आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.कैसे हैं आप.तो भाई बच्चों की गर्मी की छुट्टियाँ पद गयी हैं और अब तो आपको आराम होगा.है न.अरे पहले बच्चों को स्कूल भेजने के चक्कर में जल्दी उठना.उन्हें तैयार करना.भाग-भागकर उन्हें स्कूल बस स्टॉप तक छोडना या फिर स्कूल में ही छोडना.चिंता करते रहना कि कही स्कूल में देर न हो जाए.तो चिंताओं के ढेर में से कम-से-कम ये चिंता तो फिलहाल दूर हुई.
अब ये मत करने लग जाईयेगा कि आप भी देर से उठने लगे.थोडा और सो ले.थोड़ा और सो ले.क्योंकि अगर ऐसा करेंगे तो आपकी जो इतनी सुन्दर आदत थी,सुबह-सुबह जल्दी उठाने की,वो खराब हो जायेगी.
बजाये इसके आप जैसे पहले उठते थे वैसे ही उठिए और जल्दी नहा-धोकर भगवान का नाम लीजिए सुबह-सुबह.छत में या आँगन में ताजी हवाओं के बीच प्रभु का सुमिरन कीजिये.सच में आनंद आ जाएगा.यकीन नही आता तो खुद करके देखिये तब इन लम्हों को आप सदा याद रखेंगे.
बजाये इसके आप जैसे पहले उठते थे वैसे ही उठिए और जल्दी नहा-धोकर भगवान का नाम लीजिए सुबह-सुबह.छत में या आँगन में ताजी हवाओं के बीच प्रभु का सुमिरन कीजिये.सच में आनंद आ जाएगा.यकीन नही आता तो खुद करके देखिये तब इन लम्हों को आप सदा याद रखेंगे.
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कार्यक्रम का पहला श्लोक हम लेते हैं.बहुत ही सुन्दर श्लोक है.भगवान कहते हैं.
"सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत ॥"
अर्थात
“हे भरत पुत्र ! सतोगुण मनुष्य को सुख से बाँधता है.रजोगुण सकाम कर्म से बाँधता है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढँककर उसे पागलपन से बाँधता है.”
तो देखिये भगवान ने यहाँ आपको तीन गुणों के बारे में बताया है.अगर आप शास्त्र नही पढ़े तो आपको पता ही नही चलेगा कि आप जो इतने परोपकारी हैं या इतने पुण्यात्मा हैं जो अच्छी बातें सोचते हैं,ये क्या लक्षण है.क्यों होता है ऐसा.क्योंकि आप में सतोगुण की मात्रा अधिक है.आपने practice से भगवान की कृपा याचना करके सतोगुण की मात्रा बढ़ा ली है इसीलिए आपका मन परोपकार में लगता है.अच्छी पुस्तकें पढाने में लगता है.भगवान के बारे में सुनने में लगता है.
तो सतोगुण है.भगवान कहते हैं कि ये मनुष्य को सुख से बाँधता है.देखिये बहुत बड़ी बात है.भगवान ने एक तरफ ये कहा है कि ये जगत दुखालायम,आशाश्वतम है लेकिन दूसरी तरफ भगवान ये बताते हैं कि ये जगत बेशक दुखालायम है मगर आप यहाँ सुखी रह सकते हैं यदि आप सतोगुणी हो जाएँ.अगर आप रजोगुणी है तो काम नही चलेगा.अगर आप तमोगुणी हैं तो और भी बर्बाद हो गए आप.तो तब काम नही चलेगा.
लेकिन अगर आपने किसी तरह अपने आप को सतोगुण की तरफ उठा लिया.सतोगुण की मात्रा को अधिकाधिक बढ़ा लिया.आप सतोगुणी हो गए तो मै आपको बताती हूँ आप सुखी रहेंगे.बहुत सुखी रहेंगे.तो ये जो सुख है वो सतोगुण से ही मिलेगा.
भगवान बताते हैं कि सतोगुण मनुष्य को सुख से बाँधता है इसका अर्थ ये है कि जब आप ईश्वर की तरफ बढ़ने का प्रयत्न करते हैं.जब आप ये जानने का प्रयत्न करते हैं कि मै कौन हूँ.ऐसे प्रश्न आपके दिमाग को मथते हैं.आपके ह्रदय को मथने लगते हैं.आपके अंदर ये प्रश्न उठता है कि अरे ये सब क्या हो रहा है.क्यों स्थिति,परिस्थिति मेरे control से बाहर चली जाती है.क्यों कोई और हमें control करता है.वो जो हमे control करता है वो कौन है.
अथातो ब्रह्मजिज्ञासा
जब आप उस ब्रह्म को जानने का प्रयास करते हैं.ब्रह्म को जानने के बाद आप परब्रह्म को जानने का प्रयास करते हैं तो आपके जीवन का शुभारंभ हो जाता है.कौन से जीवन का?आध्यात्मिक जीवन का.आध्यात्मिक जीवन का शुभारंभ हो जाता है.तब आप सुखी होने लगते हैं.
आप ये देखेंगे.कभी आपने नोट किया होगा कि जब आप शास्त्रों से कोई बात सुनते हैं.कोई आपको भगवान के बारे में बताता है तो आपको बड़ा मज़ा-सा आता है.आनंद-सा आता है.चिंता दूर भागने लगती है.चिंता का भागना अर्थात सुख.यानि आप सुखी होने लगते हैं.
तो भगवान ने बताया कि आप अगर सतोगुणी हैं तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि सतोगुण ही आपको सुख दे सकता है.
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मै आपसे चर्चा कर रही हूँ बहुत-ही सुन्दर श्लोक के ऊपर.भगवान ने कहा है:
"सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत ॥"
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत ॥"
अर्थात
“हे भरत पुत्र ! सतोगुण मनुष्य को सुख से बाँधता है.रजोगुण सकाम कर्म से बाँधता है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढँककर उसे पागलपन से बाँधता है.”
तो हमने चर्चा की कि सतोगुण मनुष्य को सुख देता है,सुखप्रदायक है और रजोगुण सकाम कर्म से बाँधता है.रजोगुण जिस भी व्यक्ति में होगा वो हमेशा ये सोचेगा कि मै कैसे-कैसे करके काम करता रहूँ.सारा दिन काम करता रहेगा.सुबह से लेके रात तक खटता रहेगा.क्यों?ताकि उससे मुझे ढ़ेरों पैसे मिले और फिर मै ढेरो इन्द्रतृप्ति का समान खरीद सकूं.अगर मै एक normal shirt पहनता हूँ तो मेरी इतनी income हो जाए कि branded shirt पहनूँ.है न.ऐसे-वैसे नही.लोग कहे कि आहा देखो मैंने इस brand की shirt पहनी है.देखो मै कितना अच्छा लग रहा हूँ.मेरा standard of living बढ़ गया है.जो रजोगुणी लोग हैं वो ये सब सोचते हैं.
भगवान ने शास्त्र में बताया है कि जो रजोगुण है वो दुःख प्रदायक है.दुःख देता है.वो बहुत दुःख देता है.क्यों?क्योंकि आज आप सोच रहे हैं कि मै ये करूँ,वो करूँ.अगर वो हुआ नही तो आप दुखी हो जायेंगे.आप सोच रहे हैं कि मै medical का entrance test दूं.डॉक्टर बनना है बचपन से सोचा था.पापा ने सोचा है कि डॉक्टर ही बनना है और मैंने medical test दिया.मैंने कोचिंग भी ली और कोचिंग पर मेरे पापा ने harden money लगाया जो बड़ी मुश्किल से उन्होंने जमा किया था.मैंने कोचिंग ली लेकिन fail हो गया.
तो जब तक आप उस चीज के बारे में सोच रहे थे.सपने देख रहे थे मै डॉक्टर बनूँ,डॉक्टर बनूँ तो आपको लग रहा था कि आप सुखी है और बन जायेंगे.लेकिन फिर भी आप क्योंकि आप fail हो गए आप दुखी हो गए.आपको लगा कि अब क्या?मेरे पिता का सपना टूट गया.मेरा सपना टूट गया और फिर alternative यानि विकल्प की तरफ देखते हैं.कई बार वो विकल्प कुछ नही होता सिवाय एक समझौते के.
तो जो सकाम कर्मी हैं.सकाम का अर्थ तो आपको पता ही होगा.अब तक तो पता होना चाहिए.सकाम का अर्थ ये है कि जो व्यक्ति अपने कार्यों से किसी फल की आकांक्षा करे.है न.फल के बगैर काम न करे वो सकाम कर्मी होता है.सकाम कर्मी सदा-सर्वदा दुखी रहते हैं क्योंकि जिस फल की आपने आशा की हो सकता है वो फल आपको मिले ही न.बिना फल के आप कैसे जिओगे तो आप दुखी हो जाओगे.कम फल मिले,थोड़ा-सा मिले तो दुखी हो जाओगे.आपने पूरा साल काम किया लेकिन आपको increment क्या मिला 2%,3%,4%.तो आप दुखी हो गयी.आपने कहा कि अरे पूरी company तो मैंने चलाये पिछले साल लेकिन फिर भी मै दुखी हूँ.क्यों?क्योंकि आप रजोगुणी व्यक्ति हैं.
रजोगुण में आपको दुःख मिलेगा ही मिलेगा.कोई इसे परिवर्त्तित नही कर सकता.कोई बदल नही सकता.
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अब हम चर्चा करेंगे एक अन्य श्लोक पर आपसे.बहुत ही सुन्दर श्लोक है.
"लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा ।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥"
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥"
अर्थात
"हे भरतवंशियों में प्रमुख ! जब रजोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो अत्यधिक आसक्ति,सकाम कर्म,गहन उद्यम तथा अनियंत्रित इच्छा एवं लालसा के लक्षण प्रकट होते हैं."
तो देखिये भगवान ने शास्त्र में बताया है कि रजोगुण सकाम कर्म से बाँधता है.जो व्यक्ति फल का आकांक्षी होता है.फल के बारे में जो व्यक्ति सोचता रहता है वो व्यक्ति दुःख पाता है.ठीक है न.
तमोगुणी व्यक्ति के बारे में भगवान ने बताया था कि भाई ऐसा व्यक्ति पागलपन में पर जाता है.पागल हो जाता है क्योंकि उसका ज्ञान आवृत हो जाता है.वो आलसी हो जाता है.वो नींद के वश में रहता है.हमेशा सोया रहता है.तो ऐसे लोग जो हैं वो अधम लोकों में जाते हैं.अधम योनियों को प्राप्त करते हैं.
तो यहाँ अभी जिस श्लोक पर हम चर्चा कर रहे हैं उसमे रजोगुण को भगवान ने बहुत अच्छी तरह से explain किया है.बताया गया है कि जब रजोगुण मर वृद्धि हो जाती है यानि कि जब रजोगुण बढ़ जाता है तो क्या होता है?अत्यधिक आसक्ति यानि कि जो आपके रिश्ते हैं उनमे बहुत प्रेम जागृत हो जाता है.छोटे-छोटे बच्चे आपके जब वो तुतलाकर बोलते हैं तो आपको लगता है कि मै अपने आप को कुर्बान कर दूं इनपर.आपको लगता है कि इन्ही के लिए तो मेरी दुनिया है.मेरी दुनिया यही है मेरे बच्चे.अत्यधिक आसक्ति.
और कल को जब ये बच्चे बड़े हो करके आपकी बात नही मानते.आपको नजरअंदाज करने लगते हैं.आपको कहते हैं कि पापा और मम्मी आप तो backward हो गए.अब आप इतने modern नही रहे और आपसे हमारा generation gap हो गया है.जब आपको ऐसी-ऐसी बातें सुनाने लगते हैं तो सोचिये कितना दुःख होता है.होता है कि नही.अत्यधिक आसक्ति मार देती है.
तो देखिये यहाँ आपको बड़ी सुन्दर बात बतायी गयी है.आगाह किया गया है आपको.सचेत किया जा रहा है.warn किया जा रहा है.चेतावनी दी जा रही है कि अत्यधिक आसक्त मत होना अपने परिवार में.सुबह से लेकर रात तक सिर्फ परिवार के लोगों के बारे में मत सोचते रहना.ये मत सोचते रहना कि उसकी शादी है तो वहाँ जाना है.उसके लिए ये खरीदना है.बच्चे के लिए ये करना है.इनको इतना प्यार देना है.दुनिया में कोई कमी न रहे इनके लिए.इतन बना जाऊं,इतना बना जाऊं इनका bank balance कि सात पीढियाँ बैठकर खाती रहे.
ये सब मत सोचना.ये सब सोचेंगे तो आप फंस जायेंगे.आपके कर्म आपको बाँध लेंगे और फिर आपको दुबारा जन्म लेना पडेगा.दुबारा आना पडेगा इस संसार में और इस संसार में आना कोई अच्छी बात नही है.बहुत दुःख की बात है क्योंकि न चाहते हुए भी आपको अनेकानेक,अनेकानेक दुःख,तकलीफ झेलनी पड़ेगी.आप कष्ट,कष्ट और कष्ट पाते रहेंगे.तो अत्यधिक आसक्ति से बचना चाहिए.ये हमारे शास्त्रों का निर्णय है.
आसक्ति को अगर कही लगाना है तो भगवान के श्रीचरणों में लगाईये.
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हम चर्चा कर रहे हैं बहुत ही सुन्दर श्लोक पर.ध्यान से सुनिए.
"लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा ।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥"
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥"
अर्थात
"हे भरतवंशियों में प्रमुख ! जब रजोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो अत्यधिक आसक्ति,सकाम कर्म,गहन उद्यम तथा अनियंत्रित इच्छा एवं लालसा के लक्षण प्रकट होते हैं."
देखिये बहुत सुन्दर बात यहाँ बतायी गयी है.चेतावनी दी गयी है कि जब-जब आपमें ये लक्षण दिखे तो समझियेगा कि आप में रजोगुण की मात्रा बढ़ने लगी है.आप सकाम कर्म में ज्यादा-से-ज्यादा अगर interest लेते हैं यानि कि आप रजोगुणी होते जा रहे हैं.गहन उद्यम.जो सकाम कर्मी हैं,जो रजोगुणी व्यक्ति है वो गहन उद्यम करता है.यानि टूट टूट के काम करता है.
देखिये आप बाहर के देश में कई जगह ऐसे हैं लोग कि अगर वो आठ घंटे काम करते हैं तो उनका अपमान किया जाता है.सिर्फ आठ घंटे और बड़ा उन्हें समझा जाता है जो सोलह घंटे काम करते हैं.ऑफिस में सोलहों घंटे बैठे हैं.सुबह आ जाते हैं नौ बजे और फिर रात तक बैठे हुए है ग्यारह-ग्यारह,बारह-बारह बजे तक.और कई बार बड़े ही घमंड से वो कहते हैं कि अरे कल तो मैंने सारी रात यहाँ पर stay किया और मैंने बहुत काम किया.गहन उद्यम.
आपके पास Limited समय है जीवन का.वो limited समय आपको गहन उद्यम के लिए नही मिला है कि आप गदहे की तरह खटते चले जाएँ,खटते चले जाएँ, खटते चले जाएँ वो इसलिए मिला है कि आप उतना ही काम कीजिये कि जिसमे आप सहज रूप से कमा पाए.इतना आपको मिल जाए कि आपकी रोटी चल जाए.आपका अतिथि भूखा न जाए.आपके बच्चे ठीकठाक पल जाएँ.जरूरी नही है कि उन्हें जिंदगी की हर सुविधाएं दी जाएँ.कहते हैं न :
“पूत कपूत तो क्यों धन संचय
और पूत सपूत तो क्यों धन संचय.”
कपूत है तो उड़ा देगा.सपूत है तो खुद कमा लेगा.तो धन संचय करने के लिए गहन उद्यम नही कीजिये.समय बचाईये ताकि उसे आप भगवान को दे सके.भगवान में लग सके.अंत समय में यदि आपको भगवान नही याद आये.आपको आपके targets याद आये तो भगवान आपको फिर से जन्म दे देंगे.जाईये आप फिर से भौतिक लोक के हो जाईये जबकि आप हैं आध्यात्मिक.आपको आध्यात्मिक लोक जाना है.
फिर बताया भगवान ने कि अनियंत्रित इच्छा.श्लोक बता रहा है कि अगर आप रजोगुणी हैं तो आपकी इच्छाएं अनियंत्रित हैं.अनियंत्रित इच्छाएं आपमें जन्म लेने लगती है यानि जिन पर आप नियंत्रण नही लगा पाते हैं.हाँ उधर बगल में रेस्टोरेंट खुला है चलो वहाँ जाना है.हाँ वहाँ पे एक नई movie आ रही है.वहाँ पर एक नया mall खुला है वहाँ पर जाना है.आप बहुत चीजें सोचने लगते हैं.
और लोभ के लक्षण.लालची हो जाते हैं.आप सोचते हैं कि वहाँ पैसा लगाओ.अरे उसमे तो इतना interest मिलेगा.bank में पैसा क्यों रखो वहाँ पे लगाओ.वहाँ पर तो पता चल रहा है कि 40% मिल रहा है.बाद में पता चलता है कि वो जो 40% दे रहा था वो अपना बोरिया -बिस्तर समेत के भाग गया और आपके पैसे गए.समझ रहे हैं आप.हम लालची हो जाते हैं एक छोटा-सा example दिया.आप देखेंगे अपनी दुनिया में,अपने जगत में,अपने संसार में कि कितनी-ही चीजों में हमारा लालच आ जाता है.ये होता तो कितना अच्छा होता.वो होता तो कितना अच्छा होता.इसके लिए मै और काम करूँगा,और मेहनत करूँगा.हाँ नही तो ठीक है कोई बात नही रिश्वत ले लेंगे.
हम पाप पे पाप करते चले जाते हैं और इसिलए हमें दुःख प्राप्त होते हैं.रजोगुणी व्यक्ति को दुःख प्राप्त होते हैं.इसीलिए रजोगुण के इन लक्षणों से सावधान रहना चाहिए.देखना चाहिए कि हम रजोगुण की अपेक्षा सतोगुण को विकसित करें और एकदिन सतोगुण कर्र अवस्था को भी लाँघ जाएँ.हम निर्गुण अवस्था में चले जाएँ.शुद्ध सत्त्व में स्थित हो जाएँ और भगवान से अतिप्रेम करने लग जाएँ.
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कार्यक्रम में आपका बहुत-बहुत स्वागत है.ये समय है आपके SMS को कार्यक्रम में शामिल करने का.पहला SMS लेते हैं.
SMS :प्रीति नॉएडा से पूछती हैं कि
जैसे गुरु कहते हैं कि एक ही भगवान को मानो तो क्या इसका मतलब ये है कि सारे भगवान की पूजा करनी छोड़ दे.पूजा नही करनी चाहिए.
प्रीति देखिये भगवान एक ही होते हैं.और जिन्हें आप सारे भगवान कह रही हैं शास्त्रों के अनुसार वो उनके प्रतिनिधि हैं.देवी-देवता हैं.ठीक है.तो अगर आप भगवान की पूजा करती हैं तो एक बड़ी ही सुन्दर बात मुझे याद
आती है.एक बहुत ही सुन्दर श्लोक है कि
अगर आप भगवान की पूजा करती हैं तो समस्त देवी-देवताओं और समस्त जीवात्माओं की पूजा
स्वतः हो जाती है.स्वतः हो जाती है.
बहुत सुन्दर बात है कि
आप अगर एक पेड़ के जड़ में पानी डालते हैं तो वो जो पानी है वो उसके स्कन्द में ,उसके ताने में,उसके शाखाओं में पहुँच जाता है.उसके फल में,उसके पत्तों में अपने आप पहुँच जाता है.है न.और इसीप्रकार से अगर आप पेट को भोजन देते हैं तो सारी-के-सारी जो आपकी इन्द्रियां हैं उनको भोजन पहुँच जाता है.
तो आप सिर्फ एक भगवान में अपने मन को लगाईये तब आप देखेंगे कि आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नही पड़ेगी.वहाँ से आपको बहुत satisfaction मिलेगा.आनंद मिलेगा.
SMS :अनिता लक्ष्मीनगर से कहती हैं
क्या होगा अगर हम पूरी जिंदगी भगवान का नाम ले पर मृत्यु के समय हम भगवान का नाम न ले पाएं.तो क्या उससे हमें मोक्ष मिलेगा?
अनिता जी मै आपकी बात समझती हूँ.आपके डर को भी समझती हूँ.आपको डर है कि हम पूरी जिंदगी भगवान का नाम ले और मृत्यु के समय हमारी मृत्यु इसप्रकार से हो कि मान लीजिए अचानक accident हो गया या हम बेहोश हो के मर गए या हम कोमा में चले गए.तो क्या होगा.तब तो हम भगवान का नाम जाहिर है नही ले सकते हैं.
लेकिन शास्त्र कहते हैं कि तब भगवान आपका नाम लेते हैं.डरने की जरूरत नही है.आप बस गंभीरतापूर्वक तमाम उम्र भगवान का नाम लीजिए और अंत में अगर आप भगवान का नाम नही भी ले पाए तो भगवान आपका नाम लेंगे.आपको याद रखेंगे.
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥
भगवान कहते हैं कि मेरे भक्त का कभी विनाश नही होता तो नही होगा.यकीन रखिये.
SMS :S.P. मेरठ से कहते हैं कि
क्या हम लेटकर भगवान का भजन कर सकते हैं क्योंकि हममे बैठने का सामर्थ्य नही है?
बिल्कुल S.P.जी आप लेटकर भी भगवान का भजन कर सकते हैं.बैठकर कर सकते हैं.खड़े होकर कर सकते हैं.नाचकर कर सकते हैं.स्थिति-परिस्थिति को मत देखिये.important ये है कि आप भगवान का भजन करते हैं कि नही.आप उन्हें भजते हैं कि नही.उन्हें याद करते हैं कि नही.प्रेम करते हैं कि नही.लेटके भी आसूँ बहा सकते हैं.उसमे क्या समस्या है.भगवान तो बस attachment देखते हैं कि आपके मन का attachment कहाँ है.उनमे है या फिर भगवान की माया में है.यानि संसार में है.
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SMS:दीप्ति अरोड़ा तिलकनगर से कहती हैं
"God is nowhere.this can be read as God is nowhere or now here.So everything depends upon how you see anything"
ये कहती हैं कि God is nowhere.भगवान कही नही है इसे ऐसे भी पढ़ा जा सकता है God is nowhere यानि कही नही है या फिर God is now here यानि भगवान अब यही हैं आपके पास.तो आप पर निर्भर करता है कि आप किसी भी चीज को किसप्रकार देखते हैं.यानि कि ये ग्लास आधा भरा है या आधा खाली है.है न.
दृष्टीकोण पर सब निर्भर है.श्रद्धा है तो आप कहेंगे God is now here लेकिन यदि श्रद्धा नही है तो आप कहेंगे God is nowhere भगवान कही नही हैं.और भगवान क्या कहते हैं.भगवान कहते हैं
अगर आप मुझपर श्रद्धा नही है तो आप मुझे प्राप्त नही कर पायेंगे.और अगर आपने मुझे प्राप्त नही किया इस जीवन में तो दुबारा से इस मृत्यु संसार में आपको लौटते रहना पडेगा,आपको लौटते रहना पडेगा,आपको लौटते रहना पडेगा.
और मै आपको बता दूं कि ये बहुत बड़ा risk है.बहुत बड़ा खतरा है.
SMS: ललिता महरौली से कहती है कि
क्या भगवान का नाम लेना भी भगवान की सेवा है?
ललिता जी कलियुग में भगवान का नाम लेना ही भगवान की सेवा है.आप ऐसा क्यों सोच रही हैं कि भगवान का नाम अगर आपने लिया तो उनकी सेवा नही की.कलियुग में एकमात्र उपाय क्या है.
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् |
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ||
हरी के नाम के अलावा,प्रभु के नाम के अलावा कलियुग में कोई उपाय नही,कोई उपाय नही,कोई उपाय नही.
फिर नाम लीजिए भरपूर तो भगवान की सेवा हो जायेगी भरपूर.ठीक है.
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SMS:संजीव कामरा कहते हैं कि
मोक्ष और मुक्ति के बारे में बताएं.
बहुत सुन्दर प्रश्न है आपका.मोक्ष और मुक्ति.पाँच प्रकार की होती है मुक्ति:
स्रार्ष्टि : जिसमे भगवान अपने जैसा ऐश्वर्य आपको दे देते है.
सारूप्य: जिसमे कि भगवान आपको अपने जैसा रूप प्रदान कर देते हैं.
सालोक्य : जिसमे भगवान आपको अपने लोक में प्रवेश प्रदान करते हैं.
सामीप्य : जिसमे भगवान आपको अपना संग प्रदान करते हैं.अपने पार्षद का दर्जा देते हैं.
तो ये चार मुक्ति और इसके अलावा जिसे मोक्ष कहते हैं वो है
सायुज्य मुक्ति : भगवान से तदाकार होना.भगवान में लीन हो जाना.भगवान में खो जाना.
कई बार लोग कहते हैं कि हम तो भगवान में मिल जाना चाहते हैं.वो तो मर गया और जाके भगवान में मिल गया.तो ये जो सायुज्य मुक्ति है,भक्त लोग इससे बहुत नफ़रत करते हैं.
कैवल्यम नरकायते
कहा जाता है.ये कैवल्य मुक्ति है और ये नरक जैसी है.क्यों?क्योंकि तब इसमे आप भगवान की सेवा कहाँ करेंगे जब आप भगवन में मिल जायेंगे.यूं तो आप भगवान में मिल नही पाएंगे जैसे कि एक हरा वृक्ष है और उसमे एक हरा तोता बैठा है तो वो दूर से देखने पर लगता है कि हाँ सबकुछ हरा ही है.लेकिन तोता उसका एक अलग अस्तित्व है और वो हरे पेड़ में बैठा है.रंग हरा है.ठीक है न.अस्तित्व अलग है.ख्वाहिशें अलग है.इच्छाएं अलग है.सबकुछ है उसके अंदर.पूरी Programming उसके अंदर है.वो लीं नही होता भगवान में.
तो ये जो चीज है कि हम लीन हो जायेंगे ये हो नही सकता.हम भगवान के शरीर की प्रभा में,ब्रह्मज्योति में तैरते रहेंगे अध्यात्मिक कण बन करके.किसी भी समय हमें भौतिक इच्छा अगर हो गयी कि इससे अच्छा तो मै भौतिक लोक में ही था.कम-से-कम वहाँ मै आनंद तो मना रहा था.आनंद की विचित्रता थी.diversity थी,variety थी.जैसे ही ये इच्छा आप प्रकट करेंगे आपका पतन हो जाएगा इस भौतिक जगत में.
तो भक्त भगवान से मुक्ति नही माँगता.भक्त भगवान की भक्ति मांगता है हर जन्म में.
SMS: भावना दिल्ली से कहती हैं कि भगवान को पाने की इच्छा भी भगवान से मिला देती है.
Very right,very very right.बिल्कुल सही बात बोली है आपने भावना.भगवान को पाने की अगर आपके अंदर अदम्य इच्छा होगी.You know what अदम्य means.अदम्य का मतलब है वो इच्छा जो मरती नही.देखिये समस्त इच्छाएं पैदा होती हैं और मर भी जाती है.लेकिन ऐसी इच्छा जो मरती नही है और सारी इच्छाओं पर भारी पर जाती है.सारी इच्छाएं उसके आगे फीकी पर जाती है.बेकार हो जाती हैं.ऐसी अदम्य इच्छा भगवान से मिलने की आपको भगवान से मिला कर रहेगी.लिखकर रख लीजिए इस बात को.
तो भगवान से मिलने की,उन्हें पाने की इच्छा प्रकट कीजिये.एकदिन मिलन हो जाएगा.
SMS:जाने कौन दिल्ली से कहते हैं कि
God syas:जो मेरी भक्ति करता है मै उसकी सब चीजों की रक्षा करता हूँ and He also says :जिस पर मै कृपा करता हूँ उसका सब कुछ छीन लेता हूँ.ये दो बातें कैसे कर दी भगवान ने?
बिल्कुल सही बात है.देखो मै समझाने का प्रयास करती हूँ हालाकि मेरी औकात तो कुछ भी नही है भाई.लेकिन तो भी देखिये भगवान कहते हैं कि जिसपर मै कृपा करता हूँ उसका सबकुछ छीन लेता हूँ.जानते हैं इसका अर्थ क्या है.ऐसा व्यकि जो संसार में नशे में रहता हो भौतिकता के.धन के नशे में रहता है.अपने नाम के नशे में रहता है.अपने रूप के नशे में रहता है.भगवान अगर उसपर कृपा करेंगे तो वो सब कुछ छीन लेंगे जिसपर वो घमंड करता है.तब क्या होगा?
तब वो बेचारा डर-डर भटकेगा और हर डर से उसे ठोकर मिलेगी.उसके अपने लोग भी उसे ठोकर मारेंगे कि जाओ अब तो तुम किसी काम के नही रहे.तो आपको भगवन याद आयेंगे.जब आपको भगवान याद आयेंगे तब आपको शुद्ध भक्त मिलेंगे.शुद्ध भक्त आपको भगवान के और करीब ले जायेंगे.तब आप देखेंगे कि आहा हा भगवान के प्रेम में तो मजा ही मजा है.आनंद ही आनंद है.तो जब वो आनंद आपको मिलने लगेगा.जब आप भगवान के सम्पूर्ण रूप से भक्त बन जायेंगे तो भगवान दूसरी बात कहते हैं कि ऐसे भक्त का जो कुछ है उसके पास उसकी मै रक्षा करता हूँ और जो कुछ नही है उसे लाके देता हूँ.
देखो कितने cute है न भगवान.पहले उन्होंने आपको अपना बनाया और उसके बाद जब आप उनके अपने बन गए.उनके हो गए.तब आपके भरण-पोषण सबकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते हैं.
SMS: कपिल राठौर मुजफ्फरनगर U.P.से
इतने सारे सहारे छोड़ दिए
एक तेरा सहारा बाकी है.
मुझे चाह नही दुनिया भर की
एक तेरा नजारा काफी है.
बिल्कुल सही बात है कपिल जी.अगर हम सब सारे सहारों को छोड़ करके सिर्फ भगवान का सहारा ले लें.जैसे कि भगवान कहते हैं
अगर ऐसा कर दे तो सच में मजा आ जाए.कोई tension ही नही रहे क्योंकि आप जानते हैं कि चिंता और चिता में सिर्फ एक बिंदी का फर्क है.है न.कोई चिंता रहेगी नही आपको क्योंकि भगवान सारी चिंताएं ओढ़ लेते है आपकी.सारी चिंताएं ले लेते हैं.तो फिर किसी इंसानी सहारे की क्या जरूरत है.भगवान इंसान के रूप में भी अपना सहारा भेज देंगे और आपको पता भी नही चलेगा.
और जो आपने कहा कि
SMS: सुशील मेहता पश्चिम विहार से कहते हैं कि
"One best book is equal to hundred good friends.but relationship with God is equal to a library.You r my best library O,God!"
क्या बात है.ये कहते हैं कि एक जो बढ़िया किताब है वो कई सौ,सकड़ों अच्छे दोस्तों के बराबर है.लेकिन भगवान से जो आपका रिश्ता है है वो पूरी किताबों की library के बरारबर है और आप मेरी best library हैं हे भगवान.
चलिए बहुत सुन्दर feeling है आपकी भगवान के प्रति.आपने भगवान से अपना रिश्ता जोड़ लिया तो भगवान इस रिश्ते की लाज रखेंगे ये मै आपको बता देती हूँ.
SMS: नीमा सूद दिल्ली से कहती है कि
आपने तो हमारी दुनिया ही बदल दी.Thanks.
नीमा जी आप कार्यक्रम सुन रही हैं बहुत अच्छा लगा जान करके.यकीन मानिए आपलोगों से दुनिया है हमारी.
SMS: साहिबाबाद ,गाजियाबाद से धर्म सिंह कहते हैं कि
आत्मज्ञान क्या है?
ये ज्ञान कि आप आत्मा हैं शरीर नही,आत्मज्ञान है.ये ही आत्म साक्षात्कार है.इसी को English में self realization कहते हैं.समझ रहे हैं आप.आत्म साक्षात्कार,आत्मज्ञान कि आप आत्मा हैं.कहाँ से आये?अब तक तो याद हो जाना चाहिए कि आप भगवान के अंश हैं.भगवान कहते हैं कि
जीव मेरा अंश है और इस भौतिक संसार में प्रकृति में मन समेत छः इन्द्रियों के कारण संघर्षरत है.अरे क्या कहते हैं भगवान.अरे सब कुछ बता देते हैं.
SMS: नेहा गाजियाबाद से कहती हैं कि
मेरे प्रभु के सभी प्रेमियों को मेरा प्रेम भरा नमस्कार.
नमस्कार नेहा जी.आपका नमस्कार हमारे समस्त श्रोताओं ने कबूल कर लिया होगा मुझे विश्वास है.
SMS: जाने कौन दिल्ली से कहते हैं कि
आपको सुनने के बाद मै शाकाहारी हो गया.मै भगवान का नाम लेता रहता हूँ.यहाँ तक कि bathroom में ,toilet में भी लेता रहता हूँ.मै alcohol अभी लेता हूँ.हालाकि अकेला ही लेता हूँ.किसी के साथ नही लेता.
तो देखिये आप जो भी हैं बहुत अच्छा लगा ये जन करके कि आप कार्यक्रम सुन करके आपने मांस भक्षण छोड़ दिया है.शाकाहारी हो गए हैं.बहुत अच्छी बात है.दुनिया भर के देशों में आजकल शाकाहार का प्रचालन है.सब जानते हैं कि शाकाहार से जिंदगी लंबी होती है और वैसे भी आपके जो मानसिकता है ,जो आपका मन है वो पवित्र होता जाता है.
आप कह रहे हैं कि आप alcohol ले रहे हैं यानि आप शराब ले रहे हैं तो ऐसा है कि कोई बात नही अभी आप भगवान का नाम लेते रहिये.ज्यादा-से-ज्यादा लीजिए.मै आपको कहती हूँ,आपको बताती हूँ कि आपकी शराब छूट जायेगी.क्योंकि भगवान का नाम जहाँ है वहाँ पर पाप हो ही नही सकता.नाम जब अपना असर दिखाना शुरू करेगा तो जैसे आपका मांस भक्षण छूट गया है वैसी ही आपकी शराब भी छूट जायेगी.
मै बताती हूँ दुनिया भर की जितनी problems हैं उनका हल सिर्फ एक ही है प्रभु का नाम.
SMS :प्रीति नॉएडा से पूछती हैं कि
जैसे गुरु कहते हैं कि एक ही भगवान को मानो तो क्या इसका मतलब ये है कि सारे भगवान की पूजा करनी छोड़ दे.पूजा नही करनी चाहिए.
Reply By माँ प्रेमधारा:
प्रीति देखिये भगवान एक ही होते हैं.और जिन्हें आप सारे भगवान कह रही हैं शास्त्रों के अनुसार वो उनके प्रतिनिधि हैं.देवी-देवता हैं.ठीक है.तो अगर आप भगवान की पूजा करती हैं तो एक बड़ी ही सुन्दर बात मुझे याद
आती है.एक बहुत ही सुन्दर श्लोक है कि
अगर आप भगवान की पूजा करती हैं तो समस्त देवी-देवताओं और समस्त जीवात्माओं की पूजा
स्वतः हो जाती है.स्वतः हो जाती है.
बहुत सुन्दर बात है कि
आप अगर एक पेड़ के जड़ में पानी डालते हैं तो वो जो पानी है वो उसके स्कन्द में ,उसके ताने में,उसके शाखाओं में पहुँच जाता है.उसके फल में,उसके पत्तों में अपने आप पहुँच जाता है.है न.और इसीप्रकार से अगर आप पेट को भोजन देते हैं तो सारी-के-सारी जो आपकी इन्द्रियां हैं उनको भोजन पहुँच जाता है.
तो आप सिर्फ एक भगवान में अपने मन को लगाईये तब आप देखेंगे कि आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नही पड़ेगी.वहाँ से आपको बहुत satisfaction मिलेगा.आनंद मिलेगा.
SMS :अनिता लक्ष्मीनगर से कहती हैं
क्या होगा अगर हम पूरी जिंदगी भगवान का नाम ले पर मृत्यु के समय हम भगवान का नाम न ले पाएं.तो क्या उससे हमें मोक्ष मिलेगा?
Reply By माँ प्रेमधारा:
अनिता जी मै आपकी बात समझती हूँ.आपके डर को भी समझती हूँ.आपको डर है कि हम पूरी जिंदगी भगवान का नाम ले और मृत्यु के समय हमारी मृत्यु इसप्रकार से हो कि मान लीजिए अचानक accident हो गया या हम बेहोश हो के मर गए या हम कोमा में चले गए.तो क्या होगा.तब तो हम भगवान का नाम जाहिर है नही ले सकते हैं.
लेकिन शास्त्र कहते हैं कि तब भगवान आपका नाम लेते हैं.डरने की जरूरत नही है.आप बस गंभीरतापूर्वक तमाम उम्र भगवान का नाम लीजिए और अंत में अगर आप भगवान का नाम नही भी ले पाए तो भगवान आपका नाम लेंगे.आपको याद रखेंगे.
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥
भगवान कहते हैं कि मेरे भक्त का कभी विनाश नही होता तो नही होगा.यकीन रखिये.
SMS :S.P. मेरठ से कहते हैं कि
क्या हम लेटकर भगवान का भजन कर सकते हैं क्योंकि हममे बैठने का सामर्थ्य नही है?
Reply By माँ प्रेमधारा:
बिल्कुल S.P.जी आप लेटकर भी भगवान का भजन कर सकते हैं.बैठकर कर सकते हैं.खड़े होकर कर सकते हैं.नाचकर कर सकते हैं.स्थिति-परिस्थिति को मत देखिये.important ये है कि आप भगवान का भजन करते हैं कि नही.आप उन्हें भजते हैं कि नही.उन्हें याद करते हैं कि नही.प्रेम करते हैं कि नही.लेटके भी आसूँ बहा सकते हैं.उसमे क्या समस्या है.भगवान तो बस attachment देखते हैं कि आपके मन का attachment कहाँ है.उनमे है या फिर भगवान की माया में है.यानि संसार में है.
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SMS:दीप्ति अरोड़ा तिलकनगर से कहती हैं
"God is nowhere.this can be read as God is nowhere or now here.So everything depends upon how you see anything"
Reply By माँ प्रेमधारा:
ये कहती हैं कि God is nowhere.भगवान कही नही है इसे ऐसे भी पढ़ा जा सकता है God is nowhere यानि कही नही है या फिर God is now here यानि भगवान अब यही हैं आपके पास.तो आप पर निर्भर करता है कि आप किसी भी चीज को किसप्रकार देखते हैं.यानि कि ये ग्लास आधा भरा है या आधा खाली है.है न.
दृष्टीकोण पर सब निर्भर है.श्रद्धा है तो आप कहेंगे God is now here लेकिन यदि श्रद्धा नही है तो आप कहेंगे God is nowhere भगवान कही नही हैं.और भगवान क्या कहते हैं.भगवान कहते हैं
अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप ।
अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि ॥
अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि ॥
और मै आपको बता दूं कि ये बहुत बड़ा risk है.बहुत बड़ा खतरा है.
SMS: ललिता महरौली से कहती है कि
क्या भगवान का नाम लेना भी भगवान की सेवा है?
Reply By माँ प्रेमधारा:
ललिता जी कलियुग में भगवान का नाम लेना ही भगवान की सेवा है.आप ऐसा क्यों सोच रही हैं कि भगवान का नाम अगर आपने लिया तो उनकी सेवा नही की.कलियुग में एकमात्र उपाय क्या है.
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् |
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ||
हरी के नाम के अलावा,प्रभु के नाम के अलावा कलियुग में कोई उपाय नही,कोई उपाय नही,कोई उपाय नही.
फिर नाम लीजिए भरपूर तो भगवान की सेवा हो जायेगी भरपूर.ठीक है.
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SMS:संजीव कामरा कहते हैं कि
मोक्ष और मुक्ति के बारे में बताएं.
Reply By माँ प्रेमधारा:
बहुत सुन्दर प्रश्न है आपका.मोक्ष और मुक्ति.पाँच प्रकार की होती है मुक्ति:
स्रार्ष्टि : जिसमे भगवान अपने जैसा ऐश्वर्य आपको दे देते है.
सारूप्य: जिसमे कि भगवान आपको अपने जैसा रूप प्रदान कर देते हैं.
सालोक्य : जिसमे भगवान आपको अपने लोक में प्रवेश प्रदान करते हैं.
सामीप्य : जिसमे भगवान आपको अपना संग प्रदान करते हैं.अपने पार्षद का दर्जा देते हैं.
तो ये चार मुक्ति और इसके अलावा जिसे मोक्ष कहते हैं वो है
सायुज्य मुक्ति : भगवान से तदाकार होना.भगवान में लीन हो जाना.भगवान में खो जाना.
कई बार लोग कहते हैं कि हम तो भगवान में मिल जाना चाहते हैं.वो तो मर गया और जाके भगवान में मिल गया.तो ये जो सायुज्य मुक्ति है,भक्त लोग इससे बहुत नफ़रत करते हैं.
कैवल्यम नरकायते
कहा जाता है.ये कैवल्य मुक्ति है और ये नरक जैसी है.क्यों?क्योंकि तब इसमे आप भगवान की सेवा कहाँ करेंगे जब आप भगवन में मिल जायेंगे.यूं तो आप भगवान में मिल नही पाएंगे जैसे कि एक हरा वृक्ष है और उसमे एक हरा तोता बैठा है तो वो दूर से देखने पर लगता है कि हाँ सबकुछ हरा ही है.लेकिन तोता उसका एक अलग अस्तित्व है और वो हरे पेड़ में बैठा है.रंग हरा है.ठीक है न.अस्तित्व अलग है.ख्वाहिशें अलग है.इच्छाएं अलग है.सबकुछ है उसके अंदर.पूरी Programming उसके अंदर है.वो लीं नही होता भगवान में.
तो ये जो चीज है कि हम लीन हो जायेंगे ये हो नही सकता.हम भगवान के शरीर की प्रभा में,ब्रह्मज्योति में तैरते रहेंगे अध्यात्मिक कण बन करके.किसी भी समय हमें भौतिक इच्छा अगर हो गयी कि इससे अच्छा तो मै भौतिक लोक में ही था.कम-से-कम वहाँ मै आनंद तो मना रहा था.आनंद की विचित्रता थी.diversity थी,variety थी.जैसे ही ये इच्छा आप प्रकट करेंगे आपका पतन हो जाएगा इस भौतिक जगत में.
तो भक्त भगवान से मुक्ति नही माँगता.भक्त भगवान की भक्ति मांगता है हर जन्म में.
SMS: भावना दिल्ली से कहती हैं कि भगवान को पाने की इच्छा भी भगवान से मिला देती है.
Reply By माँ प्रेमधारा:
Very right,very very right.बिल्कुल सही बात बोली है आपने भावना.भगवान को पाने की अगर आपके अंदर अदम्य इच्छा होगी.You know what अदम्य means.अदम्य का मतलब है वो इच्छा जो मरती नही.देखिये समस्त इच्छाएं पैदा होती हैं और मर भी जाती है.लेकिन ऐसी इच्छा जो मरती नही है और सारी इच्छाओं पर भारी पर जाती है.सारी इच्छाएं उसके आगे फीकी पर जाती है.बेकार हो जाती हैं.ऐसी अदम्य इच्छा भगवान से मिलने की आपको भगवान से मिला कर रहेगी.लिखकर रख लीजिए इस बात को.
तो भगवान से मिलने की,उन्हें पाने की इच्छा प्रकट कीजिये.एकदिन मिलन हो जाएगा.
SMS:जाने कौन दिल्ली से कहते हैं कि
God syas:जो मेरी भक्ति करता है मै उसकी सब चीजों की रक्षा करता हूँ and He also says :जिस पर मै कृपा करता हूँ उसका सब कुछ छीन लेता हूँ.ये दो बातें कैसे कर दी भगवान ने?
Reply By माँ प्रेमधारा:
बिल्कुल सही बात है.देखो मै समझाने का प्रयास करती हूँ हालाकि मेरी औकात तो कुछ भी नही है भाई.लेकिन तो भी देखिये भगवान कहते हैं कि जिसपर मै कृपा करता हूँ उसका सबकुछ छीन लेता हूँ.जानते हैं इसका अर्थ क्या है.ऐसा व्यकि जो संसार में नशे में रहता हो भौतिकता के.धन के नशे में रहता है.अपने नाम के नशे में रहता है.अपने रूप के नशे में रहता है.भगवान अगर उसपर कृपा करेंगे तो वो सब कुछ छीन लेंगे जिसपर वो घमंड करता है.तब क्या होगा?
तब वो बेचारा डर-डर भटकेगा और हर डर से उसे ठोकर मिलेगी.उसके अपने लोग भी उसे ठोकर मारेंगे कि जाओ अब तो तुम किसी काम के नही रहे.तो आपको भगवन याद आयेंगे.जब आपको भगवान याद आयेंगे तब आपको शुद्ध भक्त मिलेंगे.शुद्ध भक्त आपको भगवान के और करीब ले जायेंगे.तब आप देखेंगे कि आहा हा भगवान के प्रेम में तो मजा ही मजा है.आनंद ही आनंद है.तो जब वो आनंद आपको मिलने लगेगा.जब आप भगवान के सम्पूर्ण रूप से भक्त बन जायेंगे तो भगवान दूसरी बात कहते हैं कि ऐसे भक्त का जो कुछ है उसके पास उसकी मै रक्षा करता हूँ और जो कुछ नही है उसे लाके देता हूँ.
देखो कितने cute है न भगवान.पहले उन्होंने आपको अपना बनाया और उसके बाद जब आप उनके अपने बन गए.उनके हो गए.तब आपके भरण-पोषण सबकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते हैं.
SMS: कपिल राठौर मुजफ्फरनगर U.P.से
इतने सारे सहारे छोड़ दिए
एक तेरा सहारा बाकी है.
मुझे चाह नही दुनिया भर की
एक तेरा नजारा काफी है.
Reply By माँ प्रेमधारा:
बिल्कुल सही बात है कपिल जी.अगर हम सब सारे सहारों को छोड़ करके सिर्फ भगवान का सहारा ले लें.जैसे कि भगवान कहते हैं
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
अगर ऐसा कर दे तो सच में मजा आ जाए.कोई tension ही नही रहे क्योंकि आप जानते हैं कि चिंता और चिता में सिर्फ एक बिंदी का फर्क है.है न.कोई चिंता रहेगी नही आपको क्योंकि भगवान सारी चिंताएं ओढ़ लेते है आपकी.सारी चिंताएं ले लेते हैं.तो फिर किसी इंसानी सहारे की क्या जरूरत है.भगवान इंसान के रूप में भी अपना सहारा भेज देंगे और आपको पता भी नही चलेगा.
और जो आपने कहा कि
मुझे चाह नही दुनिया भर की
एक तेरा नजारा काफी है.
बिल्कुल सही बात है.अगर हमारी ये स्थिति हो जाए कि हम दुनिया की तरफ देखना बंद कर दे और बस भगवान की तरफ देखते रहे.उन्ही के दर्शन करते रहे.उसमे असीम,असीम,असीम सुख प्राप्त करते रहे.उनसे अपने समस्त रिश्ते बना ले.उन रिश्तों का निर्वाह करते रहे तो कपिल जी आनंद आ जाये.
करके देखिये.आप तो करते होने.आपके माध्यम से मै बाकी सब लोगों को कह रही हूँ.Please कर के देखिये.
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SMS: सुशील मेहता पश्चिम विहार से कहते हैं कि
"One best book is equal to hundred good friends.but relationship with God is equal to a library.You r my best library O,God!"
Reply By माँ प्रेमधारा:
क्या बात है.ये कहते हैं कि एक जो बढ़िया किताब है वो कई सौ,सकड़ों अच्छे दोस्तों के बराबर है.लेकिन भगवान से जो आपका रिश्ता है है वो पूरी किताबों की library के बरारबर है और आप मेरी best library हैं हे भगवान.
चलिए बहुत सुन्दर feeling है आपकी भगवान के प्रति.आपने भगवान से अपना रिश्ता जोड़ लिया तो भगवान इस रिश्ते की लाज रखेंगे ये मै आपको बता देती हूँ.
SMS: नीमा सूद दिल्ली से कहती है कि
आपने तो हमारी दुनिया ही बदल दी.Thanks.
Reply By माँ प्रेमधारा:
नीमा जी आप कार्यक्रम सुन रही हैं बहुत अच्छा लगा जान करके.यकीन मानिए आपलोगों से दुनिया है हमारी.
SMS: साहिबाबाद ,गाजियाबाद से धर्म सिंह कहते हैं कि
आत्मज्ञान क्या है?
Reply By माँ प्रेमधारा:
ये ज्ञान कि आप आत्मा हैं शरीर नही,आत्मज्ञान है.ये ही आत्म साक्षात्कार है.इसी को English में self realization कहते हैं.समझ रहे हैं आप.आत्म साक्षात्कार,आत्मज्ञान कि आप आत्मा हैं.कहाँ से आये?अब तक तो याद हो जाना चाहिए कि आप भगवान के अंश हैं.भगवान कहते हैं कि
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।
मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥
मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥
जीव मेरा अंश है और इस भौतिक संसार में प्रकृति में मन समेत छः इन्द्रियों के कारण संघर्षरत है.अरे क्या कहते हैं भगवान.अरे सब कुछ बता देते हैं.
SMS: नेहा गाजियाबाद से कहती हैं कि
मेरे प्रभु के सभी प्रेमियों को मेरा प्रेम भरा नमस्कार.
नमस्कार नेहा जी.आपका नमस्कार हमारे समस्त श्रोताओं ने कबूल कर लिया होगा मुझे विश्वास है.
SMS: जाने कौन दिल्ली से कहते हैं कि
आपको सुनने के बाद मै शाकाहारी हो गया.मै भगवान का नाम लेता रहता हूँ.यहाँ तक कि bathroom में ,toilet में भी लेता रहता हूँ.मै alcohol अभी लेता हूँ.हालाकि अकेला ही लेता हूँ.किसी के साथ नही लेता.
Reply By माँ प्रेमधारा:
तो देखिये आप जो भी हैं बहुत अच्छा लगा ये जन करके कि आप कार्यक्रम सुन करके आपने मांस भक्षण छोड़ दिया है.शाकाहारी हो गए हैं.बहुत अच्छी बात है.दुनिया भर के देशों में आजकल शाकाहार का प्रचालन है.सब जानते हैं कि शाकाहार से जिंदगी लंबी होती है और वैसे भी आपके जो मानसिकता है ,जो आपका मन है वो पवित्र होता जाता है.
आप कह रहे हैं कि आप alcohol ले रहे हैं यानि आप शराब ले रहे हैं तो ऐसा है कि कोई बात नही अभी आप भगवान का नाम लेते रहिये.ज्यादा-से-ज्यादा लीजिए.मै आपको कहती हूँ,आपको बताती हूँ कि आपकी शराब छूट जायेगी.क्योंकि भगवान का नाम जहाँ है वहाँ पर पाप हो ही नही सकता.नाम जब अपना असर दिखाना शुरू करेगा तो जैसे आपका मांस भक्षण छूट गया है वैसी ही आपकी शराब भी छूट जायेगी.
मै बताती हूँ दुनिया भर की जितनी problems हैं उनका हल सिर्फ एक ही है प्रभु का नाम.
1 comment:
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