Tuesday, August 30, 2011

भगवान को समझने के लिए आप सिर्फ कल्पना का सहारा नही ले सकते:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 6th Aug, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.एक दिन मै मंदिर गई.वहाँ देखा कि एक सज्जन प्रभु की प्रतिमा के आगे बैठकर आँसू बहा रहे थे.कभी उनके आँसू बहते तो कभी होंठो पर मुस्कान तैर जाती.दूसरे लोग उन्हें देखकर हैरान होते.एक ने तो कह भी दिया कि अजी दिखावा है सब.तो दूसरे ने कहा कि माना ये भगवान की मूर्ति है पर पत्थर की ही तो बनी है.वो देख थोड़े ही पाती है.फिर ये अपने भाव किसे दिखा रहे हैं.ये कहने के साथ ही उन्होंने प्रसाद का डिब्बा पुरोहित जी को दिए और बोले कि भोग लगाकर दीजिए तो.

उनकी बात सोचकर मै सोचने लगी कि यदि पत्थर की एक मूर्ति देख नही पाती तो खा कैसे सकती है.या फिर ये लोग सिर्फ रस्मे निभा रहे हैं.मैंने उनसे पूछ ही लिया कि भाई साहब आपको क्या लगता है,प्रभु आपके प्रसाद को खाते हैं?तो वे तपाक से बोल उठे कि नही जी खाते थोड़े हैं.अगर खाने लग जाए तो कोई भी उन्हें भोग नही लगायेगा.मुझे पता चल गया कि जनाब पूजा-पाठ करते जरूर हैं पर भगवान में विश्वास नही करते.उन्हें पता ही नही कि जिस भगवान को वे पत्थर कहते हैं वो पत्थर भी प्रभु की ही शक्ति है.क्या वैज्ञानिक अपने लैब में क्या पत्थर बना सकता है?जो भगवान कण-कण में हैं वो पत्थर में क्यों नही?आपने पत्थर देखना चाहा  तो पत्थर मिला.भावुक भक्त को तो पत्थर में भगवान दिख गए और कृपा भी बरसा गए.उसका हृदय शुद्ध हो गया.

इसीलिए तो शास्त्र कहते हैं

न नामरुपे गुणजन्मकर्मभि-
र्निरूपितव्ये तव तस्य साक्षिणः |
मनोवचोभ्याममनुमेयवर्त्मनो 
देव क्रियायां प्रतियन्त्यथापि हि ||(श्रीमद्भागवत,10.2.36)

अर्थात्
हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


तो सुना आपने भगवान के बारे में कितनी सुंदर बात कही गई है.है न.यहाँ साफ़ तौर पर बताया गया है कि भगवान को समझने के लिए आप सिर्फ कल्पना का सहारा नही ले सकते.भगवान का नाम,भगवान का रूप,भगवान के गुण,भगवान के जन्म और भगवान के कर्म ये दिव्य हैं.इन्हें जड़ बुद्धि से आप नही समझ सकते.आप अपनी आँखों से भगवान का दिव्य रूप नही देख सकते क्योंकि आपकी आँखें जड़ वस्तुओं को देखने की आदी है.

तो जो लोग भगवान के बारे में सिर्फ कल्पना करते रहते हैं और कल्पना के आधार पर भगवान के बारे में निष्कर्ष निकालते रहते हैं ऐसे लोग कभी भी भगवान को तत्त्व रूप में नही जान सकते.भगवान को जानना है तो आपको सिर्फ और सिर्फ भक्ति का सहारा लेना पडेगा.जब कोई व्यक्ति भगवान की प्रेम भक्ति में संलग्न होता है,जब कोई व्यक्ति भगवान से प्रेम करने लगता है,जब कोई व्यक्ति प्रेम से भगवान की सेवा करने लगता है तो जानते हैं क्या होता है?तब भगवान स्वयं प्रकाशित हो जाते हैं.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


तो देखिये कितनी सुंदर बात प्रभु के बारे में.भगवान को यदि आप जानने चले पाने बल पर,अपने knowledge के बल पर,अपने रहन-सहन के बल पर,अपना जो background है उसके बल पर तो आप प्रभु को नही जान सकते.भगवान को जानने के लिए आपको भगवान के प्रति समर्पित होना होगा.पूर्णरूपेण समर्पित.अन्यथा आप सोचे कि भगवान का जो नाम है उसे लेकर के हम क्या सच में भवसागर पार कर पायेंगे.हो सकता है कि इसप्रकार के doubts आपके मन में आने लगे.

तो भगवान का नाम दिव्य है.ये श्लोक आपको बताता है.वो कोई भौतिक नाम नही है.ये नाम ऐसा है,जिसे आप लेते रहेंगे,लेते रहेंगे तो आप कभी थकेंगे नही.आपको नित्य नवीन रस की अनुभूति होगी.प्रभु का नाम ऐसा है जिसमे आपको शांति प्राप्त होगी.वो शांति कैसी?परा शांति प्राप्त होगी.याद है न आपको,आप परा प्रकृति हैं प्रभु की और परा प्रकृति को परा शांति की आवश्यकता होती है.परा शांति भगवान के नामों में छुपी है और भगवान का नाम ऐसा है जो भगवान से अभिन्न है.भगवान और भगवान का नाम एक है.ये आप जानते हैं.है न.

देखिये यदि आप किसी भौतिक वस्तु का नाम लेते हैं तो आप नोट करना कि थोड़ी ही देर में आपको थकावट महसूस होने लगेगी.आप बोर हो जायेंगे लेकिन भगवान का नाम यदि आप सारा दिन भी लेते रहे तो धीरे-धीरे नाम रस जागृत हो उठेगा.आपकी जिह्वा पर वो ऐसा लगेगा कि आप नाम के बगैर रह ही नही पायेंगे.यहाँ तक कि जब आप सोने जायेंगे तब भी आपके ह्रदय में भगवान का नाम गुंजारित हो रहा होगा,गूँज रहा होगा.आप आजमा के देख सकते हैं.

जब आप भगवान का नाम लेने लगेंगे तो आपके हृदय में जितने भी विकार हैं,जितने अशांति है,जितनी भी बेचैनी है वो दूर होने लगेगी.धीरे-धीरे नाम अपना असर दिखाने लगेगा और आपके दिल में भगवान के प्रति भक्ति पहले से ही है लेकिन वो सुप्तावस्था में है,सो रही है.किन्तु जैसे ही आप भगवान के नाम का स्मरण करेंगे,भगवान के नाम का कीर्तन करेंगे तो भगवान का नाम आपको वो भक्ति वापस दे देगा.वो भक्ति जागृत हो जायेगी.भगवान भी कहते हैं:
"नाहं तिष्ठामि वैकुंठे योगिनां  हृदयेषु वा |
तत्र तिष्ठामी नारद यत्र गायन्ति मद्भक्ताः ||"(पद्मपुराण)


"हे नारद ! न तो मै अपने निवास वैकुंठ में रहता हूँ,न योगियों के ह्रदय में रहता हूँ.मै तो उस स्थान में वास करता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरे पवित्र नाम का कीर्तन करते हैं और मेरे रूप,लीलाओं और गुणों की चर्चा चलाते हैं."

तो यदि आपको भगवान को बुलाना है अपने पास,यदि आप भगवान को देखना चाहते हैं तो आप भगवान के नाम का कीर्तन कीजिये,भगवान के नाम का जाप कीजिये.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

न नामरुपे गुणजन्मकर्मभि-
र्निरूपितव्ये तव तस्य साक्षिणः |
मनोवचोभ्याममनुमेयवर्त्मनो 
देव क्रियायां प्रतियन्त्यथापि हि ||(श्रीमद्भागवत,10.2.36)

अर्थात्

हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


तो भगवान का दिव्य नाम,ये सबके समझ में नही आता और इसीतरह से भगवान का दिव्य रूप सबको दिखता नही,सबके लिए प्रकाशित नही होता.भगवान कहते भी हैं:

नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।(श्रीमद्भगवद्गीता,7.25)
कि मै अपने आप को योगमाया से ढँक लेता हूँ,सबको नजर नही आता लेकिन यदि आप उन्हें देखना चाहे तो आप देख सकते हैं.क्यों?क्योंकि भगवान हैं और उन्हें देखा जा सकता है.पर उसकी condition है, शर्त्त है:
प्रेमांजनच्छुरितभक्तिविलोचनेन(ब्रह्म-संहिता)
जी हाँ,आपको अपनी आँखों में प्रेम का काजल लगाना होगा तो भगवान नजर आ जायेंगे.

लेकिन ये जो प्रेम है न वो भगवान से कर पाना बहुत सहज नही है.प्रेम आप अपने आसपास के लोगों से करते हैं,अपने बच्चों से करते हैं,अपनी पत्नी से करते हैं.लेकिन प्रेम भगवान से कर पाना ये जरा मुश्किल है,बहुत मुश्किल है.न ही हमें इसकी कोई training मिली होती है,न ही हमें इसकी कोई जरूरत महसूस होती है.पर यदि आप भौतिक जिंदगी से उब जाए,बोर हो जाए,कही से आपको ये पता चल जाए कि आपकी मनुष्य योनि का लक्ष्य ही प्रभु प्राप्ति है तो शायद आप उस दिशा में बढ़ जाए,शायद आपके ह्रदय में श्रद्धा जागृत हो जाए और धीरे-धीरे साधुसंग करके,भजन क्रिया प्रारंभ करके आप कभी-न-कभी प्रेम के स्तर को भी प्राप्त कर लेंगे.

जो लोग भगवान से प्रेम करते हैं वही भगवान को देख पाते हैं.एक जगह पर भक्त भगवान से कहता भी है कि
"हे भगवान!ये जो आपके चेहरे पर,आप पर ये रोशनी का पर्दा पड़ा है,ये रोशनी का पर्दा हटा लीजिए.मैआपको देख नही पा रहा.ये रोशनी मुझे आपको देखने नही दे रही.ये रोशनी का पर्दा हटा लीजिए."

शास्त्रों में ये जिक्र आया है.ठीक वैसे ही जैसे सूरज.मान लीजिए कोई सुबह जल्दी नही उठता.कोई ऐसा व्यक्ति है जो सुबह कभी भी जल्दी नही उठ पाता है और उसने हमेशा सुबह दस बजे का सूर्य देखा है.दिन में बारह बजे का सूर्य देखा है और अगर कोई उसे बताए कि सूरज में भी ठंढक होती है.तो उसे बड़ी हँसी आयेगी.वह कहेगा कि कैसी बातें कर रहे हो.मैंने तो सूरज को आग बरसाते देखा है.

लेकिन कोई कहे कि तुम सुबह-सुबह सूर्योदय देखो और तब वो देखेगा कि ये orange color का सुंदर-सा ball जैसा ये क्या है और इसे देख करके आँखें ठंढी-ठंढी हो रही हैं.अच्छा लग रहा है ह्रदय को,मन को.तो सूरज को भी आप नंगी आँखों से देख सकते हैं.लेकिन कब?जब वो उदित हो रहा है या अस्त हो रहा है.तो एक condition है,एक परिस्थिति है.इसके लिए आपको सुबह जल्दी उठना होगा या शाम को देर तक आसमान में टकटकी बाँधे देखना होगा.

इसीप्रकार से आप भगवान के रूप का दर्शन कर सकते हैं पर एक शर्त्त है.क्या? आपको भगवान के प्रति प्रेम से पेश आना होगा.आपके व्यवहार में भगवान के प्रति प्रेम-ही-प्रेम हो.आपकी क्रियाओं में भगवान के प्रति प्प्रेम-ही-प्रेम हो तो भगवान स्वयं को प्रकशित कर देंगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


तो देखिये भगवान के गुण,भगवान का जन्म और भगवान का कर्म लोगों को मोहित कर देता है.लोग सोचते हैं कि भगवान यदि पृथ्वी पर आ गए और वे नर रूप में आ गए,इंसान का रूप धर के आ गए तो वे इंसान हो गए.कई लोगों को हमने कहते भी सुना है कि भाई देखिये ये इंसान का रूप धर के आये हैं तो इन्हें सुख और दुःख सहना पड़ेगा.जबकि एक बात आप जान लीजिए कि भगवान यहाँ पर अगर आते हैं तो जो कुछ भी लीला वो करते हैं वह सिर्फ लीला होती है.कोई भी कर्म भगवान को बांध नही सकता.

हम और आप कर्म करते हैं क्योंकि हमने किसी खास गुण को अपने अंदर समाहित किया होता है--सतोगुण,रजोगुण,तमोगुण कुछ भी.लेकिन भगवान तो इन गुणों के निर्माता हैं.तो भगवान को ये गुण बिलकुल भी प्रभावित नही करते.सिर्फ कार्य करते दिखते  हैं लेकिन वे किसी कर्म से लिप्त नही होते.ये बात बारबार रट लीजिए,याद कर लीजिए तब आप भगवान को समझ पायेंगे.

तो भगवान के कर्म और जन्म ये दिव्य हैं.इसीलिए भगवान ने कहा है कि
"जो मेरा जन्म और कर्म की दिव्यता को समझ लेता है वो व्यक्ति कभी भी इस भौतिक जगत में दुबारा जन्म नही लेता."

तो भगवान के जन,कर्म ,गुण,दिव्य नाम को  समझना बहुत ही जरूरी है.तो यदि आप सोचे कि हम स्वयं शास्त्र पढ़ लेते हैं तो हमें समझ आ जाएगा.तो ये संभव नही है क्योंकि हमजिं गुणों में इससमय हैं-सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण.किसी भी गुण में हम होंगे तो शास्त्र की जो व्याख्या है अपने मनमाने ढंग से करेंगे.और कही से हम ये भी कहेंगे कि शास्त्र को भी तो किसी ने लिखा होगा.हम ये नही समझ पायेंगे कि जो भगवान कण-कण में हैं,जिस भगवान ने सूरज को ये आदेश दिया है कि यहाँ इतने समय उदित हो और इतने समय अस्त हो.ऐसे भगवान कितने-कितने दिव्य हैं.उनके बारे में हम अपनी मनमानी व्याख्या करेंगे तो ये अपराध होगा.

उनके बारे में अगर आपको तत्त्व से जानना है तो किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाना होगा जो भगवद तत्त्व में विशेषता हासिल किये हुए हो.जो भगवद् तत्त्वविद हो,जो गुरु हो,जो भगवान के प्रति समर्पित हो.

तो भगवान यहाँ पर बड़े सुन्दर तरीके से आपको ये बता रहे हैं कि आप उन्हें सिर्फ और सिर्फ भक्ति से जान सकते हैं.तो भक्ति बहुत सहज भी है और बहुत मुश्किल भी है.ऐसे लोग जिन्हें शास्त्र के वचनों पर यकीन है,विश्वास है कि जो शास्त्र कहते हैं -आप भक्ति कीजिये ,भगवान को प्राप्त कीजिये और भगवद्धाम जाईये,ऐसे लोग भक्ति कर सकते हैं.जिनमे संशय है वे कभी भी भक्ति की राह पर नही आ सकते और उनके लिए ही भगवान ने कहा है कि ऐसे लोग बारबार पतित हो जाते हैं,बारबार उन्हें मृत्यु पथ पर वापस लौटना पड़ता है.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

हे भगवान ! आपका दिव्य नाम,रूप,गुण,जन्म और कर्म वे लोग नही जान पाते जो सिर्फ कल्पना करके आपके बारे में अनुमान लगाते रहते हैं.आपको तो केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है.


और सही बात है कि भगवान को अपनी कल्पनाओं से नही जान सकते,ये बात समझ ही चुके होंगे आप.देखिये भगवान को जानने के लिए जरूरी है कि हमारे अंदर कुछ गुण उत्पन्न हो.हमारे अंदर दैवीय गुण उत्पन्न हो.और तब हम भगवान को जान सकते हैं.तो इसी बात पर मुझे एक कथा याद आ गई:

एकबार एक professor वेदों के ऊपर lecture दे रहा था अपने students को. lectures के दौरान उन्होंने कहा कि सच्चा ज्ञानी व्यक्ति वो है जो कि बहुत कठिन समय में भी मुस्कराता रहे.ये बात बच्चों को समझ में नही आयी.उन्होंने कहा कि sir,ऐसा कैसे हो सकता है.बहुत कठिन समय आये तो कैसे मुस्कराया जा सकता है.ये बात सुनकर professor ने कहा कि हाँ,तुम सही कहते हो.मैस्वयं भी नही मुस्करा पाता ऐसे समय लेकिन मै एक ऐसे आदमी को जानता हूँ.हमारे ही इधर एक आदमी है जो बिल्कुल सच्चे संत की तरह रहता है.उसे संत कह सकते हो.

जानते हो ,वह एक अनाथ था.जब वो बड़ा हुआ तो एक दुर्घटना में उसकी दोनों टाँगे चली गई और इसीतरह से संघर्ष करते-करते,करते-करते वो  यहाँ तक पहुंचा.मतलब उसका जीवन दर्द की कहानी है लेकिन जब तुम उससे मिलोगे तो देखोगे कि वह हमेशा मुस्कराते रहता है.ये सुनकर सारे विद्यार्थियों ने कहा कि sir,हम तो ऐसे बहादुर आदमी से मिलना चाहते हैं.सबके सब उस व्यक्ति के घर गए और जब उन्होंने दरवाजा खटखटाया तो 73 साल का एकव्यक्ति व्हील चेयर पर बैठकर के दरवाजा खोलने आया और बहुत ही प्यार से मुस्कराते हुए उसने कहा कि कहिये मै आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ.बच्चों ने कहा कि sir,हम ये जानना चाहते हैं कि आप इतनी मुश्किलों में भी,इतने दर्द में भी,इतने pain में भी कैसे मुस्कराते रह सकते हैं.

उस आदमी ने कहा कि देखिये मुझे दर है ये बताते हुए कि आप एक गलत address पर आ गए हैं,गलत पते पर आ गए हैं.मुझे तो कभी कोई दुःख ही नही सहना पड़ा क्योंकि भगवान हमेशा ही मेरे प्रति दयावान रहे,दयालु रहे.उन्होंने अपनी दया के जरिये हमेशा-हमेशा मेरी रक्षा की.मै आपको कैसे सीखा सकता हूँ कि difficulties में कैसे मुस्कराया जा सकता है.कठिन समय में कैसे मुस्कराया जा सकता है.

ये उत्तर सुनकर के सारे के सारे students अवाक रह गए और सही बात है,भगवान भी तो यही बात कहते हैं कि
"हे कुन्तीपुत्र ! जो सुख और दुःख है वो अशाश्वत हैं,अस्थायी है और वे इसीतरह से आते-जाते हैं जैसे कि सर्दी और गर्मी.तो इन्हें सहना सीखिए" 

तो बहुत ही सुन्दर बात है.हमारे अंदर जब ऐसे गुण उत्पन्न होंगे हम तभी प्रभु को समझने का प्रयास कर पायेंगे.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और अब बारी है आपके sms को कार्यक्रम में शामिल करने की.
SMS: महाराष्ट्र से अजय कहते हैं कि हम हवा के बिना एक पल भी नही जी सकते फिर भी पानी को जीवन क्यों कहते हैं?
Reply: अजय जी ,आप बिल्कुल सही बात कहते हैं.हवा के बिना हम एक पल भी नही जी सकते.लेकिन पानी को जीवन इसलिए कहते हैं कि मीठा पानी कम मात्रा में आता है न.गर्मियों में आपके घर में जो पानी है वो बहुत मुश्किलों से आता है.आता है कभी नही भी आता है.आपको रतजगा करना पड़ता है.रात को जागना पडता है.इसीलिए कहा जाता है कि पानी की बूँद-बूँद कीमती है,पानी बचाए.

इसीलिए पानी को जीवन कहा जाता है क्योंकि पानी बड़ी मुश्किल से आपके घर तक आता है.लेकिन देखा जाए तो पानी भी जीवन है,हवा भी जीवन है,पृथ्वी भी जीवन है,अग्नि भी जीवन है.तो इस चीज को आप याद रखिये.

SMS: मल्कागंज,कबीरबस्ती से विनोद कुमार लिखते हैं कि  परा और अपरा प्रकृति का अर्थ समझाईये.
Reply: विनोद जी,परा प्रकृति तो आप स्वयं हैं न भगवान की.भगवान ने बताया है कि जितने भी जीव हैं वे मेरी परा प्रकृति हैं.

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