Monday, July 12, 2010

Spiritual Program by Premdhara Parvati Rathor on 4rd July'10

नमस्कार मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.
अर्जुन ने भगवान से पूछा था कि भगवान आपने पहले हमें बताया कि हमें अपने इन्द्रतृप्ति के लिए कर्म नही करना चाहिए.हमें अपने इन्द्रतृप्ति के बारे में नही सोचते रहना चाहिए.इंसान का जीवन इसलिए नही मिला है क्योंकि इन्द्रतृप्ति के बारे में सोचते रहना ये पशुओं का काम है.मान लीजिए पशु की योनि आपको मिलती है-कुत्ते,बिल्ली,सूअर,जिसकी भी योनि.वो क्या करते हैं?सारा दिन वो अपने sense gratification की व्यवस्था करते रहते हैं.यहाँ-वहाँ दौड़ते रहते हैं.भागते रहते हैं.सिर्फ अपने senses के कारण.और यही काम यदि इतना बुद्धिजीवी इंसान जो कि बड़े-बड़े रॉकेट बना लेता है चाँद तक पहुँचने के लिए,वो भी यही काम करे तो बड़ा हास्यास्पद है.हँसी आती है.

क्योंकि मनुष्य जीवन इसके लिए नही मिला है.मनुष्य जीवन इसलिए नही मिला है कि अगर आप धरती पर इन्द्रतृप्ति नही कर पा रहे हैं या आपको लगता है कि अब सुविधाएं नही रही.अब माहौल इतना पवित्र नही रहा.ऑक्सीजन इतनी पवित्र नही रही तो चलिए हम दूसरे Planets पर जाने की कोशिश करते हैं.वहाँ रहेंगे और वहाँ का माहौल बिगाड़ेंगे.वहाँ भी पौलोथिन वगैरह गन्दगी छोड़कर के आयेंगे.इसलिए नही मिला है कि आप यही सोचते रहे.

मनुष्य जीवन इसलिए मिला है कि आप प्रश्न करे खुद से.खुद से पूछे कि मै जन्म,मृत्यु,बुढापे और बीमारियों के दुष्चक्र से कैसे निकलूँ.क्यों मुझे जन्म लेना पड़ता है?मै जन्म नही लेना चाहता.क्यों ये लोग गरीब घर में पैदा होते हैं?क्यों ऐसी जगह एक बच्चे का जन्म होता है जिसकी माँ कुछ खिला भी नही सकती.क्यों?ऐसे सवाल करने के लिए मनुष्य जीवन मिला है.

मनुष्य जीवन में भी हम अगर ये सवाल न करके इन्द्रतृप्ति करते हैं तो वो इन्द्रतृप्ति बहुत ही निंदनीय है.ऐसी प्रवृत्ति निंदनीय है.तो भगवान ने कहा था कि अपनी इन्द्रतृप्ति के कार्यों को छोडिये.भगवान की इन्द्रतृप्ति के लिए आप कार्य कीजिये.तो भगवान ने ये बताया कि भाई अपनी इन्द्रतृप्ति में जो मग्न रहता है उसकी इन्द्रियां उसको डुबो देती है.उसकी इन्द्रियां उसके पतन का कारण बनती है.उसका पतन जो है इन्द्रियों के कारण ही होता है.

ये सब सुनकर के भक्त अर्जुन ने सोचा कि शायद भगवान कहते हैं कि हमें सन्यास ले लेना चाहिए.अपनी इन्द्रतृप्ति नही करेंगे यानि इसका मतलब संन्यास हो गया.है न भाई.बाल-बच्चे छोड़ करके हम कहीं जंगल में चले जाए.तपस्या करने लगे.शायद यही होगा भगवान का मतलब.तभी उन्होंने पूछा कि आप क्या कहना चाहते हैं.हम सन्यास ले ले या कर्म करे?मै बहुत confused हूँ .

तो भगवान ने कहा कि देखो कर्म का त्याग यानि संन्यास और भक्तियुक्त कर्म दोनों ही मोक्ष प्राप्ति के लिए अच्छे हैं.दोनों से ही आप उन्नति करते हैं.यानि कि अगर कोई व्यक्ति कर्म का त्याग कर देता है.सोचिये सारा दिन हमलोग कमाने के धून में लगे रहते हैं.सुबह से लेकर के रात तक.सोचते रहते है कि क्या करूँ  ऐसा कि या तो मेरी job लग जाए.और अगर job लग जाए तो क्या करूँ ऐसा कि job बेहतर हो जाए.नौकरी बहतर जगह लग जाए.अगर बेहतर जगह लग जाती है तो और बेहतरी के बारे में आप प्रयास करते हैं.और अगर बेहतर जगह लग जाती है तो अआप सोचते हैं कि चलो ये तो बड़ी अच्छी जगह है.यहाँ ज्यादा काम नही करना पडता है.अगर काम भी बहुत करना पडता है तो भी आप सोचते हैं कि कोई बात नही अच्छे पैसे मिल रहे हैं ठीक है.अब क्या करूँ ऐसा कि जिसने मुझे hire किया है वो fire न कर दे.यानि कि मुझे maintained रखे.मै इस job में सदा-सर्वदा रहूँ.मेरी कायम रहे.क्या करूँ.तो हम boss की जीहूजुरी करने लगते है.चापलूसी करने लगते हैं.सामने से bos किसी भी रूप में आ रहा हो हम कहते हैं कि आप बड़े सुन्दर लग रहे हैं.बड़े अच्छे लग रहे हैं.आज तो क्या बात है boss.आज तो ये हो गया,आज तो वो हो गया.ये देखिये मेरी पत्नी ने इतनी सुन्दर-सुन्दर चीजें पकायी है.मैंने सोचा मै आपको खिलाऊंगा.आपको बहुत अच्छा लगेगा.कभी आप उनके घर में भी जाकर उनकी चाकरी करने लगते हैं.क्यों?

क्योंकि आप डरे ह

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