Friday, January 24, 2014

आध्यात्मिक समस्याओं के शास्त्रोचित समाधान by Maa Premdhara(102.6 FM) on 4th Jan,2014

Spiritual Program ARPAN On 4th Jan, 2014(102.6 FM)
प्रस्तुत है कार्यक्रम अर्पण में आप सबका स्वागत है.मै हूँ आपके साथ पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप?आप सबको नया साल बाहुत-बहुत मुबारक हो.नए साल में आप जमकर भक्ति करे और भगवान की तरफ अग्रसर हो खूब मजबूती से.इस प्रयास में अगर आपको दिक्कत हो,कोई कठिनाई हो या कोई जिज्ञासा हो तो कृपया आप हमसे प्रश्न करे.हम आपके प्रश्न का समाधान करने का प्रयास करेंगे.तो आईये सुनते हैं कार्यक्रम का पहला प्रश्न:
प्रश्न: मेरा प्रश्न है कि ईश्वर की सेवा कैसे कर सकते हैं?
समाधान: देखिये ईश्वर की सेवा कैसे कर सकते हैं,ये तो बहुत अच्छा प्रश्न है.लेकिन ईश्वर की सेवा की इच्छा उत्पन्न होना ये सबसे important हैं.सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है .ईश्वर की सेवा करने की इच्छा ही तो नही उत्पन्न होती.हम ईश्वर को बहुत बड़ा ऐश्वर्यशाली समझ लेते हैं जो कि वो हैं भी.हम सोचते हैं कि हमारे खिलाने से हमारा दाता कहाँ संतुष्ट होगा.वो तो हमारा दाता है.हम भला उए कहाँ से संतुष्ट कर सकते हैं.

तो ऐसे-ऐसे ख्याल हमारे मन में आ जाते हैं और सेवा भाव बहुत दूर छिटक के चला जाता है.तो मै बहुत प्रसन्न हूँ कि आप ये  पूछ रही हैं कि ईश्वर की सेवा कैसे की जा सकती है.देखिये शुरुआत करिए हरिनाम से.भगवान का नाम लेती रहिये.आपकी जिह्वा जब भगवान के नाम में रत हो जायेगी तो भगवान् आपके अन्दर ऐसे संस्कार डाल देंगे.ऐसी प्रेरणा डाल देंगे जिससे आप उनकी और ज्यादा सेवा कर पायेंगे.

तो शुरुआत कीजिये हरिनाम से.भगवान के नाम से.बाकी सब अपने आप हो जाएगा.

प्रश्न: भगवान का दिन में चिंतन किया जाए औ रात में भगवान की भक्ति की जाए.इससे भगवान खुश होंगे क्या?रात की भक्ति एकान्तिक भक्ति भी है.इसे न कोई सुननेवाला न कहनेवाला.शांति से भक्ति की जाए.या फिर माताजी अआप बताईये कि भक्ति दिन में की जाये या रात में की जाए?
समाधान: देखिये ये जो समय है दिन और रात.ये हमारे लिए है.हम जैसे बद्ध जीवात्माओं के लिये है.भगवान के लिए तो क्या दिन और क्या रात.सब सामान है.मुख्य बाट है भगवान के प्रति अपने ह्रदय में भाव जागृत करना.अगर तुम्हारे मन में ऐसे सुन्दर-सुन्दर भाव भगववान के लिए उठाते हैं तो वही सबसे अच्छी बात है.
अगर वो दिन में उठते हैं तो उन्ही भावों को आप दृढ करिए,प्रबल करिए और आर आपको लगता है कि रात को बहुत अच्छे भाव उठते हैं भगवान के लिए तो उनमे डूब जाईये.है न.

तो ये मत सोचिये कि सुबह करूं,शाम करूं.रात करूँ दिन करूँ.अगर आपके घर की परिस्थिति ऐसी है कि आपके पति पसंद नही करते,आपी सास पसंद नही करती,कोई और पसंद नही करता आपके भक्तिमय कार्य को.तो प्रयास कीजिये कि उअसे छुपाकर किया जाए.क्या जरूरी है ऐलान करना.बिल्कुल जरूरी नही है.

प्रेम को तो यूं भी दिल में रखा जाता है.है न.
प्रश्न: गुरु बना के हो सकती है भक्ति या बिना बनाये भी हो सकती है?
समाधान: बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है आपने.गुरु बनाके भक्ति हो सकती है या बगैर गुरु के हो सकती है.देखिये ये गुरु शब्द की जगह अगर हम कहे मार्गदर्शक तो ज्यादा उचित रहेगा.ये गुरु शब्द बड़ा अजीब-सा शब्द हो गया है आजकल के जमाने में क्योंकि हर कोई बैठा हुआ है गुरु बनने को तैयार.हर कोई बुला रहा है-आओ,आओ मुझसे दीक्षा लो,मै तुमको पार उतार दूंगा.है न.ऐसे में कई बार इंसान फँस जाता है.समझ नही आता कि जिस जगह वह गया वह सही जगह है या नही.\\और वो बहुत बेचारा दुविधा में पड़ जाता है.

अगर मै ये कहूँ कि आपके जीवन में एक मार्गदर्शक हो जो स्वयं भक्ति करता हो और भक्ति का रसास्वादन उसे प्राप्त होता हो,वो इतना सक्षम हो कि आपको भी रसास्वादन करा पाए.आपको पग-पग पर दिशा निर्देश दे पाए कि इसतरह से चलो और ऐसे भक्ति करो.ऐसे मार्गदर्शक के आनुगत्य में भक्ति करना ज्यादा श्रेयस्कर है.यही कहूंगी.ऐसा मार्गदर्शक आपको मिल जाए,यही आप भगवान से प्रार्थना करिए.

प्रश्न: अवतार और भगवान में क्या अंतर होता है?
समाधान: अच्छा question है आपका अरविन्द कि अवतार और भगवान इ क्या अंतर होता है.भगवान जब किसी विशेष प्रयोजन के लिए और उस प्रयोजन के सन्दर्भ में एक निश्चित शक्ति से युक्त हो करके आते है.भगवान स्वयं आते हैं.भगवान स्वयं आने का अर्थ है कि जो भगवान का अंश है जो कि उस विशेष प्रयोजन के लिए आ रहा है तो वो भी तो स्वयं भगवान ही हो गया न.अंश है तो क्या.भगवान की पूरी शक्ति उनके अन्दर है.वो शक्ति प्रकटित नही करते हैं क्योंकि प्रयोजन बस उतना भर है कि उतनी ही शक्ति से काम चल जाएगा.

जैसे चन्द्रमा एक ही है न लेकिन विभिन्न दिनों में जब आप उस चन्द्रमा को देखते हो तो कभी छोटा,कभी और छोटा,बिलकुल पतला-सा नजर आता है .तो आप ये नही कह सकते कि पूर्णिमा का चाँद अलग है और ये पतला-सा चाँद अलग है.ये तो चाँद ही नही है.ये तो बेकार है.ऐसा नही कह सकते.

इसीप्रकार से भगवान विभिन्न प्रयोजनों के हिसाब से अपने अंश को भेजते हैं और वो प्रयोजन पूरा हो जाता है तो भगवान के अंश अपने धाम में चले जाते हैं.तो यही अवतार होता है.ऊपर से नीचे आना उस प्रयोजन कुछ भी हो सकता है.असुरों का संहार,भक्तों पर कृपा.कुछ भी हो सकता है प्रयोजन.

प्रश्न: जब हम भगवान का अंश हैं तो भगवान से दूर क्यों है और इतने कष्टों का सामना क्यों करना पड़ता है?
समाधान: बहुत अच्छा प्रश्न आपने पूछा.भगवान भी तो कहते हैं न भगवद्गीता में :

ममैवांशो जीव-लोके जीव-भूतः सनातनः ।

मनः षष्ठानीऽऽन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥

बहुत सुन्दर बात भगवान ने कही है.कि भैया सारे जीव जो है न मेरे अंश हैं.लेकिन अपनी इन्द्रियों के विषयों में अपने मन को इस कदर डुबो दिया है कि वे इस भयंकर जगत में संघर्ष कर रहे हैं.हैं मेरे अंश पर मेरे पास आना नही चाहते.

आज अगर हम किसी को कहे कि सारे काम छोड़छाड़ दो और भगवान का तहे दिल से भजन करो और भजन के अलावा कुछ भी नही करो.सिर्फ भजन करो,भजन करो,भजन करो तो कितने ही लोग,कितने ही लोग इस बात का विरोध करेंगे.तर्क कुतर्क करेंगे.अरे भाई भगवान क्या तुम्हारे खाना खिला देंगे हमें. ये कर देंगे वो कर देंगे.अनेक प्रश्न करेंगे.लेकिन विश्वास किसी को नही होगा.अगर जब तक किया नही ,करके देखा नही तो फिर अविश्वास का सवाल कहाँ उठता है.सिर्फ मन से ये सोचना कि ये हो नही सकता ,गलत है.है न.

तो हम भगवान का अंश होते हुए भी जब भगवान् के पास ही नही जाना चाहते तो भगवान भी क्या करे.हमें कैसे अपने पास लायेंगे. हम भगवान के अंश हैं पर विभिन्नांश हैं.जैसेकि सूरज ऊपर है लेकिन सूरज की किरण तो नीचे आती है न.सूरज की किरण सूरज नही है लेकिन सूरज की किरण सूरज की वजह से है.जो हमारे ऊपर पर रही है.धुप सूरज की वजह से है.

इसीप्रकार से हम भगवान् की वजह से हैं.हमारा जो वजूद है उनकी वजह से है.पर जैसे सूर्य की किरण उसके अन्दर नही है.वो बाहर है.इसीप्रकार से हम भगवान के अन्दर की शक्ति नही हैं बाहर हैं.विभिन्नांश कहा गया है हमे.separated energy हैं हम भगवान की.

लेकिन फिर भी भगवान हमे तसल्ली देते हैं कि आप मेरे पास आ सकते हो.पूरी संभावना है.आप प्रयास करो मुझे पाने का.मुझमे मन को लगाओ.जब मेरे से आपका मन पूरी तरह तादात्म्य स्थापित कर लेगा तो आप मुझे प्राप्त कर लोगे.बहुत सुन्दर विधि है.प्राप्त करने का प्रयास करिये तो ये जितने भी आपके कष्ट है न वे कष्ट जैसे होंगे ही नही.वस्तुतः कष्ट रहेगा ही नही.

प्रश्न: भक्ति के साथ माता-पिता की भी सेवा करनी चाहिए.मै ऐसा करने में असमर्थ हूँ.जिसकी वजह से मै बहुत परेशान हूँ.मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान: देखिये भक्ति करना बहुत अच्छी बात है.भक्ति करने के लिए ही इंसान का शरीर मिला है और आप इंसान के शरीर के अन्दर हो.उस इंसान के शरीर को बढाने में ,बड़ा करने में माँ-बाप की एक बड़ी भूमिका रही है भाई.उन्होंने पैदा किया शरीर को और शरीर का पालन-पोषण किया.और आज आप इतने बड़े हो गए.

आज आप अगर ये कहे कि भक्ति तो कर सकता हूँ पर माँ-बाप की सेवा नही कर सकता.ये possible नही है मेरे लिए तो ये गलत है.क्या चीज है जो आपको माँ-बाप के सेवा करने से रोक रही है.ममा-बाप ने तो कभी नही सोचा कि मै बच्चे को पैदा तो कर सकता हूँ पर इसे अनाथालय फेंक आऊ.मै इसका पालन-पोषण नही कर सकता.झंझट है झंझट.कौन इसके साथ रातों को जगे.कौन इसके साथ कष्ट सहे.ऐसा नही सोचा न.आपका हर कष्ट उन्होंने झेला और आपके साथ रहे.

आज जब अपने पैरों पर खड़े हो गए हो आप और हो सकता है कि आपका परिवार भी हो तो अब अपनी जड़ को भूल गये.ऐसा मत करिए.आने सांसारिक कर्तव्यों की उपेक्षा करने से आप भगवान के प्यारे हो जायेंगे ऐसा कभी सोच भी मत लेना.

अपने सांसारिक कर्तव्यों को पूर्ण करिए निर्लिप्त भाव से और लिप्तता सिर्फ भगवान में रखिये.यही एकमात्र सही तरीका है.

प्रश्न: कहा जाता है कि गीता जी के जैसा कोई ग्रन्थ नही.क्या ये बात सत्य है?
समाधान: देखिये सत्य है कि असत्य है मै कैसे बताऊँ.अगर आप गीताजी का अध्ययन करेंगे,पढेंगे तो पता चलेगा न.मेरे कहने से क्यों मान लेते हैं कि सत्य है कि असत्य है.गीताजी आपके पास मौजूद हैं.आप लीजिये उन्हें और हिन्दी आपको आती होगी,अंग्रेजी भी आती होगी.क्कोई भी भाषा में available है.अप्प लीजिये और उनका पठन-पाठन कीजिये

हाथ कंगन को आरसी क्या
पढ़े-लिखे को फारसी क्या.

वही वाली बात है.आप जब पढेंगे तो स्वयं ही जान जायेंगे.मुझसे पूछेंगे तो मै तो कहूंगी कि भगवद्गीता जैसा ग्रन्थ शायद ही कोई हो.

प्रश्न: तत्व भक्ति क्या है और कैसे की जाती है?
समाधान: बहुत अच्छा प्रश्न है आपका कि तत्व भक्ति क्या है और कैसे की जाती है.देखिये दुनिया में आप जो कुछ भी करते हैं वो सब कुछ असत है अगर उसका सम्बन्ध भगवान से न हो.भगवान ही एकमात्र तत्व हैं पूरे संसार में और हमारी आत्मा का सम्बन्ध भी उसी एक तत्व से है,भगवान् से है.

भगवान को प्रसन्न करने का नाम ही तत्व भक्ति है.

और कैसे करी जाती है.शुरुआत कीजिये भगवान् का नाम लेने से.भगवान का नाम लेते जाईये और भगवान का नाम लेने से जब आपका चित्त शुद्ध होने  लगेगा तो फिर आगे की सेवाएं आपको स्वयं पता चल जायेंगी और आप आगे स्वयं बढ़ते चले जायेंगे.

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