Wednesday, July 21, 2010

Spiritual Program Morning Meow On 18th July'10 By Premdhara Parvati Rathor(104.8 FM)

104.8 FM पर मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप.रास्ते में निगाह एक लडकी पर पडी.वो गाड़ी चलाना सीख रही थी.कभी break की जगह escalator दबा देती तो कभी clutch की जगह पैर break  पर पड़ जाता.कभी steering wheel पर ही हाथ गरबड़ा  जाता.गाड़ी यहाँ-वहाँ हो जाती.एक बार नही कई बार उसे अपनी क्षमता पर,अपनी काबलियत पर शक होता कि क्या कभी कार चलाना सीख पाउंगी.कभी उसके माँ-बाप उसे encourage करते.हाँ-हाँ बेटे कार चलाने में क्या मुश्किल है.लाखों लड़कियां कार चलाती हैं.तुम भी एक दिन सीख जाओगी.

जहाँ कुछ लोग प्रोत्साहित करते वही कुछ अन्य लोग उसे discourage करते.अरे छोडो भी.कल को गाड़ी ठोक दोगी तब पता लगेगा.कोई कहता गाड़ी किसी पर चढा दोगी तो लेने के देने पड़ जायेंगे.बेचारी लडकी confused होकर गाड़ी चलाना सीखती.-सीखते होता ये है कि अगर हिम्मत न हारिये तो गाड़ी चलाने आ ही जाती है.है न.तब लोग speed से गाड़ी चलाते हैं.driving में मजा आने लगता है.

ठीक इसीप्रकार है भक्ति.जी हाँ.भक्ति की शुरुआत में आपको भी लगता है कि पता नही मै ठीक कर रहा हूँ या नही.कभी भगवान के नाम का जाप करने में आनंद आता है तो कभी बोरियत होती है.कभी कोई कहता है कि कायर लोग ही भगवान को भजते हैं भाई.तो कोई कहता है कि अरे ये उम्र है भगवान के तरफ जाने की.

पर जो लोग दृढ़ता के साथ भक्ति करने में लगे रहते हैं वो एक दिन  भगवान के नामों में रस लेने लगते हैं.क्यों?क्योंकि उन्हें रस मिलने लगता है.

आनंद ही आनंद 

तो दृढ रहिये.जीवन के मोल को समझिए.प्रभु की शरण लीजिए और इस जीवन को सार्थक बनाईये.
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आईये कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक से.बहुत ही प्यारी बात इसमे कह रहे हैं एक भक्त.श्लोक का अर्थ:
"शरीर से अपनी पहचान के कारण मनुष्य इन्द्रतृप्ति के लिए इच्छाओं के अधीन होता है और इसतरह वो अनेक प्रकार के पवित्र और अपवित्र कार्यों में वह स्वयं को लगाता है.यही भौतिक बंधन है.अब मै अपने आप को उस भौतिक बंधन से छुडाउंगा जो स्त्री के रूप में भगवान की मोहिनी शक्ति द्वारा उत्पन्न किया गया है.सर्वाधिक पतित आत्मा होने के कारण मै माया का शिकार बना और उस नाचनेवाले कुत्ते के समान बन गया जो स्त्री के हाथ के इशारे पर चलता है.अब मै अपनी सारी काम इच्छाओं को त्याग दूँगा.मै दयालु,समस्त जीवों का शुभैषी मित्र और भगवतभावनामृत में खुद को सदा लीन रखने वाला होऊंगा."

तो कौन कह रहा है?ये जो शब्द  है ये हैं अजामिल के.अजामिल एक बहुत अच्छा भक्त था.उसके माँ-बाप जो थे वो बहुत अच्छे भक्त थे.उन्होंने अपने बच्चे में भी संस्कार डाला था कि आप भक्ति कीजिये और अजामिल भक्ति करता भी था.अपने पिता की बहुत मदद करता था.पिता यज्ञ करते थी.और भी बहुत कुछ करते थे.तो वो जाकर के फूल चुनकर लाता भगवान के लिए और जाने कितना कुछ करता था.

लेकिन कहते हैं न अगर आपने गलत संग कर लिया चाहे वो एक लम्हे का संग हो.लम्हा.समझ रहे हैं एक क्षण.moment और वो गलत संग है तो आपके पतन की बहुत अधिक संभावना रहती है.

यही अजामिल के साथ हुआ था.एक दिन वो जंगल गया था अपने पिता के पूजा-पाठ के लिए लकडियाँ और फूल-फल चुनने के लिए.तो वहाँ उसने एक स्त्री और एक पुरुष को बहुत ही compromising state में देखा,बहुत ही गलत अवैध सम्बन्ध बनाते हुए देखा. उसका ह्रदय जो है वाम गया और वो अपनी भक्ति पद से गिर गया.वो उस स्त्री को अपने घर ले आया.वो स्त्री जो थी वो वेश्या थी.उसे अपने गहर ले आया.अपनी बीबी,अपने बच्चों को बाहर निकाल दिया.अपने माँ-बाप को हटा दिया.उस स्त्री का संग करने लगा.उस स्त्री के साथ वो रहने लगा.अनेकानेक उसने अपराध किये.अनेकानेक अपराध उसका पेट भरने के लिए.अपराध भी ऐसे-वैसे नही खूब डकैती डालता.जाने वो क्या-क्या करता.

जब वो बूढा हो गया तो बुढापे में,सत्तर साल के आस-पास उसकी उम्र थी तो उसे एक औलाद पैदा हुई.पुराने समय के संस्कार थे इसलिए उसने उसका नाम नारायण रखा.भगवान का ये नाम उसने रखा तो जब उसकी मृत्यु होने लगी तो उसके मुँह से ये नाम निकल गया.जब ये नाम निकल गया तो भगवान बहुत कृपालु हैं ,बहुत दयालु हैं,नाम सुनते ही उन्होंने अपने दूतों को वहाँ भेज दिया और यमदूत जो वहाँ आये थे उनके प्राण लेने उनको उन्होंने मार-मार कर भगा दिया कि आप जाईये.ये हमारे साथ जायेंगे.हम इन्हें सुधरेंगे,हम इन्हें बताएँगे कि भक्ति के है.

औत तब जब अजामिल ये सब सुना,विष्णुदूत और यमदूतों के बीच की वार्ता को तो उसका मन जो है वो पश्चाताप करने लगा और तब उसने ये श्लोक कहा.तब उसने कहा 
शरीर से अपनी पहचान के कारण मनुष्य इन्द्रतृप्ति के लिए इच्छाओं के अधीन होता है
यानि शुरुआत ही गलत हो जाती है जब हम ये सोचते हैं कि हम शरीर हैं.और मै आपको बताती हूँ कि बड़ी-बड़ी universities में आपको यही पढाया जाता है कि आप शरीर हैं और शरीर के लिए काम करना है.शरीर के लिए काम करना है.शरीर को स्वस्थ रखना है.जीवन के लक्ष्य के बारे में कोई नही बताता कि शरीर को स्वस्थ रखना है,क्यों?सब कहते हैं इसलिए कि आप और अधिक enjoy कर सको.और अधिक आनंद उठा सको.अच्छा.

कोई ये सवाल नही पूछता कि आनंद उठाऊंगा पर मेरी उम्र कब तक रहेगी.कब तक मै आनंद उठा सकूंगा.सत्तर साल,अस्सी साल,सौ साल,नब्बे साल,सौ साल,एक सौ दस,एक सौ बीस कब तक.इस सवाल का जवाब किसी के पास नही होता,कब तक.कोई नही बता पाता कि कब तक ये आनंद उठाओगे.उसके बाद क्या?कोई नही पूछता उसके बाद क्या?लेकिन जहाँ कोई व्यक्ति ये समझ जाता है कि मै शरीर नही हूँ.मै आत्मा हूँ.मै शरीर के beyond हूँ,मै शरीर के परे हूँ.

जो शास्त्रों से ये सीख लेता है,जो भगवान की बात में यकीन करता है,वो व्यक्ति अपनी इच्छाओं के अधीन नही होता क्योंकि देखिये मन है जब तक,इच्छाएं रहेंगी तब तक.समझ रहे हैं आप.इच्छाएं तो रहेंगी ही.इच्छाओं को कैसे रोक सकते हो आप.मन है तो इच्छा रहेगी और मन को आप बाहर निकाल नही सकते.तो इच्छाएं आयें और इच्छाएं जाएँ पर आप एक मूकदर्शक बने  रहो.इच्छाएं आयी और इच्छाएं गयी पर मुझे इन इच्छाओं से क्या.

जैसे कि आप बाहर बैठे हो और हवा चल रही है.कभी आपके बाल उड़कर के आपके मुँह पर आते हैं.कभी कुछ.तो आप हवा को रोक नही सकते.हवा को रोक सकते हो क्या आप?नही रोक सकते.हवा चल रही है.आपके बाल आ रहे हैं मुँह पर तो आप क्या करोगे.क्लिप लगा लोगे अपने बालों पर.कुछ लगा लोगे.उसके बाद आप आराम से बैठे रहोगे.

तो इसीप्रकार से हमें बनना है.स्थितप्रज्ञ बनना है.अपनी पहचान सही करनी है,दुरुस्त करनी है.rectification होगा तब बात बनेगी.
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