कार्यक्रम अर्पण में आपके साथ हूँ मैं पार्वती राठौर. 2016 आ चुका है. है न. नया साल प्रवेश कर चुका है और अपने नए संकल्प लिए होंगे कि हम इस साल ये करेंगे, वो करेंगे. मैं पूछना चाहती हूँ कि कार्यक्रम सुनते हुए आपको एक अरसा हो गया होगा. क्या आपने भक्ति करने का संकल्प लिया? अगर आपने भक्ति करने का संकल्प लिया है कि इस साल से हम एक लम्हा, एक क्षण भी भगवान् की याद के बगैर नही गुजारेंगे तो समझ लीजिये कि ये सबसे प्यारा और शुद्ध संकल्प है. भगवान् आपकी मदद करेंगे कि आपका ये संकल्प न केवल इस साल बल्कि हर आनेवाले साल में ये संकल्प रहे और पूरा भी हो. सदा-सर्वदा. खैर आपका संकल्प पूरा होगा ऐसी मुझे उम्मीद है. आईये फिलहाल लेते हैं कार्यक्रम ममे आज का पहला प्रश्न.
प्रश्न: मेरा सवाल ये है कि जैसे मैं एक house wife हूँ. मैं घर के सारे काम बहुत अच्छे से करती हूँ. बच्चों को बड़ों को सबको करती हूँ. लेकिन पूजा पाठ में मेरा कुछ ज्यादा ही ध्यान है. जैसे मेरी सास है. बहुत अच्छी है वे लेकिन जब मैं पूजा पाठ करती हूँ तो गलत सलत बोलती है कि अपने पाप धो रही है. बुरे कर्मों को धो रही है. पिछले जन्म में पता नही क्या पाप करके आयी थी उसको धो रही है. मेरे को इस बात से बहुत हे दुःख पहुँचता है. अब मैं ये चाहती हूँ कि इस बात का उनसे विरोध करूँ या ignore करूँ. क्योंकि मैं सोचती हूँ कि बड़ों अपमान करूँगी तो कितना पाप चढ़ेगा मुझे. मैं पूजा पाठ में ध्यान दूँ .लेकिन ये भी कहते हैं कि अन्याय को सहना भी नही चाहिए...
उत्तर प्रेमधारा माताजी द्वारा : :हाँ मुझे समझ आ गया. आपके अंदर बहुत क्रोध भरा हुआ है. इस बात को लेकर बहुत ही आपत्ति भरी हुई है. गुबार भरा पड़ा है. समय कम पड़ गया है लेकिन निकल नही पा रहा है. खैर देखिये. आपने कहा कि आपकी सास कहती हैं कि तुम पूजा पाठ कर रही हो, अपने कर्मों को धो रही हो और आपने कहा कि आप अपने बच्चों का, पति का सबका बहुत ख्याल रखती है. बहुत अच्छे से घर को संभालती हैं. बस पूजापाठ में मन थोडा ज्यादा लगता है जो कि आपकी सास पसंद नही करती हैं और वो आपको इतनी बड़ी-बड़ी बातें सुना देती हैं कि तुम पाप-वाप धो रही हो. और आप पूछ रही है कि क्या मई उनको पलटकर जबाव दूं? बड़ों को अपमान करूँगी तो और पाप लग जाएगा?
देखिये मैं आपको बताती हूँ बहन कि यही बहुत बड़ी बात है कि बच्चों के देखभाल करते हुए, गृहस्थी का धर्म पालन करते हुए आप परम धर्म को अपने जीवन में स्थान दे रही हैं. परम धर्म क्या है? परम धर्म है भगवान् के तरफ मुड़कर उनकी सेवा करना. परम धर्म है हर जीव का. स्त्री और पुरुष का नही. स्त्री और पुरुष ये भगवान् की नजर में कुछ नही होता. हम जीव है. यही हमारी मूल पहचान है. अब आपकी सासू माँ उनका भी कोई दोष नही है. अब उनकी उम्र हो चुकी है. वो बेचारी अपनी प्रवृत्ति की शिकार है. उनकी जो प्रवृत्ति है न कि बस घर में बालबच्चे बस उन्ही का ध्यान रखना चाहिए, भगवान् वगैरह का ध्यान रखने के लिए उम्र पडी, अभी से य क्या कर रही है. अभी तो खेलने-खाने की उम्र है. वो अपनी पड़ोसनों के साथ बैठ-बैठके या रिश्तेदारों से मिल मिलके उनकी सोच इसी रूप में ढल चुकी है. है न.
वो जब देखती है कि मैं तो पूजापाठ कर नही रही. मेरी तो उम्र हो गई. और ये मेरी बहू,ये पूजापाठ करने चली तो उनका ह्रदय बड़ा दुखित होता है. और वो अपने को समझाने का प्रयास करती हैं कि मुझे क्या जरूरत है पूजापाठ की. मैंने क्कोई पाप थोड़े न किया है. इसने पाप किया होगा इसलिए पूजापाठ कर रही है. अब उनका भी दोष नही है. वो बेचारी जानती ही नही है कुछ. ज्ञान ही नही है कि पूजापाठ हम यों करते हैं. भगवान् की तरफ मुड़ने का मतलब क्या है. भगवान् हमारे सुहृत हैं. उनसे हमारा एक बहुत बड़ा, बहुत मूल्यवान संबंध है.
कौन समझाएगा उन्हें? तुम समझा नही पाती हो तो वो वैसा कहेंगी ही. तो कोई बात नही. जैसे भगवान् समद्रष्टा है न. अच्छा-बुरा कुछ समझ नही आता भगवान् को. वे किसी के प्रति वैर नही करते. जो जैसा भाव पोषित करता है भगवान् उसे उसी भाव में प्रतिकार करते हैं. स्वीकार करते हैं. तुम भी वैसी हो जाओ. जैसे भगवान् वैसा भक्त. अगर वे ऐसा बोल रही हैं कि अपने पाप धोरही है तो तुम बिल्कुल mind मत करो. क्योंकि ये बात तो सच है कि हमने आज कलयुग में जन्म लिया. भगवान् कितनी बार आये इससे पहले हम उनके साथ वापस नही गए. उनके साथ वापस कहाँ गए? हम आज भी इस कलियुग में हैं और न जाने क्या-क्या देख रहे हैं. इस दुनिया में क्या पाप नही हो रहे हैं, सब देख रहे हैं. तो यानि हमने पाप किये तभी तो इस कलियुग की भयंकरता को देख रहे हैं. तो अगर वे कह रही हैं कि तुम अपने पापों को धो रही हो तो ये बात भी सच है कि भजन करने से पाप धुलते ही हैं. इसमें गलत क्या है.
यही सोचो कि सचमुच हम पाप करके आये हैं तभी तो आज हम भगवान् की सेवा में नही हैं. आज भी हम दुनिया की सेवा में हैं. और भगवान् की सेवा के लिए अभी भी हमारे मन में इतना बड़ा संकल्प नही है. हमारी बुद्धि भ्रष्ट है. हमारा शरीर बीमारियों से छिदा पड़ा है.अनेकानेक बीमारीओं का गढ़ बना हुआ है ये शरीर. और जो माहौल है वो भक्ति के बिल्कुल प्रतिकूल है. सिर्फ, सिर्फ और सिर्फ उपभोक्तावादी माहौल है. consumerism फैला हुआ है सब जगह. बस हर व्यक्ति हर जीवात्मा एक probable consumer है. उससे कितना रुपया लेना है और उसे कैसे utilize करना है बस यही समाज में एकल दस्तूर चला हुआ है. स्वार्थ के लिए सबका इस्तेमाल होता है.
अब जब ऐसे माहौल में हम रह रहें हैं तो इसका मललब यही है न भाई कि इतने भयंकर माहौल में भजन की तरफ मुड़ना, भगवान् की तरफ मुड़ना बड़ा ही दुष्कर है. बहुत ख़ुशी की बात है कि आप मुड़ गई. और हमने जो पाप किये हैं पिछले जन्मों में जिनकी वजह से हमें इतना कुछ देखना पड़ रहा है और शरीर को इतनी बीमारियाँ सहनी पद रही हैं तो भजन करने से वे पाप कट रहे हैं इसमें तो कोई शक ही नही है. तो आपकी जो सासू माँ है वे कहीं न कहीं से सत्य भी बोल रही हैं. आपने बहुत पाप नही किये हैं ऐसा क्यों सोचती हैं? अप अगर सोचेंगी कि अपने बहुत पाप किये हैं तो आपके ह्रदय में दीनता आएगी न. हाँ प्रभु मेरे जैसा अधम कोई नही है.
देखिये नरोत्तम दास ठाकुर महाशय जो कि भगवान् के आवेशावतार हैं. भगवान् के बहुत बड़े भक्त हैं, भक्ति की राह दिखाए वे कह रहे हैं कि प्रभु मुझ जैसा अधम कोई नही है. मुझ जैसा अधम कोई नही है. प्रभु आपका नाम पतितपावन है मगर मैं इतना अधम हूँ कि आपका नाम लोग नरोत्तम पावन बोलने लगेंगे. यानि कि पतित भी इतना अधम क्या होगा जितना मैं हूँ. वो परम भक्त, इतने बड़े भक्त ऐसा कह रहे हैं तो इससे क्या होता है. दीनता का प्रकटीकरण होता है, दैन्यता आती है. दीनता के बगैर तो हम भक्ति में कदम रख ही नही सकते.
तो जब भी आपकी सास बोले तो आपकी आँखों में आँसू आने चाहिए कि सच में प्रभु इतने पाप किये हैं कि पहले आपकी तरफ मुड़ ही न सकी. अब आपकी तरफ मुड़ भी रही हूँ तो भी मेरे कदम कितने लड़खड़ा के चल रहे हैं. अपने क़दमों में मैं शक्ति ला ही नही पा रही हूँ आप तक आने की. ये सब सोचिये. जब आप इस तरीके से सोचेंगी तो भक्ति में और जान आयेगी. गुस्सा करना छोड़ दीजिये. गुस्सा मत कीजिये.
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प्रश्न: आपका ये प्रोग्राम बहुत ही ज्ञानवर्धक है. कृपया आत्मज्ञान के विषय में बताएं. आत्मा जीव को कैसे ये अहसास कराती है कि मैं आत्मा हूँ?
उत्तर प्रेमधारा माताजी द्वारा : देखिये आत्मा और जीव एक ही तो है. आप ही तो आत्मा है. आपको ही ये समझना है कि आप आत्मा है. ये कोई दूसरा आ करके जीव को नही बतानेवाला कि आप आत्मा हैं. आपको समझना है कि मैं आत्मा हूँ. अब आप अपने आप को ध्यान से देखो, ध्यान से देखों. हम जब ये कहते हैं कि ये मेरा हाथ है. तो मैं कौन हूँ? क्या मैं हाथ हूँ? मैं हाथ नही हूँ इसीलिए तो कहा कि मेरा हाथ हैं. तो मैं इस शरीर में क्या हूँ? क्या मैं आँख हूँ? नही मैं आँख भी नही हूँ. मेरी आँख है. तो इस शरीर में मैं क्या हूँ? जिससे मैं बोल रहा हूँ वो जिह्वा मैं हूँ? नही वो मेरी जिह्वा है. हाँ. मेरा पैर है, मेरी गर्दन है. मेरी गर्दन में बहुत दर्द हो रहा है, मेरे बाल जो हैं वे रूखे-सूखे हैं. मेरा ये वो है. मेरा पैर जो है चल नही पा रहा है. ये सब आपके हैं तो आप कौन हैं? ये बताईये आप मुझे. पहले सोचिये इस बारे में. अगर हाथ आप नही हैं तो आप कौन हैं? अगर ये शरीर का हर अंग आपका है और आप ये शरीर नही है. तभी तो आप ये बोल रहे हैं कि ये मेरा है. ये मैं कौन हूँ?
तो उत्तर इसका भगवान् ने भगवद्गीता गीता में बहुत ही सुंदर तरीके से दिया है. द्वितीय अध्याय में. आप पढ़कर देखिये. भगवान् कह रहे हैं कि अर्जुन तुम आत्मा हो. हर देहधारी देह को धारण करता है. उसे ही जीव कहते हैं. वही आत्मा है उसका एक नाम जीव है. जैसे शरीर का एक नाम देह है, शरीर का एक नाम body है इसीप्रकार से. तो आत्मा कभी भी इस शरीर को यह नही बताता कि मैं आत्मा हूँ. यानि कि तुम आत्मा हो और तुम्हे ये महसूस करना पड़ेगा अपने आसपास की घटनाओं को देखकर. अगर मान लीजिये किसी का हाथ कट गया तो भी वह कहता है कि मैं जिन्दा हूँ. हाथ ही तो कटा है पर वो व्यक्ति तो अभी भी है. अगर पूरा शरीर है पर उसमें से वो चेतन शक्ति जो शरीर को occupy कर रहा था वो चला गया. शरीर अभी पूरा है as it is. पड़ा हुआ है. कोई कहता है वह जिन्दा था क्योंकि दिल धकड़ता था पर दिल तो अभी भी धड़काया जा सकता है मशीनों से. खून अबभी भी संचरण कराया जा सकता है, साँसें अभी भी मशीनों से दिलायी जा सकती है. तो क्या आदमी जिन्दा हो जायेगा. नही. क्यों? क्योंकि देही चला गया. वो देही कौन है? वही तो आप हैं. तो ये जो difference है उसे अच्छे से नोट करो, इसके बारे में सोचो.
हमारे परिवार में कितनों की ही मृत्यु हो चुकी है. इअसा नही है कि हमारे परिवार में मृत्यु नही हुई. दादा-परदादा न जाने इतने लोगों की मृत्यु हुई. तो वे लोग कौन थे? मृत्यु क्या होती है? देही जब देह को त्याग करके अन्य देह धारण करने चल देता है अपने कर्मानुसार उसे ही मृत्यु कहते हैं और तो कोई बड़ी चीज नही है मृत्यु. जितनी समय अवधि मिली थी, साँसे मिली थी, पूरी की और अपने next destination के लिए चल दिया. अगली मंजिल की तरफ, अगले देह की तरफ. पहले ये तो समझो कि तुम आत्मा हो. और इस शरीर में इतने लिप्त हो गए हो सदियों से, अनेकानेक जन्मों से शरीर के प्रति इतना ज्यादा आसक्त हो गए हो कि खुद को शरीर समझने लगे. जैसेकि कोई विदेशी गाड़ी ले आये और गाडी को drive करे और अचानक कोई उसकी गाडी में धक्का मार दे, scratch लग जाए तो वो एकदम चिल्लाएगा जैसे scratch गाडी पर नही उसकी आत्मा पर, उसके शरीर पर लग गया ह. वो घायल हो गया हो. क्योंकि वो गाडी से पाने आप को एकाकार समझने लगा.
ऐसे ही हमलोगों की अवस्था है. हम इस शरीर से अपने आप को उतना ज्यादा पहचानते हैं न कि हम शरीर हैं ये समझते हैं. मैं बूढा हो रहा हूँ ये कहते हैं. देखों न मेरा पेट निकल आया है. तुम पेट नही हो, तुम बूढ़े नही हो. तुम तो सदियों से ऐसे थे, ऐसे ही रहोगे लेकिन ये शरीर है जो changes का शिकार होता है, जिनमे बदलाव आते हैं. बड़े ध्यान से सोचोगे तो तुम्हे तुम्हारे प्रश्नों का स्वयं उत्तर मिल जाएगा. सिर्फ सोच से ही ये पता चलेगा कि तुम आत्मा हो. है न. मनन से पता चलेगा. आज की भागती दौड़ती जिन्दगी में क्या किसी के पास इतना समय है कि वो इस बात का मनन कर सके? अगर वो कर पाया तो बहुत बड़े सत्य की तरफ वो पहुँच जाएगा. याद रखिये.
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प्रश्न: मेरा सवाल ये है कि जैसे मैं एक house wife हूँ. मैं घर के सारे काम बहुत अच्छे से करती हूँ. बच्चों को बड़ों को सबको करती हूँ. लेकिन पूजा पाठ में मेरा कुछ ज्यादा ही ध्यान है. जैसे मेरी सास है. बहुत अच्छी है वे लेकिन जब मैं पूजा पाठ करती हूँ तो गलत सलत बोलती है कि अपने पाप धो रही है. बुरे कर्मों को धो रही है. पिछले जन्म में पता नही क्या पाप करके आयी थी उसको धो रही है. मेरे को इस बात से बहुत हे दुःख पहुँचता है. अब मैं ये चाहती हूँ कि इस बात का उनसे विरोध करूँ या ignore करूँ. क्योंकि मैं सोचती हूँ कि बड़ों अपमान करूँगी तो कितना पाप चढ़ेगा मुझे. मैं पूजा पाठ में ध्यान दूँ .लेकिन ये भी कहते हैं कि अन्याय को सहना भी नही चाहिए...
उत्तर प्रेमधारा माताजी द्वारा : :हाँ मुझे समझ आ गया. आपके अंदर बहुत क्रोध भरा हुआ है. इस बात को लेकर बहुत ही आपत्ति भरी हुई है. गुबार भरा पड़ा है. समय कम पड़ गया है लेकिन निकल नही पा रहा है. खैर देखिये. आपने कहा कि आपकी सास कहती हैं कि तुम पूजा पाठ कर रही हो, अपने कर्मों को धो रही हो और आपने कहा कि आप अपने बच्चों का, पति का सबका बहुत ख्याल रखती है. बहुत अच्छे से घर को संभालती हैं. बस पूजापाठ में मन थोडा ज्यादा लगता है जो कि आपकी सास पसंद नही करती हैं और वो आपको इतनी बड़ी-बड़ी बातें सुना देती हैं कि तुम पाप-वाप धो रही हो. और आप पूछ रही है कि क्या मई उनको पलटकर जबाव दूं? बड़ों को अपमान करूँगी तो और पाप लग जाएगा?
देखिये मैं आपको बताती हूँ बहन कि यही बहुत बड़ी बात है कि बच्चों के देखभाल करते हुए, गृहस्थी का धर्म पालन करते हुए आप परम धर्म को अपने जीवन में स्थान दे रही हैं. परम धर्म क्या है? परम धर्म है भगवान् के तरफ मुड़कर उनकी सेवा करना. परम धर्म है हर जीव का. स्त्री और पुरुष का नही. स्त्री और पुरुष ये भगवान् की नजर में कुछ नही होता. हम जीव है. यही हमारी मूल पहचान है. अब आपकी सासू माँ उनका भी कोई दोष नही है. अब उनकी उम्र हो चुकी है. वो बेचारी अपनी प्रवृत्ति की शिकार है. उनकी जो प्रवृत्ति है न कि बस घर में बालबच्चे बस उन्ही का ध्यान रखना चाहिए, भगवान् वगैरह का ध्यान रखने के लिए उम्र पडी, अभी से य क्या कर रही है. अभी तो खेलने-खाने की उम्र है. वो अपनी पड़ोसनों के साथ बैठ-बैठके या रिश्तेदारों से मिल मिलके उनकी सोच इसी रूप में ढल चुकी है. है न.
वो जब देखती है कि मैं तो पूजापाठ कर नही रही. मेरी तो उम्र हो गई. और ये मेरी बहू,ये पूजापाठ करने चली तो उनका ह्रदय बड़ा दुखित होता है. और वो अपने को समझाने का प्रयास करती हैं कि मुझे क्या जरूरत है पूजापाठ की. मैंने क्कोई पाप थोड़े न किया है. इसने पाप किया होगा इसलिए पूजापाठ कर रही है. अब उनका भी दोष नही है. वो बेचारी जानती ही नही है कुछ. ज्ञान ही नही है कि पूजापाठ हम यों करते हैं. भगवान् की तरफ मुड़ने का मतलब क्या है. भगवान् हमारे सुहृत हैं. उनसे हमारा एक बहुत बड़ा, बहुत मूल्यवान संबंध है.
कौन समझाएगा उन्हें? तुम समझा नही पाती हो तो वो वैसा कहेंगी ही. तो कोई बात नही. जैसे भगवान् समद्रष्टा है न. अच्छा-बुरा कुछ समझ नही आता भगवान् को. वे किसी के प्रति वैर नही करते. जो जैसा भाव पोषित करता है भगवान् उसे उसी भाव में प्रतिकार करते हैं. स्वीकार करते हैं. तुम भी वैसी हो जाओ. जैसे भगवान् वैसा भक्त. अगर वे ऐसा बोल रही हैं कि अपने पाप धोरही है तो तुम बिल्कुल mind मत करो. क्योंकि ये बात तो सच है कि हमने आज कलयुग में जन्म लिया. भगवान् कितनी बार आये इससे पहले हम उनके साथ वापस नही गए. उनके साथ वापस कहाँ गए? हम आज भी इस कलियुग में हैं और न जाने क्या-क्या देख रहे हैं. इस दुनिया में क्या पाप नही हो रहे हैं, सब देख रहे हैं. तो यानि हमने पाप किये तभी तो इस कलियुग की भयंकरता को देख रहे हैं. तो अगर वे कह रही हैं कि तुम अपने पापों को धो रही हो तो ये बात भी सच है कि भजन करने से पाप धुलते ही हैं. इसमें गलत क्या है.
यही सोचो कि सचमुच हम पाप करके आये हैं तभी तो आज हम भगवान् की सेवा में नही हैं. आज भी हम दुनिया की सेवा में हैं. और भगवान् की सेवा के लिए अभी भी हमारे मन में इतना बड़ा संकल्प नही है. हमारी बुद्धि भ्रष्ट है. हमारा शरीर बीमारियों से छिदा पड़ा है.अनेकानेक बीमारीओं का गढ़ बना हुआ है ये शरीर. और जो माहौल है वो भक्ति के बिल्कुल प्रतिकूल है. सिर्फ, सिर्फ और सिर्फ उपभोक्तावादी माहौल है. consumerism फैला हुआ है सब जगह. बस हर व्यक्ति हर जीवात्मा एक probable consumer है. उससे कितना रुपया लेना है और उसे कैसे utilize करना है बस यही समाज में एकल दस्तूर चला हुआ है. स्वार्थ के लिए सबका इस्तेमाल होता है.
अब जब ऐसे माहौल में हम रह रहें हैं तो इसका मललब यही है न भाई कि इतने भयंकर माहौल में भजन की तरफ मुड़ना, भगवान् की तरफ मुड़ना बड़ा ही दुष्कर है. बहुत ख़ुशी की बात है कि आप मुड़ गई. और हमने जो पाप किये हैं पिछले जन्मों में जिनकी वजह से हमें इतना कुछ देखना पड़ रहा है और शरीर को इतनी बीमारियाँ सहनी पद रही हैं तो भजन करने से वे पाप कट रहे हैं इसमें तो कोई शक ही नही है. तो आपकी जो सासू माँ है वे कहीं न कहीं से सत्य भी बोल रही हैं. आपने बहुत पाप नही किये हैं ऐसा क्यों सोचती हैं? अप अगर सोचेंगी कि अपने बहुत पाप किये हैं तो आपके ह्रदय में दीनता आएगी न. हाँ प्रभु मेरे जैसा अधम कोई नही है.
देखिये नरोत्तम दास ठाकुर महाशय जो कि भगवान् के आवेशावतार हैं. भगवान् के बहुत बड़े भक्त हैं, भक्ति की राह दिखाए वे कह रहे हैं कि प्रभु मुझ जैसा अधम कोई नही है. मुझ जैसा अधम कोई नही है. प्रभु आपका नाम पतितपावन है मगर मैं इतना अधम हूँ कि आपका नाम लोग नरोत्तम पावन बोलने लगेंगे. यानि कि पतित भी इतना अधम क्या होगा जितना मैं हूँ. वो परम भक्त, इतने बड़े भक्त ऐसा कह रहे हैं तो इससे क्या होता है. दीनता का प्रकटीकरण होता है, दैन्यता आती है. दीनता के बगैर तो हम भक्ति में कदम रख ही नही सकते.
तो जब भी आपकी सास बोले तो आपकी आँखों में आँसू आने चाहिए कि सच में प्रभु इतने पाप किये हैं कि पहले आपकी तरफ मुड़ ही न सकी. अब आपकी तरफ मुड़ भी रही हूँ तो भी मेरे कदम कितने लड़खड़ा के चल रहे हैं. अपने क़दमों में मैं शक्ति ला ही नही पा रही हूँ आप तक आने की. ये सब सोचिये. जब आप इस तरीके से सोचेंगी तो भक्ति में और जान आयेगी. गुस्सा करना छोड़ दीजिये. गुस्सा मत कीजिये.
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प्रश्न: आपका ये प्रोग्राम बहुत ही ज्ञानवर्धक है. कृपया आत्मज्ञान के विषय में बताएं. आत्मा जीव को कैसे ये अहसास कराती है कि मैं आत्मा हूँ?
उत्तर प्रेमधारा माताजी द्वारा : देखिये आत्मा और जीव एक ही तो है. आप ही तो आत्मा है. आपको ही ये समझना है कि आप आत्मा है. ये कोई दूसरा आ करके जीव को नही बतानेवाला कि आप आत्मा हैं. आपको समझना है कि मैं आत्मा हूँ. अब आप अपने आप को ध्यान से देखो, ध्यान से देखों. हम जब ये कहते हैं कि ये मेरा हाथ है. तो मैं कौन हूँ? क्या मैं हाथ हूँ? मैं हाथ नही हूँ इसीलिए तो कहा कि मेरा हाथ हैं. तो मैं इस शरीर में क्या हूँ? क्या मैं आँख हूँ? नही मैं आँख भी नही हूँ. मेरी आँख है. तो इस शरीर में मैं क्या हूँ? जिससे मैं बोल रहा हूँ वो जिह्वा मैं हूँ? नही वो मेरी जिह्वा है. हाँ. मेरा पैर है, मेरी गर्दन है. मेरी गर्दन में बहुत दर्द हो रहा है, मेरे बाल जो हैं वे रूखे-सूखे हैं. मेरा ये वो है. मेरा पैर जो है चल नही पा रहा है. ये सब आपके हैं तो आप कौन हैं? ये बताईये आप मुझे. पहले सोचिये इस बारे में. अगर हाथ आप नही हैं तो आप कौन हैं? अगर ये शरीर का हर अंग आपका है और आप ये शरीर नही है. तभी तो आप ये बोल रहे हैं कि ये मेरा है. ये मैं कौन हूँ?
तो उत्तर इसका भगवान् ने भगवद्गीता गीता में बहुत ही सुंदर तरीके से दिया है. द्वितीय अध्याय में. आप पढ़कर देखिये. भगवान् कह रहे हैं कि अर्जुन तुम आत्मा हो. हर देहधारी देह को धारण करता है. उसे ही जीव कहते हैं. वही आत्मा है उसका एक नाम जीव है. जैसे शरीर का एक नाम देह है, शरीर का एक नाम body है इसीप्रकार से. तो आत्मा कभी भी इस शरीर को यह नही बताता कि मैं आत्मा हूँ. यानि कि तुम आत्मा हो और तुम्हे ये महसूस करना पड़ेगा अपने आसपास की घटनाओं को देखकर. अगर मान लीजिये किसी का हाथ कट गया तो भी वह कहता है कि मैं जिन्दा हूँ. हाथ ही तो कटा है पर वो व्यक्ति तो अभी भी है. अगर पूरा शरीर है पर उसमें से वो चेतन शक्ति जो शरीर को occupy कर रहा था वो चला गया. शरीर अभी पूरा है as it is. पड़ा हुआ है. कोई कहता है वह जिन्दा था क्योंकि दिल धकड़ता था पर दिल तो अभी भी धड़काया जा सकता है मशीनों से. खून अबभी भी संचरण कराया जा सकता है, साँसें अभी भी मशीनों से दिलायी जा सकती है. तो क्या आदमी जिन्दा हो जायेगा. नही. क्यों? क्योंकि देही चला गया. वो देही कौन है? वही तो आप हैं. तो ये जो difference है उसे अच्छे से नोट करो, इसके बारे में सोचो.
हमारे परिवार में कितनों की ही मृत्यु हो चुकी है. इअसा नही है कि हमारे परिवार में मृत्यु नही हुई. दादा-परदादा न जाने इतने लोगों की मृत्यु हुई. तो वे लोग कौन थे? मृत्यु क्या होती है? देही जब देह को त्याग करके अन्य देह धारण करने चल देता है अपने कर्मानुसार उसे ही मृत्यु कहते हैं और तो कोई बड़ी चीज नही है मृत्यु. जितनी समय अवधि मिली थी, साँसे मिली थी, पूरी की और अपने next destination के लिए चल दिया. अगली मंजिल की तरफ, अगले देह की तरफ. पहले ये तो समझो कि तुम आत्मा हो. और इस शरीर में इतने लिप्त हो गए हो सदियों से, अनेकानेक जन्मों से शरीर के प्रति इतना ज्यादा आसक्त हो गए हो कि खुद को शरीर समझने लगे. जैसेकि कोई विदेशी गाड़ी ले आये और गाडी को drive करे और अचानक कोई उसकी गाडी में धक्का मार दे, scratch लग जाए तो वो एकदम चिल्लाएगा जैसे scratch गाडी पर नही उसकी आत्मा पर, उसके शरीर पर लग गया ह. वो घायल हो गया हो. क्योंकि वो गाडी से पाने आप को एकाकार समझने लगा.
ऐसे ही हमलोगों की अवस्था है. हम इस शरीर से अपने आप को उतना ज्यादा पहचानते हैं न कि हम शरीर हैं ये समझते हैं. मैं बूढा हो रहा हूँ ये कहते हैं. देखों न मेरा पेट निकल आया है. तुम पेट नही हो, तुम बूढ़े नही हो. तुम तो सदियों से ऐसे थे, ऐसे ही रहोगे लेकिन ये शरीर है जो changes का शिकार होता है, जिनमे बदलाव आते हैं. बड़े ध्यान से सोचोगे तो तुम्हे तुम्हारे प्रश्नों का स्वयं उत्तर मिल जाएगा. सिर्फ सोच से ही ये पता चलेगा कि तुम आत्मा हो. है न. मनन से पता चलेगा. आज की भागती दौड़ती जिन्दगी में क्या किसी के पास इतना समय है कि वो इस बात का मनन कर सके? अगर वो कर पाया तो बहुत बड़े सत्य की तरफ वो पहुँच जाएगा. याद रखिये.
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