Tuesday, August 2, 2011

कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते हैं,भगवान को याद करके:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 30th July, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.आप किसी को कहिये कि भाई भक्ति कीजिये.प्रभु की भक्ति करने के लिए ही तो मनुष्य जीवन मिला है.तो आप जानते हैं कि लोग क्या कहते हैं.कह देते हैं की अरे भाई अभी तो बहुत काम है,बच्चों को पालना है,पोसना है,नौकरी करनी है.इतने busy हैं हम.time कहाँ है जो भक्ति करे.कुछ तो ये भी कह देते हैं कि भक्ति करना तो बेकार लोगों का काम है.हमारे पास तो बहुत काम है.कुछ लोग कहते हैं कि जब free हो जायेंगे तब भगवान के बारे में सोचेंगे.अभी तो बहुत व्यस्त हैं.

भगवान जानते हैं कि इंसान उन तक न आने के लिए बहुत बहाने बनाता है.इसीलिए तो भगवान कहते हैं :
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ ॥(भगवद्गीता,8.7)
अर्थात्
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो भगवान देखिये यहाँ कितना सुन्दर तरीका आपको बता रहे हैं.कैसे आप भक्ति में रहे.कैसे आप भगवान का ध्यान करे.कईबार लोग मुझसे पूछते हैं कि हम कभी मंदिर नही जाते,हम पूजा-पाठ नही करते तो इसका मतलब क्या हम पापी हैं?भगवान ने देखिये यहाँ नही कहा है कि आप मेरे दरवाजे पर आईये,मेरे दर पर आईये.भगवान ने कहा है कि जहाँ भी आप हैं,जो कुछ कर रहे हैं करते रहिये.किसी चीज को छोडने की जरूरत नही है.कुछ मत छोडिये लेकिन मेरा चिंतन अवश्य कीजिये.कैसे ,र्वेषु कालेषु,हर वक्त,हर समय,हर पल,हर क्षण मेरा स्मरण करते रहिये.

तो भगवान ने बहुत सुन्दर नुस्खा बताया है कि कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते हैं,भगवान को याद करके.है न.भगवान को याद करना बहुत सहज है.बहुत ही सहज है.लेकिन इसके लिए हमें ये याद रखना होगा कि भगवान से हमारा संबंध क्या है?अगर आपको कोई संबंध नजर नही आता तो आप कोई संबंध बना लीजिए.कोई संबंध जोड़ लीजिए.फिर उस संबंध को पोषित कीजिये.धीरे-धीरे,धीरे-धीरे आप उस संबंध के आदी हो जायेंगे और जब वो संबंध आप भगवान से अच्छी तरह से जोड़ लेंगे तब आपको आदत हो जायेगी भगवान के बारे में सोचने की.यही तरीका है जिससे आप हर समय,हर क्षण भक्ति कर सकते हैं और आपका समय भी जाया नही होगा.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो देखिये यहाँ अर्जुन को कहा गया है कि तुम्हे मेरा चिंतन करना चाहिए और युद्ध भी करना चाहिए.दोनों चीजें करनी चाहिए.कभी आपने सुना है कि दो चीजें,दो काम एक साथ हो.थोडा मुश्किल है न.दो काम एक साथ कैसे हो सकता है.लेकिन भगवान कहते हैं कि मन से मेरे बारे में सोचो और तन से अपने कर्त्तव्य को पूर्ण करो.अर्जुन योद्धा थे तो ये अर्जुन का कर्त्तव्य था कि वे युद्ध करे.तो भगवान ने कहा कि देखिये जब आप इतने हिंसक कार्य को कर रहे हैं तो बेशक ये हिंसक कार्य पाप है.लेकिन याद रखना कि ये मेरी आज्ञा से आप कर रहे हैं.मैंने आपको आज्ञा दी है कि आप जो अन्यायी लोग हैं उनका वध करे.

जैसे कि अगर सरकार किसी सैनिक को यह आज्ञा देती है कि वह front पर जाकर लड़ाई करे और वे जब अधिकाधिक शत्रुओं का वध करते हैं तो फिर सरकार उन्हें मेडल देती है.यह पाप नही है.इसीप्रकार जब भगवान की आज्ञा है की आप जाकर के आतातायी लोगों का वध करे.अधर्म का नाश करे और धर्म की स्थापना कीजिये तब ये पाप नही है.और वो भी किसतरह से कीजिये.मेरे लिए कीजिये.मुझे याद करते हुए कीजिये.

तो देखिये याद करने का काम आँखों का नही.याद करने का काम नाक का नही है.याद करने का काम कान का नही है.याद करने का काम सिर्फ और सिर्फ मन का है.शुद्ध मन का है.

तो मन युद्ध नही कर रहा.तन युद्ध कर रहा है.मन खाना नही बना रहा तन खाना बना रहा है.मन पढाई नही कर रहा तन पढाई कर रहा है.है न.तो भगवान ने यहाँ तरीका बताया है कि भाई जो कुछ कर्त्तव्य आपका है उस कर्त्तव्य को आप पूरा करिये.काम करने के लिए भगवान मना नही करते.अर्जुन ने एकबार कहा कि मै जाकर के संन्यास ले लेता हूँ.किसी गुफा में बैठकर के भगवान का नाम लूँगा.ये हिंसा मुझे नही करनी है.तो भगवान ने कहा कि नही,ये तो आपका कर्त्तव्य है क्योंकि आप योद्धा है,क्षत्रिय हैं.

तो इसीप्रकार से अगर एक student कहे ,एक विद्यार्थी कहे कि नही मुझे तो भगवान का नाम लेना है ,मुझे पढ़ाई नही करनी.तो आप इस श्लोक से सीख सकते हैं.भगवान कहते हैं कि नही,पढाई करनी है.अपने कर्त्तव्य को पूर्ण करना हैऔर उस पढाई को भी मुझे समर्पित कर दो.और जब तुम ऐसा करोगे तो उस कार्य से बंधोगे नही.पहली बात.और दूसरी बात कि तुम मेरा चिंतन करो.मेरे बारे में सोचो,मेरे ख्यालों में डूबो.तुम ऐसा करोगे तो तुम सारे कामों को करते हुए भी मुक्त रहोगे और मुझे प्राप्त कर पाओगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर :

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ ॥(भगवद्गीता,8.7)
अर्थात्
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो बहुत सुन्दर बात भगवान ने बतायी है.देखिये कितने ही लोगों के मन में ये संशय रहते हैं कि जो इंसान भक्ति करने के लिए आगे बढ़ता है वो फिर कुछ और नही कर सकता.या फिर जो बहुत कुछ करता है,बहुत सारे काम करता है वो भक्ति नही कर सकता.भगवान ने कहा है कि आप कितने ही कार्यों को करे,कोई समस्या नही है.पर आपके विचार मुझ तक आने चाहिए.आपके विचारों में मेरा वास होना चाहिए.मन से भगवान का चिंतन करना है.मन से.और बुद्धि से भगवान की शरण ग्रहण करनी है.
मन और बुद्धि को भगवान के चरणकमलों में स्थिर करना है.

मन कही जाने न पाए.जिस काम को आप कर रहे हैं मन उस में इतना न रम जाए कि वो काम ही आपके लिए सर्वोपरी हो जाए.भगवान बिल्कुल हाशिए पर आकर खड़े हो जाए.ऐसा मत करना.या आप जिस काम को कर रहे हैं .ऐसे मत करना कि उस काम से इतना प्रेम हो जाए,इतना प्रेम हो जाए कि आपको इस जीवन की अशाश्वतता नजर न आये.आपको ये नजर ही न आये कि ये काम भी एक दिन समाप्त होगा.जो कुछ मई जोड़ रहा हूँ वो भी समाप्त होगा.ये शरीर भी समाप्त होगा.तब क्या होगा?

तब चौरासी लाख योनियों में जाना पड़ेगा.धक्का मार दिया जाएगा हमें.और भगवान यहाँ chance दे रहे हैं.भगवान ने आपसे कुछ नही माँगा.भगवान ने नही कहा कि आप मुझे अपना धन दे दो.भगवान ने नही कहा कि आप अपना सुंदर तन दे दो.भगवान ने आपसे कुछ भी तो नही माँगा.मगर भगवान ने कहा कि जिस संदूक में आप बांध हो न,उस संदूक की चाभी भी आप ही के पास है.ये वही बात हो गई कि आदमी किसी बड़े से संदूक में झाँक रहा हो और फिर उसमे गिर जाए और वो संदूक अपने आप बंद हो जाए.ताला लग जाये.और चाभी उसी आदमी के पास है.

तो भगवान यहाँ बता रहे हैं कि जो यह मायाजाल रचा हुआ है न.इस मायाजाल को काटने के लिए मैंने आपको अस्त्र भी प्रदान कर दिए हैं.सुंदर दो अस्त्र आपको दिए हैं-मन और बुद्धि.भगवान कहते हैं कि इन अस्त्रों को इस्तेमाल करो और ये जो भवबंधन है उसे काटकर मेरे पास आ जाओ.मुझे प्राप्त कर लो.मै बाहर खड़ा हूँ.हाथ फैलाये.और चाभी तुम्हारे पास है.है न.

तो भगवान ये कहते हैं कि मन और बुद्धि भगवान को समर्पित कीजिये ताकि आप अंततः भगवान को प्राप्त कर पाए.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक परभगवान कहते हैं कि
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो भगवान ने सहज उपाय बताया है मगर ये उपाय बहुत-बहुत मुश्किल भी है.आसक्त लोगों के लिए बहुत मुश्किल है.भगवन ने कहा कि आपको अपना काम कर्त्तव्य समझकर करना चाहिए.लेकिन हम लोग क्या करते हैं?हम अपने कर्म में इतना,इतना डूब जाते हैं और उन कर्मों को हम अपनी खुशी के लिए करते हैं.अपनी तुष्टि के लिए करते हैं और जब हम ऐसा करते हैं तब हमारे मन और हमारी बुद्धि दोनों उस कर्म के अधीन हो जाती है.बार-बार हम उसी काम के बारे में सोचते हैं.बार-बार हम सोचते हैं कि कैसे compete करे,इससे हमें क्या लाभ होगा.उस लाभ को प्राप्त करके हम क्या करेंगे,क्या नही करेंगे.बहुत सारे plans हम बनाते हैं.

तो भगवान ने कहा है कि ये सब नही करना है.जो काम तुम कर रहे हो उसे मुझे अर्पित कर दो.मेरे लिए काम करो.अपने लिए मत सोचो.ये मत सोचो कि इस काम से मेरा क्या भला होगा.मेरा विकास कैसे होगा.मै कैसे आगे जाऊंगा.भगवान तो कहते हैं कि कुछ नही करना है.सिर्फ दुनिया भर के कामों को कर्त्तव्य के रूप में करना और उन कामों को मुझे अर्पित कर देना.इससे तुम मुक्त रहोगे.लेकिन जो अपनी  position  से आसक्त होता है या जो पैसों के प्रति आसक्त होता है,जो कार्यों के प्रति आसक्त होता है वो कभी भगवान को प्राप्त नही करना चाहता.कभी नही प्राप्त करना चाहता.सिर्फ सोचता है कि इसी जीवन में मै Best कर लूँ,इसी जीवन में इतना नामी बन जाऊं,इसी जीवन में मेरा इतना यश गान हो जाए.

सिर्फ मेरा,मेरा,मै,मेरा.यही सोचता रहता है और जो व्यक्ति इसप्रकार की सोच रखता है वो प्रभु को सपने में भी प्राप्त नही कर सकता.वो जो भी काम करेगा उसे अंततः निराशा ही हाथ लगेगी.वो जो कुछ करेगा उससे उसे दुःख ही प्राप्त होगा.चाहे वो इस दुःख को समझ पाए या न समझ पाए.कभी भी तुष्ट नही होगा.संतुष्टि उसे कभी प्राप्त नही होगी..

और भगवान इस श्लोक में आपको बहुत अच्छी तरह से बताते हैं कि आप सारे कार्य करना लेकिन मुझे प्राप्त करने का प्रयास जरूर करना.ये न हो कि अपने कार्यों में आप इतने मगन हो जाए कि मुझे प्राप्त करने के बारे में आप सोचे ही न.ये आपको बेकार बात लगे.आप सोचे कि बुढ़ापे में भगवान  को प्राप्त करने के बारे में सोचेंगे.ये गलत ख्याल है.इसीलिए तो भगवान ने कहा है कि बुढ़ापा क्यों?बचपन से आप अपना काम कीजिये.खेलना है खेलिए.लेकिन मन और बुद्धि यदि भगवान में लगे रहेंगे तो किसी भी काम से,किसी भी कर्म से आप बंधेंगे नही.

भगवान कहते हैं कि इसीतरह से एक-न-एक दिन तुम मुझे प्राप्त कर सकोगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
हे अर्जुन!तुम्हे सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए.अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.

तो सही बात कही है भगवान ने.बहुत प्यारी बात बतायी है कि यदि हम भगवान में अपने मन को लगा ले किसी भी तरह से.मन हर बार यहाँ-वहाँ जायेगा लेकिन तो भी यदि हम मन को खींचकर प्रभु के चरणों में वापस लाये और बारम्बार इस चीज का अभ्यास करे तो एकदिन मन भगवान में लग जाएगा.आपके मन में जितने भी प्रश्न हैं उनके उत्तर स्वतः आपको मिल जायेंगे.और अगर आपके प्रश्नों के उत्तर आपको न मिले तो आप अपने गुरु के पास भी जा सकते हैं.महात्माओं के पास जा सकते हैं.इन्हें अध्यात्म का ज्ञान है.

ऐसे ही एक राजा जिनके मन में कुछ प्रश्न थे.जिनके उत्तर की उन्हें तलाश थी.वे एक महात्मा के पास पहुँचे.महात्मा ने कहा कि अभी मेरे पास समय नही है.मुझे  अपनी वाटिका बनानी है.राजा भी उनकी मदद करने में जुट गए.इतने में एक घायल आदमी भागता-भागता आया और गिरकर बेहोश ही गया.महात्माजी ने उसके घाव पर दवाई लगायी.राजा भी उसकी सेवा में लग गए.जब आदमी होश में आया तो राजा को देखकर चौंक उठा और राजा से क्षमा मांगने लगा.अब राजा ने उसका कारण पूछा तो उसने बताया कि वो राजा को मारने के इरादे से निकला था लेकिन सैनिकों ने उसके मंसूबों को भांप लिया और उसपर हमला कर दिया.वह किसीतरह जान बचाकर भागता हुआ इधर पहुँचा है.महात्माजी के कहने पर राजा ने उसे क्षमा कर दिया.

तब राजा ने महात्मा से प्रश्न किया कि मेरे तीन प्रश्न हैं.सबसे पहला कि उत्तम समय कौन-सा है,सबसे बढ़िया काम कौन-सा है और सबसे अच्छा व्यक्ति कौन है?महात्मा बोले कि हे राजन! इन तीनों प्रश्नों का उत्तर तो तुमने पा लिया है.सबसे उत्तम समय है वर्तमान.आज तुमने वर्तमान समय का सदुपयोग करते हुए मेरा हाथ बँटाया और वापस जाने को टाला जिससे तुम बच गए.वो व्यक्ति बाहर तुम्हारी जान ले सकता था.और जो सामने आ जाए वही सबसे बढ़िया काम है.आज तुम्हारे सामने बगीचे का काम आया और तुम उसमे लग गए.वर्तमान को सँवार कर उसका सदुपयोग किया.इसी कर्म ने तुम्हे दुर्घटना से बचाया.और सबसे बढ़िया व्यक्ति वह है जो प्रत्यक्ष हो.उस आदमी के लिए अपने दिल में सद्भाव लाकर तुमने उसकी सेवा की.इससे उसका ह्रदय परिवर्तित हो गया और तुम्हारे प्रति उसका वैर भाव धुल गया.

इसप्रकार तुम्हारे सामने आया व्यक्ति,शास्त्रानुकूल कार्य और वर्तमान समय उत्तम है.

तो कितनी सुन्दर बात महात्माजी ने राजा को बतायी.आप जो कहते हैं कि हम बुढ़ापे में भक्ति कर लेंगे तो पता नही कि बुढ़ापा आएगा कि नही आयेगा.वर्तमान समय ही सबसे उत्तम है.वर्तमान समय को हाथ से जाने न दीजिए.इसी में भक्ति कीजिये और भगवान रूपी रत्न को प्राप्त कीजिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और अब बारी है आपके SMS को कार्यक्रम में शामिल करने की.
SMS: मयूर विहार से ममता कहती हैं-A great thinker was asked,what is the meaning of life.He replied -life itself has no meaning.Life is an opportunity to create a meaning.
Reply: अर्थात्
किसी बहुत बड़े दार्शनिक से पूछा गया की जीवन का अर्थ क्या है तो उसने कहा की जीवन का अपने आप में कोई अर्थ नही है.जीवन एक ऐसा अवसर है जिसमे आप एक अर्थ पैदा कर सकते हैं.

बहुत सुन्दर बात कही है आपने.सच में जीवन एक सुअवसर है.
लब्ध्वा सुदुर्लभमिदं बहु सम्भवान्ते 
मानुष्यमर्थदमनित्यमपीह धीरः|(श्रीमद्भागवत,11.9.29)
बताया गया है कि बहुत ही मुश्किल से ये सुदुर्लभ अवसर आपको प्राप्त होता है मनुष्य रूपी जीवन का जिसमे आप अपनी समस्त समस्याओं से सदा-सर्वदा के लिए छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं.बारम्बार जन्म  लेना,बारम्बार मरना,ये सारी जो सब समस्याएं हैं,जीवन के कारण जो समस्याएं हैं सबसे सदा के लिए मुक्ति हो सकती है.यदि आप इसी जीवन में भगवद्भक्ति प्राप्त कर ले तो.

तो वाकई जीवन एक सुनहरा अवसर है.
SMS: सूरजपुर बागपत से अनिल पूछते हैं कि ये बताईये भगवान कहाँ हैं?
Reply: अनिल जी भगवान कहाँ नही हैं?पहले आप मुझे ये तो बता दीजिए.भगवान कहाँ नही हैं?लेकिन भगवान कहते हैं:

मै अपने अव्यक्त रूप से हर जगह व्याप्त हूँ.वैसे ही जैसे सूरज आसमान में व्याप्त है और अपनी किरणों के द्वारा हर जगह पर व्याप्त है.इसीतरह से भगवान अपने लोक में व्याप्त हैं और जिसतरह सूरज अपनी किरण के रूप में हर जगह व्याप्त है,भगवान अपनी शक्ति के रूप  में हर जगह,कण-कण में व्याप्त हैं.कण-कण में,आप में हैं,मुझ में हैं,हर प्राणी में हैं.

तो भगवान हर जगह हैं.लेकिन हर जगह से भगवान को निकाल लेना,हर जगह में भगवान को देख पाना इसके लिए आपको प्रशिक्षण लेना पड़ेगा.आपको Training लेनी पड़ेगी.जब आप किसी व्यक्ति से जो कि तत्वविद हो,तत्व ज्ञानी हो,जो भगवद तत्व को जानता हो,उससे ये प्रशिक्षण लेंगे कि भगवान को कैसे देखा जाए तो मै आपको बताती हूँ कि आप भगवान को समझ पायेंगे और आपको भगवान जगह नजर आयेंगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम इस समय ले रहे हैं आपके SMS.
SMS: बागपत से दिलीप आर्य लिखते हैं कि ईश्वर पर भरोसा करना सीखना है तो परिंदों से सीखो.जब शाम को घर वापस जाते हैं तो उनके चोंच में कल के लिए कोई दाना नही होता.
Reply: दिलीप जी कितनी सुन्दर बात आपने लिखी है.पक्षी सचमुच इंसान से कितने अलग होते हैं.है न.पक्षियों के लिए यदि आप एक बोरा चावल डाल दे तो वे अपनी चोंच में भरकर उतना ही ले जायेंगे जितना उन्हें जरूरत है.वो कही पर जमा नही करते,जमाखोरी नही करते.वे  ये नही सोचते  कि हम अपना पेट भर लेंगे बरसो और बाकी लोग जाएँ नरक में.हमें क्या लेना-देना.

जबकि इंसान.इंसान तो सोचता है कि एक बोरी चावल क्यों?कही से भी और,और,और अनाज जमा किया जाए.

तो आपने बहुत सुन्दर बात लिखी है.पंछी जब शाम को घर लौटते हैं तो उनकी चोंच में कल के लिए कोई दाना नही होता.लेकिन हम कल के बारे में ही सोचते रहते हैं.आज को बिसरा देते हैं.वर्तमान जो कि सबसे उत्तम समय है.आपने सुना भी.उसे हम बिसरा देते हैं.भूल जाते हैं.उसके बारे में कुछ नही सोचते.बहुत दुःख की बात है.

आपने वाकई बहुत सुंदर बात लिखी है दिलीप जी.
SMS: सुमन सरोजनीनगर से पूछती हैं कि मन को भगवान में कैसे लगाऊं कि भगवान मन की जरूरत बन जाए.
Reply: सुमन जी बहुत सुन्दर प्रश्न है आपका कि मन को भगवान में किस तरह लगाऊं.और आज की चर्चा में बात भी यही रही कि भगवान कहते हैं:
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ 
अगर आप मुझे अपना मन और बुद्धि दे देंगे तो आप असंशय रूप से,बिना किसी शक के मुझे प्राप्त कर सकेंगे.

तो भगवान को आप तभी प्राप्त कर सकते हैं जब आप मन को भगवान में लगाये.लेकिन मन जब तक जगत में लगा रहेगा.जब तक आप इस जगत में सुख ढूंढते रहेंगे तब तक आपका मन भगवान में लगने वाला नही है.ये याद रख लीजिए.जिसदिन आप इस दुनिया के सुखों से बोर हो जायेंगे,उब जायेंगे और आपको इस दुनिया से मिलनेवाले सुख में कोई नवीनता नजर नही आयेगी.जब आपका मन नवीन रस के लिए मचल उठेगा.जब आपका मन ये जानना चाहेगा कि कैसे इस दुनिया के जंजाल से मै छुटकारा पाऊं?क्या करूँ मैं?जब आपको यहाँ का कोई सुख सुखी नही कर पायेगा तभी आपका मन भगवान के चरणों में जाएगा.

तो आप देखिये कि वो समय कब आता है आपके जीवन में.लेकिन फिर भी आप इतना तो कर ही सकते हैं कि आप भगवान का नाम लेते रहिये.भगवान का नाम लेते रहने से आपका मन शुद्ध हो जाएगा और आपका मन भगवान में लगेगा.
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