Monday, July 12, 2010

भक्तों का आचरण by Premdhara Parvati Rathor on 11th July'10(104.8 FM)

आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे है आप?नमस्कार.देखिये सुबह-सुबह जब मै घर से निकली तो क्या देखती हूँ.मैंने देखा आसमान में खूब काली-काली घटाएं छायी हुई थी.घटाओं को देखकर मन-मयूर एक पल को नाच उठा.लगा आज तो जरूर बारिश आयेगी लेकिन स्टूडियो तक पहुँचते-पहुँचते बादल जाने कहाँ गायब हो गए और हमें तरसता छोड़ गए.खैर यही हाल है आजकल.है कि नही.कही पर अतिवृष्टि हो रही है यानि कि इतनी बारिश  कि लोगों के घर डूब गए.जीवन अस्त-व्यस्त हो गया.वो अब बारिश का नाम सुनते ही डरते है कि बस बहुत हो गया.अब मत आना.

कही अल्पवृष्टि पडी यानि इतनी कम बारिश हुई कि धरती और गर्म हो गयी और आप उमस के कारण बेहाल हो गए.तो ये थे बारिश के दो रूप.मानाकि बरसात जरूरी है पर अगर जब कर बरसात हो जाए और खेत ही डूब जाए तो क्या फ़ायदा.यदि इतनी कम बारिश हो कि धरती ही प्यासी रह जाए तो क्या लाभ.यानि कि बरसात क्या हो गयी मुसीबत.विपदा हो गयी.

कभी सोचा है आपने कि मौसम इतना क्रूर कैसे हो गया है.मौसम वाले कहेंगे कि मानसून disturbed हो गया है.ये हुआ,वो हुआ.पर सच तो ये है कि जब समाज में पाप बढ़ते हैं और लोग भगवान को याद नही करते.अंधाधुंध अपने स्वार्थ को साधते है तो यही होता है.तब प्रकृति हमें दण्डित करती है.क्यों?

क्योंकि प्रकृति भगवान की दासी है.भगवान कहते हैं

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥


तो भाई सीधी सी बात ये है कि जब तक हम भगवान की संपत्ति का भोग बिना भगवान को शुक्रिया अदा किये करते रहेंगे तब तक हमें प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना ही पडेगा.कई-कई तरह की कमियों का सामना करना ही पडेगा और इसके अलावा कोई चारा नही है.अगर उपाय है तो सिर्फ इतना ही कि आप सब लोग भगवान का शुक्रिया अदा करना सीखिए.अपनी दिनचर्या से समय निकालिए भगवान के लिए.उन्हें प्रेम करना सीखिए ताकि जो धरती हमें दो रही है वो धरती प्रसन्न हो सके और हमारे जो मौसम हैं,हमारी प्राकृतिक सम्पदाएं है वो खूब-खूब अधिक हो सके.आपको प्रसन्न कर सके. 

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आज के कार्यक्रम में हम चर्चा करेंगे भक्तों के आचरण के बारे में.भक्त क्या है?भक्त का व्यवहार क्या होता है?भक्त के प्रति द्वेष करने से क्या होता है?और भक्तों के बीच में कैसे आपस में प्रेम बढ़ाया जाता है.तो इसके बारे में आज पूरे कार्यक्रम में चर्चा होगी बहुत सुन्दर तरीके से.आप ध्यान से सुनिए.एक श्लोक है बड़ा -ही सुन्दर श्लोक,ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
"इस जगत में अवस्थित भक्तजनों में नीच वर्ण,कठोरता और आलस्य आदि दिखाई पडनेवाले स्वाभाविक दोषों के द्वारा अथवा कुरूपता या ज्वर आदि पीड़ाओं से विकृत दिखाई पडने वाले शारीरिक दोषों के द्वारा भक्त जनों का प्राकृतिकपना नही देखना चाहिये अर्थात उन्हें प्राकृत जीव नही समझना चाहिए.जैसे बुलबुलों,फेन और कीचड़ आदि के सम्बन्ध से गंगा जल जल धर्म को अंगीकार करके भी अपना द्रविभूत ब्रह्म होने का धर्म त्याग नही करता वैसे ही आत्मस्वरूप प्राप्त वैष्णवों में प्राकृत दोषों का आरोप नही करना चाहिए."

बड़ी सुन्दर बात यहाँ बतायी गयी है कि इस जगत में अवस्थित भक्त जनों में.ऐसे लोग जो भगवान के शुद्ध भक्त हैं.ऐसे लोग जो शुद्ध भक्त नही भी हैं.ये नही कि 100% शुद्धता उनको मिल गयी है.नही.लेकिन उन्होंने भक्ति के क्षेत्र में कदम रख दिया है.उन्होंने भगवान के आगे सिर झुका दिया है.उन्होंने कहा है.उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि भगवान आप ही सब  कुछ है हमारे.इसप्रकार का भाव जिनके मन में एक बार भी आ गया है वो भक्त हो गए.जो भगवान से प्रेम करने लगे है.जो भगवान के प्रति सहृदय हो गए हैं.भगवान के प्रति उनके मन में अपार प्रेम भरने लगा है.प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.

ऐसे भक्तो में चाहे वो व्यक्ति नीच जाति से भी आ रहा हो.हालाकि कोई जाति नीच नही होती है.हमारे कर्म ही हमें नीच बनाते हैं.लेकिन फिर भी वो कहीं से भी क्यों न आ रहा हो.उसका पारिवारिक background हो सकता है बहुत अच्छा न हो.सो सकता है वो बहुत गरीब हो.हो सकता है उसके माँ-बाप ऐसा काम करते हो जिसका लोग मजाक उड़ाते हो.वो स्वयं ऐसा काम करता हो.

तो ऐसे व्यक्ति का कभी भी मजाक नही उड़ाना चाहिए या उसमे कभी दोष नही देखना चाहिए.या फिर अगर आपको लगता है कि भाई इसका व्यवहार कितना कर्कश है.कितना कर्कश बोलता है.जब देखो तब तीखा बोलता है.क्या भक्ति करता है.तो ये कभी अपने मन में नही लाना चाहिए कि बड़ा ही कर्कश व्यक्ति है.क्या है.rude है.

क्योंकि देखो भगवान स्वयं कहते है कि जो मेरे पास आ जाता है वो उदार आत्मा है.


चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।


कि जिनकी सुकृतियाँ एकत्र हो गयी हैं वही तो भजन कर पाते हैं.वरना आप संसार में किसी को भी कहो कि भाई भजन कर लो भगवान का ज़रा.दो घड़ी तो कहेंगे कि हमारे पास time नही है.हर व्यक्ति बोलेगा कि हमारे पास time नही है.ये time की बहुत problem है.time की बड़ी shortage है.बाकी चीजों के लिए हमारे पास बहुत time होता है.हम तीन-तीन घंटे फिल्म देख लेते हैं.चार-चार घंटे सीरियल देख लेते हैं.उनके लिए बहुत time है लेकिन भक्ति करने के लिए हमारे पास time नही होता है.अजीब बात है.very strange.

तो अगर भक्त क्रोधी दिखे.भक्त लोभी दिखे या भक्त में आपको कोई अन्य शारीरिक दोष दिखे कि अरे ये तो बूढा है.अरे देखो हमेशा इसे बुखार ही रहता है.हमेशा ये तो कैसे लंगराता-लंगराता ही आता है.ये तो इतना मोटा है.ये तो इतना काला है.ये तो ये है.ये तो वो है.अगर आप ऐसे देखेंगे भक्त को तो आप बहुत बड़े पाप के अधिकारी हो जायेंगे.बहुत बड़ा पाप करने लगेंगे क्योंकि जब भगवान कहते हैं:

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्‌ ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥


भगवान ने कह दिया तो फिर हम कौन होते हैं ये कहने वाले कि इसमे ये दोष है.भगवान कहते हैं कि अलबत्ता तो भक्त में दोष होता ही नही लेकिन अगर अपने past संस्कारों की वजह से,पुराने संस्कारों की वजह से उसने कुछ गलत कर भी दिया है.जैसे कि मैंने आपको कई बार example दिया कि भक्त सिगरेट छोड़ चुका है.लेकिन मान लीजिए बाद वो जाता है अपने उन्ही कॉलेज के friends के बीच में.जाता तो है भक्ति के बारे में बताने के लिए लेकिन वो पुरानी बातें याद करते हैं और एक काश वो भी ले लेता है सिगरेट का.बेशक ये गलत बात है.लेकिन बावजूद इसके भगवान कहते है -मैंने माफ किया क्योंकि ये मेरा अनन्य भाव से भजन करता है.तो इससे क्या होगा जी?इससे ये होगा :

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥


कि जल्दी ही वो धर्मात्मा बन जाएगा.मै बनाऊंगा.भगवान ने उसका दारोमदार अपने हाथ में ले लिया है.ठीक है न.ये चीज हमें समझनी होगी.तो हम ये समझ जायेंगे कि अरे वो तो भगवान का प्राणी है.भगवान जाने.भगवान देखेंगे.भगवान उसे ठीक कारनेग.भगवान वो कुम्हार हैं जो घड़े को बनाएंगे.मिट्टी ने तो कुम्हार की शरण ले ली है.बस शरण लेना बहुत जरूरी है.मिट्टी अगर ये समझ के उछलती रहे कि अरे मै स्वतन्त्र हूँ.तो बेकार हो गयी मिट्टी.कभी गढी नही जायेगी.सुन्दर रूप उसका नही आएगा सामने.

तो यहाँ बताया गया है कि जिसप्रकार से जो गंगा जल है.आप देखिये कि गंगा जल की जो सबसे बड़ी  खासियत है वो ये कि आप इसे वर्षों एक बोतल में बंद करके रख दीजिए तो भी ये खराब नही होता.वैज्ञानिक लोग कहते हैं कि इसमे ऐसे खनिज पाए जाते हैं कि ये खराब नही होता.इसमे ऐसे-ऐसे minerals पाए जाते हैं.तो मेरा कथन ये है कि आप एक आम पानी में ऐसे ही minerals डाल के रख दीजिए बावजूद इसके वो खराब हो जाएगा.

वो इसलिए खराब नही होता क्योंकि वो भगवान के चरणों से निकली हुई गंगा है.तो जिसे भगवान के चरणों ने छू लिया वो खराब कैसे हो सकता है.तो इसीप्रकार से गंगा हमेशा पवित्र रहती है चाहे उसमे कितना कीचड़ मिल जाए.जब बरसात होती है तो नदियों का जो तट है उससे कितनी ही मिट्टी उसमे चली जाए और कितना ही उसके ऊपर फेन बन जाए.फेन समझते हैं आप,झाग बन जाए.बावजूद इसके गंगा जल पवित्र माना जाता है.

गंगा जल अपने द्रविभूत ब्रह्म को,कहते है कि जल के रूप में भगवान माना जाता है शास्त्रों के अनुसार,नही छोडता.आप उसकी वैसी ही पूजा करते हैं.अरे गंगा जल है.आप उसे बड़ी पवित्रता से रखते हैं.बड़े प्रेम से रखते हैं.बड़े प्रेम से उसे collect करके ले जाते हैं.देखते हैं कि इसमे मिट्टी है बावजूद इसके आप ले जाते हैं कि इसकी एक बूँद भी मै अपने घर पे छिडकुंगा तो वो पवित्र हो जाएगा.है कि नही.

उसीप्रकार से जो भगवान के भक्त हैं उनके अंदर कई बुराईयां आपको दिख सकती हैं.बड़ा आलसी है,बडा कठोर है,पता नही कौन से घराने से आया है.बावजूद इसके आपको,हमें उन्हें कभी प्राकृत रूप में नही देखना है कि वो material व्यक्ति है.material नही है वो.वो divine है.वो भगवान के भक्त हैं इसीलिए वो divine हैं.दैवीय हैं.

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तो हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

"इस जगत में अवस्थित भक्तजनों में नीच वर्ण,कठोरता और आलस्य आदि दिखाई पडनेवाले स्वाभाविक दोषों के द्वारा अथवा कुरूपता या ज्वर आदि पीड़ाओं से विकृत दिखाई पडने वाले शारीरिक दोषों के द्वारा भक्त जनों का प्राकृतिकपना नही देखना चाहिये अर्थात उन्हें प्राकृत जीव नही समझना चाहिए.जैसे बुलबुलों,फेन और कीचड़ आदि के सम्बन्ध से गंगा जल जल धर्म को अंगीकार करके भी अपना द्रविभूत ब्रह्म होने का धर्म त्याग नही करता वैसे ही आत्मस्वरूप प्राप्त वैष्णवों में प्राकृत दोषों का आरोप नही करना चाहिए."


बड़ी सुन्दर बात आपको पता चली.हमें पता चली कि भक्तों को कभी भी साधारण जीव नही समझना चाहिए.कहते भी हैं:
वैष्णवेर  क्रिया मुद्रा विज्ञे  न बुझाए.
कि जो भक्त हैं वो क्या कर रहे हैं,क्या नही ये वो जाने और भगवान जाने मगर वो हमेशा रहते महापवित्र ही हैं क्योंकि भगवान की नजर उन पर रहती है.नजर-ऐ-इनायत भगवान की उन पर रहती है.कहा भी गया है कि भक्त चाहे कही का भी हो.किसी भी परिवार से हो.background कुछ भी हो उसे कभी भी नही देखना.भक्त की भक्ति देखना और ये देखना कि भगवान ने उन पर इतनी कृपा की है कि वो कल्प तरु बन जाते हैं भक्तलोग.इसीलिए बड़ा सुन्दर श्लोक भी है:

वांछा-कल्पतरुभ्यश्च कृपा-सिन्धुभ्य एव च |
पतितानाम  पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः||

कि ये जो हैं कल्प तरु हैं.भक्ति हमें प्रदान कर सकते हैं.ये जो भक्त है अगर ये कहीं भी कदम रख ले तो वो जगह तीर्थस्थान हो जाती है.इतना ज्यादा उनको मान दिया जाता है.कहा भी गया.बड़ा ही सुन्दर श्लोक है कि
"हे भगवान जो तुम्हारा नाम लेते हैं वो चाहे ऐसे परिवार से ही क्यों न हो जो कुत्ता खाते हैं.निकृष्ट परिवार से ही क्यों न आये हो.पर आपका नाम अगर ले रहे हैं तो उन्होंने पिछले जन्मो में अनेकानेक तपस्याएं की हैं.पवित्र नदियों में वो नहाये हैं.उन्होंने समस्त शास्त्रों का अध्ययन किया हुआ है.बड़े दान दिए हैं.ऐसे ही नही उनके मुख पर आपका नाम आ गया है.ऐसे लोग बहुत पूजनीय है.बहुत पूजनीय है."

तो ये जो व्यक्ति समझ लेता है वो समझ जाता है कि हाँ हमें कभी भी किसी भी भक्त के अंदर उसकी शारीरिक कमियों को नही देखना है.कि अरे इसका शरीर टेढा है,इसका शरीर मोटा है.ये सब नही देखना है.उसके स्वभाव में ये कमी है.अरे बड़ी जल्दी गुस्सा आ जाता है.अरे बड़ी जल्दी ये करते हैं वो.ये नही देखना है.just ignore it.देखो ही मत.मैंने नही देखा.भक्त है.कोई नही.ये भगवान देखेंगे.हमें क्या करना है देख के.है कि नही.ऐसे हमें होना चाहिए.

एक अन्य बड़ा-ही सुन्दर श्लोक है जो कि कहता है बड़े-ही सुन्दर तरीक से.आप ध्यान से सुनिए.श्लोक का अर्थ:
"हे राजन ! जो शुद्ध भक्तों का मजाक उड़ाता है वो अपना पुण्य खो बैठता है.उसके ऐश्वर्य,उसकी प्रतिष्ठा और पुत्र नष्ट हो जाते हैं.जो भी भक्तों का मजाक उड़ाता है वो अपने पितरों समेत महारौरव  नामक नरकमें जा गिरता है.जो भक्तों को मारता है या उनकी निंदा करता है या उनसे ईर्ष्या करता है या उनपर क्रोध करता है,उन्हें नमस्कार नही करता,उन्हें देखकर प्रसन्न नही होता वो व्यक्ति नरक को जाता है."

तो बहुत बड़ी बात है ये.एक चीज याद रखिये कि आप इस कार्यक्रम के माध्यम से भक्ति करना यदि सीख रहे हैं.भगवान के भजन में लग गए हैं बड़े ही seriously तो एक ही चीज से बच के रहना.मै नही कहती कि दुनिया के हर अपराध से बचना.एक चीज से तो जरूर बचना क्योंकि भगवान का नाम आपको

1 comment:

Unknown said...

maa premdhara parvati rathore ke anmol vachan kano me mishri gholte hai.ghatnao ko bhagvad bhakti se jodkar unhe prernadayak banana to koi parvati maa se sikhe .vakai KRISHAN BHAKTI ka ras ek bar jisne chakha samjho vo sansar sagar se tar gaya,aur apni aane vali pidhio ko taar gaya.RADHE KRISHNA