Sunday, May 23, 2010

On 22nd May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार आपके साथ हूँ  मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.आजकल बच्चों की छुट्टियाँ पड़ चुकी हैं.तो आपका routine तो disturb हो ही गया होगा.देर तक सोते हुए बच्चे कब उठकर नाश्ता करेंगे ये चिंता अब सताती है आपको.Time पर नहाएंगे या नही,नही पता.जब आप किचेन में busy होंगे तो बच्चे भी जिद करेंगे कि हमें भी चाकू दो हम भी सब्जी काटेंगे.थक-हारकर आप सिखाते हैं कि चलो बेटे ऐसे सब्जी काटना.है न.बड़े उत्साह के साथ बच्चे  चाकू लेकर सब्जी काटना शुरू करते हैं और आप मन-ही-मन डरते हैं कि कही ये अपना हाथ न काट बैठे.कभी-कभी कोफ़्त भी तो होती है कि पाँच मिनट का काम है और ये आधा घंटा लगाएंगे.

खैर बड़ी बात है कि उत्साह है.अगर यूं हे रहा तो अभ्यास होता चला जाएगा और एक दिन वो भी पाँच मिनट में काम को कर देंगे.आखिर शुरुआत में हम भी तो ऐसे ही थे न.पर हमने अभ्यास किया और आज बिना किसी डर के हम चाकू से फल और सब्जियां काटते है वो भी बड़ी ही तेजी से.है न.

तो अभ्यास यानि कि practice बहुत जरूरी है.अभ्यास कीजिये तो काम बनेगा.यही हाल है भक्ति का भी.शुरुआत में अजीब-सा लगता है लेकिन जैसा कि भगवान कहते हैं
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥ 
यानि अभ्यास करो. तो आप अभ्यास पर जोड़ दीजिए पर याद रखिये अभ्यास तो हो ही जाएगा आपको बस अपने विश्वास की,अपने उत्साह की रक्षा करनी है.भगवान में विश्वास कायम रखिये और उनसे मिलने के लिया सदा उत्साहित रहिये.बस इतना ही.बाकी काम हो जाएगा और एक न एक दिन आपको परमगति प्राप्त हो ही जायेगी.
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कार्यक्रम में आपका बहुत-बहुत स्वागत है.आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो आईये कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक से.हमारे शास्त्र क्या कहते हैं पता होना चाहिए न.श्लोक का अर्थ;
जिसने एकमात्र भगवान वासुदेव की शरण ले रखी है वो उन सकाम कर्मों से मुक्त हो जाता है जो भौतिक काम वासना पर आधारित है.वस्तुतः जिसने भगवान के चरणकमलों की शरण ले रखी है वू भौतिक इन्द्रतृप्ति को भोगने की इच्छा से भी मुक्त कर दिया जाता है.उसके मन में यौन जीवन,सामाजिक प्रतिष्ठा और धन का भोग करने की इच्छाएं उत्पन्न ही नही हो सकती इसप्रकार वो भागवत उत्तम अर्थात सर्वोच्च पद को प्राप्त कर भगवान का शुद्ध भक्त माना जाता है.

देखिये कितना सुन्दर श्लोक और कितना सुन्दर इसका अर्थ.कितनी प्यारी बात कि जिसने एकमात्र भगवान की शरण ले रखी है.बहुत बड़ी बात है.तो वो उन सकाम कर्मों से मुक्त हो जाता है जो भौतिक काम वासना पर आधारित है.यानि कि हमारे ऊपर बंधन है.हमारे और आपके ऊपर बंधन है और हम दिखता नही है.क्यों?क्योंकि बंधन सूक्ष्म है.बहुत बारीक है. अगर मोती-मोती रस्सियाँ हो तो शायद हमें दिख भी जाए लेकिन मोती रस्सियाँ नही हैं ये.ये तो सूक्ष्म बंधन है हमारे कर्मों का.सकाम कर्मों का.जहाँ हम कामनाएं करते हैं.

यानि कि हम अपनी कामनाओं से बंधे हैं.बहुत बड़ी बात है.हम अपने कामनाओं से बंधे हैं.हमें किसी ने बंधा नही है.हमारी अपनी इच्छाएं जो उत्पन्न होती हैं तो वो हमें बाँध देती हैं और हमें पता नही चलता.ये तो अब तक आप जान गए होंगे हमें इस जगत से हमारी इच्छाओं से बाँधा हुआ है.हम कहते हैं कि हम मुक्त हैं.हम तो आजाद हैं.मै आजाद हूँ.बड़े ही गर्व से हम घोषणा करते हैं.है कि नही.बहुत ही गर्व से कहते हैं-मै आजाद हूँ, आजाद हूँ, आजाद हूँ लेकिन आजाद नही हैं.

क्योंकि आप देखिये बुढापा,बीमारियाँ,जन्म,मृत्यु ये चार बंधन तो है ही आप पर और मुझ पर भी.मुझ पर भी.हम सब इन चारों चीजों से बंधे हुए हैं.कैसे आएगा आराम.

तो यहाँ बताया गया है कि आएगा आराम यदि आप भगवान की शरण ले ले तो अन्यथा आराम की संभावना नही है.बहुत बड़ी बात है.यदि आप भगवान की शरण ले ले तो आप मुक्त कर दिए जायेंगे.इसका मतलब क्या हुआ.यानि कि हमें किसी ने बाँधा हुआ है.है न.किसी ने हमें बाँधा हुआ है.किसने बाँधा हुआ है.कभी सोचा है आपने.भौतिक गुण.तीनों गुण-सतोगुण,रजोगुण,तमोगुण इनकी रस्सियों ने हमें बाँधा है.प्रकृति ने हमें बाँधा है.

हालांकि प्रकृति जड़ है.प्रकृति अचेतन है लेकिन तो भी इतनी शक्तिशाली है क्योंकि भगवान की माया है.भगवान की प्रकृति है.भगवान असीम शक्तिशाली हैं तो ये भगवान की शक्ति का एक तुच्छ प्राकट्य जो है ये प्रकृति है और इसने हमें बाँध लिया.सोचिये.जड़ होते हुए भी हम इसके बंधन में बंध गए.क्यों?क्योंकि हमने इच्छा की कि हम बंध जाए.हमारी समस्या हमारी इच्छाएं हैं.

यहाँ बताया गया है कि जिसने भगवान के चरणकमलों की शरण ले रखी है वो भौतिक इन्द्रतृप्ति को भोगने की इच्छा से भी मुक्त कर दिया जाता है.आप अगर अपने दिल को खंघालेंगे,दिल तो टटोलेंगे,अपने  दिल से पूछेंगे कि क्या इच्छा है तुम्हारी ऐ दिल तो दिल आपको बताएगा कि अनंत इच्छाएं हैं.क्या तुम मेरी इच्छाओं को पूरा कर सकोगे.तब आप भी कहेंगे कि बिल्कुल.इसीलिए तो मैंने जन्म लिया है ताकि मै तुम्हारी इच्छाओं को पूरा कर सकूं.ताकि मै भोग सकूं और ये भोग ही हमारा भवरोग है ये हम नही जानते.हैं न सही बात.
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आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे है बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:
जिसने एकमात्र भगवान वासुदेव की शरण ले रखी है वो उन सकाम कर्मों से मुक्त हो जाता है जो भौतिक काम वासना पर आधारित है.वस्तुतः जिसने भगवान के चरणकमलों की शरण ले रखी है वू भौतिक इन्द्रतृप्ति को भोगने की इच्छा से भी मुक्त कर दिया जाता है.उसके मन में यौन जीवन,सामाजिक प्रतिष्ठा और धन का भोग करने की इच्छाएं उत्पन्न ही नही हो सकती इसप्रकार वो भागवत उत्तम अर्थात सर्वोच्च पद को प्राप्त कर भगवान का शुद्ध भक्त माना जाता है.

तो शरण किसकी लेनी है.यहाँ आपको सलाह दी गयी है एकमात्र भगवान की.तो वो सकाम कर्मों से मुक्त हो जाता है जो किस पर आधारित है?भौतिक कामवासना पर.हमारी problem क्या है?हमारी समस्या ये है कि हमारे अंदर अनंत इच्छाएं हैं  और  हम इन इच्छाओं के पाश में बंधकर भी ये कहते हैं कि हम मुक्त हैं तो सोचिये कि कितना बड़ा व्यंग्य करते हैं अपने आप पर.हम हैं तो बंधे हुए अपनी इच्छाओं के गुलाम.अपनी इन्द्रियों के गुलाम,अपने परिवार की इच्छाओं के गुलाम.इच्छाएं-ही-इच्छाएं हम पर लड़ी हुई हैं लेकिन हम कहते हैं कि हम मुक्त हैं.बताईये.ये विडंबना है कि नही.इसी बात पर मुझे एक छोटी-सी कहानी याद आती है.

एक बार एक बहुत बड़ा freedom fighter था,स्वतंत्रता सेनानी था.वो एक बार पहाडियों में घूम रहा था.वहाँ पर वो रात को रूका तो अचानक उसने एक बहुत  ही खुबसूरत तोता देखा एक सोने के पिंजरे में.तोता चिल्ला रहा था आजादी,आजादी,आजादी.जब तोता चिल्लाता था आजादी तो उसकी आवाज वहाँ की घाटियों में गूँज निकलती थी.तो उस आदमी ने सोचा कि मैंने तो ऐसे कई सारे तोते देखे हैं और मुझे लग भी रहा था कि इन्हें कभी-भी पिंजरों में क्यों रखा जाए.इन्हें आजाद कर देना चाहिए.लेकिन पहली बार ऐसा तोता देखा है जो कि सुबह से लेकर रात तक,यहाँ तक कि सोते हुए भी बोलता है-आजादी,आजादी,आजादी.बहुत बड़ी बात है ये.सोते हुए भी बोल रहा है आजादी.

तो उसे लगा कि हाँ  ये तोता कितना प्यारा है जो आजादी चाहता है और मै कितना खराब हूँ कि यहाँ हूँ ,freedom fighter रहा हूँ  और इसे आजाद न करा पाऊं.तो उसने क्या किया.रात को चोरी-चोरी उस आदमी के घर में घुसा जहाँ वो तोता था.उसने चुपचाप से दरवाजा खोल दिया उसके पिंजरे का और कहा बाहर निकालो,बाहर निकालो.तोता पिंजरे की छड़ी होती है न उसको बहुत-ही कस के पकड़ चुका था.नही निकल रहा था.असने कहा कि अरे निकालो.क्या तुम आजादी भूल गए.हाँ.दरवाजा खुला हुआ है और तुम्हारा मालिक सो रहा है.कुछ पता नही चलेगा.निकालो.तो वो फिर नही निकला तो ये भी बड़े ढीठ थे हमारे जो freedom fighter साहब जो थे.उन्होंने क्या किया कि तोते को जबरदस्ती की मगर तोता चोंच से उसपर वार करने लगा.उसने कहा कि कोई बात नही.चोंच से वार कर रहा है कोई बात नही लेकिन कम-से-कम ये आजाद तो हो जाएगा.उसको निकाल के बाहर कर दिया.

फिर बड़े आराम से वो सो गया ये सोचकर कि देखो मैंने तो तोते को बाहर निकाल दिया.रात बीती.सुबह हुई और फिर उसने वही आवाज सूनी-आजादी,आजादी,आजादी.freedom,freedom,freedom.उसने कहाँ अरे ये क्या हुआ.शायद तोता किसी चट्टान पर बैठा होगा या किसी पेड़ पर बैठा होगा और आजादी,आजादी चिल्ला रहा होगा लेकिन जब वो पिंजरे के पास गया तो उसने क्या देखा.दरवाजा खुला हुआ था और वो तोता उसे पिंजरे के अंदर बैठा हुआ था.

तो ये हालत हमारी और आपकी है.हम कहते जरूर हैं कि हम मुक्त हैं.आजाद हैं.हमें आजादी चाहिए.हम परमगति प्राप्त करना चाहते हैं.भगवद्धाम को जाना चाहते हैं लेकिन हमने अपने पिंजरे को कस के पकड़ा हुआ है.कोई हमें निकालने का भी प्रयास करता है तो हम उस पर उंगलियां उठा देते हैं.दस बातें सुना देते हैं.उस पर शक करने लगते हैं.ये हमारी problem है.

तो यहाँ बताया गया है कि देखो तुम्हे आजादी की चिंता नही करनी है.तुम सिर्फ ये जान लो कि तुम्हारे जीवन का सर्वोकृष्ट उद्येश्य क्या है.अगर तुम उसे जान लोगे तो तुम्हे कोई अन्य चीज जानने के लिए रह नही जायेगी.बहुत बड़ी बात है ये यानि कि आपके जीवन के एकमात्र उद्येश्य हैं भगवान.जब आप उन्हें पकड़ लेंगे.उन्हें प्रेम करने लगेंगे.उनके हो जायेंगे तो सब कुछ आपको प्राप्त हो जायेगा.मिल जाएगा.
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मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.आईये एक और श्लोक पर चर्चा करते हैं.बहुत ही सुन्दर श्लोक है सिर्फ आपके लिए ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
जो लोग भगवान की भक्ति करते हैं.पूजा करते हैं उनके हृदयों को भौतिक कष्ट रूपी आग भला किस तरह जलाते रह सकती है.भगवान के चरण कमलों ने अनेक वीरता पूर्ण कार्य किये हैं और उनके पाँव के नाखून मूल्यवान मणियों के समान हैं.इन नाखूनों से निकलने वाला तेज चन्द्रमा की शीतल चांदनी के समान है क्योंकि वो शुद्ध भक्त के ह्रदय के भीतर के कष्ट को उसी तरह दूर कर सकता है जिस तरह चन्द्रमा की शीतल चांदनी सूर्य के प्रखर ताप से छुटकारा दिलाती है.

कितना सुन्दर श्लोक भगवान की महिमा को दिखाता हुआ.आप तक पहुंचाता हुआ इतना सुन्दर,इतना प्यारा श्लोक.हमारे हृदयों को अनेकानेक कष्ट सताते हैं.ह्रदय जलता है.दिल जलता है.आपने सुना होगा कि ये जो कहावत है वो मेरे दिल को जलाता है.उसे देखकर मुझे जलन होती है.दिल जलता है.हमारे अंदर पाँच तत्त्वों में अग्नि भी है लेकिन ये अग्नि जब ह्रदय को जलाते है तो बहुत ही भयंकर परिणाम होता है.

ह्रदय क्यों जलता है?क्योंकि हमारे अंदर इतनी इच्छाएं हैं कि वो शांत नही होती हैं,पूरी नही होती हैं तो ह्रदय जलता है.कई बार हम देखते हैं कि अरे दूसरा आदमी हमसे ज्यादा तरक्की कर गया.ये मजाल.क्या कृपा है उसपर.तो ह्रदय जलता है कि हम पर क्यों नही है.हम क्यों नही कर पाए.
और इतना जल जाते हैं हम लोग.इतना तड़प जाते हैं कि उस व्यक्ति का नुकसान करने की सोचने लगते हैं.किसी तरह इसका down fall हो.इसका खात्मा हो तो कुछ कहना है.ये हालात हो जाती है हमारी.इतनी गन्दगी रहेगी तो भौतिक कष्ट तो हमें जलाएंगे ही न.तडपायेंगे ही न.

मुक्ति कहाँ है भला.मुक्ति है जब आप मुक्ति का प्रयास करेंगे.जब आप भगवान की शरण लेंगे तो मुक्ति के बारे में आप सोच सकते हैं.अलावा इसके आप अगर मुक्ति के बारे में सोचेंगे भी  सोच-सोचकर भला क्या हासिल होगा?प्रयास तो करना पडेगा न.शरणागत होना पडेगा भगवान के तो मिलेगी आपको मुक्ति.
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हम चर्चा कर रहे थे बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:
जो लोग भगवान की भक्ति करते हैं.पूजा करते हैं उनके हृदयों को भौतिक कष्ट रूपी आग भला किस तरह जलाते रह सकती है.भगवान के चरण कमलों ने अनेक वीरता पूर्ण कार्य किये हैं और उनके पाँव के नाखून मूल्यवान मणियों के समान हैं.इन नाखूनों से निकलने वाला तेज चन्द्रमा की शीतल चांदनी के समान है क्योंकि वो शुद्ध भक्त के ह्रदय के भीतर के कष्ट को उसी तरह दूर कर सकता है जिस तरह चन्द्रमा की शीतल चांदनी सूर्य के प्रखर ताप से छुटकारा दिलाती है.


आजकल गर्मियां हैं.है न.और जब आप कही बाहर निकलते हैं तो सुबह-सुबह आठ-नौ बजे भी बाहर निकलना बड़ा भारी पडता है.सूर्य का प्रखर ताप इतना जलाने लगता है हमें.है न.लगता है कि छतरी लेके जाएँ.काला चश्मा पहन के जाएँ.A.C.वाली गाड़ी में जाएँ और वही पर उतारे जहाँ हमें जाना है.तो गर्मी से डर लगता है.इतनी प्रखर गर्मी में लग्गता है कि कुछ ठंढा-ठंढा हमें मिलता रहे और जब शाम होती है.चन्द्रमा आसमांम में उदित होता है तो आपको बहुत अच्छा लगता है.क्यों?क्योंकि चन्द्रमा की शीतल चांदनी आपको बहुत अच्छी लगती है.लगता है कि हाँ दिनभर की थकान मिट गयी.अच्छा लग रहा है आँखों को,शरीर को.

इसीप्रकार से शुद्ध भक्त के ह्रदय में यूं तो कोई कष्ट होता नही क्योंकि वो भगवान के चरणकमलों पर अपना ध्यान ऐसे केंद्रित करता है कि उसका ध्यान कही और,कही भी जाता ही नही.भगवान के चरणकमल इतने प्यारे हैं.ह्रदय को ठंढक देनेवाले है.ऐसे चरणकमल जिसने वीरतापूर्ण कार्य किये.ऐसे चरणकमल जिसके ठोकर से गंगा निकल आयी और इस पृथ्वी पर आकर के उन्होंने पृथ्वी को पवित्र किया.तो इतने सुन्दर,इतने प्यारे,इतने मनभावन भगवान के चरणकमल हैं कि जब भक्त उनका स्मरण करता है.उनके परायण हो जाता है.उनको अपने ह्रदय से लगा लेता है तो उसके ह्रदय के सारे ताप,ह्रदय की सारी जलन समाप्त हो जाते है.खत्म हो जाती है.वो समझ जाता है कि हाँ ये सब मै खुद नही कर सकता था.ये भगवान ही कर सकते थे और उन्होंने ही किया.

यहाँ बताया गया है कि जो लोग भगवान की भक्ति करते हैं उनके हृदयों को भौतिक कष्ट रूपी आग भला किसतरह जला सकते हैं.देखिये हमें कई प्रकार के दुःख प्राप्त होते हैं.जन,मृत्यु,ज़रा,व्याधि तो हैं ही लेकिन अधिभौतिक,अधिदैविक और आध्यात्मिक दुःख भी बहुत सारे हैं.आध्यात्मिक दुःख तो और भी हमें दुखी करता है.वो दुःख जो हमारे मन से उपजे.बैठे-बैठे ही किसी के बारे में सोच लिया.नफ़रत बातें करनी शुरू कर दी.उसके बारे में गलत सोचना शुरू कर दिया या किसी को गलत बोलना शुरू कर दिया.क्यों?जहाँ क्यों निकला मुँह से.इसलिए क्योंकि ह्रदय में जहर भरा हुआ है.

तो ह्रदय के जहर को शांत कैसे किया जाए.कैसे निकाला जाए.कैसे उस ह्रदय में भक्ति की अमृतधारा कलकल प्रवाहित होने लगे.कैसे.ये कार्य भगवान करते हैं.हमारे और आपके वश की नही है.हमें बस एक ही काम करना है.शरनागत होना है.surrendered होना है.सपर्पित होना है प्रभु को और उसके बाद हमें नही सोचना कि हमारे कष्टों का क्या होगा.ये सोच हमारी नही है.ये सोच उनकी है जिनकी शरण हमने ले ली.शरण लेके भी अगर अपने बारे में हमें सोचना पड़ा तो बताईये शरण लेने का क्या फ़ायदा?

हाँ.यानि कि हमें विश्वास नही है उनपर.भगवान पर हमें विश्वास नही हुआ है.हम अब भी अपने हित के बारे में सोचते हैं.बताईये.कैसे मूर्ख हैं हम लोग.भगवान की शरण लेने का मतलब ये है कि चिंतारहित हो जाना.चिंताओं को परे उठाकर फेंक देना क्योंकि चिंताएं अब आपकी ,आपकी रही कहाँ.वो आपके हो गए.भगवान आपके हो गए तो बस आपकी चिंताएं भी उन्ही की हो गयी न.
योगक्षेमं वहाम्यहम्‌ 
बोलते जो है तो करते भी है.सिर्फ बोलते ही नही करते भी हैं.याद रखिये.

1 comment:

अरुणेश मिश्र said...

उपयोगी संदेश ।