Wednesday, May 5, 2010

On 2nd May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कल शाम मौसम कितना-कितना खुशनुमा था.है न.काली-काली घटाएं आसमान में अटखेलियाँ कर रही थी और उनके आगमन पर हवाएं भी खुश होकर ठंढक बरसा रही थी.कुछ बूँदें बरसात की भी नाचती-गाती आयी और धरती को का प्यासा गला तर कर गयी.तन ठंढा हो गया.मन को भी अच्छा लगा.

मन ठंढा हो गया ये नही कहूँगी क्योंकि जब परिस्थितियां प्रतिकूल होती हैं तो मन तपने लगता है.तब बरसात की चंद बूंदे उस तपन को.उस ताप को बुझा नही सकती है.ठंडा नही कर पाती है.मन तो संसार दावानल यानि संसार की वासनाओं से तपा हुआ है और मजे की बात ये कि मन में आनेवाली इच्छाओं पर किसी प्रकार का कोई निषेध नही है.ये इच्छाएं मन का दरवाजा तक खटखटाती नही हैं.बस बेधड़क प्रवेश कर जाती हैं और आप पर कब्जा कर लेती हैं.उससमय ऐसा लगता भी नही कि मन के द्वार पर भी एक non-breakable दरवाजा होना चाहिए ताकि देर-सवेर ये इच्छाएं मुँह उठाये प्रवेश न करने पाएं.ताकि आप disturb न हो.

पर अजीब बात ये है कि ये कामनाएं जादूगरनी है.आती बाहर से हैं पर मन,बुद्धि,ह्रदय सब पर अपना कब्ज़ा जमा लेती हैं और आप जो मालिक थे इन इच्छाओं के इशारे पर नाचने लगते हैं.मन जलने लगता है.जीवन बेकार बह जाता है.

देखिये मनुष्य देह ही एक ऐसी देह है जिसमे आप अपने मन पर दरवाजा लगा सकते हैं ताकि नापाक इच्छाएं उत्पन्न ही न हो और इस दरवाजे को बनाने का समान भगवान के पास है.याद रखिये भगवान से जुडकर ही.जी हाँ .एकमात्र यही तरीका है.कोई अन्य तरीका नही.कोई अन्य तर्क-वितर्क से आप तरीका पैदा नही कर सकते.कोई यम,नियम,आसान,प्राणायाम आपके मन पर वैसा अंकुश नही लगा सकता जिसप्रकार की भगवान से जुडकर आप अपने मन पर अंकुश लगा सकते हैं.

वरना ये मन आपको अंतहीन जन्म-मृत्यु के दुश्चक्र में फंसा कर ही रहेगा.याद रखिये.

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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब एक बहुत ही सुन्दर श्लोक सिर्फ आपके लिए.ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
"यद्दपि तपस्या,दान,व्रत तथा अन्य विधियों से पापमय जीवन के फलों का निरिषण किया जा सकता है किन्तु ये पुण्य कर्म किसी के ह्रदय की भौतिक इच्छाओं का उन्मूलन नही कर सकते.किन्तु अगर वो भगवान के चरणकमलों की सेवा करता है तो वो तुरंत ही ऐसे सारे कल्मषों से मुक्त कर दिया जाता है."

बहुत सुन्दर बात हैं.हम सब की ये वृत्ति है,प्रवृत्ति है कि हम सब पाप से डरते हैं.है कि नही.आप बताईये.पाप से कौन नही डरता.सब कोई पाप करने से डरते हैं.वो बात अलग है कि डरने के बावजूद पाप करते हैं.है न.क्यों?क्यों करते हैं पाप?क्योंकि आपके अंदर,हमारे अंदर रजोगुण और तमोगुण का बाहुल्य है.बाहुल्य मतलब प्रचुरता है.बहुत ज्यादा मात्रा में है.सतोगुण जो है backseat ले लेता है.पीछे हो जाता है.सतोगुण जिसको हमें विकसित करना चाहिए.प्रभु की सेवा में लगना चाहिए वो सबकुछ बहुत कम मात्रा में हमारे ह्रदय में है.

भगवान हमारे ह्रदय में हैं किन्तु उनकी सेवा करने का भाव हमारे ह्रदय में नही है.ये हमारी कमी है.तो हम पाप से डरते हैं किन्तु फिर भी पाप करते हैं.मन को समझा लेते हैं अरे मजबूरी में किया था.अरे झूठ बोला था कोई बात नही.इतना बड़ा पाप नही है.तो हम अपने आप को समझाते रहते है.समझाते रहते हैं.है न.दिल को समझाते  रहते हैं लेकिन पाप करना नही छोड़ पाते.और ये सोचते हैं कि चलो भाई इस पाप का किसी तरह निवारण किया जाए.किसी तरह ऐसा कुछ काम किया जाए कि हमारे पाप जो हैं उनकी संख्या में कमी आये.पाप समाप्त हो जाए तो और भी अच्छा.हर व्यक्ति कोई न कोई उपाय खोजता रहता है.

यहाँ बताया गया है इस श्लोक में कि तपस्या,दान,व्रत सभी विधियों से पापमय जीवन के फलों का जो निवारण है वो किया जा सकता है.जो आपने पाप किये हैं वो कर सकते हैं तपस्या से भी.देखिये जब कोई व्यक्ति तपस्या करता है तो उसके पापों का क्षय होता है.ये बात सही है.आप किसी भी प्रकार की कोई तपस्या करते हैं भगवान के नाम पर तो पाप क्षय होते हैं.लेकिन तपस्या से ह्रदय की जो वृत्ति है.हमारे चित्त की जो प्रवृत्ति है,जो tendencies  
हैं हमारी वो साफ़ नही होती हैं.

यानि मान लीजिए हमारा balance zero भी हो गया तो इस बात की कोई गारंटी नही होती है कि हम आगे पाप नही करेंगे.क्योंकि जो पीछे पाप किये थे वो भी ये सोचा था उस समय से पहले कि पाप नही करेंगे लेकिन किये.भगवान वैसे भी कहते भी हैं कि


काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥


भगवान कहते हैं कि ये जो है काम और क्रोध रजोगुण से उत्पन्न होते हैं.ये काम और क्रोध दोनों मिलकर ही नरक के द्वार तक पहुंचा देते हैं.काम,क्रोध,लोभ ये जो है क्या है?
नरकस्य द्वारं
नरक के द्वार हैं और भगवान कहते हैं कि ये रजोगुण से उत्पन्न होते हैं.तो हमारे अंदर देखिये कितने रजोगुण है.रजोगुण आपके अंदर है कैसे पता चलेगा?अगर आप अपने हर काम का फल चाहते हैं.अगर आपको लगता है कि मै ये काम करुण तो इसका फल क्या होगा.मै पढूंगा तो मेरे इतने नंबर आयेंगे.एकप्रकार से ये भी एक सकाम thinking है जिसमे कि हम कुछ आकांक्षाएं करते हैं.या मै जो है एक business setup करूँगा तो इसमे मुझे इतने करोड का फ़ायदा होना ही चाहिए नही तो मै failure कहलाउंगा.

तो सकाम कर्मी हैं हमलोग.तो अपने इस effort को जब हम पूरा नही कर पाते हैं.प्रयासों को पूरा नही कर पाते हैं.हमारी कामनाएं पूरी नही होती हैं तो क्रोध आता है.और क्रोध जो है क्या है
महाशनो महापाप्मा


काम और क्रोध है विनाशकारी है और महापापमय है.
विद्धयेनमिह वैरिणम्‌ ॥
ये वैरी हैं महा वैरी.दुश्मन हैं तो इसिलए हम पाप करते हैं.पापमय जीवन के फलों का हम कुछ न कुछ उपाय कर सकते हैं लेकिन वो उपाय जो हैं वो complete नही होंगे जब तक कि हा भगवान की सेवा से जुडेंगे नही.है न.प्रभु को आत्मसात नही कर लेंगे.तब तक हम कभी भी,कभी भी पाप के घेरे से बाहर नही निकल पायेंगे.पाप खत्म भी हो जायेंगे तो और नए पाप जुट जायेंगे.सोचिये इस बात के बारे में.
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कार्यक्रम में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:

"यद्दपि तपस्या,दान,व्रत तथा अन्य विधियों से पापमय जीवन के फलों का निरिषण किया जा सकता है किन्तु ये पुण्य कर्म किसी के ह्रदय की भौतिक इच्छाओं का उन्मूलन नही कर सकते.किन्तु अगर वो भगवान के चरणकमलों की सेवा करता है तो वो तुरंत ही ऐसे सारे कल्मषों से मुक्त कर दिया जाता है."
Remember this.याद रखिये मुक्त कर दिया जाता है.यानि मुक्त होता नही है मुक्त कर दिया जाता है.कौन है?कौन है जो मुक्त करता है?कौन है जो हमारी बेड़ियों को काटता है.कोई करता है.है न.हम मुक्त हो नही जाते हैं.Automatically नही होता है.कोई करता है. तो कौन करता है?प्रभु करते हैं जो आपके ह्रदय के अंदर बैठे हैं.वो करते हैं जब आप उनकी तरफ मुडते हैं तो.जब आप बाहर की तरफ मुडते हैं तो संसार आपके ह्रदय में आता है और भगवान आने देते हैं क्योंकि वो आपकी इच्छाओं की क़द्र करते हैं.क्यों?क्योंकि आप उनके अंश हैं.आप उनके बच्चे हैं.वो महास्वतंत्र है तो वो आपकी स्वतंत्रता जो भी आपको मिली है उसकी क़द्र करते हैं.सोचिये इस बारे में.

लेकिन तो भी हम संभलते नही है और पाप करते है.करते हैं.सबसे बडा पाप तो पैसे के कारण होता है.इसपर मुझे एक छोटी-सी कहानी याद आती है.

एक समय की बात है कि एक बहुत दरिद्र आदमी.बहुत गरीब आदमी,उसकी एक छोटी-सी दुकान थी,रहा करता था.एक banker था वो था.बेचारा वो जिसकी दुकान थी वो बहुत ही गरीब था दूसरा जो था  banker वो बहुत अमीर था.होना ये चहिये कि अमीर आदमी को खुश होना चाहिए और गरीब को दुखी लेकिन हुआ बहुत उल्टा था.जो गरीब आदमी था वो बहुत खुश था और जो अमीर आदमी था वो रात को बिस्तरों में करवटें बदलता रहता था.जबकि जो गरीब आदमी था वो बहुत सुखपूर्वक सोता था.

तो banker को ये बात हजम नही हुई.उसने कहा कि मै ये पता लगाऊं कि ये जो दरिद्र आदमी.गरीब आदमी जिसकी छुटकी-सी दुकान है ये इतना खुश कैसे रहता है.तो उसने कहा कि भाई मेरे घर आओ.जैसे उसको बुलाया तो उसको कहा कि भाई ये बताओ कि तुम्हारी सालाना आय कितनी है.कितना मिल जाता है.क्योंकि उसको लगता था कि खुशियाँ जो है वो सिर्फ और सिर्फ दौलत से ही खरीदी जा सकती है.गरीब आदमी ने कहा कि जी मै तो गिनता नही हूँ और मै परवाह भी नही करता हूँ.बस प्रतिदिन रहता हूँ और जैसा भी वो दिन आता है उस दिन का सामना करता हूँ.और अगले दिन की चिंता नही करता हूँ.बस प्रभु जी की दया से,भगवान की दया से काम चल जाता है.

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