Tuesday, June 14, 2016

Spiritual Program Samarpan on 2nd Jan 2016 by Premdhara Parvati Rathor(102.6 FM)

कार्यक्रम समर्पण में आपके साथ हूँ मैं प्रेमधारा. नमस्कार. सन 2016 बिल्कुल अब आपके पास पहुँच चुका है. आप 2016 में पहुँच चुके हैं. यानि नया साल शुरू हो चुका है और नए साल के नए सपने, नयी उम्मीदें आप देख रहे हैं. और नए-नए सुख के बारे में अनुसंधान भी शायद शुरू हो चुका होगा कई लोगों का. सब सुख चाहते हैं. वैसे मैं भी यही चाहूँगी कि आप नए साल में सुखी रहें.

लेकिन अगर कोई व्यक्ति भगवान से ये कहे कि हे प्रभु आप केवल मुझे दुःख दें. सुख का लेश मात्र भी मुझे न दें. तो ऐसी प्रार्थना सुनने में कुछ अटपटी-सी लगती है. क्योंकि ऐसी प्रार्थना कोई कर ही नही सकता. हर व्यक्ति भगवान् की तरफ मुड़ता ही इसलिए है कि उसे सुख चाहिए. अगर उसे ये पता चले कि भगवान् से दुःख माँगे या माँगना होगा तो क्कोई भी व्यक्ति भगवान् की तरफ मुड़ें न.

लेकिन वो भक्त जो भगवान् का एकबार आस्वादन प्राप्त करते हैं. उनका माधुर्य, उनके नाम का आस्वादन, उनके रूप, ऊनके गुण, उनकी लीलाओं का आस्वादन. और उसमें जब वे डूबने लगते हैं. आनंद के हिलोरें उनके ह्रदय में उठने लगते हैं तब वे कहते हैं कि प्रभु मुझ पर इतनी विपदायें आयें कि आप मिले. ये विपदायें हमेशा आती रहें ताकि आप कहीं न जाएँ. और ऐसा ही कुछ कह रही हैं हमारी प्यारी कुंती महारानी जो कि भगवान् की सुन्दर तरीके से स्तुति कर रही हैं. और हम अपना विशेष कार्यक्रम भी कुंती देवी की स्तुतियों पर प्रस्तुत कर रहे हैं. तो एक और बहुत सुंदर स्तुति कर रही हैं :

विपदः सन्तु नः शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो। 
भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्॥ 
जन्मैश्वर्यश्रुतश्रीभिरेधमानमदः पुमान्। 
नैवार्हत्यभिधातुं वै त्वां अकिञ्चनगोचरम्॥

अर्थात्
हे जगन्नाथ हमारा सारी अवस्थाओं में मुसीबतों से ही सामना हो. मुसीबत से हम आपका दर्शन कर पातें हैं क्योंकि आपका दर्शन भव का रोग दूर कर देता है और कह रही हैं कि सतकुल में जन्म, सम्पत, विद्या और सौभाग्य के गर्व से जो मत्त व्यक्ति लोग हैं वे आपको कंगालों के भगवान् बोलते हुए कभी भी आपके बारे में सोच नही पाते. वे आपको कंगालों का भगवान् बोलकर कभी भी आपके बारे में सोचने के लिए नही बैठ पाते. 

बहुत बड़ी बात कह रही हैं कुंती जी. भगवान् जोकि भक्तों का बहुत ही ज्यादा ध्यान रखते हैं. भक्तों के प्रति वात्सल्य से भरपूर हैं. है न. तो भगवान् का जो वात्सल्य है, उस गुण को अनुभव करके कुंती महारानी कह रही हैं कि प्रभु मुझ पर सदा सर्वदा दुःख टूटते रहे क्योंकि जो भगवद भक्त चूडामणिगण हैं न वो विपदा हो या सम्पदा हो. मुसीबत या सुख हो दोनों ही स्थिति में समान रहते हैं और भगवन के चरणों में मन रखते हुए हर कदम पर परमानंद का आस्वादन करते हैं. सम्पद सुख की छलना हो या विपद दुःख की विभीषिका हो भक्त के ह्रदय को कुछ भी स्पर्श नही कर पाता. किन्तु में विपदा में उनका अधिक आग्रह होता है क्योंकि भगवान् को विपदभंजन भी कहते हैं. किसी पर अगर विपदा आयी, दुःख टूटे तो भगवान् उस दुःख का निवारण करने के लिए आ जाते हैं. अगर विपदा ही नही आयी तो विपदभंजन के रूप में हम उन्हें पा नही सकते. उनका दर्शन नही कर सकते.

तो विपदा में ही उनकी कृपा का पूर्ण प्रकाश होता है. और कुंती देवी पर क्या विपदाएं नही आयी. कितनी विपदायें आयी. उनके पति चल बसे, उनका राज्य उनके हाथ से चला गया, भीम को बचपन में ही दुर्योधन ने मारना चाहा, उनकी बहू द्रौपदी के साथ बुरा आचरण किया गया, उनके राज्य को छीन लिया गया, चालाकी से युधिष्ठिर महाराज को द्युत क्रीडा में हरा दिया गया, महाभारत का युद्ध हुआ, कितनी सारी मुसीबतें आयी उन पर, लाक्षागृह में उनको षड्यंत्र के साथ भेजा और उनको जलाकर मारने की कोशिश की गई.  तो विपदा-विपदा ही आती रही. और अंततः अश्वत्थामा का जो ब्रह्मास्त्र था उसने उत्तरा के गर्भ पर आक्रमण किया ताकि पांडवों का सर्वस्व नाश हो जाए. मूल नाश हो जाए. तो भगवान् ने वहाँ भी उनकी रक्षा की. तो हर कदम पर, बारबार भगवान् ने जो है कुंती महारानी और उनके परिवार की रक्षा की. इसीलिए अब वे महसूस कर रही हैं कि ये विपदा है, ये जो मुसीबत है न वो हमारा परम बंधु है. परम बंधु.

दुनिया भगवान् के चरणों में जाती है कि हे भगवान् मुझे मुसीबतों से छुटकारा दिला दो. पर यहाँ कुंती जी कह रही हैं कि प्रभु विपदा के निवारण की आशा मैं नहीं करती हूँ. विपदा ही बारबार हर कदम पर मुझे मिले. क्यों? क्योंकि इसी से मैं दृढ रूप से आपके श्रीचरणों का आश्रय कर पाऊँगी. जीवन में जितनी बार विपदा आयी प्रभु हमें उतनी बार आपके दर्शन मिले. क्यों? क्योंकि आप तो विपदभंजन हैं. अपने चरणाश्रित व्यक्ति की विपदाओं को आपसे देखा ही नही जाता. इसलिए प्रभु आप अपने भक्तों को उनके दुखों से छुटकारा दिलाने के लिए स्वयं आकर उपस्थित हो जाते हो. तो इन दुखों के कारण ही हमें बारबार आपके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है.

कितनी बड़ी बात है! कह रहे हैं कि कितने ही प्रभु जो योगीन्द्र, मुनीद्रगण हैं वे भव दर्शन निवृत्ति करने के लिए कि  जैसे ही आपके दर्शन होंगे ये भव  का जो आना-जाना है उससे निवृत्ति मिल जायेगी. उससे छुटकारा मिल जाएगा. तो वो बहुत समय तक. अनेकानेक वर्षों तक आपकी तपस्या करते हैं और आपके दर्शन लाभ की चेष्टा करते हैं. परन्तु न देखिये न प्रभु मेरा सौभाग्य कितना बड़ा है. मैं तो बस मुसीबत में पडी और बिना किसी साधन भजन के आपके दर्शन कर पायी. इसलिए इस विपदा से बड़ा मेरा बंधु भला कौन हो सकता है. कितनी बड़ी बात कह रही हैं कुंती महरानी जिस पर हम चर्चा करेंगे. सुनते रहिये समर्पण.

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कार्यक्रम समर्पण में हम बहुत सुंदर श्लोक ले रहे हैं जिसमें कुंती महारानी बहुत सुंदर तरीके से बता रही हैं कि विपदा जो है कितना बड़ा सौभाग्य है किसी पर. दुखों की अनुभूति से ही ईश्वर के साक्षात्कार के लिए रास्ते निकलते हैं. है न. उनको जानने के लिए दुनिया प्रयास करती है. वरना अगर दुःख न मिले, आदमी सुखों में लिप्त बैठा रहे तो भगवान् का नाम सुनकर वो हँसेगा. कहेगा कि भगवान् मुझे क्या सुखी करेंगे. मई तो already बहुत सुखी हूँ. है न.  ये बात जानती हैं कुंती जी इसीलिए कह रही हैं कि मुझ पर मुसीबतें आये.

आगे वे कह रही हैं कि प्रभु सतकुल में जन्म, संपत्त, विद्या और सौभाग्य अगर किसी के पास ये सब हो. यानि अगर उसने अच्छे कुल में जन्म लिया हो, उसके पास बहुत पैसा हो, पैसा हो और विद्या भी हो यानि ज्ञान भी हो. साथ ही सौभाग्यशाली भी. जिस काम में हाथ डालता हो उसी में उसे सफलता मिल जाए. है न. तो ऐसा व्यक्ति क्या भगवान् को कभी याद करेगा. नही. क्योंकि उसके अंदर इतना घमंड आ जाएगा कि वो सोचेगा कि अरे ये भगवान् तो कंगालों के भगवान् हैं. हम तो अमीर हैं. हमारे पास सबकुछ है. हमें क्या जरूरत है इन्हें याद करने की. ऐसा वो सोचेगा.

इसीलिए कह रही हैं कि प्रभु ये सम्पत्ति है न वो महाशत्रु है, महाशत्रु क्योंकि जिसके पास बहुत सम्पत्ति होती है न वो उसमे इतना आसक्त हो जाता है कि आपकी उसे याद नही रहती, आपको वो भूल जाता है. सतकुल में जन्म हो या राज्य आदि का ऐश्वर्य हो या बहुत सारे शास्त्रों का ज्ञान हो या बहुत पढालिखा हो. असीम सौभाग्य के अभिमान में आपकी बात किसी के मन में नन्ही रह पाती. आप तो कंगालों के धन हैं प्रभु. कंगालों के. अभिमानी लोग आपको कहाँ पायेंगे. तू कहती हैं कुंती जी कि हमारे जो बच्चें हैं पाँचों पांडव इनके पास अगर सम्पत्ति रहती तो दुर्योधन आदि की तरह आपको ये भूल जाते. पूरी तरह से आपको भूल जाते प्रभु.

दुर्योधन का हाल ऐसा क्यों हुआ क्योंकि उनके पास सम्पत्ति थी खूब सारी, खूब मित्र थे उनके. वो तकरीबन राजा के समान ही सबसे व्यवहार करते थे. आनेवाले समय के राजा वही बननेवाले थे. उन्ही की चलती थी अपने पिता पर भी. एक तरीके से वही सब कुछ थे. राजा भी वही थे. तो इस मदान्धता में, इस अभिमान में सामने भगवान् को देखकर भी वे उनकी तरफ नही मुड़े. भगवान् को देख रहे हैं लेकिन मुड़े नही. भगवान् को अपना विश्वरूप दिखाना पड़ा. अपना ऐश्वर्य दिखाना पड़ा क्योंकि जब भगवान् वहाँ आये संधि का प्रस्ताव ले करके तो दुर्योधन ने सोचा कि क्यों न इन्हें बंदी बना लिया जाए. फिर तो जो पांडव हैं वे अपने आप हार जायेंगे.भगवान् को बंदी बनाने चल दिया दुर्योधन लेकिन भगवान् ने अपना जो रूप दिखाया उससे वो भयभीत हो गया परन्तु तब भी ये बात समझ नही आई कि ये ईश्वर हैं. इनकी बात पर मुझे अमल करना चाहिए. इनकी बात ध्यान से सुननी चाहिए. और तो और विदुर जी ने उन्हें सही सलाह दी तो उसे भी अनसुनी कर दी. उल्टा सही सलाह देनेवाले विदुर जी को दासीपुत्र कहके घर से बाहर निकाल दिया.

तो इसलिए कह रहे हैं कि प्रभु आप तो जगतगुरु है. भगवान् जगत को शिक्षा देते हैं. कैसे शिक्षा देते हैं? दुखों को देकर भी शिक्षा दी जाती है. हाँ. जैसे महाभारत  में जब युधिष्ठिर जी ने पाशा क्रीड़ा खेली तो सबको शिक्षा दी कि ये पाशा क्रीडा, जुआ अगर कोई खेलेगा तो उसकी मति पर आघात होगा, उसका विवेक कार्य नही करेगा. उसके जीवन के सुख के सारे रास्ते बंद हो जायेंगे. उसे दर-दर भटकना पड़ेगा. तो भगवान् अपने ही भक्तों के द्वारा शिक्षा प्रसारित करते हैं. स्वयं अपने आचरण के द्वारा भी लोक शिक्षा प्रसारित करते हैं. तो भगवान् जगत के गुरु हैं और क्या कहा कि जैसे दृष्टिहीन जीव हैं न उनकी आँखों को खोल देना ही, रोशनी देना ही गुरु का काम है. दृष्टिहीन मतलब जो आध्यात्मिक पथ की ओर न देखता हो ऐसा.

इसीलिए कह रही हैं कुंती जी की आपने विपदा रुपी काजल दे करके अभिमान की अन्धता हमारी दूर कर दी और आपने हम शरणागतों के नयनों में रौशनी भर दी. अपने चरण के दर्शन से हमें कृतार्थ कर दिया. और हम भी भगवान् की इस भक्त वत्सलता को याद रखें. और याद रखें कि जब भगवान् की कोई शरणागति ले लेता है तब भगवान् उसकी रक्षा के लिए सदा-सर्वदा तत्पर रहते हैं. उस पर कभी कोई मुसीबत नही आ सकती.

और इसी विश्वास के साथ हम अपनी भक्ति करते रहें. इसी शुभकामना के साथ अब आपसे इजाजत चाहती है प्रेमधारा. नमस्कार.
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