथ.


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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.बहुत ही प्यारा श्लोक.श्लोक का अर्थ:





"जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.उन्हें चाहिए कि क्रोधरहित होकर इन्हें शिक्षा देते रहे भले ही वे उनकी आज्ञा का पालन करने में कभी-कभी असमर्थ क्यों न हो.कर्ममूढ़ों को चाहिए कि सकाम कर्म से बचते हुए वो सभी प्रकार की भक्ति में लगे.यदि शिष्य,पुत्र और नागरिक को जो दिव्य-दृष्टि से रहित हो, कर्म के बंधन में डाला जाए तो भला वो कैसे लाभान्वित होगा.ये अंधे मनुष्य को गड्ढे में धकेलने जैसा है."


बहुत बड़ी बात.मतलब श्री भगवान को जीवन का परम लक्ष्य मानना क्या होता है ये?क्या होता है?यानि कि अपना जीवन भगवान के चरणों में समर्पित कर देना.यानि कि सिर्फ भगवान को तुष्ट करने के बारे में सोचना.अपने को तुष्ट करने के बारे में नही सोचना.याद रखिये आप प्रकृति हैं और भगवान पुरुष हैं.भगवान प्रकृति का भोग करते हैं.प्रकृति भगवान के भोग करने के लिए बनी है.
और हम जो हैं 
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं 
भगवान की हम परा प्रकृति है.समझ आयी बात.परा प्रकृति हैं.तो हमारा कर्त्तव्य क्या है?हमारा कर्त्तव्य है कि हम रसराज को रस प्रदान करे.प्रभु को रस प्रदान करे अपने efforts से.प्रभु को तुष्ट करने का प्रयास करे.No.1 और No.2 कि इस प्रयास में नुकसान तो है नही.जब आप ये प्रयास शुरू करेंगे तो  आप देखते हैं कि सांसारिक अवरोध बहुत ज्यादा आयेंगे.लोग आपको रोकने की कोशिश कर रहे हैं.लोग आपका मजाक उड़ा रहे हैं.लोग आपको पागल करार दे रहे हैं.


और आप कहते हैं कि नही मै पागल नही हूँ.चलो ये सब छोडता हूँ.लोगों के तानों को सुनने से क्या फ़ायदा.इन्ही के बीच में रहना है.इन्ही के जैसे बनके रहो.और आप अपने को सुखी करने का प्रयास करना प्रारम्भ करने लगे.भागने-दौडने लगे.भागते हैं.भागते हैं कि ये मिल जाएगा,वो मिल जाएगा.planning करते रहे.खूब planning करते रहे.मै ये किताब लिख दूं royalty मिल जायेगी.उससे जो है खर्चा चलेगा.या वहाँ factory लगा दूं जिससे इतना turn over आएगा कि मेरी सात पीढियां जो हैं वो बैठकर खाएंगी. 


तो ये जो व्यक्ति करता है सकाम कर्मी,रजोगुनी व्यक्ति तो वो व्यक्ति भगवान को प्राप्त नही कर पाता है.भगवान ने क्या बोला है यहाँ पर कि मेरे अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने कि कब भगवान की कृपा मुझ पर बरसेगी और कब मै आत्मसाक्षात्कार की तरफ और ज्यादा अग्रसर होउंगा.साथ ही जब आपको दुःख मिले तो आप ये न कहे कि ये तो भगवान ने कर दिया.मै तो इतनी पूजा-पाठ  करता था पर भगवान ने मुझे इतना दुःख दे दिया.ये कैसे भगवान हैं.अब किसी और भगवान के पास चलो.चलो एक भगवान हम खुद ही निर्माण कर ले उनका.


तो ये सब आप कब तक करते रहेंगे याद रखना.कितनी उम्र होती है नादानी करने की.अस्सी साल,सौ साल.उसके बाद तो खत्म हो जायेंगे.उसके बाद तो न नादानी करने का मौक़ा मिलेगा और न समझदारी से काम लेने का मौक़ा मिलेगा.आपको सीधा पशु जीवन प्राप्त हो जाएगा.तो उसमे क्या बुद्धिमानी है बताईये.पशु जीवन प्राप्त होगा और ये नही की वो अंतिम होगा.उसके बाद जाने कितनी बार करोड़ों बार,करोड़ों बार हमें चौरासी लाख योनियों में जाना पडेगा.


तो ये मनुष्य योनी ये मिली है आपको कि सुख हो चाहे दुःख हो.कितनी भी विपत्तियां आये सबको भगवान की कृपा समझ के ग्रहण करते रहिये और अपने जीवन को क्या करिये 
आनुकूल्येन कृष्णानुशीलनं भक्तिरुत्तमा
यानि अपने जीवन को इसप्रकार बना लीजिए कि हर चीज भगवान के अनुकूल हो,प्रतिकूल नही हो.अगर भगवान को follow करने के लिए आपके जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाए तो ऐसी परिस्थितियों को त्याग दीजिए.हटा दीजिए अपने रास्ते से.लेकिन हर वो काम कीजिये जो भगवान के इच्छा के अनुकूल हो.आगे क्या कहा गया है कि 
यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.


यहाँ शास्त्रों में instruction है समाज के लिए.हर व्यक्ति पिता बनता है.हर स्त्री माँ बनती है आमतौर पर और गुरु है तो अपने शिष्य को.कितने सारे teachers हैं.ये profession ये खुला है teachers का जिसमे लोग B.Ed करते हैं, M.Ed करते हैं , teachers बनते हैं.तो अगर पिता बन करके,राजा बन करके, teachers बन करके अपने अधिनस्थ,अपने ऊपर आश्रितों को भगवान के बारे में नही बता पाते हैं तो फिर उन्हें कितनी अधूरी जानकारी है.कुछ जानकारी अभी प्राप्त हुई ही नही बल्कि.कितनी दुखदायी स्थिति है.
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कार्यक्रम में आप सभी का फिर से बहुत-बहुत स्वागत है.हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.जिसका अर्थ है:
 "जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.उन्हें चाहिए कि क्रोधरहित होकर इन्हें शिक्षा देते रहे भले ही वे उनकी आज्ञा का पालन करने में कभी-कभी असमर्थ क्यों न हो.कर्ममूढ़ों को चाहिए कि सकाम कर्म से बचते हुए वो सभी प्रकार की भक्ति में लगे.यदि शिष्य,पुत्र और नागरिक को जो दिव्य-दृष्टि से रहित हो, कर्म के बंधन में डाला जाए तो भला वो कैसे लाभान्वित होगा.ये अंधे मनुष्य को गड्ढे में धकेलने जैसा है."

यानि की मनुष्य जो दृष्टिविहीन है उसे बजाये इसके कि हाथ पकड़ करके सड़क पार कराएं.उसकी मंजिल तक पहुंचाए.आप उसे गड्ढे में धकेल दे.तो ऐसा ही है.हम सब के पास ज्ञान चक्षु नही है.ज्ञान को देख सके ऐसी आँखें नही है. है न.एक छोटे से बच्चे के पास कहाँ से वो आँखें होंगी.सोचिये.एक छोटे से बच्चे के पास वो आँखें नही है.वो माँ-बाप पर छोटी से छोटी चीजों के लिए dependent होता है.हर instruction के लिए dependent होता है.है कि नही.माँ-बाप देखते हैं उसका भला-बुरा.

अगर आज के माँ-बाप यही सोचते रहे कि मेरा बच्चा कैसे स्केटिंग सीखे,swimming सीखे.ये सीख ले वो सीख ले और उस पर बहुत घमंड करते रहे.music भी सीख ले,tuition भी कर ले,पढाई भी कर ले.All rounder बन जाए.चैम्पियन बन जाए.Sports में भी आगे हो,cricket में भी आगे हो.यहाँ भी आगे हो,वहाँ भी आगे हो.

अगर सब जगह आगे हो भी जाए तो क्या मिलेगा.सिवाए इसके आपका जो घमंड है,आपका जो ego है उसकी मालिश होगी और क्या होगा.और तो कुछ होगा नही.क्योंकि ज्या से ज्यादा पचास या अस्सी या सौ इन वर्षों के बीतते ही सारा खेल खत्म हो जाएगा.जिसको आगे बढाने के लिए आप इतना यत्न कर रहे थे.इतना कमा रहे थे.इतने पाप कर रहे थे कि उसे अच्छी education दे सकूं.ये करूँ,वो करूँ.बढ़िया स्कूल में जाये. Prestigious   स्कूल में जाए.बगल का स्कूल है.बेशक बहुत Prestigious नही है पर पढाई-उढाई उसमे भी अच्छी होती है.बहुत नाम-वाम नही है तो क्या.बहुत बड़ा नाम लेकर क्या करोगे पड़ोसियों को जलाओगे यही न.रिश्तेदारों को के बीच में घमंड से कह सकोगे, अपने सहेलियों को अपने सहेलों को कि हमारा बच्चा इस स्कूल में पढ़ता है.ये सीखता है वो सीखता है.

लेकिन यहाँ बताया गया है कि अगर कोई पिता और माँ अपने बच्चे को भगवदभावनाभावित न बना पाए.उसके अंदर वो बीज न डाल पाए.भक्ति का बीज.उसके अंदर भगवान के प्रति अनुराग न पैदा कर पाए.प्रेम पैदा न कर पाए तो तो ऐसे माँ-बाप failure है,असफल है ,बेकार है.क्यों?क्योंकि वो अपने बच्चे को जान बूझकर गड्ढे में धकेल रहे हैं और मजे की बात ये है कि वो ऐसा करते हुए फक्र महसूस कर रहे हैं.घमंड  हो रहा है कि मै अपने बच्चे को भगवान से कितने दूर रखे हहुआ हूँ.भगवान तो out dated subject हो गए,topic हो गए.है कि नही.ये नजरिया रहता है.

तो यहाँ बताया गया है कि आप अगर पिता है,माँ हैं तो सबसे पहले तो यही कर्त्तव्य है आपका कि आप भगवदभावनाभावित हो.भगवान से प्रेम करें और फिर वही प्रेम बच्चे में डालने का प्रयास करे.बच्चे को बजाये इसके कि यहाँ-वहाँ की rhyme  सिखाए.यहाँ-वहाँ के poems सिखाए.उसे अंग्रजी poem सिखाए,उसे कुछ अपने culture से,अपनी संस्कृति से दीजिए.कुछ दीजिए.हम हर जगह भिखारियों की तरह हाथ फैला के खड़े हो जाते हैं.कभी हम बाहर से पैसे माँगते हैं.अब संस्कृति भी माँगते हैं.उधार की संस्कृति और उस पर गर्व करते हैं.जबकि हमारे अपनी संस्कृति को बाहरवाले अपनाते हैं.और तब हम कहते हैं कि हाँ इन्होने अपनाया तो जरूर अच्छी होगी.अगर इन्होने कहा कि अच्छी है,बाहरवालों ने,विदेशवालों ने तो अच्छा है नही तो कहाँ अच्छा है.

तो अपनी संस्कृति पर,अपने शास्त्रों पर गर्व करना सीखने.वहाँ सब कुछ है.सब कुछ.आपकी हर समस्या का तोड़ है.आपकी हर समस्या का.आपको ये जानकारी दी गयी कि आप आत्मा है.बताईये और कहाँ ये जानकारी उपलब्ध है.कही नही.आपको इस भारत देश में रहते हुए ये जानकारी उपलब्ध है कि आप आत्मा हैं और भगवान के अंश है.सोचिये.तो क्या ये आपका कर्त्तव्य नही बनता कि आप अपने बच्चों को ये सारी शिक्षाएं दे.बेशक starting में ऐसा लगे कि वो disobedient  हैं.वो आपकी बात नही मान रहे हैं.interest नही ले रहे हैं लेकिन धीरे-धीरे ये कीटाणु अपना असर कर ही जाएगा और और एक दिन भक्ति उनके अंदर जरूर फलेगी,फूलेगी.

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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:

"जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.उन्हें चाहिए कि क्रोधरहित होकर इन्हें शिक्षा देते रहे भले ही वे उनकी आज्ञा का पालन करने में कभी-कभी असमर्थ क्यों न हो.कर्ममूढ़ों को चाहिए कि सकाम कर्म से बचते हुए वो सभी प्रकार की भक्ति में लगे.यदि शिष्य,पुत्र और नागरिक को जो दिव्य-दृष्टि से रहित हो, कर्म के बंधन में डाला जाए तो भला वो कैसे लाभान्वित होगा.ये अंधे मनुष्य को गड्ढे में धकेलने जैसा है."

बहुत बड़ी बात है देखिये.आपको हमारे शास्त्र बार-बार आगाह करते हैं,चेतावनी देते हैं कि सकाम कर्म से मत बंधो.सकाम कर्म मतलब ऐसा कर्म मत करो जिसमे आपको फल की बहुत ज्यादा इच्छा हो.लोभ हो फल का.लालसा ही लालसा हो.इन्तजार हो.ऐसे कर्मो में मत फंसिए.अगर ऐसा कर्म आपको करना भी पड़े तो उसके फल को आप स्वयं भोगने का प्रयत्न मत कीजिये.उसके फल का आप इन्तजार मत कीजिये.उसके फल से बचिए.फल मिला तो उसे भगवान के लिए,भगवान की सेवा में लगाईये.part of it.एक अंश,एक बड़ा अंश भगवान की सेवा में लगाईये.बाकी उतना रखिये कि जिससे आपका गुजारा चल जाए.ये नही कि वो फल मुझे मिले इसके लिए मै भागूं,दौडूँ,खूब मेहनत करूँ,खूब पसीने बहाऊं.अपना समय उसमे झोंक दूं.

समझने का प्रयास कीजिये.एक-एक सेकेण्ड,एक-एक मिनट बहुत कीमती है आपके लिए क्योंकि जब आपकी उम्र खत्म हो जायेगी तो ये सेकेण्ड,ये लम्हे,ये मिनट,ये घंटे,ये दिन,ये हफ्ते,ये मास,ये वर्ष दुबारा लौट के आपके जीवन में कभी नही आयेंगे.तो अभी एक-एक लम्हा बहुत important है.बहुत important है.इसमे आप प्रभु को प्राप्त कर सकते हैं और यहाँ यही बताया गया है.जो लोग आप पर आश्रित हैं.पिता पर बच्चा आश्रित होता है,गुरु पर उसका शिष्य.शिष्य अपने गुरु का मुख देखता है.गुरु ने जो कह दिया उसको वो अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता है.सोचिये.बहुत बड़ी बात है.

घर में हम कई बार अपने बच्चे को हम बहुत कुछ समझाने का प्रयास करते हैं.बताते की कोशिश करते हैं.जब वो नही मानता है तो आप उसे उसकी teacher के पास ले जाते हैं और बोलते हैं कि mam इसे समझाईये न.ये हमारी बात तो सुनता नही है.आपके बात बहुत अच्छे से सुनता है.तो  teacher समझाने की कोशिश करती है.तो teacher बच्चे के दिमाग पर बहुत अच्छा impression छोड़ सकती है.अगर वो बच्चे को भगवान से दूर कर दे और कहे कि तुम ऐसी पढाई करो जिससे maths में तुम्हारे 100% marks आये.science में तुम आगे बढ़ जाओ.यहाँ आगे बढ़ जाओ,वहाँ आगे बढ़ जाओ.पर एक बात नही बतायी कि अरे भक्ति में आगे बढ़ जाओ.बेटा अगर भक्ति करोगे तो भगवान की कृपा प्राप्त होगी.भगवान की कृपा से बड़े-बड़े जो प्रारब्ध है हमारे,जो destiny है हमारी,जो horrible destiny है.कई बार बड़े भयंकर ग्रह हैं वो सब शांत हो जाते हैं.भगवान की कृपा इतनी अनोखी होती है कि भगवान लिखे हुए को भी मिटा देते हैं.समझ रहे हैं आप.

तो उस कृपा को invoke करना.उसे अपने जीवन में लाना ये बताए गुरु.तो तो है भाई
गुरु ब्रह्मा गुरु महेश्वर
वो जितना बोला गया है.तब तो है.लेकिन अगर यही बताया जाय कि चलो जी science की lab में.यहाँ ये काट दो तो वहाँ वो काट दो.ये भी जरूरी है लेकिन इतना जरूरी नही है.अगर कोई व्यक्ति अंगूठा छाप है मान लीजिए लेकिन वो भगवान की भक्ति में बहुत आगे है.बहुत आगे है.दिन-रात उनके लिए आँसू बहाता है और जब उसकी मृत्यु आये तो वो भगवान को याद करता-करता ही मरे.चाहे उसके पास कोई डिग्री नही है.वो कोई बड़े-बड़े MNC में काम नही करता.उसके पास उसके घर में A.C. भी नही है.हो सकता है झोपड़ी में रहता हो.लेकिन याद करते हुए किसे मरे.भगवान को याद करते हुए मरे तो उसका जीवन सफल है.क्यों?क्योंकि भगवान कहते हैं.

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌ ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥


कि जो अंतकाल में मुझे याद करते हुए मरता है वो मेरे धाम को प्राप्त होता है.मुझे प्राप्त होता है इसमे कोई संशय नही.तो सोचिये.ये है छलांग लगाना.एक ही बार में छलांग लगाना.एक ही जन्म में करोड़ों-करोडो जन्मो के बंधन को तोड़ पाना.तो सबसे important information है.सबसे बड़ी जानकारी वो अपने बच्चों को दीजिए.अपने शिष्यों को दीजिए ताकि उनका जीवन सफल हो जाए.
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On 9th May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कोई कह रहा था कि आज Mother’s Day है.है क्या?मुझे इन सब के बारे में पता नही रहता.लेकिन अगर ये सच है तो आज आप अपनी माताजी का बहुत सम्मान करेंगे.है न.चलिए कम-से-कम आज तो उन्हें आराम दीजिए.बेचारी साल के 365 दिन काम ही काम करती हैं.तो आज आप उनके लिए कोई सुन्दर-सा gift भी खरीदेंगे.अच्छी बात है.

आमतौर पर माँ और बच्चे का रिश्ता बहुत प्यारा होता है.माँ बच्चे के लिए क्या नही करती.खुद बेचारी भूखे रहकर भी बच्चे का पेट भरती है.कितनी-कितनी कुर्बानियां देती है.कई-कई स्त्रियां तो माँ बनने के बाद अपना अपना अच्छा-खासा कैरियर ही छोड़ देती है ताकि बच्चे की देखभाल अच्छी तरह से हो सके.

एक औरत की भूमिका बहुत बड़ी होती है उसके बच्चे के भविष्य के निर्माण में.और ये नही है कि एक इंसान की माँ ही उसे प्यार करती है.सही बात तो ये है कि आप किसी भी जानवर को देख लीजिए  हरेक की माँ उस पर ममता की बरसात करती है.माँ ही बच्चे का प्रथम आश्रय होती है.इसलिए आज अगर Mother’s Day है तो दुनिया के हर योनि की,हर प्राणी की माँ को सलाम है.

पर मानव जीवन ही एकमात्र ऐसा जीवन है जहाँ आप साक्षात भगवान को प्राप्त कर सकते है और प्रभु से मिलन में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है एक माँ.माँ अगर भगवत भक्त हो तो अपने बच्चों में भगवान के प्रति प्रेम का बीज बो सकती है.बच्चों को प्रभु कथाएँ सुना-सुनाकर उनके समस्त संस्कार को शुद्ध कर सकती है.माँ चाहे तो अपने बच्चे को मुक्ति के द्वार पर,जी हाँ मुक्ति के द्वार पर पहुँचा सकती है.एक यही सबसे बड़ा कर्त्तव्य है एक माँ,एक जननी का कि वो स्वयं भी प्रभु के धाम जाए और उंगली पकड़ कर बच्चों को भी वो राह दिखाए.

सोचिये अगर घर-घर में ऐसी माताएं हो जाए तो समझिए बिगड़ी बन जायेगी.

Monday, May 10, 2010

On 8th May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.एक दिन रास्ते में एक बाँस और फूँस की बनी झोपड़ी देखी जिसके दरवाजे पर लिखा था -
"बिना आज्ञा अंदर आना सख्त मना है."
मैंने सोचा अरे घास-फूँस की बनी ये झोपड़ी इसे तो हवा ही उड़ा ले जायेगी तब क्या होगा लेकिन सच तो यही है कि वहाँ भी लोग privacy चाहते हैं.आमतौर ये जो board हैं न कि बिना आज्ञा के अंदर आना सख्त मना है,ये board तकरीबन गाहे-बगाहे हर घरों के आगे दिख ही जाता है.और पता चल जाता है कि एक आम आदमी का वहाँ स्वागत नही है.

वैसे जब हम आज्ञा की बात करते हैं तो सोचिये उस घर में प्रवेश करते समय चीटियाँ तो किसी से कोई आज्ञा नही लेती.चूहे,मकड़ी,कॉकरोच,छिपकली,बिल्लियाँ बेचारी दरवाजे पर लिखी चेतावनी को पढ़ ही नही पाती.न ही दरवाजे पर call well !बजती है और न ही वो दरवाजा खटखटाती है.बस घुसी चली आती है.और मजे की बात है कि मकान मालिक को कभी भी नही लगता कि अरे मेरी आज्ञा के बिना ये लोग मेरे घर में कैसे घुस आये.हालाकि जब अति हो जाती है तो कोई परेशान भी हो जाता है और तब तरह-तरह के उपाय अपनाता है ताकि उसका घर उसी का रहे बाकी प्राणी वहाँ न दिखे.लेकिन तो भी अक्सर वश नही चलता.तो हालात से समझौता करना पडता है.है कि नही.

वास्तव में एक इंसान दूसरे इंसान से डरता है.वो जानवरों पर,कीट-पतंगों पर भरोसा कर सकता है पर दूसरे आदमी पर भरोसा नही कर पाता.और बात भी सच है.आपके भरोसे को कीड़े-मकोड़े नही बल्कि इंसान ही लूटते हैं और वो भी इसलिए कि लोग सोचते हैं कि एक ही जीवन है.पूरा दम लगा लो इसमे मजे लेने हैं चाहे इसके लिए चोरी की जाए या किसी को मार दिया जाए.कोई कर्म और कर्मफल पर विश्वास नही करता.कोई नर्क से नही डरता.कोई पुनर्जीवन पर भी विश्वास नही करता.उसके आगे भी question mark(?).

ये सब इसलिए क्योंकि हम अज्ञान से घिरे हैं.कही भी शास्त्रों को पढाया नही जाता.समाज में नैतिक मूल्य खत्म हो रहे हैं और इसीलिए हम सब खतरे में हैं.है कि नही.


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कार्यक्रम में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब हम आपके लिए लाये हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक ध्यान से सुनिए.बहुत ही सुन्दर अर्थ.बहुत ही प्यारी बात इस श्लोक में कही गयी है.श्लोक का अर्थ:
"भू शब्द कर्म क्षेत्र का द्योत्तक है.ये भौतिक शरीर जो मनुष्य के कर्मों का फल होता है,उसका कर्म क्षेत्र है और ये उसे झूठी उपाधियां देता है.अनादिकाल से मनुष्य को अनेक भौतिक शरीर प्राप्त होते रहे हैं जो भौतिक जगत सबंधन के मूल है.यदि कोई मनुष्य मूर्खतावश क्षणिक सकाम कर्मों में अपने को लगाता है और इस बंधन को समाप्त करने की तरफ नही देखता तो उसको कर्मों का क्या लाभ मिलेगा."

देखिये हमारे शास्त्र को.आप इतने समय से कार्यक्रम को सुन रहे हैं.आप देखते हैं कि नए-नए श्लोक आते हैं आप तक और हर श्लोक आपसे यही गुजारिश करता है,यही बताता है आपको कि इससमय जिप्रकार की मनःस्थिति में,परिस्थिति में आप हैं ,जिसप्रकार आप सोचते हैं वो गलत है.ये सोचना कि मै अपने काम को अगर अच्छे ढंग से कर लूं तो यही भक्ति है.या सोचना कि अपने बच्चों की अच्छी देखभाल करले यही भक्ति है.

देखिये ये श्लोक यहाँ पर एक बार फिर से आपको ये चेतावनी दे रहा है कि ये जो शरीर है वो मनुष्य के कर्मों का फल होता है.दो बात हो गयी भातिक शरीर.देह भौतिक है ,जड़ है.भौतिक क्या होता है?भौतिक यानि कि जड़ है.यानि ये पञ्च महाभूत से बना हुआ शरीर है जिसमे की कोई चेतना अपने-आप में नही होती.जब उसके अंदर भगवान का अंश,भगवान की पराशक्ति आ जाती है तो ये शरीर चेतनामय होता है.वरना इस शरीर में चेतना नही होती.

तो ये जो शरीर है कर्मक्षेत्र है जीव का जो कि भगवान का अंश है.जो कि भगवान से ये इच्छा करता है कि मुझे भी भोग करना है जैसे कि आप यहाँ पर अपने भगवद्धाम में करते है.आप ही के लिए सब लोग लगे रहते हैं.आप भोग करते हैं मुझे भी भोग करना है.जैसे आप ने देखा होगा कि एक छोटा बच्चा जब वो देखता है कि उसके पापा बहुत ही skillfully,बहुत ही अच्छे तरीके से drive करते हैं और वो बच्चा बगल की सीट पर बैठा होता है अपनी माँ के साथ या वैसे ही तो आप देखेंगे कि वो जिद करता है.वो कहता है कि मुझे भी steering wheel संभालनी है.मै भी गाड़ी चलाउंगा.मै भी ये करूँगा.मै भी वो करूँगा.वो बहुत मचलने लगता है तो उसके पापा कई बार उसे अपनी गोद में लेकर बैठ जाते हैं कि ठीक है लो.चलाते वो हैं.Clutch में उनका पैर है ,break पे उनका पैर है लेकिन बच्चा सोचता है शायद मै चला रहा हूँ.ये हालत होती है.

भगवान बहुत कृपालु हैं.भगवान देखते हैं कि जीव में भोग करने की इच्छा है तो वो ऐसा माहौल तैयार कर देते हैं जहाँ हमें शरीर धारण करना पडता है.शरीर में भी भगवान देखिये सांसों के रूप में आते-जाते रहते हैं.है न.भगवान कहते हैं कि मै आपके अंदर प्राण हूँ.वैश्वानल अग्नि हूँ.आपकी इन्द्रियों का स्वामी हूँ इसीलिए हृषिकेश कहलाता हूँ.तो बड़ी सारी informations भगवान देते हैं.इसप्रकार से पूरी तरह से आपको अपने control में रखते हैं लेकिन तो भी स्वतंत्रता दे रखी है.कुछ हद तक दे रखी है.उसका जब हम दुरूपयोग करते हैं तो हमें झूठी उपाधियों में फंसना पडता है.

शरीर मिला है.भौतिक शरीर मिला है.क्यों?क्योंकि हमने ही चाहा था.ये हमारी चाहत का परिणाम है.ये हमें हमारी चाहत के परिणाम स्वरुप मिला है.आप कहेंगे कि नही भगवान जो हैं क्यों चाहते हैं कि हमें भौतिक शरीर मिले.हमें दुःख मिले.आप बिल्कुल सही कहते हैं.भगवान नही चाहते हैं कि आपको भौतिक शरीर मिले और आपको दुःख मिले लेकिन ये आपकी अपनी चाहत है जो आपको यहाँ तक ले करके आयी.भगवान की चाहत नही है.भगवान तो चाहते है कि आप वापस आये.इसीलिए वो कई बार स्वयं आती हैं.अवतार लेते हैं.ऊपर से नीचे आते हैं.कई बार अपने भक्तों को भेजते हैं.अपने परिकरों को भेजते हैं आप तक message पहुंचाने के लिए.वो तो ये चाहते हैं लेकिन हम क्या चाहते हैं.हम चाहते हैं भोग करना.इसीलिए फंसते चले जाते हैं.
देहों के चक्कर में फंसते चले जाते है और प्रभु से निरंतर दूर होते चले जाते हैं.

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कार्यक्रम में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे थे बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:
"भू शब्द कर्म क्षेत्र का द्योत्तक है.ये भौतिक शरीर जो मनुष्य के कर्मों का फल होता है,उसका कर्म क्षेत्र है और ये उसे झूठी उपाधियां देता है.अनादिकाल से मनुष्य को अनेक भौतिक शरीर प्राप्त होते रहे हैं जो भौतिक जगत सबंधन के मूल है.यदि कोई मनुष्य मूर्खतावश क्षणिक सकाम कर्मों में अपने को लगाता है और इस बंधन को समाप्त करने की तरफ नही देखता तो उसको कर्मों का क्या लाभ मिलेगा."

देखिये बड़ी बात है.यहाँ आपको बताया गया है कि मनुष्य के कर्मों का फल होता है ये भौतिक शरीर.किसप्रकार का शरीर हम धारण करेंगे ये हमारे कर्म पर निर्भर करता है.हम मनुष्य का शरीर धारण करेंगे या किसी कीट-पतंग का,कि पेड़-पौधे का.क्या शरीर हमें मिलेगा किसप्रकार की प्रवृत्ति हमारी रही है पूरे जीवन भर,क्या कर्म हमने करे हैं,क्या स्वभाव हमारा रहा है,क्या सोच हमारी बन गयी है,इस पर निर्भर करता है.सोचिये.मतलब कितना बड़ा खतरा है.आप सोचिये कि आत्मा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा यही हो सकता है कि वो चौरासी लाख योनियों में फंस जाए.इससे बड़ा ख़तरा और क्या है.

आगे श्लोक के अर्थ में बताया गया है कि
अनादिकाल से मनुष्य को अनेक भौतिक शरीर प्राप्त होते रहे हैं जो भौतिक जगत सबंधन के मूल है.
बहुत बड़ी बात है.ये देखिये.ये जो भौतिक जगत है ये पाँच तत्त्वों से बना हुआ है.है न.इसमे फिर दस इन्द्रियां हैं.दस उनके विषय हैं.ये सारी चीजें हैं भौतिक जगत में.हम जब आ जाते हैं और इसमे रम जाते हैं तो हमें शरीर धारण करना पडता है क्योंकि यहाँ रहने के लिए भगवान देखते हैं कि अरे ये तो यही रमना चाहता है.यही रहना चाहता है.तो भगवान कहते हैं तो ठीक है इसे अन्य शरीर दे दिया जाए इसके कर्म के मुताबिक़.जैसा कर्म किया है उसके अनुसार.तो प्रकृति जो है अपना कार्य करने लगती है और हमें विभिन्न प्रकार के शरीर धारण करने पड़ते हैं.और क्योंकि शरीर धारण करते हैं इसलिए जगत से बंध जाते है.

इसका अर्थ ये हुआ कि हमें शरीर धारण नही करने चाहिये.है न.इसके beyond देखने का प्रयास कीजिये कि यह श्लोक कह क्या रहा है.इस श्लोक में एक चर्चा ये उभर कर आ रही है.एक बात,एक point,एक मुद्दा ये उभर करके सामने आ रहा है कि हम इस जगत के हैं नही वास्तव में.मगर क्योंकि हम भगवान से अलग हो जाते हैं.क्योंकि इच्छा करते हैं उनसे अलग हो करके भोग करने की.भगवान कहते हैं
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्‌ ।
भोक्ता मै हूँ.I am the enjoyer लेकिन हम कहते हैं no, i am the enjoyer.मै हूँ भोक्ता.मै भोगूंगा और आपको भी माध्यम बनाउंगा अपने भोग तक जाने का.

इसीलिए आप देखते हैं कि हमारी जो tendencies हैं,हमारी जो प्रवृत्ति है वो क्या है?जब भी हमें कही धार्मिक स्थल जाना होता है.हम जाते है भगवान के आगे फ़रियाद करने तो बोलते हैं कि सुख देना,शांति देना,हमारे बच्चे सुखी रहे,घर में शांति रहे, कोई क्लेश न हो.इसतरह की कई प्रकार की बातें करते हैं पर कभी नही कहते कि हे प्रभु ये जो शरीर है न इसे दुबारा न धारण करूँ.आप मुझे अपनी प्रेमाभक्ति देना.कुछ नही चहिये.मुझे अपना बना लो.कभी नही कहते.

तो हमारी हालत है कंजूस जैसी.कैसे कंजूस जैसी?ऐसा कंजूस जिसको सब कुछ मिला लेकिन उसने उसका अर्थ  नही समझा.जैसे कि एक कंजूस था उसने अपना सबकुछ बेच दिया.सब कुछ और उसने एक बड़ा-सा सोनी का गोला खरीदा.उसे जाकर के अपने घर की दीवार के सामने एक गड्ढा खोद करके गाड़ दिया.तो रोज वो वहाँ जाता था और उसको देखता था.फिर जाता था फिर देखता था.ऐसी ही करती-करते उसकी इस आदत को एक श्रमिक ने देख लिया.वो काम कर रहा था देख लिया कि ये रोज आता है,क्या देखता है और फिर चला जाता है.तो उसने कहा कि मै भी देखता हूँ.तो जब वो आदमी चला गया तो वो श्रमिक जो था वो वहाँ गया और उसने जाकर के गड्ढा खोदा.गड्ढा खोद करके उसने देखा कि अरे इतना बड़ा सोने का जो ढेर यहाँ मौजूद है तो उसने उसे चुरा लिया और वो ले गया.

अगले दिन फिर से वो कंजूस आया और उसने फिर से गड्ढा खोदा.देखा वहाँ तो कुछ भी नही है.अब वो अपने बाल नोचने लगा.आंसू बहाने लगा.रो-रो करके उसने जो है पूरी दुनिया अपने सर पर उठा ली.एकदम से उसके पड़ोसी लोग आये.सबने कहा कि क्या बात है?तुम क्यों रो रहे हो?तो उसने कहा कि मैंने यहाँ सोना रखा था.इतना सारा सोना रखा था और अब तो देखो कुछ भी नही है यहाँ पर तो मै क्या करूँ.मै रोऊँ नही तो क्या करूँ.मैंने अपनी पूरी जिंदगी की कमाई इसमे लगा दी.अपन घर-बार सब कुछ बेच दिया और एक सोना जो है इतना बड़ा खरीदा और यहाँ डाल दिया.

तो उसके पड़ोसियों ने कहा,उसके रिश्तेदारों ने कि अरे!अरे! ऐसा करो कि तुम जाओ और एक बड़ा-सा,उसी size का पत्थर उठा के ले आओ.उस गड्ढे के अंदर वो पत्थर डाल दो.तो उसने कहा-क्यूं?अरे इसलिए कि क्योंकि वो सोना वहाँ पड़ा रहा और तुमने उस सोने का कोई उपयोग किया ही नही.Gold मिला था तुम्हे और तुमने उसका कोई उपयोग किया ही नही.हाँ तो तुम ये पत्थर डाल दो और ये सोचो कि सोना वहाँ पड़ा है.इससे क्या होगा कि तुम्हे वही फ़ायदा होगा क्योंकि तुम जब सोना था तो भी तुमने उसका इस्तेमाल किया नही तो अभी पत्थर है तो इसका इस्तेमाल तुम करोगे नही क्योंकि इसका इस्तेमाल कुछ हो नही सकता है.मगर तुम्हे अच्छा लगेगा कि मेरी जो दिनचर्या है वो जारी है.

तो ये हमारा और आपका हाल है.हमें सोने से भी बेहतर बहुत सुन्दर जिंदगी मिली है.है कि नही.लेकिन हम इसका इस्तेमाल नही करते हैं.हम नही जानते इसके महत्त्व को.हम नही जानते कि इसी जिंदगी में हमें भगवान  मिल सकते हैं.मिल सकते हैं.दृढ विश्वास कि हमें इस जिंदगी में भगवान मिल सकते हैं और इसका सदुपयोग करना चाहिए प्रभु को प्राप्त करने के लिए.तो हीरे जैसा हमें ये जन्म मिला और हमने इसे गड्ढे में डाल दिया और गड्ढे में डाल करके ये देखते हैं हम भी उस कंजूस की तरह.बस देखते हैं,संवारते है,मस्ती करते है.वहाँ ये cold-drink पीना है वहाँ पे ये मोबाइल फोन खरीदना है.यहाँ पर मेरे घर में ये होना चाहिए.वो होना चाहिए.

इसलिए थोड़े न मिला है आपको हीरा जन्म.हीरा जन्म मिला था आपको self realization के लिए.आत्म-साक्षात्कार के लिए.प्रभु से बातचीत करने के लिए.उन्हें समझने के लिए क्योंकि इसी जन्म में तो आप उन्हें समझ सकते हैं लेकिन हमने उसे गवां दिया.तो अभी भी सचेत हो जाईये कुछ बिगडा नही है याद रखिये.

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Wednesday, May 5, 2010

On 2nd May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कल शाम मौसम कितना-कितना खुशनुमा था.है न.काली-काली घटाएं आसमान में अटखेलियाँ कर रही थी और उनके आगमन पर हवाएं भी खुश होकर ठंढक बरसा रही थी.कुछ बूँदें बरसात की भी नाचती-गाती आयी और धरती को का प्यासा गला तर कर गयी.तन ठंढा हो गया.मन को भी अच्छा लगा.

मन ठंढा हो गया ये नही कहूँगी क्योंकि जब परिस्थितियां प्रतिकूल होती हैं तो मन तपने लगता है.तब बरसात की चंद बूंदे उस तपन को.उस ताप को बुझा नही सकती है.ठंडा नही कर पाती है.मन तो संसार दावानल यानि संसार की वासनाओं से तपा हुआ है और मजे की बात ये कि मन में आनेवाली इच्छाओं पर किसी प्रकार का कोई निषेध नही है.ये इच्छाएं मन का दरवाजा तक खटखटाती नही हैं.बस बेधड़क प्रवेश कर जाती हैं और आप पर कब्जा कर लेती हैं.उससमय ऐसा लगता भी नही कि मन के द्वार पर भी एक non-breakable दरवाजा होना चाहिए ताकि देर-सवेर ये इच्छाएं मुँह उठाये प्रवेश न करने पाएं.ताकि आप disturb न हो.

पर अजीब बात ये है कि ये कामनाएं जादूगरनी है.आती बाहर से हैं पर मन,बुद्धि,ह्रदय सब पर अपना कब्ज़ा जमा लेती हैं और आप जो मालिक थे इन इच्छाओं के इशारे पर नाचने लगते हैं.मन जलने लगता है.जीवन बेकार बह जाता है.

देखिये मनुष्य देह ही एक ऐसी देह है जिसमे आप अपने मन पर दरवाजा लगा सकते हैं ताकि नापाक इच्छाएं उत्पन्न ही न हो और इस दरवाजे को बनाने का समान भगवान के पास है.याद रखिये भगवान से जुडकर ही.जी हाँ .एकमात्र यही तरीका है.कोई अन्य तरीका नही.कोई अन्य तर्क-वितर्क से आप तरीका पैदा नही कर सकते.कोई यम,नियम,आसान,प्राणायाम आपके मन पर वैसा अंकुश नही लगा सकता जिसप्रकार की भगवान से जुडकर आप अपने मन पर अंकुश लगा सकते हैं.

वरना ये मन आपको अंतहीन जन्म-मृत्यु के दुश्चक्र में फंसा कर ही रहेगा.याद रखिये.

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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब एक बहुत ही सुन्दर श्लोक सिर्फ आपके लिए.ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
"यद्दपि तपस्या,दान,व्रत तथा अन्य विधियों से पापमय जीवन के फलों का निरिषण किया जा सकता है किन्तु ये पुण्य कर्म किसी के ह्रदय की भौतिक इच्छाओं का उन्मूलन नही कर सकते.किन्तु अगर वो भगवान के चरणकमलों की सेवा करता है तो वो तुरंत ही ऐसे सारे कल्मषों से मुक्त कर दिया जाता है."

बहुत सुन्दर बात हैं.हम सब की ये वृत्ति है,प्रवृत्ति है कि हम सब पाप से डरते हैं.है कि नही.आप बताईये.पाप से कौन नही डरता.सब कोई पाप करने से डरते हैं.वो बात अलग है कि डरने के बावजूद पाप करते हैं.है न.क्यों?क्यों करते हैं पाप?क्योंकि आपके अंदर,हमारे अंदर रजोगुण और तमोगुण का बाहुल्य है.बाहुल्य मतलब प्रचुरता है.बहुत ज्यादा मात्रा में है.सतोगुण जो है backseat ले लेता है.पीछे हो जाता है.सतोगुण जिसको हमें विकसित करना चाहिए.प्रभु की सेवा में लगना चाहिए वो सबकुछ बहुत कम मात्रा में हमारे ह्रदय में है.

भगवान हमारे ह्रदय में हैं किन्तु उनकी सेवा करने का भाव हमारे ह्रदय में नही है.ये हमारी कमी है.तो हम पाप से डरते हैं किन्तु फिर भी पाप करते हैं.मन को समझा लेते हैं अरे मजबूरी में किया था.अरे झूठ बोला था कोई बात नही.इतना बड़ा पाप नही है.तो हम अपने आप को समझाते रहते है.समझाते रहते हैं.है न.दिल को समझाते  रहते हैं लेकिन पाप करना नही छोड़ पाते.और ये सोचते हैं कि चलो भाई इस पाप का किसी तरह निवारण किया जाए.किसी तरह ऐसा कुछ काम किया जाए कि हमारे पाप जो हैं उनकी संख्या में कमी आये.पाप समाप्त हो जाए तो और भी अच्छा.हर व्यक्ति कोई न कोई उपाय खोजता रहता है.

यहाँ बताया गया है इस श्लोक में कि तपस्या,दान,व्रत सभी विधियों से पापमय जीवन के फलों का जो निवारण है वो किया जा सकता है.जो आपने पाप किये हैं वो कर सकते हैं तपस्या से भी.देखिये जब कोई व्यक्ति तपस्या करता है तो उसके पापों का क्षय होता है.ये बात सही है.आप किसी भी प्रकार की कोई तपस्या करते हैं भगवान के नाम पर तो पाप क्षय होते हैं.लेकिन तपस्या से ह्रदय की जो वृत्ति है.हमारे चित्त की जो प्रवृत्ति है,जो tendencies  
हैं हमारी वो साफ़ नही होती हैं.

यानि मान लीजिए हमारा balance zero भी हो गया तो इस बात की कोई गारंटी नही होती है कि हम आगे पाप नही करेंगे.क्योंकि जो पीछे पाप किये थे वो भी ये सोचा था उस समय से पहले कि पाप नही करेंगे लेकिन किये.भगवान वैसे भी कहते भी हैं कि


काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥


भगवान कहते हैं कि ये जो है काम और क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होते हैं.ये काम और क्रोध दोनों मिलकर ही नरक के द्वार तक पहुंचा देते हैं.काम,क्रोध,लोभ ये जो है क्या है?
नरकस्य द्वारं
नरक के द्वार हैं और भगवान कहते हैं कि ये रजोगुण से उत्पन्न होते हैं.तो हमारे अंदर देखिये कितने रजोगुण है.रजोगुण आपके अंदर है कैसे पता चलेगा?अगर आप अपने हर काम का फल चाहते हैं.अगर आपको लगता है कि मै ये काम करुण तो इसका फल क्या होगा.मै पढूंगा तो मेरे इतने नंबर आयेंगे.एकप्रकार से ये भी एक सकाम thinking है जिसमे कि हम कुछ आकांक्षाएं करते हैं.या मै जो है एक business setup करूँगा तो इसमे मुझे इतने करोड का फ़ायदा होना ही चाहिए नही तो मै failure कहलाउंगा.

तो सकाम कर्मी हैं हमलोग.तो अपने इस effort को जब हम पूरा नही कर पाते हैं.प्रयासों को पूरा नही कर पाते हैं.हमारी कामनाएं पूरी नही होती हैं तो क्रोध आता है.और क्रोध जो है क्या है
महाशनो महापाप्मा


काम और क्रोध है विनाशकारी है और महापापमय है.
विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥
ये वैरी हैं महा वैरी.दुश्मन हैं तो इसिलए हम पाप करते हैं.पापमय जीवन के फलों का हम कुछ न कुछ उपाय कर सकते हैं लेकिन वो उपाय जो हैं वो complete नही होंगे जब तक कि हा भगवान की सेवा से जुडेंगे नही.है न.प्रभु को आत्मसात नही कर लेंगे.तब तक हम कभी भी,कभी भी पाप के घेरे से बाहर नही निकल पायेंगे.पाप खत्म भी हो जायेंगे तो और नए पाप जुट जायेंगे.सोचिये इस बात के बारे में.
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कार्यक्रम में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:

"यद्दपि तपस्या,दान,व्रत तथा अन्य विधियों से पापमय जीवन के फलों का निरिषण किया जा सकता है किन्तु ये पुण्य कर्म किसी के ह्रदय की भौतिक इच्छाओं का उन्मूलन नही कर सकते.किन्तु अगर वो भगवान के चरणकमलों की सेवा करता है तो वो तुरंत ही ऐसे सारे कल्मषों से मुक्त कर दिया जाता है."
Remember this.याद रखिये मुक्त कर दिया जाता है.यानि मुक्त होता नही है मुक्त कर दिया जाता है.कौन है?कौन है जो मुक्त करता है?कौन है जो हमारी बेड़ियों को काटता है.कोई करता है.है न.हम मुक्त हो नही जाते हैं.Automatically नही होता है.कोई करता है. तो कौन करता है?प्रभु करते हैं जो आपके ह्रदय के अंदर बैठे हैं.वो करते हैं जब आप उनकी तरफ मुडते हैं तो.जब आप बाहर की तरफ मुडते हैं तो संसार आपके ह्रदय में आता है और भगवान आने देते हैं क्योंकि वो आपकी इच्छाओं की क़द्र करते हैं.क्यों?क्योंकि आप उनके अंश हैं.आप उनके बच्चे हैं.वो महास्वतंत्र है तो वो आपकी स्वतंत्रता जो भी आपको मिली है उसकी क़द्र करते हैं.सोचिये इस बारे में.

लेकिन तो भी हम संभलते नही है और पाप करते है.करते हैं.सबसे बडा पाप तो पैसे के कारण होता है.इसपर मुझे एक छोटी-सी कहानी याद आती है.

एक समय की बात है कि एक बहुत दरिद्र आदमी.बहुत गरीब आदमी,उसकी एक छोटी-सी दुकान थी,रहा करता था.एक banker था वो था.बेचारा वो जिसकी दुकान थी वो बहुत ही गरीब था दूसरा जो था  banker वो बहुत अमीर था.होना ये चहिये कि अमीर आदमी को खुश होना चाहिए और गरीब को दुखी लेकिन हुआ बहुत उल्टा था.जो गरीब आदमी था वो बहुत खुश था और जो अमीर आदमी था वो रात को बिस्तरों में करवटें बदलता रहता था.जबकि जो गरीब आदमी था वो बहुत सुखपूर्वक सोता था.

तो banker को ये बात हजम नही हुई.उसने कहा कि मै ये पता लगाऊं कि ये जो दरिद्र आदमी.गरीब आदमी जिसकी छुटकी-सी दुकान है ये इतना खुश कैसे रहता है.तो उसने कहा कि भाई मेरे घर आओ.जैसे उसको बुलाया तो उसको कहा कि भाई ये बताओ कि तुम्हारी सालाना आय कितनी है.कितना मिल जाता है.क्योंकि उसको लगता था कि खुशियाँ जो है वो सिर्फ और सिर्फ दौलत से ही खरीदी जा सकती है.गरीब आदमी ने कहा कि जी मै तो गिनता नही हूँ और मै परवाह भी नही करता हूँ.बस प्रतिदिन रहता हूँ और जैसा भी वो दिन आता है उस दिन का सामना करता हूँ.और अगले दिन की चिंता नही करता हूँ.बस प्रभु जी की दया से,भगवान की दया से काम चल जाता है.

Tuesday, May 4, 2010

On 1st May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कल कहीं गयी थी मै.जिनके यहाँ गयी थी वो घर में नही थी.थोड़ी देर बाद आयी और आते ही चिल्लायी - अरे कितनी गर्मी है भाई A.C. on करो.ओह हो A.C. क्यों बंद कर रखा है.खैर A.C. on हुआ.थोड़ी देर बाद उन्होंने फ्रीज खोला.ठंढा पानी पीने के लिए.फ्रीज में एक भी bottle नही थी.पास में ही एक घड़े में भी पानी रखा था.पर वो अपने नौकर पर आगबबूला हो गयी.बहुत चिल्लाई.बहुत गुसा हो गयी.प्यासा  मार दोगे.ठंढा पानी भी नही है और बस सारा समय उनका मूड खराब ही रहा.

मै भी सोच में पड़ गयी कि हम modern भौतिक सुविधाओं के कितने आदी हो गए हैं.अगर ये सुविधाएं यानि कि A.C.,T.V.,Freeze,Internet,Mobile phones ये सब हमारे जीवन से निकल जाएँ तो हम तो पागल ही हो जायें.क्यों?वास्तव में हम इन सुविधाओं के गुलाम बन गए हैं.है कि नही.ठंढा पानी तो घड़े में भी हो जाता है और घड़े का शीतल पानी नुकसान भी नही करता.लेकिन लोग फ्रीज के पानी को ही पीना पसंद करते हैं और बीमार भी हो जाते हैं.सोचिये.

कितने ही लोग हैं ऐसे जो कभी भी ताजी हवा नही खा पाते हैं.ताजी हवा खाना भी चाहे तो उनके पास time नही होता है.सुबह A.C.में उठते हैं.A.C.वाली कार से वो ऑफिस जाते हैं और ऑफिस में भी कोई खिडकी नही.वहाँ भी ताजी हवा का प्रवेश मना होता है.सारा दिन A.C. में बैठे रहते हैं और धीरे-धीरे बीमार पर जाते हैं.तब डॉक्टर कहता है कि सुबह ताजी हवा में सैर करना पडेगा.तो भाई बुरा हाल है.

प्रकृति की सहारना करने के लिए लोग साल में एक बार छुट्टी करके कही चले जाते हैं.लेकिन जो प्राकृतिक सुंदरता ठीक उनके आँगन में उतरती है उसकी वो अनदेखी कर देते हैं.

तो मजे की बात है कि ऐसे ही लोग successful यानि सफल माने जाते हैं.है न अजीब बात.जबकि शास्त्र कहते हैं कि ऐसे लोग पशुवत जीवन जी रहे हैं जो धिक्कार के योग्य है.जीवन इन सुविधाओं को जुटाने के लिए नही मिला है.जीवन तो कण-कण में प्रभु की उपस्थिति को देखने के लिए मिला है.अगर आपके जीवन के केंद्रबिंदु भगवान हो जायें तभी आपका जीवन सफलम हो सकता है.