Monday, September 27, 2010

कौन है भगवान की नजर में विद्वान : Explanation by Premdhara Parvati Rathor on 104.8 FM(27th Sept 2010)

104.8 FM पर प्रस्तुत है कार्यक्रम अराधना.मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप?तो भाई आज के कार्यक्रम में हम चर्चा करेंगे भगवान के द्वारा कहे गए एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.प्रभु ने एक बहुत सुन्दर बात कही है और वो भी तब जब भगवान का भक्त अर्जुन बहुत-ही शोकाकुल थे.बहुत ही शोक से ग्रस्त थे.उन्हें समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे ,क्या न करे.तो भगवान ने कहा कि देखो तुम कहते तो बहुत विद्वतापूर्ण बात हो.तुम्हे लगता है कि तुम विद्वान हो.लेकिन क्या सच में तुम विद्वान हो.

भगवान ने विद्वान कौन है इसकी परिभाषा बतायी है.भगवान ने बताया है कि जो सुख और दुःख  में धीर बना रहता है.जो न तो जीवित के लिए शोक करता है और न ही मृत के लिए.वही विद्वान है.जो हमेशा शोकाकुल रहता है यानि वो व्यक्ति  अभी भी कही-न-कही से attachment का शिकार है.attachment यानि आसक्ति.आसक्ति का शिकार है और देखिये सारा खेल आसक्ति और विरक्ति का है.

यदि हमारा मन इस भौतिक जगत में लग गया तो हम बहुत-बहुत आसक्त कहलायेंगे.और यदि हम आसक्त हो गए  तो फिर हमें लौटकर दुबारा यही जन्म लेना पडेगा.मै आपको बता दूं अगर आप यहाँ दुबारा जन्म लेते हैं तो इसका अर्थ ये है कि आपने आत्महत्या कर ली.आत्महत्या यानि आत्मा की हत्या.

तो आज का श्लोक बहुत-ही सुन्दर श्लोक है जिस पर हम पूरे कार्यक्रम में चर्चा करेंगे.श्लोक ध्यान से सुनिए:

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥(भगवद्गीता 2.11)


श्री भगवान ने कहा- तुम पांडित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नही हैं. विद्वान होते हैं वो न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं.

तो देखिये कितनी सुन्दर बात भगवान ने बतायी है.अर्जुन को बहुत ही शोक था.वो बार-बार यही कहते थे भगवान  से कि भगवान हम युद्ध तो कर रहे हैं पर इस युद्ध में हम मारेंगे किसे.हम मरेंगे अपनो को.यानि अपने अपनो को.ये सारे हमारे अपने हैं.ये मेरे बाबा हैं जिन्होंने मुझे उँगली पकड़कर चलना सीखाया.वो मेरे गुरु हैं जिन्होंने मुझे समस्त शास्त्रों की विद्या दी.समस्त शस्त्रों की विद्या दी.मै इन पर हाथ उठाऊंगा.इन पर हथियार उठाउंगा.

तो अपनी बात के समर्थन में अर्जुन ने अनेकानेक तर्क दिए थे.अनेकानेक बात कही थी जिससे ऐसा जाहिर होता था कि मानो अर्जुन को बहुत कुछ पता है.वो जानते हैं कि सही क्या है और गलत क्या है.तो भगवान ने उनकी मनोधारणाओं को तोड़ दिया अपने इस श्लोक के साथ.तो आईये आज हम चर्चा करेंगे इसी श्लोक पर.आप सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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हम चर्चा कर रहे है बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥(भगवद्गीता 2.11)

श्री भगवान ने कहा- तुम पांडित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नही हैं. विद्वान होते हैं वो न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं.


तो देखिये इसमे विद्वान की एक परिभाषा दी है भगवान ने.हमलोग सोचते हैं कि अगर हमारे पास ढेर सारी डिग्रियाँ होंगी या हमारे पास कोई ऊँचा प्रतिष्ठामय पद होगा या हमारे पास बहुत पैसे होंगे या हम कुछ भी बोलते रहेंगे,बोलते रहेंगे और लोगों को impress करते रहेंगे तो हम विद्वान कहलायेंगे.तो वो विद्वान नही है.ये विद्वतापूर्ण कार्य नही है.विद्वतापूर्ण कार्य भगवान ने बताया है कि जो विद्वान होते हैं.जो पंडित होते हैं.पंडित यानि विद्वान.जिन्हें पता है कि जीवन का मूल्य क्या है.जिन्हें पता है कि मनुष्य जीवन का असल मोल क्या है.ऐसे लोग न ही जीवित के लिए शोक करते हैं और न ही मृत के लिए.

वो ये नही कहते कि हाय! ये क्यों पैदा हो गया.इसे नही पैदा होना चाहिए था.या वो ये नही कहते कि हाय ! वो मर  क्यों गया.क्योंकि वो अच्छी तरह से जानते हैं कि ये जो शरीर है वो जड़ है और इस शरीर के अंदर रहनेवाला जो तत्त्व है ,जिसकी वजह से ये शरीर चलायमान है वो तत्त्व,आत्मा है.वही हमारी असली पहचान है.वही हम है.

और आप देखिये कि भगवान ने इसी बात की तरफ भगवान ने इस श्लोक में इशारा किया है.कईबार हम लोग सोचते हैं कि हम बहुत विद्वतापूर्ण बात कर रहे हैं तो वास्तव में वो बहुत मूर्खतापूर्ण बातें होती है क्योंकि विद्वान वो होता है जो कभी भी जीवित और मृत के लिए शोक से बाहर होता है.शोक नही करता कभी भी.दुखी नही होता.धीर-गंभीर होता है.

तो भाई धीर-गंभीर होने का जो राज है वो क्या है.कैसे होंगे आप धीर-गंभीर.वो आप तभी होंगे जब आप भगवान की सेवा में लगेंगे.जब आप भगवान से प्रेम करेंगे.जब आप भगवान के लिए जीयेंगे और जब आप भगवान से अपने आप को जोड़ लेंगे.तब आपके अंदर आयेगी धीरता भी,गंभीरता भी.

और आप सुनते रहिये अराधना प्रेमधारा पार्वती राठौर के साथ.
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बहुत सुन्दर श्लोक है आपके लिए.

अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥(भगवद्गीता 2.11)

श्री भगवान ने कहा- तुम पांडित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नही हैं. विद्वान होते हैं वो न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं.

तो देखिये भगवान ने बहुत सुन्दर बात यहाँ आपको बतायी है.बहुत सुन्दर जानकारी आपको दी है.ये आपको बताया है कि अगर आप सच में विद्वान कहलाना चाहते हैं तो आपको ये खुशी और गम इससे ऊपर उठना पडेगा.इसी बात पर मुझे एक बहुत सुन्दर कथा याद आती है.

"एक बार एक राजा था.राजा के पास कोई संतान नही थी.राजा था चित्रकेतु.और फिर एक ऋषि उनसे मिलने आये.ऋषि का नाम था अंगिरा.अंगिरा ऋषि ने उन्हें वरदान दिया कि ठीक है तुम्हे पुत्र होगा लेकिन उस पुत्र का नाम तुम रखना हर्षशोक.हर्षशोक पैदा हुआ.हर्षशोक जब पैदा हुआ तो पूरा देश खुशियाँ मनाने लगा.राजा की अनेकानेक रानियाँ थी.वो सब जलभुन गई.सबको बहुत दुःख हुआ कि हमसे तो औलाद पैदा हुई और यहाँ ये बच्चा पैदा हुआ है.अब राजा हमें देखता भी नही.सिर्फ हर्षशोक के पास रहता है.उसकी माँ के पास रहता है.

तो फिर उन सारी रानियों ने plan बनाया.उन सारी रानियों ने उस बच्चे को खत्म कर दिया.उस बच्चे को जहर पिला दिया और वो बच्चा मर गया.हर्षशोक मर गया.हर्षशोक जो हर्ष का विषय बना था अपने माँ-बाप के लिए वो विषाद का विषय बन गया.शोक का विषय बन गया.

फिर चित्रकेतु जब दुःख में डूब गए तो उनके पास मिलने के  लिए एक महाऋषि आये नारद जी.नारद जी परम विद्वान.उन्होंने चित्रकेतु को समझाया और फिर कहा कि ठीक है थोड़ी देर के लिए मै आपके इस बच्चे को जीवित कर देता हूँ.आप इन्ही से पूछिए कि ये किसका बच्चा है.बच्चे को जीवित किया गया तो हर्षशोक ने आँखें खोलते ही कहा -आप कौन हैं?चित्रकेतु को बड़ा अजीब लगा.वो अपने को विद्वान समझते थी.उन्होंने कहा अरे तुम मुझे नही पहचानते बेटा.मै तुम्हारा पिता हूँ और ये तुम्हारे माँ है.हम तुम्हारे लिए शोकाकुल हैं.

हर्षशोक ने कहा - आप माँ-बाप हैं.कौन से जन्म के माँ-बाप हैं.इस जन के.पिछले जन्म के.कब के माँ-बाप हैं.ये सुनते ही चित्रकेतु को बिल्कुल ये बात समझ आ गई.एक आत्मा का एक आत्मा से संबंध होता भी है तो सिर्फ इसलिए कि वो परमात्मा का अंश है.वरना शरीर का संबंध शरीर के साथ है और शरीर मर्त्य है.याद रखिये.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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अराधना में आपके साथ हूँ  मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही प्यारे श्लोक पर.आपने श्लोक सुना और श्लोक का अर्थ मै एकबार फिर से आपको बता दूं.

श्री भगवान ने कहा- तुम पांडित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नही हैं. विद्वान होते हैं वो न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं.

तो देखिये ये जो श्लोक भगवान ने कहा है.ये बात जो बताई है वो तब बताई जब अर्जुन ने भगवान को गुरु मान लिए.इससे पहले अर्जुन भगवान को अपना सखा मानते थे और फिर जब वो उनसे बात करते थे तो इस तरह से बात करते थे कि अर्जुन भी भगवान को सलाह देते थे.लेकिन जब वो किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए.जब उन्हें समझ नही आया कि मै क्या करूँ.मै आ तो गया हूँ युद्ध में लेकिन समझ नही आता कि अपने सामनेवालों पर हथियार उठों या छोड़ दूं.राज्यप्राप्ति की जो इच्छा थी वो धूमिल हो रही थी.

तो उन्होंने भगवान की शरण ले ली और यही हम सबको करना चाहिए.हमें अपने बल पर कुछ प्राप्त करने का प्रयास नही करना चाहिए.क्या प्राप्त करेंगे आप.ये जड़ जगत है.पदार्थ यहाँ है सबकुछ.वो सब मर्त्य है यानि सबकी समाप्ति होना अवश्यम्भावी है.तो क्या प्राप्त करना चाहते है आप.जो भी आप प्राप करना चाहते हैं वो कभी-न-कभी तो समाप्त होगा न.

और यही बात अर्जुन को समझ आ गई थी.इसीलिए उन्होंने भगवान कको गुरु बना लिया था.तब भगवान ने उन्हें समझाया कि देखो तुम ज्ञान प्राप्त करो यानि तुम ये बता रहे हो कि तुम ज्ञानी हो पर ज्ञान का अर्थ वो बहुत अलग है.ज्ञान का अर्थ है पदार्थ को जानना.आत्मा को जानना और ये भी जानना कि पदार्थ और आत्मा ,इनकी उत्पत्ति हुई कहाँ से है.कौन इनका नियामक है.कौन इनका controller है.ये जानना बहुत जरूरी है.

तो भगवान चाहते हैं कि उनके जो शिष्य हैं.उनके जो भक्त हैं वो असली ज्ञानी बने.और जो ज्ञानी होता है वो जानता है कि पदार्थ में रमना,पदार्थ की आसक्ति बुरी है.क्यों?क्योंकि आप कितने भी पदार्थ एकत्र कर ले आप कभी खुश नही रह सकते.आपको संपूर्णता हासिल नही होगी.आपको संपूर्णता हासिल तभी होगी.आपको चैन हासिल तभी होगा ,आपको खुशी हासिल तभी होगी जब आप समझ जाएँ कि पदार्थ से कुछ होनेवाला नही है.आत्मा की खुशी चाहिए तो आपको इनदोनो के नियामक को जानना होगा.प्रभु को जानना होगा.

तो सुनते रहिये अराधना मेरे साथ.
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104.8 FM पर मै हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर.अब समय है आपका एक प्रश्न लेंने का.
ये प्रश्न हमसे पूछा है संदीप राठौर ने दिलशाद गार्डन से.ये पूछते हैं कि 
जीवन में स्थिर कैसे हुआ जाए?स्थिरता का क्या लक्षण है?

तो देखिये संदीप.आपने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है और इस प्रश्न का उत्तर भगवान ने बहुत ही खुबसूरती से दिया है.भगवान कहते हैं 
प्रजहाति यदा कामान्‌ सर्वान्पार्थ मनोगतान्‌ ।
आत्मयेवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥(भगवद्गीता 2.55)

कि जब मनुष्य मनोधर्म से उत्पन्न होनवाली इन्द्रतृप्ति की समस्त कामनाओं का परित्याग कर देता है  और जब इसतरह से विशुद्ध हुआ उसका मन आत्मा में संतोष प्राप्त करता है तो वो विशुद्ध दिव्य चेतना को प्राप्त कहा जाता है.स्थितप्रज्ञ कहा जाता है.

यानि जन मनुष्य मनोधर्म से उत्पन्न होनेवाली.देखिये जो आपकी इन्द्रतृप्ति की लालसा है.जो आप सोचते हैं.जो आपका मन इधर-उधर भागता है .मै ये कर लूं,वो कर लूं.इसे प्राप्त कर लूं,उसे प्राप्त कर लूं.मेरा accumulation अच्छा हो जाए.मेरा bank balance अच्छा हो जाए.मेरी एक बहुत अच्छी पत्नी हो और मेरा बहुत अच्छा settle life  हो.ये सारा कुछ.ये सारी इच्छाएं उत्पन्न कहाँ होती हैं?ये उत्पन्न होती हैं मन में.

और जो व्यक्ति मन में उत्पन्न इच्छाओं को पूरा करने के लिए भागता रहता है.दौडता रहता है.उसे ही अपना धर्म मान लेता है.वो व्यक्ति हमेशा अस्थिर रहता है.हमेशा unstable रहता है.उसमे stability कहाँ से आ सकती है.तो भगवान कहते हैं कि पहले तो आप मन से उत्पन्न होनेवाली इन्द्रतृप्ति की समस्त कामनाएं हैं उसका परित्याग कर दो.है न.सोचो मत.जब आप अपनी शरण लोगे तो सोचोगे ही लेकिन जब आप भगवान की शरण ले लेंगे तब आप कभी नही सोचेंगे इन कामनाओं के बारे में.

तो भगवान कहते हैं कि जैसे ही आप इन कामनाओं का परित्याग कर देंगे और आपका मन अपनाप में संतोष प्राप्त करता है.आत्मा भगवान का अंश है.यदि आप भगवान में संतोष प्राप्त करने लगते हैं.भगवान के बारे में आप सोचने लगते हैं.भगवान से सम्बंधित कार्य करने लगते हैं तो आपका मन जो है संतुष्ट होने लगेगा और याद रखना आप स्थिरप्रज्ञ हो जायेंगे.आपके जीवन में stability आ जायेगी.

मेरे ख्याल से आपको इस जबाब से कोई न कोई help मिलेगी.

इसी के साथ अब इजाजत दीजिए अब प्रेमधारा पार्वती राठौर को.नमस्कार.


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