Monday, July 5, 2010

Spiritual Program Morning Meow On 3rd July'10 By Premdhara Parvati Rathor

आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप.कल कुछ लोग बहुत चिंतित थे.पास गयी तो पता चला कि बेचारे बहुत दुखी थे कि आजकल cold drinks में भारी तादाद में मिलावट हो रही है.अब क्या होगा.क्या पीयेंगे अब.

मैंने कहा -भाई ये भी कोई चिंता की बात है.लस्सी पीजिए.दूध पीजिए.शरबत पीजिए.हाँ.बहुत कुछ है पीने को.अच्छा ही है कि आप cold drinks न पीये.डॉक्टर भी कहते हैं कि cold drinks से सेहत को बहुत ही ज्यादा नुकसान पहुंचता है.तो मिलावट से डरकर अगर आप इसे छोड़ दे तो अच्छा ही है.

पर हाँ मिलावट करना बहुत बुरी बात है.पर सवाल उठता है कि हमारे यहाँ ही मिलावट क्यों होती है.कभी दूध में,कभी खोये में,कभी तेल में,कभी मिठाई में,कभी आटे में,कभी घी में,कभी मसालों में.मतलब कमाईये आप कितना भी पर आप निश्चित नही हो सकते कि आप जो खा रहे हैं वो सौ प्रतिशत शुद्ध है.मैंने जब भी मिलावट की खबरे सुनी है वो हमारे यहाँ से ही सुनी है.विदेशों से तो मिलावटी खाने की कभी कोई खबर सुनी ही नही.

खैर जो भी हो.देखा जाये तो यही तो है भौतिक जगत जो संघर्षों से भरपूर है.शुद्ध भोजन की तलाश भी तो अब एक संघर्ष ही है न.एक तो कई सारे ऐसे लोग हैं जिन्हें खाना ही नसीब नही होता.इतनी महंगाई.और नसीब हो भी गया तो वो भी full मिलावटी.

सोचिये ऐसे भौतिक जगत में दुबारा जन्म लेना.बारम्बार अनेकानेक संघर्ष करना.अनेकानेक विपदाओं को झेलना.ये क्या intelligent काम है?नही न.तो उपाय एक ही है.भजन कीजिये भगवान का.उन्हें प्रसन्न कीजिये.उनके हो जाईये और छूट जाईये यहाँ से सदा-सदा के लिए.
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आईये कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक के साथ.बहुत ही प्यारा श्लोक है.ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
"हे दीनों के स्वामी ! आप चाहे जैसा मेरे साथ करे.चाहे आप दया दिखाए या दंड दे लेकिन इस जगत में आपके अतिरिक्त अन्य कोई नही जिसको मै निहारूं.चातक पक्षी सदैव बादल से प्रार्थना करता है.चाहे वो बरसात करे या फिर वज्र गिरा दे."

इसे कहते हैं total surrender.पूर्ण शरणागति.पूर्ण समर्पण.भगवान के आगे कोई If and but नही.कोई किन्तु,परन्तु नही.कोई अगर मगर नही.अगर तुम ये कर दो तो ऐसा हो जाए.मगर मै ये नही कर पाउँगा.समझ रहे हैं.कोई अगर-मगर नही.वो अवस्था पाना ये जीवन का लक्ष्य है.ऐसी अवस्था हमें प्राप्त हो जाए कि हम भगवान के हो जाए और भगवान से कोई आशा न रखे.

आज की तारीख में हमारे साथ क्या problem है.क्या बीमारी है.हमारी बीमारी ये है कि हम भगवान के बारे में सोचते बाद में है.पहले ये सोच लेते हैं कि अगर हमारी ये मुराद पूरी हो जाए तो भगवान हैं वरना भगवान नही हैं.है कि नही.अपनी मुरादों के बारे में सोचते रहते हैं कि हमें क्या चाहिए इस जगत में.हम इससे खुश हो जायेंगे.उससे खुश हो जायेंगे.हम यही सोचते रहते हैं कि हमें ये चाहिए.वो चाहिए और यही हमारी खुशी का रहस्य है.हम ये सोचते हैं.


परन्तु जिस चीज को हम अपनी खुशी के लिए माँगते हैं वही हमारे गले का ढोल बन जाता है.मै आपको बताती हूँ.वही चीज हमारे लिए मुसीबत बन जाती है कई-कई बार.कई-कई बार.सोचिये किसी के पास कार नही है,गाड़ी नही है.जब वो कार लेने के लिए loan लेता है तो loan मुसीबत बन जाती है.गले में फंसी हुई हड्डी.और अगर कार आ भी जाती है ,loan चुका भी सकते हैं आप तो उसके बाद आप देखते हैं कि उस गाड़ी की maintenance मुसीबत बन जाती है.maintain भी कर पाए तो petrol मुसीबत बन जाती है.हाँ कि अब कहाँ से petrol डाले इसमे.रोज-रोज ये जो है गाड़ी petrol खा जाती है.और अगर आप वो भी कर पाए तो जब आप road पे निकलते हैं तो कोई scratch मार जाए तो वो मुसीबत बन जाता है.

तो हर चीज इस जगत में,जिससे भी दिल लगाओगे चाहे वो जड़ है या चेतन ,आपके लिए मुसीबत बन ही जायेगी.लेकिन दिल लगाना पडेगा.दिल लगाने के लिए ही दिया गया है आपको.और वो दिल लगाना है भगवान से.दिया गया है भगवान से दिल लगाने के लिए.ये पूरी programming हुई है प्रभु की तरफ मुडने के लिए.ये प्रेम जो हमारे ह्रदय में रहता है जो कई बार आँखों से बरसता है.कई बार होठों से बरसता है.कई बार पूरे जिस्म से बरसता है.ये प्रेम प्रभु के लिए दिया गया है.

ये प्रेम इसलिए नही दिया गया है आपको कि आप इस प्रेम के आधार को खोजने में अपना पूरा जीवन व्यर्थ गवां दे और किसी भी व्यक्ति को खोज के अपने प्रेम की भेंट उसे चढा से और बाद में पता चले कि आपको उससे इतनी अपेक्षाएं,इतनी आशाएं हो गयी क्योंकि आपने 100% दिया.तो आपको इतनी आशाएं हो गयी कि आपको लगा कि वो व्यक्ति भी आपके प्रति प्रेम दर्शायेगा.जब नही मिला तो आप ओं?दुखी हो गए.है कि नही.क्यों?

क्योंकि प्रेम हमने गलत जगह बहा दिया.तो प्रेम का connection भगवान के साथ करना पडेगा.आपके अंदर जो प्रेम बहता है,रहता है उसे भगवान की तरफ मोडेंगे तो जगत से automatically आपको प्रेम हो जायेगा.exert नही करना पडेगा.efforts नही लगाने पड़ेंगे.प्रयास नही करने पड़ेंगे.वो automatically हो जाएगा.कैसे?कि सब लोग भगवान के हैं.सब लोग भगवान के बंदे हैं.इनमे भगवान रहते हैं.ये सोचकर आप सबसे प्रेम करने लगेंगे.उस समय भी आप भगवान से जुड़े होंगे.

तो यहाँ बताया है इस श्लोक में कि जो एक शुद्ध भक्त होता है वो भगवान की मर्जी के आड़े नही आता.मर्जी के बीच में नही आता.कभी नही कहता कि भगवान आप तो तभी भगवान हैं जब मेरी सारी मुसीबतों को दूर कर दे.कभी नही कहता कि हे भगवान ये कितनी सारी मुसीबतें आपने दे दी मुझे.मै तो बड़ा अच्छा जिंदगी जी रहा था.लेकिन ये क्या दे दिया आपने मुझे.कभी शिकायत नही.प्रभु से कभी शिकायत नही.जो हो रहा है अच्छे के लिए हो रहा है.

जो हो रहा है अच्छे के लिए हो रहा है.बड़ी अजीब बात लगेगी आपको.लेकिन ये बात सच है.कैसे सच है कि जो हो रहा है अच्छे के लिए हो रहा है.इसके ऊपर मै आपको कुछ बताउंगी लेकिन भगवान से शिकायते करना आप छोड़ दीजिए कि मुझे नौकरी नही मिल रही.मुझे छोकरी नही मिल रही.ये सारी चीजें,शिकायतें मत कीजिये.

बस जो हो रहा है आपकी जिंदगी में अच्छा है.भगवान से प्रेम करिये और आप देखेंगे कि हर चीज को enjoy करेंगे.
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हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.श्लोक का अर्थ:

"हे दीनों के स्वामी ! आप चाहे जैसा मेरे साथ करे.चाहे आप दया दिखाए या दंड दे लेकिन इस जगत में आपके अतिरिक्त अन्य कोई नही जिसको मै निहारूं.चातक पक्षी सदैव बादल से प्रार्थना करता है.चाहे वो बरसात करे या फिर वज्र गिरा दे."


कितनी सुन्दर बात.समर्पण इसे ही कहते हैं.भगवान जो करे उसे स्वीकार कर लीजिए.एक बात भी है:
ईश्वरः यत्य  करोति शोभंमेव  करोति

भगवान जो भी करते हैं सुन्दर ही करते हैं.

इसी बात पर मुझे एक कथा याद आती है.
एक बार अकबर जी की उंगली कट गयी किसी तरह से और उन्होंने बीरबल जी को दिखाया.बीरबल को कहा -देखो देखो मेरी उंगली कट गयी.बीरबल ने कहा कि भगवान जो करते हैं,अच्छे के लिए ही करते हैं तो अकबर को बहुत गुस्सा आया.ये क्या मेरी उंगली कट गयी.खून निकल रहा है.अच्छी तरह से मेरा अंग भंग हो गया और तुम कहते हो कि जो करते हैं भगवान अच्छे के लिए करते हैं.इसको जेल में डाल दो अभी पकड़ के.

बीरबल को जेल में डाल दिया गया कि इसने इतनी भयंकर बात कैसे कही.अब कुछ दिनों के बाद राजा शिकार पर गए.शिकार पर कुछ लोगों ने उन्हें उठा लिया.उनकी बलि देने की तैयारी की जाने लगी.उन्हें नहलाया-धुलाया गया.उसे कपडे-उपडे पहनाए गए.श्रृंगार किया गया.फूल डाले गए.जब उनकी बलि देने के लिए ले जाया गया उनको तो देखा गया कि अरे इनकी तो उंगली कटी है.इनका तो अंग-भंग है.इनकी बलि नही दी जा सकती अपने इष्टदेव को और उनको छोड़ दिया.

अब ये वापस आये भागे-भागे राजा साहब.अकबर जी ने आते ही बीरबल को छुडाया और कहा कि तुम बिल्कुल सही कहते थ-भगवान जो करते हैं अच्छे के लिए करते हैं.देखो न अगर मेरी उंगली नही कटी होती तो आज तो मै गया था.लेकिन ये बताओ कि तुम जेल में बंद हो गए इसमे भगवान ने क्या अच्छा किया?ये तो बहुत बुरी बात है.

तो बीरबल ने हँसते हुए कहा कि ऐसा है महाराज,अगर मै आपके साथ गया होता तो आप छूट जाते और मुझे पकड़ के चढ़ा दिया जाता.

तो भगवान जो करते हैं अच्छे के लिए ही करते हैं.हमें उस समय नही पता चलता.कुछ समय बाद पता चलता है.है न.लेकिन एक चीज और समझने का प्रयास कीजिये.भगवान सबका दारोमदार अपने ऊपर नही लेते.अपने भक्तों का लेते हैं.भक्तों का.

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्‌ ॥

भक्तों का योग क्षेम वहन करते हैं.सबका नही.सबका योग क्षेम कैसे वहन होता है.आप जो करते हैं उसका फल आपको मिलता है.अच्छा करेंगे तो अच्छा मिलेगा और बुरा करेंगे तो बुरा मिलेगा.भगवान बीच में आकर के किसी बुरे फल को अच्छा कर दे ऐसा नही होगा.लेकिन जो भक्ति करता है भगवान की ,भगवान उसके साथ सदा-सर्वदा रहते हैं.उसकी हिफाजत करते हैं.हाँ.उसे प्रोत्साहित करते हैं.उसके मार्ग के अवरोधों को दूर करते हैं.निष्कंटक मार्ग बना देते हैं उसके लिए.

तो एक भक्त का ये भाव है.भक्त कहता है कि हे प्रभु! हे दीनों के स्वामी ! दीन-हीन को कोई नही अपनाता इस जगत में.जो दीन,जो हीन है,जो गरीब है कौन उसे अपने पास बिठाता है.कोई नही बिठाता आज के इस युग में.हर कोई टशन में पड़ा हुआ है.हर कोई जो है झूठी शानोशौकत में पड़ा हुआ है.हर कोई ऐसे लोगों को पास में बिठाता है जिससे उनकी इज्जत आफजाई हो.ज्ञान लेने के लिए कोई नही बिठाता.ये फलां-फलां व्यक्ति है और social life में इनका ये स्थान है तो ये हमारे बगल में बैठेंगे.कोई दीन-हीन है तो कौन उसे पूछता है.

लेकिन हमारे भगवान.हमारे प्यारे भगवान सबको पूछते हैं.दीनों के स्वामी हैं वो.उन्हें प्रेम करते हैं.सबको प्रेम करते हैं.
समो अहम् सर्वभूतेषु

कहा जाता है कि हे दीनों के स्वामी ! हे प्राणनाथ ! आप चाहे जैसा मेरे साथ करे.जो चाहे करे.कोई शर्त नही है.वैसे भी
कोई शर्त होती नही प्यार में.
मगर हमारे हालत है कि
मगर प्यार शर्तों पर तुमने किया.

है न.हमलोग शर्त लगा देते हैं भगवान के आगे.भगवान के आगे.ये हमारे Problem है.भगवान बांहे फैलाकर खड़े हैं.कहते हैं मेरे पास आ जाओ.मेरे पास आ जाओ.लेकिन हम कहते हैं If and but.अगर-मगर,किन्तु-परन्तु.ये संकट है बहुत बड़ा.

खैर,भक्त कहता है कि हे दीनों के स्वामी !आप जैसा चाहे मेरे साथ करे.आप चाहे दया दिखाए या दंड दे.देखिये ये नही कि आप हमेशा मुझ पर प्रेम बरसाए.अगर आप दंड भी देंगे तो स्वीकार है प्रभु.कुछ भी दे.ये नही कि मै आपका नाम लेते जा रहा हूँ तो मेरी टांग हमेशा ठीक ही रहनी चाहिए.हो सकता है कि मै गिर जाऊं और मेरी टांग टूट जाए.तो कोई बात नही प्रभु.आपकी इच्छा में ही मेरी इच्छा.

ऐसे भाव एक भक्त के होने चाहिए.तो उसे भक्ति में आनंद आएगा और ये आनंद बढता जाएगा.
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2 comments:

Ravi Kant Sharma said...

पंखुडी जी, बहुत ही सुन्दर कार्य आपने अपने हाथों मे लिया है इससे अच्छा कार्य संसार में और कोई हो ही नही सकता है। आप के मन मन्दिर में विराजमान पूर्ण-पुरूषोत्तम प्रभु को और आपकी कृष्ण भक्ति को शत-शत नमन! आपका प्रभु चरणों में अनुराग दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहे।
शुभकामना सहित,
जय श्री कृष्णा!
जय श्री राधे!

DivineTalks said...

हरे कृष्णा!
उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.