Thursday, September 30, 2010

भगवान हमें कछुए का उदाहरण दे सीखा रहे हैं इन्द्रियों को संयमित करना : Explanation by Premdhara Parvati Rathor on 104.8 FM(28th Sept 2010)


104.8 FM पर प्रस्तुत है कार्यक्रम अराधना.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप.तो आज के कार्यक्रम में हम चर्चा करेंगे एक बहुत-ही सुन्दर श्लोक पर जिसमे भगवान ने बहुत ही सुन्दर बात कही है.एक बहुत ही सुन्दर जानवर का example उन्होंने दिया है और दिखाया है कि देखो हम जानवरों से कितना कुछ सीख सकते हैं.कितना कुछ.

इस संसार में ऐसे अनेकानेक उदाहरण हैं ,ऐसी अनेकानेक वस्तुएं हैं,जानवर हैं,जीव हैं जिससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.भगवान ने एक कछुए का उदाहरण दिया है जो कि अपने अंगों को संकुचित करके अपने अंगों के भीतर कर देता है.इन्द्रियों की तुलना की गई है उसके अंगों के साथ.तो बहुत ही सुन्दर बात भगवान ने कही है.आईये हम चर्चा करते हैं श्लोक पर जिसमे भगवान ने ये बात कही है और इसके example के द्वारा भगवान ने बहुत बड़ी सीख दी है.तो सीख क्या है इसे जानने का प्रयास करते हैं.श्लोक है:

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥(भगवद्गीता 2.58)
अर्थात
जिसप्रकार कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इंद्रविषयों से खींच लेता है वो मूल चेतना में दृढतापूर्वक स्थिर होता है.


तो भगवान ने बहुत सुन्दर बात यहाँ कही है.बहुत सुन्दर शिक्षा यहाँ दी है.देखिये भगवान हमेशा जब भी कुछ बोलते हैं तो वो आपको ज्ञान से आप्लावित करने के लिए बोलते हैं.वो आपको शिक्षित करने के लिए बोलते हैं.आप अपनी universities की degrees पर आप कभी अभिमान न करना यदि आपको इतना नही पता कि हम अपनी इन्द्रियों को काबू कैसे करते हैं.एक जानवर से भगवान ने हमें सिखाया है.एक जानवर का दृष्टांत भगवान ने हमें दिया है कछुए का कि जिसतरह से कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इन्द्रियविषयों से खींच लेता है.

यानि कि ये बात बतायी गयी है कि इन्द्रियाँ अपने इन्द्रियविषयों की तरफ जरूर भागेंगी.ये इन्द्रियों की प्रकृति है लेकिन बुद्धिमान वो है जो अपनी इन्द्रियों को इन्द्रियविषयों से खींच ले.अगर वापस खींच लेगा तो वो स्थितप्रज्ञ है नही तो आप समझ सकते हैं.

तो आप सुनते रहिये आराधना मेरे साथ.
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मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥(भगवद्गीता 2.58)
अर्थात
जिसप्रकार कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इंद्रविषयों से खींच लेता है वो मूल चेतना में दृढतापूर्वक स्थिर होता है.


तो भगवान यहाँ स्थितप्रज्ञ की परिभाषा आपको एकबार फिर से बता रहे हैं कि जो भक्त होता है या योगी होता है वो अपनी इन्द्रियों को बेलगाम छोडता नही है.बेकाबू नही होने देता है.कभी भी उनकी इन्द्रियाँ उनके काबू से बाहर नही होती हैं.भक्त की परिभाषा ही यही होती है कि वो अपनी इन्द्रियों को निर्मल कर देता है.कैसे?भगवान नाम के जाप से या फिर भगवान की याद से या फिर किसी भी प्रकार से भगवान से जोड़  करके.उसकी इन्द्रियाँ निर्मल हो जाती हैं.विमल हो जाती हैं.

तो यहाँ भगवान यही बात कहते हैं कि आप कछुए को देखिये.कई बार आप गए होंगे समुद्र तट पर.कई बार आपने समुद्र की लहरों का मजा लिया होगा और वहाँ कछुए भी देखे होंगे.पर जब ही आपने कछुए देखे आप उनके पीछे भागते होंगे मस्ती करने के लिए लेकिन शायद ही कोई व्यक्ति हो जो ये सोचता हो कि अरे ! कछुआ अपने अंगों को कैसे अंदर समेत लेता है.तो यानि कि हमें भी अपनी इन्द्रियों को अपने काबू में करना चाहिए.हाँ.भगवान ने यही तो बताया है.शास्त्र भी.तो बहुत कम लोग इस बारे में सोचते होंगे.

तो देखिये कहीं से भी आप शिक्षा ले सकते हैं.कहीं से भी और भगवान एक छोटे से जानवर से आपको शिक्षा दिला रहे हैं.बात रहे हैं कि देखिये ये छोटा-सा जानवर जिसतरह से अपने अंगों को संकुचित कर लेता है बिल्कुल  ठीक उसी तरह से जब इन्द्रियों को ललचाने वाले विषय सामने देखे आप अपनी इन्द्रियों को समेत लीजिए.

मसलन आपको लगा मुझे फिल्म देखने जाना है.पर याद रखिये फिल्म देखने जाना बुरी बात नही है लेकिन फिर भी बहुत बुरी बात है.क्यों?क्योंकि इससे आपकी चेतना कलुषित होगी.इससे आपकी चेतना दूषित होगी.तब आप अपने मन को समझायिये कि अरे नही इससे हमारी चेतना दूषित होगी.इससे अच्छा वो साढ़े तीन घंटे हम भगवान का नाम ही क्यों न ले.सोचिये है न बड़ी अच्छी बात.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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आराधना में मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं एक श्लोक पर.बहुत ही सुन्दर श्लोक है ये.

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥(भगवद्गीता 2.58)
अर्थात
जिसप्रकार कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इंद्रविषयों से खींच लेता है वो मूल चेतना में दृढतापूर्वक स्थिर होता है.


आप ये याद रखना कि जो इन्द्रियाँ हैं आपकी वो कुछ नही विषैले सर्प हैं.विषैले साप हैं.जहरीले सांप है. poisonous snacks हैं.कैसे?ये इतनी विषैली हैं,इतनी विषैली हैं कि जब आप इन्द्रियों की बात मानते हैं तो ये आपकी चेतना को विष से भर देती है.विष से और कभी भी ये इन्द्रियाँ आपको than you नही बोलती कि हाँ आपने हमारी demands को पूरी की.कभी भी नही बोलती.हमेशा बोलती है कि ओह! तुमने हमारे लिए किया ही क्या है.हमेशा.

आदमी बुढा हो जाता है.कई बार वो बिस्तर से भी लग जाता है बीमार हो करके लेकिन तब भी इन्द्रतृप्ति  की इच्छा उसकी बलवती रहती है.डॉक्टर कहता है कि नही आप इन्हें ये नही खिलाना लेकिन तब भी उसकी ख्वाहिश रहती है कि अगर मुझे वो मिल जाता ,मरने से पहले मै वो खा लेता तो शायद मुझे बहुत अच्छा लगता.

तो ये इन्द्रियाँ इतनी,इतनी बलवान होती हैं.जो भक्त है,जो भगवान का भक्त है वो एक दक्ष संपेरा होता है.सँपेरे के समान उसे बहुत ही alert होना होता है.कैसे?क्योंकि एक संपेरा एक सांप को वश में कर सकता है और जो भक्त है वो अपनी चलायमान इन्द्रियों को वश में कर लेता है बड़े आराम से.और भगवान ने बताया है कि इन्द्रियों को जब आप इन्द्रियविषयों से खींच ले.

अब इन्द्रियों के इन्द्रियविषयों क्या हैं?आँख का जो इन्द्रियविषय है वो है रूप.आँख रूप देखती है.नाक का है गंध.नाक गंध लेती है.कान के हैं शब्द.त्वचा का है स्पर्श और जिह्वा का है स्वाद.ये हमारे इन्द्रियविषय हैं.ये पाँच जो ज्ञान इन्द्रियाँ हैं उनके पाँच इन्द्रियविषय हैं.और जब आप इन्द्रियविषय से हट जाएँ यानि आपको लगे कि अरे वाह मुझे बहुत चटपटा खाना है लेकिन तब आप सोचे कि अरे चटपटा खाने से क्या होगा.रजोगुण कि प्राप्ति ही तो होगी और आप सोचे कि नही simple खाना खाना है.सात्विक आहार तो समझ लीजिए कि आप एक अच्छे  पथ पर अग्रसर हो गए.याद रखिये.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥(भगवद्गीता 2.58)
अर्थात
जिसप्रकार कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके खोल के भीतर कर लेता है उसीतरह जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को इंद्रविषयों से खींच लेता है वो मूल चेतना में दृढतापूर्वक स्थिर होता है.


तो भगवान ने आपको बहुत सुन्दर शिक्षा दी है और इस शिक्षा से लाभ उठाईये.अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखना सीखिए.ये नही कि अभी आपको आँख बोल रही है कि बाएं चलो मुझे वो देखना है और आपको मुँह बोलता है कि नही दाहिने चलो चाटवाला खड़ा है.मुझे चाट खानी है और आपको कान बोलता है कि नही नही मुझको तो वो गाने सुनने हैं,वहाँ चलो.तब आप सोचिये आप बेचारे आपकी हालत क्या हो जायेगी क्योंकि आप तो अकेले हैं न.आप आत्मा हैं न.अगर आप अपनी दस इन्द्रियों की दस बातें मानेंगे एकसाथ वो भी तो क्या हालत हो जायेगी .

आपकी इसीलिए भगवान जानते हैं.भगवान भाई आपके परमपिता हैं.आपको बनाया हैं उन्होंने.तो भगवान अनते हैं कि आत्मा कहाँ जाकर के मजबूर हो जाती है.जब वो अपने देह में रम जाती है.अपने आप को देह मानने लगती है तब उसका पतन प्रारंभ होता है.जब आप अपने आप को शरीर मानोगे तभी तो आप अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए 24 hrs लगे रहोगे.चौबीसों घंटे.तब क्या होगा?तटब तो समझ लोजिये कि आपकी human life का loss हो जाएगा.नुकसान हो जाएगा.

तो इसीलिए भगवान ने आपको ये शिक्षा दी है कि आप अपनी इन्द्रियों को उनके इन्द्रियविषयों में रमने मत देना.ज्यादा मत रमने देना.इसका अर्थ ये नही है कि आपको भूख लगी है तो आप खाना छोड़ दे.इसका अर्थ ये नही है कि आप कुछ भी सुनना छोड़ दे.जी नही.अगर कुछ बेकार चीज आपके सामने आ जाती है तो उसे ignore कर दीजिए.यानि कि उसे अनदेखा कर दीजिए.

लेकिन हाँ अगर भगवान का अर्पित प्रसाद आपके सामने आता है तो उसे जरूर खाईये.यदि भगवान के गुणगान आपके कान में पड़ते हैं तो उसे जरूर सुनिए.याद रखिये यही सब करने के लिए आपको मनुष्य जीवन मिला है.यदि भगवान का रूप आपके सामने आता है तो आप उसे जरूर देखिये और भगवान के भक्तों का स्पर्श कीजिये.भगवान के भक्तों से जरूर गले मिलिए क्योंकि मनुष्य जीवन तभी सार्थक होगा जब आप भगवान और उनके भक्तों की क़द्र करेंगे.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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कार्यक्रम में आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर और अब लेते हैं आपका sms.
SMS:
ये सवाल हमसे पूछा है राघव ने सिलमपुर से.ये कहते हैं कि 
जो लोग भगवान में विश्वास नही करते हैं उन्हें आप क्या कहेंगी?किसप्रकार से वो भगवान में विश्वास करें.क्या वो कुछ पढ़े ताकि उनकी जिंदगी में भी कुछ अच्छा हो?

राघव देखिये आप जो कहते हैं न कि जो लोग भगवान में विश्वास नही करते हैं.ये बहुत दुःख की बात है क्योंकि भगवान हैं और वो अपने होने का प्रमाण कई कई बार प्रस्तुत करते हैं.जब आप साँस लेते हैं तो आप सोचते हैं कि ये साँस मै ले रहा हूँ.लेकिन आप जाकर के ICU में देखिये ,hospital में ICU में देखिये.आप देखेंगे कि इतनी सारी नलियाँ उनके अंदर लगाईं गई हैं ऑक्सीजन जाए .कार्बनडाईक्साइड्स retain न हो .उनके शरीर में रह न जाये.कितनी सारी चीजें लगाईं जाती है और उन्हें ventilator पर रख दिया जाता है.

तो सोचिये साँस लेना ये भी कौन आपको मुहैया करा रहा है.कौन शक्ति दे रहा है कि आप साँस भी ले पपा रहे हैं.हाँ.वो भगवान ही तो हैं.

बहरहाल  यदि कोई व्यक्ति  भगवान में विश्वास नही करता है तो भाई हम तो यही कहेंगे कि मनुष्य जीवन आपको मिला आपको मिला है.प्रयास कीजिये कि आपका मनुष्य जीवन सुधर जाए.प्रभु में विश्वास करने का प्रयास कीजिये और इसके लिए जरूरी है भक्तों का संग.यदि आप भक्तों का संग करेंगे और कुसंग को त्याग देंगे तो आप अवश्य ही ,अवश्य ही भगवान को प्राप्त कर पायेंगे.

इसी के साथ इजाजत दीजिए प्रेमधारा पार्वती राठौर को.नमस्कार.

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