Thursday, April 15, 2010

On 4th April'10 By Maa Premdhara

नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कल मैंने एक गाना सुना
जब life हो out of control ,
सीटी बजा के बोल all is well .
मुर्गी न जाने अंडे का क्या होगा 
life मिलेगी या तवे पर fry होगा.
कोई न जाने अपना future क्या होगा 
सीटी बजा के बोल all is well .

गाना सुनकर बड़ी हँसी आयी.अजीब-सा लगा कि मनुष्य जीवन तो भाई तो इसीलिए नही मिला है कि जब जिन्दगी out  of  control  हो जाए,अनियंत्रित हो जाए तो आप उसे ignore कर दे.नजरअंदाज कर दे.

अरे यही तो आपको सवाल करना है.प्रश्न करना है कि मैंने तो बहुत planning की थी.सही बात है मुर्गी,मुर्गा,बकरा,बकरी नही जानते कि उनका क्या होगा.कसाईघर में जब एक बकरा कटता है तो दूसरा बकरा उसे देख-देख के अपना चारा खाता रहता है.उसे कुछ अहसास नही होता कि अगली बारी मेरी है.

पशुओं को भगवान् ने इतनी विकसित समझ नही दी होती कि वो कारण और परिणाम दोनों के बारे में सोच सके.पर भाई मनुष्य तो अद्भुत प्राणी है प्रभु ने उसे बुद्धि दी है.विकसित चेतना से नवाजा है.ये देखने की ताकत दी है कि वास्तव में असली control किसके हाथ में है.आप ये समझने की कोशिश कीजिये कि इंसान को भगवान् ऐसा अवसर देते हैं कि वो ये जानने की कोशिश करे कि वो वास्तव में कौन है.वो देखे कि जन्म,मृत्यु,बुढापा और बीमारियाँ दुःख हैं.इस दुःख से संसार का कोई भी प्राणी बच नही सकता.

अब ये मूर्खता ही होगी कि आप इन समस्याओं का स्थायी हल खोजने की बजाय होठों को गोल करके,सीटी बजा कर के पशु की तरह कहे all is well .सब ठीक है.I am fine .इसीलिए मै तो यही कहूंगी अभी भी कुछ नही बिगड़ा है.अभी भी आपके पास समय है .आप उस राह पर चल निकलिए जहां आपको कष्ट न झेलने पड़े.भगवान् की शरण में आईये.और Kingdom of God  यानि प्रभु के धाम वैकुंठ धाम को प्राप्त करने का प्रयास कीजिये.


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मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब एक बहुत सुन्दर श्लोक सिर्फ आपके लिए.श्लोक का अर्थ :

"समस्त कामनाओं का अंतिम लक्ष्य तो श्री भगवान् का दास बनना है.यदि कोई बुद्धिमान मनुष्य अपने भक्तों को आत्मसमर्पित करने वाले परम प्रिय भगवान् की सेवा करता है तो वो भौतिक सुख की कामना कैसे कर सकता है जो नरक में भी प्राप्य है."

बहुत ही सुन्दर ये श्लोक है.और भक्त के प्रेम को ये श्लोक आपके सामने लाता है.भक्त जब भगवान् की भक्ति में,भगवान् के प्रेम के नशे में चूर-चूर होने लगता है.उसे आनंद-ही-आनंद आता है.तो बाकी दुनिया को देख कर वो बहुत आश्चर्य में चला जाता है.आश्चर्चाकित हो जाता है.सोचते लगता है कि अरे ये कामी कैसे हैं भाई.इनके ह्रदय में इतनी सारी कामनाएं कैसे उठती रहती है. मुझे ये चाहिए,मुझे वो चाहिए.





और आज तो आप देखिये जब आप टेलीविजन के सामने बैठते हैं कोई प्रोग्राम देखने तो उस प्रोग्राम की जो duration है,अवधि है वो बहुत कम होती है.बीच में इतने ad आते हैं और ad का मतलब है कि ये भी खरीद लो .दूसरा ad कहता है मुझे खरीद लो.और हर तरीके से लालच देता है.कुछ भी बेचकर के.कैसा भी ad होगा वो आपको बड़े ही आकर्षक तरीके से वो ललचाएगा मुझे खरीद लो.बच्चों को target बनाएगा कि हाँ बच्चे ये मांग करेंगे,बच्चे ये demand करेंगे कि मेरे साथी के पास ये है मुझे भी ये चाहिए.


तो ये जो कामनाएं हैं ये शुरू हो जाती हैं बचपन से ही.ये नही कि आप बड़े हो गए तो कामना शुरू हो गयी.कामनाओं का जो आरम्भ है वो तब से शुरू हो जाता है जब इंसान एक बच्चा होता है.बचपन में ही शुरुआत हो जाती है.और माँ-बाप अपने लाल की.दुलारे की समस्त कामनाओं को पूरा करने का दृढ संकल्प लिए रहते हैं.


आजकल तो वैसे भी माँ-बाप को बच्चों के साथ समय बिताने का time नही होता.तो वो जो बड़ा ही पछतावे का एक भाव होता है.पछताते है माँ-बाप तो उसे पूरा करने के लिए वो अपने बच्चों की हर demand को पूरी करना चाहते हैं.तुम्हे ये चाहिए,तुम्हे वो चाहिए ला देंगे,मोबाइल चाहिए मोबाइल भी ला देंगे.कोई problem नही है.ये भी लो.वो भी लो.सोचते नही हैं कि इसका क्या असर होगा.कितनी कामानाएं और अभी दह्केंगी,बहकेंगी.

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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर. इस समय हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.

"समस्त कामनाओं का अंतिम लक्ष्य तो श्री भगवान् का दास बनना है.यदि कोई बुद्धिमान मनुष्य अपने भक्तों को आत्मसमर्पित करने वाले परम प्रिय भगवान् की सेवा करता है तो वो भौतिक सुख की कामना कैसे कर सकता है जो नरक में भी प्राप्य है."

देखिये बड़ी सुन्दर बात है.बहुत ही प्यारी बात यहाँ बतायी गयी है.आपको बताया गया है कि समस्त कामनाओं का अंतिम लक्ष्य श्री भगवान् का दास बनना है.जितनी भी आपके ह्रदय में कामनाएं हैं वो सब बेकार है.आपके ह्रदय में जितनी भी कामनाएं हैं अगर वो आपको भगवान् की तरफ मोड़ती हैं तो उन कामनाओं का स्वागत है.लेकिन अगर वो आपको भगवान् से दूर कर देती है और आप सोचने लगते हैं अजी अभी कौन याद करे भगवान् को.अभी कोई मेरी उम्र थोड़े ही आयी है.

अगर आप अपने बालों को डाई करके ये सोचते हैं कि आपकी उम्र नही आयी है तो सोचिये कि ये किस प्रकार की बुद्धि है.सोचिये.हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि उम्र-वुम्र छोडिये.बचपन से
कौमार्य आचरेत प्राज्ञो

बचपन से कौमार्य अवस्था से ही आपको भगवान् को याद करने की training लेनी चाहिए,प्रशिक्षण.पहले होता था हमारे गुरुकुलों में कि भगवान् को याद करना,भगवान् की भक्ति करना विषय रहता था.लेकिन आज के schools में बहुत दुःख की बात है कि ये विषय नही हैं.और तो और हमारे अपने जमाने में.हम देखा करते थे कि जब हम प्रार्थना करने जाते थे.school जाते थे तो वहाँ एक assembly होती थी जिसमे हारमोनियम पे एक प्रार्थना गायी जाती थी.बड़ी ही सुन्दर प्रार्थना.मुझे याद भी है

"दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना.
हमारी सांस में आओ प्रभु
आँखों में बस जाओ "

हमलोग गाते थे लेकिन उस समय उस भजन का मर्म नही पता था.दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना.हमलोग गाते थे.लेकिन कहीं से वो शब्द आज कानों में गूंजते हैं तो लगता है है कि हाँ देखो हम कितना सही बात गाते थे और शायद बचपन में जो वो बात कही थी.ऐसे ही गाते थे लेकिन भगवान् ने उसे बड़े seriously ले लिया.और भगवान् ने अपनी कृपा,अपनी अहैतुकी कृपा ,causeless mercy के द्वारा हमलोगों को भक्ति का बीज प्रदान कर दिया.

अब ये हम पर है कि हम इस बीज को सूख जाने दे,इसे पानी न दे.इसे पल्लवित-पुष्पित न करे.या फिर इसको श्रवन-कीर्त्तन द्वारा सींचित करके इसे बाधाएं.भक्ति बेल,भक्ति लता को बाधाएं.

तो समस्त कामनाओं का अंतिम लक्ष्य भगवान् का दास बनना है.उम्र की इस अवस्था में आकर पता चला कि यही सत्य है.बहुत कामनाएं की,बहुत देखा,बहुत सुना.बहुत उंचा देखा,बहुत नीचा देखा.सब कुछ देखा.दुनिया देखी.और देखा अरे दुनिया में तो कोई किसी का है ही नही.सारे रिश्तों के दरम्यान स्वार्थ आ जाता है.सारे रिश्तों के दरम्यान.आप किसी भी रिश्ते को ले लीजिये.स्वार्थ जरुर मिलेगा आपको.जरुर.जरुर मिलेगा.

तो इसी तरह इसपर मुझे एक कथा याद आ जाती है छोटी से कि
एक बार एक भक्त थे वो अपने गुरु के पास गए.गुरु ने उन्ही बताया कि देखो सारे रिश्तों में सबसे बड़ा रिश्ता भगवान् से जो हमारा होता है वही होता है.तो उन्होंने कहा नही नही महाराज ये क्या कह रहे हैं.अरे मेरी पत्नी से जो मेरा रिश्ता है वो तो आप सोच भी नही सकते.मेरी पत्नी मुझे बहुत प्यार करती है और मै अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूँ.वो तब तक खाना नही खाती जब तक मै आ नही जाता हूँ.बहुत ही प्रेम करती है.

तो गुरु ने कहा ठीक है प्रेम की परीक्षा होती है आपके.देखते हैं क्या होता है.तो वो जो व्यक्ति है उसको उन्होंने कहा कि तुम सिर्फ एक दिन ये करो कि तुम थोड़ा देर से जाना घर.और उसके बाद उनको सिखाया गया कि ऐसे सांस रोक लेना.पता नही चलेगा कि आप ज़िंदा हैं कि मर गए.लगेगा सबको कि आप मर गए.तो उन्होंने कहा ठीक है हम ले लेते हैं परीक्षा आपके कहने पर हालांकि वो परीक्षा के लायक तो नही है.फिर भी ठीक है.

अब वो गए और जा करके ऐसे ही लेट गए और सांस रोक ली उन्होंने.सांस रोक ली तो सब चिल्लाने लगे,रोने लगी.पत्नी भी दहाड़े मार-मार कर रोने लगी.तो गुरु जी आये वहां और कहा क्या हुआ.कह रहे हैं देखिये ये तो मर गए.तो उन्होंने ने कहा देखो मुझे इसे जिलाना आता है.मै इसे ज़िंदा कर दूंगा लेकिन आप में से किसी एक को अपने प्राण देने होंगे.उस प्राण को मै इसमे डाल दूंगा.ये जिंदा हो जाएगा.

माँ से कहा.माँ ने कहा भाई मै क्या करूँ.मुझे तो अपनी बेटी की शादी करनी है.भाई को कहा तो भाई ने कहा देखिये न मेरे भी तो घर-बार हैं.बच्चें हैं.मै कैसे आ सकता हूँ.पिता ने भी यही कहा कि अगर मै मर जाउंगा तो फिर इस घर की देखबाल कौन करेगा.मेरी पेंशन से तो अधिकतर काम होते हैं.बीबी को कहा कि चलो तुम मर जाओ क्योंकि तुम्हारा तो फिर कुछ नही बचेगा.तो उसने कहा क्या कहते हैं आप.इस उम्र में आप मुझे ये बात कहते हैं.मेरे पति को पता चलता तो बड़े दुखी होते.जी नही मै भी नही मर सकती.

तो इस तरह से उस व्यक्ति के लिए मरने को कोई तैयार नही हुआ.फिर वो व्यक्ति उठा और उसने अपने गुरु की शरण ले ली क्योंकि वो समझ गया कि यहाँ सब कुछ स्वार्थ पर आधारित है.

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कार्यक्रम में आपलोगों का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:

"समस्त कामनाओं का अंतिम लक्ष्य तो श्री भगवान् का दास बनना है.यदि कोई बुद्धिमान मनुष्य अपने भक्तों को आत्मसमर्पित करने वाले परम प्रिय भगवान् की सेवा करता है तो वो भौतिक सुख की कामना कैसे कर सकता है जो नरक में भी प्राप्य है."

ये सिद्धि की बात हो रही है यहाँ पर.अगर आपने ये सोच लिया कि मेरा एकमात्र aim ,ambition प्रभु का दास बनना है तो ये समझ लीजिए कि आपके ambition की सिद्धि,perfect अवस्था है.perfection को प्राप्त हो गए.क्योंकि यहाँ बताया है कि जो भगवान है वो भक्तों को आत्मसमर्पित हो जाते हैं.भगवान भक्त के भाव को ग्रहण करते हैं.भक्त की और कोई बात नही देखते.कोई qualification नही देखते कि आपकी educational qualification क्या है.

आप जब कभी नौकरी के लिए जाते हैं.आप भी तो दास बनने के लिए जाते हो.जाते हो कि नही जाते हो.आप कोई मालिक बनने के लिए तो जाते नही हो.आपको पता है कि फलां-फलां factory का मालिक फलां-फलां व्यक्ति है.लेकिन आप जब वहाँ apply करते है ,किसी भी company में तो आप वहाँ क्या चाहते हैं.नौकरी .नौकरी शब्द में इ हटा दे तो नौकर.यानि हम दास बनना चाहते हैं.हमें एक मालिक चाहिए जो हमारा भरण-पोषण कर सके.ठीक है न.

तो हम अपने नज़रें प्रभु से फेर करके  दुनिया के तरफ बढते है तो हम भी चाहते है कि हम नौकर बन जाएँ.लेकिन वहाँ का जो मालिक है वो अपने नौकर को आत्मसमर्पित नही होता.ये याद रखिये.वहाँ का जो मालिक है उस corporate sector का माली है वो आपको पैसे दे देगा लेकिन आपको अपना समर्पण थोड़े करेगा.वो आपकी हर बात को इतने मनोयोग से सुनेगा थोड़े ही.वो अपने आप को आप पर न्योछावर थोड़े ही करने लगेगा.वो ये थोड़े ही ही कहेगा कि आप आगे चलिए और आपकी चरणधूली मुझ पर परे और मै तर जाऊं.सोचिये आजकल इस company का मालिक ये कहेगा कि नही कहेगा.नही कहेगा.

तो ये क्या स्थिति है.भगवान के बारे में सोचिये.जब आप भगवान की दासता स्वीकार करते हैं.भगवान के प्रभुत्व को स्वीकार करते हैं.जब आप कहते हैं कि प्रभु आप मेरे मालिक हैं.अब आप ही देखए कि मेरा क्या होगा.जब आप आत्मसमर्पण कर देते हैं पूर्णतया.शर्त ये है.पूर्णतया.है न.fully surrendered होना है.कहीं से कुछ गुंजाइश न रहे.कही से कुछ रस्सियाँ आप अपने पास न रखे.सारा control उनके हाथ में रहे.भैया मै तो puppet हूँ .कठपुतली हूँ.आप मेरे सूत्रधार.आप पकडिये और मुझे चलायिये.जो करना है करिये प्रभु.वैसे भी चला तो आप ही रहे हो मै तो सिर्फ मान ही रहा हूँ न.

जब आप ये काम करते हैं तो भगवान के लिए क्या कहा गया है यहाँ.कि भगवान अपने भक्तों को आत्मसमर्पित हो जाते हैं.अरे बहुत बड़ी बात है ये.भगवान कहते है शास्त्रों में कि वो अपने भक्तों के पीछे-पीछे चलते है कि ताकि उनके चरणों की धुल उनके शरीर पर पड़े.ये कहते है भगवान.सोचिये.

दुनिया का किसी भी company का कोई मालिक ऐसा नही कहेगा न करेगा.उसको तो ये भी नही पता कि मेरी company में कितने लोग काम कर रहे हैं.क्या काम कर रहे हैं.तो उस मालिक ने यानि कि जो भौतिक दुनिया का मालिक है और इस मालिक में बहुत बड़ा जमीन-आसमान का फर्क है.जब आप इनके दास बन जाते हैं.तो कहने के लिए ही दास हो जाते हैं.वस्तुतः भगवान तो आपके अधीन हो जाते हैं.आप मालिक बन जाते हैं.इतनी power दे देते हैं आपको.इतनी power,इतनी ताकत दे देते हैं.

तो भगवान जो हैं वो कहते हैं मै तो अस्वतंत्र हूँ भाई.मै तो अस्वतंत्र हूँ.भक्तों के ह्रदय में रहता हूँ.

साधुम ह्रदय महियम
बड़ा सुन्दर श्लोक है कि मै साधुओं के ह्रदय में ,साधू मतलब जो मेरे भक्त हैं.मै भक्तों के ह्रदय में रहता हूँ और भक्त मेरे ह्रदय में रहते हैं.वो मेरे अलावा कुछ नही जानते और मै उनके अलावा कुछ नही जानता.ये relationship है,ये सम्बन्ध है.देखिये मालिक और दास है तो भी मालिक कहता है कि मै मै अपने दास के अलावा कुछ नही जानता.वो मेरा मालिक है और दास कहता है आप मेरे मालिक हो.

समझ रहे हैं.ये प्रतिस्पर्धा चल रही है एक-दूसरे को उच्च बनाने की.जब इतना सुख प्राप्त होगा तो कोई इस सुख को प्राप्त करके भौतिक सुख की कामना कर भी कैसे सकता है.अगर प्रभु से प्रेम है तो भौतिक सुख की कामना आपके ह्रदय में उठ भी नही सकती.जहाँ भी मिलेगा वहाँ सो जाओगे.जो मिलेगा खा लोगे.जैसा मिलेगा वैसे आप रहोगे.लेकिन आप प्रभु को कभी नही छोडोगे क्योंकि भौतिक सुख तो नर्क में भी मिल जाते है.मगर भगवान बहुत important है.

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कार्यक्रम में आपलोगों का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक परलेकिन अब एक और श्लोक आपके लिए.श्लोक का अर्थ :
यद्दपि परमेश्वर कर्म के अनुसार प्राप्त होनेवाले हमारे सुख और दुःख से अनासक्त हैं और कोई भी उनका शत्रु और मित्र नही है.तो भी वो अपनी माया के द्वारा शुभ और अशुभ कर्मों की उत्पत्ति करते हैं.इसप्रकार भौतिक जीवन को चालू रखने के लिए ये सुख-दुःख,लाभ-हानि,बंधन-मोक्ष और जन्म-मृत्यु की सृष्टि करते हैं.

तो भगवान ही तो ultimate सृष्टा हैं.भगवान ही तो सृजक है.सबकुछ वही तो बनाते हैं.जीवन में,दुनिया में जो कुछ आप देखते हैं वो उदभूत कहाँ से होता है.उत्पन्न कहाँ से होता है.भगवान से होता है.है न.भगवान ही से होता है.भगवान कहते भी हैं.
(10.8)
मै सब चीज की उत्त्पत्ति का कारण हूँ.मुझी से सबकुछ उत्पन्न होता है.बहुत बड़ी बात है .तो वो कहते हैं और शास्त्र भी यही कहते हैं.और साधू भी यही बताते हैं.जब तीनों का जब मत एक होता है तब उसे सत्य कहा जाता है.है न.तब उसेप्रमाण कहा जाता है.प्रामाणिक कहा जाता है कि हाँ ये बात सच है भाई.क्यों?क्योंकि तीनों एक-दूसरे की बात का समर्थन करते हैं.शास्त्र,साधू और गुरु भगवान ये सब एक दूसरे की बात का जब समर्थन करते हैं तो उस बात में सच्चाई होती है.

इस श्लोक में जो आपको बताया गया है इसमे बहुत बड़ी बात छुपी है.बहुत बड़ी बात.भगवान के बारे में बताया गया है कि प्रभु बहुत दयालु हैं.बहुत करुणामय हैं.और कर्म के अनुसार हमारे सुख और दुःख से अनासक्त हैं.बहुत बड़ी बात है ये जो लाइन है न,ये जो पंक्ति बहुत meaningful है.महत्त्वपूर्ण है.क्या? कि कर्म के अनुसार प्राप्त होते हैं हमारे सुख और हमारे दुःख.

तो कभी ये मत समझो कि हे भगवान तुमने हमें दुःख क्यों दे दिया.ये समझना हमारे भूल होगी.क्योंकि हमने ऐसे कर्म किये कि हमें सुख भी मिल रहा है और दुःख भी मिल रहा है.ऐसा नही है कि सिर्फ सुख ही मिलेगा.और ऐसा नही है कि सिर्फ दुःख ही मिलेगा.क्यों?क्योंकि भगवान ने इस जगत की सृष्टि इसप्रकार से की है कि ये जगत द्वंदों से भरपूर है.Dualities से भरपूर है.कोई अच्छा है तो कोई बुरा है.कही पाप है तो कही पुण्य है.है न.कही सर्दी है तो कही गर्मी है.

कई बार एक ही समय पर यहाँ सर्दी है तो कही और धरती के किसी और किनारे पर गर्मी है.यहाँ गर्मी है तो वहाँ सर्दी है.यहाँ दिन है तो वहाँ रात है.वहाँ दिन है तो वहाँ रात है.सोचिये.सोचा करिये इन चीजों के बारे में.सोचने की आदत डालिए तो आपको मज़ा आएगा.भगवान की जादूगरी ,भगवान की कलाओं में,भगवान ने जो सृष्टि की है.जिसप्रकार से की है उसमे भी आपको बहुत ही रस मिलेगा.

तो भगवान के बारे में यहाँ बताया गया है कि भगवान कर्म के अनुसार प्राप्त होनेवाले हमारे सुख और दुःख से अनासक्त हैं.अगर आप बहुत सुखी हैं तो ये नही कि भगवान दुखी हैं कि ये जीव मायाबद्ध है ये सुखी क्यों है.नही आपने कर्म ऐसे किये हैं तो प्रकृति आपको सुखों का तोहफा देगी लेकिन तो भी उसके साथ दुःख जुड़े रहेंगे.क्यों?क्योंकि जिन चीजों से आज सुख मिल रहा है कल उन्ही चीजों से दुःख हो सकता है.होगा.

आज बच्चे पैदा हो गए.हमने खूब ढोल बजाये.नगारे बजाये.यहाँ मिठाईयां बंटवायी,वहाँ card छपवाए बंटवाए.कल को बच्चा बीमार हुआ मर गया तो शोकाकुल हो गए.हम कहेंगे कि ठीक है ऐसा नही होना चाहिए.आप कहेंगे कितनी मनहूस बात कर दी तुमने.लेकिन ये सत्य नही है क्या?क्या ऐसा कभी हुआ नही है?क्या ऐसा होता नही है?

आप के बीच में ही होता है.आपके आसपास होता है.क्या पता आपके साथ हुआ हो.तो हमारे सुख और हमारे दुःख हमारे अपने कर्मों का परिणाम है.उसके लिए आप भगवान को कभी भी दोषी मत ठहरायिये.हो सके तो अपने कर्मों को सुधारने का प्रयास कीजिये.बेहतर होगा कि आप अपने समस्त कर्मों में भगवान को जोड़ लीजिए तो आपके कर्म अकर्म बन जाएंगे.उनका फल आपको भोगना नही पडेगा.

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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर

यद्दपि परमेश्वर कर्म के अनुसार प्राप्त होनेवाले हमारे सुख और दुःख से अनासक्त हैं और कोई भी उनका शत्रु और मित्र नही है.तो भी वो अपनी माया के द्वारा शुभ और अशुभ कर्मों की उत्पत्ति करते हैं.इसप्रकार भौतिक जीवन को चालू रखने के लिए ये सुख-दुःख,लाभ-हानि,बंधन-मोक्ष और जन्म-मृत्यु की सृष्टि करते हैं.

भौतिक जीवन को चालू रखने के लिए जरूरी है कि ये सब हो.भौतिक जीवन को चालू रखने के लिए भगवान पूरा environment सब कुछ देते हैं आपको.सुख और दुःख दोनों देते हैं.अगर सुख ही सुख मिलता है आपको तो आपको सुख की कीमत समझ नही आती है.है न.यानि कि जैसे कि अगर आपको बहुत पसीना न आये तो आपको पंखे की हवा की कीमत समझ नही आती है.आपको बहुत गर्मी लगी है तब आपको समझ आता है कि हाँ पंखे की हवा में कितना सुख है.आपको प्यास लगी है तो आप कहते हैं आहा हा पानी से कितना सुख है.हमें बहुत अच्छा लगता है पानी पी के.बहुत आत्मा तृप्त होती है.है कि नही.लेकिन अगर प्यास ही न हो तो पानी की क्या कीमत है.ठीक हैं न.

तो ये सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा हुआ है.interconnected है.समझ रहे हैं.तो भगवान की सृष्टि है  लाभ-हानि.profit ही profit ,profit ही profit होता रहे तो profit की क्या क़द्र करोगे.एक बार loss हो जाएगा,हानि हो जायेगी तो अप कहेंगे कि हमें profit कमाना है.और आप जो हैं अपनी strategies को ,अपनी रणनीतियों को तय करेंगे.और तब उस पर चलेगे.तो तय करने और उस पर चलने में जो मज़ा आएगा उस मज़े का आप आस्वादन करेंगे.

तो इसप्रकार से भगवान जो हैं द्वैड़ता से भरपूर परिस्थितियाँ हमारे लिए create करते हैं. वो creator हैं.बहुत बड़े creator हैं.और हमारे सुख और दुःख से अनासक्त हैं.क्योंकि भगवान का नाम क्या है?क्या है भगवान का नाम?भगवान स्वयं आनंद हैं.अगर हमारे सुख और दुःख से वो दुखी हो जाए.हमारे सुख और दुःख से तो फिर बताईये आनंद कहाँ जाएगा.आनंद का मतलब ही है कि सर्वोच्च अवस्था. सर्वोच्च अवस्था..आनंद कभी परिवर्तित नही होता है. completeness होती है आनंद में.उसमे पूरना रहती है.थोड़ा-थोड़ा करके आनंद नही मिलता.आनंद का मतलब है पूर रूप से आपको प्राप्त होना.

तो यहाँ बताया गया है कि भगवान का कोई शत्रु या मित्र नही है.कोई शत्रु नही है.और कोई मित्र नही है.ये नही कि भगवान सोचे कि ये व्यक्ति मेरा मित्र है और ये मेरा शत्रु है.नही शत्रु को भी वो.सामने अगर उनके आ जाते हैं तो शत्रु भी सोक ह लीजिए कहाँ पहुँच जाता है.उनके धाम पहुँच जाता है.है न.उसका भी उद्धार हो जाता है.जो भगवान को शत्रु के रूप में देख रहा है.जो भगवान से वैर ले रहा है.और अगर भगवान ने उसका संहार कर दिया ,उसे personally मार दिया तो सोच लीजिए कहाँ चला गया वो.वो फिर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है.

तो भगवान कितने merciful  हैं.अगर आपसे कोई शत्रुता मोल लेता है तो आप क्या उसे ऐसी गति देंगे कि हाँ चलो इसको बहुत अच्छे गति दे देते हैं.ऐसा नही करेंगे.क्योंकि शत्रुता है तो आप चाहेंगे कि इसका नामोनिशान मिटा दे.लेकिन भगवान ऐसे नही हैं.वो हर हाल में परम दयालु हैं.हर हाल में.हर कीमत पर.उनके ह्रदय में कही से कुछ बड़े विचार नही आते हैं किसी के लिए.सबके शुभेच्छु है.क्योंकि भगवान ने कहा है:

सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥

मै सबका best friend हूँ.किसी एक व्यकि से खूब राग हो और किसी से द्वेष हो ये हमारा nature है.हमारी और आपकी प्रकृति है.ये भगवान की प्रकृति नही है.

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।

है न भगवान कहते हैं.मै तो सभी लोगों के लिए समान भाव रखता हूँ.तो जो व्यक्ति ये बात समझ जाता है.और ये समझ जाता है कि ये जो दुःख मुझे मिल रहे हैं  ये भगवान  ने मेरे लिए नही उत्पन्न किये..तीन गुण.तीन गुण हैं इस प्रकृति में और तीनों गुणों में से जिस गुण को मैंने अपनाया ,जिसे पल्लवित-पुष्पित किया.उस गुण ने मुझे ये दुःख दिए .

तो क्या करना चाहिए.भगवान की शरण लेने का प्रयास करना चाहिए.जिस गुण में हैं उससे ऊपर उठने का प्रयास करे.ऊपर वाले गुण पर जाईये.और धीरे-धीरे उनकी शरणागति लेकर के आप निर्गुण अवस्था को प्राप्त करने का प्रयास कीजिये.

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कार्यक्रम में आपका बहुत-बहुत स्वागत है.अब समय है आप सबके sms को कार्यक्रम में शामिल करने का.
SMS:गणेश बसंत विहार से कहते हैं कि भक्ति की प्रक्रिया में खुद को केंद्र से निकाल कर भगवान को केंद्र में बिठाना है.
Reply By माँ प्रेमधारा:
बिलकुल सही बात है.भक्ति कहते ही इसे है कि आप अपने जीवन के केंद्र में ,center में अपने आप को मत बिठाओ .भगवान को बिठा लो.यानि कि अपने लिए हर चीज मत करो.भगवान के लिए करो.हर काम भगवान के लिए.हर सोच भगवान के लिए.हर ख्याल भगवान के लिए.है न.जो कुछ भी आप खरीदारी करते हैं सब प्रभु के लिए.ठीक है न.और जो भी आप व्यवहार करते हैं वो सब भगवान के लिए,अपने लिए नही.तो उसे ही तो भक्ति कहते हैं.क्योंकि जब आपको प्रेम होगा तभी आप ऐसा करोगे.

SMS:अशोक दिल्ली से 
खुद को खोया है तुझको पाने में,
मेरा कोई नही है इस जमाने में.
चाहे तो कोई देख ले सीना चीर के ,
मेरे प्रभु हैं इस दिल के आशियाने में.
Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत खूब अशोक जी.बिलकुल सही बात है.खुद को मिटा कर अगर आप भगवान को पा  ले तप मेरे ख्याल से ये बहुत ज्यादा,कोई बहुत बड़ी कीमत नही है.भगवान आपको फिर भी सस्ते में मिल गए.अगर आपको प्रभु मिल जाते हैं तो आप उन्हें दिल के आशियाने में बंद कर लो जाने मत देना.

SMS:सब कुछ जानते हुए भी गलती करने को क्या कहेंगे?
Reply By माँ प्रेमधारा:
विजय जी आपने बहुत बड़ी बात पूछ ली क्योंकि हम गलतियाँ कर रहे हैं सब कुछ जानते हुए.सब कुछ जानते हैं.है न.हम सब जानते हैं कि हम यहाँ हमेशा के लिए नही आये.आप मुझे बता दो आप में से कोई ये कह सकता है कि मै यहाँ हमेशा के लिए आया हूँ.कोई भी कह सकता है कि हाँ ये जो मेरा बच्चा पैदा हुआ है.इसे मै इतना प्यार करता हूँ .ये हमेशा के लिए यहाँ रहेगा.हाँ ये मेरे माँ-बाप.ये मेरे भाई-बहन.ये मेरे पत्नी-पति.ये सब हमेशा के लिए यहाँ रहेंगे.

सब जानते है.सब जानते हैं लेकिन जैसे ही वो व्यक्ति हमसे दूर होता है हम रोने लगते हैं.जानते हैं लेकिन रोते हैं.जानते हैं पर रोते हैं.है कि नही.जबकि भगवान कहते हैं

जातस्त हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥

भगवान कहते हैं जिसने जन्म लिया है मौत की टिकट तो वो साथ लेके घूमता है.काल तो आपके साथ रहता है पर कब वो गर्दन दबाएगा उस वक्त की देरी है.जब भी चाहे दबा सकता है.साथ में है साथ में.सांप आपकी जेब में है और वो आपको कभी भी काट सकता है.आपके साथ है.साथ है.कहीं से आएगा नही.

तो हम जानते है मगर जानते हुए भी कितनी गलतियाँ करते हैं.कितने प्रकार के रिश्ते बनाते हैं.उन रिश्तों में आसक्त होते हैं.कितने बेकार के कामनाएं पैदा करते हैं अपने जीवन में.जानते हैं कि इच्छा  करेंगे तो भगवान इतने करुणामय हैं कि अंतिम इच्छा जो हमारी होंगी उसके अनुसार हमारी देह मिल जायेगी.अंतिम इच्छा आपकी meat खाने की होगी तो भगवान कहेंगे कि क्यों जहमत उसे पकाने की.लो शेर की देह ले लो और इसमे खाना.कच्चा खा जाना.उसमे रस आएगा.

तो  इसप्रकार जिसप्रकार की हमारी अंतिम इच्छा होती है 
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्‌ ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥


भगवान कहते हैं.तो आप ये कहते हैं कि सबकुछ जानते हुए भी गलती करने को क्या कहेंगे.मूर्खता कहेंगे और क्या कहेंगे.हम मूर्ख है.

तो अब बारी है हम intelligent बने.है न.समझदार बने.कैसे बनेंगे समझदार.समझदारी इसी में है कि बिना एक क्षण खोये ,तत्क्षण ,इसी क्षण ,just now हम भगवान के शरणागत हो जाए.यही समझदारी है.इसन अगर आप बने हैं.आपको नर देह मिली है तो इसी समर्पण के लिए मिली है कि आप प्रश्न पूछ कर के.उत्तर जान करके समर्पित हो सकते हैं.एक पशु ऐसा नही कर सकता.वो तो बेचारी भोग योनी है.आपकी कर्म योनी है तो आप ऐसे कर्म कर सकते हैं कि आप प्रभु को प्राप्त करे.सुन्दर  र्म कर सकते हैं.

तो सबकुछ जानते हुए भी हम गलती करते हैं.हमने सब कुछ सूना सत्संग में.रेडियो में आप  सुन रहे हैं.टी.वी. में आप देखते हैं.अपने गुरु से आप सुनते हैं.शास्त्रों को आप पढते है आपको पता चलता है.तो भी आप गलती करते हैं.आप serious नही होते हैं आत्मसाक्षात्कार के प्रति.कल के लिए मामला ताल देते हैं.तो आप ही बताईये आप इसे क्या कहेंगे.

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कार्यक्रम में आप सबके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS:U.P से दीपा कहती हैं
Self purification is the most necessary condition for getting God’s blessings.
 Reply By माँ प्रेमधारा:
यानि कि self purification आत्मशुद्धि भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है.
बिल्कुल सही बात है आत्मशुद्धि भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बहुत ज्यादा जरूरी है दीपा.लेकिन ये आत्मशुद्धि होगी कैसे मुझे ये बताओ.कैसे होगी आत्मशुद्धि.टेलीविजन देखकर के आत्मशुद्धि होगी.mall जाकर के होगी.लोगों से मिलकर के होगी.kitty parties से होगी.कैसे होगी.कौन-सा तरीका है.

सत्संग से आत्मशुद्धि होगी.भगवान के बारे में सुनने से आत्मशुद्धि होगी.भगवान का कीर्त्तन करने से आत्मशुद्धि होगी.भगवान के भक्तों का सदा-सर्वदा संग करते रहने से आत्मशुद्धि होगी.भगवान का नाम लेते रहने से आत्मशुद्धि होगी.तो जब आत्मशुद्धि हो जायगी.

और मज़े की बात ये है कि ये सब काम आप करेंगे इसके लिए ही भगवान की सबसे ज्यादा blessings की जरुरत है कि आप आत्मशुद्धि के process से जुड़े इसके लिए भगवान के आशीर्वाद की जरुरत है.हर कोई कहाँ जुड पाता है देखिये.भगवान का कोई भक्त या भगवान स्वयं आते हैं.भगवान किसी भक्त को भेजते हैं या भगवान अपनी अहैतुकी कृपा करते हैं किसी भी व्यक्ति पर.भगवान सबके ह्रदय में बैठे हैं.तो कोई व्यक्ति आत्मशुद्धि की इस प्रक्रिया से जुड पाता है.भक्तों का संग कर पाता है.उसका मन भगवान के कीर्त्तन में लग पाता है.भगवान की कथाओं को,भगवान के प्रसंगों को सुनने में लग पाता है.घंटों बैठा रह जाता है और उफ़ तक नही करता.समझ रहे हैं.आँख मतलब पलक पर पलक नही धरता.सोने की बात तो अलग है.

कई बार सत्संग में लोग सो रहे होते हैं.कितने unfortunate होते हैं वो लोग,दुर्भाग्यशाली.तो आत्मशुद्धि के process से उस प्रक्रिया से जुडने के लिए भगवान का आशीर्वाद ज्यादा जरूरी है.

SMS:अरुण बागपत पूछते हैं भगवान ने देवी-देवता क्यों बनाए?
 Reply By माँ प्रेमधारा:
अरुण देखिये जैसे कि कोई किसी देश का प्रधानमंत्री होता है.प्रधानमंत्री किसी भी देश का हो तो वो अपने शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए.कई प्रकार के ministers रखता है.मंत्री पद तैयार करता है.मंत्रियों का ओहदा तैयार करता है.Cabinet Ministers state ministers ये सब होते हैं.इसीप्रकार से भगवान् के समस्त शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए भगवान् ने अधिकार प्राप्त देवी-देवता बनाए.उन्हें अधिकार दे दिया और उनको कर्तव्यों की सूचियाँ भी थमा दी.

ताकि भगवान् स्वयं आनंद मनाते रहे क्योंकि वो आनंद घन हैं.आनंद की वर्ष करनेवाले हैं.तो अगर आप Cabinet Minister से जुड़ जाते हो यानि कि देवी-देवताओं से जुड़ जाते हो तो ये आपको क्या देंगे 
अन्तवत्तु फलं तेषां 
Official बातें होंगी सारी .temporary results आपको देंगे.बच्चा माँगा बच्चा मिल गया.गाडी मांगी गाडी मिल गयी.बीबी मांगी बीबी मिल गयी.लेकिन मोक्ष नही मिला.क्यों?क्योंकि उसका जो निजाम है.उसका जो हक़ है.उसका जो right है वो भगवान् के हाथ में है.भगवान् जो हैं वो आपको मोक्ष दे सकते हैं.मुक्ति दे सकते हैं. अपना प्रेम आपके ऊपर बरसा सकते हैं.तो प्रभु से जुड़ना ये The Most Important है.

और सिर्फ उन्ही से जुड़ जायेंगे तो फिर किसी की जरूरत ही नही होगी.जैसे कि मान लीजिये राजा है और राजा का अगर जो दोस्त है वो उसके मंत्रियों का भी दोस्त हो गया.उसके मंत्री उसकी गुलामी करेंगे.उसके मंत्री उसको बहुत इज्जत देंगे.इज्जत अफजाई होगी.

SMS :गणेश जी दिल्ली से पूछते हैं 
क्या भक्ति करके हम आलसी नही बन जायेंगे?
Reply By माँ प्रेमधारा:
किसने कहा कि भक्त आलसी होते हैं.किसने कहा.अरे जो शुद्ध भक्त है वो तो सुबह बहुत जल्दी उठाते हैं .ब्रह्म मुहूर्त में भगवान् को प्रसन्न करने निकल जाते हैं क्योंकि उनकी जिन्दगी का केंद्र-बिंदु भगवान् होता हैं.उनकी जिन्दगी का उद्देश्य भगवान् होते हैं.भगवान् को रिझाना है.उन्हें प्रसन्न करना है.खुश करना है.

तो वो सुबह साधे तीन बजे उठकर नहाते धोते हैं.एक आम आदमी साधे तीन बजे उठकर नहायेगा धोएगा क्या?भक्त सुबह साधे तीन बजे उठकर नहाते हैं और भगवान के आगे जाकर मंगल आरती गाते हैं.भगवान् का नाम लेते हैं.भगवान् की कथाओं को पढ़ते हैं.कहाँ से आलसी होते हैं.फिर भगवान् के लिए सुन्दर-सुन्दर भोग तैयार करते हैं.भगवान का प्रचार करते हैं.आलसी कहाँ है.चौबीसों घंटे काम है उन्हें चौबीसों घंटे काम है.

तो उन्हें मत सोचिये.जो लोग जिनका पेट निकला रहता है और किसी भी प्रकार के वस्त्र पहन कर के बैठे रहते हैं.उनकी भक्ति के बारे मे मै नही कह रही.ये शुद्ध भक्त के बारे में बात होती है.
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कार्यक्रम में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS :अंजू मंगल नारायण से कहती हैं
अनूकुलता प्रतिकूलता को मत देखो जिसने उनको भेजा है उस प्रभु को देखो और उन्हें अपना मान कर प्रसन्न रहो.
Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत अच्छी सलाह है आपकी.आप अनुकूलता,प्रतिकूलता,सुख और दुःख को मत देखिये.लेकिन यहाँ आपने एक गडबड कर दी.आपने कहा जिसने उनको भेजा है उस प्रभु को देखो.मैंने आपको बताया भगवान कहते हैं

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्‌ ॥

भगवान कहते है कि मै सभी पर समान भाव रखता हूँ.बहुत बड़ी बात है.समान भाव रखते हैं भगवान सभी पर.तो ये नही कि किसी के लिए favorable condition भेज देंगे.अनूकुल परिस्थितियाँ तैयार कर देंगे और किसी के लिए unfavorable प्रतिकूल.नही आपके अपने कर्म हैं जिसकी वजह से ऐसा होता है.तो अपने कर्मों को तो आप कभी देखते नही हैं.हैं न.और आप कहते हैं भगवान ने हमें ये सब दिए.

ये अच्छी बात है कि भगवान को अपना मान लीजिए.ये सुख और दुःख को भूल जायेंगे आप automatically जब आप आनंद से जुडेंगे तो खुद ही आनंदित इतने हो जायेंगे कि आपकी ये भौतिक परिस्थितियां आपको हिला नही सकेंगी.

लेकिन ये कभी नही कहिये कि प्रभु ये सब आपने किया.नही भगवान नही करते हैं.हम करते हैं.हमारी वजह से होता है.हमारे अपने कर्मों के वजह से होता है.

SMS:जाने कौन है दिल्ली से कहते हैं
Heartily thanks to radio meow for giving for giving spiritual oxygen to our mind and soul to divert from materialistic to spiritual world.

Reply By माँ प्रेमधारा:
शुक्रिया आपका भी.कहते हैं कि रेडियो Meow का शुक्रिया जिसने हमें अध्यात्मिक ऑक्सीजन दी हमारे दिमाग को ,हमारी आत्मा को ताकि हम भौतिक जगत से हटकर आध्यात्मिक जगत की ओर अग्रसर हो सके.

आपका भी बहुत-बहुत शुक्रिया कि आप कार्यक्रम को इतना ध्यान से सुन रहे हैं कि आपको लगा कि ये कार्यक्रम आपके लिए spiritual oxygen का काम करता है.

SMS:रवींद्र Greater Noida से कहते हैं
भगवान director हैं ,जीवन drama है और इंसान actor है.

Reply By माँ प्रेमधारा:
बिल्कुल सही बात है भगवान ही निर्देशक हैं क्योंकि भगवान ने प्रकृति बनायी और प्रकृति के जो तीन गुण हैं उससे हम बंधे हुए हैं.तीन गुण की रस्सियों से हम बंधे हुए हैं.माया ने हमने बंधा हुआ है.तो हमें ये रस्सियाँ दिख नही रही है.ये हमारी problem है.

और अगर दिखने लग जाए तो समझ लीजिए कि आप ज्ञानी हो गए.हर व्यक्ति को जरुरत है ऐसे ही ज्ञान की .ताकि वो समझ पाए कि वो तीन प्रकार की रस्सियों से बंधा हुआ है.इन रस्सियों को जब आप समझ लेंगे तो आप रस्सी को बनानेवाले को समझ जायेंगे.और जब उसे समझ जायेंगे तो समझिए कि आपकी समझ पूरी हो गयी.

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SMS:दीपिका फरीदाबाद से GOD की परिभाषा देती हैं
G:Generator
O:Operator
D:Destroyer
Reply By माँ प्रेमधारा:
यही हमारे यहाँ भी कहा गया है कि भगवान का अर्थ है जो सृष्टि करते हैं ,सृजन करते हैं ,जो पालते हैं और फिर संहार कर देते हैं.ये भगवान के कार्य है.तीन प्रकार के विशेष कार्य हैं और इससे GOD भी बना है.दीपिका बहुत अच्छी बात आपने बतायी.

SMS:एक सवाल जाने किसने जाने कहाँ से किया है
यदि आत्मा अमर है तो दुनिया में इंसान limited होने चाहिए थे.
Reply By माँ प्रेमधारा:
क्यों?limited क्यों होने चाहिए थे.भगवान असीम हैं तो भगवान की creation भी तो असीम होगी.आप क्यों सोचते हैं कि आत्मा अमर है तो इंसान limited होने चाहिए.सिर्फ इंसान देखते हैं.आप जल के अंदर जाके देखिये कितने कितने कितने प्रकार के प्राणी रहते हैं.कभी गिनती की है उनकी.जल में जो प्राणी रहते है.समुन्द्र में जाईये देखिये कितने प्राणी रहते हैं.इन हवाओं में कितने प्रकार के bacteria वगैरह रहते हैं.कभी गिनती की है आपने.

तो फिर आप ये क्यों कहते हैं कि सिर्फ इंसान ही ज्यादा है.आप इसलिए कहते हैं क्योंकि अब सुविधाओं की कमी हो गयी है.सुविधाएं नही रही अब हमारे भोगने के लिए.कितने मकान हमने बना दिए हैं.जहाँ मकान की जरुरत नही है वहाँ भी हमने जाने क्या-क्या चीज create करके रख दी है.कितनी factories कितने कुछ बना दिए हैं.रबड़ बन रहा है.जाने क्या-क्या बन रहा है.

ये सब उन जमीनों पर बनाया गया है जहाँ पर हम खेती करके अपनी भूख मिटा सकते थे.क्योंकि अब short supply में सब  item है कीमत भी बढ़ेगी.अपनी करनी का भुगतान हम अदा करते है तो इसमे भगवान को क्यों दोषी ठहरा देते हैं.ये हमारी अपनी करनी है.ठीक है न.तो क्यों कहते हैं कि क्योंकि हम बहुत ज्यादा हो गए हैं इसीलिए सुविधाओं की कमी है.

मै आपको एक तरीका बाताती हूँ जो शास्त्र हमें बताते हैं.ये मेरा अपना तरीका नही है.शास्त्र का तरिका है कि यदि आप सब व्यक्ति भगवान का गुणगान करेंगे.सब व्यक्ति 100% लोग भगवान का नाम लेंगे.भगवान की भक्ति करेंगे तो इस दुनिया में  किसी भी चीज की कमी नही रहेगी.क्योंकि जो provider है जो भगवान है.जो operator है जो पालक हैं हमारे वो हमें सब कुछ provide करेंगे .

क्योंकि हम भगवन से विमुख हो करके खुद को भगवान मानने लगते है तो फिर हमें अपने आप सब कुछ करना होता है.तब भी भगवान हमारी बहुत मदद करते हैं वो बात अलग है.लेकिन होना ये चाहिए कि भगवान को अपना हाथ खींच लेना चाहिए.पर ऐसा होता नही है क्योंकि द्वेष और राग हमारे अंदर है.प्रभु के अंदर नही है.

यदि आप उनका गुणगान करेंगे तो प्रकृति प्रसन्न हो जायेगी और प्रकृति आपको सब कुछ देगी.वो सब कुछ देगी जिसकी आज संसार में कमी हो रही है.वो सब  कुछ बेशुमार मात्रा में आपके पास होगा.

SMS:बृज ढिंगरा कहते है दिल्ली से
ज्ञान मानव को मोक्ष दिलाता है या ब्रह्म ज्ञान.
Reply By माँ प्रेमधारा:
देखिये.ज्ञान जो किताबी ज्ञान है जो आप economics पढते हैं maths पढते हैं.ये सब आपको मोक्ष नही दिलाता है.ये आपको पेट भरने का तरीका बताता है कि अब आपका economic solution ये है.आप ये सब सीख करके कही नौकरी कीजिये,पैसा कमाईये और पेट भरिये.खर्चा-पानी चलायिये.ठीक है न.

लेकिन मोक्ष की बात भूल जाईये.उसके बाद आप कुत्ते भी बन सकते हैं.बिल्ली भी बन सकते हैं.सब कुछ बन सकते हैं.वहाँ तक हमारे इस भौतिक ज्ञान की पहुँच नही है क्योंकि जो चीज समझ नही आती है तो
जब life हो out of control
तो मुंह को करके गोल
सीटी बजा के बोल
all is well
हम ये कर देते है.हम ignore कर देते हैं इन सब चीजों को.हम नज़रअंदाज कर देते हैं.और हम कहते हैं अजी सब ठीक है.क्योंकि हमारी समझ से पड़े है तो हम कहते हैं कि exist नही करता.उसका अस्तित्व नही है.उसके अस्तित्व प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं.क्योंकि हम कुएं के मेंढक हैं और हमें समुद्र के बारे में ज्ञान नही है और अगर कोई हमें समुद्र के बारे मे बताता है तो हम कहते है ये क्या होता है.ये उटपटांग बातें करता है.हटाओ इसे.ये हालत हो जाती है.

तो ब्रह्मज्ञान या कहिये कि परब्रह्मज्ञान ही व्यक्ति को मुक्ति की तरफ ले जाता है.

SMS:रेनू गुप्ता दिल्ली से कहती हैं कि बहुत से लोग गुरु धारण करते है और उन्ही ईश्वर को देखते हैं और उन्ही की महिमा का गायन करते हैं.क्या ये सही है.
Reply By माँ प्रेमधारा:
गुरु अगर भगवान से addicted है.भगवान का है.भगवान का प्यारा है.भगवान को बहुत  प्यार करता है.आपसे मिलता है तो भगवान के ही बारे में बातें करता रहता है.ऐसा गुरु पूजनीय है.वंदनीय है.ऐसे गुरु  में ईश्वर का वास होता है.ऐसा गुरु ईश्वर का सच्चा प्रतिनिधि होता है.

और ऐसा गुरु आपको मिल जाए तो मै आपको कहूंगी कि आप बहुत ज्यादा सौभाग्यशाली हो.सौभाग्य की वर्षा आप पर हो गयी है.और ऐसे गुरु की महिमा का गायन करना कोई भी अनुचित नही है.

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कार्यक्रम में आप सब के साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS:दिल्ली से कृष्णकली बहुत ही सुन्दर बात लिखती हैं.
Shortest solution of any problem is to minimize the distance between your knees and the floor. Those who lie down to God can standup foe anything.

Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत अच्छी बात है.बहुत अच्छी बात आपने लिखी कृष्णकली जी.ये कहती हैं कि किसी भी समस्या का सबसे सुन्दर और सबसे fast हल क्या है?वो हल है कि आप अपने घुटनों और फर्श के बीच की दूरी को कम कर दे.यानि कि आप भगवान के आगे दंडवत करे.दंडवत गिर जाए.और जो व्यक्ति भगवान के आगे दंडवत प्रणाम करता है.भगवान की शरणागत होता है.वो दुनिया में किसी भी परिस्थिति का मुकाबला कर सकता है.और किसी का भी साथ दे सकता है.

तो बहुत सही बात है और मै यही कहती हूँ आपको कि आपकी समस्त समस्याओं का हल है भगवान की शरणागति.क्यों?क्योंकि ये है दुखालायम जी.दुखों का आलय.दुखों का घर है ये जगत.तो यहाँ तो आपको दुःख प्राप्त होंगे ही.तो यहाँ-वहाँ जाकर के आप बिना मतलब solutions ढूँढने की क्यों कोशिश करते हैं.जब भगवान के शरनागत हो जायेंगे तो आपको राह मिलने लगेगी.Solutions मिलने लगेंगे.ऐसे लोग आपके contact में आ जायेंगे कि आपकी problem solve हो जाए.या आपकी बुद्धि जो है वो परिवर्त्तित हो जायेगी.

SMS:एक कहानी भेजी है जाने किसने दिल्ली से
एक खरगोश ने देखा कि एक चिड़िया पेड़ पर बैठी है बड़े मज़े से आराम कर रहे है तो उसने चिड़िया की देखा-देखी पेड़ के नीचे बैठकर आँख मूँद ली तो उसे एक लोमड़ी खा गयी.Moral of the story :Relax करना है तो top पर पहुँचो.
 Reply By माँ प्रेमधारा:
Top का अर्थ क्या हुआ जी.Top का अर्थ ये हुआ कि business में top पर पहुँचो.नौकरी में top पर पहुँचो.कहाँ top पर पहुंचे?अंतरिक्ष में पहुँच जाए?Moon पर पहुँच जाए?कहाँ पहुँच जाएँ?

इस story का अर्थ जो मेरे अनुसार है वो ये है




आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥





यानि कि अगर आप इस लोक को पार करके अंतरिक्ष में भी चले जाए.वहाँ से भी पार कर और ऊपर जनोलोक,तपोलोक,महर्लोक ये सब सतोलोक ,ब्रह्मलोक तक चले जाएँ जो भौतिक आवरण का अंतिम शेष लोक है.वहाँ तक चले जाएँ तो भी आपको वापस आना पडता है.इसीलिए भगवान कहते हैं कि
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥
सच्चे में मायनों में आपको relax करना है दुखों से बरी होना है तो you will have to achieve kingdom of God.आपको प्रभु का घर प्राप्त करना होगा जो आपका अपना गहर है.जिसे आप छोड़ कर के.विद्वेष करके प्रभु से आप यहाँ चले आये हैं.भगवान से विमुख हो गए हैं इसीलिए आप यहाँ पड़े हुए हैं.सम्मुख होईये.शरणागति लीजिए.प्रेम कीजिये.वापस जाईये and be relaxed.

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आपके साथ मै हूँ प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS:सागरिका गुलाबी बाग से पूछती हैं कि क्या भगवन को बचपन में ही पाया जा सकता है.
 Reply By माँ प्रेमधारा:
सागरिका देखिये ऐसा नही है कि भगवान को बचपन में ही पाया जा सकता है.नही.बचपन में भी प्राप्त होते हैं और बुढापे में भी प्राप्त होते हैं.जवानी में भी प्राप्त हो जाते हैं क्या problem है.आपकी तडप कितने है उस पर depend करता है.जैसे कि अजामिल को अस्सी वर्ष की अवस्था में प्राप्त हुए थे.अजामिल जिसके बचपन में उसके अंदर बड़े अच्छे संस्कार थे.बाद में वो पाने पथ से गिर गया तो भगवान ने व्यवस्था की.उसको साधू-संग कराया.और साधू संग के बाद उसने अपने पुत्र का नाम भगवान के नाम पर रखा.और अंत में अस्सी साल की अवस्था में जब उसने यमदूतों को देखा तो वो अपने पुत्र को उस नाम से पुकार उठा जो नाम उसने रखा था भगवान के नाम से.और अचानक ही जब उसने ये किया तो भगवान के दूत उसकी रक्षा के लिए आ गए.

तो अस्सी साल की अवस्था में उसने भगवान को प्राप्त किया.सबरी जी बुढ़ापे में उन्होंने भगवान को प्राप्त किया लेकिन संस्कार बचपन से ही आ गए.तो बचपन की अवस्था इसलिए जरूरी है कि बचपन से आप practice करना शुरू करेंगे भगवान को प्रेम करने की तो बुढ़ापे तक आपका प्रेम परिपक्व हो जाएगा.matured हो जाएगा.और तब वो आपकी आदत बन जायेंगी.उन्हें याद करना,उन्हें प्यार करना आपकी आदत बन जायेगी तब बहुत सुरक्षा है.
मृत्यु के समय वो याद आ जायेंगे क्योंकि वो कहते हैं कि 




अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌ ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥

जो अंत में मुझे याद करके देह त्यागता है वो मुझे प्राप्त करता है.हाँ.और उन्हें प्राप्त करके  क्या होता है?भगवान कहते हैं
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥
मुझे प्राप्त करके हे कुन्तीपुत्र फिर से जन्म नही होता है.कहाँ जाते हैं.

तद्धाम परमं मम ॥
मेरे धाम जाते हैं जो परम धाम है.तो ये सोचने की बात है कि बचपन से ही practice शुरू हो जानी चाहिए.ठीक है.













SMS:गौरव U.P. से पूछते हैं कि
आप कहती है कि भगवान से कुछ नही मांगना चाहिए तो फिर  रोजी-रोटी,नौकरी उनसे नही तो किससे मांगू?
 Reply By माँ प्रेमधारा:
अरे ऐसे कर्म करो न.इस प्रकार की योग्यताओं को develop  करो कि आपको रोजी-रोटी मिल जाए.भगवान से माँगने से क्या होगा.भगवान तो अंतर्यामी हैं.बिना मांगे दे देंगे.है न.

सुखं ऐन्द्रियकम दैत्य सर्वत्र लभ्यते देवा.

सारे सुख आपको destiny से मिल जायेंगे जो आपको प्राप्त होना है.नही प्राप्त होना है तो लाख सर पटक लो कुछ नही होगा तो भगवान से क्या मांगना है.उनसे भक्ति मांगो,प्रेम मांगो.वो मांगो न ताकि आपको अगले जन्म में नौकरियाँ ढूँढने के लिए धक्के खाने ही न पड़े.अगला जन्म आपका प्रभु के धाम में हो जाए.ये मांगो.यही मांगना कहलाता है.

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