Wednesday, May 25, 2011

एक शुद्ध भक्त भगवान से उनके चरणकमलों की सेवा के अतिरिक्त और कुछ नही चाहता:Explanation by Maa Premdhara(102.6 FM)

Spiritual Program SAMARPAN On 20th March, 2011(102.6 FM)
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा .नमस्कार.कैसे हैं आप.अच्छा यदि मै आपसे कहूँ कि आज अभी इस समय ऐसा मुहूर्त्त है कि आप भगवान से जो कुछ मांगेंगे वो सारी मुरादें आपकी पूरी हो जायेंगी तो ये बताईये अभी आप भगवान से क्या माँगियेगा?

क्या कहा नौकरी.लीजिए वो भाई साहब कह रहे हैं गाड़ी.अरे ! उधर बहनजी ने मकान की फरमाइश कर डाली और इधर सेठजी को एक और दुकान बड़े से माल में खोलनी है.वो डॉक्टर साहब अब  अपना नर्सिंग होम बनाना चाहते हैं और ये वकील साहब अब अपनी सफल practice चाहते हैं.वो बेटा परीक्षा में first आना चाहता है तो ये बिटिया पायलट बनना चाहती है.अरे इन्होने तो अपने demands की लंबी लिस्ट ही बना डाली.

यानि सबके पास कुछ-न-कुछ मांग है और ये सारी मांगे आपकी अपनी खुशी के लिए,इन्द्रियतृप्ति के लिए है.इस भीड़ में शायद कोई ऐसा भी है जिसने शुद्ध वर माँगा है.क्या होता है शुद्ध वर?इसी की जानकारी दे रहे हैं हम हमारे आज के श्लोक के द्वारा.श्लोक ध्यान से सुनिए:
न कामयेन्यं तव पादसंवनाद
अकिंचन प्रार्थ्य तमाद्वरं विभो ।
आराध्यकस्त्वां ह्यपवर्गदं हरे 
वृणीत आयों वरमात्मबंधन ||(श्रीमद्भागवत,10.51.55)
अर्थात् 
हे सर्वशक्तिमान !मै आपके चरणकमलों की सेवा के अतिरिक्त और किसी वर की कामना नही करता क्योंकि यह वर उनलोगों के द्वारा उत्साहपूर्वक चाहा जाता है जो भौतिक कामनाओं से मुक्त हैं.हे हरि ! ऐसा कौन प्रबुद्ध व्यक्ति होगा जो मुक्तिदाता आपकी पूजा करते हुए ऐसा वर चुनेगा जो उसका ही बंधन बने?

तो देखिये ये श्लोक आपको बता रहा है कि आपको भगवान से क्या मांगना चाहिए.क्या है वो चीज जो आपके लिए मुक्ति के दरवाजे खोल सकती है?उस सेवा की जानकारी,उस वर की जानकारी,उस कामना की जानकारी ये श्लोक यहाँ दे रहा है.एक शुद्ध भक्त भगवान से उनके चरणकमलों की सेवा के अतिरिक्त और कुछ नही चाहता.अगर आपसे कोई कहे कि भाई हम तो भगवान के पास जाते हैं और भगवान से कुछ नही मांगते.सिर्फ उनके चरणकमलों की सेवा मांगते हैं.तो आपमें से बहुत से लोग कहेंगे कि अरे !ये क्या करते हैं आप.अवसर को यूँ ही हाथ से जाने देते हैं.अगर भगवान कहते हैं कि मांगों तो कुछ अच्छी चीज मांग ली होती न.कुछ लाभ हो जाता.

लेकिन जो व्यक्ति भगवान से कुछ भी न मांगकर सिर्फ उनकी सेवा मांगता है वो व्यक्ति बहुत ऊँचे platform पर स्थित होता है.वो बहुत शुद्ध भक्त होता है.अगर ऐसे शुद्ध भक्तों का संग आपको प्राप्त हो जाए तो समझियेगा कि आपने वाकई कोई बहुत बड़ा पुण्य कर्म किया है कि ऐसा भक्त और ऐसे भक्तों का संग आपको मिल सका.

**************************************************
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

न कामयेन्यं तव पादसंवनाद
अकिंचन प्रार्थ्य तमाद्वरं विभो ।
आराध्यकस्त्वां ह्यपवर्गदं हरे 
वृणीत आयों वरमात्मबंधन ||(श्रीमद्भागवत,10.51.55)
अर्थात् 
हे सर्वशक्तिमान !मै आपके चरणकमलों की सेवा के अतिरिक्त और किसी वर की कामना नही करता क्योंकि यह वर उनलोगों के द्वारा उत्साहपूर्वक चाहा जाता है जो भौतिक कामनाओं से मुक्त हैं.हे हरि ! ऐसा कौन प्रबुद्ध व्यक्ति होगा जो मुक्तिदाता आपकी पूजा करते हुए ऐसा वर चुनेगा जो उसका ही बंधन बने?

कितनी सुन्दर बार यहाँ बतायी गई है.है न.भगवान सर्वशक्तिमान  हैं.भगवान ने आपको शरीर दिया.आप आत्मा के रूप में भगवान के ही अंश हैं.भगवान ने आपको ये कर्मक्षेत्र दिया.ये जगत दिया जहाँ आप विभिन्न प्रकार के कर्म करते हैं.भगवान ने आपको आपके वो सारे रिश्ते-नाते दिए जिनपर आप गर्व करते हैं.सबकुछ भगवान ने दिया.इसपर भी भगवान जब आप पर प्रसन्न होते हैं तो आपसे कहते हैं कि आप हमसे कुछ वर माँगिये और तब भी हमारी जो demands है खत्म नही होती.हम कहते हैं कि हाँ!हाँ! आप हमें ये दीजिए,वो दीजिए.बहुत सारी मांगे हमारी होती हैं.हम कहते हैं कि भगवान हमें वर दीजिए.

और देखिये हमारी प्रार्थनाएँ भी कुछ इसीप्रकार की होती हैं.है न.
जन्म देहि ,विद्या देहि,भार्या देहि और जाने क्या-क्या देहि,देहि.

दो,दो,दो और मै लूँ,लूँ,लूँ.बस यही चलता रहता है.है न.हम कभी नही सोचते कि हे भगवान!आप हमारे लिए इतना कुछ करते हैं.इतना कुछ आपने हमें दिया.हमने आपको क्या दिया?हम कभी ये नही सोचते.हम सोचते हैं कि नही,भगवान का काम है देना और भगवान को उसी कसौटी पर हम मापते हैं कि क्या भगवान ने हमारी इच्छा पूरी कि?अगर नही तो हम भगवान को बदल देते हैं.किसी और को भगवान बना लेते हैं.

लेकिन आप शायद जानते नही हैं कि आप जिसप्रकार के वर की कामना करते हैं.भौतिक वरों की कामना करते हैं वो क्या है 
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्‌ ।(भगवद्गीता,7.23)
भगवान कहते हैं कि वो अन्तवत्तु हैं.वो समाप्त हो जायेंगे.ऐसे वर आपके साथ नही जायेंगे.तो क्यों ऐसी चीज की कामना करते हैं जो temporary है लेकिन ऐसे वर की कामना वही करते हैं जिन्हें ये भौतिक जगत सुखमय लगता है.जी यहाँ हमेशा बने रहना चाहते हैं.जो सोचते हैं कि हाँ,यहाँ बहुत सुख है.जो ये सोच ही नही पाते कि यहाँ सुख नही दुःख है.जो दुखों को देख ही नही पाते ऐसे लोग ही भगवान से भौतिक वर चाहते हैं.

मै आपको बता दूँ कि ये बुद्धिमानी का विषय नही है.ये बुद्धिमत्ता का विषय नही है.अगर आप बुद्धिमान है तो वर इसप्रकार के मांगिये जो आपके साथ जा सके.भगवान से भक्ति मांगिये ताकि आपका जीवन सफल बन सके.
**********************************************

कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है :
हे सर्वशक्तिमान !मै आपके चरणकमलों की सेवा के अतिरिक्त और किसी वर की कामना नही करता क्योंकि यह वर उनलोगों के द्वारा उत्साहपूर्वक चाहा जाता है जो भौतिक कामनाओं से मुक्त हैं.हे हरि ! ऐसा कौन प्रबुद्ध व्यक्ति होगा जो मुक्तिदाता आपकी पूजा करते हुए ऐसा वर चुनेगा जो उसका ही बंधन बने?

तो यहाँ देखिये एक शब्द है मुक्तिदाता.भगवान मुक्ति प्रदान कर सकते हैं.फर्ज कीजिये कि आप एक बहुत बड़े जेल में हैं और इस जेल में आप जन्म-जन्म से हैं,वर्षों से हैं और अचानक पास आपके देश का राजा आ जाए और वो कहे कि वत्स मै आपसे बहुत खुश हूँ.इतना खुश हूँ,इतना खुश हूँ कि क्या कहूँ.तुम मुझसे कुछ मांग लो और आपप कहे कि अगर आप मुझसे इतना खुश हैं राजाजी तो आप मुझे यहाँ पर एक soft bed दे दीजिए.सुन्दर,नरम,मुलायम बिस्तर होगा तो अच्छी नींद आयेगी या आप कहे कि ऐसा है कि चक्की पीसते-पीसते मेरे हाथ बहुत दुःख जाते हैं तो आप यहाँ मुझे एक electric machine दे दीजिए ताकि मै जेल में जो गेंहूँ पीसता हूँ उसे electric machine में पीस लूँ.

तो बताईये इससे वर मांगना मूर्खता होगी कि नही.अरे आपको तो भगवान से मुक्ति चाहिए.वो राजा जो आपके पास आया उसे अगर आप कह दे कि अरे आप मुझे इस जेल से बाहर निकाल लीजिए.यही वर सबसे उत्तम वर है या आप कहे कि हे राजाजी! आप मुझे अपने चरणों की सेवा दे दीजिए.जहाँ भी आप रहे वहाँ मै आपके चरणों की सेवा करता रहूँ.बताईये automatically आप मुक्त हो जायेंगे कि नही.सोचिये.बुद्धि लगाईये तब आपको समझ में आएगा.

तो यहाँ यही कहा गया है कि हे भगवान ! जो लोग ये समझ गए हैं कि ये भौतिक जगत दुखों का घर है.यहाँ पर कुछ भी प्राप्त करना बेवकूफी है.यहाँ पर खुश रहने की उम्मीद करना,सुखी रहने की expectation लिए जीवन गुजारना ये बेवकूफी है,मूर्खता है,जो लोग ये बात अच्छी तरह से समझ गए हैं वे कभी भी ऐसे वर नही चाहेंगे जिससे उनकी भौतिक जिंदगी लंबी हो.

सोचिये.अगर आप सोचे कि हे भगवान एक गाड़ी दे दीजिए.गाड़ी मिल भी गई तो क्या?अब आपको और हजार झंझट भी मिल जायेंगे उसके साथ.गाड़ी कही चोरी न हो जाए.उस पर कही कोई scratch न लगा दे.ये न हो जाए,वो न हो जाए.पेट्रोल डला है कि नही.पेट्रोल की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ गई है.सैकड़ो झंझट और खड़े हो उठते हैं.तो ऐसे वर आप क्यों चाहेंगे.यदि आपको मुक्ति मिलती है तो आप मुक्ति भला क्यों नही चाहेंगे.

तो सोचिये यही,यही एक ताज्जुब की बात है कि भगवान कहते हैं कि आप मेरी तरफ आओ.मै आपको मुक्त कर दूंगा.तो भी सिर्फ मुट्ठी भर लोग ही उनकी तरफ क्यों मुड़ते हैं?क्यों बाकी लोग गृहस्थी का बहाना बनाकर भगवान से कट जाते हैं.भगवान को अपनी जिंदगी में कोई अहमियत नही देते.हैं न हैरानी की बात.
********************************************

कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

न कामयेन्यं तव पादसंवनाद
अकिंचन प्रार्थ्य तमाद्वरं विभो ।
आराध्यकस्त्वां ह्यपवर्गदं हरे 
वृणीत आयों वरमात्मबंधन ||(श्रीमद्भागवत,10.51.55)
अर्थात् 
हे सर्वशक्तिमान !मै आपके चरणकमलों की सेवा के अतिरिक्त और किसी वर की कामना नही करता क्योंकि यह वर उनलोगों के द्वारा उत्साहपूर्वक चाहा जाता है जो भौतिक कामनाओं से मुक्त हैं.हे हरि ! ऐसा कौन प्रबुद्ध व्यक्ति होगा जो मुक्तिदाता आपकी पूजा करते हुए ऐसा वर चुनेगा जो उसका ही बंधन बने?

तो देखिये भगवान के चरणकमलों की सेवा मांगना किसी आम आदमी के वश की बात नही है.ये खास आदमी ही करेगा.ऐसा आदमी जिसके मन से सारी कामनाएँ खत्म हो चुकी होंगी.देखिये वास्तव में ये possible नही है कि मन से सारी कामनाएँ खत्म हो जाए.लेकिन हाँ ये possible है,ये संभव है कि उन कामनाओं का रूप बदल जाए.आपकी कामनाएं अब भगवान के लिए हो.सारी कामनाएँ विमल हो जाए.सारी कामनाएँ भगवान से जुड़ जाए.जब ऐसा हो जाता है तभी एक भक्त भगवान के चरणकमलों की सेवा मांगता है.

क्यों मांगता है?क्योंकि भगवान के चरणकमलों में ही कोई व्यक्ति निर्भय रह सकता है.भगवान कहते भी हैं न कि अगर आप मेरी सेवा करेंगे तो मै आपका योग क्षेम वहन कर लूँगा.तो एक भक्त भगवान कके चरणकमलों की सेवा मांगता है.वो कहता है कि 
न धनं न जनं न सुन्दरीं 
कवितां वा जगदीश कामये।
मम जन्मनि जन्मनीश्वरे 
भवताद् भक्तिरहैतुकी त्वयि॥

हे भगवान न मुझे धन चाहिए,न जन चाहिए, न कोई सुन्दरी चाहिए,न ही चाहता हूँ कि कोई मुझे glorify करे,मेरे ऊपर कवितायें लिखे.हे प्रभु!मेरा हर जन्म सिर्फ आपकी सेवा के लिए हो.शुद्ध भक्त तो ये भी नही कहता कि मेरा जन्म न हो.वो हर जन्म में अपने भगवान की,अपने ईश्वर की सेवा चाहता है.

देखिये एक आम आदमी कहता है कि अरे भाई मुझे धन दो.ये भगवान मुझे followers दो,अनुयायी दो.लोग मेरे पीछे चले.मै यशस्वी बनूँ,मेरा नाम हो और मुझे सुन्दर स्त्री मिले.लोग मुझे awards दे,पदक दे.हाँ,मेरी ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल जाए.पड़-प्रतिष्ठा की लालच में एक व्यक्ति कहाँ-कहाँ नही भटकता.क्या-क्या नही करता और जब वो भगवान के सामने आता है तो उनसे भी वो यही मांग बैठता है.

लेकिन यहाँ कहते हैं कि हे भगवान ये सारी जो demands हैं न वो कुछ और नही बंधन है.सारी मांगे आपके भौतिक जीवन को और लंबी कर देंगी.आपको इन इच्छाओं की पूर्त्ति के लिए कई-कई बार चौरासी लाख योनियों में भटकना पडेगा.आप कभी भी मुक्त नही हो पायेंगे.

तो असली मुक्ति है कि आप अपनी इच्छाओं से मुक्त हो जाएँ और भगवान के हो जाए.भगवान के चरणकमलों की सेवा के अतिरिक्त आपके अंदर और कोई इच्छा कभी भी शेष न रहे.
******************************************

कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर जिसका अर्थ है :
हे सर्वशक्तिमान !मै आपके चरणकमलों की सेवा के अतिरिक्त और किसी वर की कामना नही करता क्योंकि यह वर उनलोगों के द्वारा उत्साहपूर्वक चाहा जाता है जो भौतिक कामनाओं से मुक्त हैं.हे हरि ! ऐसा कौन प्रबुद्ध व्यक्ति होगा जो मुक्तिदाता आपकी पूजा करते हुए ऐसा वर चुनेगा जो उसका ही बंधन बने?

तो भगवान यहाँ आर बता रहे हैं कि देखिये आपको अगर कोई वर चाहिए न तो आप एक ही वर मांगना.वह वह ऐसा है कि आपको हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त कर देगा.इस जीवन में रहते हुए आप मुक्त हो जायेंगे.आप सिर्फ मेरे चरणकमलो की सेवा मांगिये.लेकिन बावजूद इसके इंसान ऐसा नही करता.क्यों?क्योंकि वो अहंकार का मारा होता है.उसे लगता है कि वो लोग जिन्हें कोई काम नही होता वो लोग भक्ति करते हैं.वो लोग भगवान-भगवान करते हैं जो कर्मठ लोग हैं वो भगवान-भगवान नही करते है.भगवान का सहारा नही लेते हैं.अपना सहारा खुद बनते हैं.

तो हमें अपनी बुद्धि पर काफी अभिमान होता है.ऐसे ही किसी आश्रम में अनेक छात्र रहते थे.उनमे से एक student को अपनी बुद्धि पर बहुत अभिमान रहता था.एक दिन उनके गुरु ने उनको एक कथा सुनाई.

घने जंगल में एक बकरी रहती थी.वो अपने को काफी चतुर मानती थी.उसके शरीर पर घने,लंबे,नर्म बाल थे जिसकारण वह बहुत सुन्दर दिखती थी.एक दिन वो घास चर रही थी तभी शिकारियों की नजर उस पर पडी.उन्होंने उसका पीछा करना शुरू किया.बकरी भागती-भागती,भागती-भागती जंगल में एक ऐसी जगह पहुँची जहाँ अंगूर की घनी बेली थी.बकरी बलों के पीछे जाकर छिप गई.

जब पीछा करते हुए शिकारी वहाँ पहुँचे तो बकरी को देख न सके.बड़ी देर तक वहाँ ढूँढने के बाद वो आगे बढ़ गए.बकरी अपनी चतुराई पर बहुत खुश है.तभी उसका ध्यान अंगूर के कोमल पत्तों पर गया.उसने अंगूर के बेल को चरना  शुरू कर दिया.थोड़ी ही देर में उसने सारी झाडी चट कर डाली.तभी शिकारी उसे ढूँढते हुए वापस आ गए और उन्होंने बकरी को देख लिया.थोड़ी देर पीछा करने के बाद उन्होंने उसका शिकार कर लिया.शिकारी आपस में कह रहे थे कि यदि बकरी ने ये झाडी साफ़ न की होती तो इसे पकड़ना नामुमकिन था.बकरी ने अपना आश्रय स्वयं नष्ट किया और वो शिकार हो गई.

गुरु ने कथा यही समाप्त करके कहा कि सफलता के नशे में मनुष्य अपना विवेक खो देता है और स्वयं को संकट में डाल लेता है.इसीलिए अहंकार से बचना चाहिए.

तो देखिये इसतरह बकरी ने अपना आश्रय स्वयं नष्ट किया था उसी तरह हम इस मनुष्य शरीर को प्राप्त करने के बावजूद मनुष्य शरीर का धर्म नही निभाते.हम मनुष्य शरीर में ही भगवान को प्राप्त कर सकते हैं और अपने लिए अपनी मुक्ति का द्वार खोल सकते हैं.लेकिन हम इन्द्रियतृप्ति के पीछे ऐसे अंधे हो जाते हैं,ऐसे पागल हो जाते हैं कि हमें अपना आश्रय नष्ट करते समय तनिक भी,तनिक भी हिचकिचाहट नही होती.हम भगवान को अपनी जिंदगी से हटा देते हैं.

सोचिये जब हम ऐसा करते हैं तो दुर्भाग्य और मृत्यु हमारा शिकार कर लेती है और हमें फिर से चौरासी लाख योनियों में ले जाकर पटक देती है.
************************************************

कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा . हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर:

न कामयेन्यं तव पादसंवनाद
अकिंचन प्रार्थ्य तमाद्वरं विभो ।
आराध्यकस्त्वां ह्यपवर्गदं हरे 
वृणीत आयों वरमात्मबंधन ||(श्रीमद्भागवत,10.51.55)
अर्थात् 
हे सर्वशक्तिमान !मै आपके चरणकमलों की सेवा के अतिरिक्त और किसी वर की कामना नही करता क्योंकि यह वर उनलोगों के द्वारा उत्साहपूर्वक चाहा जाता है जो भौतिक कामनाओं से मुक्त हैं.हे हरि ! ऐसा कौन प्रबुद्ध व्यक्ति होगा जो मुक्तिदाता आपकी पूजा करते हुए ऐसा वर चुनेगा जो उसका ही बंधन बने?

तो देखिये समझदारी इसी में है कि हम भगवान से भगवान को ही मांग ले.न कि भगवान को एक ऐसा माध्यम बना ले जोकि हमारे लिए हमारी कामनाओं की पूर्त्ति में सहायक हो.ऐसा नही करना चाहिए.ऐसा करना मूर्खता है.हमने इस श्लोक में आज सुना कि भगवान की पूजा ये सोचकर के नही करनी चाहिए कि भगवान आप हमारी गरीबी काट दीजिए.भगवान हमें बच्चा नही है हमें बच्चा दो.हमारा घर नही है हमारा घर दो.मेरी शादी नही हो रही है मेरी शादी  हो जाए.ऐसी चीजे भगवान से नही मंगनी चाहिए.अरे यदि आपके प्रारब्ध में ये सारी चीजें हैं तो automatically मिल जायेंगे.स्वतः,अपनेआप.भगवान को आप इन चीजों की पूर्त्ति के लिए जरिया मत बनाईये.भगवान से भगवान को ही मांग लेना चाहिए.भगवान से भगवान की सेवा मांगनी चाहिए.

तो आप भी इस प्रकार से समझदार हो कि आपकी समझ में आ जाए कि भगवान को हमें use नही करना चाहिए.भगवान से हमें सिर्फ-और-सिर्फ प्रेम करना चाहिए.जब आप भगवान से प्रेम करने लगेंगे तो आप देखेंगे कि आपको किसी भी प्रकार की चिंता कभी नही सताएगी क्योंकि आप भगवान की इच्छा में अपनी इच्छा मिला देंगे.कोई भी चीज जो आपके against हुई,आपके खिलाफ हुई तो आप सोचेंगे कि ये भगवान का ही प्रसाद है.और कोई भी चीज जो आपके पक्ष में हुई उसे भी आप समझेंगे कि ये भगवान का ही प्रसाद है.

तो इसीलिए भगवान से जुडिये और भगवान से भगवान को मांगने कि बुद्धि पैदा कीजिये.इसी में आपका सर्वोच्च  कल्याण है.याद रखिये.
************************************************
कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा  और अब बारी है आपके SMS को कार्यक्रम में शामिल करने की.
SMS:  अनुराधा और दिनेश मालवीय नगर से पूछते हैं कि भक्ति कितने प्रकार की होती है?
Reply: अनुराधा और दिनेश जी भक्ति नौ प्रकार की होती  है अर्थात् नौ प्रकार से आप भगवान को भज सकते हैं-श्रवण,कीर्तन,स्मरण,पादसेवन,दास्यम्,अर्चनं,वन्दनं,साख्यम् और आत्मनिवेदनम्.नौ तरीके हैं जिससे आप भगवान का भजन कर सकते हैं.उनकी भक्ति कर सकते हैं लेकिन कलयुग में सबसे important श्रवण और कीर्तन को बताया गया है.

जी हाँ,जब आप भगवान के नामो का कीर्तन करते हैं और उसे सुनते हैं या आप हरिकथा सुनते हैं तो इससे आप भगवान के प्रति प्रेम को विकसित कर लेते हैं.तो आप भी इसप्रकार की भक्ति में संलग्न होईये न ताकि आपका  कल्याण हो सके.
SMS: महेश उत्तराखंड से पूछते हैं कि ये बताईये कर्मयोग क्या होता है?
Reply: महेशजी अपने कर्मों को जब आप भगवान से जोड़ लेते हैं.जब आपके सारे कर्म भगवान के लिए होते हैं.जब भगवान को भोक्ता मान लेते हैं और स्वयं भोक्ता मानने से इनकार कर देते हैं तब आप कर्मयोग में स्थित कहे जाते हैं.कर्मयोग तो संको ही करना चाहिए.भगवान से युक्त होकर आप कोई कर्म करेंगे तो वह बहुत ही अच्छा रहेगा.
_________________XXXXXXXX__________________

No comments: