Friday, May 27, 2011

भगवान सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता हैं :Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 26th March, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.अक्सर लोग भगवान को विभिन्न नामों से पुकारते हैं.कोई उन्हें पिता कहता है तो कोई स्वामी,कोई परमेश्वर तो कोई ईश्वर,कोई भगवान तो कोई परम महान.हर इंसान भगवान की ओर निहारता है.हर इंसान.अपनी मान्यता के अनुसार उन्हें किसी-न-किसी संबोधन से पुकारता है,बुलाता है.शास्त्र भी कहते हैं कि भगवान ही परम पिता हैं.पितामह भी वही हैं और माता भी असल में वही हैं.

हमारा आज का श्लोक भी भगवान के अनेक roles पर अनेक संबोधनों के साथ प्रकाश डाल रहा है.श्लोक ध्यान से सुनिए.श्लोक है:
पिता गुरुस्त्वं जगतामधीशो 
दुरत्ययः काल उपात्तदण्डः | 
हिताय चेच्छातनुभिः समीहसे 
मानं विधुन्वन् जगदीशमानिनाम् || (श्रीमद्भागवत,10.27.6)

अर्थात् 
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो देखिये यहाँ भगवान को कहा गया है कि वे सम्पूर्ण जगत के पिता हैं.जी हाँ,जो create करता है,जो सृजन करता है,जो बनाता है,जो रचना करता है वही तो पिता कहलाता है और शास्त्र कहते हैं कि भगवान ने ही सम्पूर्ण जगत को बनाया है.भगवान ने ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को बनाया है.भगवान ने ही सूरज,चाँद,सितारों को बनाया है.इसलिए भगवान सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के पिता हैं क्योंकि वही बीजप्रदः पिता हैं.भगवान कहते भी हैं:
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः । 
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ॥(भगवद्गीता,14.4)
भगवान स्वयं कहते हैं कि सभी योनियों को हे कुन्तीपुत्र मैंने ही बनाया है.सभी योनियों का बीज मैंने ही प्रदान किया है और बीज जो प्रदान करता है पिता उसे ही कहते हैं.

इसीलिए जो पिता होता है उसका अपने creation पर,अपनी रचना पर पूरा अधिकार होता है और उसका कर्त्तव्य भी होता है कि उसकी रचना,उसके बच्चे सही मार्ग पर चले.मार्ग से कही भटक न जाए.ये जिम्मेदारी पिता की होती है.तो पिता अनेक बार बहुत-ही,बहुत-ही विनम्र तरीके से पेश आता है अपने बच्चों के साथ और कई बार बहुत सख्त भी हो जाता है.

तो भगवान हमारे पिता हैं और कईबार वे बहुत ही प्यार से हमारे साथ पेश आते हैं किन्तु काल के रूप में वे अक्सर सख्त भी हो जाते हैं.तो हम भगवान की इन्ही विविध प्रकार की भूमिकाओं पर चर्चा करेंगे.आप नबे रहिये हमारे साथ.सुनते रहिये कार्यक्रम समर्पण.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
पिता गुरुस्त्वं जगतामधीशो 
दुरत्ययः काल उपात्तदण्डः | 
हिताय चेच्छातनुभिः समीहसे 
मानं विधुन्वन् जगदीशमानिनाम् || (श्रीमद्भागवत,10.27.6)

अर्थात् 
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो भगवान सम्पूर्ण जगत के पिता हैं.ये बात आप जानते हैं.हम कहते भी हैं:
तुम्ही हो माता,पिता तुम्ही हो.
और भगवान स्वयं भी कहते हैं :
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।(भगवद्गीता,9.17)
मै पिता भी हूँ,माँ भी हूँ और पितामह भी मै ही हूँ.तो संबंध तो स्थापित हो गया कि हमारे असली पिता भगवान हैं क्योंकि आत्मा भगवान का अंश है.भगवान कहते हैं:
ममैवांशो जीवलोके भगवद्गीता,15.7)
तो आत्मा असल में भगवान का अंश है.तो जिसका अंश है वही तो पिता हो सकता है.बेशक हम शरीर विभिन्न प्रकार के धारण करते हैं.इस योनि में हमारे पिता कोई और हैं.अगली योनि में कोई और होंगे.पिछली योनि में,पिछले जन्म में कोई और थे.लेकिन जो असल नाता है वो एकमात्र भगवान के साथ है.

और जैसे कि पिता अपने बच्चे के भले के लिए कई बार सख्त हो जाता है.जैसे मान लीजिए पिता ने अपने बच्चे को थोड़े पैसे दिए क्योंकि बच्चे ने कहा-पापा!पापा!थोड़े पैसे दे दो हमें स्कूल में ये पैसे मंगवाए गए हैं.कुछ extra course करना पड़ रहा है.पिता ने दे दिए और बच्चे ने झूठ बोल करके पैसों का गलत इस्तेमाल कर लिया.कही वो सिनेमा देखने चला गया.कही कुछ करने लगा और अचानक पिता को ये बात पता चली.पिता ने अपने बच्चे को दो थप्पड़ मार दिए और कहा कि आज रात का ये खाना नही खायेगा.इसे खाना मत देना या आज ये अपनी मम्मी के पास नही सोयेगा.ईसे बाहर के कमरे में सुला दो.यही इसकी सजा है.

तो देखने में लगेगा कि पिता कितने सख्त हो गए.लेकिन पिता ने बच्चे को control करने के लिए,उसके भले के लिए ही ये सजा दी.इसीतरह से कईबार हमें भी कुछ सजाएं मिलती है.कईबार हमारे भी आँसू निकल आते हैं.कई बार हम पर भी विपत्तियां पड़ती है.हम पर भी दुःख के पहाड़ टूट पड़ते हैं.लेकिन इन दुखों को इसीप्रकार से लेना चाहिए कि भगवान ने हमारे पाप कम करने के लिए,हमारा शोधन करने के लिए,हमे शुद्ध करने के लिए ही ये परिस्थियां हमें कृपा स्वरुप दी है.

जब आप ऐसा समझेंगे तो आप आगे बढ़ने लगेंगे.आपको अपने पिता से,भगवान से कोई शिकायत नही रहेगी.आप भी उन्हें प्रेम करने लगेंगे.याद रखिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक जिसका अर्थ है: 
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो यहाँ जो दूसरी बात कही गई है वो कहा है कि भगवान आप गुरु हैं.आध्यात्मिक गुरु हैं.भगवान आध्यात्मिक हैं.भगवान की ये जो माया है ये भौतिक है और भगवान आध्यात्मिक हैं और भगवान जानते हैं कि भाई ये जो मेरे अंश हैं वे भी आध्यात्मिक हैं.मेरे बच्चे भी आध्यात्मिक हैं.पर  माया से ढक दिए गए हैं.इन्होने इच्छा की थी कि मै इस माया को भोगूँ इसलिए इन्हें ढकना पड़ा ताकि इन्हें ये अभिमान बना रहे कि मै देह हूँ.देह समझेंगे अपने आप को तभी तो देह संबंधी रिश्तों को निभा पायेंगे.उनमे आनंद ढूँढ पायेंगे.

हालाँकि उनमे आनंद इतना होता नही है.हर चीज एक दुःख को जन्म देती है.लेकिन फिर भी भगवान जानते हैं कि आप भी आध्यात्मिक हैं तो भगवान गाहे-बगाहे ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देते हैं आपके लिए कि आपको इस जगत से दुःख मिले और आप एक उब महसूस करे.आप उब जाए और आप ढूँढे असल आनंद को.तब भगवान जो आपके ह्रदय में चैत्य गुरु के रूप में विद्यमान हैं.भगवान आपके ह्रदय में रहते हैं.वो जानते हैं कि मुझे अपने इस बच्चे को आध्यात्मिक दुनिया की तरफ मोडना है.

तो भगवान आपको किसी भक्त से मिला देते हैं या आपके अंदर एक ऐसी इच्छा को जगा देते हैं जो आध्यात्मिक इच्छा कही जा सकती है कि भाई ये सारी चीजें मैंने देख ली.इतने दुःख देख लिए.इस दुनिया पर कैसे विश्वास करूँ.इस दुनिया में कोई किसी का नही होता.आप इतने दुखी हो जाते हैं कि आपको भगवान को याद करना ही पडता है.जब आप भगवान को याद करते हैं और जब आपको पता चलता है कि भगवान से ही आपका असल नाता है तो आप पूर्णरूपेण भगवान के हो जाते हैं.दोनों हाथ उठा लेते हैं और कहते हैं कि भगवान मै सिर्फ-और-सिर्फ आपका हूँ.तब भगवान आध्यात्मिक गुरु की भूमिका निभाते हैं.आपके लिए ऐसे मार्ग को प्रशस्त कर देते हैं जिसपर चल करके आप अंततः इस भौतिक जगत से छूट सकते हैं.

तो ये सब अपने आप नही होता.जब भगवान की अहैतुकी कृपा होती है आप पर गुरु के रूप में तो ये होता है.तब आप पर विपदाएँ पड़ती हैं और आप उन विपदाओं से घबराकर भगवान की शरण ले लेते हैं और भगवान की यदि आप शरण ले लेते हैं तो सच में आप उदारमना कहलाये जायेंगे.आपका सौभाग्य तब जागृत हो जाएगा.याद रखिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:
पिता गुरुस्त्वं जगतामधीशो 
दुरत्ययः काल उपात्तदण्डः | 
हिताय चेच्छातनुभिः समीहसे 
मानं विधुन्वन् जगदीशमानिनाम् || (श्रीमद्भागवत,10.27.6)

अर्थात् 
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो भगवान परम नियंता हैं.हम अपने आप को controller मानते हैं.नियंता मानते हैं.जो कमजोर होता है हम उनपर शासन चलाते हैं.boss अपने subordinate पर शासन चलाता है.पति अपनी पत्नी पर या पत्नी अपने पति पर.माँ-बाप अपने बच्चों पर.इसतरह से जो भी कमजोर होता है हम उसपर शासन चलाते हैं.है कि नही.

लेकिन याद रखिये कि आप बेशक अपने आप को ईश्वर समझ ले लेकिन परमेश्वर सिर्फ एक ही है और वो परम नियंता है.उनकी इच्छा के आगे आपकी इच्छा नही चलेगी.आप चाहे बड़े-बड़े महल बना ले.बड़ी-बड़ी सभ्यताओं का विकास कर ले लेकिन भगवान की जब इच्छा होगी तो वे सभ्यताएं पानी में समा जायेगी.वे सभ्यताएं भूकम्प के चपेट में आ जायेगी.आप कुछ भी कर ले लेकिन काल के आगे आपकी एक न चलेगी.आप सिर्फ अवाक होकर देखते रह जायेंगे कि जो चीज मैंने तिनका-तिनका करके बटोरी थी.इतना श्रम किया था.वो आज मेरे साथ नही है.

और फिर भगवान की परम इच्छा के आगे आपको घुटने टेकने ही पड़ेगे.आपको ये स्वीकार करना ही पड़ेगा कि कोई है जिसके हाथ में हमारी डोर है.कोई है जिसके हाथ में इस जगत की डोर है.कोई है जिसके हाथ में यहाँ के राजा-महाराजाओं की भी डोर है और वो परम नियंता,परम भगवान परमेश्वर हैं.है न.

तो भगवान दुर्लंघ्य काल है जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देते हैं.जैसे कि यदि एक जज किसी को कोई दंड देता है तो वो इसलिए देता है कि भाई इसके पाप कुछ कम हो सके.ये व्यक्ति सुधर सके.थोडा ये पश्चाताप  करे और फिर से एक अच्छा नागरिक बन जाए.इसीप्रकार से भगवान भी लोगों को दंड देते हैं,ये सोच करके कि इस दंड से ये आदमी सुधर जायेगा.ये आदमी पवित्र हो जायेगा.तो इसीलिए भगवान दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ  के लिए दंड देते हैं ताकि पापी अपने पाप से मुक्त हो सके.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो यहाँ पर एक शब्द आया है हिताय.भगवान जो कुछ करते हैं वो सारे जगत के लाभ के लिए करते हैं और जब ये सब होता है तो हम कईबार समझ नही पाते लेकिन बाद में भगवान की कृपा होती है तो समझ आता है.लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो समझना चाहते नही.जो भगवान को मानना चाहते नही.जिनके करनी और कथनी में फर्क होता है.ऐसी ही एक कथा मुझे याद आती है:

जोधपुर के नरेश थे जशवंत जी.वे बड़े ही न्यायी थे,प्रजा-वत्सल थे.उनके जीवन की नीति थी कि सबके सुख में अपना सुख मानना और प्रतिक्षण वे दूसरों का भला करने के लिए जागरूक रहते थे.एकबार उन्होंने सोचा कि मेरा ये एकलौता नौजवान कुंवर आज्ञाकारी है या नही.जरा इसकी परीक्षा लेनी चाहिए.तो उन्होंने कुंवर को बुलाया और कहा कि कुंवर मै जैसा कहूँगा क्या तुम वैसा करोगे.पुत्र ने हाथ जोड़कर बहुत ही विनम्र भाव से कहा कि पिताजी मै कभी भी आपकी आज्ञा का उल्लंघन नही करूँगा.कृपया आप आज्ञा देकर तो देखिये.

तो राजा ने कहा कि बेटा,मेरी हार्दिक इच्छा है कि जिसदिन मेरी मृत्यु हो जाए उस दिन जो कपड़े और आभूषण मेरे तन पर हो उनको उतरना मत और न उनकी अदला-बदली करना.जैसा का तैसा ही मुझे चिता पर जला देना.कोई तुम्हे कितना ही समझाए किन्तु तुम किसी की सुनना मत.कुंवर ने कहा कि पिताजी,ईस आदेश का मै पूर्णतया ध्यान रखूँगा.

राजा ने कुंवर का परिक्षण लेने का निर्णय किया.उन्हें यौगिक क्रियाओं का अच्छा अभ्यास था और वे साँस को रोकने क्रिया में माहिर थे.कुछ महीनों बाद एक दिन राजा ने बहुत ही बहुमूल्य कपड़े और आभूषण पहनकर कुंवर को बुलाया.जैसे ही कुंवर ने प्रवेश किया तो वे बोले कि कुंवर आज मेरे शरीर में काफी बेचैनी है.साँस रुक-रुककर आ रही है.पेट में भी काफी दर्द है.सिर पीड़ा से फटा जा रहा है.अचानक किस पाप का फल मुझे मिल रहा है जो भयंकर रोग ने मेरे शरीर पर आक्रमण कर दिया है.

ये कहते-कहते महाराज जसवंत सिंह ने साँस को रोक लिया और आँखें स्थित करते-करते जमीन पर लुढक गए.शरीर एकदम प्राणविहीन जैसा हो गया.मुँह से झाग भी निकल गया.बस अब तो कुंवर को विश्वास हो गया कि पिताजी मर गए हैं.राजमंत्री उसी समय वहाँ पर उपस्थित हुए.कुंवर ने मंत्री से कहा कि मंत्रीवर कुछ दिन पहले मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि जिसदिन मेरा देहावसान होगा उस दिन शरीर पर रखे हुए बहुमूल्य कपड़ो और आभूषणों को उतारना मत.मुझे उन्ही के साथ जला देना.

फिर मंत्रीवर मै सोच रहा हूँ कि जो होना था सो हो गया.अब तो आयु की डोरी टूट गई.उसे तो पुनः जोड़ा जा सकता नही.अब पिताजी नही रहे तो उनकी काया मिट्टी हो गई.यदि बहुमूल्य वस्त्र-आभूषण नही निकालेंगे तो ये सब व्यर्थ में काया के साथ ही जल जायेंगे.इसलिए मेरी इच्छा है कि ये सब वस्त्र-आभूषण उतारकर उन्हें कम कीमत वाले वस्त्र-आभूषण पहना दिए जाए जिससे राज्य का अधिक नुकसान न हो.यूँ ही वस्त्र और आभूषण मुझे बहुत पसंद हैं.यदि निकाल देंगे तो मै पहन लूँगा और जब ये काम आप कर ले उसके बाद ही सारी प्रजा को आप इनकी मृत्यु का समाचार देना.

ये सारी बातें राजा सुन रहे थे और सोच रहे थे कि इस संसार में मानव का स्वार्थ बहुत गहरा है.तभी तो महापुरुष कहते है कि स्वार्थ का ये संसार.सोचिये संसार इतना स्वार्थी है कि बेटा भी आपका अपना नही रहता.आपके अपने थे,हैं और रहेंगे सिर्फ भगवान.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:
हे भगवन ! आप इस सम्पूर्ण जगत के पिता,आध्यात्मिक गुरु और परम नियंता भी हैं.आप दुर्लंघ्य काल हैं जो पापियों को उन्ही के लाभ के लिए दंड देता है.निस्संदेह स्वेच्छा से लिए जानेवाले विविध अवतारों में आप उन लोगों का मिथ्या गर्व दूर करते हैं जो अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.

तो यहाँ एक और जानकारी आपको बड़ी ही खास दी गई है और वो ये कि भगवान जब पृथ्वी पर आते हैं.प्रकट होते हैं तो वे स्वेच्छा से आते हैं.अपनी इच्छा से आते हैं.कईबार लोग कहते हैं कि अरे भगवान ने जन्म लिया.वो भगवान कैसे गए.उनके जन्म में और आपके जन्म में ये फर्क है कि आप अपनी इच्छा से नही आते.आपको भेजा जाता है.आपके गुण और कर्म के द्वारा आपको जन्म लेना पड़ता है.कोई भी आपके माँ-बाप हो सकते हैं.आप अपने माँ-बाप को चुन नही सकते.

पर भगवान बहुत ही प्यारे हैं.भगवान अपने प्यारे-प्यारे भक्तों को अपने माँ-बाप होने का दर्जा देते हैं और जब भगवान अवतार लेते हैं तो बड़े ही ध्यान से सुनिए -भगवान उस समय धर्म की रक्षा करने के लिए अवतार लेते हैं.दुष्टों का संहार करते हैं और साधुओं की,भक्तों की रक्षा करते हैं.भक्तों को आनंद देते हैं और उनके आनंद के लिए वे विभिन्न प्रकार की लीलाएं करते हैं.

यहाँ बताया गया है कि जब भगवान दुष्टों का संहार भी करते हैं तो वो भी उनके लाभ के लिए होता है.ऐसे लोगों के लाभ के लिए जो अपने आप को इस जगत का स्वामी मान बैठते हैं.भगवान हैं इस जगत के असली स्वामी लेकिन यदि कोई दुष्ट अपने को इस जगत का स्वामी मान बैठे तो बताईये फिर आगे वो कैसे प्रगति कर पायेगा.वो तो वही रूका रह जायेगा.उसकी चेतना जगत में रह जायेगी और उसे बारम्बार जगत में आना-जाना पड़ेगा.इसीलिए भगवान दया करके उसके सामने ऐसे हालात पैदा कर देते हैं.ऐसे हालात पैदा कर देते हैं कि उसका सारा मनोबल टूट जाता है और वो समझ जाता है कि इस जगत का स्वामी मै नही हूँ.

ऐसे लोगों का भगवान मिथ्या गर्व दूर करते हैं.भगवान जब अवतार लेकर आते हैं और जब ऐसे दुष्टों का संहार भी करते हैं तो भी वे उन दुष्टों की भलाई के लिए ये काम करते हैं.इतना पाप  बढ़ चुका है कि अब कुछ हो नही सकता तो भगवान कृपावश ऐसे व्यक्ति को मृत्यु प्रदान करते हैं और मृत्यु के साथ ही उसका उद्धार भी कर देते हैं.उसे आध्यात्मिक लोक पहुँचा देते हैं.पर ये बात उस समय समझ नही आती लेकिन एक भक्त समझ जाता है कि भगवान ने देखों न कितनी कृपा कर दी है.

यही तो फर्क है एक भक्त में और एक अभक्त में.भक्त समझ जाता है और अभक्त समझ ही नही पाता कि भगवान बहुत दयालु हैं.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा और अब बारी है आपके SMS की.
SMS: ये SMS भेजा है अंजली ने.कहती है कि बिना भक्ति के जीवन ऐसा हो जाता है जैसे समंदर के अंदर भी प्यासा बिन पानी के रह जाता है.
Reply: बिल्कुल सही बात है अंजली जी.मगर जो समंदर है उसकी quality ये है कि उसमे बहुत नमक होता है और आप मीठे पानी के आदी हैं.सिर्फ भक्ति में ही मिठास होती है और आप भक्ति की मिठास को ढूँढ रहे हैं लेकिन यहाँ-वहाँ चीनी खा रहे हैं और आपको लगता है कि यही मीठापन है.

भाई भक्ति कीजिये और तब जो मिठास आपको अनुभव होगी वस्तुतः वही आनंद है.

SMS: ये अगला प्रश्न आया है राकेश कुमार का.ये पूछते हैं कि क्या स्वर्ग-नर्क यही पृथ्वी पर है या कही अलग है?
Reply: शास्त्र बताते हैं राकेशजी कि स्वर्ग ऊपर है.पृथ्वी से भी ऊपर है और जो नर्क है वो पृथ्वी से नीचे जो पाताल लोक हैं उसकी तरफ,उसके पास में है.मुख्य नर्क चौबीस-पच्चीस कहे जाते हैं लेकिन छोटे -मोटे नर्क सकड़ों-हजारों है.

लेकिन हाँ आप जब अपने कर्म के अनुसार जब पृथ्वी पर दुःख भोगते हैं तो उन दुखों को नर्क जैसे दुःख कहे जाते हैं और जब सुख भोगते हैं तो कहते हैं कि हाँ भाई,यही स्वर्ग है.

हमें कर्म ऐसे करने चाहिए कि हम स्वर्ग और नर्क से ऊपर जा सके.यानि आध्यात्मिक लोक में जा सके.स्वर्ग में जायेंगे तो भी लौटना पड़ेगा और नर्क में जायेंगे तो भी वापस आना पडेगा.हमेशा आप वहाँ के वासी बनके नहीं रह सकते.इसलिए कर्म आपके ऐसे होने चाहिए कि आप भगवद्धाम जा पाए.
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