Wednesday, August 3, 2011

जो हमारे ह्रदय में बैठे हैं उस ईश्वर से हमें प्रेम करना सीखना है:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 31st July, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.कुछ दिन पहले मैंने  उड़ती-उड़ती खबर सुनी कि कुछ दिन बाद scientist ऐसी दवा बनायेंगे जिससे कोई मरेगा नही.सब सदा के लिए जीयेंगे,अमर हो जायेंगे.मई सोचने लगी कि मान लीजिए कि वो दवा खाकर हम जीते रहे और जीते-जीते बूढ़े होते चले गए और फिर बुढ़ापे में खाट पकड़ ली पर प्राण निकले ही नही.खूब तकलीफ झेल रहा हो शरीर.मन बारबार छटपटा रहा हो कि भगवान अब तो उठा लो.लेकिन अमरता की गोली खाकर प्राण निकले ही नही तब सोचिये क्या हालत होगी इंसान की.

और ऊपर से नए लोग तो पैदा होंगे ही पर मरे कोई नही.तो अंततः सब कम पड़ जायेंगे.आप भूख से तड़प रहे होंगे,प्यासे होंगे पर न खाना है,न पानी और न ही प्राण निकलेंगे.तो दुःख भरा जीवन शाश्वत अगर हो जाए तो तकलीफ लोगों को हो जायेगी.कितनी तकलीफ हो जायेगी.इसीलिए देखा जाए तो मृत्यु भी एक वरदान है.पर मृत्यु हल नही है,कोई solution नही है.

सोचिये क्यों इंसान चाहता है कि वो कभी मरे ही नही?क्योंकि वो कभी मरता नही.आत्मा सदा रहती है पर शरीर बदल जाते हैं.क्यों हमे दुःख झेलने पड़ते हैं जबकि हम दुखी होना नही चाहते?जवाब है कि दुखों को हम खुद चुनते हैं.भगवान हमें बताते हैं वो तरीका जिससे हम अमरता को हासिल कर सके बिना कष्ट के.सुख आनंद मिले वो भी बिना दुखों के.भगवान हमारा मार्गदर्शन करते हैं इन शब्दों के द्वारा:
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्‌॥
अर्थात्
"हे अर्जुन ! परमेश्वर प्रत्येक जीव के ह्रदय में स्थित है और भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र में सवार की भांति बैठे समस्त जीवों को अपनी माया से घुमा(भरमा) रहे हैं.हे भारत ! सब प्रकार से उसी की शरण में जाओ.उसकी कृपा से तुम परम शांति को तथा परम नित्यधाम को प्राप्त करोगे."

तो देखा कितना सुंदर श्लोक है.बहुत-ही प्यारा.भगवान बता रहे हैं कि ईश्वर प्रत्येक जीव के हृदय में स्थित है.आपने सुना भी है:
मोको कहाँ ढूंढें से बंदे,मै तो तेरे पास में.
सही बात है.भगवान हमारे पास हैं,हमारे ह्रदय में हैं.तो ये थोड़ी खुशी की बात है और डर की बात भी है.क्यों?क्योंकि खुशी की बात ये हैं कि  अरे वाह! भगवान ,ईश्वर हमारे पास है.कितनी खुशी की बात है कि हम अकेले नही हैं.हमारे साथ भगवान हैं.लेकिन डर की बात ये है कि अब मै कुछ बुरा नही सोच सकता.किसी के लिए गलत नही सोच सकता.स्वार्थी नही बन सकता.किसी का अहित नही कर सकता.क्यों?क्योंकि भगवान सब देख रहे हैं.देख रहे हैं.नोट हो रहा होगा.फल मिलेगा.

तो बहुत सतर्क होना है.जो हमारे ह्रदय में बैठे हैं उस ईश्वर से हमें प्रेम करना सीखना है.है कि नही.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है:

"हे अर्जुन ! परमेश्वर प्रत्येक जीव के ह्रदय में स्थित है और भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र में सवार की भांति बैठे समस्त जीवों को अपनी माया से घुमा(भरमा) रहे हैं.हे भारत ! सब प्रकार से उसी की शरण में जाओ.उसकी कृपा से तुम परम शांति को तथा परम नित्यधाम को प्राप्त करोगे."

तो बड़ी सुन्दर बात भगवान आपको बता रहे हैं.भगवान जो आपके हृदय में स्थित हैं वो जानते हैं कि आप क्या चाहते हैं?वो जानते हैं कि आप चाहते हैं कि माया का सुख लूट सके.इसीलिए भगवान आपको अपनी माया से घुमाते रहते हैं.जैसेकि मान लीजिए एक बहुत बड़ा झूला है और वो झूला कभी ऊपर जाता है,कभी नीचे आता है.तो उस झूले पर कोई किसी को पकड़ कर बिठा नही देता जबरदस्ती.उस झूले पर बैठने के लिए लोग खुद जाते हैं.और उस झूले पर बैठकर सोचते हैं कि हमे आनंद मिलेगा.है न.

इसीप्रकार ये जो संसार है,जो भगवान की भौतिक शक्तियों से निर्मित है.भगवान की माया शक्ति.तो इस संसार में हम अपनी मर्जी से आते हैं क्योंकि भगवान हमारे ह्रदय मे हैं.वो हमारी इच्छाओं को नोट करते हैं.तो भगवान कहते हैं कि मै सब जीव के हृदय में हूँ और आज आपको जो भी परिस्थिति मिली है वो आपको आपके कर्मों के द्वारा मिली है.आपने इसप्रकार के कर्म किये और उसका result आपको भोगना पड़ा है.

कौन दे रहा है ये फल?भगवान कहते हैं-मै क्योंकि मै आपके हृदय में बैठकर सब हिसाब-किताब रख रहा हूँ और आपको यथोचित फल भी प्रदान कर रहा हूँ.तो भगवान हमें यानी कि सारे जीवों को,जीव का अर्थ आप जानते ही हैं.सिर्फ मनुष्य ही नही.जीव का अर्थ है जो भी प्राणी आप अपने सामने देखते हैं ,सब ,भगवान की माया से यहाँ-वहाँ घूम रहे हैं.किन्तु तो भी उस माया से निकलने का एक रास्ता है.

भगवान कहते हैं कि अगर आप सभी प्रकार से भगवान की शरण लेंगे,उस परमेश्वर की शरण लेंगे जो आपके हृदय में स्थित है तो आपको परम शांति प्राप्त होगी.और आपको परम नित्यधाम भी प्राप्त होगा.शांति तो मिलेगी साथ ही नित्य धाम भी मिलेगा.दोनों चीजें एक साथ आपको प्राप्त हो जायेगी.आज आप अशांत हैं क्योंकि आपने ये नही देखा कि जो इस माया के पीछे है वो driver,जो इसे drive कर रहा है.भगवान जो कह रहे हैं कि मै सबको घुमा रहा हूँ. उसे आपने नही देखा,उसे ignore कर दिया जबकि भगवान कहते हैं कि अगर आप उन तक जायेंगे,उन्हें समर्पित होंगे तो ही आपको परम शांति प्राप्त होगी.

तत्प्रसादात्परां शान्तिं ,उन्ही के प्रसाद से,उन्ही की कृपा से.अपने आप अगर शांति को खोजने निकलेंगे,सुख-चैन को खोजने निकलेंगे तो वह आपको कभी प्राप्त नही होगा.जान लीजिए.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽजुर्न तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्‌॥
अर्थात्
"हे अर्जुन ! परमेश्वर प्रत्येक जीव के ह्रदय में स्थित है और भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र में सवार की भांति बैठे समस्त जीवों को अपनी माया से घुमा(भरमा) रहे हैं.हे भारत ! सब प्रकार से उसी की शरण में जाओ.उसकी कृपा से तुम परम शांति को तथा परम नित्यधाम को प्राप्त करोगे."

तो देखिये भगवान ने यहाँ एक तरह से ये स्पष्ट कर दिया है कि वो लोग जो घूम रहे हैं माया के यंत्र पर सवार हो करके.वो ऐसे लोग हैं जो भगवान की शरण में नही गए.वो ऐसे लोग हैं जो अपनी इच्छाओं की शरण में गए.वो ऐसे लोग हैं जो इच्छाओं रूपी मृग मरीचिका को शांत करने के लिए दौड़े जा रहे हैं,दौड़े जा रहे हैं और वे इस छलावे में,इस भूल में सदा-सर्वदा रहेंगे कि उन्हें इस माया के संसार में,इस माया रूपी जगत में सुख प्राप्त हो सकता है.

यहाँ सुख तो है लेकिन perverted रूप में है.असल सुख तो भगवद्धाम में है.परम नित्य धाम में है.भगवान के धाम में है और ये भी स्पष्ट भगवान ने इस श्लोक में कर दिया है.भगवान ने अपने सबसे प्रिय सखा,अपने सबसे प्रिय शिष्य को ये हिदायत दी है,आदेश दिया है कि वो भगवान की शरण में जाए.

आप भी भगवान के प्रिय बन सकते हैं यदि आप भगवान की शरण में आये.आप भी भगवान से प्रेम कर सकते हैं यदि आप भगवान की बातों को माने.यदि आप भगवान की सत्ता को ही नही,भगवान को अपने जीवन का अभीष्ट अंग बना ले.ये न सोचे कि पहले मुझे ये तय करने दो कि भगवान है कि नही है.देखिये इतनी गूढ़ बातें भला कौन बता सकता है.

मान लीजिए कि किसी ने एक breeze बनाया है तो breeze का निर्माता ही तो आपको बताएगा कि इस breeze में क्या खास बात है.इसमें क्या समस्याएं पैदा हो सकती है.इसके साथ आपको किस प्रकार से व्यवहार करना चाहिए.इसीप्रकार से इस जगत को भगवान ने बनाया है.ये जीव भगवान के अंश हैं और दो तरह के जीव हैं.ये बात भी इस श्लोक से उभरकर के सामने आयी है.वो लोग जो भगवान की शरण नही लेते और वो घुमे जा रहे हैं गोल-गोल और वो लोग जो भगवान की शरण लेते हैं.

जो लोग की शरण नही लेते वे बेचारे ऊपर-नीचे आते-जाते रहते हैं.कभी उच्च लोकों में जाते हैं,कभी निम्न लोकों में जाते हैं.कभी पृथ्वी पर बने रह जाते हैं.वो कभी भी छुटकारा प्राप्त नही कर पाते.लेकिन दूसरे लोग जो भगवान की शरण में जाते हैं ,सुखी रहते हैं क्योंकि उन्हें तत्काल परम शांति प्राप्त हो जाती है और बाद में प्राप्त होता है भगवान का परम नित्य धाम.
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कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर  जिसमे भगवान कह रहे हैं:

"हे अर्जुन ! परमेश्वर प्रत्येक जीव के ह्रदय में स्थित है और भौतिक शक्ति से निर्मित यंत्र में सवार की भांति बैठे समस्त जीवों को अपनी माया से घुमा(भरमा) रहे हैं.हे भारत ! सब प्रकार से उसी की शरण में जाओ.उसकी कृपा से तुम परम शांति को तथा परम नित्यधाम को प्राप्त करोगे."

तो आप ये जानते होंगे कि प्रत्येक जीव भगवान की परा प्रकृति है और ये जो material चीजें,निर्जीव चीजें आप देख रहे हैं-भूमि,वायु,जल,अग्नि,आकाश, ये सब भगवान की अपरा प्रकृति है.है न.हम परा प्रकृति जब अपरा प्रकृति से सुख उठाने की कोशिश करते हैं,इसमें सुख ढूंढते हैं तो हमारे प्रयास विफल हो जाते हैं.जिन चीजों में आप सुख ढूंढते हैं वो याद रखियेगा इन्ही पाँचों में तब्दील हो जायेंगी.जल जल में मिल जाएगा.आकाश आकाश में मिल जाएगा.पृथ्वी पृथ्वी में मिल जायेगी.इसीतरह से पाँचों चीजें पाँचों में मिल जायेगी.कार्बन आपके हाथ में रह जाएगा.

और सोचिये शाश्वत आत्मा जो कभी नही मरती वो कार्बन में खुश होती है?वो मिट्टी से खुश होती है?तो मिट्टी से खुश होने की जो प्रवृति है हमारी वो भूल है क्योंकि यहाँ आपको खुशी मिलेगी नही.भगवान कहते हैं कि भाई आप परा प्रकृति है तो आपको परा शांति,परा सुख प्राप्त होना चाहिए.परन्तु वो तभी प्राप्त होगा जब आप परा शक्ति के मूल को पकड़ोगे.जहाँ से ये परा और अपरा दोनों आयी है.कहाँ से आयी है?परा शक्ति कहाँ से आयी है?परा शक्ति भगवान से आयी है.


हम भगवान के अंश हैं ये आप जान चुके हैं.जिसके अंश हैं यदि आप उसके तरफ नही मुडेंगे तो आप अपने जीवन को विफल कर देंगे.तो ऐसा नही होना चाहिए.हमें भगवान के तरफ मुडना चाहिए.भगवान से  प्रीत लगानी चाहिए.
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