Saturday, April 24, 2010

On 24th April'10 By Maa Premdhara Part1

मैं हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.अभी-अभी रास्ते में मैंने दो बैल देखे.दिल्ली की सडकों पर अब गाय-बैल देखना अब बहुत दुर्लभ-सा हो गया है.तो अचानक ही भागती-दौडती गाड़ियों के बीच दो बैलों का चलना ऐसा लगा मानों दो सदियों का मिलन हो.मानो शहर और गाँव ने आपस में हाथ मिला लिया हो.

गाँव की बात पर याद आया पिछले दिनों हम एक गाँव में गए थे.वहाँ गाय का ताजा दूध जब गाँववालों ने हमें दिया तो हमारे बच्चे ने मुंह बना लिया.बोली छी-छी हम जानवर का दूध नही पी सकते.मैंने कहा अरे घर में भी तो आप दूध पीते हो.तो वो बोली अरे मम्मी घर में तो दूधवाला दूध देता है.वो मशीन का होता है जानवर का नही.
मैंने लाख समझाने की कोशिश की पर उसने न तो सुना और न ही गाय का वो निर्मल दूध पीया.

क्या कीजियेगा हमें packed माल खाने की आदत है.शुद्ध चीज देखकर आजकल मन में संशय उठते हैं.जहां पहले दूध पीने के लिए घर-घर में दुधारू पशु होते थे.वही पशु आज हमें सिर्फ गावों में दिखाते हैं.है न.और आप दुकानदार से दो दिन पुराना दूध खरीदते हैं.वो भी पता नही शुद्ध होता है या मिलावटी.कुछ पता नही होता न.

मन में शक तो उठते ही हैं क्योंकि देखा जाए कि आज जहाँ पैसा ही ईमान है,धर्म है.वहाँ ये सोचना कि खाने-पीने की चीजें शुद्ध होंगी ये मूर्खता ही है.लोगों से ये पूछना कि भाई जो तुम लाये हो शुद्ध है.ये तो हमारी अपनी समझ की बात है.दानों पर रंग मिला होगा या फिर कुछ और चीज.हल्दी में मिट्टी मिली होगी.घी में चर्बी का बोलबाला.मिलावट,मिलावट और कुछ नही.

और आप और हम जो दिन रात नोट कमाने में व्यस्त रहते हैं.स्वास्थ्य बनाने के लिए चिंतित रहते हैं.हमें इन्ही मिलावटी चीजों का सहारा लेना पडता है.चंद रुपयों के लिए लोग बड़े-से-बड़ा पाप करने से कतराते नही.सब को लगता है बस एक ही तो जिंदगी है.और इस अज्ञानतावश अपने पापों का बोझ अपने सर पर लिए मर जाते हैं.और कितनी ही नारकीय यातनाएं सहते हैं.सोचिये कितना अज्ञान है.

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कार्यक्रम में आप सभी के साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर. आईये अब हम आपसे कहते हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक.श्लोक बहुत ही प्यारा है ध्यान से सुनिए.श्लोक अर्थ:
मैत्रीय ऋषि ने कहा हे विदुर आप जैसे व्यक्ति जो मुकुंद के चरण कमलों के विशुद्ध भक्त हैं और उनके चरण कमलों में भवरों की तरह आसक्त रहते हैं.सदैव भगवान के चरणकमलों की सेवा करने में ही प्रसन्न रहते हैं.ऐसे पुरुष जीवन के किसी भी परिस्थिति में संतुष्ट रहते हैं और भगवान से कभी भी किसी भौतिक सम्पन्नता की याचना नही करते.

तो आपको देखिये सब कुछ इस श्लोक में बता दिया गया है.कौन संतुष्ट रहता है अपनी जिंदगी में ये बताईये.कहा गया है कि संतोष परम धन किन्तु ये नही बताया गया है कभी भी आपको.लोग बार-बार बोलते हैं कि अपने से बड़े को देखो,अपने से ऊँचे को देखो को तो फिर आपको असंतोष होगा.अपने से नीचे को देखना चाहिए.जो आपसे नीचे वर्ग में रहता है तो उसे देखकर के आपको संतुष्टि होगी.तो हमेशा वहाँ देखो.कब्भी भी ऊपर मत देखो.

लेकिन ऐसी संतुष्टि तो बहुत temporary होगी जो आप अपने से नीचे के लोगों को देखकर के हासिल करेंगे.अगर आपकी निगाह अपने से ऊपर,यदि आपके पास साइकिल है और आपकी निगाह स्कूटर वाले पर पडती है तो हो सकता है आपको असंतुष्टि हो जाए.यदि आपके पास स्कूटर है और आपकी निगाह कार वाले पर पडती है तो असंतुष्टि हो जाए.अगर आपके पास पुराना मॉडल है और आपकी निगाह ऐसे व्यक्ति पर पडती है जो आपकी dream car लिए फिरता है तो आपको असंतुष्टि हो जायेगी.

कब तक आप नीचे देखेंगे.नही देखेंगे क्योंकि हर व्यक्ति ऊपर की ओर बढना चाहता है.आनंद लेना चाहता है.और लोगों को लगता है कि आनंद इन्ही चीजों में है.

तो ये जो श्लोक है आपको बता रहा है वो तरीका जिसके बाद आपको कब्भी असंतुष्टि नही होगी.बहुत बड़ी बात है ये.ऐसा तरीका जिसे आप करेंगे अपनी जिंदगी में अमल लायेंगे तो फिर आप असंतुष्ट नही रहेंगे.तो वो क्या तरीका है.यहाँ आपको बताया गया है.

जो व्यक्ति भगवान के चरण कमलों के विशुद्ध भक्त हैं.विशुद्ध भक्त.जो उनके चरण-कमलों में आसक्त रहते हैं.बात हो रही है आसक्ति की.आसक्ति ये बहुत easily नही मिलती है.बहुत आसानी आसक्ति आपको नही प्राप्त होती है भगवान के चरणों में.ये तो भगवान की अहैतुकी कृपा है.अहैतुकी कृपा.causeless mercy कि आपको भगवान के चरणकमलों में आसक्ति हो जाए.

प्रेम की अवस्था सबसे अंतिम अवस्था है.प्रेम से पहले भाव उदय होता है और भाव उदय से पहले आसक्ति होती है.आसक्ति बहुत ही बाद की अवस्था है.लेकिन यदि आप इतने सौभाग्यशाली हुए कि आपको भगवान के चरणकमलों में आसक्ति हो जाए.आप भगवान से प्रेम करने की दिशा में अग्रसर हो जाए.आप भगवान के लिए पागल हो जाए.ये देखिये सौभाग्य की बात है.यही तो सबसे ज्यादा सौभाग्य की बात है.वो है न
तव कथामृतम तप्तजीवनम

यानि कि हे प्रभु आपकी कथाओं के अमृत को सुन करके ये जो तीन ताप से तपा हुआ जीवन है.इसे ठंढक मिलती है.इसके लिए ये अमृत है.तो जिस व्यक्ति को ये आभास होने लगे.अहसास होने लगे.देखो भक्ति सिर्फ ज्ञान नही है.भक्ति में ज्ञान ही नही छिपा है.भक्ति विज्ञान है.हमारे सारे शास्त्र आपसे बार-बार अपील करते हैं कि भक्ति को अपनाओ.ये विज्ञान है.अपनाने की चीज है.ये सिर्फ पढकर कही examination देकर नंबर लेने की चीज नही है.ये अपनाने की चेज है.व्यावहारिक रूप से.practical experience लो.और तब देखो कि शास्त्र जो कहते हैं वो सही कहते है.

तो यदि हमें भगवान के चरणों में आसक्ति हो गयी तो हम बहुत भाग्यशाली हैं.लेकिन वो भगवान की अहैतुकी कृपा से होता है.भक्तों के संग से होता है.भक्तों के संग से क्योंकि भगवान भक्त की बात कभी नही टालते.शुद्ध भक्त की बात कभी नही टालते.जब शुद्ध भक्त भगवान से गुजारिश करता है.उससे निवेदन करता है कि हे प्रभु इस आत्मा को आप अपने चरणों में लीजिए तो भगवान उसकी पुकार जरुर सुनते हैं.

तो भक्तों का संग अवश्य करना चाहिए तो आपका जीवन स्वर्णिम हो जाए.

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कार्यक्रम में आप सभी के साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे थे एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक अर्थ:
मैत्रीय ऋषि ने कहा हे विदुर आप जैसे व्यक्ति जो मुकुंद के चरण कमलों के विशुद्ध भक्त हैं और उनके चरण कमलों में भवरों की तरह आसक्त रहते हैं.सदैव भगवान के चरणकमलों की सेवा करने में ही प्रसन्न रहते हैं.ऐसे पुरुष जीवन के किसी भी परिस्थिति में संतुष्ट रहते हैं और भगवान से कभी भी किसी भौतिक सम्पन्नता की याचना नही करते.

ये श्लोक पढकर के मुझे हँसी इसलिए आती है कि बड़ी सही बात लिखी है.बिल्कुल सही बात है.अगर आप भगवान की भक्ति में रम जायेंगे न तो भौतिक सम्पन्नता की याचना करने पर हँसी आयेगी.कहेंगे भौतिक सम्पन्नता.क्यों?किसके लिए?किस चीज के लिए?क्या जरुरत है?अरे शरीर ढंकने के लिए कपड़ा चाहिए वो तो मेरे पास हैं.अब कपड़ा इस brand का हो.इस style का हो.इस showroom का हो.ये तो फालतू की बातें हैं.time wastage.समय  waste करने का.समय waste करने का तरीका है.भव्य तरीका है.

ये हम नही समझ पाते कि हमारा पल-पल निकलता जा रहा है.हमारी गठरी में चोर लगा हुआ है.
तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर जाग जरा.
Fact है.ये काल रूपी चोर हमारी गठरी में लगा हुआ है.हमारे पास जो सांसों का खजाना है.हमारे पास जो अवसर है उसमे चोर लगा हुआ है.देखिये आपका जीवन जो है वो पानी का ऐसा घड़ा है जिसमे छेड़ हो रखा है.बूंद-बूँद करके पानी निकल रहा है और जीवन कम हो रहा है.आपको आभास नही हो रहा है.ये सबसे बड़े आश्चर्य की बात है.

तो हमारे पास समय कम है No.1 और No.2 क्या?कि समय है जितना भी वो किस चीज के लिए है.वो है भगवान के प्रति प्रेम को विकसित करने के लिए.तो यहाँ बताया गया है कि जो व्यक्ति भगवान के चरणकमलों का विशुद्ध भक्त है और उनके चरणकमल में भवरों की तरह आसक्त रहते हैं.

भवरों की बड़ी quality है.क्या quality है?कि वो कमल को ढूँढते हैं और जब कमल उन्हें मिल जाता है तो वो कमल के अंदर बैठ कर उसका रस चूसने लगते हैं.उनके अंदर बैठे रहते हैं.उनका रस लेते रहते हैं और जब शाम होने लगती है तो उसमे वो बंद हो जाना चाहते हैं.कमल की पंखुडियां बंद होती हैं तो उसमे बंद हो जाना चाहते हैं.निकलना नही चाहते.

तो इसिलए भवरे का example यहाँ दिया गया है कि कमल के अंदर जब भंवरा बंद हो जाता है तो उसकी सांस घुट जाती है और वो खत्म हो जाता है.लेकिन वो हटता नही है.उसे अपने जीवन के बारे में कोई चिंता नही होती.उसे बस कमल का संग चाहिए होता है.जीवन की किसी परिस्थिति की चिंता वो नही करता है कि अरे अभी ये कमल की पंखुड़ी बंद हो जायेगी तो मेरी मृत्यु हो जायेगी.ऐसा नही होता है.

तो आसक्ति उसे कहते हैं जहाँ जब आप किसी का चिंतन करे,किसी का संग करे तो फिर आपको कुछ होश न रहे.तो ऐसी आसक्ति,ऐसा प्रेम,दीवानावार प्रेम.जहाँ आप दीवाने हो जाएँ.ऐसा प्रेम यदी भगवान से हो जाता है तो ऐसा व्यक्ति हर परिस्थिति में संतुष्ट रहता है.असंतोष पर तो उसे हँसी आती है.असंतुष्टि किस चीज के लिए जी.कोई demand ही नही है.

कोई इच्छा होगी.कोई मांग होगी और मांग पूरी नही होगी तो असंतुष्टि होगी न.लेकिन कोई मांग ही नही है.क्यों?पता नही क्या बात है.उन्हें देखते है तो कोई मांग बढती ही नही है.सिर्फ और सिर्फ उन्हें देखते रहने का मन करता है.जब आपका मन ऐसा करने लगे समझ लीजिए आगे बढ़ गए आप.

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कार्यक्रम में आप सभी के साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर. श्लोक अर्थ:
मैत्रीय ऋषि ने कहा हे विदुर आप जैसे व्यक्ति जो मुकुंद के चरण कमलों के विशुद्ध भक्त हैं और उनके चरण कमलों में भवरों की तरह आसक्त रहते हैं.सदैव भगवान के चरणकमलों की सेवा करने में ही प्रसन्न रहते हैं.ऐसे पुरुष जीवन के किसी भी परिस्थिति में संतुष्ट रहते हैं और भगवान से कभी भी किसी भौतिक सम्पन्नता की याचना नही करते.

कभी नही कहते.कभी नही कहते.भक्त जो होते हैं शुद्ध भक्त वो कभी नही कहते कि हे भगवान मेरी नौकरी लगा दो.ये नौकरी में मुझे दस हजार ही क्यों मिलते हैं.कुछ ऐसा लगा दो जिसमे मुझे चालीस हजार मिले.कुछ ऐसा कर दो मेरी लौटरी खुल जाए.बिल्कुल नही.अरे जो भगवान आपको हीरा दे सकता है.हाँ.उससे आप कांच के चंद टुकड़े माँगते हैं.बताईये.

आपके सामने अगर सम्राट आ जाए किसी देश का और बोले कि मै आपसे खुश हूँ.आप कुछ मांगो.और आप कहे मुझे चावल के पांच दाने दे दो.तो बताईये ये क्या मांग हुयी.तो हमारी मांग भौतिक सम्पन्नता की ऐसी ही है.ऐसी ही है.हम यहाँ खुश होना चाहते हैं.यहाँ खुश रहना चाहते हैं.इस जगत में और इस जगत में कभी भी आपको भौतिक चीजों से खुशी मिल ही नही सकती.क्यों?

क्योंकि आप आध्यात्मिक स्फुलिंग हैं भगवान के.भगवान के आध्यात्मिक अंश हैं.आप आत्मा हैं तो आपको आध्यात्मिक चीजों से ही प्रसन्नता हासिल हो सकती है.आध्यात्मिक लोक में जाकर प्रसन्नता हासिल होगी.आध्यात्मिक विषयों का चिंतन करके प्रसन्नता हासिल होगी.

हाँ भगवान जिनसे अब आध्यात्म उदभूत होता है.उनसे मित्रता करके,उनकी शरण ले करके आपको आनंद हासिल होगा.तो अगर आप आनंद की खोज में मारे-मारे फिरते हैं तो इस भटकन को रोक दीजिए न.क्यों मारे-मारे फिरते हैं?क्यों सोचते हैं कि आज बहुत बोर हो रहे हैं चलो सीरियल देखते हैं.अरे आँखें खराब हो जायेगी सीरियल से कुछ मिलेगा नही.आपकी चेतना खराब  हो जायेगी.मृत्यु के समय में जहाँ आना चाहिए
अन्ते नारायण स्मृति
वहाँ आपको सीरियल के characters याद आयेंगे.सोचिये.आप कहते हैं नही नही ऐसा नही होगा.ऐसा होगा क्योंकि आपके सूक्ष्म बुद्धि में ये सब characters,ये सब कहानियाँ भर रही हैं धीरे-धीरे, धीरे-धीरे..आपकी निर्मल चेतना विषैली बन रही है.

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