Thursday, April 8, 2010

On 3rd April'10 By Maa Premdhara

 नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप?यूं तो आप ठीक ही होंगे पर कभी-कभी दुखी हो जाते होंगे.क्यों?
अरे भाई !बच्चों के जिद के आगे और क्यों?बच्चे जब घर के बने खाने को दुत्कार के बाहर का खाना खाते हैं तो बड़ा अजीब लगता है.बाहर के चिप्स,बाहर के नमकीन में चाहे कितनी भी मिर्च हो वो उसे बहुत स्वाद ले ले के खाते हैं.लेकिन घर में यदि आप उन्हें कहे बेटे दाल पी लो,सब्जी खा लो तो वो मुँह बनाकर कह देते हैं ऊँ हूँ इसमे तो बहुत मिर्ची है.आप कसमे खाने लगते हैं अरे अरे तुम्हारे कारण हमने भी तो मिर्ची खानी छोड़ दी है.इसमे एक भी मिर्ची नही है.तो भी खाना न खाने के सैकड़ों बहाने वो आपको गिना देते हैं.


और आप परेशान हो जाते हैं कि खायेगा नही तो स्वस्थ कैसे रहेगा.क्या होगा इसका?आपकी चिंता आपको सताने लगती है.आप दुखी हो जातें हैं कि कितने अज्ञानी,कितने नादान है ये बच्चे कि इन्हें पता ही नही बिना कैल्शियम,बिना प्रोटीन खाए इनकी growth ही नही होगी.


बस इन्ही बच्चों की तरह हमारा और आपका भी हाल है.हमें भी अपने कल्याण की बात नही पता.आपके कल्याण के लिए आपके परमपिता भगवान् भी बहुत चिंतित रहते हैं,बहुत चिंतित रहते हैं.उन्हें भी बहुत कष्ट होता है जब वो देखते हैं कि आप अविद्या से ग्रस्त हैं.और इस संसार में लिप्त हैं.इसी संसार में सड़ रहे हैं और संसार के आकर्षण में फंसकर अनेकानेक इच्छाएं पैदा कर रहे हैं.और इसतरह इच्छाओं के मकडजाल में फंसकर आपको इस भौतिक संसार में बार-बार आना पडेगा.बार-बार दुःख  उठाने होंगे.


इसीलिये भगवान् आपको समझाने के लिए कभी खुद आते हैं,कभी अपने किसी संत को भेजते हैं ताकि आप समझ सके यदि शाश्वत सुख चाहिए,यदि आप खुश होना चाहते हैं तो आपको प्रभु की शरण लेनी ही होगी.उनकी आज्ञाओं को मानना ही होगा.उन्हें आत्मसमर्पण करना ही होगा.तभी आपका वास्तविक कल्याण संभव है.
                                                ***********************************



मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब बहुत ही सुन्दर श्लोक सिर्फ आपके लिए.भगवान् की महिमा को गाता हुआ ये श्लोक.बहुत ही प्यारा,बहुत ही प्यारी स्तुति.ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ :
"भगवान् माया और उससे उत्पन्न शारीरिक कोटियों से परे हैं.उनमे अचूक ज्ञान और परम इच्छा शक्ति रहती है.और वो जीवों के तथा माया के नियंता हैं.जिन बढ आत्माओं ने इस भौतिक जगत को सर्वस्य समझ रखा है वो उन्हें नही देख सकते क्योंकि वे व्यावहारिक ज्ञान के प्रमाण से परे हैं,वे स्वतः व आत्मतुष्ट हैं.वे किसी कारण द्वारा उत्पन्न नही किये जाते.मै उन्हें सादर नमस्कार करता हूँ."

तो देखिये कितनी सुन्दर बात भगवान् के बारे में आपको यहाँ पता चलती है.भगवान् के बारे में कोई शक,कोई संशय ये श्लोक छोड़ता नही है.इस श्लोक के द्वारा आपको प्रभु के बारे में बहुत कुछ पता चलता है.

भगवान् माया और उससे उत्पन्न शारीरिक कोटियों से परे हैं.बहुत ध्यान से ये बात समझिये.भगवान् माया से परे हैं.माया.ये माया का पाश हमें लगता है ,हम पर आता है,हम पर पड़ता है,हमें बंधता है भगवान् को नही बाँधता.ये पाश भगवान् का है.ये शक्ति भगवान् की है.माया भगवान् की भौतिक शक्ति है.भगवान् की बहिरंगा शक्ति है.और जो भगवान् की बहिरंगा शक्ति है.भगवान् की अपनी शक्ति है तो वो शक्तिमान को कैसे बाँधेगी.नही बांध पायेगी.

यो शक्ति तो भगवान् ने आपके लिए छोडी है.हमलोग जो भगवान्  से अलग होना चाहते हैं,दूर होना चाहते हैं,जो भगवान् जैसी किसी सत्ता पर यकीन नही करना चाहते,जो सिर्फ science ,science ,science का नाम रटते रहते हैं.science बुरी बात नही है.लेकिन असल विज्ञान क्या है?भगवान् कहते हैं 

ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्‌ ॥

असल विज्ञान वो है जिससे अशुभ से दूरी हो,अशुभ से हमारी रक्षा हो.जिससे हमें दुखों से छुटकारा मिले वो असल विज्ञान है.असल ज्ञान है.ज्ञान जब आप व्यवहार में लाते हैं तो वो विज्ञान का रूप ले लेता है.है न.जिसको आप व्यवहार में ला सके,जिसकी आप practice कर सके और उसी conclusion पर पहुंचे जो कि ज्ञान ने कहा है तो वो विज्ञान हो जाता है.
जब आप भक्ति करते हैं तो भक्ति आपको विरक्त कर देती है.आपके अन्दर इच्छाओं के फाँस को निकाल-बाहर करती है.तो ये विज्ञान है.

भगवान् कहते हैं जब तुम भगवत ज्ञान से आभूषित हो जाओगे ,सुसज्जित हो जाओगे,सज जाओगे तो वो ज्ञान विज्ञान का रूप ले लेगा.क्यों?क्योंकि तुम अपने सारे कर्म उस ज्ञान में रहकर करोगे.भगवान् के लिए करोगे.

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र 
जब आप प्रभु के लिए सारे कर्म करोगे तो वो विज्ञान हो जाएगा.बहुत बड़ी बात है.और ये विज्ञान ऐसा है जिसमे समस्त दुखों से आपकी रक्षा होगी.ऐसा नही है कि जिसके बहुत-बहुत बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं.जैसे कि मान लीजीए आपने एक फैक्टरी खोल दी विज्ञान से ही खोली लेकिन उस फक्तारी के धुएं से ओगों लेयर में छेड़ हो गया.अब आप कहते है कि हाय !हाय! पराबैंगनी जो किरने हैं ultravoilet rays उससे skin को नुकसान पहुंचता है.उससे ये हो जाता है,वो हो जाता है.गर्मी-ही-गर्मी हो गयी है.हिमालय ग्लेशियर वो पिघल रहे हैं.या आप अंतरिक्ष में चले गए और वहाँ जाकर के आपने कूड़ा-ही-कूड़ा दाल दिया.

अभी ये सूना था news में पांच हज़ार पांच सौ टन से ज्यादा कूड़ा अंतरिक्ष में पडा है और अब उसे साफ करने के लिए अरबों दुलार की एक मशीन बनायी जायेगी जो जाकर के उस कूड़े को साफ करेगी.

तो देखिये हम जब भौतिक जगत में,भौतिक चीजों का सहारा लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं तो उसके कितने सारे दुष्परिणाम हमारे सामने आते हैं.कुछ मिला नही परिणाम लेकिन दुष्परिणाम बहुत सारे आ गए.तो विज्ञान को नमस्कार है जब वो हमारी एक क्षुधा को शांत करता है और वो तब जब हमें भगवान् के करीब ले जाता है.

जब हम जानना चाहते हैं कि कौन से तत्त्व हैं जिनसे हमें ये सब प्राप्त हुआ,इतना सुख प्राप्त हुआ.इसका निर्माता कौन है.
जब ये जिज्ञासा हमारे अन्दर आ जाती है विज्ञान के संस्कार को देख कर तो समझिये आप सही राह पर अग्रसर हैं 
                                                    *********************************


आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे थे एक बहुत सुन्दर श्लोक पर 
"भगवान् माया और उससे उत्पन्न शारीरिक कोटियों से परे हैं.उनमे अचूक ज्ञान और परम इच्छा शक्ति रहती है.और वो जीवों के तथा माया के नियंता हैं.जिन बढ आत्माओं ने इस भौतिक जगत को सर्वस्य समझ रखा है वो उन्हें नही देख सकते क्योंकि वे व्यावहारिक ज्ञान के प्रमाण से परे हैं,वे स्वतः व आत्मतुष्ट हैं.वे किसी कारण द्वारा उत्पन्न नही किये जाते.मै उन्हें सादर नमस्कार करता हूँ."

तो भगवान् की प्रकृति के बारे में,भगवान् प्राकट्य के बारे में सबकुछ यहाँ बताया गया हुआ है.बड़े हे साफ-साफ शब्दों में आपको बताया हुआ है.आपको ये जानने का प्रयास करना चाहिए,ये मानने का प्रयास करना चाहिए कि शास्त्र हमें रूबरू कराते हैं भगवान् से .बताते है कि ये भगवान् हैं और क्यों हैं?

तो यहाँ क्यों का उत्तर दिया गया है.भगवान् माया से और उससे उत्पन्न शारीरिक कोटियों से परे हैं.मेरी और आपकी शारीरिक कोटि है.हैं न.एक आत्मा अगर कुत्ते के शरीर में चली जाती है तो उसे कुत्ता कहते हैं.एक आत्मा बिल्ली के शरीर में चली जाती है तो उसे बिल्ली कह देते हैं.इंसान के शरीर में चली जाती है तो वो मानव है.तो हम शारीरिक कोटियों में फंसे रहते हैं.विभिन्न शरीरों में .चौरासी लाख प्रकार के शरीरों में हम फंसे रहते है.

लेकिन भगवान् को इन शरीरों में फंसने की जरुरत  नही है.उनका श्री और उनकी आत्मा एक ही है.मै और आप इस भौतिक जगत में जो कुछ है वो पांच तत्त्वों से बना हुआ है.है की नही.उसमे तीन तत्त्व और है -मन,बुद्धि,अहंकार.इसप्रकार इन आठ भौतिक तत्त्वों से,भगवान् के भौतिक तत्त्वों से बना हुआ से बना हुआ है और भगवान् कहते हैं 

भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहङ्‍कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥
ये सारी-की-सारी जो आठ चीजें हैं भूमि,जल,पृथ्वी,आकाश,वायु,अग्नि ये सब कुछ मेरा है,मैंने बनाया है.मन,अहंकार,ये बुद्धि.ये सब कुछ.तो भूमि,जल,पृथ्वी,आकाश,वायु,अग्नि ये पांच और मन,बुद्धि,अहंकार .ये आठ तत्त्व भगवान् के बनाए हुए हैं.तो भगवान् ने बनाए हैं और आप उनसे बने हुए हैं.बड़े मज़े की बात है.

लेकिन भगवान् इनसे परे हैं.इन तत्त्वों से परे हैं.वो निर्माता हैं.यानि कि अगर सरकार है किसी भी देश की और उसने जेल बनाया है तो सरकार आके उस जेल में नही रहेगी.है न.किसी देश का जो राजा है अगर उसने जेल बनाया है तो जेल अपने लिए नही बनाया है.उसके लिए बनाया है जो अपराध करेंगे.जो सरकार की आज्ञा का पालन नही करेंगे.उनके लिए जेल है.उसीप्रकार से जो भगवान् से विमुख रह करके पाप करेंगे उनके लिए ही भौतिक जगत है.और इनके लिए ये शारीरिक कोटियाँ है.विभिन्न श्रेणियां हैं.

तो हमें ज्ञान नही रहता है क्योंकि हमारा ज्ञान माया द्वारा आच्छादित हो जाता है.वरना हममे ज्ञान तो है पर आच्छादित है,covered है.किससे?माया से.हम नही समझ पाते हैं कि हम आत्मा हैं.हम देखते हैं.देखो आप देखते हो .आप छोटे थे.माँ कहती थी कि देखो मेरा बच्चा कितना छोटा है.दस साल बाद बच्चा बड़ा हो गया पर माँ रोती नही है कि वो दस साल पहले वाला शरीर तो चला गया मेरे बच्चे का.रोती नही है क्योंकि वो जानती रहती है कि नही वो तो है,वो तो है.

शरीर को देख रही है बढते हुए लेकिन वो रोती नही है कि दस साल पहलेवाला शरीर क्यों चला गया.अभी कहाँ चला गया.समझ रहे हैं और आपको भी अहसास होता है कि हाँ मै हूँ.उसके अन्दर रहते हुए आपको अहसास होता है कि मै तो हूँ.

तो ये देखिये ये है चमत्कार.इस चमत्कार को करना चाहिए आपको नमस्कार कि हम बदलते रहते हैं फिर भी हमें पता रहता है कि हम हैं.इसी प्रकार से आत्मा जब दूसरे शरीर को धारण करती है तो आत्मा समझती है कि ये मै हूँ .समझ रहे हैं.इसलिए जो ज्ञान है जब आप इसे समझ जाते हैं तो बड़ी बात है.

तो भगवान् में ज्ञान-ही-ज्ञान है और परम इच्छाशक्ति है.आपमें और हममे कहाँ इच्छा शक्ति है.हम तो दस तरह की बातें करते हैं.इच्छाएं होनी चाहिए,positive सोचो,ये करो,वो करो.लेकिन हमारे आपके करने से कहाँ हो पाता है.वो जब चाहता है तभी तो होता है.सोच के देखिये कितने plan आपने बनाए.क्या सबके सब पूरे हो गए.नही.जो हुए वो ईश्वर की इच्छा पर हुए.
                                                     ********************************


कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम बहुत ही सुन्दत श्लोक पर चर्चा कर रहे है जिसका अर्थ है कि 
"भगवान् माया और उससे उत्पन्न शारीरिक कोटियों से परे हैं.उनमे अचूक ज्ञान और परम इच्छा शक्ति रहती है."
देखिये परम इच्छा शक्ति रहती है भगवान् में.वो अपने संकल्प मात्र से कुछ भी कर सकते हैं.उन्होंने इच्छा की और भगवान् की जो ऐश्वर्या शक्ति है उस इच्छा को तुरंत पूरा कर देती है.तुरंत.इच्छा करते ही पूरी हो जाना.सोचा कि ये ब्रह्माण्ड हो जाए ब्रह्माण्ड बन गया.सोचा की इसमे विविधताएं उत्पन्न हो जाये,diversities हो जाए,verities उत्पन्न हो जाए वो उत्पन्न हो गयी सोचते ही.सोचिये.

हमारे और आपमें ऐसी बात नही है.हम कई बार दावा करते हैं,कई बार लोग अविद्या से ग्रस्त रहते हैं और ये बहुत height है अविद्या कि जब इंसान ये सोचने लगे कि मरने के बाद आत्मा परमात्मा में मिल जाती है और वो परमात्मा बन जाता है.ये height है अज्ञान की.

इस अज्ञानता से ग्रस्त मत होईये क्योंकि आप ये देखिये कि आप भगवान् के अंश हैं और आप में भी इच्छाशक्ति रहती है.आप चाहते हैं,इच्छाएं करते हैं.लेकिन आपकी समस्त इच्छाएं पूरी नही होती.क्यों नही पूरी होती?क्योंकि आप मायाबद्ध हैं और भगवान् से विमुख हैं.आपको आपके प्रारब्ध को भोगना पड़ता है.आपको आपके कर्मों के अनुसार फल दिया जाता है.क्यों?

क्योंकि आपके नियंता और माया के नियंता भगवान् है.भगवान् हैं सोचिये 


मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥



भगवान् कहते हैं कि ये जो प्रकृति है जिसे आप कहते हैं Mother Nature .ये प्रकृति माता.भगवान् कहते हैं ये मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है.मैंने इसे बनाया है,मैंने इसका निर्माण किया है.तो बहुत बड़ी बात है ये.प्रभु ने इसका निर्माण किया है.प्रभु ने अगर इसका निर्माण किया है तो ये प्रभु की दासी हो गयी.तो प्रभु को,भगवान् को कैसे वो control करेगी, नहीं कर सकती.

और जीव.जीव तो भगवान् के अंश हैं.
ममैवांशो जीवलोके 
भगवान कहते हैं.तो हम तो उनके अंश हैं.हमें भी तो उन्होंने ही तो बनाया है.सब कुछ,सब चीज के निर्माता भगवान् हैं.स्रष्टा भगवान् हैं.वो क्रेअते करते हैं और वो पालन करते हैं.देखिये कहा जाता है कि creation और annihilation यानि कि सृजन और संहार दोनों आसान है.लेकिन पालन बहुत मुश्किल है.और पालने का काम भगवान् का मुख्य काम हो जाता है.

और पालने के बारे में अगर आप देखे तो चीटीं से लेकर बड़े-बड़े हाथी,बड़ी-बड़ी व्हेल तक भगवान् पालते हैं.सोचिये.आप कहेंगे नही इंसान तो भूखा मर रहा है.इंसान अपनी बदनीयत के कारण भूखा मर रहा है.भगवान् की तरफ से कोई कमी नहीं है.भगवान् ने पूरे अन्न के बीज दिए.भगवान् ने आपको अन्न दिया है,ये भूमी दी,जल दिया सब कुछ दिया.कि तुम बीज लो और इसको बोओ और इसे उगाकर के खाओ लेकिन आज हम में से कितना लोग हैं जो जाकर के किसान बनना चाहेंगे.और कहेंगे कि ठीक है हम खेती करेंगे.

नही उल्टा लोग गावं छोड़कर के शहर में आ जाते हैं कि यहाँ पर कागज़ के नोट मिलेंगे.और कल को यदि पूरी स्थिति हो जायेगी तो क्या कागज़ के नोट खायेंगे.सोचिये.तो उत्पात कम हो जाता है और कीमतें बढ़ जाती हैं.महंगाई बाद जाती है.ये सब हमारी बदनीयत के चक्कर में है.बदनीयती,हमारी अपनी बईमानी.

land है हजारों बीघा.ये भगवान् की जमीन है.हमने इसे राष्ट्रों में ,अंतर्राष्ट्रों  में जो भी चीज आप समझ लीजिये उसमे तकसीन किया,उसमे बांटा कि ये मेरी जमीन है.एक आदमी जिसके पास करोड़ों-करोड़ों बीघा जमीन लेकिन उस पर वो कहता है कि  मै यहाँ पर mall बनाउंगा.और भूखमरी नही होगी तो क्या होगी?
                                                     **************************************


कार्यक्रम में आप सबका बहुत-बहुत स्वागत है.अब एक और बहुत सुन्दर श्लोक आपके लिए.श्लोक का अर्थ :

"हे अजेय भगवान् यद्दपि आप अजेय हैं किन्तु उन भक्तों द्वारा अवश्य जीत लिए जाते हैं जिनका अपने मन और वाणी पर संयम है.वे आपको इसलिए वश में रख पाते हैं क्योंकि आप उन भक्तों पर अकारण दयालु हैं. जो आपसे किसी प्रकार की कामना नही करते.निःसंदेह आप उन्हें अपने आप को प्रदान कर देते हैं.इसलिए अपने भक्तों पर आपका भी नियंत्रण रहता है."

तो बहुत सुन्दर बात है.बहुत प्यारी बात है.देखिये भक्ति से परिपूर्ण ,लबालब ये बात है.हे अजेय भगवान्.प्रभु को कौन जीत सकता है.बड़े-बड़े धुरंधर आये,बड़ी-बड़ी उन्होंने लड़ाइयाँ की और जमीनों का अधिग्रहण किया,जमीनों को जीत लिया.लोगों को मार -पीट दिया,ख़त्म कर दिया.लेकिन तो भी भगवान् ने कहा है शास्त्र में कि 
अहम् कालो अस्मि
मै काल हूँ काल.काल के आगे पराजित हो गए,जाना पडा इस दुनिया से खाली हाथ.वो जमीन आज किसी और की हो गयी .किसी और के नाम पत्ता लिख दिया गया.तो भगवान् की यही तो माया है.जमीन जिसकी है उसे हम नमस्कार नही करते हैं.उसे कुछ एक सौ साल के लिए ,पचास साल के लिए अपना बनाकर हम कहते हैं कि ये हमारी जमीन है.ये हमारी चीज है.ये हमारी मालकियत है.है न.

तो भगवान् अजेय हैं उन्हें कोई नही जीत सकता लेकिन वो उन भक्तों द्वारा जीत लिए जाते हैं जिनका अपने मन और वाणी में संयम है.मन और वाणी पर संयम honaa.मन को control करना.ये नही कि आपका मन संसार में भी लग रहा है और भगवान् में भी लग रहा है.सांसारिक चीजें भी अच्छी लगती है,घूमना-फिरना बहुत अच्छा लगता है,सहेलियों से सहेलों से गप्पे मारना बहुत अच्छा लगता है.ऑफिस में दूसरों की निंदा करना बहुत अच्छा लगता है.सिगरेट का एक कश लिया और इसकी निंदा उसकी निंदा.

समझ रहे हैं.या नेव्पपेर्स में जो कुछ पढ़ा ख़बरों की चर्चा.जैसे मान लीजिये आप ही कर्णधार है.आप ही के वजह से सब कुछ सही चल रहा है.ये हालत हमारी mentality की है.हम ये सोच रहे हैं.तो हमें अपने मन पर संयम नही है .वाणी पर भी कहाँ संयम है.किसी को कुछ भी कह देते हैं उलटा,बुरा.झूठ बोलना तो हमारी आदत हो गयी है.है कि नही.और किसी को गरियाना,गाली देना बात बात पर.बात-बात पर हम कितनी तरह की माता,पिता,बहन और जाने कैसी-कैसी गालियाँ लोग निकालते हैं.बात-बात पर ,हरेक लाइन पर एक गाली.हरेक लाइन पर एक गाली.तो ऐसा व्यक्ति कहाँ भगवान् को समझ सकता है.सोचिये.

यहाँ पर condition बतायी गयी है कि मन और वाणी पर संयम होना निहायत जरूरी है.अगर नही है तो होना चाहिए.संयम होना चाहिए.बहुत बड़ी बात है.

तो ऐसा भक्त जिसका मन और वाणी पर संयम है वो इसलिए भगवान् को कण्ट्रोल में रख पाता है ,अपने अधीन रख पाता है,अपना बना के रख पाता है क्योंकि वो भगवान् से किसी प्राकार की कामना नही करता.बहुत मुश्किल है ऐसे निष्काम भक्त को प्राप्त करना,देखना भी.ऐसे भक्तों के अगर आप दर्शन कर लेंगे न तो भी आप पवित्र हो जायेंगे.उनसे बात कर लेंगे तो वारे ही न्यारे हो जायेंगे.लेकिन ऐसे निष्काम भक्त जो भगवान् की भक्ति में आँसू बहाते रहते हैं.जो भगवान् से कुछ नही मांगते हैं.सिर्फ भगवान् से भगवान् को ही मांग लेते हैं बस.और कुछ नही.आप मिल जाओ और कुछ चाहिए ही नही.

बाकी सब तो माया है.वो जो दिख रहा है वो है कहाँ.है तो नही.जाएगा नही न साथ में.अकेले आये थे अकेले जाना है.पता है लेकिन ये जो बीच का खटराग है इसमे हम इतने राग को बढ़ा लेते हैं.अपना राग इतना बढ़ा लेते हैं इसमे.इतना हम इसमे लीं हो जाते हैं कि हम भूल ही जाते हैं कि हमें खाली हाथ जाना है.प्रश्न ही नही करते हैं पूरे समय बैठकर के कि हमें जाना कहाँ है?कहाँ जायेंगे हम?मृत्यु के बाद क्या होता है?शास्त्र हमें सब कुछ बताते हैं कि क्या होता है ,कौन है जो हमें control करता है,कहाँ जाना चाहिए लेकिन हम लापरवाह हैं.नही जानना चाहते .क्यों?क्योंकि फिर अपने को mold करने में,अपने आप को परिवर्तित करने में हमें तकलीफ होगी.ये मानना पडेगा कि हाँ एक अजीम सत्ता है जिसके आगे हमें सर झुकाना चाहिए,जिसे प्यार करना चाहिए ,जिसको लाड करना चाहिए.सोचिये 
                                                      *************************************************


कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है



"हे अजेय भगवान् यद्दपि आप अजेय हैं किन्तु उन भक्तों द्वारा अवश्य जीत लिए जाते हैं जिनका अपने मन और वाणी पर संयम है.वे आपको इसलिए वश में रख पाते हैं क्योंकि आप उन भक्तों पर अकारण दयालु हैं. जो आपसे किसी प्रकार की कामना नही करते.निःसंदेह आप उन्हें अपने आप को प्रदान कर देते हैं.इसलिए अपने भक्तों पर आपका भी नियंत्रण रहता है."



तो भगवान् ही स्वयं अपने आप को प्रदान कर देते हैं अपने निष्काम भक्तों पर क्योंकि उन्हें पता है कि ये सिर्फ सिर्फ मुझे ही पाना चाहते हैं.जिसकी एक भवंरा सर और सिर्फ फूल के पास रस लेता है ,उसके पास जाता है.वो वहां ही जाना चाहता  है.उसकी आंखें वहीं लगी रहती है कि कब कमल का फूल खिलेगा और वो उसके पास जाएगा.उसके पास रहेगा.ठीक है न.

तो ये भक्त की हालत होती है.वो बस भगवान् की संगति चाहता है.भगवान् में रमण करना चाहता है.भगवान् से प्रेम करना चाहता है और उन्ही से बातें करता रहता है.है न.उन्ही की बातें करता रहता ही.



मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌ ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥


भगवान् कहते है मेरे भक्त की ये पहचान है.निष्काम भक्त की ये पहचान है कि जब भी वो कहीं भी जाएगा,किसी से भी बात करेगा वो प्रभु की बात ही करेगा.उसके मुँह से निकलेगा तो प्रभु का नाम निकलेगा.उनके गुण की चर्चा करेगा.उनके कथा की चर्चा करेगा.बस भगवान्,भगवान्,भगवान्.एकमात्र यही topic रहता है उसके पास बातचीत का.उसे समझ ही नही आता कि दुनिया इतनी सारी बातें कैसे कर लेती है.वह baffled हो जाता है.उसे समझ नही आता है.

तो भगवान् ऐसे भक्त को अपने आप को ही प्रदान कर देते हैं.भगवान् ही पास आ जाते हैं.भक्त को गुहार नही लगानी पड़ती है.भगवान् अन्तर्यामी हैं और भगवान् तो आपके ह्रदय में बैठे हैं.आपकी समस्त इच्छाओं से सुपरिचित हैं.जानतेहैं कि आप क्या चाहते  हैं.तो सोचिये ये है भगवान् की महिमा.और जब हम भगवान् के परायण हो जाते हैं.भगवान् को अपने आप को दे देते हैं.तो भगवान् भी हमें अपने आप को दे देते हैं.

तो  ऐसा भक्त बनना ही जीवन का अभीष्ट है.भगवान् से प्रेम कर पाना ये जीवन का एकमात्र लक्ष्य है.primary लक्ष्य है.मैं लक्ष्य है बाकी जो कुछ हम करते है संसार में वो हमारा secondary , गौण लक्ष्य है जिसे हम मुख्य बना लेते हैं.ये हमारी problem है.यही हमारी problem है.

तो सत्य को जानके उसका स्वागत कीजिये.सत्य है भगवान्.और भगवान् से जुड़ने का पूरा-पूरा प्रयास कीजिये .आप देखेंगे कि आपको बहुत -बहुत खुशी मिलेगी,बहुत -बहुत शांति मिलेगी.और आपके ह्रदय से जो जलती हुयी इच्छाएं हैं.इच्छाओं की जलन वो शांत हो जायेगी.समाप्त हो जायेगी.

                                                  **********************************



कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.अब समय है आपके sms को कार्यक्रम में शामिल करने का.
SMS:सत्यप्रकाश कापसेडा से पूछते हैं 
मृत्यु सत्य है पर सत्य नाम तो भगवान् का है.तो मै किसे सत्य मानूं?
Reply By माँ प्रेमधारा:
ये सत्य के ही दो पहलू हैं.भगवान् कहते है
अहम् कालो अस्मि 
मै काल हूँ.मैंने आपको बताया था कार्यक्रम में भगवान् जो है मृत्यु हैं.जब नास्तिक लोग भगवान् पर विश्वास नही करते है तो अंतसमय में वो मौत से डरते देखे जाते हैं.मौत से डरते हैं.जबकि भक्त मृत्यु का स्वागत करता है.वो जानता है कि मृत्यु के रूप में वो अपने भगवान् से ही तो मिल रहा है.है न.
तो भगवान् सत्य है और भगवान् ही मृत्यु हैं.

SMS:स्वरुप जी दिल्ली से लिखते हैं 
"न कोई मोक्ष न कोई स्वर्ग मांगते हैं.
आपकी भक्ति में डूब जाऊं ये रहमत माँगते हैं.
आपको एक पल भी न भूल पाऊं 
ऐसे गम की विरासत मांगते हैं."
Reply By माँ प्रेमधारा:
कितनी बड़ी बात.कितनी सुन्दर बात है.जब दिल में दर्द उत्पन्न होता है.किसी से मिलाने की तड़प.वो जो तड़प है,वो जो बेचैनी है.वही रसमय है.वो रस देती है.वो आनंद प्रदान करती है.तो इसीलिये एक भक्त जो है वो भगवान् के विरह में तड़पता है.
शून्यायितम जगत सर्वं गोविन्द विरहेण में.

कि ये सारा जगत हे प्रभु आपकी विरह में मुझे शुन्य दिख रहा है.void .कुछ नही दिख रहा है.कुछ नज़र नही आ रहा है ये एक भक्त की पुकार होती है और स्वरुप जी यही मांग रहे हैं कि ऐसी विरह वेदना मुझमे व्याप्त हो जाए.बहुत सही है.

SMS:माखन बदरपुर से पूछते हैं भगवान् की प्राप्ति के लिए आतंरिक शक्ति को निरंतर अग्रसर कैसे करें ?
Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत सुन्दर प्रश्न है आपका.भगवान् की प्राप्ति के लिए आतंरिक शक्ति को अग्रसर करना.आंतरिक शक्ति क्या?आप आत्मा है.आत्मा तभी प्रसन्न रह सकती है जब वो परमात्मा के संग रहे.परमात्मा से सम्मुख हो जाए.अभी विमुख है.है न.जब उनकी तरफ मुड़ जाए.ठीक है न.जब उनकी तरफ मुड़ जाए तभी आत्मा प्रसन्न रह सकती है.

तो आत्मा को विमुख न होने दे,अपने आप को विमुख न होने दे.हमेशा भगवान् की चर्चा करें.सदा-सर्वदा कुछ पढ़ने का मन कर रहा है.तो शास्तों को पढ़े.और कुछ चीजें न पढ़े शास्त्रों को पढ़े.है न.कुछ बातें करने का मन कर रहा है.भगवान् के सम्बन्ध में बातें करें.कुछ गाने का मन कर रहा है भगवान् के भजन को गायें.

तो इसतरह से अपने आप को satisfy  करे प्रभु से.प्रभु के नाम को गाकर के.तो आप देखेंगे कि जब आप भगवान् से जुड़ जायेंगे इस तरीके से तो आप अपने आप और क्लोसे,और क्लोसे और नजदीक आतें चले जायेंगे प्रभु के.तब आपको ये चिंता नही सतायेगी कि हम प्रभु को कैसे प्राप्त करें.क्योंकि ये जिम्मा तब प्रभु का हो जाएगा कि वो आपको कैसे प्राप्त हो.बस आपको निष्काम भक्ति करनी है.और वो भी निरंतर.
                                                      *********************************


कार्क्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै  हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS :ओमप्रकाश तिगरी कालोनी से कहते हैं
आपने जो उपकार मुझ पर किया है उसका बदला मै जिन्दगी भर नही चुका सकता. 

Reply By माँ प्रेमधारा:
ओमप्रकाश जी मैंने आप पर उपकार नही किया है.उपकार भगवान् ने आप पर किया है कि आपको कार्यक्रम में रूचि उत्पन्न हुयी और आपने कार्यक्रम को ध्यान से सुना.और तब आपकी जिन्दगी बदल गयी.अगर ऐसा हुआ है तो वो सब कुछ करने वाले भगवान् हैं.और कहते है कि 
करते है आप प्रभु और मेरा नाम हो रहा है.
वही वाली बात है तो आप बिना मतलब मुझे credit मत दिया कीजिये.

SMS :भावना अरोड़ा सरोजनी नगर से पूछती हैं.बहुत सुन्दर प्रश्न है इनका.पूछती हैं 
हमें मिला हुआ शरीर पांच तत्त्वों से बना है जिसमे से एक तत्त्व आग है.तो फिर हम इस आग से जलते क्यों नही?
Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत सुन्दर प्रश्न है,बहुत सोचा होगा आपने इसके बारे में तो आपने ये कहा.बहुत बड़ी बात है तो देखिये.हमें जो तत्त्व मिले हैं जिनसे हम बने हैं मतलब हमारा शरीर बना हुआ है.हम नही बने हैं.हम तो सत चित आनंद से बने हुए हैं.हम आत्मा है.तो हमारा जो शरीर बना हुआ है उन तत्वों में से जो एक तत्त्व है अग्नि उसकी उपस्थिति का आप अंदाजा लगा सकते हो.देखो कैसे .जब आप अपना temperature लेते हो थर्मामीटर डाल कर.थर्मामीटर यानि वो मीटर जो गर्मी को नापे कि आपके अन्दर गर्मी कितनी है.ताप कितना है.तो आप देखते है कि ये ताप जो है एक विशेष डिग्री तक होना चाहिए.अगर उससे ज्यादा बढ़ जाता है तो उसे बुखार कहते हैं.है न.उसे बुखार कहते हैं.कई बार कहते हैं कि आपके पेट में मंद अग्नि हो गयी है.आपका बुखार ज्यादा हो गया है.

तो जब बुखार होता है तो शरीर का ताप बढ़ जाता है  तो ये भगवान् का ही करिश्मा है.उनकी ही जादूगरी है कि आपका तापमान सदा-सर्वदा आमतौर पर स्वस्थ रहने की हालत में एक विशेष डिग्री तक रहता है.उससे बढ़ने पर उसे बुखार कहा जाता है.

तो ताप किसका होगा बिना आग के तो ताप होगा नही.है न.ताप तभी होगा जब अग्नि होगी.उससे ही उष्मा और प्रकाश निकलता है.तभी उसका ताप आपके पूरे शरीर में बहता है.है न.तो उसको भगवान् ही हैं जो बिल्कुल balance में रखते हैं ताकि आप जी सके.वरना आप कहते हैं न कि बुखार ज्यादा हो गया तो दीमाग में चढ़ जाएगा.और दीमाग में चढ़ जाएगा तो आदमी मर जाएगा.

तो देखिये भगवान् कितनी सहायता करते हैं हमारी आपकी और तब भी हम भगवान् को शुक्रिया करने के लिए आगे नही बढते हैं.तब भी हम कहते हैं कि हम भगवान् को कैसे माने ,क्या करें,कैसे पता चलेगा कि भगवान् हैं कि नही हैं.आपकी मौजूदगी ही अपने आप में बहुत बड़ा चमत्कार है जो भगवान् के द्वारा ही संभव किया जा सका है.

ये जिस दिन आप समझ लेंगे भक्ति में उस दिन आप बहुत आगे जायेंगे.भगवान् की मिलन के राह में बहुत आगे बढ़ जायेंगे.तो ये सब समझने के लिए ही है.और समझने के लिए आपको खुले दीमाग का होना होगा.अपने दायरों से बाहर निकलना होगा.
                                                           ******************************


कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS :अगला message आया है गोविन्द का आनंद्पर्वत से पूछते हैं
क्या मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक में देह धारण करना करनी पड़ती है?

Reply By माँ प्रेमधारा:
गोविन्द गी बिल्कुल सही बात है.स्वर्ग या नरक के लिए आपको suitable देह दे दी जाती है.नरक के लिए ऐसी देह दे दी जाती है जिसमे आप नरक की यातनाओं को आप करोड़ों गुना ज्यादा झेलते हैं.करोड़ों गुना ज्यादा.आपको वो यातनाएं तंग करती हैं.अट्ठाईस नरक माने गए हैं.मुख्य नरक.वो जो नरक है वो आपको इतना दुखी कर देते हैं उस body में कि क्या बताये.

इसीप्रकार से आपको विशेष देह दी जाती है ताकि आप स्वर्ग के आनंद को करोड़ों गुना enjoy कर सके.उसका लुफ्त ले सके.वैसे ही जैसे कि मछली जब पानी में जन्म लेती है तो उसकी एक विशेष देह होती है.हैं न.ताकि वो पानी में रह सके.पूरी उम्र गुजार सके.हम और आप नही रह सकते है क्योंकि हमारी और आपकी suitable देह नही है.

ध्यान से देखिये आपकी प्रकृति में चारों तरफ बड़े अजीबोगरीब करिश्मे मिलेंगे भगवान् के.उन करिश्मों को देख के आप समझ पायेंगे कि भगवान् कितने दयालु हैं.सबको एक विशेष परिस्थिति दे रखी है ,एक विशेष environment दे रखा है कि वो अपने जीवन को गुजार सके.हाँ न.

और नर देह में तो भगवान् ने बहुत ही अवसर दे रखे हैं ताकि हर व्यक्ति भगवान् को प्राप्त कर सके.इन अवसरों को गिना कीजिये.जीना कीजिये यही बुद्धि है.

SMS :कमल करोलबाग से पूछते हैं प्रभु प्रेम में सर्वोच्च शांति की अवस्था क्या है?

Reply By माँ प्रेमधारा:
प्रभु प्रेम में शांति कहाँ!प्रभु प्रेम में तो आप प्रभु की प्राप्ति के लिए अशांत हो जायेंगे.लेकिन उस अशांति का अपना एक मज़ा है.उस विरह का,उस वेदना का अपना एक लुफ्त है.और वो इतना आनंदित कर देता है.देखिये यहाँ आप भौतिक जगत में किसी की विरह में तड़पते हो तो आप दुखी हो जाते हो.है न.लेकिन वो ऐसी वेदना है कि जिसमे मज़ा ही मज़ा है.आनंद ही आनंद है.

भगवान् के लिए जब कोई अश्रुपात करता है तो उसमे मज़ा ही मज़ा है.तो सर्वोच्च शांति की अवस्था ही यही है जब आप प्रभु प्रेम में दीवाने हो जाएँ और आँसू बहाने लगे.रोकने से भी आपके आंसू रुके नही.ये प्रभु प्रेम की उच्च अवस्था है.

SMS :अगला message है सुशील मेहता का पश्चिम विहार से.ये कहते हैं 
A tongue has no bones but it can break a heart and also it can be a pillar of strength to a broken heart

Reply By माँ प्रेमधारा:
यानि कि इस जुबान में कोई हड्डियां नही होती हैं लेकिन तो भी ये किसी का दिल तोड़ सकता है और चाहे तो ये किसी टूटे हुए दिल के लिए ताकत का काम कर सकता है.एक ऊर्जा को प्रावाहित कर सकता है.

तो कहा जाता हैं न कि जिसमे बहुत सारी हड्डियां होती हैं ,बहुत हड्डी जिसकी मजबूत होगी वो ताकतवर होता है.लेकिन ये जुबान जिसमे कोई हड्डी नही होती है ये चाहे तो ऐसा काम आपसे करा दे कि आप जो हैं बदनामी के हकदार हो जाएँ.बदनामी ही बदनामी हो जाए आपकी.और यही जुबान इतना मीठा बोल जाए.इतना अच्छा बोल जाए कि आपको प्रशंसा ही प्रशंसा मिल जाए.है न.awards ही awards मिल जाए.अच्छी बात है लेकिन.

लेकिन जुबान की सफलता तब है जब इस जुबान से आप हरिनाम ले.भगवान् का नाम सतत लेते रहे तो इस जुबान का होना सफल है.यही वाणी वेग कहलाता है.वाणी वेग को कण्ट्रोल करना यानि अनाप-सनाप नही बकना है.उल-जलूल नही बकना है.प्रभु से सम्बंधित वार्ता ही करनी है.कथा ही सुननी है.कथा ही बोलनी है.ठीक है न.ये जुबान की तपस्या है.

SMS :संजय वर्मा I .P.Extension से पूछते हैं 
कलयुग कब तक है और कलयुग के बाद कौन-सा युग आयेगा?

Reply By माँ प्रेमधारा:
कलयुग के बाद सतयुग आयेगा और चार लाख बत्तीस हजार वर्ष माने गए हैं कलयुग के.जिसमे से अभी पांच हजार पांच सौ कुछ वर्ष ही बीतें हैं.तो सोच लीजिये अभी कितना है.

SMS :न जाने कौन हैं,न जाने कहाँ से लिखते हैं 
दुखों को जो हर ले हरि का नाम है 
नाम का गुणगान कर तेरा ये काम है.
मुक्ति मेलेगी जाकर हर जीव को जहां
देवों को भी पसंद वो वैकुंठ धाम है.

Reply By माँ प्रेमधारा:
वैकुंठ  का जो शाब्दिक अर्थ जो है वो ये है कि जहां कोई कुंठा नही होती.कोई चिंता नही होती.कोई दुःख नही होते.तो ऐसे जगह ही  Kingdom Of God  कहलाती है.खुदा का घर.भगवान् का घर.तो इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए.क्योंकि जहां आपको जाना है उसकी जानकारी आपके पास होगी उस जगह के बारे में तो वहाँ जाने के लिए जो हौसलें हैं वो और भी बुलंद होंगे.आप और भी तेजी से इस मार्ग पर चल निकलेंगे.
                                                             ************************************


कार्क्रम में हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे है आपके SMS के ऊपर.बहुत सुन्दर समस आपने भेजे हैं.और इस बार एक trend मै देख रही हूँ .एक change मै देख रही हूँ.आप में से बहुत सारे लोगों ने छोटे-छोटे छंद लिखकर के भेजे हैं प्रभु की प्रशंसा में.बहुत सुन्दर भाव है.इसे maintain रखिये.keep it up और भेजते रहिये.

SMS :गजेन्द्र यादव जी U .P. कहते हैं 
"तारे आसमान में चमकते हैं 
बादल दूर हैं फिर भी बरसते हैं.
हम सब कितने नादान हैं 
 प्रभु दिल में रहते है और
 हम मिलने को तरसते हैं."
Reply By माँ प्रेमधारा:
गजेन्द्र जी बिल्कुल कस्तूरी वाले मृग के जैसा हमारा हाल है.हमारे अन्दर ही भगवान् है और हम यहाँ वहाँ भटकते हैं.उनकी सुगंध आ जाती है और हम भटकते हैं.थोड़ा सा पता चल जाता है और हम दौडने लगते हैं यहाँ-वहां.कितने ही अजीब लोगों के चक्करों में भी हम पड़ जाते हैं कई बार भगवान् को खोजते-खोजते जो अपने ह्रदय में बैठे हैं.और इन्तेजार कर रहे हैं कि आप sincerely कब मुड़ोगे.फैशन के रूप में नही.सौ दो सौ लोग जा रहे हैं किसी के पास और मंत्र लेकर आ रहे हैं इसलिए नही.

इसलिए कि आपको सच में भगवान् की जरूरत है.क्योंकि आपने समझ लिया कि वही सर्वस्व हैं और उनके सिवा मेरा कोई नही.जिस दिन आप ये समझ लेंगे.और जिस दिन ऐसी जरूरत आपकी हो जायेगी.भगवान् स्वयं आपको एक best person से अपने सच्चे प्रतिनिधि से अवश्य मिला देंगे.स्वयं मिला देंगे.आपको efforts नही करने पड़ेंगे.फिक्र नही करनी पड़ेगी.ये हो जाएगा automatically .

SMS :मिंटू U .P .से कहते हैं
ये जगत स्वप्न है ये जानते हुए भी सब कुछ सच क्यों लगता है?
Reply By माँ प्रेमधारा:
मिंटू ये जगत स्वप्न है मगर झूठ नही है.ये समझ लो.ये जगत झूठ नही है,मिथ्या नही है.क्योंकि भगवान् ने कुछ मिथ्या नही बनाया है.ये temporary है,अशाश्वत है.है न.सदा के लिए नही रहनेवाला है.तुम इसमे सदा के लिए नही रहोगे इस शरीर में.जब आओगे तो हो सकता है दूसरा शरीर हो.तो temporary है जगत.प्रलय के बाद ये जगत ख़त्म हो जाता है.दुबारा से इसकी सृष्टि होती है.बुत कुछ होता है.

तो temporary जगत में ,अशाश्वत जगह हम शाश्वत चीजों को ढूँढते हैं.शाश्वत जीवन ढूँढते हैं.शाश्वत खुशियाँ ढूँढते हैं.शाश्वत रिश्तें ढूँढते हैं.तो ये खलल हमारे दिमाग में है.क्योंकि बचपन से लेकर आज तक आपने देखा होगा कितने ही लोग मर रहे हैं.कितने बच्चों ने अपने बाप को खोया,अपनी माँ को खोया.कितने माँ-बाप ने अपने जवान बच्चों को खो दिया.

सबकुछ दिख रहा है.जिनके लिए पाप किये गए वे ही नही रहे.समझ रहे हैं.और पाप का बड़ा-सा बण्डल,बड़ा-सा बोझ,बड़ी-सी गठरी उठाकर के हम यहाँ से वहाँ दौडने लगे.ये सब दिख रहा है.लेकिन देखते हुए भी हम अंधे बन जाते हैं.देखना नहीं चाहते हैं.क्यों?क्योंकि ये हमें असुविधा वाली बात लगती है.हमें लगता है उफ़ झुकना पडेगा.उफ़ ये करना पडेगा.तो उफ़ उफ़ होकर रह जाता है.है न.तो ऐसा नही करना है.

मान लीजिये कि जगत स्वप्न है और सत्य सिर्फ भगवान् है.भगवान् ही हैं जो आपकी आँखें खोल सकते हैं.मै आपकी आँखें क्या खोलूँगी भला.मै तो डाकिया हूँ भाई.भगवान् के messages को आप तक पहुंचाने का काम कर रही हूँ.प्रभु सुन्दर-सुनहरा अवसर दिया है इस मनुस्श्य जीवन को धन्य करने का.आपका भी धन्यवाद अदा करती हूँ कि आप इसे पसंद कर लिए.आपने इस पहल को पसंद किया.और उसकी वजह से हम आपसे मुखातिब हैं.है न.

तो मै बस यही आपसे कहना चाहूंगी कि भगवान् चाहते है आपसे कि आप उनकी भक्ति करें.तो उसमे देर मत कीजिये.है न.नही तो सब कुछ स्वप्न हो जाएगा.ख़ाक हो जाएगा.

SMS :जाने कौन हैं कहते हैं दिल्ली से 
moon ने off की lighting
sun ने शुरू की shining
मुर्गे ने दी है warning
कि हो गयी है morning
तो मै भी बोल दूं सभी
listeners को Good Morning
Reply By माँ प्रेमधारा:
आपने अपना नाम नही लिखा नही तो हम भी आपको कहते Good Morning बहरहाल हम सब तो कह ही चुके हैं Good Morning .

SMS :राजन दिल्ली से पूछते हैं 
इन्द्रियों को भगवान् की भक्ति में कैसे लगाया जाए?
Reply By माँ प्रेमधारा:
सा वे मनः कृष्ण पदारविन्दो...
सारी इन्द्रियों के नाम यहाँ ले लिए गए.ये सारी इन्द्रियाँ जिस प्रकार से भगवान् की सेवा में रत हैं.हाथ भगवान् के आगे आप जोड़ते हैं.आँखों से उनके दर्शन करते हैं.नाक से उनको चढ़ाए गए पुष्पों को सूंघते हैं.शरीर को भक्तो के आलिंगन में use करते हैं.पैर को वहाँ तक जाने में use करते हैं.
तो ये है इन्द्रियों का भगवान् के लिए समर्पण.ऐसा हे आपको और हमें करना चाहिए.
                                                **************************************


SMS :अगला message आया है पंखुड़ी का दिल्ली से.कहती हैं
जीवन है एक रास्ता मंजिल नही है ये.
रास्ते को मंजिल समझ जिए जा रहे हैं.
एक अंतहीन सफ़र में पुनः प्रवेश किये जा रहे है.
Reply By माँ प्रेमधारा:
मर्म समझ लिया आपने पंखुड़ी जी जिन्दगी का.बहुत बड़ी बात है.ये सच बात है कि जिन्दगी एक माध्यम है मंजिल तक पहुँचाने का.भगवान् तक पहुँचने का.ये एक नाव है.

एक boat आपकओ मिली हुयी है जिस पर बैठ कर के आपको भवसागर पार जाना है अपने गुरु की कृपा से,भगवान् के उपदेशों का पालन करते हुए.लेकिन अगर आप उस जल की धार को ही सब कुछ समझ ले और आप कहे कि मै तो यही रहूंगा.यही पर मै enjoy करूंगा.सब कुछ यही है.


This is life. This is my life and I want to enjoy it.


अगर आप इस प्रकार से सोचेंगे और सोचते रहेंगे तो बड़ी दिक्कत वाली बात हो जायेगी भाई.तो ऐसी दिक्कत वाली जो बात है इससे आप बचे और आप ये समझ ले कि जिन्दगी वाकई वाकई बहुत precious है और आपको भगवान् की भक्ति के लिए ही मिली है.

और जब आप भगवान् की भक्ति नही करते हैं तो वाकई आप अंतहीन सफ़र  में प्रवेश करने लगते हैं.अंतहीन सफ़र यानि जिसका कोई अंत नही है.चौरासी लाख योनियों में एक बार नही अनेकानेक बार आपको जाना पड़ता है.कितनी ही बार ,करोड़ों वषों तक आपको विभिन्न शरीरो को धारण करना पड़ता है.और तब कही जाकर एक बार नर देह आपको प्राप्त होती है.और उसे भी अगर आप खो दे तो ये आत्म ह्त्या है.
स आत्मह 
भगवान् कहते हैं.स्वयं कहते हैं कि ऐसा वाय्की आत्म  हत्यारा  है जिसे नर देह मिली मगर उसने इसे किस्मे गवां दी खाने,पीने,सोने और मैथुन करने में.इन चार चीजों में.भय से अपनी रक्षा करने में.इन चीजों में उसने गवां दी तो ऐसा व्यक्ति क्या है?आत्म्हात्यारा है.

देखिये इन्द्रियों के संयम के बारे में आप कुत्ते-बिल्ले को नही समझा सकते.एक कुत्ते को आप नही कह सकते.बिल्ल्ली को आप नही कह सकते.ये मत खाओ या ज्यादा मत खाओ.हैं न.या ऐसे करो,वैसे चलो ,उस तरह से बोलो.कुछ नही कर सकते.या भगवान् का नाम लो.या भगवान् की ऐसी भक्ति करो.नही कर सकते क्योंकि उसे इतनी चेतना नही दी भगवान् ने.इतनी बुद्धि नही दी है.हमें दी है बुद्धि यही सब समझने के लिए.लेकिन जब हम बुद्धि का गलत प्रयोग करने लगते है तो हम अपने कार्मिक reactions में फंस जाते हैं.है न.

और जब उन reactions में,फलों को भोगने के लिए हमें वापस आना पड़ता है तो हमें ये नही पता होता कि अब हम वापस जायेंगे.समझ रहे हैं.कब जायेंगे भगवान् के धाम.जब किसी भक्त की कृपा होती है.जब भगवान् की कृपा होती है.जब दोनों की कृपा साथ-साथ आप पर बरसती है तो आप प्रभु की तरफ मुड़ते हैं.और आप जब उनकी तरफ मुड़ जाते हैं तो समझ लीजिये वही आपका सही जन्म है.नया जन्म है और इस जन्म के लिए भगवान् को धन्यवाद अदा कीजिये.
                                                               *******************************


कार्यक्रम में आप लोगों का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.
SMS :Message आया है जाने किसका जाने कहाँ से.कहते हैं 
पाप के बुरे फल को देखते हुए भी मानव बुरे कर्म क्यों करता है?
Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत सुन्दर प्रश्न है आपका.और ऐसा ही प्रश्न एक भक्त ने भगवान् से पूछा था तो भगवान् ने कहा था 


काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥



कि काम से ये रजोगुण की उत्पत्ति है.हम सब रजोगुणी हैं.भागते रहते है,भागते रहते हैं.सकाम कर्म करते रहते हैं.दौड़ते रहते हैं.चंद,थोड़े-बहुत सुख के लिए सारा दिन दौड़ते हैं.और इससे क्या होता है?कामनाएं उत्पन्न होती हैं.काम जब satisfy नही होता,संतुष्ट नही होता तो वो क्रोध में परिणत हो जाता है.क्रोध में तब्दील हो जाता है.बदल जाता है.और क्रोध जो है और काम ये दोनों 
महाशनो महापाप्मा
ये विनाश कर देते हैं.महापापमय हैं.इनकी वजह से मनुष्य पाप करता है.इनकी वजह से.नही तो हर चोर को पता है भाई चोरी करेंगे पकडे गए तो दंड मिलेगा.जेल जाना पडेगा.हरेक को पता है कि अगर ये काम किया तो ऐसा होगा.वो किया तो वैसा होगा.उसकी सजा फांसी है फिर भी सोचिये अपराधियों की संख्या कम ही नही होती.बढ़ती जाती है बढ़ती जाती है.क्यों?इसीलिए
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
रजोगुण के कारण.रजोगुण,तमोगुण हमें विवश कर देते हैं पाप करने के लिए.लेकिन इनसे बचा जा सकता है जब आप भगवान् की शरण ले ले.उनको surrendered हो जाए.तो आप बच सकते हैं.क्योंकि तब आपकी रक्षा प्रभु करते हैं.

SMS :धीरज शर्मा बल्लभगढ़ से कहते हैं आज के समय में भक्तों की बड़ी shortage है कही मिलते ही नही.
Reply By माँ प्रेमधारा:
धीरज शर्मा जी यही तो कलयुग की निशानी है.तमोगुण बढ़ गया है.सतोगुणी व्यक्ति आपको देखने में नही मिलता है.बड़े ही मुट्ठी बार लोग हैं.लेकिन इसका उपाय है कि आप भगवान् का ये सन्देश जगह-जगह प्रसारित कीजिये.कार्यक्रम के बारे में बताईये.कार्यक्रम सुनाईये.कई लोग रिकॉर्ड भी कर रहे है कार्यक्रम को और सुनाते हैं दूसरों को.ये  बहुत अच्छी पहल है.

अलावा इसके आप जो हैं खुद भक्त बनिए.अच्छे भक्त बनिए ताकि लोग आपके आचरण को देख करके सीख सके और भक्ति की राह पर आ सके और इसतरह से भक्तों को बनाने से, भगवान् के प्रति उन्मुख करने से लोगों को आप देखेंगे कि समाज में इस प्रकार के भक्तों की संख्या बढ़ रही है.और समाज एक अच्छे दिशा में जाने लगेगा.पाप कम होने लगेंगे.

SMS :M.K. दिल्ली से पूछते है 
जब मै भगवान् का नाम लेता हूँ तो लोग मुझे टोक देते हैं मै क्या करूँ?
Reply By माँ प्रेमधारा:
कुछ नही और भी ज्यादा तेजी से भगवान् का नाम लीजिये.जो कोई आपको टोक दे उससे बस और भी ज्यादा तेजी से.जिद आ जानी चाहिए कि नही भगवान् के नाम पर टोकेंगे तो उसे मै सुनुगा थोड़े ही.

SMS :प्रेरणा बुलंदशहर से कहती हैं


Always ask God to give you what you deserve not what you desire because your desire may be few but you deserve a lot.
Reply By माँ प्रेमधारा:


भगवान् से हमेशा कहिये -भगवान् जिसके योग्य मै हूँ वो मुझे दीजिये वो नही जो मेरी इच्छा है.क्योंकि आपकी देसिरे बहुत कम हो सकती है पर आप ज्यादा पाने के हकदार हो सकते हैं.और भगवान् को पा ले तो क्या बात है.

3 comments:

DivineTalks said...

Will it work !

Unknown said...

hame aaapna sara jivan bhagvan ki parpati or unse unki bhakti hi magni chiay jo bhi profession mai hai usme aapne kartaya pooray karne chiay or uska karm hum baghwan ko hi arpit kar de

hmessha yahi kahe ki karne wala or karwane wala prbhu aap hi hai mera to naam bhi aap ki kripa se ho raha mai to kuch bhi nahi jo hu aap ka he sewak hu or sada yahi chtaha hu ki aapki sewa or bhkti karta rahu aapne raj ki kirya kalapo se wo sub mai aapko hi arpit karta rahu

Unknown said...

hmesha har sans mai bhwan ki mantra ka jaap karte rah


HARE KRISHAN HARE KRISHNA KRISHAN KRISHAN HARE HARE HARE RAM HARE RAM RAM RAM HARE HARE