Monday, May 10, 2010

On 8th May'10 By Premdhara Parvati Rathor

नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.एक दिन रास्ते में एक बाँस और फूँस की बनी झोपड़ी देखी जिसके दरवाजे पर लिखा था -
"बिना आज्ञा अंदर आना सख्त मना है."
मैंने सोचा अरे घास-फूँस की बनी ये झोपड़ी इसे तो हवा ही उड़ा ले जायेगी तब क्या होगा लेकिन सच तो यही है कि वहाँ भी लोग privacy चाहते हैं.आमतौर ये जो board हैं न कि बिना आज्ञा के अंदर आना सख्त मना है,ये board तकरीबन गाहे-बगाहे हर घरों के आगे दिख ही जाता है.और पता चल जाता है कि एक आम आदमी का वहाँ स्वागत नही है.

वैसे जब हम आज्ञा की बात करते हैं तो सोचिये उस घर में प्रवेश करते समय चीटियाँ तो किसी से कोई आज्ञा नही लेती.चूहे,मकड़ी,कॉकरोच,छिपकली,बिल्लियाँ बेचारी दरवाजे पर लिखी चेतावनी को पढ़ ही नही पाती.न ही दरवाजे पर call well !बजती है और न ही वो दरवाजा खटखटाती है.बस घुसी चली आती है.और मजे की बात है कि मकान मालिक को कभी भी नही लगता कि अरे मेरी आज्ञा के बिना ये लोग मेरे घर में कैसे घुस आये.हालाकि जब अति हो जाती है तो कोई परेशान भी हो जाता है और तब तरह-तरह के उपाय अपनाता है ताकि उसका घर उसी का रहे बाकी प्राणी वहाँ न दिखे.लेकिन तो भी अक्सर वश नही चलता.तो हालात से समझौता करना पडता है.है कि नही.

वास्तव में एक इंसान दूसरे इंसान से डरता है.वो जानवरों पर,कीट-पतंगों पर भरोसा कर सकता है पर दूसरे आदमी पर भरोसा नही कर पाता.और बात भी सच है.आपके भरोसे को कीड़े-मकोड़े नही बल्कि इंसान ही लूटते हैं और वो भी इसलिए कि लोग सोचते हैं कि एक ही जीवन है.पूरा दम लगा लो इसमे मजे लेने हैं चाहे इसके लिए चोरी की जाए या किसी को मार दिया जाए.कोई कर्म और कर्मफल पर विश्वास नही करता.कोई नर्क से नही डरता.कोई पुनर्जीवन पर भी विश्वास नही करता.उसके आगे भी question mark(?).

ये सब इसलिए क्योंकि हम अज्ञान से घिरे हैं.कही भी शास्त्रों को पढाया नही जाता.समाज में नैतिक मूल्य खत्म हो रहे हैं और इसीलिए हम सब खतरे में हैं.है कि नही.


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कार्यक्रम में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब हम आपके लिए लाये हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक ध्यान से सुनिए.बहुत ही सुन्दर अर्थ.बहुत ही प्यारी बात इस श्लोक में कही गयी है.श्लोक का अर्थ:
"भू शब्द कर्म क्षेत्र का द्योत्तक है.ये भौतिक शरीर जो मनुष्य के कर्मों का फल होता है,उसका कर्म क्षेत्र है और ये उसे झूठी उपाधियां देता है.अनादिकाल से मनुष्य को अनेक भौतिक शरीर प्राप्त होते रहे हैं जो भौतिक जगत सबंधन के मूल है.यदि कोई मनुष्य मूर्खतावश क्षणिक सकाम कर्मों में अपने को लगाता है और इस बंधन को समाप्त करने की तरफ नही देखता तो उसको कर्मों का क्या लाभ मिलेगा."

देखिये हमारे शास्त्र को.आप इतने समय से कार्यक्रम को सुन रहे हैं.आप देखते हैं कि नए-नए श्लोक आते हैं आप तक और हर श्लोक आपसे यही गुजारिश करता है,यही बताता है आपको कि इससमय जिप्रकार की मनःस्थिति में,परिस्थिति में आप हैं ,जिसप्रकार आप सोचते हैं वो गलत है.ये सोचना कि मै अपने काम को अगर अच्छे ढंग से कर लूं तो यही भक्ति है.या सोचना कि अपने बच्चों की अच्छी देखभाल करले यही भक्ति है.

देखिये ये श्लोक यहाँ पर एक बार फिर से आपको ये चेतावनी दे रहा है कि ये जो शरीर है वो मनुष्य के कर्मों का फल होता है.दो बात हो गयी भातिक शरीर.देह भौतिक है ,जड़ है.भौतिक क्या होता है?भौतिक यानि कि जड़ है.यानि ये पञ्च महाभूत से बना हुआ शरीर है जिसमे की कोई चेतना अपने-आप में नही होती.जब उसके अंदर भगवान का अंश,भगवान की पराशक्ति आ जाती है तो ये शरीर चेतनामय होता है.वरना इस शरीर में चेतना नही होती.

तो ये जो शरीर है कर्मक्षेत्र है जीव का जो कि भगवान का अंश है.जो कि भगवान से ये इच्छा करता है कि मुझे भी भोग करना है जैसे कि आप यहाँ पर अपने भगवद्धाम में करते है.आप ही के लिए सब लोग लगे रहते हैं.आप भोग करते हैं मुझे भी भोग करना है.जैसे आप ने देखा होगा कि एक छोटा बच्चा जब वो देखता है कि उसके पापा बहुत ही skillfully,बहुत ही अच्छे तरीके से drive करते हैं और वो बच्चा बगल की सीट पर बैठा होता है अपनी माँ के साथ या वैसे ही तो आप देखेंगे कि वो जिद करता है.वो कहता है कि मुझे भी steering wheel संभालनी है.मै भी गाड़ी चलाउंगा.मै भी ये करूँगा.मै भी वो करूँगा.वो बहुत मचलने लगता है तो उसके पापा कई बार उसे अपनी गोद में लेकर बैठ जाते हैं कि ठीक है लो.चलाते वो हैं.Clutch में उनका पैर है ,break पे उनका पैर है लेकिन बच्चा सोचता है शायद मै चला रहा हूँ.ये हालत होती है.

भगवान बहुत कृपालु हैं.भगवान देखते हैं कि जीव में भोग करने की इच्छा है तो वो ऐसा माहौल तैयार कर देते हैं जहाँ हमें शरीर धारण करना पडता है.शरीर में भी भगवान देखिये सांसों के रूप में आते-जाते रहते हैं.है न.भगवान कहते हैं कि मै आपके अंदर प्राण हूँ.वैश्वानल अग्नि हूँ.आपकी इन्द्रियों का स्वामी हूँ इसीलिए हृषिकेश कहलाता हूँ.तो बड़ी सारी informations भगवान देते हैं.इसप्रकार से पूरी तरह से आपको अपने control में रखते हैं लेकिन तो भी स्वतंत्रता दे रखी है.कुछ हद तक दे रखी है.उसका जब हम दुरूपयोग करते हैं तो हमें झूठी उपाधियों में फंसना पडता है.

शरीर मिला है.भौतिक शरीर मिला है.क्यों?क्योंकि हमने ही चाहा था.ये हमारी चाहत का परिणाम है.ये हमें हमारी चाहत के परिणाम स्वरुप मिला है.आप कहेंगे कि नही भगवान जो हैं क्यों चाहते हैं कि हमें भौतिक शरीर मिले.हमें दुःख मिले.आप बिल्कुल सही कहते हैं.भगवान नही चाहते हैं कि आपको भौतिक शरीर मिले और आपको दुःख मिले लेकिन ये आपकी अपनी चाहत है जो आपको यहाँ तक ले करके आयी.भगवान की चाहत नही है.भगवान तो चाहते है कि आप वापस आये.इसीलिए वो कई बार स्वयं आती हैं.अवतार लेते हैं.ऊपर से नीचे आते हैं.कई बार अपने भक्तों को भेजते हैं.अपने परिकरों को भेजते हैं आप तक message पहुंचाने के लिए.वो तो ये चाहते हैं लेकिन हम क्या चाहते हैं.हम चाहते हैं भोग करना.इसीलिए फंसते चले जाते हैं.
देहों के चक्कर में फंसते चले जाते है और प्रभु से निरंतर दूर होते चले जाते हैं.

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कार्यक्रम में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे थे बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:
"भू शब्द कर्म क्षेत्र का द्योत्तक है.ये भौतिक शरीर जो मनुष्य के कर्मों का फल होता है,उसका कर्म क्षेत्र है और ये उसे झूठी उपाधियां देता है.अनादिकाल से मनुष्य को अनेक भौतिक शरीर प्राप्त होते रहे हैं जो भौतिक जगत सबंधन के मूल है.यदि कोई मनुष्य मूर्खतावश क्षणिक सकाम कर्मों में अपने को लगाता है और इस बंधन को समाप्त करने की तरफ नही देखता तो उसको कर्मों का क्या लाभ मिलेगा."

देखिये बड़ी बात है.यहाँ आपको बताया गया है कि मनुष्य के कर्मों का फल होता है ये भौतिक शरीर.किसप्रकार का शरीर हम धारण करेंगे ये हमारे कर्म पर निर्भर करता है.हम मनुष्य का शरीर धारण करेंगे या किसी कीट-पतंग का,कि पेड़-पौधे का.क्या शरीर हमें मिलेगा किसप्रकार की प्रवृत्ति हमारी रही है पूरे जीवन भर,क्या कर्म हमने करे हैं,क्या स्वभाव हमारा रहा है,क्या सोच हमारी बन गयी है,इस पर निर्भर करता है.सोचिये.मतलब कितना बड़ा खतरा है.आप सोचिये कि आत्मा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा यही हो सकता है कि वो चौरासी लाख योनियों में फंस जाए.इससे बड़ा ख़तरा और क्या है.

आगे श्लोक के अर्थ में बताया गया है कि
अनादिकाल से मनुष्य को अनेक भौतिक शरीर प्राप्त होते रहे हैं जो भौतिक जगत सबंधन के मूल है.
बहुत बड़ी बात है.ये देखिये.ये जो भौतिक जगत है ये पाँच तत्त्वों से बना हुआ है.है न.इसमे फिर दस इन्द्रियां हैं.दस उनके विषय हैं.ये सारी चीजें हैं भौतिक जगत में.हम जब आ जाते हैं और इसमे रम जाते हैं तो हमें शरीर धारण करना पडता है क्योंकि यहाँ रहने के लिए भगवान देखते हैं कि अरे ये तो यही रमना चाहता है.यही रहना चाहता है.तो भगवान कहते हैं तो ठीक है इसे अन्य शरीर दे दिया जाए इसके कर्म के मुताबिक़.जैसा कर्म किया है उसके अनुसार.तो प्रकृति जो है अपना कार्य करने लगती है और हमें विभिन्न प्रकार के शरीर धारण करने पड़ते हैं.और क्योंकि शरीर धारण करते हैं इसलिए जगत से बंध जाते है.

इसका अर्थ ये हुआ कि हमें शरीर धारण नही करने चाहिये.है न.इसके beyond देखने का प्रयास कीजिये कि यह श्लोक कह क्या रहा है.इस श्लोक में एक चर्चा ये उभर कर आ रही है.एक बात,एक point,एक मुद्दा ये उभर करके सामने आ रहा है कि हम इस जगत के हैं नही वास्तव में.मगर क्योंकि हम भगवान से अलग हो जाते हैं.क्योंकि इच्छा करते हैं उनसे अलग हो करके भोग करने की.भगवान कहते हैं
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्‌ ।
भोक्ता मै हूँ.I am the enjoyer लेकिन हम कहते हैं no, i am the enjoyer.मै हूँ भोक्ता.मै भोगूंगा और आपको भी माध्यम बनाउंगा अपने भोग तक जाने का.

इसीलिए आप देखते हैं कि हमारी जो tendencies हैं,हमारी जो प्रवृत्ति है वो क्या है?जब भी हमें कही धार्मिक स्थल जाना होता है.हम जाते है भगवान के आगे फ़रियाद करने तो बोलते हैं कि सुख देना,शांति देना,हमारे बच्चे सुखी रहे,घर में शांति रहे, कोई क्लेश न हो.इसतरह की कई प्रकार की बातें करते हैं पर कभी नही कहते कि हे प्रभु ये जो शरीर है न इसे दुबारा न धारण करूँ.आप मुझे अपनी प्रेमाभक्ति देना.कुछ नही चहिये.मुझे अपना बना लो.कभी नही कहते.

तो हमारी हालत है कंजूस जैसी.कैसे कंजूस जैसी?ऐसा कंजूस जिसको सब कुछ मिला लेकिन उसने उसका अर्थ  नही समझा.जैसे कि एक कंजूस था उसने अपना सबकुछ बेच दिया.सब कुछ और उसने एक बड़ा-सा सोनी का गोला खरीदा.उसे जाकर के अपने घर की दीवार के सामने एक गड्ढा खोद करके गाड़ दिया.तो रोज वो वहाँ जाता था और उसको देखता था.फिर जाता था फिर देखता था.ऐसी ही करती-करते उसकी इस आदत को एक श्रमिक ने देख लिया.वो काम कर रहा था देख लिया कि ये रोज आता है,क्या देखता है और फिर चला जाता है.तो उसने कहा कि मै भी देखता हूँ.तो जब वो आदमी चला गया तो वो श्रमिक जो था वो वहाँ गया और उसने जाकर के गड्ढा खोदा.गड्ढा खोद करके उसने देखा कि अरे इतना बड़ा सोने का जो ढेर यहाँ मौजूद है तो उसने उसे चुरा लिया और वो ले गया.

अगले दिन फिर से वो कंजूस आया और उसने फिर से गड्ढा खोदा.देखा वहाँ तो कुछ भी नही है.अब वो अपने बाल नोचने लगा.आंसू बहाने लगा.रो-रो करके उसने जो है पूरी दुनिया अपने सर पर उठा ली.एकदम से उसके पड़ोसी लोग आये.सबने कहा कि क्या बात है?तुम क्यों रो रहे हो?तो उसने कहा कि मैंने यहाँ सोना रखा था.इतना सारा सोना रखा था और अब तो देखो कुछ भी नही है यहाँ पर तो मै क्या करूँ.मै रोऊँ नही तो क्या करूँ.मैंने अपनी पूरी जिंदगी की कमाई इसमे लगा दी.अपन घर-बार सब कुछ बेच दिया और एक सोना जो है इतना बड़ा खरीदा और यहाँ डाल दिया.

तो उसके पड़ोसियों ने कहा,उसके रिश्तेदारों ने कि अरे!अरे! ऐसा करो कि तुम जाओ और एक बड़ा-सा,उसी size का पत्थर उठा के ले आओ.उस गड्ढे के अंदर वो पत्थर डाल दो.तो उसने कहा-क्यूं?अरे इसलिए कि क्योंकि वो सोना वहाँ पड़ा रहा और तुमने उस सोने का कोई उपयोग किया ही नही.Gold मिला था तुम्हे और तुमने उसका कोई उपयोग किया ही नही.हाँ तो तुम ये पत्थर डाल दो और ये सोचो कि सोना वहाँ पड़ा है.इससे क्या होगा कि तुम्हे वही फ़ायदा होगा क्योंकि तुम जब सोना था तो भी तुमने उसका इस्तेमाल किया नही तो अभी पत्थर है तो इसका इस्तेमाल तुम करोगे नही क्योंकि इसका इस्तेमाल कुछ हो नही सकता है.मगर तुम्हे अच्छा लगेगा कि मेरी जो दिनचर्या है वो जारी है.

तो ये हमारा और आपका हाल है.हमें सोने से भी बेहतर बहुत सुन्दर जिंदगी मिली है.है कि नही.लेकिन हम इसका इस्तेमाल नही करते हैं.हम नही जानते इसके महत्त्व को.हम नही जानते कि इसी जिंदगी में हमें भगवान  मिल सकते हैं.मिल सकते हैं.दृढ विश्वास कि हमें इस जिंदगी में भगवान मिल सकते हैं और इसका सदुपयोग करना चाहिए प्रभु को प्राप्त करने के लिए.तो हीरे जैसा हमें ये जन्म मिला और हमने इसे गड्ढे में डाल दिया और गड्ढे में डाल करके ये देखते हैं हम भी उस कंजूस की तरह.बस देखते हैं,संवारते है,मस्ती करते है.वहाँ ये cold-drink पीना है वहाँ पे ये मोबाइल फोन खरीदना है.यहाँ पर मेरे घर में ये होना चाहिए.वो होना चाहिए.

इसलिए थोड़े न मिला है आपको हीरा जन्म.हीरा जन्म मिला था आपको self realization के लिए.आत्म-साक्षात्कार के लिए.प्रभु से बातचीत करने के लिए.उन्हें समझने के लिए क्योंकि इसी जन्म में तो आप उन्हें समझ सकते हैं लेकिन हमने उसे गवां दिया.तो अभी भी सचेत हो जाईये कुछ बिगडा नही है याद रखिये.

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