Tuesday, March 29, 2011

अनेकों योजनायें बनाते समय हम भूल जाते हैं कि काल का पंजा हमारी गर्दन पर है:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 13th March, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.कभी हम एक गजल सुना करते थे.
ये करें और वो करें 
ऐसा करें,वैसा करें 
जिंदगी दो दिन की है 
दो दिन में हम क्या-क्या करें.

यानि हजारों ख्वाहिशें हैं.बहुत कुछ करने का अरमान है.पर वक्त भला कितनी मोहलत देगा.दो दिन की जिंदगी में सारे अरमान भला कहाँ पूरे होंगे.और सही बात है,अरमान पूरा करते करते जीवन निकल जाता है.इच्छाएँ,आरजू,तमन्नायें रह जाती हैं.और ये इच्छाएं जब पूरी नही होती तो करुणामय भगवान इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए आपको और शरीर प्रदान करते हैं.

इसतरह अपनी इच्छाओं के मकड़जाल में फँसकर हम बारम्बार इस दुखमय संसार में आते रहते हैं.फिर कोई संत हमें बताता भी है कि भाई अपनी कोई इच्छा मत करो.भगवान की इच्छा को स्वीकार करो.तो आप कभी असंतुष्ट नही रहोगे.भयभीत नही रहोगे.किन्तु तो भी हम उनकी बात अनसुनी करके सिर्फ अपनी ही हाँकते रहते हैं और इस संसार से छूट नही पाते.हमारा लालच बढ़ता जाता है.जीने की उत्साह में हम भूल जाते हैं कि मौत भी कभी-न-कभी जरूर आयेगी.जो सबकुछ छीन के ले जायेगी.

तो आज के श्लोक में कुछ इसीप्रकार का भाव है.श्लोक सुनिए:
प्रमत्तमुच्चैरितिकृत्यचिन्तया 
प्रवृद्धलोभं विषयेषु लालसम् |
त्वमप्रमत्तः सहसाभिपद्दसे 
क्षुल्लेलिहानोहिरिवाखुमंतकः ||(श्रीमद्भागवत,4.24.66)
अर्थात्
हे भगवान ! इस संसार के सारे प्राणी कुछ-न-कुछ योजना बनाने में तथा यह या वह करते रहने की इच्छा से काम में लगे रहते हैं.अनियंत्रित लालच के कारण यह सब होता है.जीवात्मा में भौतिक सुख की लालसा सदैव बनी रहती है,किन्तु आप नित्य सचेष्ट रहते हैं और समय आने पर आप उस पर उसीप्रकार टूट पड़ते हैं जिसप्रकार सर्प चूहे को पकड़ कर निगल जाता है.

ये श्लोक कितनी बड़ी बात आपको बताता है.ये बात नही है कि ये सब आप जानते नही हैं.आप जानते हैं कि आप सदा-सर्वदा जीयेंगे नही.कभी-न-कभी मृत्यु आप पर हावी हो जायेगी.ये तो आप जानते हैं और यदि कोई हमें ये बताता है तो हम कहते हैं कि क्या तुम हमसे मनहूस बातें करते हो.हम उसे दुत्कार देते हैं.उससे नजरें चुराने लगते हैं और बस यही से हमारे दुर्भाग्य की कथा आरम्भ होती है.हमे ज्ञान नही हो पाता.हम ज्ञान लेना भी नही चाहते.हम उस ज्ञान से दूर हो जाना चाहते हैं.और हम ऐसे व्यक्ति का साथ ढूँढने लगते हैं जो हमारे इस पागलपन में हमारा साथ दे.जो हमें ये अहसास कराये कि ये जगत हमारा है.हम इस जगत के हैं और हम यहाँ सदा के लिए बने रहेंगे.

है न सही बात.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

हे भगवान ! इस संसार के सारे प्राणी कुछ-न-कुछ योजना बनाने में तथा यह या वह करते रहने की इच्छा से काम में लगे रहते हैं.अनियंत्रित लालच के कारण यह सब होता है.जीवात्मा में भौतिक सुख की लालसा सदैव बनी रहती है,किन्तु आप नित्य सचेष्ट रहते हैं और समय आने पर आप उस पर उसीप्रकार टूट पड़ते हैं जिसप्रकार सर्प चूहे को पकड़ कर निगल जाता है.

 तो देखिये यहाँ भगवान बता रहे हैं कि हर प्राणी योजना बना रहा है.ये नही है कि मनुष्य ही योजना बना रहा है.आपने कभी चींटियाँ देखी है.चीटियों की बहुत बड़ी-बड़ी colonies हुआ करती हैं.कोई भी colony जब बनती है तो बिना योजना के थोड़े-ही बनती है.वहाँ भी योजना रहती है कि यहाँ हम सदा-सर्वदा रहेंगे और खूब चीनी और मिष्ठान जमा करके यहाँ रखेंगे.ये हमारे काम आएगा.तो योजना चींटी भी बनाती है.

मधुमक्खी भी आपने देखी होगी.क्या करती है मधुमक्खी.मधुमक्खी एक फूल से दूसरे फूल जाती है.हर जगह से रस इकट्ठा करती है और फिर छत्ते में भरकर शहद बना लेती है.और उस शहद को तैयार करने में उसे कई-कई हजार किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है.कितना श्रम करने के बाद वो थोडा-सा शहद बनाती है.तो एक योजना रहती है कि मै शहद बनाऊं.ये शहद जो है आड़े वक्त में काम आएगा.

तो हर कोई योजना बनाता रहता है.हर प्राणी.लेकिन चींटी का हश्र आप देखिये.चींटी बड़ी-बड़ी colonies जरूर बनाती है लेकिन जब कोई इंसान उसके ऊपर चल देता है,उसका पैर पड़ता है तो वो चींटी मसल दी जाती है.है न.चींटी जिन्दा नही रह पाती.तो उसके colony का क्या होता है?colony तो रह गई लेकिन चींटी में जो आत्मा थी वो चली गई.अब दूसरे शरीर को धारण करेगी.उसका श्रम.जितना उसने श्रम किया,जितनी मेहनत की सब बर्बाद हो गया.

मधुमक्खी  ने शहद का छत्ता बनाया जरूर लेकिन क्या शहद उसके काम आ पाता है.जैसे ही किसी व्यक्ति की नजर शहद के बड़े से छत्ते पर पड़ती है.वो व्यक्ति पूरी तरह से कोशिश करके,किसी भी तरह से शहद का छत्ता उतार लेता है.शहद निकलता है.शहद खाता है.शहद बेचता है.मधुमक्खी ने हजारों किलोमीटर का सफर तय किया.हजारों किलोमीटर जा जाकर फूलों का रस एकत्र किया था लेकिन उसका वो रस क्या मधुमक्खी के काम आया.सोचिये नही.

तो मधुमक्खी का छत्ता उससे छीन जाता है और मधुमक्खी भी काल का शिकार हो जाती है.तो सारा किया-कराया सब व्यर्थ हो जाता है और यही हमारी भी हालत होती है.विचार करके देखिये होती है कि नही.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
प्रमत्तमुच्चैरितिकृत्यचिन्तया 
प्रवृद्धलोभं विषयेषु लालसम् |
त्वमप्रमत्तः सहसाभिपद्दसे 
क्षुल्लेलिहानोहिरिवाखुमंतकः ||(श्रीमद्भागवत,4.24.66)
अर्थात् 
हे भगवान ! इस संसार के सारे प्राणी कुछ-न-कुछ योजना बनाने में तथा यह या वह करते रहने की इच्छा से काम में लगे रहते हैं.अनियंत्रित लालच के कारण यह सब होता है.जीवात्मा में भौतिक सुख की लालसा सदैव बनी रहती है,किन्तु आप नित्य सचेष्ट रहते हैं और समय आने पर आप उस पर उसीप्रकार टूट पड़ते हैं जिसप्रकार सर्प चूहे को पकड़ कर निगल जाता है.

देखिये भगवान कहते हैं शास्त्रों में 
अहम् कालोस्मि
मै काल हूँ.मै मृत्यु हूँ.भगवान कहते हैं.तो भगवान ही सृजन करते हैं,पालन करते हैं और अंत में संहार कर देते हैं.है न.तो सब कुछ भगवान के हाथों होता है.सब कुछ और कालक्रम में सब कुछ नष्ट हो जाता है.सृजन के बाद पालन और फिर उसका नष्ट होना तय है.फिर क्यों हम इतनी योजनायें बनाते है जबकि हम जानते हैं कि हमारी सारी योजनायें धरी-की-धरी रह जायेंगी.धराशायी हो जायेंगी.कुछ हमारे साथ नही जायेगा.कुछ हमारे हाथ नही आएगा.

वो जो हमारे हाथ आ सकता है.वो जो हमारे साथ जा सकता है उसे लेने के लिए हा चेष्टा क्यों नही करते.उसे बटोरने की चेष्टा हम क्यों नही करते.भगवान की भक्ति हमारे काम आयेगी.वही हमारे साथ जायेगी.उसी से हमारा कल्याण होगा.तो हम भगवान के विषय को,भगवान को क्यों दूर रख देते हैं?अपने से दूर क्यों कर देते हैं.क्यों सिर्फ और सिर्फ अपनी तरफ देखते हैं?क्यों इन जड़ इन्द्रियों के बहकावे में आ जाते हैं?सोचिये क्यों होता है ये सब हमारे साथ?यही तो हमारा दुर्भाग्य है.है न.

तो यहाँ इस श्लोक में भगवान बताते हैं कि ये सिर्फ आपके साथ ही नही होता.हर जीव के साथ होता है.हर प्राणी के साथ होता है.है न.एक जगह श्लोक भी आया है:
सुखमैन्द्रियकं दैत्या देहयोगेन देहिनाम् |
सर्वत्र लभ्यते दैवाद्दथा दुःखमयत्नतः ||(श्रीमद्भागवत,7.6.3)
ये जो सुख है न ये इन्द्रिय बोध के कारण उत्पन्न होता है.वरना इस संसार में सुख है कहाँ.है ही नही.जैसे कि आप ठंढ से काँप रहे हो और आपको मै heater दे दूँ कि लीजिए.आप heater पर अपना हाथ रखे और आपको थोड़ी गर्मी मिली.आपको थोड़ी तपिश मिली तो आप कहेंगे कि आहा बड़ा सुख है.लेकिन सुख कहाँ है वो.पाया क्या आपने.सिर्फ सर्दी को घटा दिया गया.उसे आपने सुख मान लिया.तो इन्द्रिय बोध के कारण लगा आपको कि ये सुख है और इसी लालसा में आप दिन रात काम करते हैं.ये मिले, वो मिले,ये करूँ,वो करूँ,ऐसा करूँ,वैसा करूँ.

और जब आप ये सब करते हैं तो आप भूल जाते हैं कि काल का पंजा आपकी गर्दन पर है.कितनी ही planning कर लीजिए.कितना ही सोच लीजिए लेकिन ये सब खत्म हो जाएगा.कुछ रह नही पायेगा.याद रखिये.
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