Saturday, April 3, 2010

On 28th March '10 By Maa Premdhara

नमस्कार.कैसे हैं आप?मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.ठीक है न.कल खबर सूनी.कैसे एक मासूम -सी बाईस साल की लडकी बिना किसी दोष के मेट्रो ट्रैक पे जा गिरी और उसे अपनी दोनों टांगें गवानी पडी.


खबर सुनकर वाकई बहुत-बहुत दुःख हुआ.सोचने लगी कि जल्दबाजी का नतीजा कितना खतरनाक होता है.किसी लड़के को जल्दी लगी थी यही ट्रेन पकड़नी है.वो तेजी से भागता आया और उसके धक्के से लडकी समेत वो खुद भी ट्रैक पे जा गिरा और वो भी अपनी एक तंग गवां बैठा.बहुत दुःख हुआ.


सोचिये अगर एक ट्रेन निकल भी जाती तो क्या होता?दो-तीन मिनट में दूसरी आ जाती.मगर आजकल यही trend है.यही.सबसे पहले पकड़ो.कर लो दुनिया मुट्ठी में.जाने क्या फितूर हमारे दिमाग में भरा रहता है,जाने हम क्या चाहते हैं.हर जगह देखिये आप तो एक रेस सी लगी है.चाहे पढाई के क्षेत्र में हो,चाहे नौकरी में हो,चाहे फिर सफ़र में हो.हर कोई दूसरे को गिराकर आगे निकल जाना चाहता है.हर कोई जल्दी में रहता है,हरेक को लगता है कि वक्त को कैसे दे दे.


स्कूल में भी तो यही सिखाया जाता है .आपको आगे बढ़ना है.आप बेकार है अगर आपके नब्बे प्रतिशत से ऊपर नंबर नही आये.और बच्चा वही से सीख लेता है कि उसे बहुत तेजी से भागना होगा,बहुत तेजी से भागना होगा,बहुत तेजी से और फिर भागते रहना उसकी फितरत,उसकी आदत,उसका स्वभाव बन जाता है.इसतरह की जो मानसिकता है वो जाने कितने ही mental disorder को जन्म देती है.दुःख होता है कि भाग-भागकर हस्र क्या होगा?


यूं ही ख्वाहिशों की बोझ तले दबकर हम मर जायेंगे.
जान भी नही पायेंगे कि ये जीवन चुनौतियों को पूरा करने के लिए नही मिला था.ये जीवन मिला था भगवान् को प्रसन्न करने के लिए.पर तमाम उम्र गुजर गयी किसी ने हमें नही बताया.अगर किसी ने बताया तो तो हमने उसका मज़ाक उड़ाया.हमने कभी नही सोचा क्या पता जो बता रहा हो उसमे कुछ सच्चाई हो.अगर वाकई इसमें सच्चाई है तो बहुत बड़ा loss हो जाएगा.कभी हमने seriously इस बात को लिया नही.तो आइये आज हम गंभीरता से विचार करे और अपने जीवन को सफल बनाए.
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कार्यक्रम में आप सभी के साथ हूँ प्रेमधारा पार्वती राठौर.आपके लिए बहुत ही सुन्दर श्लोक मै लाई हूँ.श्लोक का अर्थ:
"मनुष्य भगवान् के पवित्र नाम का और उनके गुण तथा कार्यों का कीर्तन करने से समस्त पाप फलों से सरलता से छुटकारा पा जाता है.पापफलों से छुटकारे के लिए एकमात्र इसीविधी की संस्तुति की जाती है.यदि कोई अशुद्ध उच्चारण द्वारा भी भगवान् के नाम का कीर्तन करता है.तो उसे भी भवबंधन से छुटकारा मिल जाता है.बशर्तें वो अपराधरहित कर कीर्तन करे.जैसे कि अजामिल बहुत पापी था किन्तु मरते समय उसने पवित्र नाम का कीर्तन किया और यद्दपि वो अपने पुत्र को पुकार रहा था किन्तु उसे सम्पूर्ण ,पूर्ण मुक्ति प्राप्त हुई."

सुन्दर श्लोक है ये,सुन्दर इसका अर्थ है और बहुत ही सुन्दर बात इसमे बतायी गयी है.भगवान् के,प्रभु के पवित्र नाम का जो महत्वा है बहुत साफ तौर से इस श्लोक में बताया गया है.देखिये हम सब बद्ध्जीव हैं,conditional souls हैं,ख़ास तरह की परिस्थितियों में ही रह सकते हैं,ख़ास तरह की परिस्थितियां हमारे लिए बनायी जाती है.कितने ही गुनाह हम करते हैं और हमें पता भी नही होता.जाकर के अगर हम किसी बड़े संत-महात्मा के आगे अपने गुनाह को क़ुबूल कर ले.जिसे कहते हैं प्रायश्चित कर ले तो ये मत समझिये कि बहुत बड़ी बात हो गयी.

ठीक है प्रायश्चित करना एक बहुत साहस की बात है लेकिन प्रायश्चित करने के बाद इसबात की क्या गारंटी है कि आप दुबारा गुनाह नही करेंगे.इस बात की कोई गारंटी नही है कि हम पाप नही करेंगे.जरूर करेंगे.क्यों?क्योंकि प्रायश्चित किया हमने अपने पापों के लिए लेकिन प्रवृति तो शेष है,tendency तो बनी हुई है न पाप करने की.जब तक वो tendency ,वो प्रवृति ख़त्म नही हो जाती तब तक हम पाप करते ही रहेंगे.

और यहाँ बताया गया है कि अगर आप कही भी चले जाओ,कही भी किसी बड़ी-बड़ी नदियों में जाकर स्नान कर लो और सोचो कि हाँ हमारा काम हो गया.हम तो पाप से मुक्त हो गए,हम इस मेले में चले गए,उस मेले में चले गए.अगर आप सोचे तो ये बहुत विकृत सोच हो जाती है.समझ रहे हैं आप.विकृत सोच हो जाती है.कष्ट की बात हो जाती है.

यहाँ इस श्लोक में बताया गया है कि यादे हम भगवान् के पवित्र नाम का उच्चारण करे या उनके गुण का,उनके कार्यों का कीर्तन करे यानि glorification of God .हम देखिये कितना glorify करते हैं आज के सिनेमा के actors को,actresses को.जो हम newspaper  पढ़ते हैं उसमे Page3 पर जो भी celebreties आती  हैं उनका कितना glorification होता है आजकल newpapers में,magzines में हर जगह लेकिन भगवान् के glorification के लिए,उनके यश के गायन के लिए कोई आगे नही आता.क्यों?बहुत दुःख की बात है.

जिसने हमें बनाया,जिसने हमें इतनी सारी सुविधायों से नवाज़ा जिसने हमें उम्र दी,जिसने हमें इतनी सारे इन्द्रियां दी कि आप भोगो.भोगना चाहते हो न भोगो.अगर आप सोचिये जीभ ही नही होती तो स्वाद का मतलब क्या रह जाता?क्या खाते और क्या स्वाद लेते?कुछ नही होता.है न.जीभ में कितनी सारी स्वाद कलियाँ है.यहाँ से खट्टा,यहाँ से मीठा,यहाँ से नमकीन कितने चीजों का पता चलता है.कोई बैठ के laboratory में जीभ नही बना सकता.ये देखिये प्रभु की माया.हरेक को,हर प्राणी को उन्होंने इन स्वाद कलियों से नवाज़ा है कि आप स्वाद लीजिये और फिर भी हम सोच नही पाते कि भगवान् की महिमा कितनी अपरम्पार है और उनका हम गुणगान नही करते.सोचिये ये हमारा दुर्भाग्य नही है तो और क्या है?
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो हम चर्चा कर रहे थे एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक एक बार फिर आपके लिए.

"मनुष्य भगवान् के पवित्र नाम का और उनके गुण तथा कार्यों का कीर्तन करने से समस्त पाप फलों से सरलता से छुटकारा पा जाता है.पापफलों से छुटकारे के लिए एकमात्र इसीविधी की संस्तुति की जाती है.यदि कोई अशुद्ध उच्चारण द्वारा भी भगवान् के नाम का कीर्तन करता है.तो उसे भी भवबंधन से छुटकारा मिल जाता है.बशर्तें वो अपराधरहित कर कीर्तन करे.जैसे कि अजामिल बहुत पापी था किन्तु मरते समय उसने पवित्र नाम का कीर्तन किया और यद्दपि वो अपने पुत्र को पुकार रहा था किन्तु उसे सम्पूर्ण ,पूर्ण मुक्ति प्राप्त हुई."

बहुत बड़ी बात यहाँ आपको बतायी गयी है.बहुत ही बड़ी बात है कि आप जब भगवान् के नाम का,उनके गुण का,उनकी लीलाओं का,उनके कार्यों का कीर्त्तन करते हैं तो आप पापों से छुटकारा पा लेते हैं और मज़े की बात ये कि आपका जो ह्रदय है वो ओ जाती भी परिवर्तित हो जाता है.पाप करने की तेंदेंच्य ख़त्म है,प्रवृति ख़त्म हो जाती है.भगवान् के नाम में इतना दम है सोचिये.आपको बदल कर के रख देते हैं.

तो भगवान् जब अवतार लेते हैं,भगवान् जब हमारे बीच में आते हैं तो वो आते ही इसलिए हैं,इसप्रकार के कार्य करते हैं ताकि आप उनके गुणों का वर्णन करे,आप उनका गुणगान करे.इस तरह के वो सुन्दर-सुन्दर काम करते हैं कि आप उन कामों को याद करे और भवरोग से छुटकारा पा ले.ये जो diseases हैं आपको material world से सम्बंधित,disease लगी हुई है,बीमार हैं हमलोग.इससे छुटकारा पा ले जब हम भगवान् की लीलाओं को याद करें तो हमारा मन अपने आप शांत हो जाएगा.समस्त इच्छाएं,भौतिक इच्छाएं अपने-आप दम तोड़ देगी.अपने आप होगा कुछ करने की जरुरत नही.कुछ यम-नियम,आहार-प्रत्याहार ये सब कुछ ककरने की जरुरत नही है.ये स्वतः हो जाएगा.

तो यहाँ इस श्लोक में यही बताया गया है कि अगर आपको पापफलों से छुटकारा पाना है तो कलयुग में एकमात्र यही विधि है.और मज़े की बात ये कि अगर कोई अशुद्धता से भी भगवान् का नाम लेता है .है न.अशुद्धता से शुद्धता से नही.गलती हो गयी.शुद्ध उच्चारण नही है.जीभ में कुछ खराबी है या जब स को श पढ़ते हैं.कुछ भी.तो भी यहाँ इस श्लोक में बताया गया है कि आप ठीक से भगवान् का नाम नही ले पा रहे है तो भी आपको भवबंधन से छुटकारा मिल जाएगा लेकिन एक शर्त है.क्या शर्त है?अपराधराहित होकर कीर्त्तन.

अपराधरहित होकर नाम लेना पडेगा.अपराध के होता है?सबसे बड़ा अपराध होता है कि आप किसी की निंदा करें.आप किसी की चुगली करें.ये सबसे बड़ा अपराध है.आपको लगेगा नही.क्यों?क्योंकि आप इस दुनिया में हर दूसरे आदमी को यही करते देखते हैं.बड़े-बड़े clubs ब्स इसीलिए बनाए जाते हैं कि बैठकर के चुगली की जाए.बड़ी-बड़ी kitty party ,ये parties और वो parties इसलिए होती हैं कि खाने-पीने के साथ-साथ चुगली का आनंद भी लिया जाए.चुगली रस लिया जाए.निंदा रस लिया जाए.

इसमें क्योंकि रस मिलता है इसलिए आम आदमी ये समझ नही पाता कि ये एक बहुत बड़ा पाप है,बहुत बड़ा अपराध है.और उसपर किसी भक्त का अपराध आपने कर दिया,किसी भक्त की आपने निंदा कर दी तो समझ लीजिये कि आपको अपनी भक्ति से,आपको अपने समस्त पुण्यों से हाथ धोना पडेगा क्योंकि जितनी बार आप भगवान् को नमस्कार करते है आपके हिस्से में बहुत सारे पुण्य आ जाते हैं. बहुत सारे सुकृतियाँ आ जाती हैंवो सब एक झटके में ख़त्म हो जायेगी जब आप किसी का अपमान कर देंगी,किसी की निंदा कर देंगे.

तो यहाँ बहुत सुन्दर बात बतायी गयी है कि आप अगर यदी अशुद्ध उच्चारण द्वारा भी भगवान् का नाम लेते हैं वो भी अपराधरहित हो करके तो आपको भवबंधन से छुटकारा मिल जाएगा.जैसे कि अजामिल को मिल गया.वो अपने पुत्र नारायण को पुकार रहा था मरते समय.अपने पुत्र का नाम उसने नारायण रखा था उसी को पुकार रहा था.उसे क्या पता था भगवान् इस नाम को सुन लेंगे.लेकिन प्रभु इतने दयालु हैं कि उन्होंने कहा कि अंत समय में इसने मेरा नाम ले लिया इसे हम पार उतार दे.

तो अजामिल जैसा पापी व्यक्ति यदि पार उतर सकता है एकबार अनिच्छापूर्वक नाम ले करके तो आप और हम क्यूं नही पार उतर साकते हैं.क्या problem है?हमें तो नाम से प्यार हो जाना चाहिए.प्रभु के नाम से.और अगर हमें भगवान् के नाम से प्यार हो जाता है,भगवान् से प्यार हो जाता है तो जाहिर है भगवान् हमें अपने समीप बुला लेते हैं,भगवान् हमें अपना बना लेते हैं.हम भगवान् के बन जाते हैं और मेरे ख्याल से इससे खुबसूरत,इससे दिलचस्प और इससे सौभाग्यशाली कोई बात हो ही नही सकती.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो हम चर्चा कर रहे थे एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक एक बार फिर आपके लिए.

"मनुष्य भगवान् के पवित्र नाम का और उनके गुण तथा कार्यों का कीर्तन करने से समस्त पाप फलों से सरलता से छुटकारा पा जाता है.पापफलों से छुटकारे के लिए एकमात्र इसीविधी की संस्तुति की जाती है.यदि कोई अशुद्ध उच्चारण द्वारा भी भगवान् के नाम का कीर्तन करता है.तो उसे भी भवबंधन से छुटकारा मिल जाता है.बशर्तें वो अपराधरहित कर कीर्तन करे.जैसे कि अजामिल बहुत पापी था किन्तु मरते समय उसने पवित्र नाम का कीर्तन किया और यद्दपि वो अपने पुत्र को पुकार रहा था किन्तु उसे सम्पूर्ण ,पूर्ण मुक्ति प्राप्त हुई."

बहुत बड़ी बात यहाँ आपको बतायी गयी है.बहुत ही बड़ी बात है कि आप जब भगवान् के नाम का,उनके गुण का,उनकी लीलाओं का,उनके कार्यों का कीर्त्तन करते हैं तो आप पापों से छुटकारा पा लेते हैं और मज़े की बात ये कि आपका जो ह्रदय है वो ओ जाती भी परिवर्तित हो जाता है.पाप करने की तेंदेंच्य ख़त्म है,प्रवृति ख़त्म हो जाती है.भगवान् के नाम में इतना दम है सोचिये.आपको बदल कर के रख देते हैं.

तो भगवान् जब अवतार लेते हैं,भगवान् जब हमारे बीच में आते हैं तो वो आते ही इसलिए हैं,इसप्रकार के कार्य करते हैं ताकि आप उनके गुणों का वर्णन करे,आप उनका गुणगान करे.इस तरह के वो सुन्दर-सुन्दर काम करते हैं कि आप उन कामों को याद करे और भवरोग से छुटकारा पा ले.ये जो diseases हैं आपको material world से सम्बंधित,disease लगी हुई है,बीमार हैं हमलोग.इससे छुटकारा पा ले जब हम भगवान् की लीलाओं को याद करें तो हमारा मन अपने आप शांत हो जाएगा.समस्त इच्छाएं,भौतिक इच्छाएं अपने-आप दम तोड़ देगी.अपने आप होगा कुछ करने की जरुरत नही.कुछ यम-नियम,आहार-प्रत्याहार ये सब कुछ ककरने की जरुरत नही है.ये स्वतः हो जाएगा.

तो यहाँ इस श्लोक में यही बताया गया है कि अगर आपको पापफलों से छुटकारा पाना है तो कलयुग में एकमात्र यही विधि है.और मज़े की बात ये कि अगर कोई अशुद्धता से भी भगवान् का नाम लेता है .है न.अशुद्धता से शुद्धता से नही.गलती हो गयी.शुद्ध उच्चारण नही है.जीभ में कुछ खराबी है या जब स को श पढ़ते हैं.कुछ भी.तो भी यहाँ इस श्लोक में बताया गया है कि आप ठीक से भगवान् का नाम नही ले पा रहे है तो भी आपको भवबंधन से छुटकारा मिल जाएगा लेकिन एक शर्त है.क्या शर्त है?अपराधराहित होकर कीर्त्तन.

अपराधरहित होकर नाम लेना पडेगा.अपराध के होता है?सबसे बड़ा अपराध होता है कि आप किसी की निंदा करें.आप किसी की चुगली करें.ये सबसे बड़ा अपराध है.आपको लगेगा नही.क्यों?क्योंकि आप इस दुनिया में हर दूसरे आदमी को यही करते देखते हैं.बड़े-बड़े clubs ब्स इसीलिए बनाए जाते हैं कि बैठकर के चुगली की जाए.बड़ी-बड़ी kitty party ,ये parties और वो parties इसलिए होती हैं कि खाने-पीने के साथ-साथ चुगली का आनंद भी लिया जाए.चुगली रस लिया जाए.निंदा रस लिया जाए.

इसमें क्योंकि रस मिलता है इसलिए आम आदमी ये समझ नही पाता कि ये एक बहुत बड़ा पाप है,बहुत बड़ा अपराध है.और उसपर किसी भक्त का अपराध आपने कर दिया,किसी भक्त की आपने निंदा कर दी तो समझ लीजिये कि आपको अपनी भक्ति से,आपको अपने समस्त पुण्यों से हाथ धोना पडेगा क्योंकि जितनी बार आप भगवान् को नमस्कार करते है आपके हिस्से में बहुत सारे पुण्य आ जाते हैं. बहुत सारे सुकृतियाँ आ जाती हैंवो सब एक झटके में ख़त्म हो जायेगी जब आप किसी का अपमान कर देंगी,किसी की निंदा कर देंगे.

तो यहाँ बहुत सुन्दर बात बतायी गयी है कि आप अगर यदी अशुद्ध उच्चारण द्वारा भी भगवान् का नाम लेते हैं वो भी अपराधरहित हो करके तो आपको भवबंधन से छुटकारा मिल जाएगा.जैसे कि अजामिल को मिल गया.वो अपने पुत्र नारायण को पुकार रहा था मरते समय.अपने पुत्र का नाम उसने नारायण रखा था उसी को पुकार रहा था.उसे क्या पता था भगवान् इस नाम को सुन लेंगे.लेकिन प्रभु इतने दयालु हैं कि उन्होंने कहा कि अंत समय में इसने मेरा नाम ले लिया इसे हम पार उतार दे.

तो अजामिल जैसा पापी व्यक्ति यदि पार उतर सकता है एकबार अनिच्छापूर्वक नाम ले करके तो आप और हम क्यूं नही पार उतर साकते हैं.क्या problem है?हमें तो नाम से प्यार हो जाना चाहिए.प्रभु के नाम से.और अगर हमें भगवान् के नाम से प्यार हो जाता है,भगवान् से प्यार हो जाता है तो जाहिर है भगवान् हमें अपने समीप बुला लेते हैं,भगवान् हमें अपना बना लेते हैं.हम भगवान् के बन जाते हैं और मेरे ख्याल से इससे खुबसूरत,इससे दिलचस्प और इससे सौभाग्यशाली कोई बात हो ही नही सकती.
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आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब एक और बहुत सुन्दर श्लोक सिर्फ आपके लिए.श्लोक का अर्थ 
"यमराज  अपने दूतों से कहते हैं.अतः इन सभी बातों पर विचार करते हुए बुद्धिमान लोग हरेक के ह्रदय में स्थित तथा समस्त शुभ गुणों की खान भगवान् के पवित्र नाम के कीर्त्तन की भक्ति को अपनाकर सारी समस्याओं को हल करने का निर्णय करते हैं.ऐसे लोग मेरे दंड देने की सीमा में नही आते.सामान्यता तो वो कभी पाप कर्म करते नही पर यदि भूलवश या मोहवश कभी कोई पापकर्म करते भी हैं तो वे पापकर्मों से बचा लिए जाते हैं क्योंकि वो सदैव भगवान् के पवित्र नामों का कीर्त्तन करते हैं."

तो देखिये कितनी सुन्दर बात इस श्लोक में आपको बतायी गयी है और ये यमराज अपने यमदूतों से बता रहे हैं.क्या बताते हैं?कि बुद्धिमान लोग जो The Most  Intelligent लोग हैं वो लोग क्या करते हैं?वो हरेक के ह्रदय में स्थित उस समस्त गुणों की खान भगवान् के पवित्र नाम को अपनाकर सारी समस्यानों को हल करने का निर्णय करते हैं.बहुत बड़ी बात है.

देखिये इस संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसे डर नही लगा रहता.जो भयभीत नही होता.हमेशा,हरकोई भयभीत है.किसी को डर लगा है मेरी posiition न खत्म हो जाए.कल को कोई नौकरी से न निकाल दे.कही हमारे पास पैसे की कमी न हो जाए.कही कोई बीमारी आ करके हमला न कर दे.हैं न.कोई और ये बात सोचकर डर रहा है हमारे बच्चें हैं ,हमारे बच्चों को न कुछ हो जाए.कोई सोचता है कि मेरे पति की आयु लम्बी हो.कोई कुछ सोचता है.कोई किसी चीज से डरा है.हर कोई डरे हैं.हर कोई डरा हुआ है.

मृत्यु से तो हर कोई डरता है.है न.उसके बाद fall down से कि हमारी अवनती हो जायेगी.हम कहाँ रहेंगे?क्या करेंगे?सबसे डरता है हर व्यक्ति.तो हर व्यक्ति भयभीत है.हर व्यक्ति समस्या से ग्रस्त है.हर व्यक्ति.ऐसा नही कि सिर्फ आप या मै.ये हरेक की,हर घर की कहानी है,जन-जन की कहानी है.

तो यहाँ बताया गया है कि जो लोग समस्त प्राणियों के ह्रदय में स्थित ,ये तो आप जानते है कि भगवान् हरेक के ह्रदय में स्थित हैं.है न.इस शरीर को मंदिर मन जाता है.सबसे पवित्र माना जता है.क्यों?क्योंकि इसके अन्दर भगवान् का वास होता है.प्रभु यहाँ रहते हैं.कहते है न 
"मोको कहाँ ढूंढें बन्दे मै तो तेरे पास में."

तो हमारे पास नही है लेकिन जैसे कि मृग के अन्दर,हिरन के अन्दर कस्तूरी होती है.कस्तूरी की सुगंध से वो बाहर भागता है कि कहाँ है?कहाँ है?कहाँ है?कहाँ से सुगंध आ रही है.अन्दर से भगवान् प्रेरित कर रहे हैं कि आप उनकी शरण में जाएँ.लेकिन तो भी आप किसी का इंतज़ार करते हो कि कोई आपको हाथ पकड़ करके उनकी शरण में ले जाए.और कई बार तो आप ऐसे व्यक्ति का हाथ झटक भी देते हो.क्यों?

आपको लगता है सब बकवास है,बेकार है.हमारा मन ही साफ है,हमारा मन ही दर्पण है.हमारा मन जो कहेगा वही सही होता है.हमारी जो चेतना है.और पता नही कितने-कितने नाम दे देते हैं आप उसे.

तो यहाँ बताया गया है कि जो भगवान् के पवित्र नाम के कीर्त्तन की भक्ति को अपनाता है यानि यहाँ बताया गया है कि भगवान् का नाम लेना ही भक्ति है.यहाँ इसको बहुत ही अप्रत्यक्ष रूप में बताया गया है.प्रभु का जब हम नाम लेते हैं कलयुग में यही भक्ति है.और जब आप ऐसी भक्ति को करते हैं तो आपकी समस्त समस्याएं काफूर की तरह उड़ जाती है.और आप बहुत हे शांति प्राप्त करते हैं.
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कार्यक्रम  में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.और अब चर्चा कर रहे है उस श्लोक की जिसपर हम बात कर रहे हैं थे.
"यमराज  अपने दूतों से कहते हैं.अतः इन सभी बातों पर विचार करते हुए बुद्धिमान लोग हरेक के ह्रदय में स्थित तथा समस्त शुभ गुणों की खान भगवान् के पवित्र नाम के कीर्त्तन की भक्ति को अपनाकर सारी समस्याओं को हल करने का निर्णय करते हैं.ऐसे लोग मेरे दंड देने की सीमा में नही आते.सामान्यता तो वो कभी पाप कर्म करते नही पर यदि भूलवश या मोहवश कभी कोई पापकर्म करते भी हैं तो वे पापकर्मों से बचा लिए जाते हैं क्योंकि वो सदैव भगवान् के पवित्र नामों का कीर्त्तन करते हैं."

बहुत सुन्दर बात है.यहाँ आपको बताया जा रहा है कि जो लोग प्रभु से जुड़े हुए हैं जो कोई भक्ति नही करते मान लीजिये बस नाम लेते हैं.कई बार लोग कहते हैं कि हम तो बस नाम ले लेते हैं.हमसे तो पूजा-पाठ होती नही.सुबह-सुबह नही उठ पाते हैं,बीमार रहते हैं.कभी कोई कुछ कहता है ,कोई कुछ कहता है पर हम नाम ले लेते हैं.तो उसके लिए बहुत बड़ी silver lining है. बहुत बड़ी बात है ये .क्या?कि ऐसे लोग यमराज के दंड में ,उनकी सीमा में नही आते.हाँ कि उनको दंड नही मिलेगा.

देखिये हर धर्म में स्वर्ग-नरक मिलेगा.हाँ दोजख,जहन्नुम-जन्नत,hell -heaven ये सब होता है.यहाँ भेजता कौन है?आपके कर्म,आपके जो कर्म हैं देसिड़े करते हैं कि आप इनदोनों में से क्या प्राप्त करेंगे.या किसप्रकार का जीवन आपको मिलेगा.है न.या आप kingdom of God में जायेंगे.खुदा के घर,भगवान् के घर जायेंगे.क्या चीज होगी आपके साथ?ये सब आपके कर्म निर्धारित करते हैं और इसका जो निर्णायक है कोई होता है तो कहीं उसे यमराज कहते है.

यम मतलब जिसे मृत्यु का देवता कहा जाता है.तो वो कहते हैं कि वो हमारे दंड देने की सीमा में नही आते जो लोग भगवान् का नाम लेते हैं.कितनी बड़ी बात है.क्यों?क्योंकि या तो वो पाप करते नही.भगवान् का नाम ऐसा है कि आपको शुद्ध बना देगा.पाप करेंगे ही नही.

लेकिन हमारे जन्मों के इतने संस्कार हैं,संस्कारों का बोझ हम पर लड़ा हुआ है.धीरे-धीरे वो संस्कार ख़त्म हो रहे हैं,नाम कि अग्नी में जल रहे हैं.लेकिन यदि उस संस्कार की वजह से या फिर किसी मोह की वजह से.मोह भी हो जाता है.बच्चों पर मोह हो आया.किसी रिश्ते पर मोह आ गया और उस मोह के चलते इंसान कोई पाप कर बैठे तो यहाँ बताया गया है तो भी वो पाप फलों से बचा लिए जाते हैं.सोचिये कितनी बड़ी छतरी जो भगवान् के,प्रभु के नाम लेने से आती है.

हर मजहब में आप देखिये कि जो है एक माला होती है जिसे कोई रोज़री कहता है कोई कुछ और.और उस पर प्रभु का नाम लेता रहता है.तो नाम की बड़ी शक्ति है.नाम की बड़ी महिमा है.हाँ.आप चाहे कुछ न करे,कुछ भी न करे लेकिन भगवान् का नाम लेते रहे तो देखिये कितना बड़ा फल है कि आपको पाप लगेंगे नही.पहले तो आप पाप करेंगे नही और गलती से अगर पाप कर लिया तो बचा लिए जायेंगे.गलती से.अज्ञानता से,मोहवश.ये नही कि जानबूझ करके.

तो खैर इसी विषय पर हम आपके साथ चर्चा करते रहेंगे कि जानबूझ करके पाप करना या अज्ञानता में पाप करना ये सब क्या होता है.मोह में पाप करना ये सब क्या होता है?और भगवान् का नाम कैसे हमें बचा लेता है?क्या शक्ति है प्रभु के उस नाम की जो हमारा कल्याण करके रहती है?इन सब पर हमारी चर्चा जारी रहेगी,आप बने रहिये हमारे साथ.
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तो हम चर्चा कर रहे थे 
बुद्धिमान लोग हरेक के ह्रदय में स्थित तथा समस्त शुभ गुणों की खान भगवान् के पवित्र नाम के कीर्त्तन की भक्ति को अपनाकर सारी समस्याओं को हल करने का निर्णय करते हैं.
तो वे लोग बुद्धिमान होते हैं जो भगवान् के नाम का कीर्त्तन करते हुए अपनी सारी समस्याओं को हल कर देते हैं.जो ये समझ जाते हैं कि हाँ भगवान् का नाम ही समस्त समस्याओं का हल है,एकमात्र उपाय है.ये बात सही है.आप कितनी भी समस्याएं ले आईये लेकिन प्रभु का नाम ही है जो आपको आपकी समस्याओं से छुटकारा दिला सकता है और कोई उपाय नही,और कोई नही.आपका प्रारब्ध तक भगवान् का नाम लेने से बदल जाता है.सोचिये कितनी बड़ी बात है.
कार्माणि निर्धति किन्तु च भक्ति भाजम |
तो ऐसे लोग यमराज के दंड देने की सीमा में नही आते.सामान्यतया तो वो कभी पाप कर्म करते नही यदि भूलवश या मोहवश कभी     कोई पाप कर्म करते भी है तो वे पापफलों से बचा लिए जाते हैं क्योंकि वो सदैव भगवान् के पवित्र नामों का कीर्त्तन करते रहते हैं.जैसे कि अज्ञानतावश या आदतवश पाप करना.

जैसे मान लीजिये कि कोई व्यक्ति chain smoker है.बहुत सिगरेट पीता है.फिर उसकी जिन्दगी में सवेरा होता है और वो प्रभु से जुड़ जाता है.प्रभु का नाम लेने लगता है.प्रभु का नाम लेता है और उसकी आदत छूट जाती है .लेकिन साल -दो साल बाद फिर से उसे ऐसा संग प्राप्त हो जाता है मान लीजिये गलती से,जहाँ पर  उसके बहुत सारे वही पुराने friends बैठे हुए हैं और वो सिगरेट पी रहे हैं और उन्होंने ने कहा कि अरे एक कश लगा लो .तो वो कहता है नही मैंने तो छोड़ दी.वो कहते है हमारे लिए बस एक कश लगा लो और इतना  मनुहार करने के बाद वो एक कश लगा ही लेता है.

समझ रहे हैं तो ये पाप है लेकिन तो भी उस पाप से वो बचा लिया जाता है.क्यों?क्योंकि गलती से उसने वो पाप कर दिया.बाद में वो पछताता है.हे भगवान्!मैंने ये क्या किया.अपने इन mortal मित्रों को जो मृत्यु को प्राप्त होंगे,ऐसे लोगों को मैंने अपना समझा और आप जो शाश्वत रूप से मेरे ह्रदय में रहते हो,सदा से थे,हो और रहोगे,उसकी बात को मैंने अनदेखा कर दिया.उसके प्रति प्रेम को मैंने अनदेखा कर दिया तो उसका दिल उसे कचोटने लगता है और पछतावे के आंसू पिघल -पिघलकर उसके चहरे पर गिरने लगते हैं.

तो भगवान् उसकी सारी गलतियाँ माफ़ कर देते हैं.लेकिन इसके लिए बहुत जरुरी है कि हम भगवान् को surrendered हो  तब हमारा रिश्ता कायम होता है.तब बनाता है हमारा रिश्ता प्रभु से.तो surrender का जो भाव है,समर्पण का भाव वो बहुत जरूरी है.जब आप समर्पित हो जायेंगे,प्रभु का नाम लेते रहेंगे तो तब आपकी रक्षा स्वयं भगवान् करेंगे.आप इसे आजमा के देख लीजिये चाहे तो.
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मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब समय है आपके sms को कार्यक्रम में शामिल करने का. 
SMS :पहला message हम लेते हैं दिल्ली से न जाने कौन है.अपना नाम और पता जरूर लिखा कीजिये.खासतौर से नाम बहुत जरूरी  है.ये पूछ रहे हैं कि किसी के पति ने उसे भक्ति में लगाया हो तो क्या उस पति से सच्चा प्यार हो सकता है?क्योंकि आपने कहा था सच्चा प्यार तो भगवान् से ही हो सकता है.
Reply By माँ प्रेमधारा:
देखिये आप जो कोई भी हैं आपने बहुत अच्छा सवाल पूछा है.पति का कार्य है ही यही कि पत्नी को भक्ति में लगाए.बड़ा सुन्दर एक श्लोक है
गुरु न स स्यात  
बहुत सुन्दर श्लोक है कि आपको पति होने का कोई अधिकार नही है यदि आप अपने आश्रित पत्नी यानि पत्नी देखिये न दूसरे घर से आती है और एक दूसरे माहौल से आती है,नए माहौल में आती है और पति का ये कर्तव्य होता है कि वो उसे सही मार्गदर्शन दे,उसे guide करे.ठीक है.तो दूसरे घार से पुराने संस्कार लेकर आती है और फिर उसे दुबारा से अपने आप को ढालना पड़ता है.यदि पति उसे सही मार्ग पर ले करके आ जाए तो ये पति का कर्तव्य होता है.

जैसे हमारा मनुष्य होने के नाते सबसे प्रेम करना कर्तव्य है,सब पर दया दिखाना हमारा कर्तव्य है तो जब कोई व्यक्ति अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है इसमे बहुत अच्छी बात है क्योंकि कलयुग में ये होता नही है इसलिए हमें अलग से नजर आता है वो.जबकि होना ये चाहिए कि 100 % लोग ऐसे ही हो.है न.

तो हमें लगता है कि हमें सच्चा प्यार हो गया.तो प्यार करना बुरी बात नही है.पति से प्रेम करती है तो बहुत अच्छी बात है या पत्नी से प्रेम करते है,बच्चों से परम करते हैं.इसमे बुरा क्या है?बुरा कुछ नही है.लेकिन जो मैंने कहा था कि भगवान् से ही सच्चा प्यार हो सकता है उस बात पर मै आज भी कायम हूँ.क्यों?

क्योंकि इस जन्म में आपके पति ये हैं.अगले जन्म में क्या होगा?कौन पति होंगे?कौन पत्नी होगी?क्या पता.कितने ही जन्मों में हम कितनी पत्नियाँ,कितने बच्चे बदल कर के आयें हैं.कहाँ गया उनके प्रति प्रेम.प्रेम तो ख़त्म हो गया उस शरीर के साथ ही.लेकिन जो प्रभु के प्रति प्रेम है वो जन -जन्म तक चलता रहता है.मै ये बता दूं आपको.

तो इसलिए मै कहती हूँ कि सच्चा प्यार सिर्फ भगवान से हो सकता है वहाँ हमारा कोई स्वार्थ नही होता है अगर हमें सच्चा प्रेम हो जाए तो.

SMS :एक बहुत सुन्दर छंद भेजा है स्वरुप जी ने दिल्ली से 
हे प्रभु तेरी एक नजर मिले तो किस्सा तमाम हो जाए
अब ये भक्ति चाहे सरेआम हो जाए
इसलिए मर-मरकर जी रहा हूँ कि 
तेरे गुलामों में स्वरुप का भी नाम हो जाए.
Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत सुन्दर बात है क्योंकि ऐसी इच्छा तो हम सबको होनी चाहिए कि भगवान् हमारा नाम भी आपके सेवाक्कों में हो जाए.क्यों?क्योंकि 
"जीवेर स्वरुप होय"
क्या है जीव का स्वरुप कि वो भगवान् का नित्य दास है.प्रभु के नित्य दास हैं हम.हम भगवान् के eternal  servant हैं लेकिन आज हम पूछते है कि क्या हम भगवान् की सेवा कर ले तो इससे भक्ति हो जायेगी.अरे सेवा क्या उनकी ये आपका constitutional position है,ये आपका स्वरुप है.अपने स्वरुप को जब आप भूल जाते है तो इसे माया कहते हैं कि आप मायाबद्ध हो गए.अपने आप को भूल गए.अपने सम्बन्ध को भूल गए भगवान् के साथ.भगवान् को ही भूल कर रह गए. 

भूल गए उनको,delete कर दिया.हाशिये पर रख दिया आपने तब अचानक कोई याद दिला देता है भगवान् की तब आप कहते  हैं हे प्रभु हम भी आपके गुलाम हो जाए.आप तो गुलाम ही है.यही आपका स्वरुप है तो अगर आप स्वरुप जी अपने स्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं तो यह बहुत खुशी की बात है.तो ऐसी इच्छा मै हम सब के लिए करती हूँ.अपने लिए भी करती हूँ.

SMS :दिल्ली से किसी ने पूछा है कि भक्ति और उपासना में क्या अंतर है?
 Reply By माँ प्रेमधारा:
भक्ति बहुत गहरी चीज है.उपासना प्रायः देवी-देवताओं की की जाती है.भक्ति सिर्फ और सिर्फ भगवान् की की जाती है.हाँ जो सबसे  बड़े है ,प्रभु की की जाती है.उनके चरणों में बार-बार नमस्कार किया जाता है
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
इन तीन चीजों का पालन जब हम करते हैं तब हम भक्ति करते हैं.नौ प्प्रकार से भक्ति की जाती है और उसमे उपासना भी उसका एक अंग आता है. किन्तु भक्ति बहुत विस्तृत है जिसमे उपासना उसका एक छोटा-सा अंग है.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.आप बहुत सुन्दर-सुन्दर SMS भेज रहे हैं आपका बहुत-बहुत शुक्रिया.
SMS :एक बहुत सुन्दर मेसेज आया है S.K.सेठ जी का.ये लिखते हैं
A Man was walking on a shaking breeze .he prayed for help and saw God on the other side of the breeze and ask God to come near .God didn't come .Man got angry and with great difficulty he crossed to the other side and saw God holding the broken breeze.
Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत ही सुन्दर message है.मतलब एक आदमी जो है वो हिलते-डुलते टूटे हुए पुल पर जा रहा था. उसने भगवान् से प्रार्थना की कि भगवान् आप मेरी तरफ आ जाओ क्योंकि उसने देखा कि भगवान् पुल के दूसरे छोड़ पर हैं.उसने कहा भगवान् मेरे पास आ जाओ.भगवान् नही आये तो वो बहुत गुस्सा हो गया.बहुत ही मुश्किल से उसने उस पुल को पार किया.जब वो दूसरी तरफ आ गया तो उसने क्या देखा कि भगवान् टूटे हुए पुल को थामे हुए थे.

बहुत ही सुन्दर आपने message भेजा है.

SMS :एक और बहुत सुन्दर मेसेज आया है विनोद जी का आर के पुरम से.ये लिखते हैं
"यूं तो शोर भी नही है कोई
शांति भी नही है
कहा नही कुछ कह भी दिया बहुत
भीड़ तो है पर मै तुझे ढूँढता रहा
तू कही हो मिल जाए कहीं
इसी सोच का राहगीर हूँ."

Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत सुन्दर बात है कि भगवान् को आप ढूँढ रहे हैं.कही हैं और कहीं मिल जाए इसी सोच के आप राहगीर हैं और आप इसी राह पर चलते रहे तो अवश्य आपकी मुराद पूरी होगी.प्रभु आपको प्राप्त हो जायेंगे.प्रभु आपके पास अभी भी हैं आपके ह्रदय  में लेकिन बात है प्रकाशित होने की.,manifest होने की.भगवान् कहते हैं

नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्‌ ॥


कितनी बड़ी बात भगवान् कहते हैं,प्रभु कहते हैं कि मै सबको नजर नहीं आता.सामने हूँ पर नजर नही आता.आपके सामने है भगवान्.आपके ह्रदय में हैं भगवान्.अब बताईये इससे ज्यादा करीब क्या हो सकती है बात.आप कहते भी हो किसी-किसी को तुझे दिल में बंद कर लूं,
दिल में तुझे बिठा के,
कर लूंगी बंद आँखें
पूजा करूंगी तेरी
होकर रहूंगी तेरी
कितनी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं हम सांसारिक लोगों के लिए.दिल में आपको किसी को बिठाना पड़ता है लेकिन अल्रेअद्य वहाँ पर हैं,जन्मे थे आप तब से और आगे भी सदा-सर्वदा रहेंगे.हाँ उनकी तरफ हमारा ध्यान नही जाता thats very amazing .बहुत दुखद बात है.

तो जब हम भगवान् की तरफ ध्यान लगाते हैं.उन्हें चाहते हैं उन्हें प्राप्त करना चाहते हैं,उनसे प्यार करते हैं,उनके लिए व्याकुल हो उठाते हैं तो भगवान् प्रकाशित हो उठाते हैं.नाहं प्रकाशः ,manifest हो जाते हैं.उस रूप को देखने का सौभाग्य शुद्ध भक्त को ही हो पाता है तो बहुत सुन्दर आपने बात कही.
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SMSप्रश्न है संजय वर्मा का I.P.Extension से.पूछते हैं 
पाप और परोपकार में क्या अंतर है?

Reply By माँ प्रेमधारा:
जब आप शास्त्रों का उल्लंघन करके,शास्त्रों में दिए गए दिशा निर्देशों का उल्लंघन करके अपने मन के मुताबिक़ काम करते हैं उसे पाप कहा जाता है.उसी को technically विकर्म कहा जाता है शास्त्र की भाषा में.

और परोपकार जब आप किसी का भला करते हैं.तो ये जब आप किसी का भला करते हैं,किसी पर उपकार करते हैं तो उसे पुण्य कहा जाता है.शात्रों के मुताबिक़ आप काम करते हैं ,लोगों का भला करते हैं तो वो पुण्य हो गया.

तो पाप हो या पुण्य  हो दोनों आप करोगे तो आपको जन्म लेना पडेगा.क्यों?क्योंकि हर action का एक reaction होता है.और उस reaction ओन को भोगने के लिए,उसके फल को भोगने के लिए हमें जन्म-मृत्यु के चक्कर में फंसना पडेगा.इसीलिये कहा जाता है कि इनदोनों से ऊपर उठाना है और अपना हर कर्म भगवान् को अर्पित करना है.हर कर्म उनके लिए करना है.ठीक है.

SMS:पूजा दिल्ली से कहती हैं
"अपने ग़मों की यूं नुमाइश न कर
अपने नसीब की यूं आजमाइश न कर|
जो तेरा है तेरे डर पे खुद आ जाएगा
हर पल उसे पाने की ख्वाहिश न कर||"

क्या बात है!बहुत अच्छी बात है.इसी पर मुझे एक श्लोक याद आ गया 
सुखं इन्द्रियकम दैतं
कि जो इन्द्रियों से जुड़े हैं हमारे सुख हमारे सारे सुख.हमारी पांच जो इन्द्रियाँ हैं इनसे जुड़े हुए हैं हमारे सारे सुख.हमारी जो आँखें है वो देखने का सुख प्राप्त करती है,हमारे कान सुनाने का सुख प्राप्त करते हैं,हमारी जिह्वा चखने का सुख प्राप्त करती है,स्वाद प्राप्त करती है.हामी नाक जो है सूंघने का सुख प्राप्त करती है.हमारे त्वचा स्पर्श का सुख प्राप्त करती है.ये सारे सुख ही तो है.इन्ही को extend करने के लिए,इन्ही को expand करने के लिए,इन्ही की विस्तार में हमलोग पूरी उम्र लगा देते हैं.

इन्हें और अच्छे से पाएं ,और पाएं,और पाएं.इन्द्रियों की तुष्टि करें,करें,करें.Sense Gratification तो ये जो सुख है वो इन्द्रियों से जुड़ा हुआ है.इन्द्रियां jad हैं.सुख अपने आप सबको मिल जाता है.एक कुत्ते-बिल्ली को भी खानें की चीजें मिल जाती है,आराम करने की जगह मिल जाती है.कोई गाडी के नीचे बैठ कर आराम कर रहा है ,कोई कही भे.सबको सब कुछ मिल जाता है.

सर्वत्र लभ्यते दैवात 
भगवान् की कृपा से सब जगह सबकुछ मिल जाता है 
यथा दुखम अथैप्रतः 
जैसे दुःख बिना किसी efforts के मिलता है विअसे ही सुख भी बिना किसी efforts के मिलता है,कोई प्रयास नही करना पड़ता.

तो प्रयास कहाँ करो.प्रयास हरिनाम को एकत्र करने में करो.भगवान् के नाम को इकट्ठा करने में करो.जब प्रयास उस दिशा में होगा ख़ूबसूरत होगा.प्रयास जो है आपका आपको प्रभु के पास ले जाएगा.और आपको इस जन्म और मृत्यु के चक्र से निकाल पायेगा.

ये याद रखो जन्म लेना सबसे बड़ा दुःख का कारण है क्योंकि सबकुछ इस शरीर से भी शुरू होता है.

SMS :संदीप कुमार मुरादाबाद से पूछते हैं
क्या सेवा से भी भगवान् को अनुभव किया जा सकता है?

Reply By माँ प्रेमधारा:
संदीप कुमार जी सेवा से ही भगवान् को अनुभव किया जा सकता है और सेवा करने का एक जो प्रकार है वो प्रभु का नाम लेना है.
श्रवणं कीर्तनम
यहाँ से हमारी भक्ति शुरू होता है.भक्ति का अर्थ है प्रेममयी सेवा.भगवान् की प्रेमपूर्वक सेवा करना  तो भक्ति करिए,सेवा करिए और भगवान् को प्रसन्न कीजिए.

SMS :आनंद जनकपुरी से पूछते हैं मै नौ साल का हूँ और भगवान् का ध्यान करता हूँ.क्या ये ठीक है?

Reply By माँ प्रेमधारा:
आनंद इसमे गलत क्या है?मै ये पूछती हूँ हमारे जो छोटे बच्चे हैं वो ये क्यों नही पूछते कि अगर मै दो घंटे इन्टरनेट पर बैठा रहता हूँ तो क्या ये सही है?अगर मै सारे दिन पांच-पांच ,छः-छः घंटा टी.वी. देखता हूँ,कार्टून देखता हूँ,ये देखता हूँ वो देखता हूँ तो क्या ये ठीक है?अगर मै वहां जो खेलता रहता हूँ,टेलीफोन पर बातें करता रहता हूँ क्या ये ठीक है?

बताईये सही चीज को आज हम question mark में ला रहे हैं.प्रश्न के घेरे में रख रहे हैं.मै आपसे पूछ रही हूँ के ये ठीक है?नही ये ठीक नही है.भक्ति करना हरेक का फर्ज है,कर्तव्य है हरेक का.हर व्यक्ति का,हर जीव का.देह की उम्र मत देखो लेकिन हाँ अपनी पढाई से मुँह मत मोड़ना.यही मै आपको कहूंगी.भक्ति करिए लेकिन अपने कर्तव्य को भी साथ-साथ पूरा कीजिये.
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कार्यक्रम में आपलोगों का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर. 
SMS :हमारे पास अगला मेसेज आया है संजय का रामबाग से कहते हैं
"आम है आज भी तेरे जलवे,हरकोई देख सकता है |
सब की आँखों पे पर्दा पडा है,तेरे चहरे पर कोई पर्दा नही है.||"

Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत सुन्दर बात ,बहुत ही सुन्दर बात है.है न.


यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥



आपने इस श्लोक की मुझे याद दिला दी कि भगवान् कहते हैं जो कोई मुझे हर जगह देखता है,हरेक में देखता है वही असलियत में मुझे देख पाता है और ऐसा व्यक्ति न मेरी दृष्टि से कभी ओझल होता और न ही मै कभी उसकी दृष्टी से ओझल होता हूँ.disappear होता हूँ.बहुत अच्छी बात कहते हैं भगवान्.और ये ही आप भी कह रहे हैं कि 
आम है आज भी तेरे जलवे,हरकोई देख सकता है
भाई आप ये क्यूं नही समझते कि ये जो पृथ्वी है इस पर आज भी इतना कुछ है,इतना कुछ घटित होता है.वो automatically थोड़ी न हो जाता है,by chance थोड़ी न हो जाता है.घर आपके सब कुछ है चावल,दाल,सब्जी ये सब रखी रहती है लेकिन जब तक आप पाकाओगे नही पकेगी कैसे.कैसे आपके प्लेट तक आयेगी?सबकुछ आपको करना पड़ता है न.

इसीप्रकार से जो इस सृष्टि में हो रहा है ,कितना कुछ पैदा हो रहा है,फुल बन रहे हैं,इतने सुन्दर-सुन्दर फूलों पर रंग छिड़क रहे हैं और बरसात हो रही है समय पर.सबकुछ,सबकुछ planned है कि इतने बजे सूरज निकलेगा.इतने बजे सूर्यास्त होगा.ये सब कोई कर रहा है.कोई कर रहा है अपने आप नही हो रहा है.है न.ये जो कर रहा है वही भगवान् है.उनके जलवे आप कहाँ नही देख सकते.

रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥

कितनी बातें बोलते हैं प्रभु.तो क्या गुणगान करूँ.मेरी तो जुबान जो है मेरा साथ नही देगी.क्या गुणगान करूँ प्रभु का.तो उनके जलवे हर जगह दिखाई देते हैं और आप उनकी तारीफ़ नही कर पाते हैं,appreciate नही कर पातें है तो ये आपकी नज़रों का दोष है.कितनी बार इतना बड़ा-सा चंद हमारी छत पर नज़र आता है कहाँ कोई उसे देख पाता है.time नही है सब metros में busy हो गए हैं और ऐसी life हो गयी है ,hectic life जिसे कि दिखाते हैं लोग आजकल.

आजकल तो ये टशन हो गया है "I am very busy .बहुत busy रहता हूँ."
अपने दोस्त तक को फोन करने का वक़्त नही होता लोगों को.फोन सुनाने का वक़्त नही होता.माँ से ये पूछने का वक़्त नही होता कि माँ तुम कैसी हो.तो क्या busy हो गए हैं आप?बीमार हो गए हैं आप बीमार.हम ब्बीमारों के लिए बड़े-बड़े हॉस्पिटल खोल देते हैं और हम कहते है कि ये तो medical city हो गयी हमारी.तो बीमारों का शहर हो गया.सोचिये.और हम उस पर फक्र करते है.

ये हमारी मानसिकता है .हम ऐसी चीजों को achievment मानते हैं जो हमारे regression का कारण है.जो दिखा रहा है कि हम पीछे आ रहे हैं ,बहुत पीछे आ रहे है.तो आपने बिल्कुल सही कहा है कि भगवान् के जलवे तो आम है लेकिन कोई देखता नही क्योंकि सबकी आँखों पर पडा है भगवान् के चहरे पर कोई पर्दा नही है.हमारी आँखों पर पर्दा  पडा है मोह का,माया का .माया मतलब जो नही है.उसका पर्दा.

ये संसार शाश्वत नही है temporary है मगर इस temporary संसार का जादू कुछ इसतरह हम पर चलता है कि हम क्या बताएं.लोग जानते है कि टेलीविजन में जो हो रहा है वो सच नही है लेकिन तब भी लोग सात घंटे वहां बैठे रहते हैं.सोचिये.क्या हालत है.तो बहुत बुरी हालत है समाज की.कुछ किया नही जा सकता.सिर्फ लोग भगवान् का नाम ले लें तो कुछ बात हो जाए.

SMS :दिल्ली से जाने कौन लिखती हैं 
"some joys are better expressed in silence and a smile hold warm meaning than words.I was asked if i enjoyed having God in my life i just smiled."

Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत सुन्दर बात इन्होने कही है कि कभी-कभी कुछ आनंद को ,किसीप्रकार के आनंद को हम सिर्फ मौन में अच्छे तरह व्यक्त कर सकते हैं जिसप्रकार की कभी-कभार एक मुस्कराहट शब्दों से ज्यादा वजनदार होती है.तो इसी से एक बार मुझसे किसी ने पूछा कि क्या भगवान् को अपनी जिन्दगी में लाने में मुझे कुछ मज़ा आया मै सिर्फ मुस्कुरा भर दिया.

सही बात है हर experience को आप शब्दों में बयान नही कर सकते.प्रभु से जुड़ने का,उस आनंद में बहने का experience ,अनुभव क्या होता है ये तो आप तभी प्राप्त कर सकते हैं जब आप स्वयं उनसे जुड़ेंगे.मधु पात्र के अन्दर मधु कितना मीठा है वो आप मधु पात्र को चाट के,उस बर्तन को चाट कके,उस शीशी को चाट के प्राप्त नही कर सकते,पता नही लगा सकते.ढक्कन खोलना पडेगा और फिर उस मधु को.honey को निकालाना पडेगा.और जुबान तक लाना पडेगा,चतना पडेगा तब पता चलेगा कितनी मिठास है .

तो भक्ति करेंगे तो पता चलेगा कि भक्ति कितनी आनंददायक है,जाना पडेगा उस मार्ग पर.और मै आपको बताऊँ यही मार्ग आपके लिए तय हुआ है.इंसानी जीवन के लिए पर हम समझते है कि ये को backwardness है.ये तो बेकार है.जी नही यही सही विश्वास है.यही श्रद्धा है.
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कार्यक्रम में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.आपके सुन्दर messages  हमें आ रहे हैं.आपका बहुत-बहुत शुक्रिया.जिन messages को मै नही भी ले पायी तो mind मत कीजिएगा.मैंने सारे messages पढ़े हैं.और आपकी हाजरी तो लग ही गयी है भगवान् के दरबार में यही सोचकर आप प्रसन्न रहिएगा.
SMS :अशोल यादव लिखते हैं 
"We should pray in such a We that everything depends upon God but We should act in such a We that everything depends on us."
Reply By माँ प्रेमधारा:
यानि कि हमें भगववान से इसतरह से प्रार्थना करनी चाहिए,भगवान् के सामने जाकर कि जिसतरह की भगवान् पर ही सबकुछ निर्भर करता है,भगवान् पर ही सबकुछ आश्रित है.लेकिन हमें इसप्रकार से कार्य करनी चाहिए कि सबकुछ हमारे ऊपर निर्भर करता है.
बिल्कुल सही बात है प्रर्थानाओंमे यही असर होना चाहिए कि हे प्रभु सब कुछ तो तुम्ही पर निर्भर करता है और काम यानि भक्तिपूर्वक कार्य हम इसप्रकार से करें कि सबकुछ हमारे ऊपर निर्भर करता है.और सही बात है कि आपका कार्य ही आपको अगली देह प्रदान करता है.तो बेहतर होगा कि आप आध्यात्मिक देह के अधिकारी बने.

SMS :अजित कसाना मुरादाबाद से कहते हैं कि आज show  पहली बार सुन रहा हूँ पर promise करता हूँ कि अबसे कभी miss नही करूंगा.
Reply By माँ प्रेमधारा:
अजित जी कार्यक्रम में आपका बहुत-बहुत स्वागत है.आप हमारे नए श्रोता हैं और अब जल्दी-जल्दी आप हमारे पुराने श्रोता भी  बन जायेंगे.ऐसी हमें उम्मीद है.

SMS :पार्वती दिल्ली से कहती है कि मुझे आपका प्रोग्राम बहुत पसंद है.मुझे प्रभु से अति प्रेम है पर कभी-कभी मन सांसारिक सुखों में उलझ जाता है.
Reply By माँ प्रेमधारा:
प्रभु से अतिशय प्रेम होना बहुत अच्छी बात है लेकिन जब भगवान से आपको बहुत प्रेम होगा तो उसी मात्रा में आपको संसार से विरक्ति हो जायेगी.यही पैमाना है.लिटमस टेस्ट है कि हमारी भक्ति सही मार्ग पर है या नही है.ये आप ज़रा देख लीजिएगा.

SMS :गिरिराज शर्मा,बविता शर्मा पूछती है मोदीनगर से 
भगवान् में और भगवान् के अवतार में क्या कोई भेद होता है.
Reply By माँ प्रेमधारा:
नही भगवान् और भगवान् के अवतार में कोई भेद नही होता है.भगवान् अवतार लेते हैं.अवतार का मतलब क्या होता है ऊपर से नीचे की तरफ आना तो हमारे इस पृथ्वी लोक के ऊपर कई लोक हैं जो की भौतिक लोक हैं.और उन भौतिक लोकों के बाद शुरू होता है अध्यात्मिक लोक.Kingdom Of God .तो वो अध्यात्मिक लोक जो है वहाँ से प्रभु आते हैं तो उसमे कोई चंगेस नही होते हैं.हमारे शरीर और आत्मा अलग-अलग होते हैं पर उनके शरीर और आत्मा में कोई फर्क नही होता है.ठीक है.

SMS :एक message आया है जाने कौन हैं,जाने कहाँ से लिखते हैं.
आपका prograam भवरोगिओं के लिए स्लाइन का काम करता है.
Reply By माँ प्रेमधारा:
शुक्रिया बहुत सुन्दर आपने तारीफ़ की.भवरोगिओं के लिए स्लाइन का काम करता है.बहुत अच्छी बात है.भव रोगी वाकई भवरोग से बाहर निकल जाएँ तब तो बात है.है न.

SMS :नरेन्द्र कश्यप क्रितिनगर से कहते हैं कि मैंने भक्ति छोड़ रखी है और भक्ति छोड़ने के बाद खुद को बड़ा अधूरा समझ रहा हूँ.
Reply By माँ प्रेमधारा:
नरेन्द्र जी अधूरा क्या समझ रहे हैं समाप्त हो गए.समाप्त हो जायेंगे हम इसीतरह से ,ये देह समाप्त हो जायेगी .भक्ति मत छोडिये .कुछ भी छोडिये,कुछ भी.संसार की कोई भी चीज छोडिये पर भक्ति रूपी धन कभी मत छोड़ना क्योंकि यही एकमात्र जरिया है जिससे प्रभु प्राप्त हो सकते हैं और आप संसार के इस आवागमन से बाहर निकल सकते हैं.

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