नमस्कार आपके साथ हूँ मै प्रेमधारा पार्वती राठौर.नमस्कार.कैसे हैं आप.कुछ दिन पहले की बात है.मेरी बेटी computer पर कुछ कर रही थी.अचानक वो बड़ी खुश हुई.मैंने पूछा -क्या हुआ?वो बोली-माँ मुझे greeting card दिया मेरी friend ने और वो बहुत ही सुन्दर है.मैंने कहा-ले आओ kitchen मे. मै यही देख लूंगी.तो उनका जवाब था-ओह हो !यहाँ आकर computer पर ही देखना पडेगा.खैर मैंने देखा और मुझे हँसी भी आयी.life कितनी अजीब हो गयी है न.
पहले हम घंटों gift gallery में जाकर किसी के लिए कार्ड खरीदते थे.घंटों तक देखते.ऐसा कार्ड select करे जिसमे बढ़िया message हो.और जब हमें डाक के जरिये कोई greeting card मिलता उसे हम दिन में कितनी ही बार पढते,छूते,लोगों को जाकर दिखाते.कुछ दिनों बाद अपनी favorite book में वो कार्ड रख देते.याद है. बीच में कई बार यादों के उस खजाने की तरफ हम अपना हाथ बढाते.उसे देखते,टटोलते,स्पर्श करते,पढते बारम्बार.है न.
पर आज सब कुछ fast हो गया है.आप असल में नही छाया में ही खुश हो जाते हैं.फट से e-greeting भेजा.हो गयी छुट्टी.भेजनेवाला खुश,पानेवाला खुश.दुनिया छाया की गुलाम हो गयी.टी.वी. पर जो कुछ आता है वो छाया या प्रतिबिम्ब ही तो है.computer पर जो कुछ भी आप देखते हैं वो भी आभास मात्र है.वास्तविकता थोड़े ही है.पर उसी में आप मजा लेने के आदी हो गए हैं.पर आज भी असली greeting card आपको मिलता है तो आपकी खुशी देखते ही बनती है.है न.अच्छा लगता है.
इसीतरह ये जगत छाया मात्र है.इसीलिए तो माया है.आध्यात्मिक जगत ही असलियत है और ये भौतिक जगत छाया मात्र है.और मजे की बात ये कि हम इस भौतिक जगत में जीवन के लंबे होने की दुआ माँगते हैं.कोई भी इस जगत से हमेशा के लिए छूटने की दुआएं नही देता.बताईये इसे क्या कहेंगे आप.ज्ञान या फिर अज्ञान.
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