Monday, March 14, 2011

यह जीव उस कुत्ते के समान है जो भूखवश भोजन पाने के लिए द्वार-द्वार जाता है:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 12th March, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.बचपन में जब हम स्कूल में थे तो स्कूल के बच्चे एक प्रार्थना गाते थे :
तुम्ही हो माता,पिता तुम्ही हो,
तुम्ही हो बंधु,साख तुम्ही हो.
तुम्ही हो साथी,तुम्ही सहारे,
कोई न अपना सिवा तुम्हारे.

उस समय मुझे इस प्रार्थना का अर्थ समझ ही नही आता था क्योंकि मम्मी-पापा भी साथ में थे. भाई, बंधु, बांधव, सखा सभी तो साथ में थे.इस प्रार्थना को हम गाते तो जरूर थे पर मानते नही थे.धीरे-धीरे बड़े हुए तो देखा अरे सखियाँ तो बिछड़ गई.तब लगा चलो माँ-बाप तो साथ में हैं.फिर एक दिन ऐसा आया कि माँ,बाप,भाई सब बिछड़ गए.तब समझ में आने लगा कि सच में सारे रिश्ते कालक्रम में समाप्त हो जाते हैं और तब रह जाता है एक ही रिश्ता.भगवान से हमारा रिश्ता.

इस रिश्ते को पहचाने बगैर हम झूठी माया में धंसते चले जाते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरी करने के फेर में पड़कर बारम्बार जीवन-मृत्यु को गले लगाते रहते हैं.अजीब बात है.है न.पर इंसान की इसी अजीब प्रवृत्ति पर प्रकाश डाल रहा है हमारा आज का श्लोक.श्लोक बहुत ही ध्यान से सुनिये,बहुत अच्छा लगेगा आपको:
क्षुत्परितो यथा दीनः सारमेयो गृहं गृहम |
चरन विन्दति यद्दिष्टं  दण्डमोदनमेव वा||
तथा कामशयो जीव उच्चावचपथा भ्रमन|
उपर्यधो वा मध्ये वा याति दिष्टं प्रियाप्रियं ||(भागवतम,4.29.30-31)
अर्थात् 
यह जीव उस कुत्ते के समान है जो भूखवश भोजन पाने के लिए द्वार-द्वार जाता है.वह अपने प्रारब्ध के अनुसार कभी दण्ड पाता है और खदेड़ दिया जाता है,अथवा कभी-कभी खाने को थोडा भोजन भी पा जाता है.इसीप्रकार,जीव भी अनेकानेक इच्छाओं के वशीभूत होकर अपने भाग्य के अनुसार विभिन्न योनियों में भटकता रहता है.कभी वह उच्च स्थान प्राप्त करता  है तो कभी निम्न स्थान.कभी वह स्वर्ग को जाता है,कभी नरक को,तो कभी मध्य लोकों को जाता है.

तो देखा आपने कितनी सुन्दर बात आपको यहाँ बतायी गई है.सुन्दर जानकारी.जीव की तुलना कुत्ते से की गई है.आपने कुत्ते को देखा होगा.जब आप रास्ते पर चलते हैं तो कितने ही कुत्ते होते हैं जो भौकते रहते हैं.कभी आप उनकी आदतों पर ध्यान दीजिए.आप देखेंगे कि वो बारम्बार यहाँ-वहाँ डोलते रहते हैं.हमेशा भूखे रहते हैं.कभी इस द्वार पर,कभी उस द्वार पर जाते रहते हैं.उन्हें लगता है कि शायद यहाँ भोजन मिल जाए.कभी कूड़े को ढूँढने लगते हैं.कूड़े में कई बार वो पानी नाक घुसाकर उसे सूंघते हैं कि यहाँ खाने के लिए कुछ पड़ा तो नही है.कितना-कितना दर्दनाक जीवन होता है कुत्तों का.

लेकिन सभी कुत्तों का जीवन दर्दनाक नही होता है.ऐसे कुत्ते जिनके मालिक धनी हैं उनका जीवन बहुत अच्छा होता है.है न.प्रारब्ध के अनुसार उन्हें बहुत बड़ा reward मिलता है और कभी-कभी उसको भी डाँट मिलती है.फटकार मिलती है.तो ये सब क्या है?जीव किसप्रकार कुत्ते के समान है?ये चर्चा क्यों की गई है?इन सभी बातों पर हम प्रकाश डालेंगे.आप बने रहिये हमारे साथ कार्यक्रम समर्पण में.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

क्षुत्परितो यथा दीनः सारमेयो गृहं गृहम |
चरन विन्दति यद्दिष्टं  दण्डमोदनमेव वा||
तथा कामशयो जीव उच्चावचपथा भ्रमन|
उपर्यधो वा मध्ये वा याति दिष्टं प्रियाप्रियं ||(भागवतम,4.29.30-31)
अर्थात् 
यह जीव उस कुत्ते के समान है जो भूखवश भोजन पाने के लिए द्वार-द्वार जाता है.वह अपने प्रारब्ध के अनुसार कभी दण्ड पाता है और खदेड़ दिया जाता है,अथवा कभी-कभी खाने को थोडा भोजन भी पा जाता है.इसीप्रकार,जीव भी अनेकानेक इच्छाओं के वशीभूत होकर अपने भाजी के अनुसार विभिन्न योनियों में भटकता रहता है.कभी वह उच्च स्थान प्राप्त करता  है तो कभी निम्न स्थान.कभी वह स्वर्ग को जाता है,कभी नरक को,तो कभी मध्य लोकों को जाता है.

तो देखिये यहाँ जिस category के कुत्ते के बारे में बताया गया है वो आवारा कुत्ते कहलाते हैं.वो जिनका कोई मालिक नही होता.जो अपने को मालिक समझता है.उसकी हालत यहाँ बतायी गई है कि कितनी बुरी हालत होती है.वो भूखा होता है,तडपता रहता है पर उसे पता नही होता कि अन्न का दाना उसे कहाँ मिलेगा.कहाँ उसे भोजन मिलेगा.वह द्वार-द्वार भटकता है.यहाँ वहाँ भटकता है.अपने आप को संभालने के लिए,अपने वजूद को बचाने के लिए वो अनेकानेक कुत्तों से लड़ाई भी करता है.दूसरे कुत्ते कईबार उसे घायल भी कर देते हैं.कभी-कभी उसे थोडा भोजन कोई दया करके दे भी देता है.थोडा-बहुत खाने को मिल जाता है.

और उसी में वो इतना मस्त हो जाता है कि उसे लगता है कि हाँ,देखो मैंने इतना श्रम किया तो मुझे भोजन मिल गया.फिर दुबारा से भूख लगती है तो वो द्वार-द्वार भटकता है.कभी उसे दण्ड मिलता है.कभी कुत्ते को आप दुत्कार भी तो देते हैं न.कुत्ता जब आपके सामने आता है तो आप उसे दुत्कार देते हैं.खदेड़ देते हैं उसे.हटो,भागो यहाँ से और कोई-कोई जो बहुत-ही दयावान व्यक्ति होता है वो सोचता है कि चलो इसे खाने को कुछ दे देते हैं.लेकिन ये गारंटी नही होती कि उसका पेट भरेगा ही भरेगा.आज के दिन उसे खाना मिलगा ही मिलेगा.जब रात को उसे नींद आती है तो वो कहाँ जाए.वो बेचारा कभी किसी गैरेज में घुस जाता है.कभी कही घुस जाता है.फिर कभी किसी की नजर पड़ती है तो लोग लाठी लेकर उसके पीछे दौड़ते हैं.है न.

तो मालिक के बगैर यदि कोई कुत्ता है.जिसका कोई मालिक नही है.तो उस बेचारे को दर-दर भटकना पड़ता है.लेकिन सोचिये ऐसा कुत्ता जिसका मालिक है वो कितने शान से अपने मालिक की गोद में बैठा रहता है.मालिक उसे पुचकारता है,प्यार करता है.खुद नहलाता है.अच्छे-अच्छे बिस्किट ले करके आता है.खाने का प्रबंध करता है.घुमाने ले जाता है.उसे कोई बीमारी न हो इसके लिए उसे टीके लगवाता है.कितना-कितना ध्यान रखता है मालिक अपने कुत्ते का.है न.

तो देखिये यहाँ बड़ी सुन्दर समानता दी गई है जीवात्मा और कुत्ते के बीच.तो यहाँ बताया गया है कि जो जीवात्मा बिना मालिक के घूम रही है.जो खुद को मालिक समझती है.जो सोचती है मै करता हूँ.जो भगवान को नही मानती वो कुत्ते की तरह दरबदर भटकती है.लाखों,करोडो यानियों में वो जाती है.बारम्बार यातनाएं सहती है.

लेकिन ऐसा कुत्ता,ऐसी जीवात्मा जो भगवान की pet हो गई है.भगवान के आसरे में आ गई है.शरण में आ गई है उसे इतनी मुसीबतें नही झेलनी पड़ती.वो बड़े प्यार से रहती है और आध्यात्मिक लोग में हमेशा,हमेशा आनंद की अनुभूति उसे होती रहती है.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
यह जीव उस कुत्ते के समान है जो भूखवश भोजन पाने के लिए द्वार-द्वार जाता है.वह अपने प्रारब्ध के अनुसार कभी दण्ड पाता है और खदेड़ दिया जाता है,अथवा कभी-कभी खाने को थोडा भोजन भी पा जाता है.इसीप्रकार,जीव भी अनेकानेक इच्छाओं के वशीभूत होकर अपने भाजी के अनुसार विभिन्न योनियों में भटकता रहता है.कभी वह उच्च स्थान प्राप्त करता  है तो कभी निम्न स्थान.कभी वह स्वर्ग को जाता है,कभी नरक को,तो कभी मध्य लोकों को जाता है.

देखिये इस श्लोक में आपको बहुत बड़ी जानकारी दी गई है.बड़े ध्यान से सुनने का प्रयास कीजिये.यहाँ जीव की तुलना कुत्ते से की गई है.जीभ की भी अनेकानेक इच्छाएं होती हैं और जब वो खुद को मालिक समझता है.जब सोचता है कि इन इच्छाओं को मुझे ही पूरा करना है तो वो अनेकानेक प्रकार के कर्म करता है.वो सोचता है कि मेरे कर्म मुझे मेरी इच्छाओं के करीब ले जायेंगे और अपनी इच्छाओं के पीछे भागते-भागते,भागते-भागते वो मनुष्य जीवन को लूटा देता है.और तब उसके प्रारब्ध के अनुसार उसे दूसरी योनियाँ प्राप्त होती है.

तो देखिये ये तो आपको पता ही होगा कि चौरासी लाख प्रकार के शरीर होते हैं.चौरासी लाख प्रकार की योनियाँ होती हैं.जैसा कि श्लोक भी आया है:


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