Thursday, February 17, 2011

भगवान की नजर में क्या है ज्ञान :Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)


Spiritual Program SAMARPAN On 13th Feb, 2011(102.6 FM)

क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम॥(भगवद्गीता,13.3)
अर्थात् 

हे भारतवंशी तुम्हे पता होना चाहिए कि मै भी समस्त शरीरों में ज्ञाता हूँ और इस शरीर तथा इसके ज्ञाता को जान लेना ज्ञान कहलाता है.

देखा कितनी बड़ी बात.ज्ञान क्या है इसकी परिभाषा भगवान यहाँ दे रहे हैं.आप कई बार सोचते हैं कि आपको mathematics की जानकारी है तो ये ज्ञान है.आप कईबार ये भी सोचते होंगे कि मुझे अपने subject की जानकारी है.मै वकील हूँ और मुझे वकालत की जानकारी है,ये ज्ञान है.इन सबको भगवान ज्ञान घोषित नही करते.बहुत ही सुन्दर तरीके से भगवान ने सिर्फ एक पंक्ति में आपकी तरफ ये इशारा किया है.ये बताया है कि ज्ञान क्या है.
          
भगवान कहते हैं कि इस शरीर में दो क्षेत्रज्ञ हैं,उनको जानना और इस शरीर को जानना ,वो ज्ञान है.तो ध्यान से सोचिये क्षेत्र का अर्थ क्या होता होगा.क्षेत्र अर्थात् कर्मक्षेत्र.जैसे कि एक किसान के लिए उसका कर्म क्षेत्र क्या होता है?Fields,खेत.खेतों में वो अपना कर्म करता है.फिर फल उगते हैं और फिर उन फलों का वो सेवन करता है.इसीप्रकार से विभिन्न कर्म करने के लिए आप कर्म योनि में हैं.इस मनुष्य शरीर में हैं.ये मनुष्य शरीर ही क्षेत्र है.आपका कर्म क्षेत्र है और इस मनुष्य शरीर को जानना,ये ज्ञान कहलाता है.

मनुष्य शरीर में कोई रहता है उसको जानना ज्ञान कहलाता है.अगर सिर्फ शरीर को आप जान लेते हैं.जड़ प्रकृति को आप जान लेते हैं.प्रकृति के अवयवों के बारे में आप जान लेते हैं.तो वो ज्ञान नही है.वो अधूरा ज्ञान है.पूरा ज्ञान ये हैं कि आप जाने कि भई  इस कर्म क्षेत्र में कौन रहता है.कौन है जो इस कर्म क्षेत्र में खेती करता है.कौन है जो इस शरीर के माध्यम से कर्म करते हुए उनके फलों का भोग करता है और इस शरीर में कितने लोग रहते हैं.क्या कोई एक रहता है या एक से ज्यादा रहते हैं?

जब आप ऐसे प्रश्न करने लगते हैं,इसका अर्थ ये है कि आप ज्ञान की अवस्था तक धीरे-धीरे पहुँच जाते हैं.तो ये श्लोक बड़ी ही खुबसूरती से आपको बताएगा कि क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ क्या है और दोनों क्षेत्रज्ञों के बीच जो अंतर है उन अंतरों को जानना.अगर आप उन दोनों क्षेत्रज्ञों  के बीच के अंतर को जान लेंगे कि दोनों क्षेत्रज्ञों में काया अंतर है तो आप पूर्ण ज्ञानी हो जायेंगे.विश्वास कीजिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही प्यारे श्लोक पर.ध्यान से सुनिए:

क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम॥(भगवद्गीता,13.3)
अर्थात् 

हे भारतवंशी तुम्हे पता होना चाहिए कि मै भी समस्त शरीरों में ज्ञाता हूँ और इस शरीर तथा इसके ज्ञाता को जान लेना ज्ञान कहलाता है.


तो देखिये ज्ञान की बिल्कुल अगल परिभाषा प्राप्त हुई है आपको.शरीर को जानना.आखिर शरीर किस चीज से बना है.जानते हैं न आप.पाँच तत्त्वों से ये शरीर बना है.
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहङ्‍कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥(भगवद्गीता,7.4)

भगवान कहते हैं कि ये जो आठ प्रकृति है वो मेरी ही भिन्न प्रकृति है और इन्ही से आपका शरीर भी निर्मित होता है.भूमि से.मिट्टी है आपका शरीर.कहा जाता है न कि
मिट्टी है मिट्टी में मिल जाएगा.ख़ाक में मिल जाएगा.
राख है राख में मिल जाएगा शरीर.

शरीर के बारे में आपने कई बार ऐसी चर्चा सुनी होगी.तो शरीर भूमि से बना होता है.मिट्टी से बना होता है.जल तत्त्व आप देखते हैं अपने शरीर में रक्त है,मूत्र है और इसप्रकार से अनेकानेक तत्त्व है जो जल तत्त्व की तरफ आपको दिखाते है.मतलब जल तत्त्व आप देख पाते हैं और तीसरा जो तत्त्व है वो है अग्नि.आपके शरीर में एक विशेष ताप रहता है.अगर वो ताप बढ़ जाता है तो इसे बुखार कहते हैं.ताप घट जाता है तो आपको कहा जाता है कि आप मंद अग्नि के शिकार हैं.अगर ताप कम है तो भोजन जो आपने खाया होता है खाना वो भी आप digest नही कर पाते हैं,पचा नही पाते हैं.

तो भूमि हो गई,अग्नि है,जल है,वायु.वायु जानते है जो आप साँस लेते हैं.साँस में हवा का आना-जाना,ये वायु.इससे आपका शरीर निर्माण होता है.अगर आप साँस नही लेंगे तो आपका शरीर चल नही पायेगा.आप जीवित नही रह पायेंगे.तो वायु आपके शरीर के लिए जरूरी है.पानी आपके शरीर के लिए जरूरी है और इसीप्रकार से अंतिम तत्त्व है आकाश.वो जो खालीपन है अंदर.जैसे नाक के अंदर,कान के अंदर.वो आकाश है.वहाँ आकाश रहता है.

तो हमारा शरीर भूमि,अग्नि,जल,वायु और आकाश से निर्मित है.अहंकार जो हमारे अंदर सूक्ष्म रूप में है.मन,बुद्धि,अहंकार जो दिखाई नही देते,सूक्ष्म हैं वो भी हमारे शरीर के भाग हैं.मन,बुद्धि,अहंकार इनसे बना होता है हमारा सूक्ष्म शरीर जिनके अंदर लिपटी होती है आत्मा.

तो ये जानकारी ज्ञान कहलाती है और ये ज्ञान आपको हम इस कार्यक्रम के माध्यम से देंगे.
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समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम॥(भगवद्गीता,13.3)
अर्थात् 

हे भारतवंशी तुम्हे पता होना चाहिए कि मै भी समस्त शरीरों में ज्ञाता हूँ और इस शरीर तथा इसके ज्ञाता को जान लेना ज्ञान कहलाता है.

तो इस शरीर में दो लोग रहते हैं.एक आप.आप जो कि आत्मा है और दूसरे परमात्मा इस शरीर में रहते हैं.
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥(भगवद्गीता,18.61)

भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन!ईश्वर इसी शरीर में उपस्थित है,रहते हैं.तो ह्रदय देश में दो लोग रहते हैं.एक आप औए एक भगवान.लेकिन आपमें और भगवान में अंतर है.आप और भगवान इसीप्रकार के हैं जैसे कि वृक्ष की एक डाली पर दो पंछी बैठे हैं.एक पंछी फल खा रहा है और दूसरा पंछी उस पंछी को यानि पहले पंछी को फल खाते हुए देख रहा है.सिर्फ देख रहा है और जो पंछी फल खा रहा है उसका मुँह बाहर की तरफ है यानि देख रहे पंछी की तरफ नही है.तो जो पंछी देख  रहा है भोगी पंछी को वो पंछी है -परमात्मा,भगवान और जो पंछी फल खा रहा है वो हैं हम - आत्मा.

तो भगवान आपकी तरफ देखते हैं कि आप कब उनकी तरफ मुडेंगे.आपके समस्त कार्यों के साक्षी रहते हैं.आप क्या खा रहे हैं,आप क्या सोच रहे हैं,आप क्या कर रहे हैं,किन गुणों में जी रहे हैं.रजोगुण,सतोगुण,तमोगुण.आगे क्या करना चाहते हैं सबकुछ और आपने पहले क्या किया है.अब आपको किन कर्मों का क्या फल मिलेगा.सबकुछ भगवान जानते हैं.हमारे ह्रदय में परमात्मा के रूप में बैठे रहते हैं.
गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्‌ ।(भगवद्गीता,9.18)
भगवान के बारे में क्या कहूँ मै आपसे.लेकिन आपमें और भगवान में बड़ा फर्क है.आप सिर्फ अपने शरीर में मौजूद रहते हैं.अगर कोई आपको चिकोटी कटेगा सो आपको दर्द होगा.मुझे दर्द नही होगा क्योंकि आप अपने शरीर में हैं और मै अपने शरीर में हूँ.आत्मा विभिन्न शरीर ग्रहण करती है और जितने शरीर आत्माओं ने ग्रहण किये हैं वो आत्माएं अलग-अलग है लेकिन भगवान एक साथ सभी जगह मौजूद हैं.वो आपके कार्य को भी देख रहे हैं और बगलवाले के कार्य को भी देख रहे हैं.



ये एक बहुत बड़ा फर्क है आत्मा में और परमात्मा में.
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समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.इन श्लोकों को ध्यान से सुनिए और इन्हें आप याद भी कर सकते हैं अच्छा रहेगा.
क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम॥(भगवद्गीता,13.3)
अर्थात् 

हे भारतवंशी तुम्हे पता होना चाहिए कि मै भी समस्त शरीरों में ज्ञाता हूँ और इस शरीर तथा इसके ज्ञाता को जान लेना ज्ञान कहलाता है.

तो देखिये बहुत सुन्दर बात भगवान कहते हैं.शरीरों में दो ज्ञाता है.आपके शरीर में दो ज्ञाता हैं.एक स्वयं आप.आप अपने बारे में जानते हैं.हालांकि बहुत कुछ नही भी जानते हैं और दूसरे भगवान आपके शरीर में ज्ञाता हैं.आप अपने शरीर के बारे में ज्यादा नही जानते हैं तो कहाँ इस देश के बारे में जान पायेंगे.अपने देश के बारे में नही जानते हैं तो कहाँ दूसरे देश के बारे में जान पाएंगे और कहाँ आप ब्रम्हाण्ड के बारे में जान पाएंगे.

फिर भगवान के बारे में जान पाना वो तो तकरीबन असंभव है.क्योंकि भगवान अचिन्त्य हैं.हमारे और आपके चिंतन से और चिंता से,दोनों से बहुत दूर हैं.अगम्य हैं.आप उन्हें जान नही सकते लेकिन बावजूद इसके यही तो प्रभु की अहैतुकी कृपा है कि वो आपके ह्रदय में निवास करते हैं.आपके बहुत पास हैं.बहुत पास हैं.

तो इन दोनों को जान लेना ज्ञान कहलाता है.भगवान आपके ह्रदय में भी हैं और सभी योनि में जितने भी शरीर हैं,चौरासी लाख योनि के चौरासी लाख किस्म के शरीरों में भगवान मौजूद हैं और उनके बारे में जानते हैं.जैसे कि राजा.राजा न केवल अपने महल के बारे में जानता है बल्कि अपने पूरे राज्य के बारे में जानता है.उसके प्रशासन  की बारीकियों के बारे में जानता है.तो राजा देश का मालिक होता है.लेकिन अगर आप उस राज्य के नागरिक से पूछे कि आप कहाँ रहते हैं तो वो राज्य का नाम बता देगा कि मै यहाँ का हूँ.उसे लगेगा कि भई मेरा भी तो वहाँ स्वामित्व है.लेकिन उसका जो स्वामित्व है वो गौण है.पर राजा का जो स्वामित्व है,उसका मालिकाना हक है वो पूर्ण है.

इसीप्रकार से हम बेशक अपने शरीरों में बैठे हैं पर हमारा इन शरीरों पर स्वामित्व गौण है.भगवान का ही इस शरीर पर स्वामित्व है.मालिकाना हक है.वो जब चाहे,जब चाहे हमें इस शरीर से निकाल सकते हैं.

यानि आपको ये शरीर हमेशा के लिए नही मिला है.याद रखना.ये मत सोचना कि ये शरीर आपको साद-सर्वदा के लिए मिला है.तो आपको समझना होगा कि प्रकृति,ईश्वर और जीव यानि पुरुष जो कि प्रकृति का भोग करता है.इसकी स्थिति को जब आप समझ पाते हैं तो आप ज्ञान में स्थित कहे जाते हैं.याद रखिये.
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