Saturday, April 24, 2010

On 18th April'10 By Maa Premdhara

नमस्कार मैं हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कभी सुना करते थे कि सुबह खुशनुमा होती है.ठंढी-ठंढी होती है सुबह.पर जब से जल्दी जागना शुरू किया तब से पता चला कि हम क्या miss कर रहे थे.देखिये कही आप ठंढी-ठंढी सुबह को miss तो नही कर रहे हैं.जल्दी जाग जाया कीजिये.

वैसे सुबह की ठंढी हवा जब शरीर को छूती है तो मन आनंदविभोर हो जाता है.मनमयूर नाचने लगता है.भगवान को शुक्रिया कहते हैं कि प्रभु आपने इतनी प्यारी सुबह बनायी है कि ये सुबह तो हमें आपकी याद दिलाती है.है न.और फिर जैसे-जैसे दिन चढता जाता है.सुबह की ठंढी हवा गर्म होने लगती है.वही हवा लू का रूप ले लेती है.उसका नाम हो जाता है लू जिससे कि सब भय खाते हैं.सब warn करते हैं कि भाई बाहर मत जाओ लू लग जायेगी.और आप दही खाके,पानी पी के बाहर निकलते हैं कि कही गर्म हवाएं अआप पर अपना असर न डाल जाए.

तो सोचिये हवा उस में क्या बदलाव आया.हवा तो एक ही है.पर जब सूरज की अनुपस्थिति में सुबह आपके तन को छोटी है तो आप उसका स्वागत करते हैं और हवाखोरी के लिए आप निकल पड़ते हैं.और वही हवा दिन में आपको बेचैन कर जाती है.है न.सुबह-सुबह ये हवा कहलाती है और दिन में इसका नाम ही बदल जाता है क्योंकि उसने सूर्य का संग किया होता है.

बिल्कुल ठीक यही हाल है आपका और हमारा यानि आत्मा का.भगवान के यहाँ से आयी ये आत्मा सुबह की हवा की तरह निष्पाप और निर्मल होती है.पर धीरे-धीरे दुनियावी लोगों का संग करते-करते.प्रकृति के तीनों गुणों का संग करते-करते ये आत्मा कलुषित हो जाती है.संसार का संग जीवात्मा को भगवान से विमुख कर देता है.और जो जितनी मात्रा में संसार में डूबता है उतनी मात्रा में वो भगवान से विमुख होता है.

और यही है हमारी यानि कि आत्मा की मुख्या बीमारी.पराये देश इस संसार को अपना मान लेना और अपने देश भगवद धाम को पूरी तरह से भूल जाना.पराई जगह अपनेपन की आश लगाना और अपने सबसे बड़े शुभचिंतक भगवान को नज़रअंदाज कर देना.हाँ.सोचिये कितने दुःख की बात है.है कि नही.




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कार्यक्रम में आप लोगों का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.आज का श्लोक आपके लिए:
रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत ।
रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा ॥

अर्थात
"हे भरतपुत्र ! कभी-कभी सतोगुण रजोगुण और तमोगुण को परास्त कर प्रधान बन जाता है तो कभी रजोगुण सतोगुण और तमोगुण को परास्त कर देता है और कभी ऐसा होता है कि तमोगुण सातो और रजोगुण को परास्त कर देता है.इसप्रकार श्रेष्ठता के लिए निरंतर प्रतिस्पर्धा चलती रहती है."
तो देखिये ये हमारे nature के बारे में भगवान ने बताया है.हमलोग प्रकृति के तीन गुणों से आच्छादित रहते हैं.प्रकृति के तीन गुणों ने हमें बाँधा होता है.हम उन्ही के दायरे में काम करते हैं.तो भगवान कहते हैं कि कभी-कभी सात्विक गुण प्रधान हो जाया करते हैं.ऐसा लगता होगा आपको.सोचिये.



कभी-कभी आपका बड़ा मन करता है कि आज पूजापाठ करें.आज मंदिर को बहुत अच्छे से सजाएं.और ये करें.भगवान को dress करें.ये सब बड़ा मन करता है कभी-कभी.कभी मन करता है कि चलिए तीर्थयात्राओं पर चले जाएँ.ये करें,वो करें.बहुत अच्छा लगता है.भगवान के बारे में सुने जाकर के.कहीं कथा हो रही है वहाँ जाकर के भगवान के बारे में चर्चा सुने और आनंद ले.है न.बड़ा मन करता है.तो सतोगुण उस समय प्रधान हो गया.रजोगुण,तमोगुण पराजित हो गए.

रजोगुण कि चलो भाई भागदौड करें.कमाएँ.पैसा बटोरे.पति-पत्नी के रिश्तेदारों से अच्छा सम्बन्ध रखें.यहाँ दौड़े,वहाँ दौड़े.हाँ ये रजोगुण है.

और तमोगुण अरे सोते रहेंगे.आलस्य होगी.क्या करना खाना-पीना सब हो जाएगा न.अभी क्या है.अभी सोने दो न.क्या है सुबह पाँच बजे क्यों उठाते हो.अरे भाई सुबह अच्छी है देख लो.नही नही सोने दो.आलस करना,प्रमाद करना,बुरी आदतों का शिकार हो जाना,शराब पीना,मांस खाना ये सब तमोगुण है.

तो कई बार ऐसा होता है.भगवान कहते हैं.सात्विक गुण आपके बड़े प्रधान हो जाते हैं और रजोगुण तमोगुण को पराजित कर देते हैं.फिर आगे भगवान कहते हैं कि कभी-कभी रजोगुण, सतोगुण और तमोगुण को पराजित कर देता है.

आप सोचते हैं कि अरे हमेशा पूजापाठ करते रहने से रोटी थोड़े न चलेगी.पेट थोड़े न भरेगा.अच्छा काम करना पडेगा और फिर अच्छे काम की तलाश में आप भागते है.और जब आपको काम मिल जाता है तो फिर आप सुबह-सुबह जल्दी उठकर के,तैयार हो करके दौड़ते है.अपनी charted बसे पकडते हैं.वहाँ दौड़ लगाते है कि card punch करना है.time से पहले पहुँचना है.वहाँ पर भी आप ये मनन करते हैं कि किस तरह से मै अपने company में आगे बढ़ जाऊं.मुझे Promotion मिल जाए.ये रजोगुण है.

अब ऐसे में आपसे कहे अरे भक्ति कर लो तो आप कहेंगे हमें फुर्सत नही है.ये रजोगुण प्रधान हो गया और सतोगुण पीछे हो गए.तमोगुण पीछे हो गए.रजोगुण ने take over कर लिया.

कभी-कभी तमोगुण प्रधान हो जाता है.सतोगुण और तमोगुण पीछे धकेल दिए जाते हैं.भाई तमोगुण में आपने कहा आहा छः दिन से काम किया है.इतना काम किया है.आज तो Sunday है.आज तो मै जी भरके सोउंगा.हाँ और आप सो गए.फिर सबने कहा उठ जाओ न इतनी सुबह हो गयी है.कुछ काम-वाम कर लो.कुछ खा लो.पूजापाठ कर लो.अरे नही आज तो बस आराम करना है.और उस आराम के नाम पर आप आलस्य करते जाते हैं.छः घंटे से अधिक सोते हैं.आठ घंटे,दस घंटे.ग्यारह घंटे.बस सोते जाते हैं.सोते जाते हैं.
तो ये तमोगुण है.तमोगुण प्रधान हो गया.हाँ या उल्टी-सीधी चीज खाते है.चलो आज Sunday है आज ऐसी सब्जी बनायी जाये.ये बनाया जाए.मांस बनाया जाए.मदिरा पी जाए.हाँ  तो ये जो तमोगुण है वो प्रधान हो गया.सतोगुण और रजोगुण back seat ले लिए मतलब पीछे हो गए.

तो भगवान कहते हैं कि तीनों गुणों में ये प्रतिस्पर्धा चलती रहती है.कभी एक ऊपर हो जाता है कभी दूसरा नीचे हो जाता है.कभी तीसरा ऊपर हो जाता है.बस इस तरीक से हमारे जो आचार-व्यवहार में परिवर्त्तन दिखाई देता है इन गुणों के परिवर्त्तन के कारण.ये सोचिये.
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कार्यक्रम में आप लोगों का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हमने आपको बताया कि कैसे भगवान बताते हैं कि कैसे रजोगुण,सतोगुण और तमोगुण में जप स्पर्धा होती है उसके कारण कभी रजोगुण आगे बढ़ जाता है.कभी तमोगुण आगे बढ़ जाता है तो कभी सतोगुण.तो इसीतरह आगे भगवान कहते हैं कि जो इन तीन गुणों में रहते हैं.अगर आप सतोगुण में रहते हैं तो क्या होता है.रजोगुण में रहते है तो क्या होता है और तमोगुण की अधिकता है तो क्या होता है.

तो भगवान बताते हैं कि
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥

अर्थात


"सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोकों को ऊपर जाते हैं,रजोगुणी इसी पृथ्वीलोक में रह जाते हैं,और जो अत्यंत गर्हित तमोगुण में स्थित है,वो नीचे नरक लोकों को जाते हैं."

तो ये इनकी परिणति है.परिणाम है तीन गुणों का.भगवान बता रहे हैं यहाँ.बहुत सुन्दर बात.देखिये बहुत सुन्दर जानकारी है.ऐसी जानकारी शास्त्र के अलावा आपको कही नही मिल सकती.अभी तो आम आदमी को यही नही पता कि

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।

उसको यही नही पता कि मै कुछ नही करता हूँ.मुझसे ये प्रकृति के गुण काम करवाते हैं.जिन गुणों को मै इख्तियार करता हूँ,अपनाता हूँ वो गुण मुझसे काम करवाते हैं.फिर प्रकृति के गुण क्या हैं और उन गुणों का परिणाम क्या है.कहाँ जाते हैं ऐसे लोग.

तो भगवान ने बड़ी ही crystal clear जानकारी यहाँ दी है कि
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था
ऊपर के लोक.ये पृथ्वीलोक है.पृथ्वी के ऊपर के जो लोक हैं.स्वर्गलोक हो गया.जनलोक हो गया.महर्लोक.सतलोक.तपोलोक.ये समस्त लोक जो हैं वहाँ की यात्रा जो है सतगुणी लोग करते हैं.तो ऊपर के लोकों में बहुत सुख है.बहुत ज्यादा सुख है.तो दुःख नही है ऐसा नही कहेंगे लेकिन दुःख की मात्रा बहुत अधिक नही है लेकिन वहाँ भी जीवन अस्थायी है.वहाँ भी comparatively देखा जाए,relatively  देखा जाए तो जैसे हम यहाँ पर सौ साल जीते हैं तो वहाँ हो सकता है कि दस हजार साल या उससे भी ऊपर साल जीते हैं.तो लगता है कि अरे लाखों साल जीते हैं लोग.यानि कि बहुत जीते हैं.लेकिन फिर भी वहाँ भी मृत्य होती है.वो बात अलग है.

आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥

भगवान कहते हैं कि वहाँ तक भी अगर आप चले गए तो भी मृत्यु का सामना करना पडता है.वापस आना पडता है.

फिर भी देखा जाए तो ये बुरी बात नही है कि आप उच्च लोकों में जाएँ और भोग करे.अच्छा भोग करें.यहाँ तो भोग की उतनी सुविधाएं नही हैं जितनी उच्च लोकों में है.तो भगवान बताते हैं कि जो सतोगुणी लोग होते हैं.जिन्होंने सतोगुण में कार्य किया होता है वो ऊँचे के लोको में जाते हैं.

और जो राजसी होते हैं.राजसी गुण वाले.रजोगुण वाले.जो हमेशा बस अपनी इंद्रतृप्ति में लगे रहते हैं.सकाम कर्मी जिन्हें कहते हैं न.जो कोई भी काम करते हैं उसके अंदर जो है फल की आकांक्षा करते हैं.सुबह से ले करके रात तक बस कमाते रहते हैं.दौड़ते रहते हैं कमाने के लिए.कभी ये meeting तो कभी वो meeting.कभी ये conference तो कभी वो conference.कभी ये party तो कभी वो party.कभी ये deadlines meet करनी है तो कभी वो deadlines meet करनी है.

जिनकी बुद्धि इसप्रकार की होती है उसे रजोगुणी व्यक्ति कहा जाता है.ऐसे लोग बहुत चटपटे खाने को पसंद करते हैं.खाना बहुत चटपटा होना चाहिए.खूब तेल-घी मार करके खाना बनाना चाहिए.उसमे खूब मसाले होने चाहिए.उसकी बहुतायत होनी चाहिए.

जबकि सतोगुणी लोग बहुत simple सात्विक भोजन करते हैं.लहसुन-प्याज भी नही होता.जबकि रजोगुणी लोग इसतरह का भोजन करते हैं जिसमे खूब मसाले वगैरह हो.खूब चटपटे और गर्मागर्म first class खाना,उनकी अपनी नजर में,वो खाते हैं.

तो ऐसे लोग कहाँ रहते हैं.पृथ्वी पर.बीच के लोकों में रहते हैं.यहाँ क्या है?यहाँ दुःख की बहुलता है.बहुत दुःख है.बहुत ही दुःख.तो इसीलिए कहा जाता है कि जो रजोगुणी व्यक्ति हैं वो दुःख उठाते हैं.बहुत दुःख उठाते हैं.किसी का ambition अगर पूरा नही हुआ.आपको doctor बनना था आप doctor नही बबन पाए.आपको किसी छोटी-सी नौकरी से गुजारा करना पड़ा तो जिंदगी भर एक मलाल रह जाता है.आप दुखी हो जाते हैं.जब-जब किसी doctor को देखते हैं तो सोचते हैं कि ये तो बचपन का मेरा अरमान था.ये कैसे हो गया doctor मै नही हो पाया.

लेकिन ये आपका प्रारब्ध था.प्रारब्ध में नही था कि आप doctor हो.है न.तो वो नही समझ पाता है.जो रजोगुणी व्यक्ति हैं वो दुःख उठाते हैं.बड़े दुखी रहते हैं.यहाँ देखा जाए पृथ्वी पर तो क्या दुःख नही है.क्या चर्चा करूँ मै आपको.जन्म,मृत्यु,ज़रा,व्याधि तो दुःख है ही अलावा इसके जो तीन दुःख हैं-अधिभौतिक.अधिदैविक और जो मन से उपजे हुए दुःख हैं आध्यात्मिक दुःख.वो सारे दुःख तीन ताप जिसे कहते हैं वो हैं.तो ये हालत होती है.

और जो तमोगुणी लोग हैं.जो मांस-मदिरा ये सब खाते-पीते हैं.शास्त्र कहता है कि ऐसे लोग जो कि आलस्य करते हैं,नींद लेते रहते हैं,समाज में उत्पाद मचाते रहते हैं ऐसे लोग नरक के लोकों की तरफ जाते हैं.नीचे की तरफ जाते हैं.पाताललोक हो गया.रसातल हो गया.सुतल हो गया.वितल हो गया.नरक के लोक हो गए.तो ऐसी जगह जाते हैं जहाँ पर सूर्य का प्रकाश भी नही पहुँच पाता और वहाँ सर और सिर्फ कष्ट है.

बीच के लोकों में तो थोड़ा सुख भी है पर वहाँ सिर्फ और सिर्फ कष्ट है.


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