Monday, July 19, 2010

Spiritual Program On 17th July'10 By Premdhara Parvati Rathor(104.8FM)

104.8 FM पर मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप.कभी-कभार आपके बच्चे एक-दूसरे की पीठ पर उँगलियों से कुछ लिखते हैं और जिसकी पीठ पर लिखा उससे पूछते हैं कि बताओ-बताओ मैंने क्या लिखा.अगर उनसे कुछ गलत हो जाता है.गलत लिख बैठते हैं तो फिर वो उसे मिटाने लगते हैं.Sorry-sorry फिर से लिख रहा हूँ गलत लिख दिया.

ये खेल देखकर मुझे बहुत हँसी आती है.ये सोचकर कही तो कुछ लिखा नही था फिर मिटाया क्या.मिटाते तो उसे हैं न जहाँ कुछ अक्षर साफ़ नजर आते हैं.पर यहाँ मिटाने की जरूरत क्या थी.फिर होता क्या है कि पीठ पर उँगलियों से लिखते-लिखते बच्चे भूल जाते हैं कि वो पेन से नही उँगलियों से लिख रहे हैं.उन्हें लगता है कि सच में गलती हो गयी और इस गलत अक्षर को रगड़-रगड़ कर मुझे मिटाना पडेगा.है न.

बस ठीक इन बच्चों जैसी हमारी हालत है.हमारी हालत भी यही है.हम इस माया संसार में इतने रम जाते हैं.इतने मशगूल हो जाते हैं कि भूल ही जाते हैं कि हम यहाँ सदा के लिए नही आये.परछाई जैसा ये संसार और यहाँ हम सुख ढूँढते हैं.ढूँढते-ढूँढते भूल ही जाते हैं कि जब time up हो जाएगा तो सब कमाया,सब बटोरा हुआ धरा-का-धरा रह जाएगा.आपके काम आएगा नही.आपके सारे प्रयास यकीन मानिए बेकार हो जायेंगे.सारे प्रयास.सारे प्रयास जो आपने किये पूरी जिंदगी भर,वो सब बेकार.

बताईये सच बात है कि नही.तो असलियत का सामना कीजिये और असल को खोजिये ताकि आपका जीवन असलियत में सार्थक हो सके.
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कार्यक्रम में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है.तो चलिए कार्यक्रम में लेट हैं आज का पहला श्लोक.बहुत-ही सुन्दर श्लोक है.बहुत ही प्यारा श्लोक है.श्लोक का अर्थ:
"हे राजा भगवान नाम का कीर्त्तन बड़े-से-बड़े पापों के फलों को भी समाप्त करने में सक्षम है.इसीलिए संकीर्त्तन आंदोलन का कीर्त्तन सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सबसे शुभ कार्य है.कृपया इसे समझने का प्रयास करे जिस से अन्य लोग इसे गंभीरतापूर्वक इसे ले सके. "

देखिये कितनी सुन्दर बात यहाँ बतायी गयी है.


बड़े-से-बड़े पापों के फलों को भी समाप्त करने में सक्षम.

आमतौर पर हमसे कहा जाता है कि भाई अगर आप गंगा जी में स्नान कर लोगो तो आपके पाप नष्ट हो जायेंगे.आप देखते हैं कि हरिद्वार जैसे इलाकों में और बाकी जहाँ भी गंगा जी बहती हैं वहाँ लोग जाने के लिए क्या-क्या नही करते.हम जाए और एक डूबकी मार लेंगे तो हमारे पाप नष्ट हो जायेंगे.जब वो डूबकी मारते हैं तो कहीं से उन्हें अपने पापों का ध्यान नही आता कि हमने पाप क्या किये हैं.वो enjoy करते हैं.जब वो डूबकी मारते हैं तो भी बड़ा आनंद लेते हैं.पूरा परिवार जब एक साथ डूबकी मारता है तो ऐसा लगता है उनलोगों को कि जैसे ये पिकनिक हो रही है.पिकनिक हो रही है.यहाँ हम enjoy करने आये हैं.

कोई नही सोचता कि हम यहाँ पर आये हैं तो अब हमारे पाप अगर नष्ट हो जायेंगे तो हम दुबारा पाप न करे.कोई नही सोचता है.बस लोग आनंद ले रहे होते हैं उस समय भी.लेकिन वहाँ जाते वक्त वो ये जरूर सोचते हैं कि चलो वहाँ जाए तो कुछ हमारे पाप खत्म हो जायेंगे.

तो इतनी दूर जाना.छुट्टियाँ लेना , रेलगाड़ी में टिकट book करना और वहाँ जो भीड़ होती है उस भीड़ में भी धक्का-मुक्की कर घाट पर पहुँचना.यानि कितना कुछ होता है ऐसी नदियों के घाटों पर.लेकिन यहाँ बोला गया है कि जो भगवान नाम का कीर्त्तन है.जो आप भगवान का नाम लेते हैं.कीर्त्तन यानि कि उच्च स्वर में नाम लेना.ये नही कि मन-ही-मन में नाम ले रहे हैं.मन में नाम लेना भी खराब नही है.लेकिन हमारे शास्त्र कहते हैं कि
कीर्त्तानाद
कीर्त्तन करना है.


सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढ़व्रताः ।


भगवान भी कहते हैं.कीर्त्तन की संस्तुति करते हैं प्रभु.तो कीर्त्तन जो उच्च स्वर में भगवान का नाम लेता है, उससे  बड़े-से-बड़े पापों के फलों को भी समाप्त किया जा सकता है.सोचिये.और न केवल ये कि पाप ही समाप्त होंगे बल्कि ये भी कि पाप करने कि प्रवृत्ति भी समाप्त हो जायेगी क्योंकि कोई फायदा नही है कि आपके पाप तो हमने खत्म कर दिए.भगवान ने आपके सारे पाप समाप्त कर दिए लेकिन इस बात की कोई गारंटी तो नही होती न कि हम आगे पाप नही करेंगे.जाने कितने प्रकार के पापों में हम फिर से प्रवृत्त हो जाते हैं.फिर से हमारा मन कहाँ-कहाँ भागता है.किसी को देखते हैं तो उसके प्रति पापी विचार हमारे ह्रदय में आ जाते हैं.है कि नही.

तो हम बहुत पाप करते हैं.चलते-फिरते,उठते-बैठते,खाते-पीते,सोते-जागते हर तरीके से हमारे अंदर कुत्षित विचार आ जाते हैं.किसी के प्रति गंदे विचार आ जाते हैं.वो अपने आप में एक बहुत बड़ा पाप है.किसी की निंदा कर बैठते हैं.बहुत बड़ा पाप है.कहते हैं कि जिसकी आप निंदा करते हैं उसके सारे-के-सारे जो पाप हैं वो समाप्त आप कर देते हैं निंदा करके और आप पापी बन जाते हैं.उसके सारे अवगुण आप में आ जाते हैं.जिस अवगुण के कारण आप निंदा करते हैं,कुछ समय बाद वही अवगुण,वही दोष आपमें प्रकट हो जाता है.सोचिये छोटी बात नही है ये.बहुत बड़ी बात है.

तो हम हमेशा कुछ-न-कुछ ऐसा करते हैं जो पापमय है.यहाँ तक कि जब हम भगवान के दिए गए इन सुख-सुविधाओं को भोगते हैं और एकबार भी भगवान को शुक्रिया अदा नही करते हैं.भगवान को  जाकर के हम ये नही कहते हैं कि प्रभु शुक्रिया आपने हमें इतना कुछ दिया.हमें जिंदगी दे दी.यही बहुत बड़ी बात है.ये सुबह हमें दी इतनी ख़ूबसूरत और ये हम देख पा रहे हैं.यही बहुत बड़ी हमारी खुशनसीबी है.हॉस्पिटल में कितने ही लोग हैं जो सुबह को देखने के लिए तरस जाते है.सोचते हैं कि कब हम हॉस्पिटल के बेड से निकलेंगे और कब हम घर भागेंगे.वो बात अलग है कि घर भी अगर पहुँच गए तो वो खर्राटे भरते रह जाते हैं कई बार और नही देख पाते कि इतनी हसीन सुबह क्या है.

तो शुक्रिया कहना हमें आता नही और आजकल अगर आप देखे तो स्कूल में भी बच्चों  को sorry और शुक्रिया,thanks ये कहना ठीक से सिखाया नही जाता है.बच्चे sorry कहते हुए भी अपना अपमान महसूस करते हैं.सोचते हैं कि हमारे ego की बात है. prestige की बात है.हम sorry क्यों बोले.

पहले के जमाने में  बड़ों के पैर छुए जाते थे.उन्हें सादर नमस्कार किया जाता था.पर आज ये एक कुरीति बन गयी है बच्चों के अनुसार.हमारे अनुसार नही.बच्चों के अनुसार.तो सोचिये जहाँ इसप्रकार से हम अपनी संतानों को पाल रहे हैं.हम कुछ कर नही पाते हैं.तो कितने पाप उनसे गाहे-बगाहे हो जाते हैं.

तो यहाँ बताया गया है कि भगवान नाम का कीर्त्तन समस्त पापों को नष्ट कर सकता है.
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तो हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:

"हे राजा भगवान नाम का कीर्त्तन बड़े-से-बड़े पापों के फलों को भी समाप्त करने में सक्षम है.इसीलिए संकीर्त्तन आंदोलन का कीर्त्तन सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सबसे शुभ कार्य है.कृपया इसे समझने का प्रयास करे जिस से अन्य लोग इसे गंभीरतापूर्वक इसे ले सके. "


तो बड़ी सुन्दर बात यहाँ बतायी गयी है.भगवान के नाम का गुणगान किया गया है.देखिये भगवान का नाम और भगवान अभिन्न है.इसमे कोई शक नही है.एक ही है.जब आप भगवान का नाम लेते हैं इसका मतलब आप भगवान का साक्षात्कार करते हैं.आप भगवान से मिलते हैं.

तो इसिलए क्योंकि भगवान ने अपनी सारी शक्तियां अपने नामों में डाल दी है.इसपर मुझे एक बड़ी अच्छी कथा याद आती है:
एक बार एक व्यक्ति गया किसी संत-महात्मा के पास और उसने कहा कि महात्मा जी मुझे ये सागर पार करना है.मेरे पास इतने पैसे नही है कि नाव कर सकूं.बहुत मुश्किल है मेरे लिए ये नदी पार करना.सागर नही था,नदी थी.तो उन्होंने कहा कि मै तुम्हे एक ऐसी चीज दूंगा कि जिसको तुम अगर लेकर के चलोगे न एक लॉकेट में एक ताबीज बना के दे रहा हूँ.उसके अंदर एक पर्ची डाल रहा हूँ.कुछ लिखा है उस पे.उसके लेकर के चलो और तुम पैदल ही पार कर जाओगे.

तो महात्मा जी ने ताबीज में पर्ची डाल दिया और उनके बाहँ में बंध दिया और फिर वो व्यक्ति चलने लगा.आधा रास्ता पार कर गया और आधी नदी पार कर गया.बस कुछ ही दूरी रह गयी थी तट आने में तो उसको लगा कि मै ये तो देखूं क्या लिखा है संत-महात्मा जी ने.उसने वो पर्ची खोल के देखी.ताबीज में से निकाला,उसे तोड़ा और उसमे से पर्ची निकाली.पर्ची में भगवान का नाम लिखा था और वो नाम देखते ही कहा कि बस यही लिखा है.इससे क्या होगा.जहाँ उसने ये कहा और नाम पर शक किया कि वो डूब गया.

तो हमें डूबना नही है.हमें नाम को पकड़ करके भवसागर पार करना है.ये आप और हम कर सकते है.यही हमारे वश में है और हम कुछ नही कर सकते.इसीलिए यहाँ पर कहा गया है कि हे राजा.राजा को संबोधित कर आरहे हैं शुकदेव गोस्वामी.हे राजन ! आप इसे समझने का प्रयास करे जिससे अन्य लोग इसे गंभीरतापूर्वक ग्रहण कर सके.राजा को क्यों कहा गया.क्योंकि हमारे समाज में जो बड़े-बड़े लोग हैं और राजा खासतौर से वो भगवान का प्रतिनिधि माना जाता है.राजा जैसा करेगा प्रजा वैसा ही करेगी.राजा जैसा होगा प्रजा वैसी ही होगी.राजा अगर दुष्ट होगा प्रजा भी उसकी दुष्ट होगी.ये effect पडता है.

तो राजा को देखकर लोग उनका अनुसरण करते हैं.अनुकरण भी करते हैं.तो यहाँ इसीलिए बताया गया है कि हे राजा ! आप इसे समझ लो.प्रजा तो बाद में समझेगी.आप पहले समझ लो क्योंकि बड़ा सुन्दर श्लोक है न कि
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥


जैसा समाज के श्रेष्ठ लोग आचरण करते हैं.उन्हें देखकर समाज के बाकी लोग भी वैसा ही आचरण करते हैं.वो कहते हैं कि अगर वो ऐसा कर सकता है तो मै क्यों नही कर सकता.है न.ये हालत होती है.तो इसीलिए कहा गया कि देखो आप देश के राजा हैं.आप देश के पिता हैं.अगर आप भगवान का नाम लेंगे.आप समझ जायेंगे भगवान के नाम की महिमा को तो पूरी प्रजा automatically समझ जायेगी.कुछ अलग करने की जरूरत नही है.आपको बस एक example set करना है.एक उदाहरण बनाना है पूरे समाज के लिए.आपको एक उदाहरण बनना है.

तो ये बात जो बतायी गयी कि अगर आप भगवान के नाम का कीर्त्तन करेंगे तो प्रजा भी करेगी और प्रजा करेगी तो क्या होगा?तो दो चीजें हो जायेंगी.
एक तो उनके समस्त पाप जो उन्होंने अनेकानेक जन्मों में एकत्र किये हैं.देखिये हमारे पाप हमारे साथ चलते हैं.हमारे संस्कार हमारे साथ चलते हैं.मै आपको एक बड़ा क्रूर example दूंगी.

जैसे कि एक व्यक्ति सत्तर साल का हो गया.सत्तर साल का व्यक्ति यानि उसने अपनी देह बदल ली.कहाँ उसके पास एक शिशु की देह थी.फिर युवावस्था की देह आयी.जवानी की देह आयी और फिर बुढापे की देह आ गयी.देह बदल रही है लेकिन सत्तर साल की अवस्था में भी वो कहता है कि मुझे नारी संग करना है.शरीर काम का नही है.नारी संग कर नही सकता लेकिन फिर भी जब सत्तर साल की अवस्था में कहता है कि करना चाहता हूँ नारी संग.और वो इसके लिए विभिन्न दवाइयां खाने लगता है.

तो नारी संग करना कौन चाहता है शरीर नही.उसकी Intelligence,उसका दिमाग,उसके  मन-बुद्धि.ये हमारा सूक्ष्म शरीर है.इसीप्रकार से यही मन-बुद्धि जो है.जो विभिन्न संस्कारों से लबरेज रहती है जब दूसरे देह में जाती है.दूसरे देह में यही मन-बुद्धि जाती है.तो वहाँ चेतना बरकरार रहती है.यही सारी वृत्तियाँ हम अपने साथ दूसरे देह में ले जाते हैं.

सत्तर साल की देह आ गयी और पैंतीस साल,बीस साल वाली उसकी सोच है.तो सोच किसमे है?मन में ,बुद्धि में.तो मन,बुद्धि जब दूसरे देह में चले जाते हैं तो संस्कारों को भी साथ लिए जाते हैं.इसीलिए जरूरी है कि हम अपने संस्कारों को purify करे,शुद्ध करे ताकि हमें आध्यात्मिक देह प्राप्त हो.
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1 comment:

Ravi Kant Sharma said...

शुक्रिया!