Wednesday, March 9, 2011

सिर्फ भक्ति से ही प्रभु हासिल किये जा सकते हैं:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 6th March, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.अगर मै आपसे पूछूं कि आपके कितने दोस्त हैं तो शायद आप अनेक लोगों के नाम गिना दे.फिर मै पूछूं कि बताईये इनमे से आपका best friend कौन है तो आप एक का नाम बता दे शायद और फिर यदि मै आपसे ये पूछूं कि ऐसे best friend का नाम बताईये जो सदा से आपका साथ निभाता रहा हो.जिसने आपको सिर्फ दिया ही दिया हो बिना किसी अपेक्षा के.कभी भी आपसे उसने कोई शिकायत न की हो.तो आप क्या कहेंगे.अब शायद जबाव मुश्किल होगा क्योंकि स्कूल में हर class में आपके best friend बदले.नए स्कूल में नए best friend बने और जब आप कॉलेज गए तो वहाँ कोई और best friend बना.ऑफिस में कोई और बना.

इसतरह लोग आते रहे.जाते रहे.कोई टिका नही.शिकवे भी रहे,नाराजगी भी रही.इसीलिए इंसान कई बार कह उठता है:
यूँ तो है यहाँ लोगों का मेला 
फिर भी कितना तन्हा मै अकेला.

और भीड़-भार वाले शहर में आदमी वाकई बेहद तन्हा,अकेला होता भी है क्योंकि उसने किसी की दोस्ती ठुकरा दी होती है.जी हाँ.भगवान ने आपकी तरफ दोस्ती का हाथ कब से बढ़ाया हुआ है पर आपने कभी भी उसे थामा ही नही.

जितने मन से आप अपने दोस्तों के लिए उपहार चुनते हो उतने मन से भला भगवान के लिए कुछ चुना है आपने.अपने स्वार्थी दोस्तों को हजारों का उपहार बेशक आपने दिया और भगवान को दो रुपये के सादे-गले भूल चढा कर आपने अपना दामन झाड़ लिया.बात सही है न.अपने बाल-बच्चों को तो मीठी-मीठी खीर,पूरी खिलाई आपने और भगवान के सामने चुटकी भर चीनी रखकर कह दिया भाई इसे में खुश हो जाओ.फिर जब कभी आपका कोई काम बिगड़ गया तो खूब कोसा आपने ईश्वर को.

सोचिये इसे ही भक्ति कहते हैं आप और चाहते हैं कि भगवान हमसे खुश रहे.ईश्वर को खुश करने के चक्कर में लोग जाने क्या-क्या करते हैं पर फिर भी सफल नही हो पाते.आखिर कमी कहाँ रह जाती है.यही जानकारी आप तक ला रहा है हमारा आज का श्लोक.श्लोक ध्यान से सुनिए:
न साधयति मां योगो न सांख्यं धर्म उद्धव । 
न स्वाध्यायस्तपस्त्यागो यथा भक्तिर्ममोर्जिता ॥(श्रीमद्भागवत,11.14.20)
अर्थात्
हे उद्धव मै न तो योग से.न सांख्य से,न धर्म से,न स्वाध्याय से,न तपस्या ,न ज्ञान से प्रसन्न होता हूँ.मुझे तो केवल शुद्ध भक्ति से ही जीता जा सकता है.
तो देखा भगवान को पाने का तरीका.हम कितने-कितने तरीके से भगवान की तरफ मुड़ते हैं लेकिन फिर भी जान नही पाते हैं कि क्या हम सही दिशा में चल रहे हैं.क्या सच में हम अपनी मंजिल तक पहुँच जायेंगे और कई बार तो हमे पता भी नही होता कि हमारी मंजिल आखिर है क्या.है न इतने सारे कठिन सवाल.लेकिन हमारे साथ बने रहिये.इन सवालों के जबाव देने का हम प्रयास करेंगे.इसी कार्यक्रम में,समर्पण में.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
न साधयति मां योगो न सांख्यं धर्म उद्धव । 
न स्वाध्यायस्तपस्त्यागो यथा भक्तिर्ममोर्जिता ॥(श्रीमद्भागवत,11.14.20)
अर्थात्
हे उद्धव मै न तो योग से.न सांख्य से,न धर्म से,न स्वाध्याय से,न तपस्या ,न ज्ञान से प्रसन्न होता हूँ.मुझे तो केवल शुद्ध भक्ति से ही जीता जा सकता है.
तो देखिये भगवान आपको तरीका बता रहे हैं जिसके द्वारा आप भगवान को प्राप्त कर सकते हैं.लेकिन कई बार हम भगवान के बताये गए तरीके पर विश्वास करते ही नही.हम मनोकल्पित यानि कि हमारे मन में जो आया,हम उसके अनुसार भगवान की तरफ बढ़ निकलते हैं.लेकिन भगवान कहते हैं कि ऐसे काम नही चलेगा.मुझ तक आना है तो मुझसे ये पूछ तो लो कि भाई मुझ तक आने का रास्ता क्या है.कही भटक न जाओ.लेकिन अक्सर हमलोग वही करते हैं.है न.अपने मन के द्वारा सोचते हैं कि चलो योग कर लिया जाए उससे शायद भगवान मिल जाएँ.

तो योग.किसे योग कहते हैं.आज की तारीख में लोग exercise करते हैं और उसे योग का नाम दे देते हैं.योग का अर्थ है जमा यानि दो चीजों के बीच में जोड़.इसे योग कहते हैं.लेकिन यदि आप भगवान के साथ जुडते नही हैं तो आप कुछ भी कर लीजिए योग में वो योग होता नही है.वो सिर्फ शरीर का धर्म होता है.शरीर का कसरत होता है और शरीर की जो ये कसरत है सिर्फ शरीर को तुष्ट बनायेगी.आत्मा तो वही कमजोर-की-कमजोर रह जायेगी.बिल्कुल कमजोर रह जायेगी आत्मा और आत्मा पुष्ट नही हो पायेगी तो कैसे भगवान की तरफ बढ़ेंगे.असंतुष्ट रह जायेगी आत्मा.है न.

तो यहाँ पर भगवान कहते हैं कि योग से मुझे प्राप्त नही किया जा सकता.लेकिन भगवान ये एक बात ये भी कहते हैं :
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥(भगवद्गीता,6.47)
कि जो व्यक्ति मुझसे जुड जाता है और श्रद्धापूर्वक मेरा भजन करता है वही समस्त योगियों में श्रेष्ठ है.तो हठयोगी,ज्ञानयोगी और अन्य योगियों के बारे में भगवान यही कहते हैं कि श्रेष्ठ नही हैं.श्रेष्ठ वो है जो योग से मुझसे जुड़ गया यानि कि जो मुझसे जुड़ गया.जिसका जमा मेरे साथ हो गया.है न.addition हो गया.

आपकी जिंदगी वीरान थी.सुनसान थी.लेकिन इसमें यदि आपने add कर लिया भगवान को तो आपकी जिंदगी बहुत सुन्दर हो गई.खुशनुमा हो गई.तो ये बात जब आप याद रखते हैं कि जुडना किसके साथ है.योग किसे कहते हैं.जब आप इसकी परिभाषा ठीक से समझ जाते हैं तभी आप भगवान की तरफ मुड पाते हैं.लेकिन ये जो आप सोचते हैं कि हम ध्यान कर ले तो भगवान मिल जायेंगे.तो भगवान इसके बारे में भी कहते हैं कि ध्यान करना तो सही बात है पर कलियुग में कहाँ ध्यान कर पायेंगे आप क्योंकि कलयुग तो कलह का युग है वहाँ ध्यान करना मुश्किल है.

तो सोचिये भगवान को कैसे प्राप्त किया जाए.सिर्फ भक्ति से ही प्रभु हासिल किये जा सकते हैं.प्रभु के पास पहुँचा जा सकता है.याद रखिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपका स्वागत है.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा .हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
हे उद्धव मै न तो योग से.न सांख्य से,न धर्म से,न स्वाध्याय से,न तपस्या ,न ज्ञान से प्रसन्न होता हूँ.मुझे तो केवल शुद्ध भक्ति ही रास आती है.
तो यदि कोई भगवान को सांख्य धर्म से जानना चाहता है तो यहाँ भी भगवान कहते हैं कि कोई फायदा नही है.क्यों?क्या होता है सांख्य?

जब आप इस संसार के विभिन्न अवयवों के बारे में जानना चाहते हैं.संसार कैसे बना है?इसके विभिन्न तत्त्व क्या है?ये 
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।(भगवद्गीता,7.4)
भगवान की ये आठ प्रकृति.जब आप इसके बारे में पूर्णतया जानकारी हासिल करना चाहते हैं.जब आप आत्मा के बारे में जानना चाहते हैं.जब आप इनके controller के बारे में जानना चाहते हैं तो ये जो जानकारी है अगर आपको प्राप्त हो जाती है तो ये ज्ञान कहलाती है.लेकिन ये ज्ञान तब तक शुष्क है,सोखा है जब तक इसमे भक्ति का रंग न मिला दिया जाये.जब इसमे भक्ति मिला दी जाती है तब ये सरस ज्ञान बन जाता है.लेकिन यदि आप सिर्फ सांख्य के बारे में जान ले ,पृथ्वी के अवयवों के बारे में जान ले.संसार के विभिन्न तत्त्वों के बारे में जान ले,आत्मा के बारे में जान ले,मन,बुद्धि,अहंकार के बारे में जान ले तो काम नही चलेगा.इससे भगवान हासिल नही होंगे.

और कोई व्यक्ति बहुत अपना धर्म परायण हो जैसे कि एक student का धर्म है पढाई करना.आपको पता ही है.या फिर एक गृहस्थ का धर्म है अपने घर-बार की देखभाल करना.या फिर एक सैनिक का धर्म है पाने देश की रक्षा करना.ये सारे धर्म जैसे कि एक businessman  का धर्म है अच्छा business करना,अच्छा profit कमाना.ये सारे-के-सारे धर्म आपको भगवान की प्राप्ति नही करा सकते.ये भगवान स्वयं कह रहे हैं कि ये सारे धर्म भी fail हो जायेंगे.तो pass क्या होगा भाई?भगवान कहते हैं:
मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।(भगवद्गीता,14.26)
कि जो मुझे शुद्ध भक्ति से,शुद्ध प्रेम से भजेगा,मेरी सेवा करेगा वो मुझे प्राप्त कर सकता है.तो भक्ति का अर्थ हुआ प्रेममयी सेवा.भक्ति का अर्थ हुआ:
सर्वोपाधि-विनिर्मुक्त तत-परत्वेण निर्मलम।
ह्रषिकेण ह्रैकेश-सेवानाम भक्तिर उच्यते॥(नारद-भक्ति-सूत्र)
भक्ति की ये परिभाषा है.जब आप अपनी सारी उपाधियों से मुक्त हो जाए.सारी उपाधियाँ-मै माँ हूँ,मै इस देश का नागरिक हूँ,मुझे ये पुरस्कार मिला,मै sir हूँ,मै madam हूँ,मै ये हूँ,मै वो हूँ.मै डॉक्टर हूँ,मै इंजिनियर हूँ.तरह-तरह की बातें.मुझे ये पदक मिलते हैं.मेरे पास इतनी डिग्री है.मेरे पास ये है,वो है.ये उपाधियाँ है और ये क्या हैं?बेकार.व्यर्थ की चीजें हैं.

जब आप इनकी grip से छूट जाए,जब आप इनके चंगुल से छूट जाए तब आप पहला कदम रखेंगे भक्ति की दुनिया में.तब आप काबिल होंगे कि आप भगवान को समझने का प्रयास कर सके.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
न साधयति मां योगो न सांख्यं धर्म उद्धव । 
न स्वाध्यायस्तपस्त्यागो यथा भक्तिर्ममोर्जिता ॥(श्रीमद्भागवत,11.14.20)
अर्थात्
हे उद्धव मै न तो योग से.न सांख्य से,न धर्म से,न स्वाध्याय से,न तपस्या ,न ज्ञान से प्रसन्न होता हूँ.मुझे तो केवल शुद्ध भक्ति से ही जीता जा सकता है.
बहुत बड़ी बात है.तो पहले ये तो जान लीजिए क्या होती है शुद्ध भक्ति?
सर्वोपाधि-विनिर्मुक्त तत-परत्वेण निर्मलम।
ह्रषिकेण ह्रैकेश-सेवानाम भक्तिर उच्यते॥(नारद-भक्ति-सूत्र)
जब आप समस्त उपाधितों से,कैसे उपाधियाँ?देखिये आत्मा की तो कोई उपाधि होती ही नही.ये जो सारी उपाधियाँ हैं कि मै उसकी मौसी हूँ,उसकी मम्मी हूँ,उसका पापा हूँ,ये हूँ वो हूँ ये सब देह की उपाधियाँ हैं और देह निर्जीव है,असत् है.देह जड़ है तो उपाधियाँ क्या हो गई?जड़ हो गई.है न.क्योंकि देह जड़ है तो उपाधियाँ जड़ हो गई.आत्मा को जड़ को लादकर क्या मिलेगा?आत्मा की यदि आपको भलाई चाहिए तो इस जड़ को आपको फेकना पड़ेगा.उपाधियों से दूर हो जाईये.सब कोई मेरे हैं क्योंकि वो भगवान के हैं.जब इस रिश्ते जब आप अपना लेंगे न तब आप मै और मेरा से दूर हो पायेंगे.इनसे ऊपर उठ पायेंगे.

तो जब आप मुक्त हो जायेंगे सभी उपाधियों से तब आप निर्मल हो जायेंगे.आपके अंदर कोई मल,कोई दोष शेष नही रहेगा और तब आप हृषिकेश को समझ पायेंगे.हृषिकेश मतलब जो हमारी इन्द्रियों के स्वामी हैं.इन इन्द्रियों को जिन्हें हमें dedicate करना है.इन इन्द्रियों से जिनकी सेवा करनी है,उनको हम समझ पायेंगे और जब हम उन्हें समझ पायेंगे तो जाहिर है कि हमारी इन्द्रियाँ उनकी सेवा में अपने आप रत हो जायेगी.
ह्रषिकेण ह्रैकेश-सेवानाम भक्तिर उच्यते
इसे ही भक्ति कहा जाता है.तो छोटा-सा process है.सिर्फ देह की उपाधियों से दूर होना है.बाद की चीज अपने आप ,अपने आप होती जायेगी.

लेकिन अगर आप सोचे कि मै घर में बैठकर शास्त्रों का अध्ययन करूँगा तो भगवान समझ आ जायेंगे और उनसे प्यार हो जाएगा.तो भगवान कहते हैं-नही,नही ऐसा नही होगा.जैसे कि आप यदि कहे अपने बच्चे को कि भाई तुम स्कूल नही जाओ.यहाँ घर में बैठो और घर में बैठकर के पढ़ाई करो.अब तो तुम्हे क,ख,ग आ गया है.अब पढ़ाई करो और आगे की परीक्षा स्वयं दो.तो कुछ बात बनेगी नही.कई बार बच्चा fail हो जाएगा.उसे एक guidance की जरूरत है चाहे tutor रखिये या स्कूल भेजिए.

इसीप्रकार से यदि आप कहे कि देखिये मै कितनी तपस्या करता हूँ.मै तो सर्दियों में ठंढे पानी से नहाता हूँ और गर्मियों में मै तो धूप में दस घंटे खड़ा हो जाता हूँ.कितने बड़ी तपस्या.भगवान इसे बच्चों का खेल समझते हैं कि ये क्या है.इससे भगवान प्राप्त नही होते.यदि आप सोचे कि चलिए हम थोडा त्याग ही कर ले.थोडा त्याग कर लेते हैं कि हम ये फल नही खायेंगे भगवान के नाम पर.तो ये भी भक्ति नही है.ये भी भगवान सोचते हैं कि क्या बच्चों जैसा खेल खेल रहे हैं.

तो भगवान की शुद्ध भक्ति जो करता है वो भगवान को प्राप्त कर सकता है और इसी विषय में हम आगे चर्चा करेंगे आपसे.सुनते रहिये कार्यक्रम समर्पण.
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