Friday, March 19, 2010

On 6th June '09 By Maa Premdhara

नमस्कार मैं हूँ आपके साथ प्रेमधारा पार्वती राठौर .कैसे हैं आप?क्या कहा गर्मी में किसी तरह ठीक-ठाक हैं .गर्मी में मन करता है पानी के पास रहने का,ठंढी हवाओं का आनंद लेने का परन्तु गर्म मौसम ऐसी सारी इच्छाओं पर पानी फेर देता है.है ?

वैसे पानी की बात चली तो मुझे याद आयी है नदी.एक बार एक छोटा-सा बच्चा अपने बेहद अमीर पिता उंगली थामे नदी के किनारे सैर कर रहा था.नदी का पानी धीरे-धीरे बह रहा था.सूरज की चमकदार किरणे जब नदी के पानी पे पड़ती तो बच्चे की आँखें भी चमक जाती.उसकी नज़रे ढूंढ रही थी नदी में रहनेवाली मछलियों को.बच्चा कभी आगे जाता तो कभी पीछे आता.मछलियों से उसका सामना हो पाता.

अचानक थोड़ी दूर चलकर उस बच्चे को नदी के किनारे एक मछली मिल ही गयी.मछली गलती-से नदी के किनारे पे चली आयी थी.वो बेचारी बुरी तरह-से तड़प रही थी.मछली की तड़प बच्चे से देखी नही गयी.वो फ़ौरन पापा से बोला -पापा पापा मछली शायद भूखी होगी.चले इसे five star होटल में खाना खिलाते हैं.पापा मुस्कराए बच्चा परेशान हो गया. वो बोला - पापा मछली को शायद नींद रही होगी.चलो इसे चलकर सोने के पलंग पे सुलाते हैं.

यह सुनकर पापा ने कहा नही बेटे मछली को सोना-चांदी,रुपया-पैसा खुश नही कर सकते.ये तो तभी खुश होगी जब आप इसे वापस नदी में डाल देंगे.और बच्चे ने उसे उठाकर नदी में डाल दिया और मछली झट से खुश होकर तैरने लगी.

ठीक मछली की तरह आप और हम भी तड़प रहे हैं इस भौतिक जगत में भगवान से दूर होकर.रूपया-पैसा,धन-दौलत,बड़ी-बड़ी उपलब्धियां,बड़े-बड़े सम्मा हमारी तड़प को,हमारे दुखों को कम नही कर पाते.थोड़े समय के लिए खुशी जरूर मिलती है इन्हें पाकर लेकिन फिर तड़प और बेचैनी अपने कब्जे में ले लेती है हमें.

हम भी भगवान के अंश होकर भगवान से दूर हैं और बहुत-बहुत तड़प रहे हैं.भगवान की कृपा से जब कोई दिव्य आत्मा,गुरु आकर हमारा हाथ भगवान के हाथ में थमा देता है तब हमें हमारी बेचैनी से छुटकारा मिल सकता है वरना ये दुःख,ये तकलीफ हमेशा यूं ही जारी रहेंगी।
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अब एक श्लोक आपके लिए जो बहुत ही सुन्दर है .श्लोक का अर्थ है
"हे भगवान् मै भौतिक जगत से तनिक भी भयभीत नही हूँ क्योकि मै जहाँ भी ठहरता हूँ वहाँ आपके यश और कार्यकलापों के विचार में लीन रहता हूँ.मै एकमात्र उन मूर्खों और धूर्तों के लिए चिंतित हूँ जो भौतिक सुख के लिए अपने परिवार,समाज और देश के पालन के लिए बड़ी-बड़े योजनाये बनाते हैं."

तो देखिये ये जो बात यहाँ पर कही गयी है ऐसा नही है कि उस समय ही सही थी जब ये कही गयी थी.जी नही.ये ऐसी बात है जो भूतकाल,वर्तमान काल और भविष्य काल में सही होगी.यहाँ पर लोग अपनी बड़ी-बड़ी योजनाये बनाते है.अपने सुख के लिए माया सुखाय.ये सुख माया है.यही सुख तो माया है.माया वो जो नही है.सुख जो आपको दिखता है वो सुख नही है.

तो यहाँ पर बताया गया है एक कि भक्त भगवान् से कह रहा है.मै अपने लिए बिलकुल भी दुखी नही हूँ कि इस भौतिक जगत में अगर मै आया हूँ तो मेरा यहाँ क्या होगा?क्या मै यहाँ पर लोगों के संसर्ग में आकर corrupt हो जाउंगा,क्या कल्मष से पूर्ण हो जाउंगा?क्या मेरे अन्दर बुरी आदतें  जायेंगी?जी नही मुझे तो बचा लेंगे.क्या?मुझे तो बचा लेंगे आपके विचार.आपके बारे में जो मै सोचता हूँ.आपके यश का गायन करता हूँ.आपके कार्यकलापों के बारे में सोचता हूँ.

तो देखिये यहाँ पर दो बातें हैं.एक तो ये कि जो भक्त कही भी रहता है और उसे डरने की कोई जरूरत नही कि वो कहाँ पर है.क्यों?क्योकि वो हमेशा भगवान् के विचारों में लीं रहता है और भगवान् के जो विचार है वो इतने सशक्त होते हैं,इतना बड़ा protection देते हैं एक भक्त को कि वो कभी भी भौतिक दुर्गुणों के संग में नही पड़ता.भौतिक गुण उसे छू भी नही पाते हैंबहुत बड़ी बात है.

तो यहाँ बताया गया है कि मै उन मूर्खों के लिएउन धूर्तों के लिए जो भौतिक सुख के लिए अपने परिवार के लिए बड़ी-बड़ी योजनायें बनाते हैं.देश के पलान के लिए बड़ी-बड़ी योजनायें बनाते हैं.और ऐसी बड़ी-बड़ी योजनायें बनाते हुए वो ये समझ नही पाते कि उनकी सारी योजनायें ध्वस्त हो जायेंगी.चाहे आप किसी भी purpose को लेकर चले आपका वो कभी पूर्ण नही होगा.आप बहुत बड़ा ऑफिसर बनाना चाहते है और सोचते हैं कि बड़ा ऑफिसर बनके,बहुत बड़ा देश का नेता-अभिनेता बनके मुझे बहुत सुख मिलेगा तो आप जाकर के उनसे पूछिए क्या वो सुखी है?तो आपको पता चलेगा जी नही.बहुत दुःख है जो exterior के पीछे,जो बाहरी उनका आवरण है उसके अन्दर बहुत सारे दुःख भरे पड़े है.बहुत सारे दुःख उबल रहे हैं.

तो basically ये जगत दुखालायम है .ये बात मै बार-बार इसलिए बताती हूँ क्योंकि भगवन बताते है कि ये जगत दुखालायम,अशाश्वतं है लेकिन जो हम मूर्ख लोग है उसे सुखालायम बनाने में लगे हैं.गर्मी है तो A .C लगा दो.पर A .C में जो गैस है वो जाकर ओजोन लेयर में छेड़ कर देती है.और उसके बाद पता चलता है कि सूर्य की पराबैंगनी किरने आपको छूने लगती है और आपको बहुत कुछ हो जाता है.तो ये एक बहुत दुःख की बात है.

अगर आप इस बात को ध्यान से सुने और ध्यान से समझे तो आपको पता चलेगा कि चाहे हम कितनी भी योजनायें बना ले,कितने भी बड़े-बड़े महल बना ले.एक छोटा-सा भूस्खलन,एक छोटा-सा भूकंप उन समस्त महलों को धराशायी कर देता है.कितनी बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ जिन पर लोग गर्व किया करते थे.वो सभ्यताएँ जमीनदोष हो गयी यानी जमीन के निचे समा गयी.उन सभ्यताओं का अंत हो गया.जाने कहाँ गए वो लोग,जाने कहाँ गए वो राजे-महाराजे.

तो यहाँ पर भक्त कह रहा है कि हे भगवान् !मै अपने लिए नही इनके लिए चिंतित हूँ,इनके लिए आपसे प्रार्थना करता हूँ.देखिये भक्त कितना करूणामय है कि है वो भगवान् से सबके लिए प्रार्थना करता है.
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आप देखिये हमारे यहाँ योजनायें बनाने के लिए बड़े-बड़े departments हैं.आप किसी भी corporate sector में चले जाईये,देश में जाईये.वहां बड़े-बड़े योजना आयोग भी आपको मिलेंगे योजनायें बनाने वाले.और ये नही है योजनायें बनाना गलत है.आपदाओं को face करने के लिए योजना बनाना चाहिए भी.लेकिन तो भी उन योजनाओं में पूर्ण विश्वास नही होना चाहिए.क्यों?

क्योंकि प्रकृति आपसे कई-कई कदम आगे है.आप प्रकृति पर depend करते हैं,प्रकृति पर निर्भर हैं आप.very sad पर यही सच है.

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः 
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते 
और जब हम अपने को करता समझ लेते है तब हमारे दुःख की शुरुआत होती है.यहाँ बताया गया है कि प्रकृति जो है वही सारे कार्य करा रही है आपसे.जिस भी गुण को आपने इख्तियार कर लिया तमो गुण को, रजोगुण को,सतो गुण को,किसी भी गुण को तो जो आप काम कर रहे है वो आप नही वस्तुतः प्रकृति आपसे करा रही है.और आप सोचते है की वो कर्म मै कर रहा हूँ.

अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते 

अहंकारी व्यक्ति सोचते हैं कि मै कर्म कर रहा हूँ.तो ये बहुत दुःख कि बात है इसीलिए यहाँ पर भक्त जो है बहुत दुखी है.और व्यक्ति के लिए भक्त कहता है कि हे भगवान् हम जानते है कि आपकी माया को पार करना कठिन है क्योंकि

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया 

आप कहते हैं कि तीन गुणों से युक्त माया इतनी गुणमयी है,इतनी दैवीय है कि उसे पार करना असंभव है पर आप ही कहते हैं

मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते 

जो मेरी शरण ले लेते हैं अर्थात भगवान् की शरण ले लेते हैं वो माया को पार कर जाते हैं.तो हे भगवन मैंने आपकी शरण ले राखी है तो ये भौतिक गुण,दुर्गुण और ये भौतिक संग मेरा कुछ नही बिगाड़ पायेंगे.लेकिन मै उनके लिए चितित हूँ भगवान् जिन्होंने आपको भुला दिया है.वो सिर्फ और सिर्फ अपने में मग्न रहते हैं.अपने परिवार में मग्न रहते है.जो अपने आप को एक particular देश का कहते हैकहते है कि हम इस देश के नागरिक हैं,हमारा नाम ये है जबकि अगली बार हो सकता है कि आप अपने दुश्मन देश में पैदा हो जाए और आप वहाँ के नागरिक हो जाए.

तो ये सिलसिला चलता रहेगा.इस सिलसिले को रोकना है.और हमें भगवद्भक्ति में आगे आना है ताकि जन्म और मृत्यु के इस घेरे को तोड़ दे और वापस भगवद्धाम जाकर के भगवान् से जुड़ पाएं.है कि नही.ये एक अच्छा idea है मेरे ख्याल से.
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मै हूँ आपके साथ प्रेमधर पार्वती राठौर.एक और बहुत सुन्दर श्लोक सिर्फ आपके लिए .श्लोक का अर्थ है
"हे वैकुंठलोक के स्वामी मेरा मन अत्यंत पापी और कामी है.कभी ये सुखी रहता है तो कभी
  दुखी रहता है.मेरा मन शोक और भय से पूर्ण है.और सदैव अधिकाधिक धन की खोज में 
 रहता है.इसतरह वो अत्यधिक दूषित है.आपकी कथाओं से कभी तुष्ट नही होता.अतः मै 
 अत्यंत पतित और दरिद्र हूँ.ऐसी जीवन स्थिति में भला मै आपके कार्यकलापों की  
व्याख्या करने में किस तरह से समर्थ हो सकता हूँ."

कितनी सुन्दर बात यहाँ कही गयी है.ये वस्तुतः इंसान की पूरी मतलब ये कह लीजिये कि आंतरिक
चित्र यहाँ पर खींचा गया है.किसप्रकार एक व्यक्ति ,एक इंसान का मन जो है वो बहुत कामनाओं से
भरपूर रहता है.कामी है.कामनाएं-ही-कामनाएं उमड़ी रहती है इस हृदय में.

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं-

जैसे कि ये श्लोक भी पूरी तरह से बताता है एक इंसान के मन की स्थिति के बारे में.जैसे की एक 
एक्सरे हो इंसान के मन का.बताता है ये श्लोक कि मन में कितने प्रकार की कामनाएँ,कितने प्रकार
के उद्वेग,कितनी प्रकार की भावनाएं उठाती रहती हैं.मन जो है हमारा बहुत पापी है,बहुत कामी है.
कितना पाप हम करते है,बार-बार हम झूठ बोलते हैं.

मैं आपको बताती हूँ कभी ऐसा समय था,ऐसा वक़्त गुजरा है जहाँ पर ये कहा जाता था कि अगर 
आप एक झूठ बोल लेते हैं तो आप नरक के भागी बनाते हैं.आज के जमाने में आप शायद ही सच 
बोलते हैं.बात-बात पे झूठ बोलते हैं.बच्चा आपसे पूछता है ,पापा कहाँ गए थे?आप उसको थोड़ा-सा
बहकाते हैं.अरे!मै तो कही नही गया था.बस ऑफिस से आ रहा हूँ.हो सकता है कि आप market गए हो.
बच्चा कही आपसे चाकलेट की मांग न बैठे तो आप झूठ बोल देते हैं.अगर कोई खटखटाता है दरवाजे 
पे,आप बच्चे को बोलते है जाके बोल दो पापा घर पे नही है.आपके लिए वो एक मासूम-सा झूठ होता है.

आपको लगता है इसका किसी पर दुष्प्रभाव
नही पडेगा
लेकिन वो मासूम-सा झूठ,झूठ ही होता है.ये याद रखिये.झूठ झूठ होता है और झूठ की सज़ा वही होती है
.तो हम बहुत-बहुत पाप करते हैं.झूठ बोलकर लोगों का दिल दुख देते हैं.नही दुखाना चाहिए लेकिन हम
दुख देते है.आदत हो गयी है.है न.

तो मन हमारा पापी है.पाप की तरफ भागता है.स्वतः ही भागता है.टेलीविजन पर एक बहुत गंदा
सीरियल आ रहा हो.कोई गंदी,अश्लील फिल्म आ रही हो और दूसरी जगह बाहर सत्संग चल रहा हो.
आप बताईये आप कहाँ जायेंगे.Naturally आप मतलब maximum of You मै सबको नही कह रही हूँ ,
टी.वी.का वो शो देखना पसंद करेंगे जहाँ पर अश्लीलता पूरी तरह से देखाई जा रही है.चोरी-छुपे देखेंगे 
या वैसे देखेंगे या अपने आप को ढककर देखेंगे मगर उसी तरफ मुड़ेंगे.

और सत्संग में बहुत कम भीड़ होगी.शायद गिने-चुने चालीस-पचास लोग हो जबकि अगल-बगल 
रहनेवालों की संख्या पांच हज़ार से अधिक हो.सत्संग में चालीस-पचास लोग बड़ी मुश्किल नज़र आयेंगे.
ये जो चालीस-पचास लोग सत्संग में गए,ये कौन हैं?ये वो लोग है जिनकी सुकृतियाँ एकत्र हो गयी है,
जिनके पुण्य फलित हो गए है,ये वो लोग है.ये वो लोग है जो भगवद कथा को सुनने को आतुर रहते है.
जिनके सारे पाप समाप्त हो गए है.

भगवद कथा सबके पल्ले नही पड़ती.आज जिस तरह का पापपूर्ण खाना हम खाते हैं.इसप्रकार की चीजें 
खाते हैं.ऐसे व्यक्तियों के हाथों का बना हुआ खाना हम खाते हैं जिनके संस्कार बड़े दूषित होते है.जी हाँ बहुत सूक्ष्म असर पड़ता है ऐसे अन्न का भी.एक वो अन्न जिसे ऐसे व्यक्ति ने बनाया है जिसके संस्कार दूषित हों,गंदी-गंदी बातें सोच रहा है,खाना बना रहा है और बहुत हेई गलत तरीके से बाना रहा है.उसमे अस्पृश्य 
चीजों -का समावेश किया है और आप उस खाने को खाते हैं तो शूक्ष्म रूप से आपका मन और गंदा होता जाएगा.मिला-कुचैला होता चला जाएगा.और इसका आपके जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पडेगा.

तो हम इस प्रकार का भोजन करते है और पा के वशीभूत  हो जाते हैं लेकिन अगर हम सात्विक भोजन
करते हैं.अपनी जिन्दगी में सात्विकता को स्थान देते हैं तो हम पाप से दूओर हो जाते हैं.कामनाओं से दूर 
होने लगते हैं अगर अपने ह्रदय में.अपने मन में भगवान् के प्रति कामनाएं उत्पन्न कर ले.

तो सीधा-सरल उपाय है,सीधा,सुन्दर simple formula है कि आप भगवान् से जुड़ जाईये,
अनर्थ
अपने से चले जायेंगे.कर के देख लीजिये.
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हम चर्चा कर रहे  हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.भगवान् के कार्य ऐसे व्यक्ति को समझ नही आते जिनका मन बहुत ही भौतिकतावादी होता है.जो कामनाओं में ग्रस्त होता है.जो स्सुख-दुःख के वशीभूत रहता है.जो dualities of life में रहता है.द्वन्द में जीता है.हाँ अब बहुत सुखी हूँ,मस्ती कर रहा हूँ.ओह बहुत दुखी हूँ भगवान् तुमने ये क्या कर दिया.बहुत जल्दी प्रभावित हो जाता है सुख और दुःख से.और मान में हमेशा शोक और भय चलता रहता है.
ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्‌॥

ये तो ब्रह्मभूत अवस्था है ऐसी व्यक्तियों की जो भगवान् को प्राप्त कर लेते हैं.वो हमेशा प्रसन्न रहते हैं.वो ब्रह्मभूत अवस्था में हैं.लेकिन एक आम आदमी मेरे जैस और आपके जैसा आदमी.हम जैसा आदमी वो भय से पूर्ण रहता है.आप कहते है नही मुझे तो किसी चीज का डर नही है.मै तो किसी से नही डरता.क्या बात करते है आप?आप बहुत डरते हैं.
 
मै बताऊँ आप किस-किस चीज से डरते हैं.आप डरते हैंकि आपका बच्चा कही आपसे पहले न मौत के मुहं में चला जाए.आप दर्त्ते है कि आपके माँ-बाप की मौत कही आपके सामने न हो जाए.आप डरते हैं कि आपकी पत्नी कही आपको छोड़कर न चली जाए.आप डरते है कि कही बॉस आपको ऑफिस से बाहर न निकाल दे.Recession  चल रहा है कुछ भी हो सकता है.बहुत डर है आपको.आप यूं ही चिल्ला के कहते है -अबे जो करना है कर लो मै किसी से डरता नही.आप तो बहुत डरते है.

आप जितना मोहित हैं लोगों से,जितना मोह का बंधन,मोह की रस्सियाँ आपको बाँधे हुए है उतने ही proportion में आप डरते हैं.जितना proportion मोह का उतना ही proportion डर का.लेकिन जिसने भगवान् की शरण ले ले उसके लिए कहा जाता है 

"अकोतो भयात"

"भजहू रे मन श्रीनंदनंदन अभय  चरणारविन्द रे "

तो भगवान् का भजन कीजिये ताकि उनके चरणों में आपको अभय प्राप्त हो.अभय यानी आपको डर से छुटकारा प्राप्त हो.तो भगवान् की शरण लेना आपके जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए.लेकिन जब तक मन सुख और दुःख के चंगुल में रहेगा.जब तक मन शोकाकुल रहेगा और हमेशा धन की खोज लगी रहेगी.मनुष्य शारीर मिला था खोजने को भगवान् को आप खोज रहे हैं धन को.क्या होगा धन?छाती पर रख के ले जाओगे क्या?बताओ छाती पर रखके धन ले जाओगे क्या अपने साथ?बड़े-बड़े राजा-महाराजा नही ले गए.यहाँ पर छोड़कर जाना पडा.सिकंदर जी को और पता नही कितना सारे राजा-महाराजा,क्या नाम ले.आगे भी छोड़कर जाना पडेगा.ये नही है कि ये नियम बदल जायेंगे.

शास्त्र जो कहता है वो अकाट्य है.शास्त्र अकाट्य बातें करता है आपसे.उसे काटा नही जा सकता.यहाँ पर बताया गया है कि मन बहुत दूषित है और वो आपकी कथाओ से तुष्ट नही होता.वो कौन-सी कथाओं से तुष्ट होता है.भौतिक कथाओं से.क्यों?क्योकि मन को आपने training नही दी.गड़बड़ आपने की भाई.आपने मन तो train नही किया.जब आप मन को train नही करेगे तब वो तुष्टी कहाँ मिलेगे भगवान् की कथाओ से.तो शुरुआत कीजिये training देने की.मन को प्रशिक्षित कीजिये ताकि वो भगवान् से जुड़े और आपका मन भगवान् में लगने लगे.

जब मन लगने लगेगा तब भक्ति की प्रक्रिया पटरी पर आयेगी.मन का लगना is the most important थिंग.मन तब लगेगा जब आप मन को train करेंगे.थप्पर  लगायिउए उठाते-बैठते मन को.ये पागल मन कहाँ मुझे लिए जा रहा है.कोड़े लगाईये.कोड़े से पीटीए मन को.रात तो सोने से पहले अपने मन को चाबुक मार-मारकर पीटीए और कहिये चलो भगवान् के चरणों में,चलो भगवान् के चरणों में.वही पर तुम्हारी विजय है.तुम्हारा भी सारा-का-सारा  फल वहाँ पर मिलेगा और मुझे भी मिलेगा.तब मन प्रसन्न हो जाएगा.मन की खोज समाप्त हो जायेगी जब आप उसे भगवान् के चरणों से जोड़ देंगे.
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मै हूँ आपके साथ प्रेमधर पार्वती राठौर. एक और बहुत ही सुन्दत श्लोक आपके लिए.श्लोक का अर्थ 

"अन्यथा हे भगवान्!हे समस्त जगत के परम शिक्षक आप अपने इस भक्त के प्रति इतने दयालु है कि आपने उससे कुछ भी ऐसा नही कराया जो उसके लिए हानिप्रद हो,अलाभकर हो.दूसरी ओर जो व्यक्ति आपकी सेवा के बदले में कुछ भौतिक लाभ चाहता है वह आपका शुद्ध भक्त नही हो सकता.वो तो उस व्यापारी की तरह है जो सेवा के बदले में लाभ चाहता है."

तो देखिये बहुत सुन्दर बात यहाँ कही गयी है.मुझे एक और श्लोक याद आता है आपके लिए.सुनाती हूँ.

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥

चार प्रकार के पवित्र लोग मतलब बिना पवित्र हुए कोई भगवान् की शरण में जा ही नही सकता.तो चार प्रकार के पवित्र लोग मेरी शरण में आते है.कौन-कौन से?

आर्ती यानि जो बहुत दुखी हैं.जीवन से उब चुके हैं.जिन्हें इतना दुःख मिला कि अब उनके पास भगवान् के पास जाने के अलावा अन्य कोई चारा नही है.उन्होंने दोने हाथ खडा कर दिए हैं.आत्मसमर्पण कर दिया और कहा कि भगवान् तुम मेरे हो और मै तुम्हारा. मुझे अपना लो please.तो  ऐसा व्यक्ति बहुत दुखी होता है जो भगवान् की शरण में जाता है और भगवान् उसे भी कहते है?क्या?ये बहुत उदार है,बहुत महात्मा है क्योकि मेरी शरण में आया है.

दूसरा अर्थार्थी जो धन चाहता है भगवान् से.जो पैसा चाहता है.तो ऐसे लोग भगवान् की शरण  में जाते हैं.

तीसरा जिज्ञासु यानि जिसे जिज्ञासा है.जो भगवान् क्या है ये जानना चाहता है और out  of curiosity जाता है,देखे तो वहां क्या हो रहा है. भगवान्,भगवान् क्यों है.चलो देख लेते हैं.है न!पूछना चाहता है,जिज्ञासा करता है,questions करता है वो जाता है.वो भी बहुत पवित्र है जो भगवान् के दरवाजे तक गया.भगवान् के बारे में जिसने जिज्ञासा की क्योंकि human life ,मनुष्य जीवन का एकमात्र aim ,एकमात्र उद्देश्य है अथातो ब्रह्मजिज्ञासा यानि to enquire about GOD .to enquire self and relationship with आपका अपना relationship क्या है भगवान् के साथ.आपका अपना सम्बन्ध क्या है.इसके बारे में पता लगाना ये मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य है.

अथातो ब्रह्मजिज्ञासा की शुरुआत होती है अपने बारे में पता लगाना कि मै कौन हूँ?कहाँ से आया हूँ?और मुझे कहाँ जाना है?ठीक है.फिर भगवान् कौन है?उनका स्वभाव क्या है?भगवान् के पास कैसे जाया जा सकता है?मेरा प्रयोजन क्या है?ये अथातो ब्रह्मजिज्ञासा के अन्दर के subjects .तो तीसरा था जिज्ञासु.

और चौथा है ज्ञानी जिसे पता है कि भगवान् ही सब कारणों के अंतिम कारण है.जिसे पता है कि भगवान् से ही सब कुछ उत्पन्न हुआ है और भगवान् में ही सब कुछ का विलय हो जाएगा.उसे पता है सब कुछ भगवान् में चला जाएगा.resting place हैं भगवान्.भगवान् बताते हैं न:

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्‌ ।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्‌॥

भगवान् ये सब बताते हैं.तो यहाँ बताया गया है कि जो व्यक्ति भगवान् की सेवा के बदले कुछ भौतिक लाभ चाहता है  वो क्या है business man ,भक्त नही है.भक्त है मगर शुद्ध भक्त नही है.वो मिश्रित भक्त है और मिश्रित भक्तों की निंदा की गयी है.मिश्रित भक्त नही होना चाहिए.है न.तो मिश्रित भक्त जो है वो कभी भी शुद्ध भक्त का लाभ प्राप्त नही कर सकता है.भगवान् हमेशा कहते है,हमेशा चाहते हैं कि आप मेरे शुद्ध भक्त बनो.

आप कभी भी कोई ख्वाहिश मत करो,कोई इच्छा मत करोमुझ्से.क्यों?क्योंकि मै तो अन्तर्यामी हूँ.अगर आपने इच्छा प्रकट कर दी तो भगवान् के अन्तर्यामी होने पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा न.यानि तो भगवान् अन्तर्यामी नही है आपकी नज़र में.हैं न.भगवान् अन्तर्यामी हैं.वो अपने भक्त की समस्त जरूरतों से वाकिफ रहते हैं,परिचित रहते है,जानते हैं.उन्हें knowledge है इसलिए आप भगवान् का test मत लिया करो please .
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हम चर्चा कर रहे है एक बहुत सुन्दर श्लोक पर.आप कभी मंदिर जाते हैं.कभी मंदिर गए होंगे आप तो आपने देखा होगा कि लोग लाइनों में लगते हैं और कुछ फल खरीदते हैं भगवान् के लिए,कोई फूल खरीदता है.कहा जाता है कि जब भगवान् से आप मिलने जाएँ तो खाली हाथ नही जाना चाहिए.तो लोग फल-फूल खरीदते हैं.क्यों?क्योंकि भगवान् कहते हैं भाई:


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥


भगवान् कहते हैं भाई जो मुझे प्रेम से चाहे एक पत्ता ही दे दे,फूल दे दे,कुछ नही है तो पानी तो मिलेगा.गरीब-से-गरीब पानी तो चढ़ा ही सकता है,offer कर सकता है तो वही दे दे.मै प्रसन्न हो जाता हूँ.मगर उनकी condition होती है प्रेम से.लेकिन भौतिकतावादी व्यक्ति भगवान् से मिलाने जाता है तो वो सारा चीज एक कारोबारी के तरीके से ले जाता है.चलो कुछ फल-फूल दे देंगे और भगवान् हमारा काम बना देंगे.भगवान् से कुछ भी मांग लेंगे.भगवान् तो हमेशा वर देने के लिए आतुर रहते हैं.तो भगवान् की सेवा करेंगे.ऐसे फल-फूल दे देंगे तो भगवान् खुश हो जायेंगे.

अरे ये फल-फूल भगवान् ने ही उगाये.आप भूल गए क्या?आपने थोड़े न उगाया.ये बीज भगवान् हैं.भगवान् कहते हैं कि मै बीज हूँ हर चीज का.मुझ से हर चीज उत्पन्न होती है.तो जब भगवान् origin है,मूल हैं सब चीज का तो आप कैसे credit ले जाते हैं.आप श्रेय ले जाते हैं.आप ने नही उगाये ,आपने ख़रीदे तो वो शक्ति,ये दिमाग,ये शरीर,शरीर के अन्दर आत्मा सबकुछ तो भगवान् का है.आप कहाँ से मालिक बन बैठे.आप कहाँ से मालिक हैं.जो यूं हम भगवान् से अलग होकर अपने आप को मालिक समझने की भूल कर बैठते है इसीलिए जनाब आप फंस जाते हैं.

ईशावास्यमिदम सर्वं यः किंचित जगत्यन्जगत .
तेन त्यक्तेन भून्जीथाः , मा गृध ,कस्यस्विद धनं ??



भगवान् कहते हैं ये चर-अचर सबकुछ मेरा है.तुम्हे जितना दिया गया है,तुम्हारे लिए जितना हिस्सा नियत किया गया है उसमे खुश रहो.उससे ज्यादा लेने की कोशिश करोगे तो तुम चोर कहलाओगे,तुम्हे परिणाम भुगतना पड़ेगा.चोर अगर चोरी करता है तो उसे परिणाम भुगतने पड़ते हैं.तो अगर हम भगवान् ने जो कुछ बनाया उसमे अपना credit लेंगे,हम कहेंगे कि नहीं ये सब हमारा है,हमने ये सब बनाया और भगवान् को अलग कर देंगे उठाकर तो प्रकृति हमें छोड़ेगी नही.हम  हमेशा प्रकृति के मार से पीड़ित रहेंगे.बार-बार अनेकानेक योनियाँ झेलनी ही पड़ेगी.nobody can help you .सिर्फ आप अपनी सहायता स्वयं कर सकते हैं.

वो कैसे?अगर आप भगवान् की शरणागति ले लें तो भगवान् केहते हैं भाई

मामेकं शरणं व्रज

order है ये कि आप सिर्फ मेरी शरण लो. और आप केवल उन्ही की शरण न लेकर सबकी शरण लेते हैं.नाम गिनाने बैठूंगी तो एक बहुत लम्बी list बन जायेगी.कितने लोगों की आप शरण लेते हैं और भगवान् को आपने अपनी life से minus किया हुआ हैं.क्यों?क्योंकि बुढापे में कर लेंगे न.बुढापे में शरण ले लेंगे न.किसने देखा है.बुढ़ापा आयेगा क्या?क्या आप गारंटी के साथ कह सकते हैं कि आप बूढ़े होंगे?just because आपके साथवाले लोग बूढ़े हुए it does not मैं कि आप भी बूढ़े होंगे.कुछ भी हो सकता है न.कुछ कहूंगी नही लेकिन कुछ भी हो सकता है क्योंकि मृत्यु जो है वो आसन्न है.वो बार-बार अपनी जुबान हमारी तरफ फैला देती है.उसका पंजा हमारे गर्दन है और कभी भी वो पंजा कास सकता है.इसलिए कभी मत सोचना चाहिए कि कल कर लेंगे.आज से,अभी से ,इसी समय से भगवान् की शरण आपको लेनी चाहिए.मै नही कहूंगी कि ले लो.i am no body to order you still मै request करूंगी कि आप भगवान् की शरण ले लीजिये ताकि आप जन्म-मृत्यु का जाल से बाहर आ सके.समझ में आया.
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आपके साथ मै हूँ प्रेमधारा पार्वती राठोर.हम चर्चा कर रहे हैं एक बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.भगवान् ही परम शिक्षक हैं.सारी सिक्षा,सारे शास्त्र जो है वो भगवान् से ही उत्पन्न होते हैं.वो अपोरुषैय  हैं.हमारे शास्त्र  अपोरुषैय कहलाते हैं.इन्हें किसी पुरुष ने नही लिखा है.ये भगवान् से प्रकट हुए हैं.भगवान् ने उन्ही प्रकट किया है.तो भगवान् ही परम शिक्षक हुए.है न.तो हे परम शिक्षक आप अपने इस भक्त के प्रति इतने दयालु हैंकि आप इससे कुछ भी ऐसा नही कराते जो उसके लिए हानिप्रद हो दूसरी ओर जो व्यक्ति आपकी सेवा के बदले भौतिक लाभ चाहता है वो आपका शुद्ध भक्त नही हो सकता वो उस व्यापारी की तरह है जो सेवा के बदले में लाभ चाहता है.

देखिये यहाँ एक बहुत ही बड़ी बात.जब शुद्ध भक्त भगवान् के अधीन हो जाता है या यूं कह लीजिये भगवान् को ही अपने अधीन कर लेता है.इतना प्यार करता है भगवान् से कि भगवान् उसके प्रेम की रस्सियों से जकड जाते हैं,भगवान् उसके अधीन हो जाते हैं.हैं न.जब भगवान् को साध लेता है शुद्ध भक्त तब भगवान् अपने इस भक्त पे इतने दयालु हो जाते हैं कि वो उससे कुछ भी ऐसा नही कराते जो उसके लिए अलाभकर हो,हानिप्रद हो.यानि कि आपको शुद्ध भक्त दिखेगा तो भौतिक.हो सकता है कि भौतिक जगत  में रहता हो,हो सकता है कि वो नौकरी करता हो,हो सकता है कि वो दुनियावी सारे काम करता हो लेकिन वो अलग  रहता है उनसे.क्यों?क्योंकि वो भगवान् के आश्रय में रहकर कार्य करता है.भगवान् कहते हैं न :


सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः।
मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्‌॥


सारे कर्म आप मेरे आश्रय में रहकर करिए और मेरे प्रसाद से सारे बाधाओं को पार कर लेंगे आप जिन्दगी की और आपको शाश्वत अव्यय होनेवाला जिसका नाश नही होता ऐसा पद प्राप्त हो जाएगा.तो भगवान् आपको कभी कर्म करने से मन नही करते.भगवान् तो कहते है कर्म करो पर मेरा आश्रय लेकर.मुझसे connect हो जाओ.जो तार आपकी गलत socket में लगी थी उसे सही socket में लगा लीजिये,सही connection होगा.सही ऊर्जा प्रवाहित होगी और भगवान् का संरक्षण आपको मिलेगा तो आप कभी भी ऐसा कम नही करेंगे जो आपके लिए हानिप्रद हो यानि कि आप भौतिकता में लिप्त नही होंगे.आपके अन्दर अगर कामनाएं उत्पन्न भी हुई 


आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं-
समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्‌ ।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे
स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥


तो अगर आपने अन्दर कामनाएं उत्पन्न भी हुई तो भी आप इतने शुद्ध हो चुके होंगे कि आप उन कामनाओं को पूर्ण करने के लिए नही भागेंगे.आपको ऐसी बुध्दि देंगे कि आप सही दिशा में भागेंगे.भगवान् की तरफ भागेंगे.ना कि आप भौतिक कामनाओं को पूर्ण करने के लिए भागेंगे.एक आम आदमी और भक्त में ये फर्क है कि एक आम आदमी के पास पैसा है और वो देखता है कि market में एक नया मोबाइल सेट आया है जिसमे बहुत सारे features है.computer का भी काम कर सकता हैं.और जाने क्या-क्या काम कर सकता है unlimited work  तो  वो क्या करेगा .चलो इस पुराने मोबाइल को हम छोड़ देते हैं.ये किसी को दे देंगे या बेच देंगे.जो भी है लेकिन नया मोबाइल अभी ले लेते हैं लेकिन एक शुद्ध भक्त कहेगा क्या जरुरत है.फ़ोन ही तो सुनना है.sms  ही तो करना हैं.मेरे पास मोबाइल तो है ही.पुराना है तो क्या?काम तो वही दो करने हैं न.बाकी मुझे काम ही नही करना है.अपनी इन्द्रियों को मै और बाकी कार्यों में क्यूँ लिप्त करूँ.मै तो इन इन्द्रियों को भगवान् की सेवा में लिप्त करना चाहता हूँ तो मै और कार्यों को क्यूं खोजूं अपनी इन्द्रियों को व्यस्त रखने के लिए.मुझे तो भगवान् की सेवा चाहिए तो वो अपनी इन्द्रियों को भगवत सेवा  लगा देगा.

और कहा भी जाता कि भाई भगवान् की सेवा जब आप करते है और भगवान् के ही लिए desire करते हैं आप तो वो भक्ति कहलाती है.

अन्यअभिलाषिताशून्यं  

बाकी अभिलाषाओं से मुक्त हो जाईये.कोई अभिलाषा आपके अन्दर रहनी नही चाहिए भगवान् को छोड़कर के.तो वही भक्ति है.भक्ति की शुरुआत यही है कि आप अपनी अभिलाषायें छोड़ दे.अपने sense gratification की अभिलाषा छोड़ दे.

जहाँ आप सोचते है कि आपको अपना sense gratification करना है वहां आप भगवान् को साध नही सकते.भगवान् से प्रेम नही कर सकते.और जहाँ आप सोचते हैं कि कुछ फल और फूल चढ़ा के भगवान् को प्रसन्न कर लूंगा.वहां भी आप फ़ैल हो जाते हैं.तो ये चीज हमें समझनी होगी.ये difference हमें समझना होगा कि मिश्रित भक्त और शुद्ध भक्त में क्या अंतर है.तब हम शुद्ध भक्ति की तरफ बढ़ सकते हैं.




1 comment:

sachin said...

This is very well done to develop documented Lectures of Maa Premdhara Parvati Rathor besides the recordings hosted on website Divine Happiness. The preachings have changed my entire life.