Monday, May 17, 2010

On 15th May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.कुछ समय पहले की बात है मेरी बेटी एक मिट्टी के शेर के साथ खेलती थी.सोचिये शेर वो भी मिट्टी का.तो वो उस खिलौने शेर से ढेरों बातें करती थी.उसे पास लेकर सोती.जब खाने बैठती तो उसे भी साथ में बैठाती.स्कूल से आती तो शेर को ढूँढती पर एक दिन उसका वो मिट्टी का शेर उसी से टूट गया.मिट्टी मिट्टी में मिल गयी.ये देख के उसने जो रोना शुरू किया कि क्या बताऊँ.रोते-रोते,रोते-रोते बुरा हाल हो गया.लाख समझाया पर उसे समझ में ही नही आया.उसने खाना-पीना छोड़ दिया.बहुत समझाया कि दूसरा शेर ले आयेंगे पर उसे तो वही शेर चाहिए था.

खैर बहलाने-फुसलाने से कुछ देर में वो ठीक हो गयी पर मै सोच में पड़ गयी कि जब वो खिलौना टूटा था तो वो इतना क्यों रोयी.हमें तो रोना आया नही.हमें उसके दुःख में दुःख जरूर हुआ पर उस खिलौने के टूटने का कोई दुःख नही हुआ.क्यों?क्योंकि मेरी उस मिट्टी के खिलौने में कोई आसक्ति नही थी.कोई लगाव नही था.कोई मोह नही था.जबकि उसकी उस खिलौने में लगन थी.

तो छोटी-सी एक घटना फिर से सीखा गयी कि सुख और दुःख मोह के कारण होते हैं.हमें उसके दुःख में दुःख हुआ.क्यों?क्योंकि हमारा मोह वो बच्ची है.मोह का जो केंद्र है वो बच्ची है.मोह उससे था इसलिए वो दुखी हुई तो दुःख हुआ.लेकिन शेर टूटा तो कोई भी दुःख हमें हुआ नही.तो सोचिये.दुबारा से ये सीख मिली कि सुख और दुःख मोह के कारण होते हैं और जो मोह  के बंधन को काट देता है वो कभी भी दुखी नही होता.और मोह क्या है?मोह है इन्द्रियों का विषय.जब आप सोते है तो इन्द्रियां भी सोती है.तब आपको मोह नही होता है सोते समय.जब आप जागते हैं तो इन्द्रियों का विषयों से मिलन होता है और आप मोहित हो जाते हैं.तब आप सुखी और दुखी महसूस करते हैं खुद को.

तो जब आप अपनी इन्द्रियों को उनके विषय से मोड़ लेंगे तब आप इस अवस्था से ऊपर उठ जायेंगे.इस अवस्था से ऊपर उठाना भी एक कला है और इसी कला को सीखने के लिए ये मानव जीवन मिला है.
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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कार्क्रम का पहला श्लोक.बहुत सुन्दर श्लोक है.ध्यान से सुनिए.बहुत ही प्यारा श्लोक है.थोड़ा लंबा है लेकिन इसका एक-एक शब्द बहुत कुछ बोलता है.श्लोक का अर्थ:
"जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.उन्हें चाहिए कि क्रोधरहित होकर इन्हें शिक्षा देते रहे भले ही वे उनकी आज्ञा का पालन करने में कभी-कभी असमर्थ क्यों न हो.कर्ममूढ़ों को चाहिए कि सकाम कर्म से बचते हुए वो सभी प्रकार की भक्ति में लगे.यदि शिष्य,पुत्र और नागरिक को जो दिव्य-दृष्टि से रहित हो, कर्म के बंधन में डाला जाए तो भला वो कैसे लाभान्वित होगा.ये अंधे मनुष्य को गड्ढे में धकेलने जैसा है."


तो देखिये बहुत ही सुन्दर बात इस श्लोक में कही गयी है.बहुत ही सुन्दर instruction कि जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो.सबको अभिलाषा होती है क्या?सबको नही होती है क्योंकि कई लोगों का तो भगवान में ही विश्वास नही है तो भगवान के धाम में क्या विश्वास होगा.लोगों को कोई information ही नही है,कोई जानकारी ही नही है कि इन भौतिक लोकों के अलावा आध्यात्मिक लोक भी exist करते है.हैं.बकायदा मौजूद हैं.लोगों को ये जानकारी भी नही है कि हम भगवान के अंश हैं.कर्त्तव्य के रूप में भी हमें भगवान को ही पूजना चाहिए.भगवान की ही सेवा करनी चाहिए.


देखिये इस जगत में सुख है,दुःख है.सुख की प्रतीति होती है.सुख है नही.लगता है कि सुख है.तो इस जगत की जो विषय वस्तु जो है वो आनंद नही है.आनंद आध्यात्मिक लोक में प्राप्त होता है या इस लोक में भी जब आप भगवान से जुडते है तो आनंद प्राप्त होता है.इस एक आनंद की खोज में हम शुरू से लेकर अंत तक लगे रहते हैं.अंत तक.एक आनंद की खोज में.ऐसा सुख जो कभी खत्म न हो,उसकी खोज में.ऐसा सुख जिसे पाने के बाद कुछ और पाने की अभिलाषा शेष न रहे.ऐसी चीज.है कोई ऐसी चीज आपकी नजर में.


ऐसा क्या पकवान आपने बनाया कि जिसे खाने के बाद लगा कि अब कुछ और नही खाना.बस इससे खा लिया अब तमाम उम्र नही खायेंगे.ऐसा तो होता नही.बार-बार भूख लगती है.बार-बार पकाते है.बार-बार खाते हैं.या आपने सोचा कि ये फिल्म देख ली अब तो इसके बाद कोई फिल्म देखनी ही नही.इसमे आनंद ही आ गया.ऐसा तो होता नही.फिर कोई फिल्म आयेगी आप कहेंगे चलो देखने चलते हैं.सुना है बहुत अच्छी है.क्यों?क्योंकि आनंद पूरा मिला नही.क्योंकि आनंद है नही.time pass.time pass किया आपने.time pass को हम आनंद का नाम दे देते हैं.time pass करने के तरीकों में हम आनंद खोजते हैं.तो ये हमारी मूढता नही है तो और क्या है.मूर्खता ही तो है.


आनंद भगवान के पास है.भगवान ही आनंद है.ठीक है.लेकिन जो लोग भगवान में विश्वास नही करते उन्हें ये दिव्य स्वाद प्राप्त भी नही हो सकता.अब बिना मधु को चाटे आपको कैसे पता चलेगा कि मधु बहुत मीठा होता है.नही.नही पता चलेगा न.चाटना पडेगा.खाना पडेगा.experience करना पडेगा.तो दिव्य आनंद experience की वस्तु है.


तो भगवान यहाँ बताते हैं कि भाई 
जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.


ये एक जो पंक्ति है न.ये एक पंक्ति अगर आप समझ लेंगे न तो आप कभी किसी दुःख में दुखी होंगे नही और किसी सुख में आप उछालेंगे नही कि मै बहुत सुखी हो गया क्योंकि सुख और दुःख तो इस भाव सागर की लहरें हैं जो आपको कभी ऊपर उछलती है तो कभी निचे पटक देती हैं.तो क्या चीज है ये इसके विषय में हम चर्चा करते रहेंगे आपके साथ.आप बने रहिये हमारे साथ.


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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.बहुत ही प्यारा श्लोक.श्लोक का अर्थ:





"जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.उन्हें चाहिए कि क्रोधरहित होकर इन्हें शिक्षा देते रहे भले ही वे उनकी आज्ञा का पालन करने में कभी-कभी असमर्थ क्यों न हो.कर्ममूढ़ों को चाहिए कि सकाम कर्म से बचते हुए वो सभी प्रकार की भक्ति में लगे.यदि शिष्य,पुत्र और नागरिक को जो दिव्य-दृष्टि से रहित हो, कर्म के बंधन में डाला जाए तो भला वो कैसे लाभान्वित होगा.ये अंधे मनुष्य को गड्ढे में धकेलने जैसा है."


बहुत बड़ी बात.मतलब श्री भगवान को जीवन का परम लक्ष्य मानना क्या होता है ये?क्या होता है?यानि कि अपना जीवन भगवान के चरणों में समर्पित कर देना.यानि कि सिर्फ भगवान को तुष्ट करने के बारे में सोचना.अपने को तुष्ट करने के बारे में नही सोचना.याद रखिये आप प्रकृति हैं और भगवान पुरुष हैं.भगवान प्रकृति का भोग करते हैं.प्रकृति भगवान के भोग करने के लिए बनी है.
और हम जो हैं 
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं 
भगवान की हम परा प्रकृति है.समझ आयी बात.परा प्रकृति हैं.तो हमारा कर्त्तव्य क्या है?हमारा कर्त्तव्य है कि हम रसराज को रस प्रदान करे.प्रभु को रस प्रदान करे अपने efforts से.प्रभु को तुष्ट करने का प्रयास करे.No.1 और No.2 कि इस प्रयास में नुकसान तो है नही.जब आप ये प्रयास शुरू करेंगे तो  आप देखते हैं कि सांसारिक अवरोध बहुत ज्यादा आयेंगे.लोग आपको रोकने की कोशिश कर रहे हैं.लोग आपका मजाक उड़ा रहे हैं.लोग आपको पागल करार दे रहे हैं.


और आप कहते हैं कि नही मै पागल नही हूँ.चलो ये सब छोडता हूँ.लोगों के तानों को सुनने से क्या फ़ायदा.इन्ही के बीच में रहना है.इन्ही के जैसे बनके रहो.और आप अपने को सुखी करने का प्रयास करना प्रारम्भ करने लगे.भागने-दौडने लगे.भागते हैं.भागते हैं कि ये मिल जाएगा,वो मिल जाएगा.planning करते रहे.खूब planning करते रहे.मै ये किताब लिख दूं royalty मिल जायेगी.उससे जो है खर्चा चलेगा.या वहाँ factory लगा दूं जिससे इतना turn over आएगा कि मेरी सात पीढियां जो हैं वो बैठकर खाएंगी. 


तो ये जो व्यक्ति करता है सकाम कर्मी,रजोगुनी व्यक्ति तो वो व्यक्ति भगवान को प्राप्त नही कर पाता है.भगवान ने क्या बोला है यहाँ पर कि मेरे अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने कि कब भगवान की कृपा मुझ पर बरसेगी और कब मै आत्मसाक्षात्कार की तरफ और ज्यादा अग्रसर होउंगा.साथ ही जब आपको दुःख मिले तो आप ये न कहे कि ये तो भगवान ने कर दिया.मै तो इतनी पूजा-पाठ  करता था पर भगवान ने मुझे इतना दुःख दे दिया.ये कैसे भगवान हैं.अब किसी और भगवान के पास चलो.चलो एक भगवान हम खुद ही निर्माण कर ले उनका.


तो ये सब आप कब तक करते रहेंगे याद रखना.कितनी उम्र होती है नादानी करने की.अस्सी साल,सौ साल.उसके बाद तो खत्म हो जायेंगे.उसके बाद तो न नादानी करने का मौक़ा मिलेगा और न समझदारी से काम लेने का मौक़ा मिलेगा.आपको सीधा पशु जीवन प्राप्त हो जाएगा.तो उसमे क्या बुद्धिमानी है बताईये.पशु जीवन प्राप्त होगा और ये नही की वो अंतिम होगा.उसके बाद जाने कितनी बार करोड़ों बार,करोड़ों बार हमें चौरासी लाख योनियों में जाना पडेगा.


तो ये मनुष्य योनी ये मिली है आपको कि सुख हो चाहे दुःख हो.कितनी भी विपत्तियां आये सबको भगवान की कृपा समझ के ग्रहण करते रहिये और अपने जीवन को क्या करिये 
आनुकूल्येन कृष्णानुशीलनं भक्तिरुत्तमा
यानि अपने जीवन को इसप्रकार बना लीजिए कि हर चीज भगवान के अनुकूल हो,प्रतिकूल नही हो.अगर भगवान को follow करने के लिए आपके जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाए तो ऐसी परिस्थितियों को त्याग दीजिए.हटा दीजिए अपने रास्ते से.लेकिन हर वो काम कीजिये जो भगवान के इच्छा के अनुकूल हो.आगे क्या कहा गया है कि 
यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.


यहाँ शास्त्रों में instruction है समाज के लिए.हर व्यक्ति पिता बनता है.हर स्त्री माँ बनती है आमतौर पर और गुरु है तो अपने शिष्य को.कितने सारे teachers हैं.ये profession ये खुला है teachers का जिसमे लोग B.Ed करते हैं, M.Ed करते हैं , teachers बनते हैं.तो अगर पिता बन करके,राजा बन करके, teachers बन करके अपने अधिनस्थ,अपने ऊपर आश्रितों को भगवान के बारे में नही बता पाते हैं तो फिर उन्हें कितनी अधूरी जानकारी है.कुछ जानकारी अभी प्राप्त हुई ही नही बल्कि.कितनी दुखदायी स्थिति है.
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कार्यक्रम में आप सभी का फिर से बहुत-बहुत स्वागत है.हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.जिसका अर्थ है:
 "जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.उन्हें चाहिए कि क्रोधरहित होकर इन्हें शिक्षा देते रहे भले ही वे उनकी आज्ञा का पालन करने में कभी-कभी असमर्थ क्यों न हो.कर्ममूढ़ों को चाहिए कि सकाम कर्म से बचते हुए वो सभी प्रकार की भक्ति में लगे.यदि शिष्य,पुत्र और नागरिक को जो दिव्य-दृष्टि से रहित हो, कर्म के बंधन में डाला जाए तो भला वो कैसे लाभान्वित होगा.ये अंधे मनुष्य को गड्ढे में धकेलने जैसा है."

यानि की मनुष्य जो दृष्टिविहीन है उसे बजाये इसके कि हाथ पकड़ करके सड़क पार कराएं.उसकी मंजिल तक पहुंचाए.आप उसे गड्ढे में धकेल दे.तो ऐसा ही है.हम सब के पास ज्ञान चक्षु नही है.ज्ञान को देख सके ऐसी आँखें नही है. है न.एक छोटे से बच्चे के पास कहाँ से वो आँखें होंगी.सोचिये.एक छोटे से बच्चे के पास वो आँखें नही है.वो माँ-बाप पर छोटी से छोटी चीजों के लिए dependent होता है.हर instruction के लिए dependent होता है.है कि नही.माँ-बाप देखते हैं उसका भला-बुरा.

अगर आज के माँ-बाप यही सोचते रहे कि मेरा बच्चा कैसे स्केटिंग सीखे,swimming सीखे.ये सीख ले वो सीख ले और उस पर बहुत घमंड करते रहे.music भी सीख ले,tuition भी कर ले,पढाई भी कर ले.All rounder बन जाए.चैम्पियन बन जाए.Sports में भी आगे हो,cricket में भी आगे हो.यहाँ भी आगे हो,वहाँ भी आगे हो.

अगर सब जगह आगे हो भी जाए तो क्या मिलेगा.सिवाए इसके आपका जो घमंड है,आपका जो ego है उसकी मालिश होगी और क्या होगा.और तो कुछ होगा नही.क्योंकि ज्या से ज्यादा पचास या अस्सी या सौ इन वर्षों के बीतते ही सारा खेल खत्म हो जाएगा.जिसको आगे बढाने के लिए आप इतना यत्न कर रहे थे.इतना कमा रहे थे.इतने पाप कर रहे थे कि उसे अच्छी education दे सकूं.ये करूँ,वो करूँ.बढ़िया स्कूल में जाये. Prestigious   स्कूल में जाए.बगल का स्कूल है.बेशक बहुत Prestigious नही है पर पढाई-उढाई उसमे भी अच्छी होती है.बहुत नाम-वाम नही है तो क्या.बहुत बड़ा नाम लेकर क्या करोगे पड़ोसियों को जलाओगे यही न.रिश्तेदारों को के बीच में घमंड से कह सकोगे, अपने सहेलियों को अपने सहेलों को कि हमारा बच्चा इस स्कूल में पढ़ता है.ये सीखता है वो सीखता है.

लेकिन यहाँ बताया गया है कि अगर कोई पिता और माँ अपने बच्चे को भगवदभावनाभावित न बना पाए.उसके अंदर वो बीज न डाल पाए.भक्ति का बीज.उसके अंदर भगवान के प्रति अनुराग न पैदा कर पाए.प्रेम पैदा न कर पाए तो तो ऐसे माँ-बाप failure है,असफल है ,बेकार है.क्यों?क्योंकि वो अपने बच्चे को जान बूझकर गड्ढे में धकेल रहे हैं और मजे की बात ये है कि वो ऐसा करते हुए फक्र महसूस कर रहे हैं.घमंड  हो रहा है कि मै अपने बच्चे को भगवान से कितने दूर रखे हहुआ हूँ.भगवान तो out dated subject हो गए,topic हो गए.है कि नही.ये नजरिया रहता है.

तो यहाँ बताया गया है कि आप अगर पिता है,माँ हैं तो सबसे पहले तो यही कर्त्तव्य है आपका कि आप भगवदभावनाभावित हो.भगवान से प्रेम करें और फिर वही प्रेम बच्चे में डालने का प्रयास करे.बच्चे को बजाये इसके कि यहाँ-वहाँ की rhyme  सिखाए.यहाँ-वहाँ के poems सिखाए.उसे अंग्रजी poem सिखाए,उसे कुछ अपने culture से,अपनी संस्कृति से दीजिए.कुछ दीजिए.हम हर जगह भिखारियों की तरह हाथ फैला के खड़े हो जाते हैं.कभी हम बाहर से पैसे माँगते हैं.अब संस्कृति भी माँगते हैं.उधार की संस्कृति और उस पर गर्व करते हैं.जबकि हमारे अपनी संस्कृति को बाहरवाले अपनाते हैं.और तब हम कहते हैं कि हाँ इन्होने अपनाया तो जरूर अच्छी होगी.अगर इन्होने कहा कि अच्छी है,बाहरवालों ने,विदेशवालों ने तो अच्छा है नही तो कहाँ अच्छा है.

तो अपनी संस्कृति पर,अपने शास्त्रों पर गर्व करना सीखने.वहाँ सब कुछ है.सब कुछ.आपकी हर समस्या का तोड़ है.आपकी हर समस्या का.आपको ये जानकारी दी गयी कि आप आत्मा है.बताईये और कहाँ ये जानकारी उपलब्ध है.कही नही.आपको इस भारत देश में रहते हुए ये जानकारी उपलब्ध है कि आप आत्मा हैं और भगवान के अंश है.सोचिये.तो क्या ये आपका कर्त्तव्य नही बनता कि आप अपने बच्चों को ये सारी शिक्षाएं दे.बेशक starting में ऐसा लगे कि वो disobedient  हैं.वो आपकी बात नही मान रहे हैं.interest नही ले रहे हैं लेकिन धीरे-धीरे ये कीटाणु अपना असर कर ही जाएगा और और एक दिन भक्ति उनके अंदर जरूर फलेगी,फूलेगी.

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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.तो हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:

"जिसे ईश्वर के धाम जाने की अभिलाषा हो उसे चाहिए कि श्री भगवान के अनुग्रह को जीवन का परम लक्ष्य माने.यदि वो पिता है तो अपने पुत्रों को,यदि गुरु है तो अपने शिष्यों को,यदि राजा है तो अपनी प्रजा को उसी प्रकार शिक्षा दे जैसे कि भगवान देते हैं.उन्हें चाहिए कि क्रोधरहित होकर इन्हें शिक्षा देते रहे भले ही वे उनकी आज्ञा का पालन करने में कभी-कभी असमर्थ क्यों न हो.कर्ममूढ़ों को चाहिए कि सकाम कर्म से बचते हुए वो सभी प्रकार की भक्ति में लगे.यदि शिष्य,पुत्र और नागरिक को जो दिव्य-दृष्टि से रहित हो, कर्म के बंधन में डाला जाए तो भला वो कैसे लाभान्वित होगा.ये अंधे मनुष्य को गड्ढे में धकेलने जैसा है."

बहुत बड़ी बात है देखिये.आपको हमारे शास्त्र बार-बार आगाह करते हैं,चेतावनी देते हैं कि सकाम कर्म से मत बंधो.सकाम कर्म मतलब ऐसा कर्म मत करो जिसमे आपको फल की बहुत ज्यादा इच्छा हो.लोभ हो फल का.लालसा ही लालसा हो.इन्तजार हो.ऐसे कर्मो में मत फंसिए.अगर ऐसा कर्म आपको करना भी पड़े तो उसके फल को आप स्वयं भोगने का प्रयत्न मत कीजिये.उसके फल का आप इन्तजार मत कीजिये.उसके फल से बचिए.फल मिला तो उसे भगवान के लिए,भगवान की सेवा में लगाईये.part of it.एक अंश,एक बड़ा अंश भगवान की सेवा में लगाईये.बाकी उतना रखिये कि जिससे आपका गुजारा चल जाए.ये नही कि वो फल मुझे मिले इसके लिए मै भागूं,दौडूँ,खूब मेहनत करूँ,खूब पसीने बहाऊं.अपना समय उसमे झोंक दूं.

समझने का प्रयास कीजिये.एक-एक सेकेण्ड,एक-एक मिनट बहुत कीमती है आपके लिए क्योंकि जब आपकी उम्र खत्म हो जायेगी तो ये सेकेण्ड,ये लम्हे,ये मिनट,ये घंटे,ये दिन,ये हफ्ते,ये मास,ये वर्ष दुबारा लौट के आपके जीवन में कभी नही आयेंगे.तो अभी एक-एक लम्हा बहुत important है.बहुत important है.इसमे आप प्रभु को प्राप्त कर सकते हैं और यहाँ यही बताया गया है.जो लोग आप पर आश्रित हैं.पिता पर बच्चा आश्रित होता है,गुरु पर उसका शिष्य.शिष्य अपने गुरु का मुख देखता है.गुरु ने जो कह दिया उसको वो अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता है.सोचिये.बहुत बड़ी बात है.

घर में हम कई बार अपने बच्चे को हम बहुत कुछ समझाने का प्रयास करते हैं.बताते की कोशिश करते हैं.जब वो नही मानता है तो आप उसे उसकी teacher के पास ले जाते हैं और बोलते हैं कि mam इसे समझाईये न.ये हमारी बात तो सुनता नही है.आपके बात बहुत अच्छे से सुनता है.तो  teacher समझाने की कोशिश करती है.तो teacher बच्चे के दिमाग पर बहुत अच्छा impression छोड़ सकती है.अगर वो बच्चे को भगवान से दूर कर दे और कहे कि तुम ऐसी पढाई करो जिससे maths में तुम्हारे 100% marks आये.science में तुम आगे बढ़ जाओ.यहाँ आगे बढ़ जाओ,वहाँ आगे बढ़ जाओ.पर एक बात नही बतायी कि अरे भक्ति में आगे बढ़ जाओ.बेटा अगर भक्ति करोगे तो भगवान की कृपा प्राप्त होगी.भगवान की कृपा से बड़े-बड़े जो प्रारब्ध है हमारे,जो destiny है हमारी,जो horrible destiny है.कई बार बड़े भयंकर ग्रह हैं वो सब शांत हो जाते हैं.भगवान की कृपा इतनी अनोखी होती है कि भगवान लिखे हुए को भी मिटा देते हैं.समझ रहे हैं आप.

तो उस कृपा को invoke करना.उसे अपने जीवन में लाना ये बताए गुरु.तो तो है भाई
गुरु ब्रह्मा गुरु महेश्वर
वो जितना बोला गया है.तब तो है.लेकिन अगर यही बताया जाय कि चलो जी science की lab में.यहाँ ये काट दो तो वहाँ वो काट दो.ये भी जरूरी है लेकिन इतना जरूरी नही है.अगर कोई व्यक्ति अंगूठा छाप है मान लीजिए लेकिन वो भगवान की भक्ति में बहुत आगे है.बहुत आगे है.दिन-रात उनके लिए आँसू बहाता है और जब उसकी मृत्यु आये तो वो भगवान को याद करता-करता ही मरे.चाहे उसके पास कोई डिग्री नही है.वो कोई बड़े-बड़े MNC में काम नही करता.उसके पास उसके घर में A.C. भी नही है.हो सकता है झोपड़ी में रहता हो.लेकिन याद करते हुए किसे मरे.भगवान को याद करते हुए मरे तो उसका जीवन सफल है.क्यों?क्योंकि भगवान कहते हैं.

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌ ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥


कि जो अंतकाल में मुझे याद करते हुए मरता है वो मेरे धाम को प्राप्त होता है.मुझे प्राप्त होता है इसमे कोई संशय नही.तो सोचिये.ये है छलांग लगाना.एक ही बार में छलांग लगाना.एक ही जन्म में करोड़ों-करोडो जन्मो के बंधन को तोड़ पाना.तो सबसे important information है.सबसे बड़ी जानकारी वो अपने बच्चों को दीजिए.अपने शिष्यों को दीजिए ताकि उनका जीवन सफल हो जाए.
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