Thursday, April 22, 2010

On 10th April'10 By Maa Premdhara

नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कुछ दिन पहले की बात है.मै कही जा रही थी.रास्ते में एक स्कूल के किनारे से गुज़री देखा कि कुछ स्कूली बच्चे बाहर बैठकर.फुटपाथ पर बैठ कर बड़े ही style से सिगरेट पी रहे थे.ऐसा लग रहा था जैसे कि वो किसी फ़िल्मी हीरो की नक़ल कर रहे थे या खुद को किसी प्रकार का हीरो समझ रहे थे.वो भी सिगरेट पी के.

और उनके पास ही सिगरेट की एक खाली डिब्बी पडी थी.उसमे एक फोटो छपी थी खराब फेफड़ों की.खराब lungs की.दिखाया गया था कि lung cancer हो सकता है जो बहुत ही खतरनाक है,जानलेवा है.और ऐसा नही है कि उन बच्चों को अंग्रजी पढना नही आता था.अरे इनके बैग तो किताबों के बोझ से इतने भारी होते हैं.कितनी किताबें पढते हैं ये.तो उन्होंने जरुर पढ़ा होगा.उन्होंने जरुर देखी होगी वो warning .पर उसे नजरअंदाज कर दिया.

मै सोचती हूँ कि ऐसी सामाजिक व्यवस्था का क्या फ़ायदा जो बच्चों को बड़ी बड़ी बाते तो बताएं पर इतना तक न बता पाए,समझा पाए कि धूम्रपान नही करना चाहिए.क्यों बच्चे बिगड जाते हैं.क्या समाज उन्हें बिगाडता है.क्या फ़िल्मी हीरो की नक़ल करके वो बिगडते है.आखिर दोष कहाँ है,किसका है.

खैर कष्ट की बात है कि हमारी आगामी पीढ़ी धुएं में खुद को खो रही है.मानव जीवन जो इतना बहुमूल्य है कि उसका एक क्षण भी व्यर्थ करना कृपणता है.भारी भूल है.वो जीवन पहले हम गलतियाँ करने में गवांते हैं और फिर उन गलतियों की भरपाई करने में.यानि कि खामियाजा भूगतने में गवां देते हैं.

इस तरह आधी-आधी करके पूरी जिंदगी हाथ से निकल जाती है.और इंसानी जीवन का एक स्वर्णिम अवसर golden opportunity यूं ही जाया हो जाता है.काश हम सब समझ पाते इस मनुष्य जीवन की अहमियत और इसकी क़द्र करते.प्रभु का नाम लेते और जीवन को सही अर्थों में हम धन्य करते.
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कार्यक्रम में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब बहुत ही सुन्दर श्लोक आप सब के लिए..ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
प्रभु आपकी लीला कथा अमृत स्वरुप है.विरह से सताए हुए लोगों के लिए तो वो जीवन सर्वस्व ही है.बड़े-बड़े ज्ञानी,महात्माओं,भक्तों ने,कवियों ने इन कथाओं का गान किया है.वो सारे पात - ताप तो मिटाती ही है साथ ही श्रवन मात्र से परम मंगल ,परम कल्याण का दान भी करती है.वो परम सुन्दर,परम मधुर तथा विस्तृत भी है.जो आपकी लीला कथाओं का गान करते हैं वास्तव में भूलोक में वो ही सबसे बड़े दाता हैं.

कितनी सुन्दर बात यहाँ कही गयी है.भक्त कह रहे हैं.भगवान के भक्त बता रहे हैं.देखिये संसार में जिस चीज का अनुभव आपको होगा उसी के बारे में तो आप चर्चा कर सकते हैं.बताईये.अगर आप किसी चीज का अनुभव करते हैं तो आप बताएँगे दूसरे को.भाई ऐसा मत करना वो बहुत गलत चीज है.मैंने किया था तो मुझे बहुत ही ज्यादा नुकसान हुआ.

आप किसी doctor के पास जाते हैं.आपको उससे फ़ायदा नही हुआ.उल्टा नुकसान हो गया तो उस doctor के बारे में आप कई बार कितने ही लोगों को बता देते हैं एक ही बार में.है न.उसके पास मत जाना.मुझे बहुत ही नुकसान हुआ.है कि नही.कोई भी experience होता है.

मान लीजिए आप सब्जी लेने ही जाते हैं और आप देखते हैं कि रास्ते में बहुत ही भीड़ है.अचानक ही jam लग गया है और आपको वहाँ पर एक घंटा फंस के आना पड़ा.तो आप आते हैं तो आते ही सब को बोल देते हैं आप-पास के लोगों को भी.घर के लोगों को भी कि गाड़ी लेके मत जाना.फंस जाओगे.पैदल चले जाना.वहाँ बहुत ज्यादा jam लगा है.पता नही किस चीज का jam है.अपने घर तक आते-आते आप जाने कितने लोगों को बोल देते हैं.

अनुभव बांटते हैं आप.कोई भी चीज.और बड़े-बुजुर्गों को तो बहुत ही शौक होता है अपने अनुभवों को बांटने का.है कि नही.और होना भी चाहिए क्योंकि उनके अनुभव बेशकीमती होते हैं.तो हर व्यक्ति अपना अनुभव बांटना चाहता है.

तो यहाँ भक्त अपना अनुभव बता रहा है.भक्त भगवान के सामने ही बता रहा है क्योंकि वो जानता है कि एक आम आदमी उसके अनुभव को समझ नही पायेगा.क्यों?क्योंकि इस अनुभव को समझने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है.intelligence की जरुरत होती है.एक आम व्यक्ति नही समझ सकता जिसकी बुद्धि संसार में लगी हुई है.भागवान कहते हैं न

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥

जो मुझ तक आना चाहता है और इस उद्वेश्य से,बहुत ही प्रेम से मेरा भजन करता है continuously तो मै उसे बुद्धि योग प्रदान करता हूँ.तो जब समझने की ताकत भगवान देते हैं तब भगवान समझ में आते हैं.तब ये अनुभव समझ में आता है.तब
कथा अमृतं तप्त जीवनं

देखिये अगर कही बहुत ज्यादा गर्मी हो.बहुत गर्मी हो और आप उधर ठंढा-ठंढा पानी डाल दे तो कितना अच्छा लगेगा.है न.अगर आपका शरीर बहुत गर्म है और आप पर शीतल जल पड़ जाए तो आपको बहुत आनंद आएगा.इसीप्रकार से हमारा जीवन जो सांसारिक ज्वाला में तप्त है,दग्ध है.जल रहा है वहाँ पर भगवान की कथा अमृत की कुछ बूँदें पड़ जाती हैं तो वो जलन शांत हो जाती है.मगर ये बताने कि नही अनुभव करने की बात है.

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कार्यक्रम में आप सभी के साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:
प्रभु आपकी लीला कथा अमृत स्वरुप है.विरह से सताए हुए लोगों के लिए तो वो जीवन सर्वस्व ही है.बड़े-बड़े ज्ञानी,महात्माओं,भक्तों ने,कवियों ने इन कथाओं का गान किया है.वो सारे पात - ताप तो मिटाती ही है साथ ही श्रवन मात्र से परम मंगल ,परम कल्याण का दान भी करती है.वो परम सुन्दर,परम मधुर तथा विस्तृत भी है.जो आपकी लीला कथाओं का गान करते हैं वास्तव में भूलोक में वो ही सबसे बड़े दाता हैं.

बहुत सुन्दर बात इसमे कही गयी है.बहुत ही प्यारी बात.देखिये जो पहली बात कही गयी है कि आपकी लीला कथा अमृत स्वरुप है और विरह से सताए हुए लोगों के लए तो वो जीवन सर्वस्व ही है.तो अमृत स्वरुप भगवान की कथा है.भगवान का नाम,भगवान के गुण,भगवान की कथाएँ,भगवान का धाम,भगवान के परिकर वो सब अमृत स्वरुप हैं.उनको touch करोगे ,उनके संग में आओगे.उनका संग लोगे तो आप भी अमृत स्वरुप बन जाओगे.ये होता है.

भगवान का नाम आप जितना सुनेंगे ,जितना लेंगे तो आपका जीवन परिवर्त्तित होने लगेगा.उतना ही परिवर्त्तित होता चला जाएगा जितना आप लेंगे.और जब भगवान की लीला कथाओं के विषय में सुनेंगे तो आपको बहुत अच्छा लगेगा.पवित्र मन को ही भगवान की कथाएँ समझ आती हैं





येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्‌ ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥


भगवान कहते हैं कि जिनके पापों का अंत हो चुका है.जिनके पुण्य उदित हो चुके हैं.वो ही समस्त द्वन्द से,dualities of life से ऊपर उठकर के मुझे दृढता के साथ भजते हैं.दृढता के साथ भजते हैं.वरना भजन तो हर कोई करता है किसी न किसी रूप में.लेक्किन बात हो रही है determination की.
भजन करते हैं लोग.ऐसी बात नही है.लेकिन कई बार कहते हैं कि मेरा भक्ति में मन नही लगता.मेरा तो दस दिन से भक्ति से मन चला गया.पहले मै अच्छी भक्ति करता था.तो ये क्या है?यानि कि आपने कभी भक्ति की ही नही.क्योंकि भक्ति में इतना आनंद है.इतना आनंद है कि आप एक पल के लिए भी उस आनंद से अलग नही होना चाहोगे.

तो भगवान की जो लीला कथा है वो अमृत स्वरुप है और विरह से सताए हुए लोगों के लिए तो वो जीवन सर्वस्व ही है.आपने महसूस किया होगा जिसे आप बहुत प्यार करते हैं.बहुत प्यार करते है और वो व्यक्ति कही दूर चला जाता है.और आपको पता है कि काफी समय तक अब हम मी नही पायेंगे तो आप उसकी बातों को याद कर करके उसमे बड़ा रस लेते हैं.उसने ये किया मेरे साथ,उसने मुझे वो gift दिया.मैंने उसके साथ ये किया वो किया.हम यहाँ गए,वहाँ गए.है न.

और अगर कोई उसका friend आ जाए आपके पास तो आप क्या करते हैं?उसके विषय में ही चर्चा करने लगते हैं जिसे आप बहुत प्यार करते थे और जो आपसे दूर है.उसके विषय में चर्चा करते हैं और आपके विरह का जो भाव है वो शांत हो जाता है.आपकी जो विरह अग्नि है जो तड़प है कि हम उससे दूर हैं वो शांत होने लगती है.अच्छा लगता है उसके बारे में सोचना.उसके बारे में बात करना.

तो जो भगवान से विरह में हैं.जो इस हद तक प्रेम करते हैं भगवान से कि वो उनकी विरह वेदना में इस समय हैं.विरह को सह रहे हैं.उनके लिए तो भगवान की कथा अमृत स्वरुप है.उनके तप्त जीवन में वो शांति लाती है और चैन लाती है.प्रेम की वर्षा करती है.

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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे है एक बहुत ही सुन्दर भाव पर.ये श्लोक सच्चे भक्त के भाव को प्रकट करता है.
प्रभु आपकी लीला कथा अमृत स्वरुप है.विरह से सताए हुए लोगों के लिए तो वो जीवन सर्वस्व ही है.बड़े-बड़े ज्ञानी,महात्माओं,भक्तों ने,कवियों ने इन कथाओं का गान किया है.वो सारे पात - ताप तो मिटाती ही है साथ ही श्रवन मात्र से परम मंगल ,परम कल्याण का दान भी करती है.वो परम सुन्दर,परम मधुर तथा विस्तृत भी है.जो आपकी लीला कथाओं का गान करते हैं वास्तव में भूलोक में वो ही सबसे बड़े दाता हैं.

तो सबसे बड़े दाता वो हैं जो भगवान की कथाओं का गान करते हैं.क्योंकि अगर आप सुन लेते हैं इन कथाओं को सुनते-सुनते,सुनते-सुनते क्योंकि सुनते रहने से क्या होता है.जिस चीज की संगत आप करते हैं.जिस चीज के बारे में सुनते हैं.तो आपको उस चीज से affinity, उस चीज से प्यार  हो जाता है.एक sense of belonging आ जाती है.लगता है कि ये हमारा है.है कि नही.टी जब आप भगवान के बारे में निरंतर सुनते हैं.

पर सुनेंगे किससे?सुनानेवाला भी तो होना चाहिए.लेकिन आज हमारे समाज में बहुत बुरी दशा है.बहुत ही खराब दशा है.बहुत मुश्किल से कोई भक्त ढूंढें मिलता है.है कि नही.बहुत मुश्किल से.किसी को वक्त नही है भगवान के बारे में सुनने और बोलने का.

तो अगर fortunately सौभाग्यवश आपको एक ऐसा व्यक्ति मिल जाता है जो भगवान का बहुत अच्छा भक्त है और भगवान के बारे में ही वो चर्चा करता है.भक्त का लक्षण है.

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌ ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥


ये भक्त का लक्षण है कि जब वो मिलते हैं तो भगवान की चर्चा के अलावा अन्य कोई चर्चा वो करते नही है.क्यों?क्योंकि अन्य बात उन्हें समझ ही नही आती.उन्हें समझ ही नही आती.वो भूल गए होते हैं कि अन्य बात क्या होती है.इसके अलावा क्या बातें करें.

तो यहाँ इतनी सुन्दर बात कही गयी है कि बड़े-बड़े ज्ञानी,महात्मा,भक्त भगवान की कथाओं का गान करते हैं.देखिये जो भगवान की कथाओं का गान करते हैं उनके लिए ही ये शब्द आए है -ज्ञानी ,महात्मा,भक्त और कवि.असल कवि तो वही है.कहते हैं न कि जहाँ न पहुँचा रवि वहाँ पहुँचा कवि.जहाँ सूर्य नही पहुँच पाता वहाँ कवि पहुँच जाता है.तो भगवान तक एक सच्चा व्यक्ति जब पहुँच जाता है.उनका गुणगान करता है तो असलियत में वही कवि कहलाता है.

तो बड़े-बड़े ज्ञानी,महात्माओं और भक्तों ने भगवान की कथाओं का गान किया है.भगवान महात्माओं की परिभाषा भी देते हैं न.भगवान हमेशा कहते भी हैं कि





महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम्‌ ॥


भगवान कहते हैं कि भाई जो हमारे महात्मा हैं वो दैवी प्रकृति में आश्रित रहते हैं.दैवी मतलब divine nature और हम सब जो हैं यानि कि जो भागवान से जुड़े हुए नही हैं.ऐसे लोग वो भगवान की माया से जुड़े हुए रहते हैं.माया की तरफ आकृष्ट रहते हैं.माया ठगनी जो जो रूप देखाती है हम उसके चाल में आ ही जाते हैं.आ ही जाते हैं.समझ रहे हैं.

लेकिन जो भगवान का भक्त है.महात्मा है.सच में महात्मा है वो 
दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।.
हमेशा दैवी प्रकृति में रहता है.और क्या करता है
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम्‌ ॥
अनन्य भाव से भगवान का भजन करता है..ये जानते हुए कि भगवान ही आदि हैं.भगवान ही अंत हैं.भगवान ही मध्य हैं.सब कुछ प्रभु हैं.शुरुआत प्रभु से होती है.अंत प्रभु से होता है.पर प्रभु का कभी भी अंत नही होता है.

अनार्दिरादिर्गोविन्द सर्वकारणकारणं  

जो व्यक्ति इस बात को समझ लेता है वो भगवान की कथाओं का गान करने लगता है.और भगवान की कथाएँ क्या करती हैं?सारे पाप सारे ताप मिटा देती हैं.ये संसार की जो आग लगी हुई है न हमारे ह्रदय में.हम सब के हृदयों में लगी हुई है.इसका देखते हैं तो खुशी नही होते.उसके पास कुछ देखते है तो लगता है हाय ये मेरे पास होता.हाय उसके पास क्यों है.ये जो हाय हाय लगी हुई है.इतनी हाय हाय लगी हुई है कि हमने इसे फैशन बना लिया.हरेक को बोलते हैं हाय कैसे हो?इतनी हाय हाय लगी हुई है कि मुंह से भी अब हाय ही निकलता है.

तो ऐसा व्यक्ति भला कहाँ चैन पायेगा.ऐसा व्यक्ति वहाँ ही चैन पायेगा जहाँ भगवान की कथाओं का गान हो रहा हो.और इसीलिए ऐसे लोगों को सबसे बड़ा दाता कहा गया है जो भगवान की कथाओं का गान आपके सामने करते हैं.

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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब एक और श्लोक आपके लिए.बहुत अच्छा श्लोक है.ज्ञानवर्धन श्लोक है.नयी जानकारी आपको मिलेगी.ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
विधाता ने सबसे पहले अपनी छाया से बद्धजीवों के अज्ञान के आवरण उत्पन्न किये.इनकी संख्या पांच है और ये तामिश्र.अंधतामिश्र,तमस,मोह और महामोह कहलाते हैं.

तो ये बहुत informative श्लोक है.आपको information देता है कि सबसे पहले बद्धजीव के अज्ञान के आवरण उत्पन्न हुए.कोष उत्पन्न हुए.और ये हैं सबसे पहले
तामिश्र: तामिश्र का मतलब होता है क्रोध,गुस्सा,द्वेष.तो देखिये हमने भगवान से द्वेष किया था.है न.द्वेष किया था कि भाई इस राज्य में आप ही भोक्ता क्यों.हम भी भोक्ता बनना चाहते हैं.क्यों?क्योंकि भगवान ने हमें अल्प स्वतन्त्रता दे रखी है.minute freedom है हमारे पास और उस freedom को जब हम misuse करते हैं.उसका दुरूपयोग करते हैं.तो हम फंस जाते हैं.किस जाल में.जंजाल में.भौतिक जाल में.भौतिक संसार में फंस जाते हैं.भौतिक जिंदगी जीनी पडती है.और इस द्वेष की वजह से,क्रोध की वजह से हम भगवान से अलग हुए.
और क्रोध एक ऐसी चीज है जो हमारा पीछा छोडती नही है.तो
कामातक्रोधोभिजायते
काम से इच्छाओं से वहाँ भी क्रोध उत्पन्न हुआ और यहाँ भी क्रोध उत्पन्न होता रहता है.हम अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगा नही पाते.इच्छाएं पूरी नही होती है तो क्रोध उत्पन्न हो जाता है.और भगवान कहते भी हैं कि जो क्रोध और काम है






काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥

कि ये महा वैरी हैं,बहुत ही गिरे हुए हैं.आपका विध्वंश करके रखेंगे.तो ये है तामिश्र.

और दूसरा है
अंधतामिश्र: अंधतामिश्र में मृत्यु को परम अंत माना जाता है.समझा जाता है कि बस ये जो death है वही ultimate है.यानि कि मृत्यु के बाद कुछ नही.कई लोग,हमारे समाज में बड़े-बड़े लोग,बड़े-बड़े नाम,बड़े-बड़े ओहदों पर ,बड़ी-बड़ी degrees को जिन्होंने pile up करके रखा है ऐसे ऐसे लोग ये कहते हुए सुने जाते हैं कि अरे भाई कल किसने देखी.खाओ,पीओ,ऐश करो जब तक ज़िंदा हो.जिंदगी तो बस एक ही बार मिलती है.फिर थोड़े ही न मिलती है.फिर तो मरना ही है बस.और मरने के बाद फिर क्या पता क्या होता है.

इसे कहते हैं अज्ञानता और ऐसे लोग बताते हैं कि हम बहुत बड़े ज्ञानी हैं.इतनी सारी हमारे पास degrees है.हमारे पास इतना बड़ा ओहदा है.नाम है ,शोहरत है,पैसा है तो हम सब कुछ हो गए.जी नही.एक व्यक्ति जिसे अध्यात्मिक ज्ञान है.जो शास्त्रों पर भरोसा करता है और ये शास्त्र आज से नही हजारों वर्षों से हमारे बीच में हैं.लाखों,करोड़ों वर्षों से हमारे बीच में हैं.

इंसान का ज्ञान तो क्या है कि आज हमने कोई theory create की और दस साल बाद उसी theory को हम change कर देते हैं.नही ऐसे नही ऐसे देखा गया है.नही ऐसा नही ऐसा होता है.तो इंसान का ज्ञान तो ये है.जो बदलता रहता है.जो स्थायी नही रहता है.

लेकिन प्रभु का ज्ञान हमेशा स्थायी रहता है.काल बदलते चले जाते हैं.युग बदलते जाते हैं.लेकिन वो ज्ञान अपरिवर्तनशील रहता है.सदा-सर्वदा रहता है.

तो अंधतामिश्र में मृत्यु को परम अंत माना जाता है.और ये क्यों होता है?तमस के कारण.तीसरी बात हमने कही थी तमस.
तीसरा अज्ञान जो भगवान ने create किया वो था तमस.
तमस :यानि अन्धकार.अज्ञान .अज्ञान की क्या परिभाषा है.क्या अज्ञान ये है कि आप पढाने नही गए स्कूल.आपके पास B.A.,M.A. की डिग्री नही है.क्या ये अज्ञान है.क्या है अज्ञान.क्या परिभाषा है शास्त्रों के अनुसार.शास्त्र कहते है कि अज्ञान ये है जब आप अपने बारे में ही नही जानते.जब आप नही समझ पाते कि आप आत्मा है.

एक बात होती है कि जानना और एक बात होती है अच्छी तरह से समझना और मानना.जब आप एकदम विश्वास करने लगते हैं.अरे मुझे अगर इतना बड़ा रोग हो भी गया है तो इस शरीर को ही तो हुआ है.अरे ये गल जायेगा.इसे तो मरना ही है किसी रूप में.इसमे इतना अफ़सोस की क्या बात है.मै तो सदा रहूँगा.मै तो शाश्वत हूँ.मै तो अमर हूँ.जो ये सोचता है वो ज्ञानी है.लेकिन इतना ज्ञान इसके लिए भी सुबुद्धि की आवश्यकता है.

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आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो हम एक श्लोक पर चर्चा कर रहे थे.बहुत ही सुन्दर श्लोक.श्लोक का अर्थ:

विधाता ने सबसे पहले अपनी छाया से बद्धजीवों के अज्ञान के आवरण उत्पन्न किये.इनकी संख्या पांच है और ये तामिश्र.अंधतामिश्र,तमस,मोह और महामोह कहलाते हैं.

आपको हमने बताया कि तामिश्र क्या है.अन्ध्तामिश्र क्या है और तमस क्या है.जब आप अपने आत्मस्वरूप के बारे में नही जानते तो वो तमस है,अंधकार है,अज्ञान है.

और अज्ञान से उत्पन्न होता है मोह.आप सोचते हैं कि ये विषय सुख ही सब कुछ है.ये जो सुख हमें भौतिक सुख मिल रहा है यही सब कुछ है.और इसे चक्कर में हम अपनी संतान,अपनी संपत्ति,अपनी पत्नी,अपने रिश्तेदारों के प्रति आसक्त हो जाते हैं.इसी आसक्ति को कहा जाता है मोह.आप मोहित हो गए.माया ने आपको मोहित कर लिया.ये सारे के सारे ये जो पत्नी है,बच्चे हैं सबने आपको मोहित कर लिया.और फिर हा अंतिम बात महामोह.

महामोह क्या है?महामोह का अर्थ है भौतिक सुख के लिए पागल रहना.पागल हो जाना कि हाय हाय मेरे पास पैसा हो.बहुत पैसा हो मेरे पास.इतना कम पैसा क्यों है.भाई ऐसा क्या करून कि मेरे पास और हो जाए.ठीक है मैंने यहाँ invest कर दिया.एक scheme सरकार ने निकाली है.चलो उसमे डाल देता हूँ.double हो जाएगा और अब मैंने जो है tuitions पढ़ाना भी शुरू कर दिया है.और इधर-उधर जाना भी शुरू कर दिया है.ये कर रहा हूँ,वो कर रहा हूँ.तो इसे पागलपन कहते हैं.

एक ये है कि आप सुबह गए और अपना duty पर गए और duty से वापस आये.काम-वाम किया और उसके बाद जो है आप अपने बाल-बच्चों में राम गए ये मोह है.लेकिन एक ये है कि आप duty में भी हैं और सोच रहे है कि आठ घंटे की duty में ऐसा क्या करूँ कि इसी समय में चलो internet पर थोड़ा काम खोज लेता हूँ.जहाँ पर मै कुछ करूँ और मुझे कुछ extra आमदनी हो जाए.आकर के बच्चों के पास नही गए और सीधा हम कहीं और चले गए.क्यों?क्योंकि वहाँ से extra आय मिलेगी हमें.tuition पढाने चले गए.वो करने चले गए .

और बस इन्ही चीजों में ,इन्ही चक्करों में लगे में लगे रहना.आप देखियेगा जो लोग पैसे के बारे में बहुत चिंतित होते हैं उनके चहरे पर बुढापा झलकने लगता है.आप देखियेगा.बहुत जल्दी उनके बाल सफ़ेद हो जायेंगे.आँखों पर बहुत मोटा-सा चश्मा चढ जाएगा.और अजीब से लगाने लगते हैं वो.महामोहित होते हैं वो.और ऐसे लोग जो है कभी भी शांति को प्राप्त नही कर पाते.आप उनके सामने भगवान की चर्चा कीजियेगा तो उन्हें कुछ समझ ही नही आएगा.  

तो भक्तों को भी इसतरह से महामोहित हो जाना चाहिए लेकिन भगवान के पीछे माया के पीछे नही.भौतिक सुख के पीछे नही.भगवान के पीछे महामोहित हो जाईये कि आपसे कोई दुनिया की बात करे तो आपको समझ ही नही आये.ये क्या कह रहा है.कुछ समझ नही आया.इतने सरल हो गए.इतने प्रभु में डूब गए तभी तो प्रभु प्राप्त होंगे.वरना कैसे प्राप्त होंगे.बताईये भला.

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आपके साथ मै हूँ प्रेमधारा पार्वती राठौर.ये वक्त है आपके SMS को कार्यक्रम में शामिल करने का.
SMS:रवि टैगोर गार्डन से पूछते हैं
परमगति क्या होती है?















Reply By माँ प्रेमधारा:

परमगति होती है जब आप भगवान का धाम प्राप्त कर लेते हो.उसे शास्त्रों में परमगति कहा जाता है.मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं यानि कि भगवान का सामीप्य प्राप्त कर लेते हैं उनके धाम में.आपको ये तो पता ही होगा कि आध्यात्मिक लोकों की संख्या तीन चौथाई ज्यादा है हमारे भौतिक लोकों की संख्या से.हमारे जो भौतिक लोक हैं ब्रह्म लोक तक वो एक चौथाई है.लेकिन जो आध्यात्मिक लोक हैं वो तीन चौथाई हैं.यानि बहुत सारे हैं.

भगवान ने बहुत सारे आध्यात्मिक लोक बनाए हैं.और जब कोई उधर चला जाता है.कोई शुद्ध आत्मा भगवान की भक्ति करके तो उसे परमगति कहा जाता है.कहा जाता है कि उसकी परमगति हो गयी है.

SMS:राकेश दिल्ली से
हर उम्र का बंधन है
हरेक को यही उलझन है.
लोग चाहे जितना कमा ले माया
लेकिन हर जिंदगी की विदाई
सिर्फ तीन मीटर का कफ़न है.















Reply By माँ प्रेमधारा:

सही बात है राकेश जी.आपने reality को ,असलियत को बहुत ही बखूबी से समझा है.अच्छे तरीके से समझा है.सही बात है कि हम चाहे कितना भी मर मर के जी ले.कुछ भी कर ले.कितना भी पैसे बटोर ले लेकिन अंततः खाली हाथ जाना पडता है.ये सिर्फ बोलने की बात नही है महसूस करके देखिये.

अगर मेरी बात पर यकीन नही हो तो आप जा करके check कर लेना कि जितने भी लोग श्मशान घाट पर जाते हैं.कब्रिस्तान में जाते हैं उनके हाथ check करना.देखना कि क्या कुछ साथ ले गए क्या.इतना कमाया था.हजारों करोडो बनाए थे.कहाँ चला गया.ढूँढने की कोशिश करेंगे तो क्या पता कहीं मिल भी जाए.जब मिल जाए तो मुझे बता देना.

SMS:दौलत कैंप से पूछते हैं एक शुद्ध भक्त की क्या प्रार्थना होनी चाहिए?















Reply By माँ प्रेमधारा:

दौलत जी बहुत सुन्दर प्रश्न है आपका.एक शुद्ध भक्त वही कहलाता है जो अपने लिए कुछ नही मांगता है.प्रहलाद महाराज जैसा भक्त जब भगवान के पास गया.भगवान उसके सामने प्रकट हुए तब उसने ये कहा कि हे भगवान पहले सबको तार दो,सबका उद्धार कर दो तो बाद में मेरा उद्धार करना.ये शुद्ध भक्त कहता है कि पहले ये जितने भी पापी,तापी,कामी,खलगामी,मूर्ख,बुद्धू लोग है भगवान पहले इनका किसीप्रकार से उद्धार कर दीजिए.मुझे तो पता ही है कि मै आपका नाम ले रहा हूँ तो कभी-न-कभी तो मेरा उद्धार हो ही जाना है.अपने बारे में तो निश्चित हूँ मै.लेकिन इनका क्या होगा.हे प्रभु पहले इन्हें तार दीजिए फिर मेरा उद्धार करना.

शुद्ध भक्त हमेशा लोगों की दशा को देखकर पीड़ित रहता है और भगवान से कहता है कि हे प्रभु इन्हें बुद्धि दीजिए ताकि ये आपकी तरफ मुड सके.

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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS: शशि वर्मा I.P.  Extension से पूछती हैं कि
मन,बुद्धि,अहंकार से सूक्ष्म शरीर बनाता है इसमे अहंकार का मतलब क्या है.ये तो बुरा ही होता है न.















Reply By माँ प्रेमधारा:

जी नही.अहंकार बिल्कुल भी बुरा नही होता है.अहंकार का मतलब होता है स्वरुप.आपका आत्मस्वरूप.आप क्या हैं?कौन हैं?है न.अहंकार का मतलब ये होता है और बताया गया है शास्त्रों में
जीवेर स्वरुप हय कृष्णेर नित्य दास.
हम भगवान के eternal servants हैं.भगवान के नित्य दास हैं.जब हम अपने इस अहंकार,इस स्वरुप में आ जाते हैं तो ये सच्चा स्वरुप होता है.मन,बुद्धि और अहंकार से मिलकर के हमारा सूक्ष्म शरीर बनता है.और अगर ये spiritualize हो जाए.मन spiritualize हो जाए.अहंकार अपने सही स्वरुप को प्राप्त कर ले तो आप जो है भगवद धाम को प्राप्त करते हैं.

SMS: सुनीता नारायणा से पूछती हैं कि
भक्ति से भगवान मिलते हैं कि भगवद कृपा से भक्ति?















Reply By माँ प्रेमधारा:

बहुत सुन्दर बात है.देखिये भगवद कृपा से और भगवान के जो भक्त हैं उनकी कृपा से.दोनों की कृपा से भक्ति मिलती है.भगवान चाहेंगे तो आपको शुद्ध भक्त मिलेगा.और तब आपको उनके association से,उनके संग से, भक्ति का बीज प्राप्त होगा.और उस बीज को अगर आप उनके संग से पल्लवित पुष्पित करे ,उनकी सिंचाई करे तो पल्लवित-पुष्पित हो भी जाएगा और तब उस भक्ति से भगवान मिलते हैं.

तो एक कारण है और दूसरा फल है.ठीक है.

SMS:जाने कौन हैं,कहाँ से लिखते हैं
The happiest people do not necessarily have the best thing but they simply appreciate the thing they have.















Reply By माँ प्रेमधारा:

यानि कि जो सबसे ज्यादा खुश लोग हैं.उनके पास ये जरूरी नही है कि दुनिया का सबबसे अच्छा सामान हो पर हाँ वो जो भी चीज रखते हैं.जो भी चीज उनके पास है उसकी वो सराहना करते हैं.तारीफ़ करते हैं.

तो देखिये मै तो यही कहूँगी कि ये सब बड़ी-बड़ी बातें हैं मगर इस बात में हकीकत तब होगी जब कोई व्यक्ति अपनी जिंदगी को ही appreciate करने लगे.उसकी सराहना करने लगे.कहे कि हे प्रभु आपने मुझे ये जीवन दिया है बहुत-बहुत शुक्रिया है.इस जीवन में बस एक ही काम करना है सिर्फ आपका नाम लेना है.

ठीक है न.तो आप जो हैं happiest person बन जायेंगे.यानि कि सबसे ज्यादा खुश.जब आनंद को छू लेंगे तो आनंदित हो जायेंगे.है न.आग को छू करके,आग में पड़ा रह करके जैसे चिमटा बन जाता है .किसी को भी जलाने की ताकत रखता है कि फिर वो चिमटा नही रह जाता है.आग बन जाता है.उसीप्रकार से जब आप भगवान का नाम लेते रहेंगे.उनका ध्यान करते रहेंगे.उनकी चर्चा सुनते रहेंगे तो आप में भी qualities उत्पन्न हो जायेंगी.आप भी महात्मा कहलायेंगे.आप भी दैवी प्रकृति में  आश्रित कहलायेंगे.

तो ये बहुत बड़ी बात है.बाकी चीजें तो अलग बात है कि हाँ.जो आपने दुनियावी बात लिखी है इसे अगर spiritual sense में ले जाए तो ज्यादा कारगर और effective बात होगी. 
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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS:शिवम दिल्ली से पूछते हैं
मै अकेला रहता हूँ इससे भगवान का नाम नही ले पाता हूँ तो क्या इससे भगवान नाराज हो जायेंगे?



Reply By माँ प्रेमधारा:



शिवम जी भगवान किसी से भी नाराज नही होते.किसी से खुश नही होते.
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।

भगवान कहते है कि मै सबके प्रति समभाव रहता हूँ पहली बात.दूसरी बात मै कहती हूँ कि भाई आप अकेले रहते हैं.अरे भगवान की भक्ति में अलेकापन की बहुत जरुरत होती है.ताकि आपसे यहाँ-वहाँ के लोग गप्पे न हांकने लगे.आपका ध्यान न बंट जाए.अकेले में तो बहुत मजेदार भक्ति होती है.है न.भगवान कहते भी हैं कि एकाकीपन परम आवश्यकताओं में से एक आवश्यकता है भक्ति की.मन कम-से-कम अकेला रहे.मन में इतने सारे लोभ न घूमते रहे.

और आप तो शरीर से भी अकेले रहते हैं.क्या है.क्यों नही नाम ले पाते हैं भगवान का.खाना-वाना बनाना पडता है क्या.इसके लिए मै कहूँगी एक time बनाओ और तीन time खाओ.इसमे क्या problem है.freeze में रख दो खाना.खराब थोड़े-ही हो जाता है.और बाकी मजेदार भक्ति करो.कमाने जाओ.क्या समस्या है.कोई समस्या नही है.

तो ये मत बातायिये.बहाने नही बनाईये कि हम नाम नही ले पाते हैं भगवान का.भगवान का नाम तो हर कोई ले सकता है.एक बच्चा ले सकता है तो आपको क्या problem है.

SMS: जितेन्द्र यादव कहते हैं राजस्थान से 
जीवित व्यक्तियों में मै सर्वाधिक बुद्धिमान हूँ क्योंकि मै जानता हूँ कि मै कुछ नही जानता.



Reply By माँ प्रेमधारा:



जितेन्द्र जी ये honesty,ये ईमानदारी बहुत बड़ी बात है कि आप ये सोचते है.आप ये बता रहे हैं frankly कि आप कुछ नही   जानते.बहुत अच्छी बात है.सच बात है कि हम कुछ नही जानते.

मगर ये मनुष्य जीवन ये जानने के लिए मिला है कि आप कौन हैं.कहाँ से आये है, कहाँ जाना चाहिए और कैसे जाना है.अगर आप कुछ नही जानते तो ये जानने का प्रयत्न करना आपका फर्ज है.क्योंकि आपको मनुष्य जीवन मिला है.सोचने की ताकत मिली है.निर्णय लेने की ताकत मिली है.ठीक है न.तो आप ये मत कहिये कि मै कुछ नही जानता.प्रयास कीजिये जानने का.जान जायेंगे.

SMS.अमित मुनिरका से कहते हैं.
God can not be conquered by knowledge but He can be conquered and seen only through pure love.



Reply By माँ प्रेमधारा:



भगवान को ज्ञान से नही जीता जा सकता.सिर्फ शुद्ध प्रेम से जीता जा सकता है.इसपर मुझे एक गाना भी याद आता है:
हम प्रेम दीवानी हैं वो प्रेम दीवाना.
ऐ उधो हमें ज्ञान की पोथी न सुनना.

सही बात है.आपकी बात से मै बिल्कुल इतेफाक रखती हूँ.बिल्कुल सहमत हूँ अमीत जी.भगवान को आप knowledge से नही ,अपनी विद्वता से नही जीत सकते.भगवान कहते हैं न कि

न स्वाध्याय न तपसत्यागो यथा भक्ति ममोर्पितः

कि भक्ति से ही मै जीता जा सकता हूँ.और भक्ति का अर्थ है प्रेम,प्रेममयी सेवा.तो शुद्ध प्रेम कीजिये भगवान से और देखिये भगवान कैसे आपके नही होते.
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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS:दिल्ली से जाने कौन हैं.बहुत ही सुन्दर छंद इन्होने भेजा है
खुदा से प्यारा कोई नाम नही होता,
उसकी इबादत से बड़ा कोई काम नही होता.
दुनिया की मोहब्बत में है रुसवाईयाँ ,
पर उसकी मोहब्बत में कोई बदनाम नही होता.



Reply By माँ प्रेमधारा:



सही बात है.उसकी मोहब्बत में तो नाम होता है बदनामी नही.यश होता है.यानि कि आप भगवान को glorify करेंगे तो आपका भी glorification होगा.ये भगवान arrangement भगवान करते हैं.ऐसा प्रबंध भगवान करते है जो  व्यक्ति प्रभु के नाम को,प्रभु को glorify करता है .उनके यश का गान करता है तो उस व्यक्ति का यश स्वतः ही बढाता चला जाता है.ये प्रभु की माया है.वो भी इतनी सुन्दर अंतरंगा शक्ति से,आह्लादिली शक्ति माया उसका एक प्रकाश आप तक पहुंचाते हैं.

तो बहुत सुन्दर आपका message था.सही बात है दुनिया की मोहब्बत में बहुत  ही रुसवाईयाँ झेलनी पडती हैं.दुनिया की मोहब्बत में कोई आपसे नाराज भी हो जाता है.अगर आपने बहुत किया.बहुत किया.एक दिन करने में चूक गए किसी के लिए कुछ तो वो आपसे मुंह फुला लेगा.दूर चला जाएगा.लेकिन प्रभु ऐसा नही करते हैं.

वो तो इन्तेजार करते रहते हैं कि कब आप उनके हो जायेंगे.

SMS:रामवीर किसान पलवल से पूछते हैं कि 
क्या जब हम अपना आत्मस्वरूप समझ जाते हैं तब हमें कोई भौतिक कष्ट नही रहता?



Reply By माँ प्रेमधारा:



रामवीर जी आपका अच्छा प्रश्न है.आत्मस्वरूप का अर्थ है कि आप ये समझ जाएँ कि आप आत्मा हैं और आपने शरीर को धारण किया हुआ है.है कि नही.तो शरीर को धारण किया हुआ है मगर हैं क्या आप?आत्मा.तो ये जो बात है इसी को आत्मस्वरूप समझना कहते हैं.यानि कि आप आत्मा है और भगवान के अंश हैं.

तो अब शरीर को कुछ भी हो गया.कुछ  भी हो जाए.कोई बीमारी हो जाए.टांग कट गयी.हाथ कट गया तो एक आम आदमी बहुत बेचैन हो जाएगा कि अब मै क्या करूँ.कैसे करूँ.लेकिन जो आत्मस्वरूप को जो समझ चुका है  वो जानता है कि अरे शरीर को तो होना ही है.

आसन्नअपिक्लेशःआसदेहः

कि भाई हमने देह को धारण किया है तो देह से सम्बंधित क्लेशों को सहना ही होगा तो इसमे  घबराने की क्या बात है.क्योंकि यदि आप इससे घबरा जायेंगे तो बहुत दुःख की बात है.जब आप अपना स्वरुप समझ लेंगे तो ऐसा व्यक्ति घबराएगा नही.ऐसा व्यक्ति समझ जाएगा कि ये शारीरिक कष्ट है.मुझे कभी भी कोई कष्ट नही हो सकता.मै तो भगवान का नाम लेता रहूंगा.भगवान का नाम  लेते रहने कि ताकत तो अभी भी मुझमे शेष है.तो मै उस नाम को लेता रहूंगा.है कि नहीं.

तो इसप्रकार से वो व्यक्ति जो है दुखों से दूर हो जाता है.उसे समझ आ जाती है सारी बात.और वो इसप्रकार के जो भी हमें भौतिक दुःख मिलते है उनसे वो झुंझलाता नही है.प्रभावित नही होता है.

SMSपूजा दादरी से कहती हैं
तकदीर का इम्तेहान है 
ज़रा इन्तेज़ार करिये.
उस प्रभु पर ऐतबार रखिये.
प्रभु जरुर मिलेंगे एकदिन,
बस आप अपनी भक्ति बरक़रार रखिये.



Reply By माँ प्रेमधारा:



सही बात है.भक्ति करते रहिये.ये मत सोचिये कि इसका क्या फल आपको  प्राप्त होगा.है न .
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥


आपको कर्म करना है और वो भी सत्कर्म करना है.अकर्म करना है.प्रभु से जुडना है.और प्रभु की भक्ति में अपने को दिन-रात लगाना है.मत सोचिये कि आपको कब मिलेंगे.ये वो जाने.

SMS:जाने कौन हैं दिल्ली से कहते हैं 
life is not a iPod to listen to your favorite songs.It is a radio.It must adjust yourself to every frequency and enjoy whatever comes in.



Reply By माँ प्रेमधारा:



यानि कि ये जिंदगी एक  iPod नही है ताकि आप अपने favorite songs सुने ये तो एक रेडियो है और आपको हर frequency के अनुसार खुद को adjust करना पडता है .जो भी आपको मिलता है उसे enjoy करना पडता है.

सही बात है जिंदगी में आपको दुःख मिलता है उसे भी झेलना पडता है.सुख मिलता है उसे भी आप enjoy करते हैं.आपको adjustment करने पड़ते हैं.और जब  हम अपने आप को adjust करके रखते हैं तो हम कहते हैं यही जिंदगी है.जबकि जिंदगी adjustment का नाम नही है.

जिंदगी surrender का नाम है.You must surrender to God.हमेशा याद रखिये जब आप भगवान को surrendered हो जायेंगे.तो आपको सब कुछ सहना नही पडेगा.भगवान खुद ही अनावश्यक चीजों को delete कर देंगे.आपके पास भी फटकने नही देंगे.याद रखिये.


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कार्यक्रम में आपके साथ  हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS:पुनीत रंजन दिल्ली से पूछते हैं हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है.कृपया इसे explain करे.



Reply By माँ प्रेमधारा:



देखिये ये तो बहुत आसान है.पांच तत्त्व :ये पृथ्वी,जल ,वायु,आकाश और अग्नि.और आपके अंदर पाँचों तत्त्व हैं.इस शरीर में पंचों तत्त्व है.
पृथ्वी : देखिये जब ये शरीर जल जाता है तो ये राख हो जाता है.है कि नही पृथ्वी इसके अंदर.

जल :ये जो आपके अंदर blood है.urine है.और बहुत कुछ है.ये सब जल है.

अग्नि :आपके अंदर एक आग है  जिसका temperature आप अपने शरीर पर हाथ रख के देख सकते हैं कि हाँ आपका शरीर हल्का सा गर्म रहता है.बिना अग्नि के तो गर्माहट होती नही.तो अग्नि हो गयी.

वायु :आप जो सांस लेते रहते हैं .सांस जाती है न आपके अंदर ये वायु है.

आकाश :और आपके अंदर जो खाली स्थान है शरीर में उसे आकाश कहते हैं.
तो ये पांच तत्त्व आपके शरीर के निर्माता हैं.पांच तत्त्वों से आपका शरीर .मेरा शरीर भी,जगत में जितना कुछ आप देख रहे हैं वो इन पांच तत्त्वों की परिधि में ही आता है.है न.इसी से जगत बना है.

और भगवान कहते हैं 

अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्‌ ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्‌ ॥


यानि कि इनसे भी परे एक और शक्ति है.एक और प्रकृति है भगवन की और वो प्रकृति जो है वो महान प्रकृति है.वो है जीवात्मा.जीवात्मा है जो इन तत्त्वों के अंदर रहती है तो ये तत्त्व चलायमान होते हैं.सक्रिय हो जाते हैं.तो ये समझने का प्रयास करना होगा.

SMS:चित्र U.P. से 
मानाकि भगवान को पाना आसान नही होता,
हर दिल में प्रभु के लिए प्यार नही होता.
एक बार जो हो जाए प्रभु का तो 
वो उनकी नजर से कभी दूर नही होता.



Reply By माँ प्रेमधारा:



बहुत अच्छे तुकबंदी थी चित्र जी आपकी.सही बात कहा आपने और भगवान भी कहते हैं 
अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनीः ॥


भगवान कहते हैं कि जो मुझे अनन्य भाव से सतत भजता है.स्मरण करता है.स्मरण कैसे होगा?जब भगवान के बारे में सुनोगे.भगवान के नाम का कीर्त्तन करोगे तो तीसरी चीज automatically हो जायेगी.वो है स्मरण.
अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।

प्रतिदिन,हर पल ,हर क्षण जो मुझे स्मरण करता है.मेरा स्मरण करता है.वो क्या है?
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनीः ॥

आपलोग कहते हैं न कि भगवान तो दिखाते नही हैं.भगवान हमें मिलते नही है.पर भगवान ने condition दी है.हमेशा मुझे याद करोगे तो मै सुलभ हूँ तुम्हारे लिए.I am there with you.है न.मै आपके अंदर ही तो रहता हूँ. manifestation की ही तो बात है.manifest हो जाउंगा.प्रकाशित हो जाउंगा.क्या समस्या है.है कि नही.

तो भगवान कहते हैं ऐसा योगी मुझे स्मरण करता है.ऐसे योगी को मै हमेशा सुलभ रहता हूँ.कभी भी उससे दूर नही होता.

SMS:सोहल अमरोहा से पूछते हैं कि 
मेरे माताजी,पिताजी इतनी भक्ति करते हैं तो फिर भी वो घर में इतनी कलह क्यों करते हैं?

सोहल भक्ति का वो अभी अर्थ भी नही जानते हैं.भक्ति में कलह कहाँ होती है.वहाँ तो आनद-ही-आनंद है.जो व्यक्ति भक्ति करता है वो तो अन्य कोई बात कर ही नही सकता.उसे कही रस प्राप्त ही नही होगा.मात्र भक्ति में ही प्राप्त होगा.भक्ति की लगता है सही विधि उन्ही प्राप्त नही हुई है.भक्ति किनकी की जाए उन्हें ये भी नही पता होगा शायद.हो सकता है वो देवी-देवताओं की पूजा करते हों.कुछ स्वार्थ के लिए.

अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्‌ ।

temporary results के लिए और आपने उसे भक्ति समझ लिया हो.क्या पता.
SMS:गणेश बसंत विहार से कहते हैं 
If one get advantage of association with saintly persons.By their instructions one become more and more purified of material desires.



Reply By माँ प्रेमधारा:



यानि कि यदि किसी व्यक्ति को किसी संत से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है तो वो उसके उपदेशों से इस भौतिक इच्छाओं से और भी,और भी विमल होता जाता है.उसकी भौतिक इच्छाएं जो हैं back seat ले लेती हैं.खत्म होती जाती हैं.वो शुद्ध होता चला जाता है.

बिल्कुल सही बात है.भगवान ने भी तो यही कहा है कि 

उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः ॥

भगवान कहते हैं कि आप जो हैं किसी विद्वान के पास,किसी स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के पास आप जाईये.

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।

सेवा कीजिये उनकी.विनीत हो करके प्रश्न पूछिए और तब ऐसा ज्ञानी व्यक्ति आपको उपदेश देता है.जिससे आपके जीवन की धारा ही परिवर्त्तित हो जाती है.

SMS:रजनी बसंत विहार से कहती हैं कि 
In the material world people serve out of need but in the spiritual world every one serve out of love.श्रील प्रभुपाद .



Reply By माँ प्रेमधारा:



बिल्कुल सही कहती हैं रजनी जी.सही बात कही है संत -महात्मा ने कि इस भौतिक संसार में हम जो है किसी को प्यार करते हैं तो वो हमारी जरुरत ,हमारे स्वार्थ की वजह से होता है लेकिन आधायात्मिक जगत में हर कोई भगवान से प्यार करता है.और वो प्रेम की वजह से प्यार करता है किसी जरुरत की वजह से नही.

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